Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेrचन्द्रिका टी० श० ८ ३० ९ सू० ३ प्रयोगबन्ध निरूपणम्
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' गोयमा ! वीरियसजोगसदव्वयाए पमायजावआउयं पडुच्च पंचिदियओरालि यसरीरप भोगनामाए कम्मस्स उदपूणं' हे गौतम! वीर्यसयोगसद्द्रव्य तथा सवीर्यतया, सयोगतया, सद्रव्यतया, प्रमादप्रत्ययात् यावत्-कर्म च योगञ्च, भावञ्च, आयुष्कं च प्रतीत्य आश्रित्य तेषामपेक्षया पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन पञ्चेन्द्रियौदा रिकशरीरप्रयोबन्धो भवति, एवं - ' तिरिक्खपंचिदियओरालिय सरीरप्प भोगबंधे एवं चैत्र' तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगन्धः एवञ्चैव-उक्तरीत्यैव, वीर्यसयोगादिभवायुष्कान्तापेक्षया तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदा रिकशरीरम योगनामकर्मण उदयेन भवति । गौतमः पृच्छति - ' मणुस्स पंचिदियओरालि यसरी रप्प भगबधे णं भंते । कस्स कम्मस्स उदएणं ?' हे भदन्त ! है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - (गोयमा) हे गौतम! (वीरियस जोग सद्दन्व याए पमाय जाव आउयं पडुच्च पंचिदिय ओरालिय सरीरप्पओगनाम कम्मस्स उदणं ) पंचेन्द्रिय जीव के सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता से तथा प्रमाद कारण से, यावत्-कर्म, योग, भाव और आयुष्क इनको आश्रित करके अर्थात् इनकी अपेक्षा से और पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर प्रयोग का बंध होता है। इसी तरह से (तिरिक्ख पंचिदियओरालिय सरीरप्प ओगबंधे एवं वेब) इसी तरह से सबीर्यता, सयोगता आदि भवायुष्कान्त की अपेक्षा से एवं तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर सम्पादक नामकर्म के उदय से तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर प्रयोग बंध होता है ।
अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - (मनुस्सपंचिदिय ओरालियसरीरप्प ओग घे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं हे भदन्त ! मनुष्य મહાવીર પ્રભુના ઉત્તર -" गोयमा !” डे गौतम ! ( वीरियल जोगव्याए पनाय जाव आउयं पडुच्च पंचिदिय ओरालिय सरीरप्पओग नाम कम्मस्स उदरण' ” ५थेन्द्रिय भुवनी सवीर्यता, संयोगता भने सद्रव्यताथी તથા પ્રમાદના કારણથી કર્યું, ચાગ, ભાવ અને આયુષ્યની અપેક્ષાએ અને પચેન્દ્રિય ઔદ્યારિક શરીર પ્રયાગ નામ કર્મોના ઉદયથી પાંચેન્દ્રિય ઔદ્વારિક શરીર પ્રયાગ બંધ થાય છે. એજ પ્રમાણે " तिरिकखपचि दियओरालियसरपओगबधे एवं चेव " सवीर्यता, समायुता, सद्रव्यता, પ્રમાદના કારણથી કમ્, ચૈત્ર, ભાવ અને આયુષ્કની અપેક્ષાએ અને તિય ચૈાનિક પચેન્દ્રિય ઔદ્રારિક શરીર સમ્પાદક નામ કર્મીના ઉદ્દયથી તિય જ્ગ્યાનિક પંચે ન્દ્રિય દારિક શરીર પ્રયાગ અધ થાય છે.
श्री भगवती सूत्र : ৩