Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ८ ०९०५ वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धवर्णनम् ३१ णकोवक्तव्यः, उत्कर्षेण देशबन्धश्च सर्वबन्धसमयन्यूनस्वस्वोत्कृष्टस्थितिममाणको वक्तव्य इत्यभिप्रायेणाह-' एवं जाव अहेसत्तमा, नवरं देसबंधे जा जस्स जहनिया ठिई सा तिसमयऊणा कायवा, जस्स जा उक्कोसा सा समयूणा' एवं पूर्वोक्तरीत्यैव यावत्-शर्कराप्रभा-वालुकामभा-पङ्कममा-धूमप्रभा-तमःप्रभा-तमस्तमःप्रभाऽधः सप्तमीपृथिवीनरयिकपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगस्य सर्वबन्धः एक समयं भवति, नवरं विशेषस्तु देशबंधो यस्य नैरयिकजीवस्य या यावती जघन्यिका जघन्येन स्थितिरायुष्यकालः, सा त्रिसमयन्यूना कर्तव्या, यस्य च या उत्कृष्टा स्थितिः सा समयोना कर्तव्या, तथैव प्रदर्शिता चेति भावः, पञ्चन्द्रियतिबङ्मनुष्याणां वैक्रियसर्वबन्धः एकं समयं भवति, देशबन्धस्तु जघन्येन एकं समयम् , उत्कृष्टेन कम दश १० हजार वर्ष का और उत्कृष्टकाल एक समय कम एक सागरोपम का कहा गया है-इसी तरह से द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ट, और सप्तम इन सब नरकों में रहने वाले जीव के बैक्रिय शरीर का सर्वबंध काल एक समय और देशबंध का जघन्य काल तीन समय कम अपनी २ जघन्य आयु बराबर है और उत्कृष्ट देशबंध काल सर्वबंध के एक समय से कम अपनी २ उत्कृष्ट आयु बराबर है। इसी अभिप्राय को लेकर ( एवं जाव अहे सत्तमा-नवरं देसबंधे जा जस्स जहनिया ठिई सा तिसमयऊणा कायव्वा ) ऐसा कहा गया है। पंचेन्द्रियतिथंच और मनुष्यों के वैक्रिय शरीर का सर्वबंध काल एक समय का और देशबंध काल जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से अन्तमुहूर्त का होता है। यही बात सूत्रकार ने वायुकायिक जीवों के क्रिय ધને જઘન્યકાળ ૧૦ દસ હજાર વર્ષ કરતાં ત્રણ ઓછા સમયને અને ઉત્કટકાળ એક સાગરેપમ કરતાં એક ન્યૂન સમયને કહ્યો છે, એજ રીતે બીજી ત્રીજી, ચોથી, પાંચમી, છટ્રી અને સાતમી નરકમાં રહેનારા નારકના વકિય શરીરને સર્વબંધકાળ એક સમયને અને દેશબંધને જઘન્યકાળ તેમની જેટલી જઘન્ય આયુ સ્થિતિ હોય તેના કરતાં ત્રણ ન્યૂન સમય પ્રમાણ સમજ અને દેશબંધને ઉત્કૃષ્ટકાળ જેમની જેટલી ઉત્કૃષ્ટ આયુ સ્થિતિ तन। १२di से न्यून समय प्रमाण सभा २४ वात सूत्ररे ( एवं जाव अहे सत्तमा-नवर देसबधे जा जस्स जहनिया ठिई सा तिसमयऊगा कायव्वा) આ સૂત્ર દ્વારા પ્રતિપાદન કર્યું છે.
પચેન્દ્રિય તિર્યંચ અને મનુષ્યના વૈકિયશરીરને સર્વબંધકાળ એક સમયને અને દેશબંધકાળ ઓછામાં ઓછો એક સમયને અને વધારેમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭