Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
२९४
भगवती सूत्रे
बन्धान्तरं पृच्छा, गौतम ! सर्वबन्धान्तरं जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण पूर्वकोटीपृथक्त्वम् एवं देशवन्धान्तरमपि मनुष्यस्यापि ।
टीका - ' वेउव्वयसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धः खलु कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह 'गोयमा ! दुविहे पण ते ' हे गौतम! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धो द्विविधः प्रज्ञप्तः
तिथंच योनिक पंचेन्द्रिय के वैक्रियशरीर का प्रयोगवन्धान्तर काल की अपेक्षा से कितना है ? ( गोयमा ) हे गौतम ! ( सव्वबंधंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुग्वको डिपुहुतं एवं देसबंधंतरं पि) तिर्यच योनिक पंचेन्द्रिय के वैक्रिय शरीर का सर्वबंधान्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट से एककोटिपूर्वपृथक्त्व का है। इसी तरह से देश बन्धातर भी जानना चाहिये ।
टीकार्थ - औदारिक शरीर प्रयोग की प्ररूपणा करके अब सूत्रकार वैकिय शरीरप्रयोगबंध की प्ररूपणा करते हैं- इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि - ( वे उब्विय सरीरप्पपओगबधे णं भंते! कहविहे पण्णत्ते) हे भदन्त । वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम! वैक्रिय शरीप्रयोगबंध (दुविहे पण्णत्ते) दो प्रकार का कहा गया है । (तं जहा )
गबंध'तर पुच्छा ) हे लहन्त ! तिर्यययोनि पथेन्द्रियना वैडिय शरीरने। अन्धान्तर आज डेट! उद्यो छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( सव्वबंध' तर जहणेण अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं पुन्त्रकोडिपुहुत्त एवं सबंध तर वि ) तिर्यथ ચેાનિક પચેન્દ્રિય ઔદ્યારિક શરીર પ્રયાગનું સબન્ધાન્તર ઓછામાં ઓછુ’ અન્તર્મુહૂત અને વધારેમાં વધારે એક કોટિપૂપૃથકત્વનુ છે. એજ પ્રમાણે देशमन्धान्तर पशु सभवु . ( एवं मणुस्से वि ) येन प्रमाणे मनुष्यना वैडि યશરીરના અન્ધાન્તર કાળ વિષે પણ સમજવું.
ટીકાથ—ઔદારિક શરીપ્રયોગ બંધની પ્રરૂપણા કરીને હવે સૂત્રકાર વૈક્રિયશરીર પ્રયોગખ ધની પ્રરૂપણા નીચે પ્રમાણે કરે છે. આ વિષયને અનુલक्षीने गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे ( वेउव्जियसरीरपओगत्रघे ण भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? ) हे लहन्त ! वैडियशरीर प्रयोगमध ના કેટલા પ્રકારા કહ્યા છે?
भडावीर प्रभुने। उत्तर- ( दुविहे पण्णत्ते - तंजहा ) हे गौतम! वैडियशरीर प्रयोगमांधना नीचे प्रमाणे मे प्रमश उद्या छे.- (पगिंदिय उब्विय सरीर
श्री भगवती सूत्र : ৩