Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीमत्र जोणिओ वि बंधइ ' तिर्यग्योनिकोऽपि वनाति, 'तिरिक्ख नोणिणी वि बंधइ ' तिर्यग्योनिकी अपि बध्नाति, 'मणुस्सो विबंधइ ' मनुष्योऽपि बध्नाति, ‘मणुस्सी वि बंधा ' मनुषी अपि बध्नाति, 'देवो वि बंधइ ' देवोऽपि बध्नाति, देवी वि बंधइ ' देवी अपि बध्नाति, इति रीत्या यथा प्रश्नं सप्त उत्तराण्यपि, किन्तु एतेषु मनुष्यमानुषीवर्जाः पञ्च सकषायत्वात् नियमतः साम्परायिककर्मबन्धका एवं भवन्ति, मनुष्यमनुष्यौ तु भजनया, सकषायित्वे सति साम्परायिकं कर्म बघ्नीतः, अकषायित्वे तु न बध्नीत इत्याशयः । अथ साम्परायिककर्मवन्धमेवस्न्यायपेक्षया सांपरायिक कर्म का बंध नैरयिक भी करता है, (तिरिक्खजोणिओ वि बधइ ) तिर्यंच योनिक जीव भी करता है (तिरिक्खजोणिणी वि बंधइ) तिर्यच स्त्री भी करती है (मणुस्सो वि बंधइ) मनुष्य भी करता है, (मणुस्सी वि बंधह) मनुष्य स्त्री भी करती है, (देवो वि बंधह) देव भी करता है, ( देवी वि बंधइ) देवी भी करती है इस प्रकार से ये पूर्वोक्त सात प्रश्नों के उत्तर हैं। किन्तु इनमें मनुष्य और मनुष्य स्त्री इनको छोड़कर पांच जीव कषाय सहित होने से नियमतः सांपरायिक कर्म के बंधक ही होते हैं। मनुष्य और मनुष्य स्त्री ये दो सांपरायिक कर्म के बंधक भजना से होते हैं-अर्थात् जय ये कषाय सहित होते हैं तव तो सांपरायिक कर्म बंध करते हैं और जब कषाय सहित नहीं होते हैं-तब सांपरायिक कर्म का बंध नहीं करते हैं। अब सूत्रकार स्त्री आदि की अपेक्षा लेकर सांपरायिक कर्म बंध की ही प्ररूपणाकरते
महावीरप्रसुन उत्तर-गोयमा ! " गौतम ! " नेरइओ वि वध" सायि भन ना२४ ५५५ ४३ छ, “तिरिक्खजोणिओ वि बध” तिय"य योनि ०१ ५५] ४२ छ, “तिरिक्खजोणिणी वि बंधइ" तिय थिणी ४२ छ, “ मणुस्सो वि बंधइ " मनुष्य ५७ ३२ छ, “ मणुस्त्री बि बधइ " भनुष्य श्री ५४ ४२ छ, “देवो वि धइ” प ४२ छ, ' देवी वि बध" सने हवी. ५५ ४रे छे. पूर्वरित सात प्रश्नोन उत्त२ मा प्रभारी छे. પણ તે સાતેમાંથી મનુષ્ય અને મનુષ્ય સ્ત્રી સિવાયના પાંચ પ્રકારના જી. કષાયસહિત હોવાને કારણે નિયમથી જ સાંપરાયિક કર્મના બંધક હોય છે. મનુષ્ય અને મનુષ્ય સ્ત્રી વિકલપે તેને બંધક હોય છે. એટલે કે જ્યારે તેઓ કષાયયુક્ત હોય છે ત્યારે સાંપરાયિક કર્મને બંધ કરે છે પણ જ્યારે કષાય. યુક્ત હતા નથી ત્યારે તેને બંધ કરતા નથી.
હવે સૂત્રકાર શ્રી આદિની અપેક્ષાએ સાંપરાયિક કર્મબંધનું નિરૂપણ ४२वा निमित्त नीयना प्रश्नोत्तरे। माछ-" त भते! किं इत्थी बधइ,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭