Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसरे णिज्जे णं भंते ! कम्मे कइ परीसहा समोयरंति ? हे भदन्त ! चारित्रमोहनीये खलु कर्मणि विषये कति परीषहाः समवतरन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! सत्त परीसहा समोयरंति' हे गौतम ! चारित्रमोहनीये कर्मणि विषये सप्त परीषहाः समवतरन्ति, तानेवाह-'तं जहा-"अरई, अचेल, इत्थी, निसीहिया, जायणा य अकोसे । सक्कार - पुरककारे चरित्तमोहंमि सत्तेते"||५९।।तद्यथा-अरतिः१, अचेलम् २, स्त्री३, नैषेधिकी, ४, याचना च ५, आक्रोशः, सत्कारपुरस्कारश्चारित्रमोहनीये सप्त एते परीषहा भवन्ति, तत्र च अरति परीषहो रतिमोहनीये तज्जन्यत्वात् , अचेलपरीषहो जुगुप्सामोहनीये लज्जापेक्षया, स्त्रीपरीषहः पुरुषवेदमोहनीये, तत्त्वतस्तस्य व्याघभिलाषरुप दर्शन परीषह का समावेश दर्शनमोहनीय कर्म में कहा गया है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(चरित्तमोहणिज्जेणं भंते ! कम्मे कह परीसहा समोयरंति) हे भदन्त ! चारित्रमोहनीय कर्म में कितने परीषहों का समरतार होता है उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम! (सत्त परीसहा समोयरंति) चारित्रमोहनीय कर्म में सात परीषहों का समावेश होता है। जो इस प्रकार से हैं-( आरती अचेल इत्थीनिसीहिया जायणा य अकोसे, सकारपुरकारे चरित्तमोहमि सत्तेते) अरति, अचैल, स्त्री, नैषेधिकी, याचना, आक्रोश और सत्कार पुरस्कार इनमे अरति परिषह का समवतार मोहनीय में होता है, क्यों कि अरति-अरतिमोहनीयजन्य होती है। अचैलपरीपह लज्जा की अपेक्षा से जुगुप्सामोहनीय में समाविष्ट होता है । स्त्रीपरीषह पुरुषवेदमोहनीय में, स्त्री की अपेक्षा से पुरुषपरीषह स्त्रीवेदमोहनीय में, क्यों कि पुरुषप
गौतम स्वाभाना प्रश्न-" चरित्तमोहणिज्जेणं भंते ! कम्मे कइ परीसहा समोयर'ति ?” उ मन्त! यात्रिमाउनीय भभाटा परिषडान। समावेश थाय छ ?
महावीर प्रसुन। उत्तर-“गोयमा !" गौतम ! “ सत्त परीसहा समायति" यात्रिभानीय ४ मा नाय प्रमाणे सात परीषडाने समावेश थाय छे-" अरती, अचेल, इत्थी, निसीहिया जायणा य अक्कोसे सक्कारपुरक्कारे चरित्तमोहमि सत्ते ते " मति, अयस, खी, नाही, यायना, माओश मन. સત્કાર પુરસ્કાર. આ સાત પરિષહમાંના-અરતિ પરીષહને સમાવેશ મોહ નીયમાં થાય છે કારણ કે અરતિ અરતિમોહનીયજન્ય હોય છે. અશૈલ પરી. પહને સમાવેશ લજજાની અપેક્ષાએ જુગુપ્સમેહનીયમાં થાય છે. સ્ત્રી પરીષહને પુરુષવેદ મોહનીયમાં અને સ્ત્રીની અપેક્ષાએ પુરુષ પરીષહનો સ્ત્રીવેદ મોહ. નીયમાં સમાવેશ થાય છે. કારણ કે પુરુષ પરીષહ સ્ત્રી આદિની અભિલાષા
श्री.भगवती सूत्र : ७