Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसरे भगवानाह-'गोयमा ! जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं छम्मासा' हे गौतम ! इन्द्रस्थानं खलु जघन्येन एकं समयम् उपपातेन विरहितं भवति. उत्कर्षेग षड्मासाः षण्मासपर्यन्तम् उपपातविरहितं भवति । अन्ते गौतमः सर्व सत्यापयति'सेवं भंते ! सेवं भंते !' हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेव, हे भदन्त ! भवदुक्तं सत्यमेवेति ॥ मू०६॥
इति श्री-विश्वविख्यात - जगदल्लभ-प्रसिद्धवाचक - पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगधपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक-बादिमानमर्दकश्रीशाहूछत्रपतिकोल्हापुरराजमदत्त - जैनशास्त्राचार्य ' - पदभूषितकोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्रीघासीलालबतिविरचितायां श्रीभगवतीसूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां
व्याख्यायाम् अष्टशतकस्य अष्टमोद्देशकः समाप्तः ॥ ८-८ ॥ गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(इंदट्ठाणेणं भंते ! केवइयं कालं विरहिए उववाएणं ) हे भदन्त ! इन्द्रस्थान इन्द्र के उत्पात से कितने समयतक विरहित रहता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम! इन्द्रस्थान इन्द्र के उत्पाद से (जहण्णणं एक समयं उक्कोसेणं छम्मासा) कम से कम १ समयतक और अधिक से अधिक छह मास तक विरहित रहता है। अब अन्त में गौतमस्वामी प्रभु के वचन में प्रमाणता स्वीकार करते हुए (सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) ऐसा कहते हैं कि हे भदन्त ! आप के द्वारा कहा गया यह सब विषय सर्वथा सत्य है-हे भदन्त ! सर्वथा सत्य है। इस प्रकार कह कर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर बैठ गये। सू० ६॥
॥ आठयां उद्देशक समाप्त ॥ डव गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे :-( इंददाणेणं भंते ! केवइयं काल विरहिए उववाएणं ?) ३ महन्त ! छन्द्रस्थान सा समय सुधी छन्द्रना ઉત્પાતથી વિરહિત રહે છે?
महावीर प्रभुनउत्त२-" गोयमा ! जहण्णेणं एक समय', उकोसेणं छम्मासा" 3 गौतम ! न्द्रस्थान छन्द्रना अपातथी माछामा माछु मे समय सुधी भने पधारेभा पधारे छ मास सुधी वि२डित २ छे. "सेव भंते ! सेव माते ! ति" वे महावीर प्रभुना क्यामा श्रद्धा व्यत ४२ता ગૌતમ સ્વામી કહે છે કે હે ભદન્ત ! આપના દ્વારા પ્રતિપાદિત આ સમસ્ત વિષય સર્વથા સત્ય છે. હે ભદન્ત ! આપની વાત યથાર્થ છે. આ પ્રમાણે કહીને પ્રભુને વંદણા નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી પિતાને સ્થાને બેસી ગયા. સૂ. ૬
છે આઠમે ઉદ્દેશક સમાપ્ત છે ૮-૮ છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭