Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र
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भगयानाह-'आलावणबंधे जं गं तणभाराण वा, कटुभाराण वा, पत्तभाराण वा, पलालभाराण वा, वेल्लभाराण वा, वेत्तलयानागवरत्ताज्जुबल्लिकुसदब्भमादिएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जइ ' आलापनबन्धो यत् खलु तृणभाराणां वा, काष्ठभाराणां पत्रभाराणां वा, पलालभाराणां वा, धान्यरहिततृणपुञ्जभारागामित्यर्थः, वेल्लभाराणां वा प्रवालभारागामित्यर्थः प्रालवाचको देशीयो वेल्लशब्दः, वेत्रलता-वल्कवरत्रा-रज्जु-वल्ली कुश दर्भादयः, तत्र वेत्रलता जलवंशकम्बा, वल्कः वल्कलः-त्वचा, वरत्रा-चर्ममयीरज्जुः,रज्जुशणादिमयी वल्ली त्रपुष्यादिका, कुशा निर्मूलदर्भाः, दर्भास्तु समूलाः, आदिशब्दाचीवरादीनां परिग्रहस्तैरित्यर्थः आलापनबन्धः समुत्पद्यते, भवति, स च आलापनबन्धः 'जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्नं कालं' जघन्येन आलावणबंधे) हे भदन्त ! आलापनबंध कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(आलावणवधे जं णं तणभाराण वा, कहभाराण वा, पत्तभाराण वा, पलालभाराण वा, वेल्लभाराण वा, वेत्तलयावागवरत्त रज्जुबल्लिकुसदभमाएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जह ) हे गौतम ! तृणभारों का घास के गट्ठों का, काष्ठ के भारों का-लकडियों के गट्ठों का, पत्र भारों का-पत्तों की गठरियों का, धान्यरहित पलाल के भारों का अर्थात् धान्यरहित तृणपुंज-भुसा की गठरियों का, लताओं की गठरियों का, अथवा-कोपलों को गठरियों का, जो बेत की छालों से, बकलों से, वरना-चर्म की बनी हुई रस्सियों से, शन आदि की बनी हुईडोरियों से, निर्मूलदर्भो से, समूलदर्भो से एवं कपडों की धग्गियों से जो बांधना होता है वह आलापनबंध है । यह आलापनबंध 'जहण्णेणं अंतोमुहत्त उक्कोसेणं संखेज्जं कालं-से त्तं आलावणब धे' कम से कम अन्तर्मुहूर्ततक रहता है, और अधिक से अधिक संख्यातकालतक બંધનું સ્વરૂપ કેવું છે?
महावीरप्रभुने। उत्त२-(आलावण बधे जणं तणभाराण वा, कटुभाराण वा, पत्तभाराण वा पलालभाराण वा, वेल्लभाराण वा, वेत्तल यावागवरत्त रज्जुवल्लिकुसब्भमादिएहि आलोवणव'धे समुप्पज्जा) 3 गौतम ! घासनी गांसीमान, 108ना ભારાને, પાનની ગાંસડીને, લતાઓની ગાંસડીઓને, અથવા કપલેની ગાંસ રીઓને જે નેતરની છાલોથી, લતાએથી, ચામડાની દોરીથી, શણના દેરડાથી નિર્મળ દર્ભોથી, સમૂળ દર્ભોથી અને કપડાના લાંબા ચિંદરડાથી બાંધવામાં भाव छ, त२ सालापन मध ४९ छे. ते मालापन म ( जहण्णेणं अंतामुहत्त उकासेणं संखेज्जकालं) पोछामा सोछ। २५ तमुक्त सुधी भने था.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭