Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ ३० ९ सू०३ प्रयोगबन्ध निरूपणम्
૭
"
जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण संख्येयं कालम् स एष आलापनबन्धः । अथ कः स आळीनबन्ध: ? आलीनबन्धधतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - श्लेषणाबन्धः, उच्चयबन्धः, समुच्चयबन्धः, संहननबन्धः, अथ कः स श्लेषणावन्धः ? श्लेषणाबन्धो यत् खलु कुड्यानां कूटानां कुट्टिमानाम्, स्तम्भानाम्, मासादानाम्, काष्ठानाम्, चर्मणाम्, घटानाम्, पटानाम्, कटानाम्, सुधाकर्दमल ^ लेपलाक्षा - मधु - सिक्थादिभिः श्लेषणैः बन्धः समुपपद्यते, जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण संख्येयं कालम्, स एष किसी बेल से, कुश अथवा डाभ वगैरह से बांधने से होता है। अर्थात् घास वगैरह को वे तकी बेल आदि से जो बांधना है वह आलापन बंध है। (जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जकालं ) इस आलापन बंध का काल जघन्यसे एक अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से संख्यात कालका है अर्थात् यह बंध कमसे कम रहे तो अन्तर्मुहूर्त तक रहता है, और अधिक से अधिक संख्यातकाल तक रहता है। ( से प्तं आलावण बंधे ) यही आलापन बंध का स्वरूप है । (से किं तं अल्लियावणबधे ) हे भदन्त ! आलीन बंध का क्या स्वरूप है ? (अल्लियावणबधे चव्विहे पण्णत्ते) हे गौतम! आलीन बंध चार प्रकार का कहा है- ( तं जहा ) जो इस प्रकार से है - ( लेसणाबंधे, उच्चपबंधे, समुच्चयबंधे, साहणणा घे) १ श्लेषणाबंध, २ उच्चयबंध, ३ समुच्चयबंध और ४ संहननबंध (से कि तं लेसणाव धे) हे भदन्त ! इलेषणाबंध का क्या स्वरूप है ? (लेसणाचे जं णं कुड्डाणं, कोहिमाणं, खंभाणं, पासायाणं, कहाणं, चम्माणं, घडणं, पडणं, कडाणं, छुहाचिक्खिल्ल सिलेस लक्ख महुसित्थमाइएहिं लेणएहिं बंधे समुप्पज्जइ ) हे गौतम । श्लेषणा बंध वह है जो भित्तियों का, मणिप्रस्तर जडित भूमियों का, खंभों का,
पन अध उडे छे. ( जहण्णेणं अतो मुहुत्त, उक्कोसेणं संखेज्जकालं ) मा आसायन અધઓછામાં ઓછો એક અંતમુદ્દત સુધી અને વધારેમાં વધારે સખ્યા ताण सुधी रहे छे. (सेत आलावणवधे) आसायन मंध मे स्व३५ छे. ( से किं त अलियावणबंधे ? ) डेलहन्त ! आसीन अधनु स्व३५ ठेवु छे ? ( अल्लियावणबधे चविहे पण्णत्ते - तजहा ) हे गौतम! आसीन अधना नीचे प्रमाणे यार प्रहार छे - लेसणाव घे, उच्चयबंधे, समुच्चयबंधे, साहणणाबधे ) (१) द्वेषासुर मध, (२) अभ्यय अध, समुख्यय गंध भने (४) सांडुनन अध. ( से किं त लेसणाचे ? ) डेलहन्त ! द्वेषा मध हे स्व३५ छे ? ( लेखणा बघे जणं कुड्डाणं, कोट्टिमाणं, खंभाणं, पासायाण, कट्ठाणं, चम्माणं, घडणं, पडाणं कडाणं छुद्दा चिक्खिलसिलेस लक्खमहु सित्थमाइएहि लेखणएहिं बधे समुप्पज्जइ ) हे गौतम! खेषामते ने डीवासोनु, भलि प्रस्तर
श्री भगवती सूत्र : ৩