________________
२२
३०. पार्श्वपुराण
३१. महापुराण
३२. महापुराण (आदिपुराण
उत्तरपुराण ) अपभ्रंश
३३. मल्लिनाथपुराण (कन्नड)
३४. पुराणसार
३५. महावीरपुराण
३६. महावीरपुराण
३७. मल्लिनाथपुराण
३८. मुनिसुव्रत पुराण
३६.
37
४०. वागर्थसंग्रहपुराण
"1
11
11
17
11
""
आदिपुराण
वादिचन्द्र
आचार्य मल्लिषेण
महाकवि पुष्पदन्त
(अपभ्रंश) ,,) )
"1
कवि नागचन्द्र श्रीचन्द
कवि असग भ० सकलकीर्ति
37
४१. शान्तिनाथपुराण
४२.
४३. श्रीपुराण
४४. हरिवंशपुराण
४५. हरिवंशपुराण (अपभ्रंश)
४६.
( ()
"1
४७.
४८.
४६.
५०.
१६७१
५१.
५२.
१५६० से पूर्व का रचित
इनके अतिरिक्त संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषा के चरित्र ग्रन्थ हैं जिनकी संख्या पुराणों की संख्या से अधिक है और जिनमें 'वरांगचरित', 'जिनदत्तचरित', 'जसहर चरिउ', 'णायकुमारचरिउ' आदि कितने ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सम्मिलित हैं ।
ब्रह्म कृष्णदास
भ० सुरेन्द्रकीर्ति कवि परमेष्ठी
कवि असग
भ० श्रीभूषण
भ० गुणभद्र
पुन्नाटसंघीय जिनसेन
स्वयंभूदेव चतुर्मुखदेव ब्र० जिनदास
भ० यशः कीर्ति
भ० श्रुतकीर्ति
१६५८
११०४
ई. १०वीं शती
कवि रइधू
भ० धर्मकीर्ति कवि रामचन्द्र
ई. ११वीं शती
ई. ११वीं शती-
६१०
१५वीं शती
"
वि. १७वीं शती
वि. १८वीं शती
आ० जिनसेन के महा
पुराण से प्राग्वर्ती
१०वीं शती
१६५६
वि. १५-१६वीं शती
शक संवत् ७०५
८वीं शती ई०
ई. ८वीं या पूर्ववर्ती
१५-१६वीं शती
१५०७
१५५२
१५-१६वीं शती
पुराण-ग्रन्थों की यह सूचिका हमारे सहपाठी मित्र पं० परमानन्दजी शास्त्री, सरसावा ने भेजकर हमें अनुगृहीत किया है। इसके लिए हम उनके आभारी हैं ।'
महापुराण
महापुराण के दो खण्ड हैं : प्रथम आदिपुराण या पूर्वपुराण और द्वितीय उत्तरपुराण । आदिपुराण ४७ पर्वों में पूर्ण हुआ है जिसके ४२ पर्व पूर्ण तथा ४३ वें पर्व के ३ श्लोक भगवज्जिनसेनाचार्य के द्वारा निर्मित हैं और अवशिष्ट ५ पर्व तथा उत्तरपुराण श्री जिनसेनाचार्य के प्रमुख शिष्य श्री गुणभद्राचार्य के द्वारा विरचित हैं ।
१. 'संस्कृत', 'प्राकृत' और 'पुराण' इन स्तम्भों में पं० सीताराम जयराम जोशी एम० ए० तथा पं० विश्वनाथ शास्त्री भारद्वाज एम० ए० के 'संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास से सहायता ली गयी है।