________________
२०
आदिपुराण
जैनाचार्यों के द्वारा भारतीय साहित्य-प्रगति को सदा बल मिला है। प्राचीन भाषाओं की बात जाने दीजिए, हिन्दी भाषा का आद्य उपक्रम भी जैनाचार्यों द्वारा ही किया गया है। जैन समाज को बुद्धि उत्पन्न हो और वह पूरी शक्ति के साथ अपना समग्र साहित्य आधुनिक ढंग से प्रकाश में ला दे तो सारा संसार उनकी गुणगरिमा से नतमस्तक हो जायेगा ऐसा मेरा निज का विश्वास है
पुराण
भारतीय धर्मग्रन्थों में पुराण शब्द का प्रयोग इतिहास के साथ आता है। कितने ही लोगों ने इतिहास और पुराण को पंचम वेद माना है । चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में इतिहास की गणना अथर्ववेद में की है और इतिहास में इतिवृत्त, पुराण, आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र का समावेश किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि इतिहास और पुराण दोनों ही विभिन्न हैं, इतिवृत्त का उल्लेख समान होने पर भी दोनों अपनी-अपनी विशेषता रखते हैं। कोषकारों ने पुराण का लक्षण निम्न प्रकार माना है :
"सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वंशानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम् ॥" जिसमें सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशपरंपराओं का वर्णन हो वह पुराण है । सर्ग, प्रतिसर्ग आदि पुराण के पाँच लक्षण हैं।
इतिवृत्त केवल घटित घटनाओं का उल्लेख करता है परन्तु पुराण महापुरुषों की घटित घटनाओं का उल्लेख करता हआ उनसे प्राप्य फलाफल, पुण्य-पाप का भी वर्णन करता है तथा साथ ही व्यक्ति के चरित्रनिर्माण की अपेक्षा बीच-बीच में नैतिक और धार्मिक भावनाओं का प्रदर्शन भी करता है। इतिवृत्त में केवल वर्तमानकालिक घटनाओं का उल्लेख रहता है परन्तु पुराण में नायक के अतीत अनागत भवों का भी उल्लेख रहता है और वह इसलिए कि जनसाधारण समझ सके कि महापुरुष कैसे बना जा सकता है? अवनत से उन्नत बनने के लिए क्या-क्या त्याग और तपस्याएँ करनी पड़ती हैं। मनुष्य के जीवन-निर्माण में पुराण का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है कि उसमें जनसाधारण की श्रद्धा आज भी यथापूर्व अक्षुण्ण है।
जैनेतर समाज का पुराण-साहित्य बहुत विस्तृत है। वहाँ १८ पुराण माने गये हैं जिनके नाम निम्न प्रकार हैं : १ मत्स्यपुराण, २ मार्कण्डेयपुराण, ३ भागवतपुराण, ४ भविष्यपुराण, ५ ब्रह्माण्डपुराण, ६ ब्रह्मवैवर्तपुराण, ७ ब्रह्मपुराण, ८ वामनपुराण, ६ वराहपुराण, १० विष्णुपुराण, ११ वायु वा शिवपुराण, १२ अग्निपुराण, १३ नारदपुराण, १४ पद्मपुराण, १५ लिगपुराण, १६ गरुडपुराण, १७ कूर्मपुराण और १८ स्कन्दपुराण।
ये अठारह महापुराण कहलाते हैं । इनके सिवाय गरुडपुराण में १८ उपपुराणों का भी उल्लेख आया है जो कि निम्नप्रकार है
१ सनत्कुमार, २ नारसिंह, ३ स्कान्द, ४ शिवधर्म, ५ आश्चर्य, ६ नारदीय, ७ कापिल, ८ वामन, ६ औशनस, १० ब्रह्माण्ड, ११ वारुण, १२ कालिका, १३ माहेश्वर, १४ साम्ब, १५ सौर १६ पराशर, १७ मारीच और १८ भार्गव ।
देवी भागवत में उपयुक्त स्कान्द, वामन, ब्रह्माण्ड, मारीच और भार्गव के स्थान में क्रमश: शिव, मानव, पादित्य, भागवत और वाशिष्ठ नामों का उल्लेख आया है।
इन महापुराणों और उपपुराणों के सिवाय अन्य भी गणेश, मौदगल, देवी कल्कि आदि अनेक पुराण उपलब्ध हैं। इन सबके वर्णनीय विषयों की तालिका देने का अभिप्राय था परन्तु विस्तारवृद्धि के भय से उसे