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आदर्श-जीवन।
होगा मगर दूसरे भी क्या साधु होंगे ? घर उजाड़ कर क्या तू उनसे भीख मँगवायगा ? आजसे फिर कभी ऐसी बेजा हरकत न करना । भोजन तू चाहे यहाँ कर चाहे वहाँ । तेरे लिए दोनों घर खुले हैं। भोजन करके यहाँ आ जाया कर और कुछ पढ़ कर मुझे सुनाया कर । यहीं अपना अभ्यास भी किया कर । देख मेरे कहनेके माफिक चलेगा तो तेरा मनोर्थ सफल होगा; अन्यथा पछतायगा।"
आपने हीराचंदभाईकी बात स्वीकार की। उनके कथनानुसार निश्चिन्त होकर धर्माराधन करते हुए अपना जीवन बिताने लगे। .
खीमचंदभाईके लिए यह बात असह्य थी कि छगनलाल आनंदसे अपने इष्ट मार्गकी साधनामें लगा हुआ है। वे हर समय यही सोचा करते थे कि, कोई ऐसी घटना हो कि छगनके भाव बदल जाय।
ऐसा अवसर भी आया। आपके मामा जयचंदभाई के लड़के नाथालालका ब्याह था। खीमचंदभाईने उसमें आपको लेजाना स्थिर किया । सब जानते हैं कि, ब्याहोंमें गया हुआ मनुष्य वैरागी नहीं रह सकता । खीमचंदभाईने भी इसी ज्ञानका उपयोग किया । आपने ब्याहमें जानेसे इन्कार किया। खीमचंदभाईने कहा,-" अगर छगन नहीं जायगा तो मैं भी ब्याहमें न
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