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आदर्श-जीवन ।
यहाँ पधारे थे तब नित्य प्रति वह व्याख्यानमें आता था एकाग्रता पूर्वक व्याख्यान सुनता था और एकटक महाराजकी तरफ देखा करता था। जब गुँहलीका वक्त आता यह उठकर चला जाता । एक दिन महाराजने पूछा,-" हीराचंदभाई वह कौन है और व्याख्यान समाप्त होते ही क्यों चलाजाता है ? " मैंने उत्तर दिया था कि;-" यह मेरी मासीका लड़का है। सातवीं क्लासमें पढ़ता है। स्कूलका वक्त हो जानेसे चला जाता है। " महारानने फर्माया था;-"हीराचंदभाई ! मुझे यह लड़का होनहार मालूम होता है । इससे शासनकी शोभा बढ़ेगी। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि, यह गृहस्थीके बंधन में न रहेगा।" महात्माके ये वचन मिथ्या न होंगे। अब तो यह उनके चर-- णोमें रह भी आया है इससे उसका मन दृढ हो गया है। श्रीचंद्रविजयजी महाराजके समयसे इसके अंदर वैराग्यभावके अंकुर दिखे थे अब तो वे वृक्षके रूपमें बदल गये हैं । अब उसे इसके विरुद्ध कुछ कहना पाप है।
" एक बार मैंने चुन्नीभाईसे कहा था, ''चुन्नीभाई देख लो जीवकी अवस्था कैसी बदल जाती है। एक दिन किसीकी जेबमें से कोई चीज चली गई थी । तुमने छगनपर ही संदेह करके उसे रस्सीसे बाँधकर पीटा था; मगर उसके पाससे कुछ भी न निकला था। उस समय वह एक मामूली लड़का था और अब वह एक महान वैरागी है।" चुनीभाईको भी खेद था कि उन्होंने
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