Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीर सेवा मन्दिर दिल्ली ४०४५ क्रम सख्या सख्या २६३. बोहरा काल न० खण्ड Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ا س ط ططط Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला : ग्रन्थांक-४८ जैन शिलालेख संग्रह [ भाग चार ] संग्राहक-संपादक डॉ० विद्याधर जोहरापुरकर, एम० ए०, पीएच० डी० प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ काशी वीर निर्वाण संवत् २४९१ प्रथमावृत्ति] [मूल्य • रुपये Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थमाला सम्पादक डॉ० हीरालाल जैन, एम० ए०, डी० लिट० डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, एम० ए०, डी० लिट्० प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ दुर्गाकुण्ड रोड, वाराणसी प्रथम आवृत्ति १००० प्रति मूल्य सात रुपये मुद्रक सन्मति मुद्रणालय दुर्गाकुण्ड रोड, वाराणसी Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-३३ १-२ २-१६ २-४ ४-१४ अनुक्रमणिका प्रधान सम्पादकीय प्राक्कथन संकेत-सूची प्रस्तावना १ लेखोंका साधारण परिचय २ जैन संघका परिचय (अ) यापनीय संघ (आ) मूलसंघ (इ) गौड संघ (ई) द्राविड़ संघ (उ) माथुर संघ (ऊ) पंचस्तूप निकाय (ऋ) जम्बूखंडगण (३) सिंहवूरगण (ल) जैनसंघके विषयमें साधारण विचार ३ राजवंशोंका आश्रय (अ) उत्तर भारतके राजवंश १५ १५ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९-३२ जैनशिलालेख-संग्रह (भा) दक्षिण भारतके राजवंश (इ) राजाश्रयके विषयमें साधारण विचार ५ जैन संघकी दुरवस्था ३२-३३ ५ उपसंहार ३३ मूल लेख (तिथिक्रमसे ) १-३८४ परिशिष्ट १ श्वेताम्बर लेखोंकी सूचना २ जैनेतर लेखोंमें जैन व्यक्ति आदिके उल्लेख ३८९-३९२ ३ नागपुर प्रतिमा लेख संग्रह ३९३-४२२ मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण ४३०-४५४ नामसूची ४५५ ३८५-३८८ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान-सम्पादकीय प्राचीन कालकी मानबीय प्रवृत्तियोंका विधिवत् वर्णन व विश्लेषण हो इतिहास है । ऐसे इतिहासके लिए आधारभूत सामग्री प्राप्त होती है मानवको निमितियोंके भग्नावशेषों अर्थात् गुफाओं, चैत्यों, स्तूपों, समाधियों, गृहों, मन्दिरादि धर्मायतनों व मूर्तियों जैसे स्थापत्यके भग्नावशेषोंसे, चित्रोंसे व साहित्यिक रचनाओंसे । किन्तु इनसे भी अधिक प्रामाणिक और यथावत् वृत्तान्त उन लेखोंसे मिलता है जो राजाओं व अन्य धनिकोंके दानकी तथा उनके द्वारा निर्माण कराये गये मन्दिरादिको स्मृति-रक्षणार्थ पाषाणखण्डों व ताम्रपटों आदि पर उत्कीर्ण कराये गये पाये जाते है। ऐसे प्राचीनतम लेखोंकी लिपि बहुधा वही ब्राह्मी है जिससे आजकी नागरी लिपि विकसित हुई है, तथापि उसका प्राचीनतम रूप इतना भिन्न था कि उसे पढना बहुत कठिन सिद्ध हुआ । बडे परिश्रमके पश्चात् उस लिपिकी कुंजी हाथ लगी, जिससे लगभग गत अढाई सहस्र वर्षोंके शिलालेख पढे और समझे जा सके। किन्तु चालीस-पचास वर्ष पूर्व सिन्धु घाटीसे ऐसे भी मुद्रालेख प्राप्त हुए है, जिन्हें पढ़ने और समझनेका अभी प्रयास ही चल रहा है, कोई सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। जो प्राचीन शिलालेख पढ़े गये और प्रकाशित हुए वे पुरातत्त्व विभागके बहुमूल्य व दुर्लभ ग्रन्थमालाओं व पत्रिकाओंमे समाविष्ट पाये जाते हैं। इनमें जैन धर्म सम्बन्धी शिलालेखोंका विवरण भी यत्र-तत्र बिखरा पाया जाता है। इन लेखोंका ऐतिहासिक महत्त्व तब प्रकट हुआ जब सन् १८८९ मे मैसूरके पुरातत्त्व विभागको ओरसे श्रवणबेलगोलके १४४ शिलालेखोंका अलगसे संग्रह एक विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना सहित प्रकाशित हुआ। सन् १९२२में इसका संशोधित और परिवर्धित संस्करण प्रकाशमें आया Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह जिसमें शिलालेखोंकी संख्या ५०० हो गयी । इसी बीच सन् १९०८ में फ्रांसीसी विद्वान गैरीनोकी एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने तब तक प्रकाशित हुए आठ सौ पचास जैन शिलालेखोंका परिचय कराया । इस सब सामग्री के सम्मुख आनेपर कुछ जैन विद्वानोंकी आँखें खुलीं और उन्हें अनुभव हुआ कि जब तक इस सामग्रीका उपयोग करते हुए धर्म व साहित्य सम्बन्धी लेख नहीं लिखे जायेंगे तबतक जैनधर्मका प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। स्वभावतः उस समय जो विद्वान् जैन साहित्य और इतिहासके संशोधनमें तल्लीन थे उन्हें इस आवश्यकताका विशेष रूपसे बोध हुआ । इनमे माणिकचन्द्र ग्रन्थमालाके संस्थापक व प्रधान सम्पादक स्वर्गीय पं० नाथूरामजी प्रेमोकी याद आती है । उन्होंने ही अपनी प्रेरणा द्वारा जैनशिलालेख संग्रहका प्रथम भाग तैयार कराकर प्रस्तुत ग्रन्थमालाके २८वें पुष्पके रूपमे प्रकाशित किया, जिसमे श्रवणबेलगोल के उपर्युक्त पाँच सौ शिलालेख नागरी लिपिमे हिन्दी सारांश तथा विस्तृत भूमिका व अनुक्रमणिकाओं सहित जिज्ञासुओं व लेखकोंको अति सुलभ हो गये । इसका तुरन्त ही हमारे साहित्य व इतिहास संशोधन कार्यपर महत्त्वपूर्ण प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगा । तद्विषयक लेखो मे इनके उपयोग द्वारा बड़ी वांछनीय प्रामाणिकता आने लगी जिसके लिए प्रेमजी जैसे विद्वान् बहुत आतुर थे । अब उन्हें अन्य शिलालेखों को भो इसी रूपमे सुलभ पानेको अभिलाषा तीव्र हुई जिसके फलस्वरूप उक्त गैरीनो महोदयको रिपोर्ट के आधार शिलालेख संग्रह भाग २ और ३ मे ( ० ४५-४६ सन् १९५२, १९५७ ) आठ सौ पचास लेखोका पाठ व परिचय हमारे सम्मुख आ गया । आगेका लेख संग्रह कार्य बड़ा कठिन प्रतीत हुआ, क्योंकि इसके लिए कोई व्यवस्थित सूचियाँ उपलभ्य नहीं थीं । किन्तु इस कार्यको पूरा कराना हमने अपना विशेष कर्तव्य समझा । सौभाग्यसे डॉक्टर विद्याधर जोहरापुरकरने यह कार्य भार अपने ऊपर लेकर विशेष प्रयासों द्वारा यह छह सौ ६ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान-सम्पादकीय चौवन लेखोंका परिचय करानेवाला चौथा संग्रह प्रस्तुत कर दिया। प्रस्तावनामें उन्होंने लेखोंका काल, प्रदेश, भाषा, प्रयोजन, मुनिसंघ, राजवंश आदि दृष्टियोंसे जो विश्लेषण के अध्ययन किया है वह बहुत महत्त्वपूर्ण है इसके लिए हम उनके बहुत कृतज्ञ है । हमें दुःख है कि पण्डित नाथूरामजी प्रेमी आज हमारे बीच नहीं रहे ! कितना हर्ष होता उन्हें इस नये लेख संग्रहको देखकर ! शिलालेख-संग्रहके इन भागोंमें संकलित सामग्रीका जैन साहित्य और इतिहासके संशोधन कार्यमें विशेष उपयोग हो रहा है, और होगा इसमें सन्देह नहीं। किन्तु इस विषयमे अब तकके अनुभवके आधारसे कुछ सूचनाएँ कर देना हम अपना कर्तव्य समझते है १. लेखोंका जो मूल पाठ यहाँ प्रस्तुत किया गया है, वह सावधानी पूर्वक तो अवश्य लिया गया था, तथापि उसे अन्त-प्रमाण होनेका दावा नही किया जा सकता। कन्नड लेखोंको यहाँ जो देवनागरीमे लिखा गया है उसमे भी लिपिभेदसे अशद्धियाँ हो जाना सम्भव है। आगे-पीछे विशिष्ट विद्वानो-द्वारा पाठ व अर्थ-संशोधन सम्बन्धी लेख लिखे ही गये होंगे। अतएव विशेष महत्त्वपूर्ण मौलिक स्थापनाओके लिए संशोधकोंको मूलस्रोतों का भी अवलोकन कर लेना चाहिए। २. इधर कुछ कालसे ऐसी प्रवृत्ति दिखाई देती है कि जहाँ दो आचार्योमे नाम-साम्य दिखाई दिया वहाँ उन्हे एक ही मान लिया गया । किन्तु यह बात भ्रामक है । एक ही नामके अनेक आचार्य विविध कालोंमे भो हए है और सम-सामयिक भी। अतएव उन्हे एक सिद्ध करनेके लिए नाममात्रके अतिरिक्त अन्य प्रमाणोंकी भी खोज करना चाहिए। ३. इन प्रकाशित शिलालेखोंसे यह अपेक्षा नहीं करना चाहिए कि उनमें समस्त प्राचीन आचार्योंका उल्लेख आ ही गया है : अतएव इनमें किसी आचार्यके नामका अभाव किसी विशिष्ट अनुमान व तर्कका आधार Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह नहीं बनाया जा सकता । ये लेख जैन मुनियोंकी पूरी गणनाका लेखा नहीं समझना चाहिए । ८ ४. कन्नड लेखोंका जो सार हिन्दोमे दिया गया है उसीके आधार मात्रसे कोई नयी कल्पनाएं नहीं करना चाहिए। उसके लिए मूल पाठ और उसके शब्दश: अनुवादका अवश्य अवलोकन करना चाहिए । यथार्थतः ये लेख संग्रह सामान्य जिज्ञासुओंके लिए तो पर्याप्त है । किन्तु विशेष संशोधकोंके लिए तो ये मूल सामग्रीकी ओर दिग्निर्देश मात्र ही करते हैं । इस ग्रन्थमालाको अपनी गोद में लेकर श्री शान्तिप्रसादजी व श्रीमती रमारानीजीने न केवल समाजके एक अग्रणी हितैषी सेठ माणिकचन्द्रजीकी स्मृति की रक्षा की है व ग्रन्थमालाके जन्मदाता पं० नाथूरामजी प्रेमीकी भावनाको सम्मान दिया है किन्तु जैन साहित्यकी रक्षा व जैन इतिहासके नवनिर्माण कार्य में बड़ी महत्त्वपूर्ण सेवा की है जिसके लिए समाज सदैव उनका ऋणी रहेगा | ही. ला. जैन आ. ने. उपाध्ये ( प्रधान सम्पादक ) 1 - Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राक्कथन प्रस्तुत संग्रहका प्रथम भाग डॉ० हीरालालजी जैन द्वारा संपादित होकर सन् १९२८ में प्रकाशित हुआ था । उसमें श्रवणबेलगोल तथा निकटवर्ती स्थानोंके ५०० लेख संकलित हुए थे। इसका दूसरा तथा तीसरा भाग श्री विजयमूर्ति शास्त्रो द्वारा संकलित हुआ । इन दो भागोंमे फ्रेन्च विद्वान् डॉ० गेरिनो द्वारा संपादित पुस्तक 'रिपोर्टर द एपिग्राफी जैन के आधारसे ८५० लेख दिये है । डॉ० गेरिनोकी पुस्तक पैरिससे सन् १९०८ मे प्रकाशित हुई थी । अतः इन दो भागोंमे सन् १९०८ तक प्रकाशित हुए लेख ही आ सके है । इन ८५० लेखोमे-से १४० लेख प्रथम भागमे आ चुके है तथा १७५ लेख श्वेताम्बर सम्प्रदायके हैं अतः इनकी सूचना भर दी गयी है. शेष ५३५ लेखोका पूरा विवरण दिया गया है । इस तरह पहले तीन भागों मे कुल १०३५ लेखोंका संग्रह हुआ है । 1 1 सन् १९५७ में इस संग्रहके तीसरे भागके प्रकाशित होनेपर श्रीमान् डॉ० उपाध्येजीने हमें प्रस्तुत चौथे भागके संपादन के लिए प्रेरित किया । तबसे कोई चार वर्ष तक अवकाशके समयका उपयोग कर यह कार्य हमने किया । इसे कुछ विस्तृत रूप देनेके लिए हमने सन् १९६१ की गर्मियोंकी छुट्टियोंमे दो सप्ताह तक उटकमंड स्थित प्राचीन लिपिविद् - कार्यालयमे भी अध्ययन किया । इसके फलस्वरूप सन् १९०८ के बाद प्रकाशित हुए कोई ६५४ लेखोंका संग्रह प्रस्तुत भाग में प्रकाशित हो रहा है । यद्यपि ये सब लेख पुरातत्त्वविभागके प्रकाशनोंमे पहले प्रकाशित हो चुके हैं तथापि साधारण अभ्यासक के लिए वे सुलभ नहीं है उनका संपादन अंगरेजीमें हुआ है तथा उनका मूल्य भी बहुत अधिक है । अतः इस संग्रहमे उनका पुनः प्रकाशन उपयोगी होगा - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकथन इसमें सन्देह नहीं है। यह कहना तो संभव नहीं है कि इन भागोंमे अबतक प्रकाशित सब लेख संगृहीत हो चुके है - तथापि अधिकांश लेखोंका संग्रह करनेकी हमने कोशिश की है। ____ यह स्पष्ट ही है कि इन प्रकाशित लेखोके अतिरिक्त अभी सैकड़ों लेख अप्रकाशित भी हैं - विशेषकर मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात तथा उत्तरप्रदेशके सैकड़ों मतियों तथा मन्दिरों आदिके लेखोंका अध्ययन अभी बहुत कम हुआ है । परिशिष्टमें दिये हुए नागपुर मूर्तिलेख संग्रहसे इस कार्यके विस्तारकी कल्पना हो सकती है। हमे आशा है कि इन लेखोंका संग्रह भी प्रस्तुत मालाके अगले भागोंमे प्रकाशित हो सकेगा। माणिकचन्द्र ग्रन्थमालाके प्रारम्भसे ही इसका कार्य स्व० नाथूरामजी प्रेमीने बहुत श्रद्धा तथा उत्साहसे संभाला था। हमे जैन इतिहासके अध्ययनमे उनसे बहुत प्रोत्साहन मिला है। खेद है कि इस पुस्तकके सम्पादनके पूर्ण होनेसे पहले ही उनका स्वर्गवास हो गया। हम उन्हे कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करते है। प्रस्तुत संग्रहकी प्रेरणाके लिए हम आदरणीय डॉ० उपाध्येजीके भी ऋणी है। उटकमंडके प्राचीन लिपिविद् कार्यालयके प्रमुख डॉ. दिनेशचन्द्र सरकारसे वहाँके पुस्तकालयमे अध्ययनकी सुविधा मिली तथा वहाँके अन्य अधिकारी डॉ० गै एवं श्री० रित्तीसे अच्छा सहयोग मिला एतदर्थ हम उनके ऋणी है। उन सब विद्वानोंका ऋण तो स्पष्ट ही है जिन्होंने इन लेखोंका पहले सम्पादन किया था तथा विभिन्न पत्रिकाओंमे उन्हें प्रकाशित किया था। ___ अन्तमें कन्नड भाषा अथवा इतिहासके अज्ञानवश जो त्रुटियाँ रही हो उनके लिए हम पाठकोसे क्षमा चाहते हैं। जावरा - दिसम्बर १९६१ - वि० जोहरापुरकर Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (अ) पूर्णतः उपयुक्त पत्रिकाएँ - ए० इ० रि० इ० ए० रि० स० ए० इ० म० इ० पु० ए० २ि० मै० संकेत-सूची इन्स्क्रिप्शन्स ऑफ़ दि पुदुकोट्टै स्टेट एन्युअल रिपोर्ट ऑफ़ दि मैसोर आर्किऑलॉजिकल डिपार्टमेण्ट रि० आ० स० एन्युअल रिपोर्ट ऑफ दि आर्किऑलॉजिकल सर्व्हे ऑफ़ इण्डिया सा० इ० इ० इ० ए० मे० आ० स० एपिग्राफिया sfuser एन्युअल रिपोर्ट ऑन इण्डियन एपिग्राफी एन्युअल रिपोर्ट ऑन साउथ इण्डियन एपिग्राफी इन्स्क्रिप्शन्स ऑफ दि मद्रास प्रेसिडेन्सी (आ) अंशतः उपयुक्त पत्रिकाएँ - इ० हि० का० इ० ओ० का० साउथ इण्डियन इन्स्क्रिप्शन्स इण्डियन एण्टिक्वेरी मेमॉयर्स ऑफ दि आर्किऑलॉजिकल सर्व्हे ऑफ़ इण्डिया इण्डियन हिस्टॉरिकल काँग्रेस- रिपोर्ट इण्डियन ओरिएण्टल कॉन्फरन्स- रिपोर्ट Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना १. लेखोंका साधारण परिचय जैन शिलालेख संग्रहके प्रस्तुत चौथे भागमे कुल ६५४ लेख संगृहीत हैं । इन्हें समय के क्रमसे प्रस्तुत किया है। इसमे सन्पूर्व चौथी सदीका १ ( क्र० १) सन्पूर्व तीसरी सदीका १ ( क्र० २), सन्पूर्व पहली सदी के ११ ( क्र० ३ से १३ ) सन् पहली सदोका १ ( क्र० १४ ), दूसरी सदीके ४ ( क्र० १५ से १८ ), पाँचवी सदीका १ ( क्र० १९ ), छठी सदीके दो ( क्र० २० व २१ ), सातवीं सदी के २२ ( क्र० २२ से ४३ ) आठवीं सदीके १० ( क्र० ४४ से ५३ ), नौवीं सदीके २० ( क्र० ५४ से ७३), दसवीं सदीके ४२ ( क्र० ७४ से ११५ ), ग्यारहवीं सदीके ६७ ( क्र० ११६ से १८२ ), बारहवीं सदी के १३४ ( क्र० १८३ से ३१६,) तेरहवी सदीके ७३ ( क्र० ३१७ से ३८९), चौदहवीं सदीके ३० (क्र० ३९० से ४१९ ), पन्द्रहवीं सदी के ३५ ( क्र० ४२० से ४५४ ) सोलहवीं ५०१), सत्रहवीं सदीके १५ ( क्र० ५०२ से ११ ( क्र० ५१७ से ५२७ ), तथा उन्नीसवीं ५३५ ) लेख है । शेष ११९ लेखोका समय सीके ४७ ( क्र० ४५५ से ५१६ ), अठारहवी सदी के सदीके ८ ( क्र० ५२८ से अनिश्चित है । इन ६५४ लेखोंमें राजस्थानके २१, उत्तरप्रदेशके ९, बिहारके ४, बंगालका १, गुजरातके ३, मध्यप्रदेशके १५, उड़ीसा के १६, महाराष्ट्रके ७, आन्ध्र के ४६, मद्रास के ८२, केरलका १ एवं मैसूर प्रदेशके ४४७ लेख है । भाषा की दृष्टिसे इन लेखोका विभाजन इस प्रकार है - प्राकृतके १८, संस्कृतके ८८, हिन्दीके ३, तेलुगुके ८, तमिलके ७७ एवं कन्नडके ४६० । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह प्रयोजनको दृष्टिसे ये लेख मुख्यतः चार भागोंमें बाँटे जा सकते हैं -८७ लेखोंमें जिनमन्दिरोंके निर्माण अथवा जीर्णोद्धारका वर्णन है, १२६ लेखोंमें जिनमूर्तियों की स्थापनाका वर्णन है, २०८ लेखोंमें मन्दिरों तथा मुनियोंको गाँव, जमीन, सुवर्ण, करोंकी आय आदिके दानका वर्णन है, तथा १६४ लेखोंमे मुनियों, गृहस्थों तथा महिलाओंके समाधिमरणका उल्लेख है । इसके अतिरिक्त १३ लेखोंमे गुहा निर्माणका, ४ लेखोंमें (क्र० ४८६, ४८७, ४८९ तथा ५७६ ) मठोंके आर्थिक व्यवहारोंका ३ लेखोमे क्र० ४२५, ४७१ तथा ४७२) साम्प्रदायिक समझौतोंका एवं एक लेख (क्र० ५०७ ) में सामाजिक कुरूढिके निवारणका वर्णन है । २ लेखोंके इस स्थूल परिचयके बाद हम इनसे प्राप्त ऐतिहासिक तथ्यों का कुछ विस्तार से अवलोकन करेगे - पहले जैनसंघ के बारेमे तथा बादमें राजवंशो आदिके विषयमे । २. जैनसंघका परिचय ( अ ) यापनीय संघ - प्रस्तुत संग्रहमं यापनीय संघका उल्लेख कोई १७ लेखोंमें हुआ है । इनमे सबसे प्राचीन लेख गंग राजा अविनीतका ताम्रपत्र है जो छठी सदीके पूर्वार्धका है (ले० २० ) ' । इसमे 'यावनिक ' संघ द्वारा अनुष्टित एक मन्दिरके लिए राजा द्वारा कुछ दान दिये जानेका वर्णन है । इस संघ के कुमिलि अथवा कुमुदि ( क्र० ७०, १३१, ६११ एवं ६१२ ) मे नौवीं सदीमे इस गणके महावीर गुरुके । है । इन्होंने कीरेप्पाक्कम् ग्रामके उत्तरमें २ गणका उल्लेख चार लेखोमे है इनमे पहले लेख ( क्र० ७० ) शिष्य अमरमुदल गुरुका वर्णन देशवल्लभ जिनालयका निर्माण १. पहले संग्रहके क्र० ९९, १०० तथा १०५ लेखोंमें ५वीं सदीके उत्तरार्ध में भी यापनीय संघका उल्लेख है । २. पहले संग्रहमें इस गणका कोई उल्लेख नहीं है । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना कराया था। दूसरे लेख (क्र. १३१ ) में सन् १०४५ में इस गणके कुछ आचार्योंका वर्णन है। इस समय चावुण्ड नामक अधिकारोने मुगुन्द प्राममें एक जिनालय बनवाया था। अन्य दो लेख (क्र० ६११ तथा ६१२) अनिश्चित समयके निषिधि लेख हैं। इनमे पहला लेख इस गणके शान्तवोरदेवके समाधिमरणका स्मारक है। ___ यापनीय संघका दूसरा गण पुन्नागवृक्षमूल गण चार लेखोंसे ज्ञात होता है (क्र० १३०, २५९, १६८, ६०७)। पहले लेखमें सन् १०४४ मे इस गणके बालचन्द्र आचार्यको पूलि नगरके नवनिर्मित जिनालयके लिए कुछ दान दिये जानेका वर्णन है। इसी लेखके उत्तरार्धमें सन् १९४५ में इस गणके रामचन्द्र आचार्यको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । इस गणका अगला उल्लेख ( क्र० २५९) सन् ११६५ का है। इसमें इस गणको गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है - मुनिचन्द्र - विजयकीर्ति -कुमारकीति विद्य - विजयकीति ( द्वितीय )। शिलाहार राजा विजयादित्यके सेनापति कालणने एक्कसम्बुगे नगरमे एक जिनालय बनवाकर उसके लिए विजयकीति ( द्वितीय ) को कुछ दान दिया था। एक लेखमें ( ऋ० १६८ ) वृक्षमूलगणके मुनिचन्द्र त्रैविद्यके शिष्य चारुकीति पण्डितको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है - यह सन् १०९६ का लेख है । एक अनिश्चित समयके लेख (क्र० ६०७ ) मे भी वृक्षमूलगणके एक मन्दिर कुसुमजिनालयका उल्लेख है। हमारा अनुमान है कि इन दो लेखोंका वृक्षमूलगण पुन्नागवृक्षमूलगणसे भिन्न नहीं होगा। यापनीय संघके कण्डूर गणका उल्लेख तीन लेखोंमे है ( क्र. २०७, ३६८,३८६ ) इनमे पहला लेख १२वीं सदीके पूर्वार्धका है तथा इसमे १. पहले संग्रहमें पुन्नागवृक्षमूलगणके दो उल्लेख सन् ८१२ तथा सन् १९०८ के हैं (क्र. १२४, २५० )। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह इस गणके बाहुबली, शुभचन्द्र, मौनिदेव एवं माघनन्दि इन चार आचार्योंका वर्णन है - इनमे परस्पर सम्बन्ध बतलाया नहीं है। दूसरे लेखमे १३वीं सदीमे इस गणके एक मन्दिरका उल्लेख है तथा तीसरे लेखमे इसी समयकी एक जिनमूर्तिका उल्लेख है ।' इसी संघके कारेयगणका उल्लेख १२वों सदीके पूर्वार्धके एक लेख (क्र० २०९) में है। मुल्लभट्टारक तथा जिनदेवसूरि ये इस गणके आचार्य पांच लेखोंमें यापनीय संघका उल्लेख किसी गण या गच्छके बिना ही प्राप्त होता है (क्र. १४३,२९८-३००,३८४ )। इनमे पहला लेख सन् १०६० का है तथा इससे जयकीति - नागचन्द्र ~ कनकशक्ति इस गुरुपरम्पराका पता चलता है। अगले दो लेख १२वीं सदीके है तथा इनमे मुनिचन्द्र एवं उनके शिष्य पाल्यकीतिके समाधिमरणका उल्लेख है । अन्तिम लेखमे १३वी सदीमें कीर्ति आचार्यका उल्लेख है। इस तरह प्रस्तुत संग्रहसे यापनीय संघका अस्तित्व छठी सदोसे तेरहवीं सदो तक प्रमाणित होता है। (आ) मूलसंघ-प्रस्तुत संग्रहमें मूलसंघके अन्तर्गत सेनगण, देशी गण, सूरस्थगण, बलगारगण ( बलात्कार गण ) क्राणूरगण तथा निगमा १. पहले संग्रहमें इस गणका उल्लेख सन् १८० में हुआ है (क्र. १६०)। २. पहले संग्रहमें इस गणकं दो लेख सन् ८७५ तथा दसवीं सदी पूर्वार्धक हैं ( ऋ० १३०,१०२)। ३. पहले सग्रहमें यापनीय संघके तीन और गणोंका उल्लेख है - कनकोपलसम्भूत वृक्षमूल गण, श्रीमूलमूलगण तथा कोटिमहुव गण(तीसरा भाग-प्रस्तावना पृ. २७-२९)। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना न्वय इन छह परम्पराओंके उल्लेख विस्तारसे मिलते हैं । इनका अब क्रमशः विवरण प्रस्तुत करेंगे । ( आ १) सेनगण - इसका प्राचीनतम उल्लेख सन् ८२१ का है ( क्र० ५५ ) । इस लेख में इसे 'चतुष्टय मूलसंघका उदयान्वय सेनसंघ' कहा है । इसकी आचार्य परम्परा मल्लवादी सुमति पूज्यपाद - अपराजित इस प्रकार थी । लेखके समय गुजरात के राष्ट्रकूट शासक कर्कराज सुवर्णवर्षने अपराजित गुरुको कुछ दान दिया था सेनगणके तीन उपभेद थे पोगरि अथवा होगरि गच्छ, पुस्तक गच्छ, एवं चन्द्रकवाट अन्वय । पोगरि गच्छका पहला लेख ( क्र० ६१ ) सन् ८९३ का है तथा उसमे विनयसेनके शिष्य कनकसेनको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । इस लेखमे इसे मूलसघ- सेनान्वयका पोगरियगण कहा है | दूसरा लेख ( क्र० १३४ ) सन् १०४७ का है तथा इसमे नागसेन पण्डितको सेनगण-होरि गच्छके आचार्य कहा है । इन्हें चालुक्य राज्ञी अक्कादेवीने कुछ दान दिया था । 3 चन्द्रवाट अन्वयका पहला लेख ( क्र० १३८ ) सन् १०५३ १. पहले संग्रह में उल्लिखित देवगणका कोई लेख इस संग्रहमें नहीं । पहले संग्रहमें मूलसंघके प्राचीन उल्लेख ( क्र० ६०, ९४ ) पाँचवीं सदी हैं । तथा उनमे गण आदिका उल्लेख नही है । २. पहले संग्रह में सेनगणका प्राचीनतम उल्लेख है सन् ९०३ का है ( क्र० १३७ ) । इसे देखकर डॉ० चौधरीने कल्पना की थी कि आदिपुराणकर्ता जिनसेन ही सेनगणके प्रवर्तक होगे ( तीसरा भाग प्रस्तावना पृ० ४४ ) किन्तु प्रस्तुत लेखमें जिनसेनके गुरु वीरसेन के समय में ही सेन संघकी परम्पराका अस्तित्व प्रमाणित होता है । वारसेनने धवलाटीकाकी रचना सन् ८१६ में पूर्ण की थी। - ३. पहले संग्रह में पोगरिगच्छके चार उल्लेख सन् १०४५ से १२७१ तक के आय हैं । (क्र० १८६, २१७, १८६, ५११ ) Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैन शिलालेख संग्रह का है तथा इसमें अजित सेन- कनकसेन- नरेन्द्रसेन - नयसेन इस परम्पराका वर्णन है । लेखके समय सिन्द कुलके सरदार कंचरसने नयसेनको कुछ दान दिया था । नयसेनके शिष्य नरेन्द्रसेन (द्वितीय) का उल्लेख सन् १०८१ के लेख ( क्र० १६५ ) में मिलता है । दोण नामक अधिकारी-द्वारा इन्हें कुछ दान दिया गया था । इन लेखोंमें नरेन्द्रसेन तथा नयसेनकी व्याकरणशास्त्रमे निपुणता के लिए प्रशंसा की गयी है । एक लेख ( क्र० १४७ ) मे चन्द्रिकवाट वंशके शान्तिनन्दि भट्टारकका सन् १०६६ मे उल्लेख है । इसमे मूलसंघका उल्लेख है किन्तु सनगणका उल्लेख नही है । सेनगणके तीसरे उपभेद पुस्तकगच्छका वर्णन १४वीं सदीक एक लेख ( क्र० ४१५ ) मे हैं । इसमें ग्यारह आचार्योकी परम्परा बतलायी है । इस परम्परा के प्रभाकरसेनके शिष्य लक्ष्मीसेनके समाधिमरणका प्रस्तुत लेखमें वर्णन है । लक्ष्मीसेनके शिष्य मानसेनका समाधिमरण सन् १४०५ हुआ था (ले० ४२१ ) | प्रस्तुत संग्रहके पाँच लेखो मे सेनगणका उल्लेख किसी उपभेदके बिना हुआ है ( क्र० ४९२, ४९३, ५०४, ५०७, ६२६ ) । पहले दो लेखामे सन् १५९७ मे सोमसेन भट्टारक द्वारा एक मन्दिरके जीर्णोद्धारका वर्णन है । अगले दो लेखों ( ५०४, ५०७ ) मे समन्तभद्र आचार्यका सन् १६२२ एवं १६३२ मे उल्लेख है । सन् १६२२ मे उन्होंने एक मन्दिरका जीर्णोद्धार किया था तथा सन् १६३२ मे दोवालीका त्योहार मनानेके ढंगमे कुछ सुधार किया था । अन्तिम लेख अनिश्चित समयका है तथा इसमें प्रसिद्ध वादी भावसेन त्रैविद्यचक्रवर्तीके समाधिमरणका उल्लेख है । १. पहले संग्रह में चन्द्रकबाट अन्वयका कोई वर्णन नहीं है । २. भावसेन कृत संस्कृत ग्रन्थ विश्वतश्वप्रकाश जीवराज ग्रन्थमाला ( शोलापुर ) द्वारा प्रकाशित हो रहा है। इसकी प्रस्तावना में हमने भावसेनका समय १३वीं सदीका उत्तराधे निश्चित किया है । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना इस तरह प्रस्तुत संग्रहके १३ लेखोंसे सेनगणका अस्तित्व आठवीं सदोसे सत्रहवीं सदी तक प्रमाणित होता है। (आ २ ) देशीगण-प्रस्तुत संग्रहमे देशोगणके पुस्तकगच्छ, आर्यसंघग्रहकुल, चन्द्रकराचार्याम्नाय, तथा मैणदान्वय इन चार परम्पराओंका उल्लेख हुआ है। पुस्तकगच्छका एक उपभेद पनसोगे ( अथवा हनसोगे) बलि था। इसका पहला उल्लेख (क्र. ७४) दसवों सदीके प्रारम्भका है तथा इसमें श्रीधरदेवके शिष्य नेमिचन्द्रके समाधिमरणका उल्लेख है। इस बलिका दूसरा लेख ( क्र० २७२ ) सन् १९८० के आसपासका है तथा इसमें नयकोतिके शिष्य अध्यात्मी बालचन्द्र-द्वारा एक मूर्तिको स्थापनाका वर्णन है। इस गाखाके चार लेख और हैं (क्र० २९२, ३३५, ४१६ तथा ५३८ ) जो बारहवोंसे चौदहवी सदी तकके है। इनमें ललितकीर्ति, देवचन्द्र तथा नयकीर्ति आचार्योका उल्लेख है । अन्तिम लेखमे 'धनशोकवलो' इस प्रकार इस शाखाके नामका संस्कृतीकरण किया गया है। पुस्तकगच्छका दूसरा उपभेद इंगुलेश्वर बलि था। इसका उल्लेख सात लेखोमे (क्र० २९०, ३१०, ३६९, ३७८, ३८२, ६०६, ६४२ ) मिला है। ये सब लेख १२वीं - १३वीं सदीके है। तथा इनमें हरिचन्द्र, श्रुतकीर्ति, भानुकीर्ति, माघनन्दि, नेमिदेव, चन्द्रकीर्ति तथा जयकोति १. सेनगणकी पुष्करगच्छ नामक शाखा कारंजा (विदर्भ ) में १५वीं सदीसे २०वीं सदी तक विद्यमान थी। इसका विस्तृत वृत्तान्त हमारे ग्रन्थ 'महारक सम्प्रदाय' में दिया है। पुष्करगच्छ सम्मवतः पोगिरि गच्छका ही संस्कृत रूप है। २. यही इस संग्रहमें देशीगणका पहला उल्लेख है। पहले मंग्रहमें देशीगणके उल्लेख सन् ८६० (क्र. १२७ ) से मिले हैं तथा पनसोगे शाखाके उल्लेख सन् १०८० (क्र. २२३ ) से प्राप्त हुए हैं । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह इन आचार्यों के उल्लेख मिलते हैं । प्रस्तुत संग्रहमे पुस्तकगच्छके उल्लेख बिना किसी उपभेदके भी कई लेखोंमें मिलते हैं । इनमे पहला लेख ( क्र० १६४ ) सन् १०८१ का है तथा इसमें सकलचन्द्र भट्टारकका उल्लेख है । इस प्रकारके अन्य लेख १७ हैं ( क्र० १७१, १७७–८, १९०, २०३, २३४, २५१, ३१८-९, ३६१-६, ४९०, ५६१ ) । ये लेख १६वीं सदी तकके है । इनसे कोई विस्तृत गुरुपरम्पराका पता नहीं चलता ! देशीगण के दूसरे उपभेद आर्यसंघग्रहकुलका उल्लेख एक ही लेख ( क्र० ९४ ) मे मिला है । यह लेख दसवीं सदीका है तथा इसमें कुलचन्द्रके शिष्य शुभचन्द्रका उल्लेख है । विशेष यह है कि यह लेख उड़ीसाके खण्डगिरिपर्वतपर मिला है जब कि देशीगण के अन्य उल्लेख मैमूर प्रदेशके हैं । देशी गणका तीसरा उपभेद चन्द्रकराचार्याम्नाय भी एक ही लेखसे ज्ञात होता है ( क्र० २१७ ) तथा यह मध्यप्रदेश मे मिला है । इसमें प्रतिष्ठाचार्य सुभद्र द्वारा १२वीं सदी के पूर्वार्धमे एक मन्दिरकी प्रतिष्ठाका उल्लेख है । देशी गणके चौथे उपभेद मैणदान्वयके शुभचन्द्र आचार्यका एक उल्लेख १३वी सदीमे मिला है ( क्र० ३७२ ) । १. पहजे संग्रह में इंगुलेश्वर बलिके उल्लेख सन् ११८३ ( क्र० ४११ ) से सन् १५४४ ( क्र० ६७३ ) तक के हैं। 1 २. पहले संग्रह में पुस्तक गच्छक उल्लेख सन् ८६० ( क्र० १२७ ) से सन् १८१३ ( क्र० ७ ० ३ ) तक के हैं । ३, ४ पहले संग्रहमें इन दोनों उपभेदोंका कोई उल्लेख नहीं है । ५. पहले संग्रहमें इस अन्वयका उल्लेख नहीं है इससे मिलता जुलता एक उपभेद बाणद बलि है जो पुस्तकगच्छके अन्तर्गत था ( क्र० ४७८ ) इसका उल्लेख सन् १२३२ का है । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना किसी उपभेदके बिना भी देशीगणके कई उल्लेख मिले हैं। इनमें दो लेखोंमे (क्र० ८३, १६९) सन् ९५० तथा १०९६ में गुणचन्द्र और रविचन्द्र आचार्योंका उल्लेख है। इन लेखोमें देशी गणके साथ सिर्फ कोण्डकुन्दान्वय यह विशेषण है। कोई १८ लेखोंमें मूलसंघ - देशीगण इस प्रकार उल्लेख है। इनमें प्राचीनतर लेख ( क्र० १९३, २२९, २५६) बारहवीं सदीके है । कोई ८ लेखोंमें देशीगणके साथ अन्य कोई विशेषण नहीं है। ऐसे लेखोंमे प्राचीनतर लेख (क्र. १२६, १३९, १४० ) सन् १०३२ तथा १०५४ के है और इनमें अष्टोपवासी कनकनन्दि आचार्यको कुछ दान देनेका वर्णन है। (श्रा ३) कोण्डकुन्दान्वय-देशी गणके पुस्तक गच्छको प्रायः कोण्डकुन्दान्वय यह विशेषण दिया गया है। कुछ लेखोंमें किसी संघ या गणके बिना सिर्फ कोण्डकुन्दान्वयका उल्लेख है। ऐसे लेखोंमे प्राचीनतर लेख (क्र० १८०, २२२ ) ग्यारहवी-बारहवीं सदीके हैं। एक प्राचीन लेख (क्र० ५४ ) मे सन् ८०८ मे कोण्डकून्देय अन्वयके सिमलगेगूरु गणके कुमारनन्दि-एलवाचार्य-वर्धमानगुरु इस परम्पराका उल्लेख है। वर्धमानगुरुका राष्ट्रकूट राजा कम्भराजने एक ग्राम दान दिया था। इस लेखमे कोण्डकुन्देय अन्वय यह शब्द प्रयोग है जो स्पष्टत: कोण्डकुन्दे स्थानका सूचक है। (आ४) सूरस्थ गण - प्रस्तुत मंग्रहमे इस गणका पहला उल्लेख सन् ९६२ का है (क्र० ८५ )। इसमे प्रभाचन्द्र - कल्नेलेदेव-रविचन्द्र १. पहले संग्रह में कोण्डकुन्दान्वयका प्रथम उल्लेख सन् ७९७ में ( ऋ० १२२) बिना किसी गणके हुआ है। वहाँ सिमलगंगृरु गणका कोई उल्लेख नहीं है । कोण्डकुन्दान्वय यह विशेषण क्वचित् द्राविड़ संघ, सेनगण आदिके लिए भी प्रयुक्त हुआ है ( तीसरा माग प्रस्तावना पृ० ४५, ५१) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह रविनन्दि-एलाचार्य इस परम्पराका वर्णन है। गंग राजा मारसिंह २ ने एलाचार्यको एक ग्राम अर्पण किया था।' सूरस्थ गणके दो उपभेदोंका पता चला है - कौरूर गच्छ तथा चित्रकटान्वय। कोरूर गच्छका एक ही लेख है ( क्र. ११७ ) तथा इसमें सन् १००७ में अर्हणन्दि पण्डितका वर्णन है। चित्रकूटान्वयके १० लेख हैं। पहले लेखमे (क्र० १५३ ) सन् १०७१ में इस अन्वयके श्रीनन्दि पण्डितकी एक शिष्याको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है । श्रोनन्दिकी गुरुपरम्परा इस प्रकार थी- चन्द्रनन्दि-दामनन्दि-सकलचन्द्रकनकनन्दि-श्रीनन्दि । श्रीनन्दि तथा उनके गुरुबन्धु भास्करनन्दिके समाधिलेख सन् १०७७-७८ के है (क्र० १६०)। इस अन्वयका तीसरा लेख (क्र. १५८ ) सन् १०७४ का है तथा इसमे अरुहणन्दिके शिष्य आर्य पण्डितको कुछ दान मिलनेका वर्णन है। अगले दो लेखोंसे (क्र० २३७-३८ ) इस अन्वयकी एक परम्पराका पता चलता है जो इस प्रकार थी - वासुपज्य-हरिणन्दि-नागचन्द्र। हरिणन्दि तथा नागचन्द्रको सन् ११४८ मे कुछ दान मिला था। इस अन्वयके अन्य लेख अनिश्चित समयके है । इस प्रकार काई १४ लेखोंसे सूरस्थ गणका अस्तित्व दसवीं सदीसे बारहवी सदी तक प्रमाणित होता है।' (श्रा ५ ) बलगार-( बलात्कार )-गण - इस गणका पहला उल्लेख १. सूरस्थ गणका प्राचीन लेख पहले सग्रहमें सन् १०५४ का है (क्र. १८५)। २. पहले संग्रहमें इन दोनों उपभेदोंका वर्णन नहीं है। वहाँ चित्र कूटान्वयका सम्बन्ध बलगार गणसं मी पाया गया है (ऋ० २०८ ) ३. कुछ लेखोंमें सेनगण पार सूरस्थगणको ( जिसे कहीं-कहीं शूरस्थ भी कहा है ) अभिन्न माना है। इसका विवरण हमने 'महारक सम्प्रदाय' के सेनगण विषयक प्रकरण में दिया है। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ प्रस्तावना सन् १०७१ का है ( क्र० १५४ ) । इसमें मूलसंघ - नन्दिसंघका बलगार गण ऐसा इसका नाम है तथा इसके ८ आचार्योंकी परम्परा दी है जो इस प्रकार है - वर्धमान महावादी विद्यानन्द - उनके गुरुबन्धु ताकिकार्क माणिक्यनन्दि-गुणकीर्ति-विमलचन्द्र-गुणचन्द्र – गण्डविमुक्त- उनके गुरुबन्धु अभय - नन्दि । अगले लेख ( क्र० १५५ ) में इसी परम्पराके तीन और आचार्योंके नाम है-अभयनन्दि-सकलचन्द्र - गण्डविमुक्त २ - त्रिभुवनचन्द्र । इन लेखोंमे गुणकीति तथा त्रिभुवनचन्द्रको मिले हुए दानोंका विवरण है । लेख १५७ मे सन् १०७४ मे पुनः त्रिभुवनचन्द्रका उल्लेख है । इस गणके अगले महत्त्वपूर्ण लेख ( क्र० ३४२, ३७६ ) तेरहवीं सदीके हैं । इनमें शास्त्र सारसमुच्चय आदि ग्रन्थोंके कर्ता माघनन्दि आचार्यका वर्णन है । इनकी गुरुपरम्परामे १९ आचार्योंके नाम दिये है किन्तु उनका क्रम व्यवस्थित प्रतीत नहीं होता । चौदहवीं सदी से बलात्कारगण के साथ सरस्वतो गच्छका उल्लेख मिलता है । इसकी एक परम्पराके आचार्य अमरकीर्ति थे । इनके शिष्य माघनन्दिने सन् १३५५मे एक मूर्ति स्थापित की थी ( क्र० ३९३ ) इसी परम्पराके तीन लेख और है । इनमे वर्धमान, धर्मभूषण तथा वर्धमान २ इन भट्टारकों का उल्लेख है । ये लेख सन् १३९५ तथा १४२४ के है ( क्र० ४०३, १. इस लेवसे बलगार गणकी परम्पराका अस्तित्व सन् ९०० तक ज्ञात होता है। अतः डॉ० चौधरीकी यह कल्पना ग़लत प्रतीत होती है कि यह बलहारि गणका ही रूपान्तर है । बलहारि गणका उल्लेख पहले संग्रह में सन् ६५० के लगभग मिला है (तीसरा भाग प्रस्तावना पृ० २६, ३० ) । २. इस परम्परा में माणिक्यनन्दिका नाम उल्लेखनीय है । हमारा अनुमान है कि परीक्षामुखके कर्ता माणिक्यनन्दि इनसे अभिन होंगे ! Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ जैनशिलालेख-संग्रह ४०४, ४३४)। बलात्कारगण-सरस्वतीगच्छकी उत्तर भारतीय शाखाओंके तीन लेख इस संग्रहमें है (क्र० ४४८, ४६०,४६८ )। इनमे सन् १५०० मे रत्नकीर्तिका तथा सन् १५३१ में धर्मचन्द्रका उल्लेख है। (आ६) क्राणूर गण - इस गणके उल्लेखोंमे पहला दसवीं सदीका है (क्र० ९६ )। इसमें एक विस्तृत गुरुपरम्पराका वर्णन है किन्तु लेखके बीच-बीचमें घिस जानेसे इस परम्पराका ठोक ज्ञान नहीं होता। इस लेखमे मुनिचन्द्र आचार्यके एक शिष्यको कुछ दान मिलनेका उल्लेख है।। क्राणूर गणके तीन उपभेदोंके उल्लेख मिले है - तिन्त्रिणी गच्छ, मेषपाषाण गच्छ तथा पुस्तकगच्छ । तिन्त्रिणी गच्छके ६ लेख हैं ( क्र० २१२, २९१, ३२३, ४७६, ५६५, ६१९)। पहले दो लेख बाहारवीं सदीके है तथा इनमें मेघचन्द्र तथा पर्वतमुनि इन आचार्योका वर्णन है। तीसरा लेख सन् १२०७ का है तथा इसमें अनन्तकोति भट्टारकको कुछ दान मिलनेका वर्णन है। अनन्तकीतिके पूर्ववर्ती छह आचार्योके नाम भी इस १. इस परम्पराका वर्णन पहले संग्रहके क्र. ५७२ तथा ५८५ में २. पहले संग्रहमें ऐसे दो लेख हैं (क्र. ६१७, ७०२)। क्र. ६१७ में इस मदसारद गच्छ पढ़ा गया है, यह 'श्रीमदशारद गच्छ'अर्थात् सरस्वनीगच्छका ही रूपान्तर है। उत्तर भारतमें बलात्कारगणकी दस शाखा १४वीं सदीसे २०वीं सदी तक विद्यमान थीं। इनका विस्तृत वृत्तान्त हमने 'भट्टारक सम्प्रदाय' में दिया है। ३. पहले संग्रह में क्राणूरगणका प्राचीनतम लेख सन् १०७४ का (क्र. २०७ ) है। ४. पहले संग्रहमें तिन्त्रिणीगच्छका पहला लेख सन् १०७५ का ( क्र. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना लेखमें दिये हैं। इस गच्छके चौथे लेख (क्र. ४७६ ) मे सन १५५६ मे देवकीर्ति-मुनिचन्द्र-देवचन्द्र यह परम्परा दी है। लेखके समय देवचन्द्रको कुछ दान मिला था। मेषपाषाणगच्छके दो लेख हैं (क्र० २१४, ६०३)। पहले लेखमे सन् ११३० मे प्रभाचन्द्र के शिष्य कुलचन्द्र आचार्यका वर्णन है। दूसरा लेख इस गच्छकी एक बसदिके बारेमें है।' पुस्तक गच्छका एक लेख (क्र० २४० ) सन् ११५० का है किन्तु यह बीच-बीचमे घिसा हुआ है अतः इसका तात्पर्य स्पष्ट नहीं है।' बारहवीं-तेरहवीं सदीके चार लेखोंमें ( क्र० २०२, ३१२, ३२६, ३७३ ) क्राणूरगणके कनकचन्द्र, माधवचन्द्र तथा सकलचन्द्र आचार्योंका वर्णन है । इनका गच्छ नाम अज्ञात है। ___ इस तरह कोई १५ लेखोंसे क्राणूरगणका अस्तित्व दसवीं सदीसे सोलहवी सदी तक प्रमाणित होता है । (श्रा ७) निगमान्वय-मूलसंघ-निगमान्वयका एक लेख (क्र. ३६०) सन् १३१० का है। इसमे कृष्णदेव-द्वारा एक मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है। उपर्यक्त विवरणसे मलसंघके भेद-प्रभेदोंका अच्छा परिचय मिलता है। कोई १५ लेखोंमें किसी भेदका उल्लेख किये बिना मूलसंघका उल्लेख मिलता है। इनमें प्राचीनतर लेख (क्र० ११२, १४५, २०४) दसवीं१. पहले संग्रहमें मेषपाषाणगच्छका पहला उल्लेख सन् १०७९ का है (क्र० २१९) २. पहले संग्रहमें इस गच्छका कोई उल्लेख नहीं है ( देशीगण तथा सेनगणमें मी पुस्तकगच्छ थे उनका वर्णन पहले आ चुका है।) ३. पहले संग्रहमें इस अन्वयका कोई लेख नहीं है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनशिलालेख-संग्रह ग्यारहवीं सदीके हैं। इस तरह प्रस्तुत संग्रहीं कुल मिलाकर मूलसंघके कोई १५० लेख आये है। (इ) गौड संघ-इस संघका एक लेख (क्र० ८४) मिला है। इसमे सोमदेवसूरि-द्वारा एक जिनालयके निर्माणका उल्लेख है।' (ई) द्राविड संघ-इस संघके नन्दिगण-अरुंगल अन्वयका एक लेख ग्यारहवीं सदीका है (क्र० १७५) इसमें शान्तिमुनि-वादिराज-वर्धमान यह परम्परा दी है। वर्धमानके समाधिमरणका स्मारक उनके गुरुबन्धु कमलदेवने स्थापित किया था। इस अन्वयका अगला लेख सन् ११९२ का है (क्र० २८२) तथा इसमे वासुपूज्यके शिष्य वज्रनन्दिका वर्णन है। इनकी गुरुपरम्परा काफ़ी विस्तारसे दी है किन्तु उसमें आचार्योका क्रम स्पष्ट नहीं है। चौदहवी सदोके एक लेखसे ( क्र. ३४४ ) इस अन्वयके श्रीपाल-पद्मप्रभ-धर्मसेन इस परम्पराका पता चलता है। द्राविड संघके तीन लेखोमें ( क्र० २५२, ३५७, ४०९) अरुंगल अन्वयका उल्लेख नहीं है । ये लेख सन् ११५९, १२९५ तथा १४वी सदीके है । अन्तिम दो लेखोमे क्रमश: गुणसेन तया लोकाचार्यका नाम ज्ञात होता है। इस तरह प्रस्तुत संग्रहके कोई आठ लेखोसे इसका अस्तित्व ११वीं सदीसे १४वीं सदी तक प्रमाणित होता है। १. गोडसंघका पहले संग्रहमें या अन्यत्र साहित्यमें कोई वर्णन नहीं है। सोमदेवसूरिक लिखित यशस्तिलकचम्पू तथा नीतिवाक्यामृत ये ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। २. पहले संग्रह में द्राविड संघके उल्लेख सन् ९९० ( क्र. १६६ ) से मिले हैं। इसे कहीं-कहीं मूलसंघ-द्रविडान्वय और द्रविड संघकोण्डकुन्दान्वय कहा है (तीसरा माग प्रस्तावना पृ० ३५-४३) Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ( उ ) माथुर संघ - इसका उल्लेख सन् १९७० के एक लेखमें ( क्र० २६५ ) है । इस संघ के महामुनि गुणभद्र द्वारा इस लेखको रचना की गयी थी । लेखमे लोलक श्रेष्ठीद्वारा पार्श्वनाथमन्दिरके निर्माणका वर्णन है । १५ (ऊ) पंचस्तूप निकाय - प्रस्तुत संग्रहके एक लेख ( क्र० १९ ) में काशी के पंचस्तूप निकायके आचार्य गुहनन्दिका वर्णन है । इनके शिष्योंके लिए वटगोहाली ग्राममे एक विहार था जिसे ब्राह्मण नाथशर्माने सन् ४७९ में कुछ दान दिया था । २ (ऋ) जम्बूखण्डगण -- इसका उल्लेख छठी-सातवीं सदीके एक लेखमे ( क्र० २२ ) हुआ है । इसके आचार्य आर्यणन्दिको सेन्द्रक राजा इन्द्रणन्दने कुछ दान दिया था । ( ऋ) सिहवूर गण - इसका एक लेख ( क्र० ५६ ) मिला है। इसमे सन् ८६० मे सम्राट् अमोघवर्ष द्वारा इस गणके नागनन्दि आचार्यको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है । (ल) जैन संघ के विषय में साधारण विचार - अब तक जैन मुनियो के विभिन्न संघोका जो परिचय दिया गया है उससे स्पष्ट है कि इनमें व्यवहार १. माथुर संघ बाद में काष्ठासंघका एक गच्छ बन गया था । इसका विस्तृत वृत्तान्त हमने 'महारक सम्प्रदाय' में दिया है । २. धवलाटीका के कर्ता वीरसेन आचार्य पंचस्तूप अन्वय के ही थे (धवलाप्रशस्ति ) । किन्तु उनके प्रशिष्य गुणभद्र उन्हें सेनान्वयका कहते हैं। हो सकता है कि पंचस्तूपान्वयको ही बादमें सेनान्वय नाम प्राप्त हुआ हो । किन्तु सेनान्वय सन् ७८० के लगभग अस्तित्वमें आ चुका था यह पहले स्पष्ट कर चुके हैं। I ३. जम्बूखण्ड गण तथा सिंहवूर गणका वर्णन पहले संग्रहमें नहीं है । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह की दृष्टिसे कोई खास भेद नहीं था । इन सभी संघोंके मुनि मठ-मन्दिर बनवाते थे, उनके लिए खेत, घर, बगीचे, गाँव आदिका दान ग्रहण करते थे, राजसभाओं में वादविवाद करते थे, प्रसंगानुकूल राजकार्यमे मदद देते थे तथा मन्त्रसाधना, ज्योतिष और वैद्यकका आश्रय लेकर जैन संघका प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करते थे । ये सब प्रवृत्तियाँ जैन साधु के मूलभूत उद्देश - वीतराग भावकी साधनाके कहाँतक अनुकूल है यह प्रश्न विचारहै । इन्हे रोकने का ऐसा कोई व्यवस्थित प्रयत्न दिगम्बर सम्प्रदाय में हुआ हो ऐसा प्रमाण नहीं मिला है । १ १६ यह तो नही कहा जा सकता कि दिगम्बर साधुसंघ के सभी मुनि इस प्रकारकी प्रवृत्तिप्रधान गतिविधियोमे ही मग्न रहते थे - साधुसंघका एक वर्ग अवश्य ही प्राचीन शास्त्रोक्तमार्गका निःस्पृह भावसे अनुसरण करता रहा होगा । किन्तु लौकिक कार्योंमे दूर रहनेके कारण इन वीतराग साधुओंका शिलालेखो आदिमे वर्णन मिलना कठिन है । ३. राजवंशोंका आश्रय (अ) उत्तर भारत के राजवंश - प्रस्तुत संग्रहमे जैन संघका सम्मान करनेवाले जिन राजवंशोका उल्लेख है उनमे कलिंगके राजा खारवेलका वंश प्रथम व प्रमुख है । सन्पूर्व पहली सदीमे इस वंशके तीन राजपुरुषोंद्वारा जैन साधुओके लिए खण्डगिरि पर्वतपर कई गुहाएँ बनवायी गयी । खारवेलको पटरानी, महाराज कुदेपश्री तथा कुमार वडुख ये वे तीन राजपुरुष है ( ले० ३-५ ) । यहींके एक लेख ( क्र० ९) मे नगरके न्यायाधीश १. श्वेताम्बर सम्प्रदाय में इन प्रवृत्तियोंको रोकनेके कुछ प्रयत्न होते रहे हैं । इस विषय में पं० नाथूरामजी प्रेमीका लेख 'चैत्यवासी और वनवासी' ( जैन साहित्य और इतिहास -द्वितीय संस्करण ) देखने योग्य है। 1 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना १७ सुभूति-द्वारा निर्मित गुहाका भी उल्लेख है।' पाटलिपुत्रके गुप्त राजाओंके समयका एक लेख (क्र० १९) प्रस्तुत संग्रहमें है। यह सन् ४७९ का है तथा इसमें एक ब्राह्मण-द्वारा वटगोहालीके जैन विहारको कुछ दान मिलनेका वर्णन है। हस्तिकुण्डी ( राजस्थान ) के राष्ट्रकूट वंशके राजा विदग्धराजका उल्लेख सन् ९४० के एक लेख (क्र० ८१) में मिला है। आचार्य वासुदेवके उपदेशसे इस राजाने ऋषभदेवका एक मन्दिर बनवाया था। इस मन्दिरके लिए राजाने अपनी सुवर्णतुला कराकर दान दिया था तथा नगरके व्यापारियोंसे कुछ करोकी आय भी अर्पित की थी। यह कार्य सन् ९१७ में हआ था। विदग्धराजके पुत्र मम्मटने सन् ९४० मे उक्त दानको पुनः सम्मति दी। मम्मटके पुत्र धवलको वीरताका विस्तारसे वर्णन इस लेखमें मिलता है। धवलके पुत्र बालप्रसादके समय सन् ९९७ में उक्त मन्दिरका जीर्णोद्धार हुआ था। उडीसाके राजा उद्योतकेसरीके समय - दसवीं सदीके दो लेख (क्र० ९३-९४) इस संग्रहमे हैं। इनमे खण्डगिरिके पुरातन मन्दिरोंके जीर्णोद्धारका वर्णन है। १. पहले संग्रहमें खारवेलके जीवन के विषय में एक विस्तृत लेख (क्र०२) आ चुका है। उसके पहले मौर्य सम्राट अशोकके लेखमें (ऋ० १) निर्ग्रन्थों ( जैनों) की देखभालका भी उल्लेख हुआ है। २. पहले संग्रहमें गुप्तकालके तीन लेख ( ऋ० ९१-९३ ) आये हैं। उसके पहले शक और कुषाण राजाओंके कई लेख मी हैं। ३. पहले संग्रहमें इस राजवंशका उल्लेख नहीं है। वहाँ इसके पहले गुर्जर प्रतिहार राजा भोजका एक लेख (क्र. १२८) है। इसी समयके कच्छपघात तथा चन्देल वंशोंके भी कुछ लेख पहले संग्रहमें आये हैं (क्र० १५३, २२८ भादि)। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ जैनशिलालेख-संग्रह ___ मालवाके परमार वंशके राजा भोजके समयका - ग्यारहवीं सदी (पूर्वाध) का एक लेख (क्र० १३५) मिला है। इसमे सामन्त यशोवर्माद्वारा कल्कलेश्वर तीर्थके मुनिसुव्रतमन्दिरके लिए कुछ दान दिये जानेका वर्णन है। इसी वंशके उदयादित्यके समयका एक मन्दिर ऊनमे है (क्र० १७४) । ___ गुजरातके चौलुक्य राजा भीमदेव (प्रथम) का एक लेख मिला है (क्र० १४६)। इसने सन् १०६६ में वायड अधिष्ठानको वसतिकाके लिए कुछ भूमि दान दी थी। इसी वंशके राजा भीमदेव (द्वितीय) के समय - बारहवीं सदीके अन्तका एक लेख (क्र० २८७) है। इसमें वेरावलके चन्द्रप्रभमन्दिरके जीर्णोद्धारका वर्णन है । अणहिल्लपुरमे राजा-द्वारा नन्दिसंघके आचार्य श्रीकोतिके सम्मानका भी इसमें उल्लेख है। बुन्देलखण्डके कलचुरि वंशका एक लेख मिला है (क्र.० २१७) । इसमे राजा गयाकर्ण तथा उसके सामन्त गोल्हणदेवके समय - बारहवी सदीके पूर्वार्ध मे एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है। राजस्थानके चाहमान वंशके पांच लेख है (क्र० २१८, २३१-३२, २३५. २६५)। पहले चार लेख नडोलके राजा रायपालके समयके सन ११३३ से ११४६ तकके हैं। इनमे पहले लेखमे रानी मीनलदेवी-द्वारा यतियोके लिए दानका तथा बादके लेखोंमे ठाकुर राजदेव-द्वारा मन्दिर १. इस वंशका उल्लेख पहले संग्रहमें नहीं है। परमार वंशकी बाँस वाडा व चन्द्रावती शाखाके लेख वहाँ आये हैं। (क्र० ३०५, ४७१, ४७२)। २. चोलुक्य कुमारपालका एक लेख (क्र० ३३२) पहले संग्रहमें है। ३. इस वंशके कोई लेख पहले संग्रहमें नहीं हैं। ४. पहले संग्रहमें नडोल के चाहमान वंशके दो (ऋ० ३५७-५८) तथा जालोरके चाहमान वंशका एक (क्र. ५०७) लेख है। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना और यतियोंके लिए कुछ दानका वर्णन है। पांचवा लेख शाकम्भरीके चाहमान राजा सोमेश्वरके समयका सन् १९७० का है। इसमे बिजोलियाके पार्श्वनाथ मन्दिरके लिए पृथ्वीराज २ तथा सोमेश्वर-द्वारा दो गांव दान दिये जानेका वर्णन है। इस राजवंशके कोई ३० पीढ़ियोंका वर्णन इस लेख में मिलता है। मुगल साम्राज्यके तोन लेख इस संग्रहमें है (क्र० ४८१, ५०६, ५१२)। पहला लेख अकबरके समयका सन् १५७१ का है। इसमें महेश्वरके आदिनाथ मन्दिरका जीर्णोद्धार मण्डलोई सुजानराय-द्वारा होनेका वर्णन है। शाहजहाँके राज्यका एक लेख (क्र० ५०६) सन् १६२८ का है। इसमे भी एक जिनमन्दिरके जीर्णोद्धारका वर्णन है। तीसरा लेख सन् १६६२ का - औरंगजेबके समयका है। इसमे राजा जयसिंहके मन्त्री मोहनदास-द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है। (आ) दक्षिण भारतके राजवंश (श्रा १) गंग राजवंश-इस वंशके १३ लेख प्रस्तुत संग्रहमे हैं। इनमें पहला (क्र० २०) राजा अविनोतका एक दानपत्र है जो छठी सदीके पर्धिका है। इसमे यावनिक संघके जिनमन्दिरके लिए राजा-द्वारा कुछ भूमिके दानका वर्णन है। दूसरा लेख (क्र० २४) सातवी सदी के अन्तका शिवकुमार पृथ्वोकोगणिवद्धराजके समयका है। इसमे राजा तथा कुछ अन्य सज्जनों-द्वारा एक जिनमन्दिरके लिए भूमिदानका वर्णन है। तीसरे लेखमे (क्र० ४८) आठवीं सदीके अन्तमे राजा श्रीपुरुष तथा नवीं सदीके प्रारम्भमे राजा शिवमारके समय कुछ अधिकारियो-द्वारा एक जिनमन्दिरके १. पहले संग्रहमें इसके बाद गुजरातके वाघेल और ग्वालियरके तोमर वंशके कुछ लेख हैं। २. पहले संग्रहमें मुगल राज्यके कई लेख श्वेताम्बर सम्प्रदायके हैं। एक लेख (क्र० ७०२) दिगम्बर सम्प्रदायका भी है। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख - संग्रह लिए दो गाँवोंके दानका वर्णन है। चौथे लेखमें (क्र० ६३ ) राजा दुग्गमारद्वारा नवीं सदीमे एक मन्दिरको भूमिदान देनेका उल्लेख है । इसके बाद दसवीं सदी के प्रारम्भके एक लेखमे (क्र० ७६) एरेय राजाके समय एक जैन आचार्य के समाधिमरणका वर्णन है । सन् ९५० के एक लेख (क्र० ८३) मे राजा बतुगकी रानी पद्मब्बरसि द्वारा निर्मित जिनमन्दिरके लिए कुछ दानका वर्णन है । सन् ९६२ मे राजा मारसिह २ ने अपनी माता-द्वारा निर्मित मन्दिर के लिए एलाचार्यको एक गाँव दान दिया था ( क्र० ८५) इसी वर्ष मे इस राजाने मुंजार्य नामक जैन ब्राह्मणको भी एक गाँव दान दिया था ( क्र० ८६ ) । सन् ९७१ मे इस राजाके समय शंखजिनालयको कुछ दान मिलनेका वर्णन एक लेखमे (क्र० ८८) में है। दसवी सदीके अन्त के एक लेख (क्र० ९६ ) मे राजा रक्कसगंग तथा नन्नियगंगके समय कुछ दानका वर्णन है । एक लेख ( क्र० १५४ ) मे बूतुग राजा तथा रानी रेवकनिमंडिका उल्लेख है । इनकी स्मृतिमे गंगकन्दर्प नामक जिनमन्दिर अण्णिगेरे नगरमे बनवाया गया था । एक अन्य लेखमे (क्र० २०७ ) पुन: रानी रेवकनिमंडिका उल्लेख हुआ है । इस तरह गंगवंशके राज्यकालमे जैनसंघकी स्थिति सदा ही प्रभावशाली रही थी । २० २ ( आ २ ) कदम्ब वंश इस वंशके स्वतन्त्र राज्यकालका एक लेख ( क्र० २१ ) इस संग्रहमे है जो छठी सदीके राजा रविवर्माके समयका है । इस राजाने एक सिद्धायतन के लिए कुछ भूमि दान दी थी । राष्ट्रकूट तथा चालुक्य साम्राज्य में कदम्बवंशके कई सामन्त प्रादेशिक शासक थे । ऐसे सामन्तोंके कोई १५ लेख मिले है । सन् ८९० के एक १. पहले संग्रहमें गंग वंशके कई लेख हैं, जिनमें सबसे प्राचीन लेख ( क्र० ९० ) पाँचवीं सदीके उत्तरार्धका है । २. पहले संग्रहमें इस वंशके दस लेख हैं जो पाँचवीं व छठी सदी के हैं ( क्र० ९६ - १०५ ) । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना २१ लेखमें कदम्ब महासामन्त अलियमरस द्वारा निर्मित जिनमन्दिरका वर्णन है ( क्र० ६० ) । सन् १०४५ के एक लेखमें कोंकण प्रदेशमे महामण्डलेश्वर चट्टय्यदेवके शासनका उल्लेख है ( क्र० १३१ ) तथा एक मन्दिर - को कुछ दान मिलनेका वर्णन है । सन् १०८१ के दो लेखोंमें कदम्ब राजा गोवलदेव तथा ' कादम्बचक्रवति' वीरमके समय एक बसदिको दान मिलनेका तथा एक महिलाके समाधिमरणका वर्णन है ( क्र० १६३-४ ) । सन् १०९६ मे कदम्ब कुलके सामन्त एरेयंगकी रानी असवब्बरसिने एक मन्दिर बनवाया था ( क्र० १६९ ) । सन् १९२३ और ११३० के दो दानलेखोंमें ( क्र० २०२ व २१४ ) कदम्ब सामन्त तैलपदेव तथा मयूरवर्मा के शासनका उल्लेख है । तैलपदेवके शासनका उल्लेख सन् १९४८ के दो दानले खोंमे भी है (क्र० २३६-२३८ ) । सन् १२०७ के एक दानलेखमें कदम्ब सामन्त ब्रह्मका तथा सन् १२१८ मे जयकेशीका उल्लेख मिला है क्र० ३२३ व ३२५ ) । सन् १५०४ मे कदम्ब लक्ष्मप्परसने चारुकीर्ति पण्डिताचार्यके शिष्यको धर्माधिकार प्रदान किये थे ( क्र० ४५५) | एक अनिश्चित समयके लेख ( क्र० ६१४ ) में त्रिभुवनवीर नामक कदम्ब शासकको रानी के समाधिमरणका उल्लेख है । ( आ ३ ) राष्ट्रकूट वंश - प्रस्तुत संग्रहमे इस वंशके देज्ज महाराजके सामन्त सेन्द्रक इन्द्रणन्दका एक लेख है ( क्र० २२ ) जो छठी सातवीं सदीका है | इन्द्रणन्दने आर्यनन्दि आचार्यको एक ग्राम दान राष्ट्रकूट वंशकी प्रधान शाखाके कोई १३ लेख इस सग्रहमे हैं । दिया था । इनमें पहला १. देज्ज राजाका राष्ट्रकूटों के प्रमुख वंशसे क्या सम्बन्ध था यह स्पष्ट नहीं है । सेन्द्रक वंशके तीन लेख पहले संग्रह में हैं - ( क्र० १०४,१०६,१०९ ) । २. पहले संग्रहमें इस शाखा के दस लेख हैं जिनमें पहला ( क्र० १२४ ) सन् ८०२ का है । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह लेख सन् ८०८ का है (क्र० ५४ )। इसमे सम्राट् गोविन्दराज जगत्तुंगके राज्यकालमै उनके ज्येष्ठ बन्धु रणावलोक कम्भराज-द्वारा वर्धमानगुरुको एक गांवके दानका वर्णन है। दूसरे लेख (क्र. ५५ ) में सन् ८२१ में सम्राट अमोघवर्षका तथा उनके चाचाके पुत्र कर्कराज सुवर्णवर्षका उल्लेख है। कर्कराजने अपराजितगुरुको एक खेत दान दिया था। सन् ८६० में सम्राट् अमोघवर्षने नागनन्दि आचार्यको भूमिदान दिया था ( क्र० ५६ )। सन् ८६४ मे इसी सम्राटके राज्यकालमें एक समाधिलेख लिखा गया था (क्र० ५७ ) । नवीं-दसवीं सदीके एक लेखमें नेमिचन्द्र आचार्यका वर्णन है जिसमे उन्हे राष्ट्रकूट वंशके लिए आनन्ददायी कहा है (क्र. ७२ )। सन् ९०२ के एक मन्दिरलेखमें सम्राट् कृष्ण २ अकालवर्षके शासनका तथा सन् ९२५ के एक मन्दिरलेखमे सम्राट् गोविन्द ४ नित्यवर्षके शासनका उल्लेख है (क्र० ७७, ७८) । कृष्ण २ को रानी चन्दियब्बेने सन् ९३२ मे एक जिनमन्दिर निर्माण कराया था ( ऋ० ७९)। सन् ९५० के एक लेखमे कृष्ण ३ अकालवर्षके शासनका तथा इसके बादके एक लेखमे सम्राट् खोट्रिगका वर्णन है (क्र० ८३,८७ )। इन्द्र ४ नित्यवर्षने एक जिनमूर्तिका पादपीठ बनवाया था (क्र० ८९ ) । सम्राट् इन्द्र ३ के सेनापति श्रीविजयकी प्रशंसामें एक स्तम्भलेख मिला है ( क्र. ९७ )। बारहवी सदीके एक लेख ( क्र० २१७ ) मे कलचुरि राजा गयाकर्णके अधीन राष्ट्रकूट कुलके सामन्त गोल्हणदेवका उल्लेख है। ( आ ४ ) पाण्ड्य वंश - इस वंशके पांच लेख प्रस्तुत संग्रहमे हैं।' इनमे पहला (क्र० २३ ) सातवीं सदोके राजा वरगुण विक्रमादित्यके समयका दानलेख है। आठवीं सदीके एक लेखमे (क्र० ५० ) सुन्दर पाण्ड्य राजा-द्वारा एक जिनमन्दिरकी जमीनोको करमुक्त करनेका वर्णन है । सन् ८७० मे राजा वरगुण २ के समय दो मूर्तियोंका जीर्णोद्धार हुआ १. पहले संग्रहमें इस वंशका कोई लेख नहीं है । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना था ( क्र. ५८)। सित्तन्नवासलके गुहामन्दिरका जीर्णोद्धार नवीं सदीमें राजा अवनिपशेखर श्रीवल्लभके समयमें हुआ था (क्र. ६२)। इस वंशका अन्तिम लेख ( क्र० ३५६ ) सन् १२९० का एक दानलेख है तथा इसमें मारवर्मन् विक्रम पाण्ड्यके राज्यका उल्लेख है । ( आ ५) पल्लववंश-इसका उल्लेख तीन लेखोंमें है। इनमें पहला लेख (क्र. २०) छठी सदोके पूर्वार्धका है। इसमें पल्लव राजा सिंहविष्णकी माता द्वारा निर्मित एक जिनमन्दिरका वर्णन है। दूसरे लेख (क्र० ३९) मे सातवीं-आठवीं सदीके शासक पल्लवादित्य वादिराजुलको अर्हत् भट्टारकका पादानुध्यात कहा है । तीसरा लेख (क्र० ५३७) अनिश्चित समयका है तथा इसमे पेरुंजिंगदेव नामक पल्लव राजाके शासनका उल्लेख है। ( आ ६ ) चालुक्य वंश-बदामीके चालुक्य राजाओंके दो लेख इस संग्रहमें हैं। पहला (क्र० ४६ ) सन् ७०८ का है तथा इसमे राजा विजयादित्यकी रानी कुंकुमदेवी-द्वारा निर्मित जिनमन्दिरका उल्लेख है। दूसरे लेख ( क्र० ४६ ) में राजा कीर्तिवर्मा २के राज्यमे सन् ७५१ में एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है। वेंगोके चालुक्य राजाओंके तीन लेख इस संग्रहमें है। पहला ( क्र० ४४ ) लेख राजा जयसिंहवल्लभ २ के राज्यका-आठवीं सदीके प्रारम्भका है तथा इसमे रट्टगुडि वंशके सामन्त कल्याणवसन्त-द्वारा अहंत् भट्टारकको कुछ दानका वर्णन है । दूसरा लेख (क्र० ४९ ) आठवी सदीके उत्तरार्धमे राजा सर्वलोकाश्रय विष्णुवर्धनके समयका है तथा इसमे सामन्त गोंकय्य-द्वारा एक जिनमन्दिरके लिए दानका वर्णन है। तीसरे (क्र० १००) १. इस वंशका एक लेख पहले संग्रहमें है (क्र० ११५)। २. इस शाखाक ६ लेख पहले संग्रहमें हैं (क्र. १०६-८ तथा १११, ११३,११४)। ३. इस शाखाके तीन लेख पहले संग्रहमें हैं (क्र. १४३-१४४, २१०)। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह में दसवीं सदीके उत्तरार्धमें अम्मराज २-द्वारा विजयवाटकके जिनमन्दिरके लिए एक गाँवके दानका वर्णन है। ___ कल्याणीके चालुक्य राजाओंके लेख संख्यामें सर्वाधिक-५८ हैं । लेखोंकी अधिकताके कारण हम यहाँ उन लेखोंका ही उल्लेख करेंगे जिनमें इस वंशके सम्राटोंका जैन धर्मकार्योंसे साक्षात सम्बन्ध आया था -जिनमें सिर्फ उनके राज्यकालका उल्लेख है उनका निर्देश सूचीमें होगा ही। इस वंशके लेखोंमे पहला ( क्र. ११७ ) सन् १००७ का है तथा इसमें सामन्त नागदेवकी पत्नी-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका वर्णन है । यह लेख सम्राट् सत्याश्रय आहवमल्लके समयका है । सन् १०२७ के एक लेख में (क्र० १२४ ) सम्राट् जयसिह २ की कन्या सोमलदेवी-द्वारा एक मन्दिरको कुछ दान मिला था ऐसा वर्णन है । सन् १०३२ के एक लेखमे सम्राट जगदेकमल्ल-द्वारा एक मन्दिरको दान मिलनेका वर्णन है ( क्र. १२६ )। इस मन्दिरका नाम ही जगदेकमल्ल जिनालय था। जगदेकमल्लको बहन अक्कादेवीने सन् १०४७ मे गोणदबेडंगि जिनालयको कुछ दान दिया था ( क्र. १३४) । सन् १०५५ के एक लेखमें आचार्य इन्द्रकोतिको त्रैलोक्यमल्लकी सभाका आभूषण कहा है। (क्र० १४१ )। इस वंशका अन्तिम लेख (क्र० २७४ ) सन् १९८५ का है तथा इसमे सोमेश्वर ४ के राज्यकालमे एक मन्दिरको कुछ दानका वर्णन है।' ( आ ७) चोल वंश-इस वंशका उल्लेख कोई २५ लेखोमें है। इनमे पहला ( क्र० ८२ ) सन् ९४५ का है तथा इसमे राजा परान्तक १ के समय एक कूपके निर्माणका वर्णन है। सन् ९९९ के एक लेखमे १. पहले संग्रहमें इस वंशके कई लेख हैं जिनमें पहला ( क्र. १६६ ) सन् ९६० के आसपासका है। २. पहले संग्रहमें इस वंशके तीन लेख (क्र. १६७, १७१, १७४) हैं। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ( क्र० ९२ ) राजराज १ के समय कुछ जैन आचार्योंका उल्लेख है । दसवीं सदी के उत्तरार्धके एक दानलेख में ( क्र० ९८ ) गण्डरादित्य मुम्मुडि चोल राजाका उल्लेख है । सन् १००९ के एक लेखमें ( क्र० ११९) राजराज १ को आज्ञाका वर्णन है जो ब्राह्मणों तथा जैनोंको नियमित रूपसे कर देनेके लिए दी गयी थी। दो दानलेखोंमें ( क्र० १२१,१२९ ) ग्यारहवीं सदी - पूर्वार्धमें राजेन्द्र १ चोलके शासनका उल्लेख हैं । सन् १०६८ के दो दानलेख राजेन्द्र २ के शासन कालके है ( क्र० १५०-५१ ) । कुलोत्तुंग १ के शासन के पाँच लेख है ( क्र० १६७, १७३, १९४,१९५,१९८) । जो सन् १०८६ से १९१८ तकके दानलेख है । विक्रमचोलके शासनके दो दानलेख सन् ११३१ तथा ११३४ के हैं ( क्र० २१५, २१९ ) कुलोत्तुंग २ के राज्यकालके तीन लेख हैं जिनमे एक सन् ११३७ का है ( क्र० २२३, २२४,२२६ ) । राजराज २ के शासनके तीन लेख सन् १९५६-५७ के हैं । ( क्र० २४८- २५० ) । कुलोत्तुंग ३ के समयके दो लेख है ( क्र० ३२४, ३८० ) इनमे पहला सन् १२१६ का तथा दूसरा अनिश्चित समयका है । इस दूसरे लेखके अनुसार कुलोत्तुंग राजाने नल्लूर नामक गाव एक देवमन्दिरको अर्पण किया था । प्रस्तावना इस तरह हम देखते है कि चोल राजाओंके प्रायः सब लेख राजपुरुषोंसे साक्षात् सम्बन्ध नही रखते । युद्धके दिनोंमे चोल सेना द्वारा जिनमन्दिरोंका विध्वंस होने का वर्णन सन् १०७१-७२ के एक लेखमे ( क्र० १५४ ) हुआ है । ( ८ ) होयसल वंश - इस वंशके कोई ३० लेख प्रस्तुत संग्रह में हैं । इनमे सबसे पहला लेख ( क्र० १४५ ) सन् १०६२ का है तथा १. पहले संग्रहमें इस वंशके कई लेख हैं जिनमें पहला ( क्र० २००६ ) सन् १०६२ का ही है 1 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जैनशिलालेख-संग्रह इसमें राजा विनयादित्य-द्वारा अभयचन्द्र पण्डितको दान दिये जानेका वर्णन है। सन् १०६९ के एक लेखमें विनयादित्य-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका वर्णन है । ग्रामीण लोग गरीबीके कारण यह कार्य नहीं कर सके थे अतः राजाने सहायता देकर यह मन्दिर बनवाया था ( क्र० १५२) ग्यारहवीं सदी-अन्तिम चरणके एक लेखमें (क्र. १७५ ) वर्धमान आचार्यको होयसल राज्यके कार्यकर्ता यह विशेषण दिया है । राजा बल्लाल १ के सेनापति मरियानेने बारहवीं सदीके प्रारम्भमें एक मूर्ति स्थापित की पो ( क्र० १८३ )। बारहवी सदी - प्रथम चरणके दो लेखोमे राजा विष्णुवर्धनकी रानी चन्तलदेवी तथा उसके बन्धु दुङ्मल्ल-द्वारा जिनमन्दिरोंको दान देनेका वर्णन है (क्र. १८८-८९ ) । इस समयके चार लेखोंमें (क्र० २००, २०१, २१२, २१३ ) विष्णुवर्धनके चार सेनापतियोंगंगराज, उसका पुत्र बोप्प, पुणिसमथ्य तथा मरियानेके धर्मकार्यो का - मन्दिर निर्माण, दान आदिका वर्णन है। राजा नरसिंह १ ने सन् ११५९मे एक मन्दिरको कुछ दान दिया था (क्र० २५२ ) तथा उसके सेनापति भरतिमय्य एवं माचियणने सन् ११४५ तथा ११५३ मे इसी प्रकारके दान दिये थे (क्र. २३३, २४६ ) । सन् १९७६ तथा ११९२ के लेखोंमे (क्र० २७१, २८२ ) राजा वीरबल्लाल २ द्वारा जिनमन्दिरोंको दान देने. का वर्णन है तथा सन् ११७३ एवं ११९० के लेखोंमें इसी राजाके अधीन अधिकारियों द्वारा ऐसे ही दानोंका उल्लेख है (क्र० २६८, २८१ )। इसी राजाके समयके तीन दानलेख और है (क्र० २८५, २८६, ३२३ ) जो सन् ११९९ से १२०७ तक के है तथा दो समाधिलेख है ( क्र० ३२०३२२)। राजा नसिह ३ ने सन् १२६५मे एक जिनमन्दिरको दान दिया था (क्र० ३४२ ) तथा उसके अधीन अधिकारियोंने सन् १२५७, १२७१ तथा १२८५ मे ऐसे ही धर्मकार्य किये थे ( क्र० ३३५, ३४५, ३५१)। एक लेखमे राजा रामनाथ-द्वारा पार्श्वनाथ मन्दिरको दान देनेका वर्णन है (क्र. ३६० ) तथा एक अन्य लेखमे राजा वीरबल्लाल ३ के समय सन् Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना १३१९में कुछ स्थानीय अधिकारियों द्वारा ऐसे ही दानका उल्लेख मिलता है (क्र० ३९१)। (भा ९) कलचुर्य वंश-प्रस्तुत संग्रहमें इस वंशका उल्लेख सात लेखोंमे है। इनमें पहला लेख सन् ११५९ का है तथा इसमें किसी सेनापति-द्वारा एक जैन आचार्यको दान मिलनेका वर्णन है (क्र. २५१)। यह लेख राजा बिज्जलके समयका है। इस राजाका उल्लेख चार अन्य लेखोंमें है (क्र० २५६, २६०-२६२ )। ये लेख सन् ११६१ से ११६८ तक के हैं तथा इनमे स्थानीय अधिकारियों द्वारा जैन आचार्योंको मिले हुए दानोंका वर्णन है। इस वंशके अन्तिम दो लेख राजा सोविदेवके राज्यके सन् ११७३ तथा ११७५ के है (क्र० २६७, २७०) तथा इनमे भी स्थानीय व्यक्तियोंके दानोंका उल्लेख है। (आ १० ) यादव वंश-देवगिरिके यादवोंका उल्लेख प्रस्तुत संग्रहके १५ लेखोंमें है। इनमे पहला लेख (क्र० ३२६ ) राजा सिंहणके समय सन् १२३० मे लिखा गया था तथा एक मन्दिरके लिए कुछ दानका इसमें वर्णन है। इस राजाके समयके तीन अन्य लेखोमे (क्र० ३२८, ३२९, ३३० ) तीन महाप्रधानों - प्रभाकरदेव, मल्ल तथा बीचिराज-द्वारा जिनमन्दिरोंके लिए दानोका वर्णन है। ये लेख सन् १२४५ तथा १२४७ के है। राजा कन्हरदेवके राज्यके चार लेख हैं (क्र० ३३४, ३३६, ३३७, ३३९)। ये लेख सन् १२५७ से १२६२ तकके है इनमे तीन दानलेख है तथा एक समाधिलेख है । राजा महादेवके समयके तीन लेख है (क्र० ३४०, ३४१, ३४४ ), ये सन् १२६५ तथा १२६९ के है तथा तीनों समाधिमरणके स्मारक है। राजा रामचन्द्रके समयके चार लेख है ( क्र० ३५२, ३५४, ३५५, ३५९), ये सन् १. पहले संग्रहमें इस वंशके तीन लेख हैं (क्र० १०८, ४३५, ४३६ )। २. पहले संग्रहमें इस वंशकं ९ लेख हैं, जिनमें पहला (क्र. ३१७) सन् ११४२ का है। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ जैनशिलालेख-संग्रह १२८५ से १२९७ तक के हैं। पहले लेखमें सर्वाधिकारी मायदेव-द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है, दूसरा एक समाधिलेख है, तीसरेमें एक मन्दिरके लिए दानोंका वर्णन है तथा चौथेमें महामण्डलेश्वर तिकमदेवके मन्त्रीके पुत्र-द्वारा एक मन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । (आ ११) विजयनगरके राजवंश-विजयनगर राज्यके कोई २० लेख प्रस्तुत संग्रहमें हैं। इनमें पहला (क्र० ३९३ ) सन् १३५५ का है तथा हरिहर राजाके समय एक जिनमूर्तिकी स्थापनाका इसमें उल्लेख है । बुक्क राजाके समयके दो लेख है (क्र० ३९४, ३९६), ये सन् १३५७ तथा १३७६ के हैं। पहला लेख एक जिनमन्दिरके अवशेषोंमे है तथा सेनापति बैचयका इसमें उल्लेख है। दूसरा एक समाधिलेख है । राजा हरिहर २ के सेनापति इरुगने एक जिनमन्दिर बनवाया था (क्र० ४०३)। तथा इस राजाके अधीन गोवाके शासक माधवके सेनापति नेमण्णने पार्श्वनाथमन्दिरको सन् १३९५ मे कुछ दान दिया था (क्र० ४०२)। सन् १३९५ के ही एक लेखमे बैचय दण्डनायकके पुत्र इम्मडि बुक्कमन्त्रीश्वर-द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है (क्र० ४०४ )। राजा बुक्क २के समयके दो लेख है ( क्र० ४०६, ४१५) इनमे एक शान्तिनाथमन्दिरके निर्माणका स्मारक है तथा दूसरेमे लक्ष्मीसेन भट्टारकके समाधिमरणका उल्लेख है। राजा देवरायके समयके दो लेख है (क्र० ४२५, ४३४ )- पहला सन् १४१२ का है तथा दो मन्दिरोंकी सोमाओंके बारेमे एक समझौतेका इसमे वर्णन है। दूसरा सन् १४२४ का है तथा इसमे राजा-द्वारा नेमिनाथमन्दिरके लिए वरांग ग्रामके दानका वर्णन है। राजा मल्लिकार्जुनके समय सन् १४५० मे एक मन्दिरको मिले हुए दानोंका वर्णन एक लेखमे है ( क्र० ४४०)। कृष्णदेव महारायके समयके एक लेखमे ( क्र० ४५६ ) १. पहले संग्रहमें इस वंशके कई लेख हैं जिनमें पहला सन् १३५३ का है (ऋ० ५५८ )। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना मन्दिरोंकी भूमियोंको करमुक्त करनेका वर्णन है, यह लेख सन् १५०९ का है । वरांग ग्रामको मन्दिरको ज़मोनको खेतीयोग्य बनानेका वर्णन सन् १५१५ के एक लेखमें है (क्र० ४५८)। राजा अच्युतदेवने सन् १५३० मे एक जिनमूर्तिको पूजाके लिए कुछ करोंकी आय दान दी थी (क्र. ४६७)। राजा सदाशिवके समय रामराजने सन् १५४५ मे एक जिनमन्दिरको कुछ भूमि दान दी थो (क्र. ४७३ ) । इसी राजाके समयका एक दानलेख सन् १५५६ का है (क्र० ४७६ )। राजा रामदेवके समय सन् १६१९ मे एक जैन विद्वानको कुछ दान दिया गया था (क्र० ५०३ ) । इस राज्यका अन्तिम लेख सन् १७५७ का है (क्र. ५२०) तथा इसमे सदाशिव रायके अधीन शासक अरसप्पोडेय-द्वारा चारुकीर्ति पण्डितको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है। (ा १२) दक्षिण भारतकं छोटे राजवंश-अब हम उन राजवंशोंके उल्लेखोका विवरण देखेंगे जिन्होने राष्ट्रकूट, चालुक्य, होयसल या यादव राज्योमें सामन्तोंके रूपमे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया था। ऐसे वंशोंमे नोलम्बवंश प्रथम है जिसके चार लेख मिले है (क्र ० ५९, ६१, १२३, १३९ ) । इनमे पहले दो लेख राजा महेन्द्र के समयके है। एकमे राजा-द्वारा सन् ८७८ मे एक जिनमन्दिरको दान मिलनेका वर्णन है तथा दूसरेमें सन् ८९३ मे आचार्य कनकसेनके लिए कुछ दानका उल्लेख है। नोलंब घटेयंककारने एक जिनमन्दिरको सन् १०२४ मे भूमिदान दिया था (क्र.१२३)। नोलंब ब्रह्माधिराजके समय सन् १०५४ में अष्टोपवासी मुनिको कुछ दान मिले थे (क्र० १३९)।। हम्मचके सान्तर वंशके चार लेख मिले है ( ऋ० १३७,२५८,४२२. १. पहले संग्रह में नोलम्बवारिक कई उल्लेख हैं किन्तु नोलम्ब राजामोंका कोई लेख नहीं है। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख - संग्रह ४६१ ) । इनमें पहला लेख सन् १०५३ का है तथा इसमें राजा वीर सान्तर-द्वारा उसके जैन मन्त्री नकुलरसको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है । दूसरे लेखमे राजा तैलपदेवक जैन सेनापति गोग्गिकी मृत्युके बाद राजा द्वारा उसके कुटुम्बियोंको कुछ दान मिलनेका वर्णन है । यह लेख सन् १९६२ का है । तीसरे लेखमे राजा पाण्ड्यभूपाल द्वारा एक जिनमन्दिर के लिए भूमिदानका वर्णन है । यह लेख सन् १४१० का है । चौथा लेख सन् १५२२ का है तथा इसमे इम्मडि भैरवरस राजा द्वारा वरांगके नेमिनाथमन्दिर के लिए एक गाँवके दानका वर्णन है । ३० सिन्द कुलके सामन्तोंके चार उल्लेख मिले हैं ( क्र० १३८, १६६, २६१, २६४) ।` इनमे पहला सन् १०५३ का है तथा इसमें सिन्द कंचरस - द्वारा नयसेन आचार्यको कुछ दान मिलनेका उल्लेख है । दूसरा लेख सन् १०८५ का है तथा यह सिन्द बर्मदेवरसके समयका दानलेख है । तीसरे लेखमे सन् ११६७ मे सिन्द होलरस द्वारा एक बसदिको दान दियं जानेका वर्णन है । अन्तिम लेखमे सन् ११७० मे मिन्द चावण्डरस द्वारा जैन शालाको भूमिदान मिलनेका वर्णन है । रट्ट कुलके उल्लेख छह लेखों मे हैं (क्र० १७६, १८६, २५१, ३१७, ३१८, ३१९) ! इनमे पहला लेख ११वी सदीका राजा कार्तवीर्य २ के समयका है, इसका विवरण अधूरा है। दूसरा लेख सन् १९०८ का है तथा इसमें राजा लक्ष्मीदेव द्वारा निर्मित जिनमन्दिरका उल्लेख है । तीसरे लेखमे सन् १९६५ में राजा कार्तवीर्य ३ द्वारा एक्कसम्बुगेके जिनमन्दिर के १. पहले संग्रहमें इस वंशके कई लेख हैं जिनमें पहला ( क्र० १४६ ) सन् ६५० के आसपासका हैं 1 २. पहले संग्रह में सिन्द राजाओंके लेख नहीं हैं । ३. पहले संग्रह में इस वंशके दस लेख हैं जिनमें पहला (क्र० १३०) सन् ८७५ का है। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना दर्शनका वर्णन है । अन्तिम तीन लेख कार्तवीर्य ४ के राज्यके सन् १२०१ तथा १२०४ के हैं। इनमें राजा-द्वारा जिनमन्दिरोंके लिए दानोंका वर्णन है। शिलाहार वंशके चार लेख मिले हैं (क्र० १९२, २२१, २२२, २५९)। इनमे पहला सन् १११५ का है तथा इसमें राजा गण्डरादित्यद्वारा उनके जैन सामन्त नोलम्बको दो गांवोंके दानका वर्णन है । अगले दो लेखोंमें गण्डरादित्यके जैन सामन्त निम्बका वर्णन है । इसने सन् ११३५ मे एक जिनमन्दिरका निर्माण कराया था। अन्तिम लेखमें गण्डरादित्यके जैन सेनापति जिन्नण तथा विजयादित्यके सेनापति कालणका उल्लेख है। कालणने सन् ११६५ मे एक मन्दिर बनवाया था। काकतीय वंशका एक लेख सन् १११७ का मिला है (क्र० १९७)। इसमे राजा प्रोलके मन्त्री बेतकी पत्नी-द्वारा अन्मकोण्डमे पद्मावती देवीका मन्दिर बनवानेका वर्णन है। गुत्त वंशके महामण्डलेश्वर विक्रमादित्यने मन् ११६२ मे पार्श्वनाथमन्दिरके लिए कुछ दान दिया था (क्र० २५७) । कोगाल्व वंशके शासक वोरकोगाल्वने मन् १११५ के आसपास सत्यवाक्यजिनालय नामक मन्दिर बनवाया था (क्र० १९३)। मसूरके राजा चामराजको रानी देवीरम्मणिने मेसूरके शान्तिनाथमन्दिरमे दीपस्तम्भ तथा कलश दान दिये थे ( क्र ५२४-५२५ ) । इनका १. पहले संग्रहमें इस वंशके तीन लेख हैं (क्र. २५०, ३२०, ३३४)। २.३. पहले संग्रह में इन दो वंशोंका उल्लेख नहीं है। १. पहले संग्रहमें इस वंशकं छह लेख हैं जिनमें पहला सन् १०५८ का है (क्र. १८६)। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख - संग्रह ३२ समय १८वीं सदीका अन्तिम चरण है । (इ) राजाश्रय के विषय में साधारण विचार - उपर्युक्त विवरणसे यह स्पष्ट होता है कि जैन संघको प्रायः सभी राजवंशोंके समय - विशेषकर दक्षिण भारतीय राजवंशोंके समय अपने धर्मकार्योंमें अच्छी सहायता मिली है । इस सम्बन्ध में एक बातका ध्यान रखना चाहिए कि इनमें से अधिकाश राजाओंका कुलधर्म जैनधर्म नहीं था वे विष्णु, शिव, सूर्य या लक्ष्मीके उपासक थे । तथापि उनकी प्रजामे जैन आचार्योंका अच्छा प्रभाव रहा होगा अतः जैन संघके विषयमे उनकी नीति सहानुभूतिपूर्ण रही है । - ४ जैन संघकी दुरवस्था - बारहवीं सदीसे दक्षिण भारतमें वीरशैव तथा श्रीवैष्णव सम्प्रदायोंका प्रभाव बढता गया तथा इनके आक्रामक रुखका परिणाम जैन आचार्यों तथा मठ-मन्दिरोको सहना पड़ा । इसके प्रत्यक्ष उल्लेख पहले संग्रहके दो लेखो मे है । इस संग्रहके कई लेखोंसे अप्रत्यक्ष रूपसे यही बात स्पष्ट होती है - ये लेख विष्णुमन्दिरों तथा शिवमन्दिरोंमे लगे पाये गये है | स्पष्ट है कि जैन मन्दिरोके ध्वंसावशेषोसे ही ये पत्थर १. पहले संग्रह में मैसूरके राजाओंके कई लेख हैं । २. जिन्हें हम 'जैन' राजा कह सकते हैं ऐसे राजाभोंकी संख्या सीमित ही है - कलिंगके खारवेल, नवीं सदीसे दसवीं सदी तकके गंग राजा, दसवीं- ग्यारवीं सदीके होयसळ राजा तथा कुछ सामन्त ये जैन राजा कहे जा सकते हैं। आठवीं सदी तकके गंग राजा तथा बारहवीं सदी के तथा बादके होयसल राजा भी विष्णु, शिव भादिके उपासक थे । ३. यहाँ उल्लिखित राजवंशों के राजनीतिक प्रभाव, राज्यविस्तार आदिके बारेमें तीसरे भागकी प्रस्तावना में डॉ० चौधरीने विस्तारसे लिखा है अतः वे बातें यहाँ दुहरायी नहीं हैं । ४. लेख क्र० ४३५-३६ । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ३३ विष्णु या शिवके मन्दिरोंमें ले जाये गये हैं । इसका महत्त्वपूर्ण उदाहरण कोल्हापुरका महालक्ष्मी मन्दिर है जहाँके कुछ स्तम्भोंपर पार्श्वनाथमन्दिर सम्बन्धी लेख मौजूद हैं ( क्र० २२२ ) । आन्ध्र प्रदेशमें अन्मकोण्ड पहाड़ीपर देवी पद्मावतीका मन्दिर था जो बादमें पूरी तरह ब्राह्मणोंके अधिकारमें चला गया ( क्र० १९७ ) । इस तरहके अन्य उदाहरण भी हैं । ५ समारोप - जैनधर्म, साहित्य तथा समाज के इतिहासके लिए शिलालेखोंका महत्त्व सर्वमान्य है । अबतक इस संग्रहके लेखोंसे प्राप्त तथ्योंका जो विवरण दिया है उससे यह बात अतिस्पष्ट होगी । इस ऐतिहासिक जानकारीका उपयोग कर जैन साहित्य तथा कथाओंकी प्रामाणिकता परखना आवश्यक है । साहित्यिक तथा शिलालेखीय दोनों साधनोंके समन्वित उपयोगसे ही तथ्यपूर्ण इतिहासका निर्माण सम्भव है । इस संग्रह के अन्त मे तीन परिशिष्ट दिये है । पहले परिशिष्टमे इस संग्रहकी तैयारी के समय जो श्वेताम्बर लेख हमारे अवलोकन में आये उनकी सूची दी है। दूसरे परिशिष्टमे उन जैनेतर लेखोंकी संक्षिप्त जानकारी दी हैं जिनमे जैन व्यक्तियोसे संबद्ध कुछ उल्लेख है । तीसरे परिशिष्टमे नागपुर के समस्त मूर्तिलेखों का संग्रह है । यह संग्रह आजसे कोई २५ वर्ष पहले श्रीमान् शान्तिकुमारजी ठवलीने तैयार किया था जो कई कारणोसे race प्रकाशित नही हो सका। इस पुस्तकमे प्रस्तुत संग्रहको अन्तर्भूत करने की अनुमति के लिए हम श्रीठवलीजीके आभारी है । हमें आशा है कि इन तीन परिशिष्टो से प्रस्तुत संग्रह अभ्यासकोंके लिए अधिक उपयोगी सिद्ध होगा । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ मूल लेख तथा सारांश] Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल लेख तथा सारांश बारली ( जि० अजमेर ) ( राजस्थान म्युजियम ) वारलीसे एक मील दूर मिलोत माताके मन्दिरमें। प्राकृत, ब्राह्मी-सन्पूर्व ४थी सदी १ वीराय मगव (ते) २ चतुरामिति व ( से ) ३ ये सा ( लि ) मालिनि ४ रं नि ( वि ) माझिमिके [ इस लेखमें भगवान् वीरका निर्देश है जिससे प्रतीत होता है कि यह किसी जैन मन्दिरका लेख होगा। इसकी लिपि सम्राट अशोकके लेखोंकी लिपिसे प्राचीन है। इससे अनुमान होता है कि इसमें जो ८४वें वर्षका निर्देश है वह महावीरके निर्वाणके बादका ८४वाँ वर्ष होगा। इसकी अन्तिम पंक्तिमे माध्यमिका नगरीका उल्लेख है। लेख टूटा है अतः इसका उद्देश्य ज्ञात नहीं होता। ] - [इ० ए० ५८ ( १९२९ ) पृ० २२९] मालकोण्ड ( नेलोर, आन्ध्र ) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व ३री सदी [ यह लेख स्थानीय पहाड़ीकी एक गुहाके अग्रभागमें है। यह गुहा अरुवाहि कुलके नन्दसेठिके पुत्र विरिसेठिने अर्पित की ऐसा लेखमें कहा है। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ३ लिपि सन्पूर्व ३री सदीको है । ये गुहाएँ श्रमणोंके लिए उत्कीर्ण की गयी थीं । ] [रि० सा० ए० १९३७-३८ क्र० ५३१ पृ० ५९ ] ३ खण्डगिरि ( ओरिसा ) - ( मंचपुरी गुहा - ऊपरका भाग ) प्राकृत - ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी १ अरहंतपसादाय कालिंगा ( नं ) ( सम ) नानं लेणं कारितं राजिनो कालाक २ हथिसाहस- पपोतस धु ( तु ) ना कलिंगच (कवतिनो सिरिंखा ) - वेलस (स) ३ अगम हिसि ( ना ) कारि ( तं ) [ अरहंतोंकी कृपासे कलिंग प्रदेशके श्रमणोंके लिए यह गुहा कलिंगचक्रवर्ती खारवेलकी महारानीने बनवायी । यह हस्तिसाहसके प्रपौत्र लालाकी कन्या थी ] [ ए० ई० १३ पृ० १५९ ] खण्डगिरि - ( मंचपुरी गुहा - नीचेका भाग ) प्राकृत - ब्राह्मी सन्पूर्व पहली सदी १ खरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महा ( मेघ ) वाह (नस ) कुपसिरिनो लेण [ कलिंगके अधिपति महाराज खर महामेघवाहन कुदेपश्रीने यह गुहा बनवायी । ] [ ए० ई० १३० १६० ] Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खण्डगिरिक लेख खण्डगिरि-( मंचपुरी गुहा-नीचेका भाग) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी कुमारो वदुखस लेणं [ यह गुहा कुमार बडुखने बनवायी । ] [ए० ई० १३ पृ० १६१ ] खण्डगिरि ( सर्पगुहा) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी चूलकमस कोठाजेया च [ चूलकम्म (क्षुद्रकर्म अथवा चूडाकर्म ) का कक्ष । ] [ए० इं० १३ पृ० १६२ ] खण्डगिरि ( सर्पगुहा ) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी १ कंमस हलखि२ णय च पसादो [ कर्म तथा हलखिण ( सल्लक्षण ) का बनवाया प्रासाद । ] [ए० इं० १३ पृ० १६२ ] खण्डगिरि ( हरिदास गुहा) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी [ यह लेख सर्पगुहाके पहले लेखके समान ही है । ] [ए० इं० १३ पृ० १६२] Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह । ९ खण्डगिरि ( बाघ गुहा ) प्राकृत-बालो, सन्पूर्व पहली सदी १ नगर अखदंस २ सभूतिनो लेणं [ नगरके न्यायाधीश सुभूतिकी गुहा ] [ए० ई० १३ पृ० १६३ ] खण्डगिरि ( जम्बेश्वर गुहा) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी महामदास बारियाय नाकियस लेणं [ महामदकी पत्नी नाकियाकी गुहा ] [ए० इं० १३ पृ० १६३ ] खण्डगिरि ( छोटा हाथीगुंफा ) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी अगिख""स लेणं [ अगिख""की गुहा ] [ए० ई० १३ पृ० १६४ ] १२ खण्डगिरि ( तत्त्वगुहा) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी पादमुलिकस कुसुमास लेणं फि.. [ पदमूलिकके कुसुमकी गुहा ] [ए० ई० १३ पृ० १६४ ] Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१५] मथुराके लेख खण्डगिरि ( अनन्तगुहा ) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहला सदी दोहद समणनं लेणं [ दोहदके श्रमणोंकी गुहा ] [ए० ई० १३ पृ० १६४ ] س खण्डगिरि ( तत्त्वगुहा) ब्राह्मी, पहली सदी १ "... २ ण त थ द ध न"" .."ण त थ द ध न"श ष स " ४ .."ण त थ द ध न प फ ब "श ष स ह... ५ .."त थ द ध न प फ ब "श ष स ह"" ६ ... था [ यह वर्णमाला चित्रित की गयी है जो सम्भवतः किसी नवदीक्षित साधुका कार्य है। __[ ए० इं० १३ पृ० १६५ ] १५ मथुरा ( उत्तर प्रदेश ) प्राकृत-ब्राह्मी, वर्ष ८४ ( दूसरी सदी) , ओं सिद्ध स ८० ४ व ३ दि २० ५ एतस्मि पूर्वय दमित्रस्य धितु पोख२ रिकाये कुटुबिणिये दताये दानं वर्षमानप्रतिमा प्रतियपिता Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१६३ गणतो कोहियतो..."सत्यसेनस्य'.."धरवृधिस्य नि.... [वर्ष ८४ मे वर्षा ऋतुके तीसरे महीनेके २५वें दिन दमित्रकी पुत्री तथा ओखरिककी पत्नी दता ( दत्ता) ने यह मूर्ति स्थापित की। कोट्टिय गणके "सत्यसेन""धरवृद्धि । ] [ यदि लेखका वर्ष शककालका हो तो वह सन् १६२ होगा। [ए. इं० १९ पृ०६७ ] मथुरा प्राकृत-ब्राह्मो, पहली-२ री सदो ( खण्डित जैनमूर्विके पादपीठपर) (शा) खातो वाच (कस्य ) आर्य ऋ (षि) दासस्य निर्वर्तना" रकस्य मट्टिदामस्य" [""शाखाके वाचक आर्य ऋषिदासने यह बनवायी ।""रक भट्टिदामकी.] [रि० आ० स० १९११-१२ पृ० १७ ] १७-१८ मथुरा प्राकृत-ब्राह्मी, २री सदी [ यह लेख २री सदीकी लिपिमे है । अरहतके प्रणामसे इसका प्रारम्भ होता है तथा लायकके पुत्रका इसमें उल्लेख है। एक अन्य पादपीठपर इसी समयकी लिपिमें वर्धमानको प्रणाम किया है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ५२८-२९ पृ० ७७ ] पहाड़पुर ताम्रपत्र ( जि. राजशाही, बंगाल ) गुप्त वर्ष १५९ = सन् १७९ संस्कृत अगला माग Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१९] पहाड़पुर ताम्रपत्र १ स्वस्ति पुण्ड्र ( वर्ध ) नादायुक्तका आर्यनगर श्रेष्ठिपुरोगाञ्चाधिष्ठा नाधिकरणं दक्षिणांशकवीथेयनागिरह २ माण्डलिकपलाशापार्श्विक वटगोहालीजम्बुदेवप्रावेश्यपृष्ठिमपो तक गोषापुञ्जक- मूळनागिर हमावेश्य ३ freeगोहालीषु ब्राह्मणोत्तरान् महत्तरादिकुटुम्बिनः कुशलमनुवर्यानुबोधयन्ति । विज्ञापयत्यस्मान् ब्राह्मणनाथ 8 शर्मा एतद्भार्या रामी व युष्माकमिहाधिष्ठितानाधिकरणे द्विदीनारियकुorarपेन शश्वत् कालोप मोग्याक्षयनीवीसमुदयवाह्या · ५ प्रतिकर खिल क्षेत्र वास्तुविक्रयोनुवृत्तस्तदर्हथानेनैव सकाशाद् दीनारत्रयमुपसंगृह्यावयोः स्वपुण्याच्या ६ यनाय वटगोहाल्यामवास्यान् काशिक- पंचस्तूप निकायिक निर्ग्रन्थश्रमणाचार्य - गुहनन्दि-शिष्य प्रशिष्याधिष्ठितविहारे क्रमेणावयोः ७ भगवतामर्हतां गन्धधूप सुमनोदीपाद्यर्थन्तलवटकनिमित्तं व (त) एव वटगोहालीतो वास्तुद्रोणवापमध्यर्ध ज ८ म्बूदेवप्रावेश्य - पृष्ठिमपोत्तकेत् क्षेत्रं द्रोणवापचतुष्टयं गोषाटपुंजा द्रोणवापचतुष्टयं मूलनागिरट्ट ९ प्रावेश्यानित्व गोहालीतः अर्धत्रिकद्रोणवापानित्येवमध्यर्ध क्षेत्रकुख्यवापमक्षयनीव्या दातुमि ( त्यत्र ) यतः प्रथम १० पुस्तपालदिवाकर नंदि - पुस्तपालधृतिविष्णु - विरोचनरामदास- हरिदास-शशिनन्दिषु प्रथमनु" "मवधारण ११ यावघृतमस्त्यस्मदधिष्ठितानाधिकरणे शश्वत्कालोपभोग्याक्षयनीवासमु ( दयवा ) ह्याप्रतिकर - द्विदीनारिक्यकुश्यबापेन १२ (खिल ) क्षेत्रवास्तुविक्रयोनुवृत्तस्तद् यद् युष्मान् ब्राह्मणनाथशर्मा एतमार्या रामी च पलाशाहपार्श्विकवटगोहालोस्थ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१९ पिछला माग १३ ......"कपञ्चस्तूपनिकायिकाचार्यनिर्ग्रन्थ-गुहनन्दि-शिष्यप्रशिष्या___धिष्ठितसद्विहारे अहंतां गन्ध ( धूपा ) ग्रुपयोगाय १४ (तलवा ) टकनिमित्तं च तत्रैव वटगोहाल्यां वास्तुद्रोणवाप मध्य क्षेत्रं जम्बदेवप्रावेश्यपृष्ठिमपोत्तके द्रोणवापचतुष्टयं १५ गोषाटपुआद् द्रोणवापचतुष्टयं मूलनागिरहप्रावेश्यनित्वगोहालीतो द्रोणवापद्वयमाढवा ( पद ) याधिकमित्येवम१६ मध्यधं क्षेत्रकुल्यवापं प्रार्थयतेत्र न कश्चिद् विरोधः गुणस्तु यत् परमभट्टारकपादानामर्थोपचयो धर्मषड्भागाप्याय१७ नं च भवति तदेवं क्रियतामित्यनेनावधारणाक्रमेणास्माद् ब्राह्म णनाथशर्मत एतमार्यारामियाश्च दीनारत्र१८ यमायीकृत्यैताभ्यां विज्ञापितकक्रमोपयोगायोपरिनिर्दिष्टग्रामगो. हालोकेषु तलवाटकवास्तुना सह क्षेत्रं १९ कुल्यवाप अध्य?क्षयनीवीधर्मेण दत्तः कु १ द्रो ४ तद् युष्माभिः स्वकर्मणाविरोधिस्थाने पटकन डैरप२० विच्छय दातव्याक्षयनीवीधर्मेण च शश्वदाचन्द्रार्कतारककालमनु पालयितव्य इति सं १०० (+) ५० (+)९ २१ माघ दि ७ उक्तं च भगवता व्यासेन । स्वदत्ता परदत्ता वा यो हरेत वसुन्धरां। २२ स विष्ठायां कृमिभूत्वा पितृभिः सह पच्यते ॥ षष्ठिवर्षसह नाणि स्वर्ग वसति भूमिदः । २३ आक्षेप्ता चानुमन्ता च तान्येव नरकं वसेत् ॥ राजमिबहुमिर्दत्ता दीयते च पुनः पुनः । यस्य यस्य २४ यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् ॥ पूर्वदत्तां द्विजातिभ्यो यत्माद् रक्ष युधिष्ठिर । महीं महिमतां श्रेष्ठ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२० ] होसकोटे ताम्रपत्र २५ दानाच्छु योनुपालनम् || विन्ध्याटवीध्वनम्मःसु शुष्ककोटरवासिनः । कृष्णाहिनो हि जायन्ते देवदार्य हरन्ति ये ।। [ यह ताम्रपत्र गुप्तवर्ष १५९ के माघ मासके ७ वें दिन लिखा गया था । ब्राह्मण नाथशर्मा तथा उसकी पत्नी रामीने पुण्ड्रवर्धनके राजकोष में तीन दीनार देकर डेढ़ कुल्यवाप जमीन प्राप्त की। इसमें ४ द्रोणवाप ज़मीन पृष्ठिमपोत्तक गाँवमे, ४ द्रो० गोषाटपुंजक गाँवमे, २३ द्रो० नित्वगोहाली और १३ द्रो० वटगोहाली में थी । काशीके पञ्चस्तूपनिकाय के निर्ग्रन्थ श्रमणोंके आचार्य गुहनन्दिके शिष्य - प्रशिष्योंका एक विहार वटगोहाली में था । वहाँ भगवान् अर्हतुकी पूजाके लिए गन्ध, धूप, फूल, दीप आदिकी व्यवस्थाके लिए यह जमीन नाथशर्मा तथा रामीने दान दी । इस ताम्रपत्र में परमभट्टारक पदसे किसी सम्राट्का उल्लेख किया है । ये सम्भवतः गुप्तवंशीय सम्राट् बुधगुप्त थे । पहाड़पुरके समीपका गोआलभिटा गाँव ही सम्भवतः प्राचीन वटगोहाली हैं । यहाँके एक बड़े मन्दिरके उत्खनन में कई जैन, बौद्ध तथा ब्राह्मण अवशेष मिले हैं । ] [ ए० इं० २० पृ० ५९ ] २० होसकोटे (मैसूर) ६वीं सदी पूर्वार्ध संस्कृत पहला पत्र : १ स्वस्ति जितं भगवता गतघनगगनाभेन पद्मनाभेन श्रीमज्जा वेयकुलामलग्यो - स्वभुजजवजयजनित सुजन जनपदस्य ३ विदारणरणोपलब्धव्रणविभूषणभूषितस्य काण्वायनसगोत्रस्य श्री ४ मत्कोंग णवमं धर्ममहाधिराजस्य पुत्रस्य पितुरम्वागतगुणयुक्तस्य २ मावमासन मास्करस्य दारुणारिगण Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० जैनशिलालेख संग्रह ५ विद्याविहितविनयस्य प्रयोजनस्य [ २० सम्यकप्रजापालनमात्राधिगतराज्य द्वितीयपत्र : पहला भाग ६ विद्वत्कविकांचन निकषोपलभूतस्य विशेषतोप्यनवशेषस्य नीति शास्त्रस्य वक्तृप्र ७ योक्तृकुशलस्य सुविभक्तभक्तभृत्यजनस्य दत्तकसूत्रवृत्तेः प्रणेतुः श्रीमन्माधववम ८ हाधिराजस्य पुत्रस्य पैतृपितामहगुणयुक्तस्य भनेकचतुर्दन्तयुद्धावाप्त ९ चतुरुदधिस लिलास्वादितयशसः समदद्विरदतुरगारोहणातिशयोस्पचतेजसो धनुर १० भियोगजनितसम्पादितसम्पद्विशेषस्य श्रीमद्धरिवर्ममहाधिराजस्य - पुत्रस्य द्वितीय पत्र : पिछला भाग ११ गुरुगोब्राह्मणपूजकस्य नारायणचरणानुध्यातस्य श्रीमद्विष्णु गोपाधि १२ राजस्य पुत्रस्य त्र्यम्बकचरणाम्भोरुहरजः पवित्रीकृतोत्तमांगस्य व्यायामोवृत्तपीन १३ कठिनभुजद्वयस्य स्वभुजबलपराक्रमक्रयक्रीतराज्यस्य चिरप्रनष्टब्रह्मदे १४ बहुसहस्र विसर्गाप्रयणकारिणः क्षुत्क्षामोष्ठपिशिताशनप्रीतिकरनिशितधा १५ रासेः कलियुगमल पंकावसद्मधर्मवृषोद्धरणनित्य सन्नद्धस्य श्रीमाधवमहाधिराज Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२०] होसकोटे तानपत्र तृतीय पत्र: अगला भाग १६ स्य पुत्रेण जननीदेवतापयंकतलसमधिगतराज्येन मिजप्रमाव खंडित १७ रिपुनृपतिमंडलेनाखंडलविलंबिविभवविक्रमेण करितुरगवरारो हणसौष्ठ१८ बजनितगुणविशेषेण स्वदानकुसुममंजरीसुरमितसमंतदिगंत रामिग१९ तबुधमधुकरसमुदयेन वरांगनापांगशरविक्षेपलक्षांगेन प्रजापरिरक्ष२० जैकदीक्षाक्षपितकल्मषेणापरिणतवयसापि परिणतमतिसव सम्पदा परमतृतीय पत्र : पिछला भाग २१ धार्मिकेण श्रीमता कोंगण्यधिराजेनात्मनः प्रवर्धमानविजयैश्वर्य द्वादशे संवत्स२२ रे कार्तिके मासे शुक्लपक्षे तिथौ पौर्णमास्यां शासनाधिकृतस्य सकलमंत्रतंत्रांतर्ग२३ तस्य विविधागमजलप्रक्षालितविशुद्धबुद्धः सिंहविष्णुपालवाधि राजस्य २४ जनन्या मर्तृकुलकोर्तिजनन्यार्थ चात्मनश्च धर्मप्रवर्धनार्थ च प्रतिष्ठापिताय अर्हदे२५ वतायतनाय यावनिकसंधानुष्ठिताय कोरिकुन्दमागे पुल्लिऊर् नाम ग्राम चतुर्थ पत्र : अगला भाग २६ महातटाकस्याधस्तात् मूलाभ्याशे श्रमणकंदारसहितसप्तकण्डका वापमानं २७ क्षेत्र मध्यभागे पंचकण्हुकावापमानं क्षेत्रं इक्षुनिष्पादनक्षममे२८ कन्सोरभेनं प्रासं दक्षिणेन कण्डकावापमानं पद उत्तरेण च द्वा. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख - संग्रह [ २१ २९ दशकण्डुकावापमात्रमारण्यक्षेत्रं च देवतायतनसत्रिकृष्टमेकं वेश्म च ३० एतत् सर्व सर्वपरिहारपरिगृहीतं पानीयपातपुरस्सरं दत्तं योस्य चतुर्थपत्र : पिछला भाग १२ ३१ कोमात् प्रमादाद् वापि हर्ता स पंचमहापातकसंयुक्तो भवति अपि चास्मिन्न ३२ थें मनुगीता ( नू ) इलोकानुदाहरन्ति ॥ स्वदत्त परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धराम् ३३- ३८ ( नित्य के शापात्मक श्लोक ) ३३ कुवलालत्वष्टकारस्य इदम्पटुवस्य पुत्रेण पेरेर नाम लिखितापट्टिका || शिवमस्तु [ यह ताम्रपत्र गंगवंशीय राजा माधव (द्वितीय) के पुत्र कोंगण्यधिराज ( अविनीत ) द्वारा राज्यवर्ष १२ के कार्तिक शु० १५ को दिया गया था । इसमे यावनिक संघ द्वारा अनुष्ठित एक अहं देवतायतन ( जिनमन्दिर ) के लिए पुल्लिऊर ग्रामकी कुछ भूमि और एक घर दान दिये जानेका उल्लेख है । यह मन्दिर पल्लव राजा सिंहविष्णुकी माता द्वारा निर्माण किया गया था । ताम्रपत्रको इदम्पटुव के पुत्र पेरेरने लिखा था । ] [ए०रि० मं० १९३८ पृ० ८० ] २१ कोरमंग (मैसूर) ६वीं सदी, संस्कृत प्रथम पत्र १ सूर्याशुद्युतिपरिषिक्त पंकजानां शोभां यद् वहति सदास्य पाद पद्मम् । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२१] कोरमंगके ताम्रपत्र सिद्धम् २ देवानां मकुटमणिप्रभाभिषिक्तं सर्वशः स जयति सर्व लोकनाथः (१) ३ की दिगन्तरब्यापी रघुरासीमराधिपः (1) काकुस्थतुल्यं काकु स्थो यवीयास्तस्य भूपतिः (१२) ४ तस्याभूत् तनयः श्रीमान शान्तिवर्मा महीपतिः (1) मृगेशस्तस्य तनयो मृगेश्वरपराक्रमः (॥३) ५ कदम्बामलवंशाद्रः मौलितामागतो रविः (1) उदयाद्रिमकुटटेप (टाटोप ) दीपांशु रिवांशुमान् (॥४) ६ नृपश्छलनको विष्णुदत्यजिष्णुरयं स्वयं (1) हिरण्मयचलन्मालं स्यक्त्वा चक्र विमावितः (॥५) ७ साम्राज्ये नन्दमानोपि न माधति परंतपः (1) श्रीरेषा मदयस्य न्यानतिपातेव वारुणी (॥६) द्वितीय पत्र ८ नर्मदं तं मही प्रोत्या यमाश्रित्यामिनन्दति (0) कौस्तुमामारुण च्छायं वक्षो लक्ष्मीहरेरिव (..) ९ रवावधि जयन्तीयं सुरेन्द्रनगरी श्रिया (6) वैजयन्तो चलचित्रं बैजयन्ती विराजते (16) १० रवेभुजंगदासीव चंदनप्रीतमानसा (1) तथा श्री मवत् प्रीता मुरारेरपि वक्षसि (॥९) ११ विश्वा वसुमती नाथसाथते नयकोविदम् (१) द्यौरिवेन्द्रं ज्वलद्व ब्रदाप्तिकोरकितांगदम् (॥१०) ५२ यस्य मूनि स्वयं लक्ष्मी हेमकुम्भोदरच्युतैः (1) राज्याभिषेकम करोदम्भोजशबलजलैः (॥११) १३ रघुणालम्बितामीली ( मौलौ ) कुण्डो गिरिरधारयत् (1) रवेराज्ञा वहत्यय मालामिव महीधरः (॥ २) Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैन शिलालेख -संग्रह [ २१ १४ धर्मार्थ हरिदत्तेन सोयं विज्ञापितो नृपः (1) स्मितज्योत्स्नाभिषिक्तेन वचसा प्रत्यभाषत ( ॥। १३ ) द्वितीय पत्र : दूसरा भाग १५ चतुस्त्रिंशत्तमे श्रीमद्रराज्यवृद्धिसमासमा (1) मधुर्मासस्तिथि : पुण्या शुक्लपक्षश्च रोहिणी ( ॥ १४ ) १६ यदा तदा महाबाहुरासंधामपराजित: ( 1 ) सिद्धायतन पूजार्थं संघस्य परिवृद्धये ( |१५ ) १७ सेतोरुपलकस्यापि कोरमंगाश्रितां महीम् (1) अधिकान्निवर्तनान्येव दत्तवां स्वामरिन्दमः ( ॥१६ ) १८ आसन्दी दक्षिणस्याथ सेतोः केदारमाश्रितम् (1) राजमानेन मानेन क्षेत्रमेकनिवर्तनम् ( १७ ) १९ समणे सेतुबंधस्य क्षेत्रमेकनिवर्तनम् (1) तच्चापि राजमानेन वेटिकोटेन्निनिवर्तनम् (॥१८ ) २० उच्छादिपरिहर्तव्ये समाधिसहितं हितम् (1) दत्तवांश्श्रीमहाराजसर्वसामन्तसंनिधौ (118९ ) २१ ज्ञात्वा च पुण्यमभिपालयितुर्विशालं तसंगकारणमितस्य च दोषवताम् २२ तीसरा पत्र : "श्रम स्खलित संयमनैकचित्ताः संरक्षणेस्य जगतीपतयः प्रमाणं ( ||२० ) २३ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजमिस्सगरादिभिः (1) यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं ( 1२१ ) २४ अर्दितं त्रिभिर्मुक्तं सद्भिश्च परिपालितम् (1) एतानि न निवर्तन्ते पूर्वराजकृतानि च ( ।।२२) Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२२] गोकाक ताम्रपत्र २५ स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरंत वसुंधर (1) षष्टिवर्षसहस्राणि नरके पच्यते तु सः (॥२३) [ यह ताम्रपत्र कदम्बवंशीय राजा मृगेशके पुत्र रविवर्मा द्वारा दिया गया था। हरिदत्तके निवेदनपर राजाने सिद्धायतनकी पूजा तथा संघकी वृद्धिके लिए कोरमंग ग्रामकी कुछ जमीन दान दी ऐसा इसमें निर्देश है । दानकी तिथि राज्यवर्ष ३४ के चैत्र शुक्ल पक्षकी पुण्यतिथि कही गयी है। [ए. रि० मै० १९३३ पृ० १०९] २२ गोकाक ताम्रपत्र (जि० बेलगांव, मैसूर ) ६-७वीं सदी, संस्कृत-नागरी १ स्वस्ति ॥ वर्धतां वर्धमानेन्दोर्वर्धमानगणोदधेः । शासनं नाशित२ रिपोर्मासुरं मोहशासनं ॥ (१) इहास्यामवसर्पिण्यान्तीर्थ३ कराणां चतुर्विशतितमस्य सन्मतेः श्रीवर्धमानस्य वधमा४ नायां तीर्थसन्ततावागुतायिकानां राज्ञामष्टसु वर्षशते५ षु पंचचत्वारिंशदप्रेषु गतेषु राष्ट्रकूटान्वयजातश्रीदे दूसरा पत्र : पहला माग ६ जमहाराजस्यामिमतः श्रीसेन्द्रकामलकुलांबरोदितदी• प्रदिवाकरो विजयानन्दमध्यराजात्मजः श्रीमानिन्द्रणन्दाधि८ राजः स्ववंश्यानामात्मनश्च धर्मवृद्धये कमाण्डीविषये ९ पर्वतप्रत्यासमजलारनामे जम्बूग्वण्डगणस्थाय ज्ञान१० दर्शनतपस्सम्पञ्चाय आर्यणन्याचार्याय भगवदह Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ जैनशिलालेख - संग्रह [ २३ दूसरा पत्र : दूसरा भाग ११ प्रतिमानवरत पूजार्थं शिक्षकग्लान वृद्धानां च तपस्विनां वै१२ यावृत्यार्थ ग्रामस्योत्तरतः पूर्वोणग्रामविरेयसीमकं द१३ क्षिणेन मुम्जजलमार्गपर्यन्तं घपरतः एन्दावीरुत्स १४ हितवल्मीकं तस्मादुत्तरतः पुष्करणी ततश्च यावत् पूर्वविरेय१५ कं राजमानेन पंचाशन्निवर्तन प्रमाणक्षेत्रन्द तीसरा पत्र १६ तवानेतद् यो हरति स पंचमहापातकसंयुक्तो भवति ॥ उक्तञ्च १७-२० बहुभिर्वसुधा मुक्ता - ( नित्य के शापात्मक श्लोक ) [ यह ताम्रपत्र सेन्द्रक वंशके अधिराज विजयानन्द के पुत्र इन्द्रणन्द-द्वारा जम्बूखण्डगणके आचार्य आर्यणन्दिको दिया गया था । अर्हत्प्रतिमाकी पूजा के लिए तथा तपस्वियोंकी सेवाके लिए जलार ग्रामके पासकी कुछ भूमि उन्हें दी गयी थी । राजा इन्द्रणन्द राष्ट्रकूट वंशके देज्ज महाराजका सामन्त था । इस ताम्रपत्रका काल आगुप्तायिक राजाओंका ८४५वाँ वर्ष इस प्रकार कहा है । किन्तु इसमे कौन-सी कालगणना अभिप्रेत है यह स्पष्ट नहीं क्योंकि लिपिको दृष्टिसे यह ताम्रपत्र छठी या सातवी सदीका प्रतीत होता है । ] [ ए० ई० २१ पृ० २८९ ] २३ चितरल (केरल) ७वीं सदी, तमिल भगवती मन्दिरके लिए प्रसिद्ध तिरुच्छाणत्तुमलै पहाड़ी पर [ इस लेखमे अरिट्टनेमि भटारके शिष्य गुणन्दागि कुरट्टिगल-द्वारा देवीके लिए कुछ सोनेके आभूषण दान देनेका निर्देश है । यह लेख विक्रमादित्य वरगुणके २८ वें वर्षका है । ] [ इ० म० तिरुवांकुर २ ] Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२४] कुळगाण तानपत्र २४ कुलगाण ( मैसूर) संस्कृत-कार, ७वीं सदी पहला पत्र १ स्वस्ति श्री जितं मगवता श्रीमजान्हवेय... २ श्रमणाचार्यसाधितः स्वखदगैक... ३ राक्रमैकयशसः दारुणारिगणविदार... ४ ग्वायनसगोत्रस्य श्रीमत्कोंगणिवर्मध.... दूसरा पत्र ५ युक्तस्य श्रीमन्माधवमहाधिराजस्य प्रियोरसस्य श्रीविष्णुवर्म गोपमहाधिराजस्य भने६ कचतुर्दन्तयुद्धावाप्तचतुरुदधिसकिलास्वादितयशसः पुत्रस्य श्री मन्माधवमहाधिराज७ जस्य पुत्रस्य श्रीमत्कृष्णवर्ममहाधिराजस्य मागिनेयस्य श्रीमत् कोंगणिवृदराजस्था८ विनीतनाम्नः पुत्रस्य श्रीदुर्विनीतनामधेयस्य समस्तपाणाटपुला टाधिपतेराल्मजस्य श्रीदूसरा पत्र (ब) ९ मत् गणिवृद्धराजस्य प्रथितमुष्करद्वितीयनामधेयस्य सर्वविद्या. पारगस्य सूनोः श्रीम१० त्पृथिवीकोंगणिवृद्धराजस्य श्रीविक्रमद्वितीयनामधेयस्य सर्व विधानिकषोपलभूतस्य प्र११ योगनिपुणतरस्य श्रीविक्रमोपार्जितानेकजनपदस्य प्रतापोपनत सकलसामन्तस्य Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ जैन शिलालेख संग्रह [ २४ १२ घनविनीतस्यात्मजे श्रीमतष्टथिवीकोंगणिवृद्धराजे प्रणितानेकराजस्य मकुटमणिम तीसरा पत्र १३ यूखपुंजपिंजरितांगुष्ठे वरयुवतिमनोनयन सुभगे रिपुनृपतिगजाश्वरथनरोरुवन १४ लोकसमदद्विरदतुरगारोहणांप भीसमान निरतिशयनिजशरीरश्रीवल्लभे सकल ११ पाणाटपुन्नाटाद्यनेकजनपदाधिपती मनोविनीतस्य भ्राता शिवकुमारः श्रीमत्पृथिवी १६ कगणिवृद्धराजः स्थिरविनीतः अवनिमहेन्द्र विख्यातः पाणाटपुनाटाद्यनेकजन पदाधि तीसरा पत्र ( ब ) १७ पतिः पृथिवीं परिपालयति कोडगुन्नाडा केल्लिपुसूरा चेदिभक्के कर्गुलपोल तटुवल्लु १८ वेरेडं वमदिगालुमेर कलनिटं तोट्टमुं मनेत्तानमुं पृथिवीकों गणि मुत्तरसरनुमतदो १९ पल्लवेलारस पायदार कोकन्दियुं मयिलूरगयुं मेल पालु जादिगाल कोलिगंकरेक्कालु ओन्दुतोहमुमा २० रु कलनिउं पृथिवीकोंगणि मुत्तरसरनुमतड़ोलं गंजनाडर् कण्णमन् पोदार चन्त (न्द्र ) संनाचा चौथा पत्र २१ र कर्तारराग अदके साक्षि केल्लिपुसूर पनिर्वरुं असामन्तरं नालत्ताणिउं इदा Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२४ ] कुलगाण ताम्रपत्र २२ नलिदोनू पंचमहापातगनप्पोन् श्री बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजमि स्पक (ग) २३ रादिभिः यस्य यस्य यदा भूमि ( : ) तस्य तस्य तदा फलं ॥ देवस्वं तु विषं घो १३ २४ रं न विषं विषमुच्यते विषमेकाकिनं हन्ति देवस्वं पुत्रपौत्रकं ॥ स्वदत्तां परदत्तां वा चौथा पत्र ( ब ) २५ यो हरंति वसुन्धरा षष्टिं वर्षसहस्राणि घोरं तमसि वर्तते । मारगो २६ हेरन्दु तोहं पोदार देवरा पसु गोहोन्दु तोहं कोण्डत्तु गंजेनाडर् २७ कण्णम्मन् कोडुगूर्नाडाल श्रीरं कल्वाय्गरुं सीम्पाल्त्रायुरुमिर्वरुं नुप्पूरालअरसरान २८ नुमतपडिसि पाददु तु टिल काल किलिप्पुमूर् चेदियक्क " पाँचवाँ पत्र २९ से ३२ तक पंक्तियाँ १३ से १६ तक के समान हैं । ३३ पाणाटपुन्नादाद्यनेकजन पदाधिपतिः पृथिवीं परिपालयति कंडुगूर्विषये ३४ केल्लि सूर् नाम ग्रामे जिनालयाय वसदिकालु जातिकालुं मल्पा कोलि ३५ गन्केरेकालुं कर्तुलदापोल तटुवल्लुवेरेडं एलुकलनिडं नाल्गुतो म ३६ नेतानमुं चन्द्रसेनाचार्यके उदपूर्व कोहरके साक्षी कोररुं कारे अरुकुं Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ २५ [ इस ताम्रपत्रके प्रारम्भ में गंग वंशके राजाओंकी वंशावली इस प्रकार बतलायी है - कोंगणिवर्मा माधव - विष्णुवमंगोप - माधव अविनीत कोंगणिवृद्धराज - दुर्विनीत - मुष्कर कोंगणिवृद्धराज – श्रीविक्रम पृथिवोकोंगणिवृद्धराज श्रीवल्लभ पृथिवोकोंगणिवृद्धराज | श्रीवल्लभके बन्धु शिवकुमार अवनिमहेन्द्र पृथिवीकोंगणिवृद्धराजके शासनकालमे यह लेख लिखा गया था । पल्लवेल अरसने राजाकी अनुमतिसे केल्लिपुसूर् ग्रामका एक खेत बगीचा और कुछ जमीन एक जिनमन्दिरको दान दी उसका इस लेख मे निर्देश है । इसी समय गंजेनाड निवासी कण्णम्मन्ने भी कुछ खेत इस मन्दिरको अर्पण किये । मारुगोट्टेर ने एक बगीचा तथा ओरं कल्वाय्गर और सीम्पाल्वायुग ने कुछ खेत दान दिये । राजाने भी कुछ खेत दान दिये थे । इस जिनमन्दिरके अधिष्ठाता चन्द्रसेनाचार्य थे । ] [ ए०रि० मं० १९२५ पृ० ९० ] " २० २५-२६-२७ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) ७वीं सदी, [ ये तीन लेख रसासिद्धुलगुड नामक पहाडीपर पाषाणोंपर खुदे है । इनमें निम्नलिखित नाम उत्कीर्ण है - १ सिंगनन्दिवन्दितन् २ श्री उरिगपसिण्डि ३ श्रीसूलाकोमरन् इनकी लिपि ७वी सदीकी है । ] -- कन्नड [रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ४५४-५५-५६ पृ० १२६ ] Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३०] रत्नगिरि भादिके लेख रत्नगिरि ( कटक, उड़ीसा) संस्कृत, ७वीं सदी [ इस लेखमे ७वीं सदीकी लिपिमें एक जिनालयका उल्लेख है । लेख खण्डित है। [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ४४८ पृ० ६७ ] पेनिकेलपाडु ( कडप्पा, आन्ध्र ) संस्कृत-तेलुगु, ७वीं सदो [ इस लेखमें वृषभ नामक जन आचार्यको प्रशंसा की गयी है। उन्हें भव्यरूपी फसलके लिए मेघके समान तथा वाद-विवादमें पर्वतके समान दृढ कहा है। इस स्थानको अब संन्यासिगुण्डु कहा जाता है। लिपि ७वीं सदीकी है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० ४०१ पृ० १२० ] कोंगरपुलियंगुलम् ( मद्रास ) वट्टेलुत्तुलिपि, ७वीं सदी ( एक जैनमूर्तिके नोचे - ) श्रीअज्जणन्दि [यहाँसे ३८वें लेख तक ९ लेखोंका समय लिपिके आधारपर कहा है। [रि० सा० ए० १९१० पृ० ५७ क्र० ५४ ] Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ जैनशिलालेख संग्रह ३१ मुट्ट (मद्रास) वलुलिपि वीं सदी [३१ [ ( जैनमूर्तिके नीचे - ) यह मूर्ति वेण्बुनाडुके कुरण्डि अट्टउपवासि भटारके शिष्य गुणसेन देवके शिष्य कनकवीरपेरियडिगल्-द्वारा बनवायी गयी थी । ] [ रि० २० सा० ए० १९१० पृ० ५७ क्र० ६१ ] ३२ मुत्तुपट्टि (मद्रास) वट्टेललिपि, वीं सदी [ यह मूर्ति कुरण्डि अष्टोपवासिके शिष्य माघनन्दि- द्वारा बनवायी गयी थी । ] [रि० स० ए० १९१० पृ० ५७ क्र० ६२ ] ३३-३८ कोलक्कड ( मद्राम ) वट्टेललिपि ७वीं सदी , [ यहाँ जैन मूर्तियोंके समीप निम्न नाम खुदे है कनकनन्दि भटारके शिष्य अभिनन्दन भटारके शिष्य अरिमण्डल भटारके शिष्य अभिनन्दन भटार ( २ ) । अज्जन्दिकी माता गुणमतियार् । गुणसेन देवके शिष्य अनत्तवन् मासेनन्‌का भतीजा आच्चन् श्रीपालन् । गुणसेन देवके शिष्य कण्डन् पोपट्टन् । वेण्बुनाडुके तिरु कुरण्डिके सेवक कनकनन्दि । गुणसेनदेवके शिष्य अयंगाविदि, पल्लिके प्रमुख । ] [ रि० स० ए० १९१० १० ५७ क्र० ६३-६९ ] - Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३९ ] १ स्वस्ति भ ३ रमभट्टारकस्य पा ५ हेश्वर पर ( मे ) इवर प ७ राजुल श्रन्दु पल्ले९ जेन्वानूरु राजमा (नं) - ११ पट्टु क्षेत्रंबु प (रि)१३ नंबुनाकु इच्चे १५ अडुगडु५७ पलंबगु १९ वानिकि एकलु २१ लच्चिन पाप नलजनम्पाडुका लेख ३६ नलजनम्पाडु ( आन्ध्र ) तेलुगु, ७वीं-८वीं सदी अगला भाग २३ लाल कोडुकु २५ ज्येस्य लिकि २ गवदर्हत ( प ) - ४ दानुध्यात परममा६ ल्लवादित्य श्रीबादि८ यरि कोडुकु बादि (रा) - १० बु मूनूरु वुट्ट आलं१२ सि पल्लेयारि (दा) - १४ दीनि रक्षिचिनवानि (कि) पिछला भाग १६ गइवमंधना १८ दीनि लच्चिन २० श्रीपर्वतं २२ बगु वाच्चो २४ पल्लवाचा २६ तम् (1) २३ [ इस लेख मे परमेश्वर पल्लवादित्य वादिराजुल नामक शासक द्वारा ३ पुट्टि जमीन किसी ग्राममुख्यको दिये जानेका उल्लेख है । वादिराजुलको अर्हतभट्टारक तथा महेश्वर दोनोंका भक्त कहा गया है । लेखकी लिपि ७वीं-८वी सदीकी है । ] [ ए० ई० २७ पृ० २०३] Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैनशिलालेख संग्रह ४०-४३ सावानिकोट ( कुर्नूल, आन्ध्र ) कड, ७वीं - ८वीं सदी [ यहाँ एक खेतमे पाषाणोंपर निम्न नाम खुदे है - १ श्री कोपा (शि) की निसिधि २ संसारमीत ३ श्रीविमलचन्द्रन् ४ गणिगे महाव्रति इनकी लिपि ७वी-८वीं सदीकी है । ] [ " ४४ मावेर्ल ( कृष्णा, आन्ध्र ) तेलुगु, ८वीं सदी, पूर्वार्ध ४० [रि० स० ए० १९३७-३८ क्र० ३३०, ३३२, ३३७, ३३९ पृ० ४१-४२ ] [ यह लेख पूर्वीय चालुक्य राजा सकललोकाश्रय जयसिंहवल्लभ (द्वितीय) के राज्यवर्ष ८ मे लिखा गया था । दयावसन्त पृथिवीदेशरट्ट - गुडिके प्रपौत्र तथा धन्यवसन्त पृथिवीदेश रट्टगुडिके पुत्र कल्याणवसन्तुलुद्वारा अरहन्तभटारको कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है । इस दानकी रक्षा कोठूरुके रट्टगुडि वंशके शासक करेंगे ऐसा लेखमें कहा है । ] [रि० स० ए० १९४१-४२ क्र० १८ पृ० १३१ ] Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४६ ] शिरगांव-अग्णिगेरिके केल ४५ शिरगांव ( धारवाड, मंसूर ) शक ६३० = सन् ७०८ संस्कृत-नागरी [ यह ताम्रपत्र चालुक्य राजा विजयादित्यके ११ वें राज्यवर्ष शक ६३० मे आषाढ़ पौर्णिमा के दिन दिया गया था । किसुबोललके राजस्कन्धावारसे राजाने पुरिगेरे नगरमे कुंकुमादेवी - द्वारा निर्मित जिनमन्दिरके लिए गुडिगेरे ग्राम दान दिया ऐसा इसमें उल्लेख है । ] [रि० इ० ए० १९४५-४६ ए० क्र० ४९ ] ४६ अणिगेर स्तम्भलेख ( जि० धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष ६ = १ स्वस्ति कीर्तिवर्म (सत्या ) श्रय ३ धिराज परमेश्वर भटारर ५ ले आरनेया वर्ष प्रव ७ बुलगेरिगे कलि ९ वेदिय मान्माडिसिदोद् ११ शुलरकुप कीर्तिवर्म१३ कीर्तन | दीशापालस्य लि [ यह लेख बदामी चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा द्वितीयके राज्यके छठे वर्षका अर्थात् सन् ७५१-५२ का है। इसमें जेबुलगेरिके ग्रामाधिकारी कलिमय्य-द्वारा एक चेदिय अर्थात् "जिनमन्दिर बनवाये जानेका निर्देश है । ] [ ए० ई० २१ पृ० २०४ ] 7 सन् ७५१-५२, कमड २५ २ श्री पृथु ( वीवल्लम) महाराजा ४ राज्यं ओन्दुत्तरमभिवृद्धि स ६ मानमागे जे८ यम्म गामुण्डुगेय्दी १० इदर मुन्दे कोण्डि१२ गोसासिय निरिसिदा १४ खितं । प्रभुनामन् । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जैन शिलालेख संग्रह G कुडलूर ( मैसूर ) कन्नड, ८वीं सदी श्रीमंतोरेय तडिय तोष्टडोल तम्म मागमं देवर्ग कोहर् अय्यप्प राउर पक्कदोष्ट कोण्डु तोरेय तडिय तम्म मागद तोण्टमं मूडणबसदिगे कोहर रणपाकरपर् आले कोण्डु तोहर् | [ 20 [ इस लेखमे रणपाकरसके राज्यकालमे श्रीयम्म तथा अय्यप्प-द्वारा किसी नदीतीरपर स्थित पूर्वीयबसदिके लिए कुछ उद्यान आदिके दानका उल्लेख है । लिपि ८वीं सदीकी प्रतीत होती है । ] [ ए० २ि० मै० १९०९ पृ० १४ ] ४८ नरसिंहराजपुर (मैसूर) संस्कृत - कन्नड, ८वी - ९वीं सदी [ यह ताम्रपत्र गंग राजा श्रीपुरुष द्वारा दिया गया था । इस राजा के 'अनुकूलवर्ती' पसिण्डि गंग कुलके नागवर्मा तथा कदम्बकुलके तुलुअडिने तगरे प्रदेशके तोल्लग्राममे स्थित चैत्यालयके लिए मल्लवल्लि ग्राम दान दिया था । इसी प्रकार कोशिक वंशके मणलि मनेओडेयोन्ने कुछ भूमि दान थी । इसी ताम्रपत्रके अन्तिम भागमे गंग राजा शिवमारके राज्यमे सिन्दनाडु ८००० के शासक विट्टरस द्वारा तोल्लरके चैत्यके लिए करिमानी ग्रामके दानका भी उल्लेख है । तदनन्तर इसी चैत्यके लिए राजा शिवमार के मामा विजयशक्ति अरसद्वारा ६ खंडुगभूमिके दानका उल्लेख है । ] [ ए०रि० मे० १९२० पृ० २७ ] Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनुगाड भादिक लेख मुनुगोडु (गुण्टूर, आन्ध्र) तेलुगु, ८वी सदी [ यह लेख पूर्वीय चालुक्य राजा सर्वलोकाश्रय विष्णुवर्धनके राज्यवर्ष ३७ का है। इस समय महामण्डलेश्वर गोंकय्यने मुनुगोडुके जिनालयके लिए कुछ भूमि दान दी थी। यहीके एक अन्य लेखमे गोंकके सेवक बोयुग-द्वारा इस जिनालयके जीर्णोद्धारका उल्लेख है जिसका निर्माण अग्गोति-द्वारा मुनिसुव्रतके तीर्थमे किया गया था। ] [रि० सा० ए० १९२९-३० क्र० १७-१८ पृ० ६ ] तिरुगोकर्णम् ( मद्रास ) तमिल, ८वीं सदी [ यह लेख शडैयापारै नामक पहाड़ीपर एक जिनमूर्तिके पास है । पाण्ड्य राजा कोरिण्मैकोण्डान् सुन्दरपाण्ड्यदेवके २४वें वर्षको एक राजाज्ञाका इसमे उल्लेख है। तदनुसार तेंकविणाडु के निवासियोंसे कहा गया था कि कल्लारुप्पल्लिके पेरुनकिलि चोलप्पेरुम्पल्लि आलवारके पूजादिके लिए स्थानीय पल्लि ( जिनमन्दिर ) के व्यवस्थापको द्वारा अर्पित जमीनोंको करमुक्त किया गया।] [इ० पु० ० ५३० पृ० ८५ ] ५१-५३ ब्रिटिश म्यूजियम ( लन्दन ) ८वीं-९वीं सदी, संस्कृत-नागरी १ अनन्तवीर्य २ सुलोचना ३ प्रति [ ये नाम तीन मूर्तियोंके पादपोठोपर खुदे है। ये मूर्तियां यक्ष तथा Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ जैन शिलालेख-संग्रह [५४यक्षिणियोंकी है और इनके शिरोभागमें जिनमूर्तियां खुदी हैं। अक्षरोंकी लिपि तथा मूर्तिशिल्प ८वीं-९वीं सदीके है । ] [ Medicval Indian Sculpture in the British Museum P. 41-42] बदनगुप्पे ( मैसूर) संस्कृत-कमड, शक ७३० = सन् ८.८ [ इस ताम्रपत्रके पांच पत्रोंमे-से पहले तीन पत्र द्वितीय भागके लेख क्र० १२३ के समान है जिनमे राष्ट्रकूट राजाओंका वंशवर्णन गोविन्दराज३ तक किया गया है । ] चतुर्थ पन्न : पहली ओर ५. धारावर्षश्रीवल्कममहाराजाधिराजस्य पुत्रः शौचाचारप्रभुर्गुण गणप्रण५२ मितसमस्त लोकः परोपकारकरुणापरः परमेश्वरचरणारविन्दवन्द नाभिनन्दनः र५३ णावलोकश्रीकम्भराजः पुनार एडेनाविषये वदनोगुप्पे नाम ग्रामः तलव. ५४ ननगरं अधिवसति विजयस्कन्धावारे । त्रिंशदुत्तरेवतीतेषु शक वर्षेषु कार्तिक५५ मास-पौर्णमास्यां रोहिणोनक्षत्रे सोमवारे कोण्डकुन्देयान्वय सिमलगे५६ गूरुगण कुमारणन्दिमट्टारकस्य शिष्यः एकवाचार्यगुरुः तस्य शिष्यो वधमा५७ नगुरुः (१) सर्वप्राणिहितः साक्षात् सिदान्तानुगमोडतः (1) शान्तः सर्वज्ञकल्पोयं नयोज Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५४] बदनगुप्पे ताम्रपत्र ५८ तगुणोजतः (1) तस्मै तं ग्रामं भदात् स्वपुत्र श्रीशंकरगण्ण विज्ञापनेन श्रीकम्न्देवः श्रीविजय. ५९ बसतये तलवननगरे प्रतिष्ठितायै । तस्य सीमान्तराणि बडगण दिरे पोजचतुर्थ पत्र : दूसरी भोर ६. लि बडगण पदुवण कोनेदु पोसत्तिगल्लु पदुवणसीमे कदम्ब गेरेय पेवं६. ग पद्धवण तेंकण कोनेदु पोंगुल्लन्तिय तेजोल्वे तेंकण सीमे बेलक्काल तेसो६२ ल्वे तेंकण मूरण कोर्नेदु मुदुवनि कोरलु मूदणसोमे कल्लि बेट्टिन मूडण पोरे६३ ये मूरु बेटु भोलगु मूहण बदगण कान्नेदु बदनिदिय नगण भोगवे ६४ भस्य दानस्य साक्षिणः पण्णवतिसहनविषयः प्रकृतयः ६५ योस्यापहर्ता लोमान्मोहात् प्रमाईन च स पंचमिमहद्भिः पातकै () संयुक्तो ६६ भवति यो रक्षति स पुण्यमाग मवति भपि चात्र मनुगीता (6) श्कोका (6) स्वदत्ता परदत्तां ६७ वा यो हरंत बसुन्धरां (1) षष्टिं वर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते क्रिमिः (1) स्वं दातुं ६८ सुमहच्छक्यं दुःखं भन्यस्य पालनं (1) दानं ना पालनं बेत दानाच्छयोनुपापाँचवाँ पत्र : पहली भोर ६९ कनं (11) बहुर्मिवसुधा भुक्ता राजभिस्सगरादिमिः (१) यस्य यस्य यदा भूमि (6) तस्य Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ५५ ७० तस्य तदा फलं (1) देवस्वं तु विषं घोरं न विषं विषमुच्यते (1) विषमेकाकिनं हन्ति ७१ देवस्वं पुत्रपौत्रिक ( 11 ) विश्वकर्माचार्येण लिखितं ( 11 ) ३० [ यह ताम्रपत्र राष्ट्रकूट समाट् गोविन्दराज ( तृतीय ) के राज्यकालमे सम्राट् ( ध्रुव निरुपम ) धारावर्षके पुत्र रणावलोक कम्भराज द्वारा कार्तिक शु० १५ शक ७३०, सोमवार के दिन दिया गया था । कोण्डकुन्देय अन्वयसिमेलगूरु गणके कुमारगंदि भट्टारक के प्रशिष्य तथा एलवाचार्यके शिष्य वर्धमानगुरुको वदनोगुप्पे ग्राम दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है । यह दान aaaaaगरको श्रीविजयवसतिके लिए दिया गया था । ] [ ए० २ि० मै० १९२७ पृ० ११२ ] ५५ सूरत ताम्रपत्र ( गुजरात ) शक ७४३ = सन्_ ८२१, संस्कृत - नागरी १ श्रीं श्रियः पदं नित्यमशेषगोचरं नयप्रमाणं प्रतिषिद्धदुप्पथं । जनस्य मव्यत्व समाहितात्मनां जयत्यनुग्राहि जिनेन्द्रशासनं ॥ (1) a air २ व्या वेधसां धाम यनाभिकमलं कृतं । हरश्च यस्य कान्तेन्दुकलया कमलंकृतं ॥ ( २ ) आसीत् द्विषत्तिमिरमुद्यतमण्डलाम्रो वfa ३ नमिमुखा रणशर्वरीषु । भूपरशुचिविधुरिवास्तदिगन्त कीर्तिगोविन्दराज इति राजसु राजसिंहः ॥ (३) दृष्ट्वा चमूमभि ४ मुखीं सुभटाट्टहासामुन्नामितं सपदि येन रणेषु नित्यं । दष्टाधरेण दधता भ्रुकुटिं ललाटे खड्गं कुलं च हृद (यं) ५ च निजं च सत्वं ॥ (४) ग्वड्गं कराग्रान्मुखतश्च शोभां मानो मनस्तस्सममेव यस्य । महाहवे नाम निशम्य सद्यस्व Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५५] सूरत ताम्रपत्र ६ यं रिपूणां विगलत्यकाण्डे ॥ (५) तस्त्रारमजो जगति विश्रत दार्थकीत राातिहारिहरिविक्रमधामधारी । भूप७ त्रिविष्टपनृपानुकृतिः कृतज्ञ: श्रीकर्कराज इति गोत्रमणिर्बभूव ।। (६) तस्य प्रभिन्नकरटाच्युतदानद८ न्तिदन्त प्रहाररुचिरोल्लिवितांसपीठः । मापः क्षिती अपितशत्रु रभूत्तनूजः सद्राष्ट्रकूटकनकादिरिवेन्द्रराजः ।। (७) तस्योपा९ र्जितमह मस्तनयश्चतुरुदधिवलयमालिन्याः। भोक्ता भुवश्शत. ऋतुसदृशः श्रीदन्तिदुर्गराजाभूत् ॥ (८) काशीगकर१० लनराधिपचीलगण्डयश्रीमौर्यवज्रटविभेदविधानदक्षं। कर्णाटकं बलमचिन्त्यमजेयमन्यै स्यैः किदिर११ पि यस्पहसा जिगाय ॥ (९) अभ्रविमंगमगृहीतनिशातशस्त्र मश्रान्तमप्रतिहताजमपेतयत्नं । यो वल्लभं सपदि दण्ड१२ बलेन जित्वा राजाधिराजपरमेश्वरतामवाप ।। (१०) आसेतो विपुलोपलावलिलसल्लोलोमिमालाजलादापालेयक१३ लंकितामलशिलाजालानुषाराचलादा पूर्वापरवारिराशिपुलिन प्रान्तप्रसिद्धावधेयं नंद जगती स्वविक्रमबलेनेका१४ तपत्रीकृता । (११) तस्मिन् दिवं प्रयाते बल्लभराजे क्षतप्रजा बाधः । श्रीकर्कराजसूनुमहापतिः कृष्णराजोभूत् ॥ (१२) यस्य स्वभुजप१५ राक्रमनिश्शेषोत्सादितारिदिकचक्रं । कृष्णस्येवा(कृष्ण) चरितं श्रीकृष्णराजस्थ ॥ (१४) शुभतुंगतुंगनुरगप्रवृद्धरणूवरुद्धरवि किरणं । ग्रीष्मपि नमो निखिलं १६ प्रावृटकालायते स्पष्टं ॥ (१४) दीनानाथप्रणयिषु यथेष्टचेप्टं समोहितमजलं । तत्क्षणमकालवर्षे वर्षति सर्वार्थिनिर्व(प) णं ।। (१५) राहप्पमा Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह १७ स्मभुजजातबलावलेपमाजी विजिस्य निशितासिलताप्रहारैः । पानिध्वजावलिशुमामचिरेण यो हि राजाधिराजपरमेश्वरतां १८ ततान ॥ (१६) क्रोधादुरखातखड्गं प्रसृतरिपुभयैर्मासमानं समन्तादाजादुवृत्तवैरिप्रकटगजघटाटोपसंक्षोमदभं । सौर्य स्यक्त्वारिदूसरा पत्र : पहला माग १९ वर्गो मयचकितवपुः क्वापि दृष्ट्व सद्यो दर्पोध्मातारिचक्रक्षय करमगमद्यस्य दोर्दण्टरूपं ।। (१७) पाता यश्चतुरंबुराशिरसनालं. कारभाजा भु२० वस्नय्याश्चापि कृतद्विजामरगुरुप्राज्याज्यपूजादरो। दाता मानभृद प्रणागुणवतां योसौ श्रियो वल्लभो मोक्तुं स्वर्गफलानि भूरितपसा २१ स्थानं जगामामरं ॥ (१८) येन श्वेतातपत्रप्रहतरविकरवात तापासलीलं जन्म नासारधूलोधवलितवपुषा बल्लमाख्यस्स दाजी । श्रीमद्गोविन्दराजी जि. २२ तजगदहितस्त्रैणवैधम्यहंतुस्तस्यासीत् सूनुरेक""लिताराति(म) तेमकुम्मः ॥ (१९) तस्यानुजः श्रीध्रुवराजनामा महानुभावः प्रथितप्रतापः। २३ प्रसाधिताशेषनरेन्द्रच(क्रः) क्रमण बालार्कवर्षभव ॥ (२०) जाते पत्र च राष्ट्रकूटतिलक सद्भतचूडामणौ गुर्वी तुष्टिरथाखिलस्य जगतः सुस्वामिनि प्रत्यहं । ( सत्यं ) सत्यमिति प्रसा२४ सति सति सामासमुद्रान्तिकामासीद् धर्मपर गुणामृतनिधी सत्यव्रताधिष्ठिते । (२१) शशधरकिरणनिकरनिमं यस्य यशः सुरनगाग्रसानुस्थैः । परिगी२५ यतेनुरक्तविद्याधरसुन्दरीनिवहैः ॥ (२२) हृष्टान्वहं योर्थिजनाय नित्यं सर्वस्वमानन्दितबन्धुवर्गः प्रादात् प्ररुष्टो हरति स्मवेगात् प्राणान् यमस्यापि नितान्त Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ ] सूरत ताम्रपत्र ३३ २६ वीर्यः ।। ( २३ ) रक्षता येन निश्शेषं चतुरम्भोधिसंयुतं । राज्यं धर्मेण लोकानां कृता हृष्टिः परा हृदि ॥ (२४) योसौ प्रसाधित(समुन्नत) सारदुर्गा गांगौघसन्ततिनिरोध २७ विवृद्धकीर्तिः । आत्मीकृतोक्षत वृषांक विभूतिरुच्चैन्यं ततान परमेश्वरतामिहैकः || (२५) तस्यात्मजो जगति सत्प्रथितोरुकीर्तिगविन्दराज इ २८ ति गोत्रललामभूतः त्यागी पराक्रमधन: प्रकटप्रतापः सन्तापि - ताहितजनो जनवल्लभोभूत् ॥ (२६) पृथ्वीवल्लभ इति च प्रथितं यस्या २९ परं ज ( ग ) ति नाम । यश्वतुरुदधिसीमामेको वसुधां वशे चक्रे ।। (२७) एकोप्यनेकरूपो यो ददृशे भेदवादिभिरिवात्मा । परबलजलधिमपारं ३० तरन् स्वदोर्भ्यां रणे रिपुभिः ॥ ( २८ ) एको निर्हेतिरहं गृहीतशस्त्रा मे परे बहवो । यो नैवंविधमकरोचितं स्वप्नेपि किमुताजौ || (२९) राज्याभिषेकलशैरभि ३१ षिच्य दत्तां राजाधिराजपरमेश्वरतां स्वपित्रा । अन्यैर्महानृपतिभिर्बहुभिस्समेत्य स्तस्मादिमिर्भुजबलादवलुप्यमानां ॥ (३०) एकोने कनरेन्द्र वृन्द्रसहिता ३२ न्यस्तान् समस्तानपि प्रोरखा (ता) सिलताप्रहारविधुरां बध्वा महासंयुगे । कक्ष्मी (म ) ध्यचलां चकार विकसत् सञ्चामरग्राहिणीं संसीदद्गुरुविप्रसज्जन सुहृद्वं ३३ धूपभोग्यां भुवि ॥ (३१) तत्पुत्रोत्र गते नाकमा कम्पितरिपुप्रजे । श्रीमहाराज सर्वाख्यः ख्यातो राजाभवद् गुणैः ॥ (३२) अर्थिषु यथार्थतां यस्मममिष्टफला प्तिलब्धता ३४ षेषु । वृद्धिनिनाय परमाममोघवर्षाभिधानस्य || ( ३३ ) राजा ३ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह मन् तपितृभ्यो रिपुमवविमवोद्भूत्यमाबैकहेमुर्लक्ष्मीवानिन्द्रराजो गुणिजननिकरान्तश्चमत्का३५ रकारी। रागादन्यान् ब्युदस्य प्रकटितविनया यं नृपं सेवमाना राजश्रीरेव चक्रे स(कल)कविजनोद्गीततथ्यस्वभावं ॥ (३४) निर्वाणावाप्तिवानासहितहितजनो३६ पास्यमाना सुवृत्तं वृत्तं जित्वान्यराज्ञां चरितमुदयवान् सर्वतो हिंसकेभ्यः । एकाकी दृप्तवैरिस्खलनकृतिसहप्रातिराज्येशशंकु लाटीयं मण्डलं ३७ यस्तपन इव निजस्वामिदत्तं ररक्ष ॥ (३५) यस्यांगमात्रजयिनः प्रियसाहसस्य क्षमापालवेषफलमेव बभ(व) सैन्यं । मुक्त्वा च सर्वभुवनेश्वरमादिदे - दूसरा पत्र : दूसरा माग ३८ वं नावन्दतान्यममरेष्वपि यो मनस्वी ॥ (३६) श्रीकर्कराज इति रक्षितराज्यमारस्सारः कुलस्य तनयो नयशालिशौर्यः । तस्या - ३९ भवद् विम(व)नन्दितबन्धुसार्थः पार्थः सदैव धनुषि प्रथम श्शुचीनां ॥ (३७) दानेन मानेन सदाज्ञया वा शौर्येण वीर्येण च कोपि मपः । एतेन साम्योस्ति ४० न वेति कीर्तिस्सकौतुका भ्राम्यति यस्य लोके ॥ (३८) स्वेच्छा गृहीतविषया(न्)दृढसंघमाज: प्रोवृत्तप्ततरशौल्कितराष्ट्रकूटान् । उत्खातखडगनिज - ४१ बाहुबलेन जित्वा योमोघवर्षमचिरात् स्वपद व्यधत्त ॥ (३९) तेनेदमनिलविद्युञ्चंचलमालोक्य जीवितमसारं । क्षितिदानपरम पुण्यः प्रवर्तितो ध४२ मंदायोयम् ॥ (३०) स च समधिगताशेषमहाशब्दमहासामन्ता Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरत ताम्रपत्र धिपतिः सुवर्णवर्षश्री(क)कराजदेवः कुशली सर्वानेव यथासंबध्य मानान् राष्ट्रपति - ४३ विषयग्रामपतिप्रामकूटयुक्त नियुक्तवासावकाधिकारिकमहत्तरादि कान् समनुदर्शयत्यस्तु वस्संविदितं यथा मया श्रीवतिकातट - ४४ स्थावासितविजयस्कन्धावारस्थितेन मातापिनोरात्मनश्चैहिका मुप्मिकपुण्ययशोभिवृद्धये श्रीनागसारिकास्वतलसन्निविष्टाहच्चैस्या ल(या)यतननि(बद्ध)४५ सम्बपुराभ्यमण्डितवसतिकायाः खण्डस्फुटितनवकर्मचरुबलिदान पूजार्थ तथा तथानिबध्यमानचातुष्टयमूलसंघोदयान्वयसेन - ४६ सेनमंघमलवादिगुरोश्शिष्यश्रीसुमतिपूज्यपादः तच्छिष्य-श्रीमद पराजितगुरोः श्रीनागसारिकाप्रतिबद्ध अम्बापाटकग्रामस्य उत्तरदिशि ४७ हिरण्ययोगाभिधानां ढाषुवापी यस्याघाटनानि पूर्वतः श्रीधर वापिका दक्षिणतो वहः अपरतः पूरावी महानदी उत्तरत स्सम्बपुर - ४८ वापिका । एवमियं चतुराघाटोपलक्षिता सधान्यहिरण्यादया ___अचाटमटप्रवेश्यस्सर्वराजकीयानामहस्तप्रक्षेपणीयः पाच - ४९ न्द्राकर्णिवक्षितिसरित्पर्वतसमकालीनः शिष्यप्रशिध्यान्वयक्रमोप मोग्यः शकनृपकालातीतसंवत्सरशतेषु सप्तसु त्रिचत्वारिंशद - ५० धिकष्वीतेषु वैशाखपार्णमास्यां स्नात्वोदकातिसर्गेण प्रतिपादि तोस्योचितया आचार्यस्थित्या भुंजतो भोजयतः कर्षतः कर्षयतः प्रतिदि५१ शतो वा न केनचित् परिपन्धिना करणीया ॥ तथागामिनृपतिमिरस्मद्वश्यैरन्यैर्वा सामान्यं भूमिदानफलमवेत्य विद्युल्लोलान्यनित्यान्यैश्व - Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [५५५२ र्याणि तृणाणलग्नचंचलबिन्दुचंचलं च जीवितमाकलथ्य स्वदाय निर्विशेषोयमनुमन्तव्यः परिपालयितन्यश्च । यश्चाज्ञानतिमिर पटलावृत - ५३ मतिराच्छिन्यादाच्छिद्यमानकं वानुमोदेत स पं(च)भिर्महापात कैरुपपातकैश्च संयुक्नस्स्यादित्युक्तं च मग(व)ता वेदव्यासेन व्यासेन ॥ ५४-५८ [ नित्यके शापात्मक श्लोक - षष्टिं वर्षसहस्राणि आदि ] ५९ यथा चैतदेवं तथा शासनदाता लिपिज्ञस्स्वहस्तेन स्वमतमारोप यति ।। स्वहस्तोयं मम श्रीकर्कराजस्य श्रीमदि - ६० न्द्रराजसुतस्य ॥ लिखितं चैतन्मया महासन्धिविग्रहाधिपतिना नारायणेन कुलपुत्रकश्रीदुर्गभहसूनुना ॥ जीयाद्दुरितविद्वेषि शासनं जि६१ नशासनं । यदन्यमतशैलानां भेदने कुलिशायते ॥ (४९) जयति जिनोको धर्मष्षदजीवनिकायवत्सलो नित्यं । चूडामणि रिव लो(के) ६२ विभाति यस्सर्वधर्माणाम् ।। (५०) [ यह ताम्रपत्र शक ७४३ मे वैशाख पूर्णिमाको दिया गया था । इममें पहले राष्ट्रकट सम्राटोकी वंशावली अमोघवर्ष (प्रथम) तक दी गयी है । तदनन्तर अमोघवर्पके पितृव्य(चाचा)इन्द्रराजके पुत्र कर्कराज सुवर्णवर्षका उल्लेख है जो गुजरातमे शासन कर रहा था। अमोघवर्षके राज्यारोहणके बाद कई सामन्तोंने विद्रोह किया था उनपर विजय प्राप्त करनेमे कर्कराजको ही मदद उपयोगी सिद्ध हुई थी। कर्कराजने उक्त वर्षमे मूलसंघसेनसंघके मल्लवादिगुरुके शिष्य सुमतिपूज्यपादके शिष्य अपराजितगुरुको. नागसारिकाके जिनमन्दिरके लिए हिरण्ययोगा नामक खेत दान दिया था।] [ए. ई. २१ पृ. १३३ ] Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५८] राणिवेण्णूर आदिके लेख राणिवेण्णूर ( धारवाड, मैसूर ) शक ७८१ = सन ८६०, काड [ यह लेख राष्ट्रकूट सम्राट् अमोघवर्ष (प्रथम ) के समयका है। नागुल पोल्लब्बे द्वारा स्थापित नागुलबसदिके लिए शक ७८१ मे कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमे निर्देश है । यह दान सिहवूरगणके नागनन्द्याचार्यको दिया गया था।] [रि० आ० स० १९३०-३४ पृ० २०९ ] बेंटूर ( मैसूर) शक ७८५= सन् ८६४, काड [यह लेख राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष १ के समय शक ७८५, तारण संवत्सरमें लिखा गया था। चिकण्ण नामक अधिकारीको कुछ भूमि दिये जानेका इसमें उल्लेख है। व्रतोंका पालन और सन्यसन इनका भी उल्लेख हुआ है । अतः यह समाधिमरणका स्मारक प्रतीत होता है। ] ( मूल कन्नडमें मुद्रित ) [सा० इ० इ० ११ पृ० ६ ] ऐवरमले ( मदुरा, मद्रास ) शक ७९२ = सन् ८७०, तमिल १ शकर याण्डएलु-नूरुत्तोपyरिण्ड २ पोन्दणवरगुण' याण्ड एटु गुणवीरक्कु३ रवडिगल माणाक्क(र)कालत्त शान्तिवीरक४ कुरवर तिरुवयिरै पोरिश्च (पार्श्व)प(म)टाररैयुमिय५ क्कि अब्बैगलैयुं पुदुक्कि इरण्डुक्कुमुद् Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ जैनशिलालेख-संग्रह [५८६ टाववियुमोरडिगलुक्कु शोराग अमैत्त पो७ ण ऐन्नरेन्दु काणम् ॥ [ यह लेख पाण्ड्य राजा वरगुण २ के राज्यवर्ष ८, शक ७९२ का है । इस समय गुणवीरके शिष्य शान्तिवीरने तिरुवयिर स्थित पार्श्वनाथ मूर्ति तथा यक्षीमूर्तिका जीर्णोद्धार किया था। इसके लिए उन्हे ५०२ काणम् ( सुवर्णमुद्रा)दान मिला था।] _[ए० इं० ३२ पृ० ३३७ ] ५६ धर्मपुरी ( सालेम, मद्रास ) शक ८०० = सन् ८७८, कन्नड किले में मारियम्मन देवालयके आगे पड़े हुए स्तम्मपर [ इस लेखमे पल्लव महेन्द्र नोलम्ब-द्वारा किसी जैन मन्दिरके लिए दान दिये जानेका निर्देश है। इस लेखका समय शक ८००, विलम्बि संवत्सर था।] __ [इ० म० सालेम ८१] कोप्पल ( रायचूर, मैसूर ) कन्नड, शक ८११%= सन् ८९० [ इस लेखकी तिथि कार्तिक पूर्णिमा, शक ८११, शोभन संवत्सर ऐसी है। इस समय दण्डनायक अम्मरसने कुपण तीर्थकी यात्रा की तथा महासामन्त कदम्बवंशीय अलियमरस-द्वारा निर्मित बसदिके लिए कुछ दान दिया था।] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १५९ पृ० ४१ ] Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ६३ ] धर्मपुरी श्रादिके लेख ६१ धर्मपुरी (सालेम, मद्रास) सन् ८९३, कन्नड शक ८१८ = मल्लिकार्जुन मन्दिरके आगे एक स्तम्भपर [ राजा महेन्द्राधिराज नोलम्बके समय शक ८१५ मे यह लेख लिखा गया । इसमें निधियण्ण और चण्डियण्ण द्वारा मूलसंघ, सेनान्वय, पोगरियrus आचार्य विनयसेन सिद्धान्तभटारके शिष्य कनकसेन सिद्धान्तभटारको मूलपल्लि ग्राम दान देनेका उल्लेख है । ] [ इ० म० सालेम ७४ ] ६२ सित्तन्नवासल ( पुदुकोट्ट, मद्रास ) ९वीं सदी, तमिल ३९ [ यह लेख पाण्ड्य राजा अबनिपशेखर श्रीवल्लभके समयका है । इलंगोतमन् ( इसीका नाम मदिरै आशिरियन् भी था ) द्वारा अन्तर्मण्डप - का जीर्णोद्धार तथा बाह्य मण्डपका निर्माण किये जानेका इसमें उल्लेख है । इस मन्दिरको अरिवन् कोयिल ( अर्हनमन्दिर ) कहा गया है । इस गुहामन्दिर के बाहरी भागपर कई यात्रियोंके नाम खुदे हैं जिनकी लिपि ७वीं सदीकी है । ] [ रि० आ० स० १९२९-३० पृ० १६७-१६९रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० २१५ पृ० ९९ ] ६३ हेब्बलगुप्पे (मैसूर) ९वीं सदी, कन्नड १ स्वस्ति श्रीनरसीगेरे अप्पोर दुग्गमार २ कोल्विस दगे अरुगण्डुगब्बेदे मणू कोहर् Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जैनशिलालेख-संग्रह [६३ ३ अरमण्डमेगालुमनोकेमोगेयु ओडिपा४ डियुं गोरियन्दम्मगलरुगण्डुग बेदेनेल मणकोहर ५ इदानलित्तु केडिसिदोनोक्कल कंडुग पंचम६ हापातकनक्कवन् मक्कलु साग७ वसदियान्कयदोन् नारायण पे८ रुन्तसन् [ यह लेख ९वीं सदीकी लिपिमे है । नरसीगेरे अप्पोर् दुग्गमार ( जो गंगवंशका राजपुत्र था) द्वारा एक जिनमन्दिर ( कोपिलवसदि) को ६ खण्डुग भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। इतनी ही भूमि अरमण्डमेगलु, अगोकेमोगे, ओड्डिपाडि इन ग्रामोंके निवासियों द्वारा तथा गोयिन्दम्म-द्वारा दान दो गयी थी। श्रेष्ठ शिल्पकार नारायणने इस बसदिका निर्माणकार्य किया था।] [ए० रि० मै० १९३२ पृ० २४० ] मोटे बेन्नर ( धारवाड, मैसूर ) ९वी सदी, कार [ यह लेख ९ वीं सदीको लिपिमें है। इसमे किसी बसदिके लिए चन्द्रनन्दि भट्टारको भूमि दान दी जानेका उल्लेख है । इस लेखकी स्थापना इन्दर पिट्टम्मके सेनबोव कुण्डमय्य-द्वारा की गयी थी।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ क्र० ई १११ पृ० १२९ ] ६५ कलकत्ता ( नाहर म्युजियम ) ९वीं सदी, कन्नड १ श्री जिनवल्लभन सज्जन २ मागियबेय माडिसिद ३ प्रतिमे Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिरुनिडंकोण्डके लेख [ यह लेख पीतलको चौबीसतीर्थकरमूर्तिके पादपीठपर है। लिपि ९वीं सदीकी है। यह मूर्ति जिनवल्लभको स्वजन ( पत्नी ) भागियबेद्वारा स्थापित की गयी थी। लिपिसे स्पष्ट होता है कि यह मूर्ति कर्नाटकमें निर्मित हुई थी।] [ए० रि० मै० १९४१ पृ० २५० ] ६६-६७ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) ९वीं सदी, तमिल [ इस लेखमें कहा है कि तिरुनरुंगोण्डैके किलप्पल्लि ( जैन मन्दिर ) का चतुर्मुगत्तिरुक्कोयिल् (चतुर्मुख वसति ) तथा पूर्वका सभामण्डप तलक्कूडि निवासी विशयनल्लूलान् कुमरन् देवन्ने बनवाया था। लेखकी लिपि ९वीं सदीकी है। यहींके अन्य दो भागोंमें इसी समयकी लिपिमें वाणकोवरैयर् तथा आरुलगपेरुमान्का उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०६-७ पृ० ६६ ] ६८-६९ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास) ९वों सदी, तमिल [ इस लेखमे नारियप्पाडि निवासी शिगणार् पेरियवडुगणार्-द्वारा दो जैन पल्लियों ( मन्दिरों ) के लिए १० पोण ( मुद्राएँ ) दान दिये जानेका निर्देश है। यहींके एक अन्य लेखमे नारियप्पाडि निवासी पेरियनक्कनार्के पुत्र ( नाम लुप्त ) द्वारा भी कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है लिपि ९वी सदीकी है। ] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०८-९ पृ० ६६ ] Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ . [.. जैनशिलालेख-संग्रह ७० कीरप्पाक्कम् ( चिंगलपेट, मद्रास ) __ ९वीं सदी, तमिल [इस लेखमे कीरैपाक्कमके उत्तरमें देशवल्लभ जिनालयका उल्लेख है। इसका निर्माण यापनीय संघ कुमिलिगणके महावीरगरुके शिष्य अमरमुदलगुरु-द्वारा किया गया था। लिपि ९वी सदीकी है। ] [रि० सा० ए० १९३४-३५ क्र० २२ पृ० १० ] बेगूर ( बंगलोर, मैसूर ) ९वीं सदा, काट [ इस निसिधिलेखमे मोन भट्टारके शिष्य...न्दिभटारके समाधिमरणका उल्लेख है । लिपि ९वीं सदीकी है। यह लेख नागेश्वर मन्दिरमे लगा है। [ए० रि० मै० १९१५ पृ० ४६ ] ७२ बेलगाँव ( मैसूर) ९वीं-१०वीं सदी, कमर [ यह लेख नेमिनाथमूर्तिके पादपीठपर है। इस मूर्तिकी स्थापना 'राष्ट्रकूट वंशरूपी समुद्रके लिए चन्द्रके समान' मणिचन्द्रके गुरु नेमिनाथ ( नेमिचन्द्र ? ) द्वारा की गयी थी।] [रि० आ० स० १९२८-२९ पृ० १२५ ] अलगरमलै ( मदुरा, मद्रास ) वहेलुत्त लिपि-९वी-१०वीं सदी [ यह लेख एक जिनमूर्तिके समीप खुदा है ] ( मूल-) १ श्री अच्चणं - २ दि शेयल Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -७६] चिकहनसोगेके लेख [ आर्यनन्दि आचार्यका यह नामोल्लेख है। लिपि ९वीं-१०वीं सदीकी है। [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ३९६ पृ० ६२ ] ७४-७५ चिक्कहनसोगे ( मैसूर ) १०वीं सदी-प्रारम्म, कमल [ इस निसिधिलेखमें मूलसंघ-देसिगण-पनसोगे शाखाके श्रीधरदेवके शिष्य नेमिचन्द्रके समाधिमरणका उल्लेख है। यह लेख १०वीं सदीके प्रारम्भका है तथा इस समय रामेश्वर मन्दिरमे लगा है। यहींके एक अन्य निसिधिलेखमे नागकुमारकी पत्नी जक्कियब्बेके समाधिमरणका उल्लेख है। समय १०वीं सदीके प्रारम्भका है।। [ए. रि० मै० १९१४ पृ० ३८ ] चिक्कहनसोगे ( मैसूर ) १०वीं सदी-प्रारम्भ, कन्नड १ एरेय समु २ द्रवेष्टितधरात३ लमं प्रतिपालिसु ४ त्तमित्तेरेग म. ५ हारिमण्डलिक ६ रि बेसकेरय विला७ सयेलगेयं मे ८ रेवकरूरनेन्दे९ निसल आलिपोरी १० स्तितसन्ध्यरिन्दु वन्दे११ रग समन्तु क १२ नेलेयदेवर १३ पादपयोरुह १४ गलोल । स्थावरजं१५ गमतीर्थ भावि १६ सि पेलदागलोरदे गो१७ म्मटदेवर स्थावर- १८ तीर्थ कल्नेलेदेव१९ र भूवलयदोलगे २० जंगमतीर्थ ॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ २१ बेल्देवं बरेदं २३ रि ॥ जैन शिलालेख - संग्रह २२ इलवेडे मल्लाचा [ इस लेखमे ( गंग राजा ) एरेयके समय एलाचार्य के समाधिमरणका तथा उनके शिष्य कल्नेले देव द्वारा उनकी निसिधिकी स्थापनाका उल्लेख है । गोम्मटदेवको स्थावरतीर्थ तथा कल्नेलेदेवको जंगमतीर्थ कहकर उनकी प्रशंसा की है । लेख १०वीं सदीके प्रारम्भका शक ८४७ [ ७६ । ] [ ए०रि० मैं० १९९४ पृ० ३८ ] ७७ बदलिके (मैसूर) शक ८२४ = सन् १०२, कन्नड [ यह लेख राष्ट्रकूट राजा कृष्ण २ अकालवर्षके समयका है । महासामन्त बकेयर सके पुत्र लोकटेयरसके अधीन पेगंडे बिट्टय्य-द्वारा शक ८२४ में बन्दणिमें एक बसदिके निर्माणका इसमे उल्लेख है । लोकटेयरसने इस बसदि के लिए नागर खण्ड ७० विभागका दण्डिपल्लि ग्राम बिट्टय्यको दान दिया था । ] ७८ [ ए०रि० मैं ० १९११ पृ० ३८ ] असुण्डि (मैसूर) सन् ९२५, कन्नड [ यह लेख राष्ट्रकूट सम्राट् गोविन्द ( चतुर्थ ) नित्यवर्ष के समय शक ८४७, पार्थिव संवत्सरमें लिखा गया था। इसमें नागय्य द्वारा एक जिनालयका निर्माण तथा उसके लिए कुछ भूमिदान किये जानेका उल्लेख है । यह दान बंकापुरके घोरजिनालय के प्रमुख चन्द्रप्रभ भटारके शासनकालमे दिया गया था । ] ( मूल कन्नड मे मुद्रित ) [ सा० इ० इ० ११ पृ० २० ] Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हलहरवि मादिके लेख ७६ हलहरवि ( बेल्लारी, मैसूर) शक ४५४ = सन् ९३२, काड [ यह लेख शक ८५४ पार्थिव संवत्सर ( यह वर्षनाम ग़लत है ) का है। इसमे राजा नित्यवर्षके राज्यकालमे कन्नरदेवको रानी चन्दियब्बे द्वारा नन्दवरमे एक जैन बसदिका निर्माण तथा उसके लिए कुछ करोंका उत्पन्न पद्मनन्दि आचार्यको अर्पित किये जानेका उल्लेख है।। [रि० सा० ए० १९१५-१६ क्र० ५४० पृ० ५२ ] ८० कोप्पल ( रायचूर, मैसूर ) शक ८६२ = सन् ९४०, कन्नड [ यह लेख जिनशासनको प्रशंसासे शुरू होता है। तिथि शक ८६२, विकारि संवत्सर ऐसी दी है । अन्य विवरण प्राप्त नहीं।] [रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १९६ पृ० ३७ ] बिजापुर ( उदयपुरके समीप, राजस्थान ) संवत् ९५६ = सन् ९४० तथा संवत् १०५३ = सन् ९९७ ...." सस्कृत-नागरी १ ..."जवस्तवः । परिशामतु ना'परा(थंख्या)पना जिनाः ॥ ते वः पातु(जिना)विनामसम(ये यत्पा)दपमोन्मुखप्रेखासंख्यमयूख(शे)खरनखश्रेणीषु बिम्बोदयात् । प्रायैकादशभिर्गुणं दशशती शक्रस्य शुभद्दशां कस्य स्याद् गुणकारको न यदि वा स्वच्छात्मनां संगमः ॥२ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ जैन शिलालेख संग्रह [69 २ ''''नासस्करोलो ( प ) शोभितः । सुशे ( खरं ) लौ मूर्ध्नि रूढो महीभृतां ||३ अभिविद् रुचि कांतां सावित्रीं चतुराननः । हरिवर्मा बभूवान भूविभुर्भुवनाधिकः ॥ ( ४ ) सकललोकविलोकन पंकजस्फुरदigदबाल दिवाकरः । रिपुवधूवदनंदुहृतयुति: ३ समुदपाद विदग्धनृप (स्ततः) ॥ ( ५ ) स्वाचार्यैयों रुचिरवच (नैर्वा)सुदेवाभिधानैर्बोधं नातो दिनकरकरैनीरजन्माकरो व पूर्व जैन निजमिव यशो (कारयद् ह - ) स्तिकुंड्यां रम्यं हम्यं गुरुहिमगिरेः श्रृंगशृंगारहारि ||६ दानेन तुलितबलिना तुलादिदानस्य येन देवाय । भाग ( द्वयं) व्यतीर्यत भागश्चा ४ (चार्यवर्या ॥ ( ७ ) तस्मादभू (न्छुद्ध) सत्वो मंमटाख्यो महीपतिः। समुद्रविजयो श्लाध्यतरवारिः सदूर्मिकः ||८ तस्मादसमः समजनि ( समस्त ) जनजनितलोचनानंद: । ध (व) लो वसुधान्यापी चंद्रादिव चंद्रिकानिकरः ॥ ( ९ ) मंक्त्वाघाटं घटामिः प्रकटमिव मर्द मेदपाटे भटानां जन्ये राजन्य - - ५ जन्यं जनयति जनताजं रणं मुंजराजे । (श्री)-माणे ( प्र ) ण हरिण इव मिया गुर्जरेशे विनष्टे तरसैन्यानां शरण्यो हरिरिव शरणे यः सुराणां बभूव ।। (१०) श्रीमद दुर्लभराजभूभुजि भुजैर्भुजत्यमंगां भुवं दंद्धैर्भण्डनशौण्डचंडसु मटैस्तस्यामिभूतं विभुः । यो दैत्यरिव तारक ६ प्रभृतिभिः श्रीमान् महेन्द्र पुरा सेनानीरिव नीतिपौरुषपरोनैषीत् परां निर्वृतिं । ( ११ ) यं मूलादुदमूलयद् गुरुबल: श्रीमूलराजो नृपो दधो धरणीवराहनृपतिं यद्वद् द्विपः पादपं । श्रायातं भुवि कांदिशाकममिको यस्त शरण्यो दध इष्ट्रायामिव रूढमूढमहिमा कोलो महीमंडलं ॥१२ ७ इत्थं पृथ्वीमर्तृभिर्नाथमानैः सा सुस्थितैरास्थितो यः । पाथोनाथ वा विपक्षात् स्वप (क्षं) रक्षाकांक्षे रक्षणे बद्धकक्षः । । (१३) दिवा Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -८.] विजापुरका लेख ४७ करस्येव करैः कठोरैः करालिता नपकदंबकस्य । अशिश्रियंतापहतोरुतापं यमुन्नतं पादपवजनीघाः ।।(१४) धनुर्धरशिरोमणेरमलधर्म मभ्यस्यतो जगा - ८ म जलधेर्गुणो (गु)रुरमुष्य पारं परं। समीयुरपि संमुखाः सुमुख मागंणानां गणाः सतां चरितमद्भुतं सकलमेव लोकोत्तरं ।।(५५) यात्रासु यस्य वियदौर्ण विषुर्विशेषात् वलगत्तुरंगखुरखातमहीरजांसि। तेजोमिर्जितमनेन विनिर्जिनस्वाद् भास्वान् विलजित इवातितरां तिरोभूत् ।।१६ ९ न कामनां मनो धीमान् घलनां दधौ। अनन्याद्धार्यसत्कार्यमारधुर्योर्थतोपि यः ।।(१७) यस्तेजोमिरहस्करः करुणया शौद्धोदनिः शुदया मीप्मो वंचनवंचितेन वचसा धर्मेण धर्मात्मजः । प्राणेन प्रलयानिलो बलमिदा मंत्रेण मत्री परी रूपेण प्रमदाप्रियेण १० मदनो दानेन क(ो)मवत् ।।(१८) सुनयतनयं राज्ये बालप्रसाद मतिष्ठिपत् परिणतवया निःसंगो यो बभूव सुधीः स्वयं कृतयुगकृतं कृत्वा कृत्यं कृतास्मचमत्कृतीरकृत सुकृती नो कालुप्यं करोति कलिः सतां ।।(१९) काले कलावपि फिलामलमैतदीयं लोका विलोक्य कलनातिगत गुणौ - ११ घं। (पार्था)दिपार्थिव (गुणा)न् गणयंतु सत्याने व्यधाद् गुण निधि यमितीव वेधाः ॥ २० गोचरयंति न वाचो तच्चरितं चंद्रचंद्रिकारुचिर । वाचस्पतर्वचस्वो को वान्यो वर्णयत् पूर्ण ॥(२१) राजधानी भुवा मर्तुस्तस्यास्ते हस्तिण्डिका । अलका धनदस्येव धनाढ्यजनसेविता ॥ (२२) नीहारहारहरहास(हि)१२ (मां) शुहारि (झा) त्का(र) वारि (भु)वि राजविनिर्झराणां । वास्तव्यभव्यजनचित्तसमं (स)मंतात् संतापसंपदपहारपरं परेषां ॥ (२३) धौतकलधौतकलशामिरामरामास्तना इव न यस्यां । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ जैन शिलालेख संग्रह [ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजापुरका लेख मिवानिलांदो(लि)तं । गरिष्ठगुणगोष्ठ्यदः समुददीधरद् धीरधीरु दारमतिसुंदरं प्रथम१८ तीर्थकृन्मंदिरं ॥ (३३) ( रक्तं ) वा रम्यरामाणां मणितारा वराजितं । इदं मुखमिवामाति भासमानवरालकं ॥ (३५) चतुरस्र (पट्टज) नघा(इ)निकं शुमशुक्तिकरोटकयुक्तमिदं बहुभाजनराजि जिनायतनं प्रविराजति मोजनधामसमं ॥ (३५) विदग्धनृपकारिते जिनगृहे१९ तिजीणे पुनः समं कृत समुद्धताविह भवांबुधिरात्मनः । अति ष्ठिपत सोप्यथ प्रथमतीर्थनाथाकृति स्वकार्तिमिव मूर्ततामुपगतां सितांशुद्युति ॥ (३६) शांत्याचार्य सिपंचाशे सहस्र शरदामियं मावशुक्लत्रयोदश्यां सुप्रतिष्ठैः प्रतिष्ठिता ॥ (३७) विदग्धनृपतिः पुरा यदतुलं तुलादेददौ सुदानमवदानधारिदमपीपलमाद्भुतं । यतो धवलभूपतिजिनपतेः स्वयं सात्म (जो) रघट्टमय पिप्पलोपप (दकू) पकं प्रादिशत् ॥ (३८) यावच्छेषशिरस्थमेकरजतस्थूणास्थिताभ्युल्ल सत्पातालातुलमंडपामलतुलामालंबते भूतलं । तावत्ता२१ रयाभिरामरमणी(ग)धर्वधीरध्वनिर्धामन्यत्र धिनोतु धार्मिकधियः (स) पवेलावि(धौ) ॥ (३९) सालंकारा समधिकरसा साधुसंधानबंधा इलाध्यश्लेषा ललितविलसत्तद्धिताख्यातनामा । सद् वृत्ताच्या रुचिरविरतिधुर्यमाधुर्यवर्या सूर्याचार्य व्यं रचि रमणीवा२२ ति(रम्या) प्रशस्तिः ॥ (१०) संवत् १०५३ माघशुक्ल १३ रविदिने पुष्य नक्षत्रे श्रीऋषभनाथदेवस्य प्रतिष्ठा कृता महाध्वजचारोपितः । मूलनायकः ॥ नाहकजिंदजसशंपपूरमदानागपोधि (स्थ)श्रावकगोष्ठिकैरशेषकर्मक्षयार्थ स्वसंतानमवाब्धितर२३ (गार्थ) व न्यायोपार्जितवित्तेन कारितः ॥॥ परवादिदर्पमथनं Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [८१हेतुनयसहनमंगकाकीणं । भव्यजनदुरितशमनं जिनेंद्रवरशासनं जयति ॥ (१) आसीद् धोधनसंमतः शुमगुणो मास्वत्प्रतापोज्वलो विस्पष्टप्रतिमः प्रभाक्कलितो भूपोत्तमांगार्चितः । योषित्पी२४ नपयोधरांतरसुखाभिष्वंगसंलालितो यः श्रीमान् हरिवर्म उत्तम मणिः सद्वंशहारे गुरौ ॥ (२) तस्माद् बभूव भुवि मरिगुणोपपेतो मपप्रमतमुकुटार्चितपादपीठः । श्रीराष्ट्रकूटकुलकाननकल्पवृक्षः श्री मान् विदग्धनृपतिः प्रकरप्रतापः ॥ (३) तस्माद् भप-- २५ गणा'तमा (कीतः) परं भाजनं संमतः सुतनुः सुतोतिमतिमान श्रीममटो विश्रुतः । येनास्मिन् निजराजवंशगगने चन्द्रायितं चारुणा तेनेदं पितृशासनं समधिकं कृत्वा पुनः पाल्यते ॥ (४) श्रीबलमद्राचार्य विदग्धनृपजितं समभ्यर्य । आचंद्राकं यावद् दत्तं भवते मया२६ ॥ (५) (श्रीहस्ति)कुण्डिकायां चैत्यगृहं जनमनोहरं भक्त्या। श्रीमदबलभद्रगुरोर्यद्विहितं श्रीविदग्धेन ॥ (६) तस्मिन् लौकान् समाहुय नानादेशसमाग(ता)न् । प्राचंद्रार्क स्थिति यावच्छासनं दत्तमक्षयं ॥ (७) (रू)पक एको देयो वहतामिह विंशतः प्रवह णानां । धर्म२७ .."क्रयविक्रये च तथा ॥ (८) संभृतगंव्या देयस्तथा वस्त्याश्च रूपकः श्रेष्ठः । घाणे घटे च कर्षो देयः सर्वेण परिपाट्या ॥ (९) श्री(मह)लोकदत्ता पत्राणां चोल्लिका त्रयोदशिका । पेल्लकपेल्लकमेतद् द्यूतक(रैः) शासने देयं ॥ (१०) देयं पलाशपाटकमर्यादा वर्तिक२८ .... । प्रत्यरघ() धान्याढकं तु गोधूमयवपूर्ण ॥ (११) पेडा च पंचपलिका धर्मस्य विशोपकस्तथा मारे । शासनमेतत्पूर्व विदग्ध Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजापुरका लेख राजेन संदत्तं ॥ (१२) (कर्पा)सकांस्यकुंकुमा(पुर)माजिष्टादिसर्व मांडस्य । (द)श दश पलानि मारे देयानि विक२९ .... ॥ (१३) आदानादेतस्माद् भागद्वयमर्हतः कृतं गुरुणा। शेषस्तृतीयभागो विद्याधनमात्मनो विहितः ॥ (१४) राज्ञा तत्पुत्रपौत्रैश्च गोष्ठया पुरजनेन च । गुरुदेवधनं रक्ष्यं नोपे(क्ष्य हितमीप्सुभि.) ॥ (१५) दत्ते दाने फलंदानात् पालिते पालनात् फळं । (भक्षितो)पेक्षिते पापं गुरुदे३० (वधने)धिकं ।। (१६) गोधूममुद्गयवलवणराल(का)देस्तु मेयजा तस्य । द्रोणं प्रति माणकमेकमत्र सर्वेण दातव्यं ॥ (१७) बहुमिर्वसुधा भुक्ता राजमिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं ॥ (१८) रामगिरिनंदकलिते विक्रमकाले गते तु शुचिमा(से)। ३१ (श्रीम)बलमद्रगुरोविदग्धराजेन दत्तमिदं ॥ (१९) नवसु शतधु गतेषु तु षण्णवतीसमधिकेषु माघस्य । कृष्णकादश्यामिह समर्थितं मंमटनृपेण ॥ (२०) यावद् मघरममिभानुमरतं भागीरथी भारती मास्व(भा)नि भुजंगराजभव(नं) भाजद्मवांमोधयः । ति(प्ठं)३२ त्यत्र सुरासुरेंद्रमहितं (जै)नं च सच्छासनं श्रीमत्केशवमूरि संततिकृते तावत् प्रमयादिदं ॥ (२५) इदं चाक्षयधर्मसाधनं शासनं श्रीविदग्धराज्ञा दत्तं ॥ संवत् ९७३ श्रीमंमट (राज्ञा समाथ)तं संवत् ९९६ । सूत्रधारोद्भव(शत)योगेश्वरेण उत्कीर्णेयं प्रशस्तिरिति । [ इस बृहत् शिलालेखके दो भाग है। दूसरा भाग जो २३वीं पंक्तिसे शुरू होता है समयकी दृष्टिसे पहलेका है। इसमे राष्ट्रकूट कुलके राजा हरिवौके पुत्र विदग्धराजका वर्णन किया है। आचार्य Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ जैनशिलालेख-संग्रह [८२वासुदेवके उपदेशसे विदग्धराजने राजधानी हस्तिकुण्डिकामें ऋषभदेवका मन्दिर बनवाया था। इसने अपनी सुवर्णतुलाका दो तिहाई भाग इस मन्दिरके लिए तथा एकतिहाई भाग गुरुके लिए दान दिया था। विदग्धराजने इसी मन्दिरके लिए हस्तिकुण्डोके व्यापारियों के कई करोंका उत्पन्न बलभद्र गुरुको दान दिया था। इस दानको तिथि आषाढ़, संवत् ९७३ थी। विदग्धराजका पुत्र मंमट हुआ। इसने उक्त दानको माघ कृष्ण ११, संवत् ९९६को पुनः सम्मति दी। मंमटका पुत्र धवल हुआ। इसकी वीरताका विस्तृत वर्णन लेखमे किया है। जब मुंजराजने मेदपाटको राजधानी आघाटको नष्ट किया तब वहाँके राजाको धवलने आश्रय दिया था। दुर्लभराजके आक्रमणसे महेन्द्रका रक्षण इसीने किया तथा मूलराजके द्वारा पराजित धरणीवराहको भी आश्रय दिया । वृद्धावस्थामे धवलने अपने पुत्र बाल प्रसादको मिहासनपर स्थापित किया। इसके समय संवत् १०५३ मे वासूदेवके शिष्य शान्तिभद्रसूरिके उपदेशसे हस्तिकुण्डीकी गोष्ठी ( व्यापारियोके समूह ) ने विदग्धराज-द्वारा निर्मित मन्दिरका जीर्णोद्धार किया। गोष्ठीके सदस्योके नाम पंक्ति २२मे गिनाये है। लेखके पहले भागमे जो ४० श्लोकोंकी प्रशक्ति है वह सूर्याचार्यने लिखी थी। लेखके अन्तमे केशवमूरिका उल्लेख है ] [ए० ई० १० पृ० १७ ] विलपक्कम ( जि. उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् ९४५, तमिल नागनाथेश्वर मन्दिरके श्रागे पड़ी हुई शिलापर [ यह लेख चोल राजा मदिरकोण्ड परकेसरिवर्मन् (परान्तक १ ) के राज्यके ३८ वें वर्षमें लिखा गया था। तिरुप्पान्मलके आचार्य अरिष्टनेमिकी एक शिष्याके द्वारा एक कुआँ बनवानेका इसमें उल्लेख है । ] [इ० म० उत्तर अर्काट २१६ ] Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नरेगल आदिके लेख ८३ नरेगल ( मैसूर ) शक ८७३ = सन् ९५०, कन्नड [ यह लेख राष्ट्रकूट सम्राट् अकालवर्ष कृष्णराजदेव ( तृतीय ) के सामन्त गंगवंशीय बूतथ्य पेर्माडिकै समयका है। इसकी रानी पद्मब्बरसिद्वारा निर्मित बसदिके दानशालाके लिए नमयर मारसिघय्यने एक तालाब अर्पित किया था । यह दान कोण्डकुन्दान्वय देसिग गणके महेन्द्र पण्डित के प्रशिष्य तथा वीरणन्दि पण्डितके शिष्य गुणचन्द्र पण्डितको सौंपा गया था । दानको तिथि पौष शु० १० रविवार, संक्रान्ति, शक ८७३ साधारण संवत्सर ऐसी दी है । ] [ मूल कन्नडमें मुद्रित ] उत्तरायण [ सा० इ० इ० ११ पृ० २३ ] -८५ ] ८४ वेमुलवाड ( करीमनगर, आन्ध्र ) १० वीं सदी -- उत्तरार्ध ( लगभग सन् ९६० · ) संस्कृत-कन्नड [ इस मूर्तिलेखमे चालुक्य राजा बद्देग द्वारा गौडसंघके आचार्य सोमदेवसूरिके लिए एक जिनालय बनवाये जानेका उल्लेख है । ] [ रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० १५८ ] ८५ धारवाड ( मैसूर ) • सन् ९६२, कन्नड ५३ शक ८८४ = [ यह ताम्रपत्र गंग राजा मारसिंह (द्वितीय) के समय पौष कृष्ण ९ मंगलवार, शक ८८४, दुन्दुभि संवत्सर, उत्तरायण संक्रान्तिके दिन दिया गया था। इसमें राजा द्वारा मेलपाडिके स्कन्धावारसे कोंगल देशमें Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८६ ५४ जैनशिलालेख-संग्रह स्थित कादलरु ग्राम एलाचार्यको अर्पण किये जानेका उल्लेख है । उसकी माता कल्लब्बे-द्वारा निर्मित जिनालयके लिए यह दान दिया गया था । एलाचार्यको गुरुपरम्परामे निम्न नाम दिये हैं सूरस्थ गणके प्रभाचन्द्र योगीश-कल्नेलेदेव-रविचन्द्रमुनीश्वर-रविनन्दिदेव-एलाचार्य।] [रि० सा० ए० १९३४-३५ क० ए० २३ पृ० ७] कुडलर ( मैसूर ) शक ८८४ = सन् ५६२, संस्कन-कन्नड [ इस ताम्रपत्रमे गंग राजा मारसिंह-द्वारा मुंजार्य अपर नाम वादिघंघल भट्टको चैत्र शु० ५ शक ८८४, रुधिरोद्गारि संवत्सरके दिन गुरुदक्षिणाके रूपमे पूनाटु प्रदेशका बागियूर ग्राम दान दिये जानेका उल्लेख है। मुंजार्य पराशर गोत्रका ब्राह्मण था तथा 'स्याद्वादोदयशैलभास्कर-स्याद्वादरूपी उदयपर्वतके लिए सूर्यके समान था । ] [ ए० रि० म० १९२१ पृ० १८ ] कोकिवाड ( धारवाड, मैसूर ) १०वीं सदी, कझड [ यह लेव जिनशासनको प्रशंसासे प्रारम्भ होता है। राष्ट्रकूट राजा खोट्टिग तथा उनके सामन्त गंगवंशीय सत्यवाक्य कोंगुणिवर्म धर्ममहाराजका इसमे उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ८९ पृ० ३५ ] लक्ष्मेश्वर (मैसूर ) शक ८९३ = सन् ९७१, काड [ यह लेख बहुत घिस गया है। गंग राजा मारसिंघदेवके समय Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -९.] दानबुलपाडव विडिगनवलेके लेख कार्तिक शु० (?) शक ८९३, प्रजापति संवत्सरके दिन शंखजिनालयको कुछ दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र० ई० ३० पृ० १६३ ] ८६ दालवुलपाडु ( जि० कडप्पा, आन्ध्र) १०वीं सदी ( लगभग सन् १७२ ), संस्कृत-काल मग्न जैन मन्दिरमें स्थित मूर्तिके पादपीठपर [ इस लेखमें राष्ट्रकूट सम्राट् नित्यवर्ष ( इन्द्र ४)द्वारा शान्तिनाथके अभिषेकके लिए यह पादपीठ बनवानेका निर्देश है।] [इ० म० कडप्पा १४८ ] ० बिंडिगनवले ( मैसूर ) शक ८९७ = सन् ९७५, काड़ पहली ओर , मद्रमस्तु जि- २ नशासना- ३ य श्रीमत् ४ सकवर्ष ८- ५. ९७य यु- ६ वसंवत्सर७ द आषाड- ८ मासद शु- ९ छ दशमियु १० सोमवार ११ बुं स्वातिनदूसरी ओर १२ अत्रमुमा १३ गे अमृत्त- १४ ब्वे कन्तिय १५ रुरदु नोन्तु १६ समाधि १७ यिं (मुडिपि) १८ दरवर म २० त्तपरोप२१ कारिगल प- २२ अनन्दिमहातीसरी भोर Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख-संग्रह [९१२३ रकरवर्गे २४ नेय २६ निलिसिदर् [ यह लेख एक स्तम्भके तीन बाजुओंपर खुदा है। इसमें अमृतब्बेकन्ति नामक महिलाके समाधि-मरणका तथा उसके पुत्र पद्मनन्दिभट्टारकद्वारा इस स्तम्भको स्थापनाका उल्लेख है । तिथि आषाढ़ शु० १०, सोमवार, शक ८९७, युवसंवत्सर, इस प्रकार दी है। ] [ए० रि० मै० १९३६ पृ० १९२ ] बेलट्टि ( धारवाड, मैसूर) (शक ) ९५१ = सन् ९९०, कन्नड [ जोगीबण्डि नामक पाषाणपर यह लेख है। अज्जरय्यके पेर्गडे आयतवर्मा द्वारा निर्मित बसदिका इसमे उल्लेख है। वर्ष ९११ दिया है जो सम्भवतः शकवर्षका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० २०४ पृ० ३८ ] वेडल (जि. उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् ९९९, तमिल पाण्डार मडम् नामक पहाड़ीकी एक गुहाके आगे [ यह लेख चोल राजा राजकेसरिवर्मन्के १४ वें वर्षका है। इसमें गुणकोतिभटारके शिष्य कनकवीर कुरट्टिका तथा मादेवी अरिन्दमंगलम्का उल्लेख है। ] [इ० म० उत्तर अर्काट ७४४ ] खण्डगिरि-ललतेंदुकेसरि गुहा १०वीं सदी, संस्कृत-नागरी १ ओं श्री उद्योतकेसरिविजयराज्यसंवत् ५ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खण्डगिरिके लेख २ श्री कुमारपर्वतस्थाने जिर्णवापि जिर्ण इसण ३ उद्योतित तस्मिन थाने चतुर्विन्सति तीर्थकर 8 स्थापित प्रतिष्ठा (का) ले ह (रि) ओप जसनंदिक ५ ...श्रीपारस्यनाथस्य कर्मखयः - ९५ ] [ यह लेख राजा उद्योतकेसरीके ५वें वर्षका है । कुमारपर्वतकी वापी तथा मन्दिरोका जीर्णोद्धार करके चौबीस तीर्थकरोंकी मूर्तियों की स्थापनाका इसमें उल्लेख है । कुमारपर्वत खण्डगिरिका पुराना नाम है । अन्तिम भागमें जसनंदि ( यशोनन्दि ) का उल्लेख हुआ है । ] [ ए० ई० १३ पृ० १६६ ] ६४ खण्डगिरि - नवमुनि गुहा १०वीं सदी, संस्कृत - नागरी ५७ १ ओं श्रीमदुद्योतकेसरिदेवस्य प्रवर्धमाने विजयराज्ये संवत १८ २ श्रीश्रार्यसंघप्रतिवद्ध ग्रह कुळवि निर्गत देशी गणाचार्य श्रीकुलचन्द्र ३ भट्टारकस्य तस्य शिष्यशुभचन्द्रस्य [ इसका साराश जै० शि० सं० भाग २मे क्रमांक २४५ में दिया है । किन्तु उस समय मूल लेख प्राप्त नहीं हुआ था। इसमे राजा उद्योतकेसरीके १८वें वर्ष मे देशीगणके आचार्य कुलचन्द्रके शिष्य शुभचन्द्रका उल्लेख किया है । ] [ ए० इ० १३ पृ० १६५ ] ६५ खण्डगिरि - नवमुनि गुहा १०वीं सदी, संस्कृत नागरी १ ओं श्रीआचार्य कुलचन्द्रस्य तस्य २ शिष्य खल्ल शुभचन्द्रस्य ३ छात्र विजो Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ९६ [ इस लेख मे आचार्य कुलचन्द्र के शिष्य शुभचन्द्र के शिष्य विजो (?) का निर्देश है । ] [ ए० ई० १३ पृ० १६६ ] ५८ १६ ईचवाडि (मैसूर) १०वीं सदी, कचड एरेयपं तत्सुत वीर "बूतुग पेर्माडि तदपस्यणू राचमल्लनहितरमल । अन्ता रायमल्लनिन्देरेयंगनातन मगं २ ३ ....नातन पुत्रं सैगोट्ट राचमल्ल ४ मिडुकदिरलेडद कथ्योल मदमातंगमने पिडिड निलिसिद । ५ "क्काणूरगणद आचार्यावतारमेन्तेन्दोडे । दक्षिणदेश निवासि । गंगमहोमण्डलिक.... ६. ''''नन्दिभट्टारकरुं बालचन्द्र भट्टारकरूं मेघचन्द्र त्रैविद्यदेवरु .... ७ ... पेम्पं तलेदं गुणनन्दिदेव शब्दब्रह्म । अवरिं बलिकं अकलंक सिंहासनम... ८ मदमात गरुं बौद्धवादितिमिरपतंगरुं सांख्यवादिकुलाद्रिवज्रवररुं नैयायिका... ९ सिद्धान्तवार्षिवर्धन सुधाकररुं । सकलसाहित्यप्रवीणरुं । मनोमवमरहित... १० श्रीमतु प्रमाचन्द्रसिद्धान्तदेवर शिष्यरु अनवद्याचार्यर माघनन्दिसिद्धान्त... १५ अवरं शिष्यरु | चतुरास्यं चतुरोक्तिथिं प्रभुतेयिन्दीशं गुणव्यापकस्थितियं विष्णु सुबुद्धि वि 1 १२ सिद्धान्त विभूषणंगेनिसिदं श्रीमत्प्रमाचन्द्रमं । अवर सधर्मरु नुतसिद्धान्त --- Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -९६ ] fearfrer लेख १३ मप्रतिमं तानेने पेम्पुवेत मुदितोदान्तर् जगद्वन्थर ऊर्जितरु योतित ५९ १४ मनोभवविशालहरनिटिलाक्षं वादिमदरदनिबिदुवं मेदिषमृगराज जयतु श्रुतकीर्तिबुधं । .... १५ वादिराजं दलेनिसिदं बोलु । भवर सधर्मरु | चारित्रचक्रि सम्यमधारि क्राणूर गणा वादिमद निरुतं .... १६ शिष्यरु | वरशास्त्राम्बुधिवर्धनहरिणांक तानेनलेसेदं— १७ वारणवागि कीर्ति नर्तिसुबुदु पेम्पवेत्तनतिमेरुगे 'दलागे सेवुदु सद्गुण." १८ नीडि पिरिदु निस्तेजमै दिई नोडदे प्रभुतेयं तालुदिप ... करं ... १९ नुडिगलु सत्य सुवर्णभूषणगणं सुरलंगलं करण्डकं तनुतप" २० धेनुव्रतिरूपमं तलेदुदो भूजातवी धरयोलु तापस... २१ मुनिपं रत्नाकरं । इन्तेनिसि नेगल्दाचार्य तिलकरूं जिन सद्म.... २२ वारिधिशीत रोचि स्तुत्यं जिन पदाब्जद्वय भृंगं भुजबल गंगं २३ तम्म गंगान्वयदवर पडिसलिसुत्तुं मरवेस नागि माडिसि ..... २४ दत्ति करे सर्वबाधापरिहारा कंरेय केलगे तलवृत्ति... २५ मारसिंगननुजं "सन्द नन्नियगंगक्षितिपालकं तदनुजं ... २६ वल्लि येम्बूरुमं बसदि ''''मूडलुगद्दे'''' २७ गुड्ड ननियगंगदेवं एम्बूरुमं आगद्देयि तें ..... २८ सिद्धान्तदेवर गुड्डु रक्कसगंगं नन्नियगंगं सीमेयिं तेंक..." २९ मूडणदेसेनह कल्लुगलु ३० मुनिचन्द्रसिद्धान्तदेवर गुडुं । भुजबलदिं शत्रु महीभुज'''' ( ३१ से ३६ तक पक्तियाँ घिस गयी हैं ) Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० जैनशिलालेख संग्रह ३७ तळप्रहारदोले नूं गुटदिन्दे मीण्टुवं कबुंगु ३८ धर्ममहाराजाधिराजपरमेश्वरं । कोलालपुरवरेश्वरं । नन्दगिरिनाथं मदगजेन्द्र .... ३९ मण्डलिक देवेन्द्र दर्पोद्धतारातिवनजवन वेदण्डं ४० देवं माडिसिद तीर्थद बसदियं ... ४१ ... चन्द्रसिद्धान्तदेवर शिष्यर मुख्यवागि बिट्ट दत्ति.... ४२ ननियगंगदेवनुं पट्टमहादेवि ... ४३ काणिकंयं नाडूरगलोलु पणवं कोहरा .... - [ इस विस्तृत लेखकी पहली कुछ पक्तियाँ टूट गयी है तथा अन्य पंक्तियों के बहुत से अक्षर घिसे हैं। गंगवंशके राजा रक्कसगंग तथा नन्नियगंगके समय यह लेख लिखा गया था । इनके द्वारा तट्टिकेरे ग्रामको कुछ भूमि चन्द्र सिद्धान्तदेवको दान दी गयी थी। लेख में क्राणूगणकी आचार्यपरम्परा इस प्रकार बतलायी है . ....नन्दिभट्टारक, बालचन्द्रभट्टारक, मेघचन्द्रत्रैविद्यदेव, गुणनन्दि शब्दब्रह्म, अकलंक, प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेव, माघनन्दिसिद्धान्तदेव, प्रभाचन्द्र (द्वितीय), उनके गुरुबन्धु श्रुतकीर्ति, ( यहाँ कुछ नाम घिस गये है ) । अन्तमे मुनिचन्द्र सिद्धान्तदेवके एक शिष्यका उल्लेख है । राजा नन्नियगंगकी वंशावलीमे बूतुंग पेर्माडि, एरेयप्प, राजमल्ल, एरेयंग संगोट्ट तथा राचमल्ल इनका उल्लेख किया है । ] [ ए०रि० मै० १९२३ पृ० ११४ ] ६७ दानवुलपाडु स्तंभलेख (जि० कडप्पा, आन्ध्र) १०वीं सदी, संस्कृत-कन्नड़ पहला भाग [ ९६ ५ पतिय बेसदिंद ३ दिनक्कि गेलदु परिपा २ महितरन तिकोप ४ कि (सि) दं । चतुरुदधि ―― Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -९७ ] दानवुलपाहु स्तंभलेख ५ वलयमेलमन ६ तिरथनी दण्ड(ना)य७ के श्रीविजयं ॥(१) ८ तुरगधलंगल९ नाहिद करिघटे- १० यं पिरियनेर११ (वि)यं बल्लणियं । १२ धुरदेडे(योलि)रि१३ दु गेलगुं करद(सि) १४ करमरिदु रण१५ दोलनुपमकविय ॥(२) १६ कुपितवति श्रीवि१७ जये बलिकुलति- १८ लके नरेन्द्रदण्डाधि१९ पनौ। गिरिरगि(रि)न- २० मवनं जलमज२१ ल रिपुम(मूहब- २२ लमबलं ।।(३) दूसरा माग २३ वसुमतियोल- २४ गिलदेण्टुं (दे)सेगल २५ कुसुकुरुमनेयदि २६ माणदे मतं । (बिस)२७ रुहगर्माण्डक्क प- २८ सरिसिदुदु (की)ति ने२९ हननुपमकथिय ।।(४) ३० आश्रितजनकल्पत३१ रुर्विश्रुतरि(पु)नृप- ३२ तितृणदवानलमूर्तिः । ३३ श्रीवनितास्मरपाशः ३४ पातुस्तव बाहु में३५ दिनी श्रीविजय ॥(५) ३६ चतुरुदधिवलय३७ वलयितवसुन्ध- ३८ रामिन्द्रशासनात् सं३९ रक्ष(न्) । श्रीविजय ४० दण्डनायक (जी)व ४१ चिरं दानधर्मनि १२ रतमनस्क ।।(६) ४३ मंगल माहाश्रीः ।। तीसरा भाग ४४ मद्रमस्तु भगवते (जि)नशासना(य)। ४५ अट्टविधकर्ममेल्लमनटुं- ४६ बरिगोण्डकोडिपे(ने)बुदे वगेयिं। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जी जैनशिलालेख-संग्रह [ ९७ ४७ (पु)हिदनुदात्तसस्वं नेट्टने विबु ४८ धेन्द्रवन्धनरिविंगोजम् ॥(०) ४९ तानरिदु तो(र)दु नेट्टने मानि- ५० सवालावुर्देदु संन्यासनदोक् । ५१ मानसिके गिडदे कोण्डो(न)नून- ५२ सुखास्पदमनलतियोल श्रीविजयं ।।(८) ५३ निर्गतमय नीनर(सं)सर्ग- ५४ म नानोल्लेनेन्दु पेसि विसु५५ वं । सगंद मोगमनुण्डपत्र- ५६ रोक्कडियिट्टोनरिदोननुप५७ मकवियं ॥(९)दण्डिन साम ५८ ग्रिगे परमण्डलमल्लाडे ५९ (स)वविक्रमतुंगं । दण्डिन बी- ६० रश्रीगोलगण्डं श्रादण्डनायकं ६५ श्रीविजयं ।।(१०) (च)ण्डपराक्र ६२ मनुरदरिमण्डलिकरनहि पि६३ डिदु पतिगोप्पिमुधोलगण्ड प्रच-६४ ण्डनीमूमण्डल दोल दण्डनायकं ६५ श्रीविजयं ।।(११) अनुपम- ६६ कविय सेनबोवं गु६७ णवर्म बरेदं ॥ [ यह शिलालेख दण्डनायक श्रीविजयकी प्रशंसामें लिखा गया है। अरिकिंगोज, अनुपमकवि तथा सर्वविक्रमतुंग ये इसके विरुद थे। यह बलिकुलमै उत्पन्न हुआ था तथा इन्द्र राजकी सेनाका पराक्रमी सेनापति था। इन्द्रराज ( तृतीय ) ही सम्भवतः यहाँ उल्लिखित है जिसका राज्य सन् ९१४ से ९२२ तक था। लेखके तीसरे भागमें कहा है कि श्रीविजयने समस्त वैभव छोड़कर संन्यास धारण किया था। यह लेख श्रीविजयके सेवक गुणवर्माने लिखा था।] [ए० इं० १० पृ० १४७ ] चोलवाण्डिपुरम् ( दक्षिण अर्काट, मद्रास ) १०वीं सदी, तमिल [ यह लेख राजा गण्डरादित्य मुम्मुडि चोलके दूसरे वर्षका है। इसमें चेदि सिद्धवडवन् नामक शासकको प्रशंसा है। उसे कोवलका स्वामी तथा Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१०.] मसुलिपट्टम तानपत्र ६३ मलयकुलोद्भव कहा है। स्थानीय पहाडीपर उत्कीर्ण मूर्तियोंकी पूजाके लिए उसने कुछ दान दिया था। कुरण्डिके गुणवीर भटारका भी इसमे उल्लेख है। उत्कीर्ण मूर्तियां महावीर, पार्श्वनाथ, गोम्मटदेव तथा पद्मावती की है। यहीके एक अन्य लेखमे १०वों सदीकी लिपिमे कहा है कि इन मूर्तियों ( तेवारम् ) का निर्माण वेलि कोंगरैयर पुत्तडिगलने किया था।] [रि० सा० ए० १९३६-३७ क्र०२५१-५२ १०३४ ] मसुलिपट्टम ताम्रपत्र ( आन्ध्र) १०वीं सदी, संस्कृत-तेलुगु , ज्याकृष्टरत्नखचितायतशागचापो यस्सेन्द्र कार्मुकविनीलपयोद वृन्दम् । निमर्मयन्निव विमा२ ति स कृष्णकान्तिर्विष्णुश्शिवन्दिशतु वोवतत्रिलोकः॥ (.) स्वस्ति श्रीमतां सकलभुवनसंस्तूयमानमा३ नव्यसगोत्राणां हारीतिपुत्राणां कौशिकीवरप्रसादलन्धराज्याना मातृगणपरिपालितानां स्वामि४ महासेनपादानुध्यातानां भगवन्नारायणप्रसादसमासादितवरवराह लांछनेक्ष५ णवीकृतारातिमण्डलानामश्वमेधावभृथस्नानपवित्रीकृतवपुषां चालुक्यानां कु६ लमलंकरिष्णोस्सत्याश्रयवल्लभेन्द्रस्य भ्राता कुजविष्णुवर्धननृप तिरष्टादशवर्षाणि७ वेंगीदेशमपालयत् । तदात्मजो जयसिंहस्त्रयस्त्रिंशतम् । तनुजे न्द्रराजनन्दनो विष्णुवर्धनो न८ व । तत्सूनुमगियुवराजः पंचविंशतिम् । तत्पुत्री जयसिंहसयो दश । तदवर Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का जैनशिलालेख-संग्रह [१००९ जः कोकिलिष्षण्मासान् । तस्य ज्येष्ठो भ्राता विष्णुवर्धनस्तमुचाव्य सप्तत्रिंशतम् । तत्पुत्रो -वि दूसरा पत्र : पहला भाग १. जयादित्यमट्टारकोष्टादश । तत्सुतो विष्णुवर्धनष्षट्त्रिंशतम् । नरेन्द्रमृगराजा ( ख्यो ) मृ१३ गराज ( पराक्रमः । ) विजयादित्य (भूपालः) चत्वारि (शत्समा) (२) तत्पुत्रः कलिविष्णुवर्ध१२ नो (ध्यर्धवर्षम् । तत्सु)तो गुणगविजयादित्यश्चतुश्चत्वारिंशतम्। तद्भातुर्योवराज्यासतमहि१३ (मभृतो) विक्रमादित्यभूपाजातश्चालुक्यमीमस्सकलनृपगु (णो त्कृ) ष्टचारित्रपात्रः । दानी १४ ......"रसकरः सार्वभौमप्रतापो राज्यं कृत्वा प्र (या) तः विद शपतिपदं १५ (त्रिंशदब्दप्रमा) गं ॥ (३) तत्पुत्रः कलियत्तिगण्डविजयादित्य षण्मासान् । तत्सूनुरम्मराजस्स१६ (8) वर्षाणि । तस्सुतं विजयादित्यं कण्ठिकाक्रमायातपट्टामि षेकं बालमुच्चाम्च तालराजो राज्यम्मास१७ ( मे ) कं । चालुक्यभीमसुतो विक्रमादित्यस्तं हत्वा एकादश___मासान् । विजयादिन्यो वेंगीनाथः कलियत्ति१८ गण्डनामा धामा (न् ।) तस्य सती मलांबा तजश्रीराजमीमनृपतिरजेयः॥ (४) सत्यत्यागामिमानाद्यखि दूसरा पत्रः दूसरा भाग १९ लगुणयुतो राजमार्ताण्डमाजौ। जित्वोग्रम्मल्लपाख्यं ससुतमधि बलं द्रोहि (गो) प्यन्तकामो । द्विभीमो राष्ट्र २० कूटप्रबलबलतमस्संहरो द्वादशाब्दं । राज्यं कृत्वागमस्स प्रणिहित (सुयशो ) धर्मसन्तानवर्गः।। (५) वि Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१०.] मसुलिपट्टम ताम्रपत्र २१ ष्णोः पशव शंभोरिव गिरितनया यस्य देवी सपहा । संशुद्धा (हैह ) नामिजकु ( लवि ) षये पुण्यला (व)२२ ण्यगण्या । लोकांबा तस्सुतोभून विजितपरबलोवेगिनायोम्मराजो । राजद्राजाधिराजो ( जितरिपु ) म२३ कुटोघृष्टपादारविन्दः॥ (६) बेंगी ( राज्याभिषिक्तो) निजरिपु विजयादित्यमुद्यत्समर्थ । जित्वा ( नेकाजिरंग)२४ प्रजितपरबलं ( कण्ठिकादामकण्ठं । ) दायादद्रोहिवर्गानपि सकर बलः क्षत्रि (या) दिस्यद२५ वो। ध्वस्तारिश्चान्तराशिविलसितकमलस्सप्रतापो विभाति ॥ (७) यनिर्मातुनिमित्तं कृतमिदमखिलं विष्टपं हि २६ त्रिमूर्तरात्मानं चास्मनास्मादिह सकलगुणे ( राजभी )-मोद्वहो भूत् तेजोराशिः प्रजानां पतिरधिकव२७ ( ल ) स्सप्रतापाष्टमूर्तिस्सोयन्देवोम्मराजो जनगुणजनकोन (न्य) राजाप्रचिन्हः ॥ (८) स्वताः पूर्व तीसरा पत्र : पहला माग २८ नाथा नलनहुषहरिश्चन्द्र रामादयोपि प्रत्यक्षास्ते यशोभिर्गुणवपुर चला स्वैरिदानी-- २९ मदृष्टाः । यस्योच्चैः कीर्तिरा (शि ) गण इव जगत्यद्वितीयो दयोस्मिन् । राजद्राजाधिराजस्स ज३० यति विजयादित्यदेवोम्मराजः॥ (९) गद्यम् । स जगतीपतिरम्म राजो राजमहेन्द्र मोगीन्द्र सह३१ नमोगोपहासिदीर्घदक्षिणकबाहुसान्द्रितविश्वविश्वमरामारः । नारायण ३२ इव निरन्तरानन्तमोगास्पदः । विधुरिव सुखविराजितः । पिता मह इव कम Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह ३३ लासनः । गिरिविश इव धराधरसुताराधितः । रत्नाकर इव समस्तशरणागतमभृदाश्रयः । सुवर्णाचल इव सुवर्णोत्तुंगोदयः । हिमाचल ३५ इव सिंहासनोल्लासितवमरीवालन्यजन विराजमानलीलः ॥ स ३६ स्तभुवनाश्रयश्रीविजयादित्यमहाराजाधिराजपरमेश्वरपरम तीसरा पत्र : दूसरा भाग ३७ भट्टारकः । वेलनाण्डविषयनिवासिनो राष्ट्रकूटप्रमुखान् कुटुम्बि नस्समस्त३८ सामन्ता(न्त):पुरमहामात्रपुरोहितामात्यश्रेष्टिसेनापतिश्रीकरण - धर्माध्यक्ष३९ द्वादशस्थानाधिपतीन् समाहूयेस्थमाज्ञापयति विदितमस्तु वः। श्रीमानुदपा४० दि महान्त्रिणयनकुलसाधु""ग्रेव्याख्यो। गोत्रः सिंहासनतो ४१ विदितो नरवाहनश्चलुक्ये(शानाम् ॥ १०) श्रीकरणगुरुगुरुरिव विबुधगुरु४२ स्स(क)लरा(जसिद्धान्तज्ञः) । नरवाहन इत्यासीन्न्यक्कृतनरवाह (नः)प्रकाशित४३ यशसा ।।(११) यस्याग्रसुतो गुणवान् मेलपराजो गुणप्रधानो दानी। मानी मा४४ नवचरितो मानवदेवो जिनेन्द्रपदपभालिः ॥(१२) तस्य सती मेण्डांबा सीतेव पति४५ व्रता जिनबतचरिता। सत्यवती (वि)नयवती सतताहारप्रदायिनी तधर्मा । (१३)तज्जो Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिप ताम्रपत्र चौथा पत्र : पहला माग 1 ४६ (सु) तौ प्रसिद्धौ बुद्धिपरौ सकलशास्त्रश अधिवेकौ । मीमनरवाहनायौ विख्यातौ रा - १०० ] ४७ मलक्ष्मणाविव लोके ॥ (१४) यौ मीमार्जुनसदृशौ बलयुतबलदेववासुदेव (समा) नौ (न) - ४८ कुल सहदेवतुल्यौ तौ जातौ जैनधर्मनिरतचरित्रौ ।। (१५) श्रीमत्चालुक्य मीम ( क्षितिपतिकृप) -- ४९ या लब्धसामन्तचिन्हौ श्रोद्वारौवं बरष्ठोवनपदविलस (श्चा) मरच्छत्र (लोलौ ।) रिकस्थौ शिखिरुहपटलच्छाद्य सत्कर्करीकौ जातौ चालुक्य(चुलौ) ५१. ''''करिहयौ काहलाद्यभ्युपेतौ ।। (१६) जैनाचार्यों यदीयौ गुरुरखि५२ लगुणश्चन्द्र सेनाख्य शिष्यो शास्त्रज्ञो नाथसेनो मुनिनुतजयसेनो मुनिर्दोक्षितात्मा । सि--- ५० www. ५३ द्धान्तज्ञः कलाज्ञः परसमयपटुः सन्नुतोत्कृष्टवृत्तस्सत्पात्रः श्रावकाणां क्षपणकसु (ज) -- ५४ नक्षुल्लकायज्जिकानां ।। ( १७ ) तस्मै ताभ्यां राजमीमनरवाहनाभ्यां विजयवाटिकायां चौथा पत्र : दूसरा भाग ५५ जिनमवनयुग निर्मितमेतदूधर्मार्थमस्माभिस्सर्व करपरिहारं देवभोगी ५६ कृत्य पेद्दगालिडिपरु नाम ग्रामो दत्तः । अस्यावधयः । पूर्वतः मण्ड्य ५७ रिपोळ रुसुन यिसु कट्टलचेरुवुन नडिमि दूब । आग्नेयतः आलपर्तियुं जूं दुरि Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ १०० ५० युं मुख्य लकुट्टू (न) बूरुव पडुव । दक्षिणतः चूं टूरि प्रान्त (पति) युसरंबुन कुण्ड ५९ विड्डिगुण्ठ । नैऋत्यतः चूं टूरियम्मपाटयन्वगुडि । ( पश्चिमतः ) रेटि ( प ) डुमरिदार | वा ६० यव्यतः वलिवेरिपोलगरुसुन गारलगुण्ठ । उत्तरतः तप्पराल प (ड) व | ई ६१ शानत: कोडगालिडिपर्तिर्यु ( वलिवेरियुं मु ) य्यलकुट्टुन नडुपनिगुण्ठ || तस्य (स्थे) यादलं - ६२ ध्यं सुचिरमुरुतरं ( शासन राजकोक्तं । सत्कीत वैगिपस्य प्रकटगुणनिधेरम्मराजस्य पूज्यं । ६३ तत्रेदं शा ( स ) नं ( पालित) जिन निगमं शौर्य भीतान्यनाथवातो (च्चै )मौलिमालामणिकमकरिकोमल्लि ६८ पाँचवाँ पत्र ६४ कोल्लासितांत्रेः ॥ (१७) अस्योपरि न केनचिद्बाधा कर्तव्या यः करोति स पंचमहापातकसं ६५-६९ युक्तो भवति । तथा चोक्तं व्यासेन || ( नित्य के शापात्मक श्लोक ) ७० श्राज्ञप्तिः कटकराजः जयन्ताचा - ७१ येण लिखितम् ॥ [ इस ताम्रपत्रमें मदनूर तथा कलचुम्बूरु लेखोके समान पूर्वीय चालुक्योंकी वंशावली कुब्ज विष्णुवर्धन से प्रारम्भ कर अम्मराज ( द्वितीय ) विजयादित्य तक दी गयी है । अम्मराजके पिता चालुक्य भीम ( द्वितीय ) का एक सामन्त नरवाहन था जो त्रिनयनकुलमे उत्पन्न हुआ था तथा जैनधर्मीय था । उसका पुत्र मेलपराज था । इसकी पत्नी मेण्डाबाको दो पुत्र हुए राजभीम तथा नरवाहन ( द्वितीय ) । जैनाचार्य चन्द्रसेनके शिष्य नाथसेन - Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१०२ ] वरुण व मण्णेके लेख ( जयसेनके गुरु ) इन दोनोंके गुरु थे। इनने विजयवाटिकामें दो जिनमन्दिर बनवाये थे । उनके लिए अम्मराजने वेलनाण्डु प्रदेशका पेद्दगालिङिपर्स नामक ग्राम दान दिया था | ] [ ए० ई० २४ पृ० २६८ ] १०१ वरुण ( मैसूर ) १० वी सदी, कन्नड़ आ १ श्री श्रीमत्पर... यि राजगुरु - २ मण्डलाचार्य विथमकरर् अत्रिगोत्र परशुराम आचन चामुण्डरनु ६९ ३ भठरकरु वारुणद सांथिनाथस्वामिय माडिसिदरु आवर प्रिय दुणदुचल ४ दाचार्य मकलु विजय-क्षण बमण मडिदरु [ इस लेख मे आचन चामुण्डर भट्टारक द्वारा वरुण ग्राममें शान्तिनाथमूर्ति अर्पण किये जानेका निर्देश है। यह मूर्ति विजयण्ण और बमण्ण-द्वारा बनायी गयी थी । लेखकी लिपि १०वीं सदीकी प्रतीत होती 1 ।] [ ए०रि० मै० १९४० पृ० १७१ ] १०२ मणे (मैसूर) १०वीं सदी, कन्नड [ इस लेखमे देवेन्द्र पण्डित भट्टारकी शिष्या मारब्बेक न्तिके समाधिमरणका तथा कलिगब्बे कन्ति द्वारा इस निसिधिकी स्थापनाका उल्लेख है । लिपि १०वीं सदीकी है । ] [ ए०रि० मै० १९१७ पृ० ३९ ] Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह उम्मत्तूर (मैसूर ) १०वीं सदी, कबड [ इस लेखमे विमलचन्द्रके शिष्य सोत्तियूरके शासक मारम्मयके पुत्र सिन्दय्यके समाधिमरणका उल्लेख है। लिपि १०वीं सदीकी है । ] [ए. रि० मै० १९१७ पृ. ३९ ] १०४ बूवनहल्लि ( मैसूर ) १०वीं सदी, काड [ यह लेख एक जिनमूर्तिके पादपीठपर है। इस मूर्तिकी स्थापना बालचन्द्र सिद्धान्तभटारके शिप्य क(म)लभद्रगुरु द्वारा की गयी थी। लिपि १०वीं सदीकी है। [ए० रि० मै० १९१३ पृ० ३१ ] अंकनाथपुर ( मैसूर) १०वी सदी, कन्नड [यह लेख अंकनाथेश्वर मन्दिरके छतमें लगा है। प्रभाचन्द्र सिद्धान्तभट्टारकी शिष्या देवियब्बेके समाधिमरणका यह स्मारक है। लिपि १०वीं सदीकी है। [ए० रि० मै० १९१३ पृ० ३१ ] १०६-१०७ अंकनाथपुर ( मैसूर ) १०वीं सदी, कराड [यहाँके सुब्रह्मण्यमन्दिरके छतमे दो निसिधि लेख लगे हैं। एकमे दडिगसेट्टि तथा देवरदासय्यकी माता चामकब्बेका उल्लेख है। दूसरेमें Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -120] होलेनरसीपुर आदिके लेख महानायक रेचय्यके पुत्र अय्वसामिका उल्लेख है जो चातुर्वर्ण श्रमण संघका सहायक था । लिपि १०वीं सदीकी है । ] [ ए०रि० मै० १९१३ पृ० ३१ ] १०८ होलेनरसीपुर (मैसूर) १०वीं सदी, कम १ "म ३ सनं गेटदु ५ तु मुडिपि - [ यह लेख १०वीं सदीकी लिपिमें हैं । इसमें मुनिमुख्य महेन्द्रकीर्तिके समाधिमरणका उल्लेख है । ] [ ए०रि० मै० १९१३ पृ० ३१ ] १०६ अंकनाथपुर (मैसूर) १०वीं सदी, कन्नड [ यह लेख १०वीं सदीकी लिपिमें है । इसमें कदम्ब वंशीय बासबेके पुत्र राचयके समाधिमरणका उल्लेख है । यह लेख बलदेवने स्थापित किया [ ए०रि० मै० १९१३ पृ० ३२ ] था । ] ११० कोडिहलि (माण्डया, मैसूर ) १०वीं सदी, कच ● मगलप्प ९ निऋसिट् ( ल . ) [ इस निसिषि-लेखमें किसी उसकी पुत्री fasक्कने यह समाधि सदीकी प्रतीत होती है । ] 9 २ य्य सन्य ४ एरड नों ६ दन् आतन ८ बिडक्क कल मय्यके समाधिमरणका निर्देश है | स्थापित की थी। [ ए०रि० मैं ० लेखको लिपि १०वीं १९४० पृ० १६० ] Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख-संग्रह [१११ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) १०वीं सदी, कड़ [ यह लेख रसासिद्धलगुट्ट नामक पहाड़ीपर एक पाषाणपर खुदा है। यह श्रीनागसेनदेवका निसिदिलेख है। इसकी लिपि १०वों सदीकी है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० ४५१ पृ० १२६ ] मथुरा १०वीं सदी, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमें १०वीं सदीकी लिपिमें मूलसंघके किसी आचार्यका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ५२७ पृ० ७७ ] कोलक्कुडि ( ज़ि० मदुरा, मद्रास ) १०वीं सदी, तमिल समणरमले पहाड़ीपर जैन मूर्तियोंके उत्तरकी ओर चट्टानपर [ इस लेखमे गुणभद्रदेव तथा चन्द्रप्रभका निर्देश है। लिपिके अनुसार यह लेख १०वीं सदीका होगा । ] [रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र. २४२] वैखर ( मन्दसौर, मध्यप्रदेश) १०वीं सदी, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमें नन्दियडसंघके जैन आचार्य शुभकीति तथा विमलकीतिका उल्लेख है । लिपि १०वीं सदीकी है। ] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० २०३ पृ० ४५ ] Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -११७ ] कमलापुरम् आदिके लेख कमलापुरम् ( बेल्लारी, मैसूर) १०वीं सदी, कन्नड [ यह लेख १०वीं सदीको लिपिमें है। इसमें गुणचन्द्रमुनि, इन्द्रनन्दिमुनि तथा एक महिलाका उल्लेख है। ] [रि० इ० ए० १९५२-५३ ० २२२ पृ० ४८ ] ११६ काशिवल ( बिजनोर, उत्तरप्रदेश) संवत् १०६(१) = सन् १००५, संस्कृत-नागरी [ यह लेख एक जैन मूर्तिके पादपोठपर है। इसमें भरतका उल्लेख है तथा संवत् १०६ यह तिथि दी है । सम्भवतः संवत्का अन्तिम अंक लुप्त हुआ है। [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ४३६ पृ०७१] ११७ लक्कुण्डि ( मैसूर ) शक ९२९ = सन् १००७, कन्नड [यह लेख चालुक्य सम्राट् आहवमल्ल ( जो यहाँ सत्याश्रयका उपनाम होना चाहिए ) के सामन्त वाजिकुलके नागदेवके समयका है। इसकी पत्नी अत्तियब्बेने लोक्किगुण्डिमे एक जिनालय बनवाकर उसे कुछ भूमि दान दी थी। यह दान उसके गुरु सूरस्थगण-कोरूरगच्छके अहणन्दि - पण्डितको दिया गया था। दानकी तिथि फाल्गुन शु० ८, शक ९२९, प्लवंग संवत्सर ऐसी दी है। उस समय अत्तियज्बेका पुत्र पडेवल तैल मासवाडि प्रदेशका प्रमुख था।] [ मूल कन्नडमें मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० ३९ ] Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [११४ ११८ ११८ कोप्पल ( रायचूर, मैसूर) राज्यवर्ष ५ = सन् १००८, कन्नड, यह लेख चालुक्य राजा विक्रमादित्य के राज्यवर्ष १का है। इसमें सिंहनन्दि आचार्यके इंगिनीमरणका तथा उनकी स्मृतिमे कल्याणकीर्ति-द्वारा एक जिनेन्द्र चैत्यालयके निर्माणका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र. १९९ पृ० ३७ ] उक्काल ( जि० उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् १.०९, तमिल पेरुमाल मन्दिरकं एक मण्डपको उत्तरी दीवालपर [ यह लेख चोल राजा राजराजकेसरिवर्मन् ( राजराज १ ) के २४वें वर्षका है। जो ब्राह्मण, वैखानस और जैन चोल, पाण्डल तथा तोण्डमण्डलके गांवोंके अधिकारी हैं वे यदि भूमिकर दो वर्ष तक न दें तो उनकी जमीन जब्त करानेका इसमे आदेश दिया है। [इ० म० उत्तर अर्काट ३०८ ] १२० बेचारक बोमलापुर ( मैसूर ) शक ९३५ = सन् १०१३, कन्नड , सकवर्ष ९३५ २ नेय प्रमादीच ३ संवत्सरद भा४ पाढ सु दसमि ५ सोमवारदोल ६ माकम्बेगतिय ७ मटिबद बीचग- ८ वुड परोक्षवि- ९ नयं निसिधिगे. १० य कल्लनिरि- १ सिदं [ यह लेख माकब्बेगन्ति नामक महिलाके समाधिमरणका स्मारक है Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१२३] तोण्डर मादिके लेख ०५ जो बीचगवुडने स्थापित किया था। तिथि आषाढ शु० १०, सोमवार, शक ९३५, प्रमादी संवत्सर ऐसी दी है । ] [ए० रि० मै० १९४२ पृ० २०७ ] तोण्डर ( द० अर्काट, मद्रास) ११वीं सदी पूर्वार्ध, तमिल [ यह लेख चोल राजा परकेसरिवर्मन् ( सम्भवतः राजेन्द्र १ ) के राज्यवर्ष ३का है। विष्णकोवरयन् वयिरि मलैयन् नामक शासक-द्वारा वज्रसिंग इलपेरुमानडिगल नामक जैन आचार्यको गुणनेरिमंगलम् अपरनाम वलुवामोलि आरान्दमंगलम् नामक ग्राम तथा तोण्डूर ग्रामके कुछ उद्यान आदि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। ] [रि० सा० ए० १९३४-३५ क्र० ८३ पृ० १६ ] १२२ उदयपुर (राजस्थान) संवत् १०७६ = सन् १०१९, संस्कृत-नागरी [ उदयपुरके वासुपूज्यमन्दिरको एक मूर्ति । यह मूर्ति संवत् १०७६ में वाहिल सोडक-द्वारा स्थापित की गयी थी ऐसा इस लेखमे कहा है। ] । [रि० आ० स० १९३०-३४ पृ० २२६ ] मरोल ( मैसूर ) शक ९४६ % सन् ०२४, कन्नड [यह लेख चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्ल (प्रथम) के समय शक ९४६, रक्ताक्षि संवत्सरके उत्तरायण-संक्रमणके अवसरपर लिखा गया था। इसमें Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१२४नोलम्बवाडि तथा करिविडि प्रदेशके सामन्त नोलम्बवंशीय घटेयंककार-द्वारा मरवोलल्की बसदिके लिए कुछ भूमि अर्पण किये जानेका उल्लेख है। यह ग्राम उस समय सत्तिग ( सत्याश्रय ) की पुत्री महादेवीके शासनमे था । जैन आचार्य अनन्तवीर्य, गुणकीति सिद्धान्तभट्टारक तथा उनके शिष्य देवकोतिपण्डितका भी इसमे उल्लेख है।] [ मूल कन्नडमे मुद्रित ] [सा० इ० इ० ११ १०५० ] १२४ हैदराबाद म्युज़ियम ( आन्ध्र ) शक ९४९ = सन् १०२७. कन्नड । [यह लेख चालुक्य राजा जयसिंह २ के राज्यकालका है। इस राजाकी कन्या सोमलदेवी-द्वारा पिरियमोसंगिके बसदिके लिए कुछ दानका इसमें उल्लेख है । तिथि शक ९४९ प्रभव संवत्सर ऐसी दी है।] [ एन्शण्ट इण्डिया १९४९ पृ० ४५ ] १२५ होसर ( मैसूर ) शक ९५० = सन् १०२८, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्ल (१) के समय शक ९५०, विभव संवत्सरकी उत्तरायणसंक्रान्तिके दिन पौष शु० १३, रविवारको लिखा गया था। केशवरसका पुत्र दण्डनायक वावणरस तथा उसका बन्धु महासामन्ताधिपति श्रीपादरस इनके शासनका इसमे उल्लेख है। वावणरसकी पत्नी रेवकब्बरसिके अधीन सिन्दरस पोसवूर नगरपर शासन कर रहा था। उस समय आय्चगावुण्डने पोसवूरमे अपनी पत्नी कंचिकब्बेके स्मरणार्थ एक बसदि बनायी और उसे कुछ भूमि तथा एक उद्यान अर्पण किया। आयचगावुण्डके पुत्र एरकके पुत्र पोलेगने यह लेख स्थापित किया था। ये मोरक कुलमें उत्पन्न हुए थे। ] [ मूल कन्नडमें मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० ५५ ] Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १२८ ] मस्की आदिके लेख १२६ मस्की ( रायचूर, मैसूर ) शक ९५३ = सन् १०३२, कन्नड ७७ [ यह लेख चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्लके राज्यकालमें फाल्गुन शु० ९, सोमवार, शक ९५३, प्रजापति संवत्सरके दिन लिखा गया था । इसमें सिगणके जगदेकमल्लजिनालयके लिए राजा द्वारा कुछ भूमि आदिके दानका उल्लेख है । अष्टोपवासि कनकनन्दिभट्टारके निवेदनपर वह दान दिया गया था । स्थान राजधानि पिरियमोसंगि यह था । ] [रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० २४७ पृ० ४२ ] १२७ कागिनेल्लि ( धारवाड, मैसूर ) ( शक ९ ) ५४ = सन् १०३२, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा जगदेकमल्लके राज्यमे ५४ ( शक ९५४ ) वर्षमे लिखा गया था । इसमे जिनधर्मके भक्त कामदेवके एक पुत्र तथा आयतवर्माका उल्लेख है । इन्होंने एक मन्दिरके लिए कुछ सुवर्ण आदि दान दिया था । ] [रि० स० ए० १९३३-३४ क्र० ई० २३ पृ० १२० ] १२८ रायबा (मैसूर) शक ९६३ = सन् १०४१, कन्नड [ यह लेख आदिनाथ मन्दिर के मण्डपमे लगा है । तिथि चैत्र व० १४, शक ९६३, शुक्रवार, विक्रम संवत्सर ऐसी दी है । अन्य विवरण प्राप्त नहीं है । ] [रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १५४ पृ० ३४ ] Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१२१ तिरुनिडकोण्डै ( मद्रास ) ११वीं सदी पूर्वाध, तमिल [ इस लेखका कुछ भाग दीवालमें दबा है। इसके प्रारम्भमें राजेन्द्रचोल प्रथमकी ऐतिहासिक प्रशस्ति है। तिरुमणंजेरि निवासी कलिमानन् विजयालयमल्लन्-द्वारा देवमन्दिरमे दीप प्रज्वलित रखनेके लिए ९६ भेड़ें दान दी जानेका इसमें उल्लेख है। यह लेख चन्द्रनाथमन्दिरके बरामदेके बाजूमें खुदा है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०० पृ० ६५ ] १३० हूलि (जि० बेलगांव, म्हैसूर ) शक ९६६ तथा १०६७ = सन् १०४४ तथा ११४५, काड १-२ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछन । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ (१) ३ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज पर मेश्वर परममहार४ कं सत्याश्रयकुलतिलकं चालुक्यामरणं श्रीमदाहवमल्लदेवर विजयराज्य५ मुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमाचंद्रार्कतारं सलुत्तमिरे ॥ तपाद पद्मोपजीवि ॥ मेले६ द पगेवरं निर्मूलिसि जसमं निमिर्चि दिमित्तिवरं कालडिय बोलगडितले पालिसिदं तोंबता७ रुमं भुजबलदि । (२) आतन पुत्रं विनयोपेतं पायिम्म-नृपति गोप्युव सति Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -12.] डूलिका लेख ८ विख्यातियुते हम्मिकटवेगे सीतेगे सरि मागेणम्बे लच्छलेयोगे दरु ॥ (३) इष्टज ९ नक्के समय के महाजनभोजन क्केयुस्कृष्टतपोधन र्गेयलिदायब१० नक्के सकंन्यकालिकाग्निष्टगेगेय्दे नालकुसमयक्कनुरागदे बेगविं११ तु संतुष्टते लच्छियब्बरसिगार् सरियर् सचराचरोवियोलु ॥ (४) १२ सकलधरित्रियोलू नेगर्द बंदिजनं सले रूपिनेल गेयं प्रकटतेवेत दा१३ नगुणमं कुलदुनतियं जिनांघ्रिगल्गकुटिलचित्तमं पोगलुतिपुं१४ दु कुंडिय लिंकदंकपालकन कुलोत्तमांगनेयनयिये लच्छुक देवियं १५ जगं ॥ ( ५ ) शरनिधिमेखला वृतवसुंधरेयेंव बिलासिनीमुखांबुरुहदवोल विराजि १६ सुव बेल्वलनाल के पोदलद शोभेगागरमेनि (सि) पं पूलि तिलकाकृति सिंदेसे दिदा पुरं सुरपु १७ रमं कुबेरनलकापुरमं नगुगुं विलासदिं ॥ (६) अल्लि ॥ सकलव्याकरणार्थशा १८ स्वचयदोलु कायंगलोलु संद नाटकदोलु वर्ण कवित्व दोल्ने गर्द वेदांत गलोलु १९ पारमाथि (क) दोलु लौकि ( क ) दोलु समस्तकलेयोलु वागीशनिंद यशोधि २० करादर पोगल्वलिगारलवे पेलु सासिर्वर ख्यातियं ॥ ( ७ ) स्वस्ति शकनृपकालातीत संवत्सर २१ शतगलु ९६६ नेय तारणसंवत्सरद पुष्य सुद्ध १० श्रदिवारमुत्तरायण २२ संक्रान्तियंदु || यजनयाजनाध्ययनाध्यापनदानप्रतिग्रह षट्कर्मनिरतरुं श्री २३ (म) चालुक्य चक्रवर्तिब्रह्मपुरि स्थान पितृपितामहमहिमास्पदरक्षणा Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१३०२४ अंकोविदरुं विदग्धकविगमकवादिवाग्मिस्वरुमतिथियभ्यागत विशिष्ट२५ जनपूजनप्रियरं हिरण्यगर्भब्रह्ममुखकमलविनिर्गतऋगयजु२६ स्सामाथवंणसमस्तवेदवेदांगोपमांगानेकशास्त्राष्टादशस्मृतिपुराण२७ काव्यनाटकधर्मागमप्रवीणरु सप्तसोमसंस्थावभृथावगाहन पवित्री२८ तगात्ररुं कांचनक(ल)शसितषछत्रचामरपंचमहाशब्दघटिकाभेरी रवनि२९ नादितरुमाश्रि(तजन)कल्पवृक्षरुमहितकालांतकरुमकवाक्यरूं ३० शरणागतवज्रपंज(ररुंच)तुस्समयसमुद्धरणहं श्रीकेशवादिस्यदेव३१ लब्धवरप्रसादरुमप श्रीमन्महाग्रहारं पूलियूरोडेयप्रमु३२ ख सासिर्वमहाजनंगल दिव्यश्रीपादपभंगलं (ल)च्छियब्बरसि यह स३३ हिरण्यपूर्वकमाराधिसि भूमियं पडेदु बसदियं माडिसि खं३४ उस्फु(टि)तजीर्णोद्धरणक्के पदुवण पोलदलु शिवेयगेरियारुमत्तर्व३५ सुगेयं मत्तरिंगडचिमालेक्कदिंदरुवणमं मूरु पणमं तेत्तुवं३६ तागि श्रीयापनीयसंघद पुन्नागवृक्षमुलगणद श्रीवालचंद्रम३७ हारकदेवर कालं कचि विलु ॥ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लभ महा३८ राजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारकं सत्याश्रयकुलतिलकं चालु क्यामरणं ३९ श्रीमत्प्रतापचक्रवर्ति जगदेकमल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्त४० रामिवृद्धिप्रवर्धमानचंद्रार्कवारंबरं सलुत्तमिरे । शकव. ४१ ब १०६७ नेय क्रोधनसंवत्सरदुत्तरायणसंक्रान्तियंदु यमनि४२ यमस्वाध्यायध्यानधारणमौनानुष्ठानजपसमाधिशीलसंपसरप्प Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १३० ] डूकिका लेख ४३ श्रीमन्महाग्रहारं पूलियूरोडेयप्रमुख सासिव हाजनंग (ल) ४४ दिव्यश्रीपादपद्मंगलं पेगडे नेमणं सहिरण्यपूर्वकमाराधिसि (घा) ४५ ( 1 ) पूर्वकं माडिलि कों (ड) तम्म मुप्तव्वे लच्छिब्बरसियरु माडिसिद बस ४६ दिलिप ऋषियराहारदाननिमित्त मल्लियाचार्यरु रामचंद्र४७ देवर कालं कचियवरु मुनवालुव पहुंत्रणपोलद शिवेयगेरियारुम स४८ वंसुगेयिं पडु (ब)ण (मा) गदलु कलशवल्लिगेरिय स्था (न) दोलगारु मत्तय दी ४९ मतरिंगचिन ( लेक्कदिंदरु ) वणमं मूरु पणमं तेतागि बिहरु | ५० पतिभक्ते धेमा सति पायिम्मरसनप्रसुते सकलजनस्तुते मा५१ गिबब्बेराणिगे सुत दी ( नेम) च्यनौदार्यगुणं ॥ ( ८ ) जिनदेवं तनगाशन ५२ ( ) जनताकल्पद्रुमं य्यने तम्मय्यननूनदानि कलिदेवं साक्षरा५३ प्रेसरं तनगणं गुणरत्नभूषण ने संदिर्द नेमंगे नए कनवद्याच (रणं)५४ गे भूवलयदोलु पेलू ।। (९) [ इस लेखके दो भाग है । पहला भाग चालुक्य सम्राट् आहवमल्ल सोमेश्वर प्रथमके राज्यमें शक ९६६ को उत्तरायण संक्रान्तिके समयका है । इनका सामन्त कालडिय बोलगडि था । इसका पुत्र पायिम्म था जिसने हम्ब्बेसे विवाह किया । उसे भागिणब्बे तथा लच्छियब्बे ये दो कन्याएँ हुई । लच्छिब्बेका विवाह कूंडि प्रदेशके शासकसे हुआ था । इसने पूलि नगरमें - जहाँ एक हजार धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे - कुछ जमीन खरीदकर एक जैन मन्दिर बनवाया और उसके लिए यापनीय संघ- पुनागवृक्षमूल गणके बालचन्द्रभट्टारकको कुछ दान दिया । दूसरा भाग चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्ल ( द्वितीय ) के राज्यमे शक १०६७ को उत्तरायण संक्रान्तिके समयका है। इसमें नेमण नामक Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ जैनशिलालेख-संग्रह [१३१स्थानीय अधिकारीका उल्लेख है जिसने पूलि नगरमें कुछ और जमीन खरीदकर उक्त मन्दिरको दान दी। उस समय रामचन्द्र वहाँके भट्टारक थे । यह नेमण उपर्युक्त लच्छियब्बेका प्रपौत्र था।] [ए. इं० १८ पृ० १७२ ] १३१ मुगद ( मैसूर) शक ९६६ = सन १०५५, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट त्रैलोक्यमल्ल आहवमल्ल ( सोमेश्वर १) के समय शक ९६६, पार्थिव संवत्सर, चैत्र शु० ५, रविवारके दिन लिखा गया था। इसमे नारावुण्ड चावुण्ड-द्वारा मुगुन्द ग्राममे स्वनिर्मित सभ्यक्त्वरत्नाकर चैत्यालयके लिए कुछ भूमि अर्पण किये जानेका उल्लेख है। चावुण्डके पोत्र महासामन्त मार्तण्डय्य-द्वारा इस मन्दिरको एक नाटकशाला अर्पण किये जानेका भी इसमे उल्लेख है। उस समय पलसिगे तथा कोकण प्रदेशपर कदम्ब कुलके महामण्डलेश्वर चट्टय्यदेवका शासन चल रहा था। लेखमे कुमुदि गणके जैन आचार्योंकी विस्तृत परम्परा भी बतलायी है। ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित ] [सा० इ० इ० ११ पृ० ६८ ] १३२ जोन्नगिरि ( कुर्नूल, आन्ध्र) ११ वीं सदी, कन्नड [ इस लेखमें चालुक्य राजा त्रैलोक्यमल्लदेवके समय वेगडे सोवरस तथा मल्लिसेट्टिका उल्लेख है। इन्होंने जोन्नगिरिकी बसदिके लिए कुछ भूमि दान दी थी। [रि० सा० ए० १९२९-३० क्र. ६१७ पृ० ६० ] Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१३४] सिंगरका देख सिंगकूर ( कोइम्बतूर-मद्रास ) पाक ९६७ = सन् १०४५, तमिल १ स्वस्तिश्री २ को नाहन वि३ विकरमशोल ४ देवकुं शे५ ल्लानिण्ड ६ याण्ड ना• पदावदु ८ अरत्तुला९ ण्देवन् १० पेरन् आण ना११ ण कणित मा १२ णिक्कच्चेट ५३ टि चन्दिरवश १४ तियिल मुक१५ मण्डगम् १६ एडुपित्ते१७ न (1) शकर या १८ ण्डु ९ १०० (६) (१०) ७ (1) १९ शिंगला (न्तक ) न् २० एण पुदु मुक२१ मण्डगम् (1) [ यह लेख शक ९६७ का है। इस वर्षको नाट्टन् विक्रमचोल राजाके ४०वें वर्षमे चन्द्रवसतिके मुखमण्डपके निर्माणका इसमे उल्लेख है। यह कार्य अरत्तुलान् देवन्के पौत्र कणित माणिक्क सेट्टि-द्वारा किया गया था।] [ए० इं० ३० पृ० २४३ ] १३४ अरसोबोडि (जि. विजापुर, म्हैसूर ) शक ९६९ = सन् १०४७, काड , स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर प Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ जैन शिलालेख - संग्रह २ रमभट्टारक सम्याश्रय कुळतिलक चालुक्याभरण श्रीमत्रैलोक्यम३ ल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमाचंद्रार्कता४ रंबरं सतमिरे । स्वस्ति अरिनृपमकुटघटितचरणारविंदेयर् गंगास्नान ५ पवित्रेय दीनानाथचिन्तामणिगलेकवाक्यर् गुणद बेडगियरप्प श्रीमद ६क्कादेवि (य) र गोकागेय कोटेय सुत्तिर्द बीडिनलु विक्रमपुरद गोदबेडगिय ७ जिनालयक्के खण्डस्फुटितसुधाकर्मक्कं गन्धधूपदीपक्कं सरुगिगं मूलसंध ८ व (२) सेनगणद होगरिय गच्छद नागसेनपण्डितगं भल्लिर्प ऋषियi अज्जिय [ १३४ ९ आहारदानक्कं भजियर कप्पडक्कं कडुव भूमि सकवर्ष ९६९ नेय १० सर्वजित् संवत्सरद चैत्रद्मास्ये आदित्यवारदंदिन सूर्यप्र११ इणनिमित्तं धारापूर्वकं माडि नगरदनुभवने मुख्यमागि किसु१२ काडेप्पत्तर बलिय सर्वनमस्यमागि बिट्ट बाडं गाणद हालूरोदु १३ विक्रमपुरद यीशान्यद देसेयिं तटं मत्सरोदु ऊरिं तक मुरुवदिन पा१४ क नैरित्यद देसेयिं पण्डितनागदेवंगे सर्वनमस्य मन्तर पंनेरड अल्लिं तेंक १५ परेकार केलोजंगे सर्वनमस्य मसरिपंत्तनात्कु ऊरिं बडग रायग हेयिं १६ मूड परेकार केतोजंगे तोंट मन्तरोंदु भल्लि पडुव ककुटिंग सूरोजंगे स १७ वनमस्यं मत्तरु पंनेरडु तोंट मतरोंदु दडिगरसन कय्यलु मारुगोण्डु देव कोट्ट Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१३५] नन्दवादिगेका लेख १८ भूमि कप्पडिय केरेयिं तेंक मम्नेयबोलदल सर्वनमस्य मसरु ५० ॥ १९ ई धर्ममं स्वधर्मदिं रक्षिसिदवर् वारणासियलु ओन्दु कोटि कविलेयु २० मं वेदपालनपं श्राह्मणरिंगे कोट्ट फ (क) मं पडेवर ई धर्ममन लिदव २१ रा स्थानदोलनितु कविलेयुमननि (तु ) ब्राह्मणर-- २२ सा ॥ सामा[ यह लेख चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्ल ( सोमेश्वर प्रथम) के राज्यकालमे शक ९६९ की चंत्र अमावास्याके दिन लिखा गया था। इस समय अक्कादेवी गोकाग क़िलेके समीप शिविरमें थी। उसने विक्रमपुरके गोणद बेडंगि जिनमन्दिरके लिए मूलसंघ-सेनगण-होगरि गच्छके नागसेन पण्डितको कुछ दान दिया था।] [ ए० इं० १७ पृ० १२१] नन्दवाडिगे ( मैसूर ) ११वीं सदी-मध्य, कलड [यह लेख चालुल्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्लदेवके समयका है। उनकी रानी मैललदेवी थी। उनके एक सामन्त भावनगन्धवारणने कई मठ, मन्दिर, तालाब आदि बनवाये थे जो निम्न स्थानोंपर थे - कल्याण, अपिणगेरे, मुलुगुन्द, ( कोल्वु ) गे, नन्दापुर, कोहल्लि, मण्डलिगेरे, बेल्गलि, बनवासेपुर, करिविडि, नविले, नन्दवाडिगे, पेरूरु । उसने पोन्नगुन्दका त्रिभुवनतिलक जिनालय, महाश्रीमन्त बसदि, पुरगूरका वीरजिनालय, कुन्दरगेका जिनालय आदिका जीर्णोद्धार किया था। उसके द्वारा दिये गये Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [१३६कई दानोंका उल्लेख लेखमें किया है। इसका समय उत्तरायण संक्रान्ति कहा है । वर्ष निश्चित नहीं है । ] [ मूल कन्नडमें मुद्रित ] [सा० इ० इ० ११ पृ० ९९ ] कल्याण ( नासिक, महाराष्ट्र) ११वीं सदी-पूर्वाधं, संस्कृत-नागरी [ यह ताम्रपत्र परमारवंशोय महाराज भोजके सामन्त यशोवर्मन्-द्वारा दिया गया है । श्वेतपद देशमे स्थित कल्कलेश्वर तीर्थके महीशबुद्धिक स्थानके मुनिसुव्रतमन्दिरके लिए कुछ जमीन, तेलघानियाँ, दूकानें, और १४ द्रम्म दान दिये जानेका इसमे निर्देश है। ] [रि० आ० स० १९२१-२२ पृ० ११८ ] १३७ हेब्बैलु ( मैसूर) शक ९७५ = सन् १०५३, कन्नड १ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वी२ वल्लम महाराजाधिराज परम३ श्वर परममट्टारक सत्याश्रयकुल४ तिलक चालुक्यामरण श्रीमत् त्रैलोक्य५ मल्लदेवर विजयराज्यमुत्त६ रोत्तरामिवृद्धिप्रवर्धमानमाचं. ७ द्रार्कतारं सलुत्तमिरे स्वस्ति स८ मधिगतपंचमहाशब्द महाम१ ण्डलेश्वरं पट्टियोम्बुचंपुरवरेश्वरं पना Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३०] हेम्बेलुका लेखा १० वतीलन्धवरप्रसादं मृगमदामोदं " कन्दुकाचार्य मन्दरधेयं सुमटसंस्तु१२ स्यं सान्तरादित्य रिपुकरींद्रकंठीरवं रण१३ रंगभैरवं कीर्तिनारायणं सौर्यपा१४ रायणं रिपुमंडलिकगोत्रगोत्राचलवज्र१५ दण्ड बिरुदभेरुंडं महोप्रान्वयनमस्त. १६ लगभस्तिमालियतुलबलसौर्य१७ शालि वन्दिसन्दोहानन्दीकृतसुन्दरकल्पल१८ तांकुरनरिमंडलिकपतंगदीपांकु१९ र विसिसन विजयविपुलीकृतकृत२० प्रतिज्ञं बिरुदसर्वज्ञं नामायनेकां२१ कमालासमलंकृतर श्रीमत् दूसरी ओर २२ वीरसान्तरदेवर सान्तलिगे- २३ सासिरमुमं निष्कंटकमा२४ गि प्रतिपालिसि सुखसंक- २५ थाविनोददि राज्यं गेय्युत्त२६ मिरे तत्पादपद्मोपजीवि २७ स्वस्ति समस्तदुस्तरारा२० तीमकुंभस्थलीविदारुणदा- २९ रुणकरासिधारासक्तमुक्ता३० पलमालालंकार वोरनारीम. ३१ णिहारायितभुजादण्डनहि३२ तमहावाहिनीमहीधरव- ३३ ब्रदण्डं जिनधर्मप्राकारं ३४ निजगोत्रनिस्तारं धर्मरत्ना- ३५ करं सुमटारिमीकरं पति३६ हितांजनेयं सौर्यगां ३७ गेयं स्वामिद्रोहदिशाप३८ बैरिकोटिघरट्ट रण- ३९ रंगक्षेत्रपालं मच्चरिसु४० वरेलदेयसूलं दलदि ४१ मुनि रिव आयुमं में४२ रेवं सुकविकोकिलसह- ४३ कारनेकांगवीरं विलासवि४४ धाधरं धैर्यमहीधरन् ४५ उपायनारायणं नीतिपा१६ रायणं बीरुगनगरुड ४७ नामादिसमस्तप्रशस्तिस Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१३७४८ हित श्रीमन् नकुलरसर् ४९ स्मररूपम्नतर नकुलर५० सन तमयर जनरके रा १ मन् लक्ष्मीधररेन्दे५२ न्दडे चाबुण्डराय ५३ नुं नागवर्मनुं कर. ५४ मेसेदरे । मंगल तीसरी ओर ५५ वृत्त । केडेयद पे (म् ) महामहिमराज५६ सुतप्रतिपत्तियबिवं तडेयदे वीरसान्त५७ रमहीपति ता दयेगेय्दु कोल्वोडं वि५८ डे निजपुत्र नी बरिसेनिपी नेगलतेयनेयदे ५९ कोट्टनेन्दडे दोरंयार्परार् नगुलभूप६. नोली वसुधातलाग्दोलु । परम६५ श्राजिननिष्टदैवमनेपोर् शास्त्राग६२ मामोधिगल गुरुगल माविसे पु६३ पसेनमुनिपर अत्तिप्रियं वीरसा६४ न्तर भूमिपति तन्दे तां पटियरं ६५ श्रीकाटि ताय पलंकरिसुत्तिलदरे६६ यव्ये ये ( ने ) नगुलभूपालं महा६७ धन्यनो ॥ नगुलरसन चित्तप्रिये ६८ मृगलोचने दण्डनायकोडुम्मन ६९ ऐदु मन्दिन सासि ७० वर्कण्डु काप्प७१ रक्के इदनलिदं क ७२ विलेयनलिदं ७३ चित्तारिकेतोजन मगं बहु ७४ गि आयवोज ई शासनद ७५ गेरद कल्लं गैथी ओर ७६ पुत्रि गुणान्विते चट्ट- ७७ बरसिगे दोरेयार दान७८ धर्मशीलोमतियोल ७९ सकवर्ष ९७५ नेय दु. Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १३० ] बेलुका लेख ८० मतिसंवत्सरं प्रवर्तिसे ८२ श्रदेकादशि आदित्य ८४ मण्डलेश्वरं वीरसान्तर ८१ बैशाखमासद कृष्णप ८३ वारदंदु श्रीमन्महा ८५ नगुलरसंगे पेर्वय ८० बिट्टियुमं कादु परिहा८९ मर्यादेयनलिदं वा९१ दोल सासिरकविलेयुं ९३ क्कु । स्वदत्तां परदत्तां वा यो ९५ हस्राणि विष्ठायां जायते कि ९७ श्रीप्रतिमेय मारसिंग ९८ तनयं विद्वद्विप्रं गंगननृपनि- ९९ योगप्रभु कविराज वल्लभं गो १०० विन्द १०२ पोंबुचनाडोले ८६ ल् पनेरडर किरुदेरे " ८८ रं बिकेगेडु कल्नाडिन्ती ९० रणसियोल कुरुक्षे ९२ पार्वरुमनलिद पातकन९४ हरेत वसुंधरां षष्टिर्वर्षस ९६ मिः । विप्रकुलांवरचंद्र १०४ ल कदगोड मैसेपन्नेर १०६ लिगारं । बीरसिनु नगुल१०८ गाणं ॥ मंगलं ८९ पन्नेरडु १०१ पेर्वयल १०३ मत्तगावे हदिगा १०५ डुम नेलिवयलुं पा१०७ रसनुमेय दिवेतं सासिर [ यह लेख एक स्तम्भके चारों बाजुओंपर लिखा है | चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्लके अधीन पट्टिपोंबुचके महामण्डलेश्वर वीरसान्तर के समयका यह लेख है । इसके मन्त्रीका नाम नकुलरस था । ये दोनों जैन कहे गये हैं । इनके गुरु पुष्पसेनदेव थे । नगुलरसके पिता पडियर काटि, माता अरेयब्बे तथा पत्नी चट्टरसि थीं । इनके दो पुत्र चावुण्डराय और नागवर्म थे । लेखमें वीरसान्तर-द्वारा अंकेगेड ग्राम और पेय विभाग के कुछ करोंका उत्पन्न नकुलरसको अर्पित किये जानेका उल्लेख है । इस लेख के पाठकी रचना गोविन्दने की थी जो मारसिंगका पुत्र था और गंगराजाओंके समयसे कवियों मे प्रिय था । लेखको चित्तारि केतोजके पुत्र आयूवोजने उकेरा था । लेखनिर्दिष्ट दानकी तिथि वैशाख व० ११, रविवार, शक Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [ १३८ ९७५ दुर्मति संवत्सर है ( यह अनियमित है क्योंकि शक ९७५ विजय संवत्सर था ) । ] ९० [ ए०रि० मै० १९३१ पृ० १९० ] १३८ मुलगुन्द (मैसूर) शक ९७५ = सन् १०५३, कन्नड १-२ श्रीमद्मक्ति मरानतामर किरीटानर्घ्य रत्नप्रमाजालालीढपदारविन्दयुगलः कन्दर्प दर्पापहः । त्रैलोक्योदरवर्तिकीर्तिविंशदश्चन्द्रप्रभः सुप्रमो मन्यानां निवहं निराकुलमलं पायादपायाज्जिनः ॥ १ ३ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्री पृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारकं सत्या ४ श्रयकुलतिलकं चालुक्याभरणं श्रीमत् त्रैलोक्य मल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रव ५ र्द्धमानचन्द्रार्कतारं सलुत्तमिरे । तत्तनयं समधिगतपंचमहाशब्द - महामण्डलेश्वरं वेंगी ६ पुरवरेश्वरं समरप्रचण्डं कुमरमार्तण्डं परकरिमदनिवारणनम्मन गन्धवारणं परिवारनिधानं ७ दानकानीनं हयवत्सराज रूपमनोजं रिपुनृपतिहृदयसेवलं भुवनैकमल्लं मण्डलिक शिरो ८ मणि चालुक्यचूडामणि विद्विष्टसंहारं कटकप्राकारं श्रीमत्त्रैलोक्यमल्लदेवपादपंकजभ्र ९ मरं श्रीसोमेश्वरदेवं बेल्बोकमूनूरुं पुलिगेरेमनूरुमं सुखसंकथा विनोद दिनालुत्तम Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१३८ ] मुकन्दका केख १० रे तत्पादपद्मोपजीवि ॥ वृसं । विनयक्काधारभूतं पविहितचरितक्काश्रयं स विवेकक्के निवास ९१ ११ संपत्तिगे, कुलमवनं सन्ततानूनदानक्के निधानं मान्तनक्कागरमेने नेगलदं सवचोभूषणं भूविनु (सं) (बे ) १२ देवनुद्यद्विधुविशदयशोव्याप्त दिक्चक्रवालं १२ ईव गुणं गुणं पतिहिताचरितं चरितं परोप ( का ) १३ रावसथार्थमर्थमत्र भिज्जिनतत्वमे तत्वमें सद्भावने तम्मोलोन्दि नेलेवेत्तिरे कीतिंगे नोन्तरिन्तु १४ बेल्देवनुमोल्पनाब्द बलदेवनुमंकद शान्तिवर्मनुं ॥ (३) वचनं ॥ अन्तु सकलगुणगणोतुंगरुं जिनधर्म १५ निर्मलरुं निखिलजनोपकारनिरतरुमुदात्तकीर्तिलता निकेतनरुम गलदेवप्रियतनूभवरुं गोजि १६ काम्बिका कृशोदर्शन बिडनिबद्ध पट्टरुमागि पोगल्तेवेत्त तत्सहोदरत्रयदोल अग्रभवनप्प सन्धिविग्र १७ हाधिकारि ॥ वृत्तं । जिनपादांबुजभृंगनंगजनिभं गम्यार्थरत्नाकरं मनुमार्ग विनयार्णवं कलिमल प्रध्वंस १८ कं केशिराजन बंटिं नयसेन सूरिपदपद्माराधनारत चित्तनुदात्तं नेगल्द विवेक - महोभाग १९ दोलू ॥ ४ आ महानुभावं धर्मप्रभाव प्रकटीकृत चित्तनागे ॥ कन्दं । सिन्द - कनबलानन्दन कररू २० पनसमसाइसनिलयं सिन्दनृपनन्दनं लसदिन्दुकरप्रतिमकीर्तिकान्ताकान्तं ॥ ५ जिनधर्मनिमलं सत्य निधा २१ नननूनदान - अनन्दिन कंचरलं पंचेषुनिमं मुल् गुन्दसिन्ददेशलकामं ॥ ६ एंब पेंपिंग जसक्कमागरमा Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख-संग्रह [16२२ द कंचरसं तस सीवटदोलगे धर्मानुरागचितं सहिरण्यपूर्वक कुडे कोण्डु ॥ श्रीमूलसंधवारा२३ शौ मणीनामिव मार्चिषा । महापुरुषरस्नानां स्थान सेनाम्वयो जनि ॥ ७ व । आ चन्द्रकवाटान्वयवरिष्ठ२४ रजितसेनमहारकर तदन्तेवालिगल कनकसेनमारकरवर शिष्य ।। कन्द । चान्द्रं कातंत्रं जैनेन्द्र श२५ ब्दानुशासनं पाणिनि मत्तैन्द्रं नरेन्द्रसेनमुनीन्द्र'गेकाक्षरं पेरंगिवु मोग्गे ॥ ८ अन्तु जगद्विख्यातरादर २६ रवर शिष्यर् ॥ वृत्त । निनगेनेबेनो शाकटायनमुनीशनन्ताने शब्दानुशासनदोल पाणिनि पाणिनीयदोले चन्द्र चा२७ न्द्रदोल तजिनेन्द्रने जैनेन्द्रदोला कुमारने गडं कौमारदोल पोल्परन्तेने पोलर नयसेनपण्डितरोलन्याधि२८ वीतोवियोल ॥ ९ इन्तु समस्तशब्दशास्त्रपारावारपारगर नयसेन पण्डितदेवर पादप्रक्षालनगे२९ रदु। शकवर्षमोबयनूरेलपत्तदनेय विजयसंवत्सरदुत्तरायण संक्रान्तियंदु तीर्थद ब३० सदिगाहारदाननिमित्तं निजांबिकेयप्प गोजिकब्बेगे परोक्षविनयं नगरमहाजनमुं पंचमठस्था३१ नमुमरिये नगरेश्वरद् गडिंबद कोलोललेदु किरुगेरेय केय्योलगे सर्वबाधापरिहारमा३२ गे बिट्ट केयमत्तर पन्नेरडु । आ केयगे गुड्ढे ईशान्यदोल कविलेय कल आग्नेयदोलादित्यन कल नैऋ३३ त्यदोल चन्द्रन कल वायव्यदोल पद्मावतिय कल मसगगेरेय तेक सासिर बल्किय तोटवोन्दु ॥ स्वदत्तां Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -1..] नन्दिरुके लेख ३४ (परदतां वा ) यो हरेत वसुन्धरां । षष्टिवषसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमिः ॥१. [यह लेख चालक्य सम्राट सोमेश्वर (प्रथम) त्रैलोक्यमल्लके राज्यमें शक ९७५ में लिखा गया था। उस समय बेल्वोल तथा पुलिगेरे प्रदेशपर सम्राट्का पुत्र सोमेश्वर ( द्वितीय ) शासन कर रहा था। वहाँके सन्धिविग्रहाधिकारी बेल्देव थे। ये अग्गलदेव तथा गोज्जिकब्बेके पुत्र थे। बलदेव तथा शान्तिवर्मा उनके बन्धु थे। बेलदेवकी प्रेरणासे सिन्दकुलके सरदार कंचरसने नयसेन पण्डितदेवको कुछ भूमि दान दी। नयसेनको गुरुपरम्परा इस प्रकार थी - मूलसंघ-सेनान्वय-चन्द्रकवाट अन्वयके अजितसेनकनकसेन-नरेन्द्रसेन-नयसेन । नरेन्द्रसेन तथा नयसेन दोनों व्याकरणशास्त्रके विशेषज्ञ थे। [ए. ई० १६ पृ० ५३ ] १३९-१४० नन्दिवेवरु ( बेल्लारो, मैसूर) शक ९७६ = सन् १०५४, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रैलोक्यमल्लके समय शक ९७६, उत्तरायण संक्रान्ति, रविवार, जय संवत्सरका है। इसमें नोलम्ब पल्लव पेनिडिके राज्यकालमें देसिगगणके अष्टोपवासि भटारको रेच्चूरुके महाजनों-द्वारा भूमि, उद्यान आदिके दानका उल्लेख है। लेखमें जगदेकमल्ल नोलम्ब ब्रह्माधिराजका सामन्तके रूपमें उल्लेख किया है । इस लेखके पीछेकी ओर प्रायः ऐसे ही लेखमे अष्टोपवासिमुनिको बहुरुमें दिये हुए दानका वर्णन है। इसमे वोरणन्दिसिद्धान्तिका भी उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१८-१९ क० २०१ पृ० १६] Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैन शिलालेख संग्रह १४१ कोगलि ( जि० बेल्लारी, मंसूर ) शक ९७७ = सन् १०५५ जैन मन्दिरके आगे एक शेड में, कन्नड [ १४१ यह लेख चालुक्य सम्राट् त्रं लोक्य मल्लके राज्यकालका है । इसमें कहा है कि इस मन्दिरका निर्माण गंग राजा दुर्विनीतने किया था । लेखके समय जैन आचार्य इन्द्रकीर्तिने इस मन्दिरको कुछ दान दिया था । इन्द्रकीर्तिका वर्णन इस प्रकार किया है श्रीमदरुहच्चरणसरसिंहभृंग, कोण्डकुन्दान्वयसमूहमुखमंडन, देशीयगण कुमुदवनशरच्चन्द्र, कोकलिपुरेन्द्र, त्रैलोक्यमल्ल सद. सरसिकलहंस, कविजनाचार्य, पण्डितमुखाम्बुरुहचण्डमार्तण्ड, सर्वशास्त्रज्ञ, कविकुमुदराज, त्रैलोक्यमल्लेन्द्र कीर्तिहरिमूर्ति ] [ इ० ए० ५५, १९२६ पृ०७४, ३० म० बेल्लारी १९६ ] १४२ डम्बल ( मैसूर ) शक ९८१ = सन् १०५९, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्लदेव ( सोमेश्वर १ ) के समय चैत्र शु० १३, रविवार शक ९८१, विकोरि संवत्सरके दिन लिखा गया था । इसमे धर्मवोलल्के नगरजिनालयके लिए बाचय्यसेट्टिके जमात बीरय्यसेट्टि द्वारा कुछ सुवर्णदान दिये जानेका उल्लेख है । ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० ८९ ] Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारव भादिके लेख १४३ मोरब (धारवाड, मैसूर) शक ९८१ = सन् १०६०, संस्कृत-कमड [ यह लेख मार्गशिर शु० २ शक ९८१ विकारि संवत्सरका है। इसमे यापनीय संघके जयकोतिदेवके शिष्य नागचन्द्र सिद्धान्तदेवके समाधिमरणका उल्लेख है। उनके शिष्य कनकशक्ति सिद्धान्तदेवने यह निसिधि स्थापित की थी। नागचन्द्रको मन्त्रचूडामणि यह विरुद दिया है। ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई० २३९ पृ० ५६ ] छब्बि ( जि. धारवाड, मैसूर ) शक ९८२ = सन् १०६०, कन्नड [ इस लेखमे सब्बि नगरके धोरजिनालयके आचार्य कनकनन्दिके समाधिमरणका उल्लेख है। इनकी निसिधि भागियब्बे-द्वारा स्थापित की गयी। इस लेखकी रचना वज्रने की तथा नाकिगने उसे उत्कीर्ण किया। तिथि वैशाख शु० ५, रविवार शक ९८२ शर्वरी संवत्सर ऐसी थी।] [रि० सा० ए० १९४१-४२ ई० ऋ० १५ पृ० २५६ ] तोललु ( मैसूर ) शक ९८३ % सन् १०६२, कन्नड इस लेखकी पहलो ८ पंक्तियाँ घिस गयी हैं। ९.""कम्बुकन्धरे केलेयब्बरिसि वीरगंग पोयिसलगं १० पेम्पनवयु"विनया पो११ यिसलजनपं."माडि ॥ श्रीवर्धमानस्वामि Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [१४६१२ गल धर्मतीथं प्रवर्ति सुवलि गौतमस्वामिगलिं भद्रबाहुस्वामि गलिबलि १३ पुष्पदन्त मट्टारकरि""मेषचन्द्र १४ .''श्रीमूलसंघ१५ द बेलवेय अमयचन्द्र पण्डित, विनयादित्यहोयिसलदेवरु शक वर्ष ५८३ शुभकृतसंवत्सरद १६ उत्तरायणसंक्रमणद दानार्थदेमण्ण धारापूर्वकं कोट्ट अदकें तेरे ह १७ वरदु हणवारमत्तदि देवर चरुपिगे यिप्पत्तयरड सलगेय धारापूर्वकं माडि १८ बिट्ट दत्ति तोल्ललहल्लिय मुद्दगोडनु तिपगौडनु पुरतेकलु यिरभुगाम्ब होर१९ गेरिय मुदणभूमि विग्गुड्डेय भूमिय अभय चन्द्रपण्डितरिंगे धारापू२० वैक माडि बिट्टरु ई धर्मवन् भवनोब्बनु"" [ इस लेखमे होयसल राजा विनयादित्य-द्वारा शक ९८३ मे उत्तरायणसंक्रमणके अवसर पर मूलसंघके पण्डित अभयचन्द्रको कुछ भूमिदान दिये जानेका उल्लेख है। अभयचन्द्रको पूर्वपरम्परामें गौतमस्वामी, भद्रबाहुस्वामी, पुष्पदन्त भट्टारक तथा मेघ चन्द्रका उल्लेख किया है। मुद्दगौड तथा तिप्पगोड द्वारा भी कुछ भूमिदान दी गयी थी। ये दोनो तोललहल्लिके निवासी थे।] [ए० रि० म० १९२७ पृ० ४३ ] १४६ पालियड (गुजरात) संवत् १११२ = सन् १०६६, संस्कृत-नागरी , सिद्धं विक्रम संवत् १११२ चैत्र सुदि १५ अधेह आकाशिका ग्रामावासे समस्त Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -११ पालियड ताम्रपत्र १ राजावलीविराजितमहाराजाधिराजश्रीमीमदेवः ॥ वायडाधिष्ठानप्रति३ वडवो (षो) शोत्तरप्रामशतान्त:पातिसमस्तराजपुरुषान् बा(स) जोत (सन् ) ज४ नपदास बोधयत्यस्तु वः संविदितं यथा अब सोमग्रहणपर्वणि चराचर५ गुरुं सर्वज्ञमभ्यय॑ वायडाधिष्टानीयवसतिकार्य अत्रैव वायडा (घि)छाने ६ (च) रीक्षेत्रान्तरितया गुढ़हुलापालिसंशग्नयावणिकसादाकभूमी सं (बध्य )७ मानया कलसिकाइयवापभुवा सहास्येव सादाकस्य सत्का हलद्वयस्य २ ८ भूः भासन (ने) नौदकपूर्वमस्माभिः प्रदत्तास्याच भूमः पूर्वस्या दिशि कल्य १ पालकेसरिसरकं क्षेत्रं दक्षिणस्यां च राजकीया चरी । पश्चिमा १० यां च वाणिय (ज) कमामलीयं क्षेत्रमुत्तरस्यां च पालवाड ग्राममा११ र्ग इति चतुराघाटोपलक्षितां भुरमेतामवगम्य एतशिवासि जनपदै१२ यथा दीयमानभागभोगकरहिरण्यादि सर्वमाशा(श्रवणविधेयै६३ भूत्वास्यै वसतिकायै समुपनेतन्यं सामान्यं चैतत्पुण्यफलं मस्वास्म१४ दुवंशजैरन्यैरपि माविमोक्तृमिरस्मत्प्रदत्तधर्मदायोयमनुमन्तग्यः १५ -१६ निस्य के शापात्मकश्लोक १६ लिक्षितमिदं कायस्थ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ १४७ १७ कांचनसुतवटेश्वरेण । दूतकोत्र महासांधिविग्रहिक श्री मोगादिस्य इ (ति) १८ श्री भीमदेवस्य ॥ [ इस ताम्रपत्र में चौलुक्य राजा भीमदेव ( प्रथम ) द्वारा वायड अधिष्ठानकी एक वसतिका ( जिनमन्दिर ) के लिए चैत्र शु० १५ संवत् १११२ के दिन कुछ भूमिके दानका उल्लेख है । ] [ ए० ई० ३३ पृ० २३५ ] ९८ १४७ मोटे बेन्नूर ( धारवाड, मैसूर . ) शक ९८८ = सन् १०६६, कवाड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रैलोक्यमल्लके समय शक ९८८, पुष्य शु० ५, सोमवार, पराभव संवत्सरके दिनका है। इसमे महामण्डलेश्वर लक्ष्मरस-द्वारा मूलसंघ - चन्द्रिकावाटवंशके शान्तिनन्दि भट्टारकको भूमि दान दी जानेका उल्लेख है । यह दान बेन्नेवुरमें आश्चिमय्य नायक द्वारा निर्मित बसदिके लिए था ।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ क्र० ई० ११३ पृ० १२९ ] १४८ चांदकवटे (बिजापूर, मैसूर ) शक ९८९ = सन् १०६७, कन्नड [ इस लेखमें फाल्गुन व० ३ शक ९८९ प्लवंग संवत्सर के दिन सूरस्त गणके मानन्दि भट्टारककी निसिधिका उल्लेख है । सिन्दिगे निवासी जाकमब्बेवे यह निसिधि स्थापित की थी । ] [रि० सा० इ० १९३६-३७ क्र० ई १४ पृ० १८२ ] Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१५२] मत्तिकट्टि श्रादिके लेख ९९ । १४६ मत्तिकट्टि (जि० धारवाड, मैसूर ) शक ९९० = सन् १०६८, कन्नड [यह लेख टूटा हुआ है । मत्तिक ग्रामकी कुछ जमीन पेगडे कालिमय्यने मतिरोन भट्टारकको दान दी इसका इसमें निर्देश है । ( यह नाम मतिसेन अथवा मल्लिसेन हो सकता है)। यह दान कालिमय्य-द्वारा निर्मित एक जिनालयके लिए दिया था। कालिमय्यको ( चालुक्य ) सम्राट त्रैलोक्य ( मल्लदेव ) का पादपद्मोपजीवी कहा है।] [रि० सा० ए ० १९४४-४५ एफ् ४२ ] १५०-१५१ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् १०६८, तमिल [ इस लेखमें चोल वंशके राजा राजकेसरिवर्मन् वोरराजेन्द्रदेवके राज्य वर्ष ५में तिरुक्कामकोट्टपुरम्के निकट करन्द प्रामके जिन मन्दिरके लिए कुछ भूमि ग्रामसभाके तीन सदस्यों द्वारा दान दिये जानेका उल्लेख है। यहींके दूसरे लेखमें इस मन्दिरमें सततदीप रखनेके लिए कुछ बकरियोंके दानका उल्लेख है। इस लेखमें मन्दिरके देवताका उल्लेख अरुगर् देवर् वीरराजेन्द्रपेरुम्बल्लि आलवार ऐसा किया है। यह दान कालियूर प्रदेशके परम्वूर ग्रामके तुगिलिकिलान् अरयन् उडयान्-द्वारा दिया गया था।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र. १२९-१३० ] मत्तावार ( मैसूर) शक ९९१ %Dसन् १०६९, कमड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १५२ जैन शिलालेख-संग्रह २ नं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जि३ नशासनं ॥ . स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्द महामण्डलेश्व५ रं द्वारावतीपुरवराधीश्वरं यादवकुला६ बरामणि सम्यक्तचूडामणि मल. ७ परोलुगण्डायनेकनामावलीविराजितरप्प श्री. ८ मत्. (लो) क्यमल्ल विनयादिस्य होयसल९ देवर गंगवाडितोभत्तरुसासिरमनाल्दु १० सुखदि पृथ्वीराज्यं गेय्ये सकवर्ष ९९, ने. ११ य पिंगलसंवत्सरद वैशाख शुद्धत्रयोदशि बृह१२ वारदल पिंदु देवसं होरसलदेवर् मत्तवुरके १३ कालं तिर्वितंदु विजयंगेयदंदु बसदिगे वंदि १४ देवरं कंडि बेदोले कलदरव विल्लियके माडि१५ सिदरूरोलगे मारिसिवेंदडे माणिकसेट्टि १६ यिन्तेंदु विमपंगेय्दम् देवर नीबूरोलोंदु १७ बसदियं माडिसि भूमियं विट मा१८ नमहिमेगलं काहडे बडवब्बर निर्मद१९ तदर्थक्के प्रमाणुंटे देवरर्थमं मलेय२. रसुगल हडद भत्तमु समानमदर २१ माणिकट्टिय माति मेचि नक्कु करवोल्लितें२२ दु बसदियनूरोलगे माडिसि सामियं २३ माणिकसेट्टि राजगावुण्ड मुद्दगावुण्डरिं बे२४ सायिदेन्नूरु (?) मत्तक्के बिदिसि ॥ तेरेयोल ५२५ नालियलि सिदायदपिल भत्तनूल नेल वि. २६ नयायितनू पम्पेल्तेरेगल मत्तवूर ब२. सदिगे बिटुं ॥ अंतु बिट्ट बसदियवसदलिपकव. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१५२] मत्तावारका लेख २८ मनेगल माडिसि रिषिहरिकयेंदु पेसरनिटु २९ मनेदेरे मादुवेदेरे ऊरुट्टिगे तौदे सु. ३० रंदु कवर्ते सेसे भोसगे मनकरे कूट क३१ कन्दि बीरवण कोडतिवण कत्तरिवण अडेकलु३२ वण हडवलेय हदियराय कुंवर वि३३ हि कमर विष्टि यिवोलगागि हलवु महिमे३४ गलं विनयादित्यहोरसलदेवर् प्राचंद्रार्क३५ तारंवर सलगे ॥ इन्ती धर्मदोलावनानुं तप्पिद३६ वं गंगेयलु गंगेयं कोंदु तिन्दं लिंगालि. ३७ पं गेयदनिस्थानवे कट्टेगल स्थानं जागवल्ल ३८ मत्तावुर हल्लिय गावुण्ड तानित्तुदक्के पे-- ३९ न्दे नित्तुददक्के देवगृह ४० वह नानवक-होलहा-बागि ॥ ४००००० यह लेख होयसल वंशके राजा विनयादित्यके समय वैशाख शु० १३, बृहस्पतिवार, शक ९९१ पिंगल संवत्सरके दिन लिखा गया था। मत्तवूर ग्रामके लिए एक नहर बनवायी थी तब राजा विनयादित्य वहाँ गये थे। इस ग्रामकी बसदि ग्रामके बाहर एक पहाड़ीपर थी। उसे देखकर राजाने ग्रामीणोंसे पूछा कि ग्राममे बसदि क्यों नहीं है ? इसपर माणिकसेट्टिने कहा कि ग्राममें बसदि बनानेकी हमारी इच्छा है किन्तु हम गरीब है। तब राजाने ग्राममें बसदि बनवाकर नाडलि ग्रामके कुछ करोंका उत्पन्न उसे दान दिया। माणिकसेट्टि, राजगावुण्ड तथा मुद्दगावुण्डने भी बसदिके लिए कुछ भूमि दान दी।] [ए.रि. मै० १९३२ पृ० १७१ ] Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह १५३ सोरटूर (मैसूर) शक ९९३ = सन् १०७१, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लदेव ( सोमेश्वर २ ) के समय माघ शु० १, रविवार, शक १९३, विरोधकृत् संवत्सर, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर लिखा गया था ( यहाँ माघ स्पष्टतः ग़लत है जो पौष होना चाहिए । ) उक्त समय महाप्रधान सेनाधिपति कडितवेगडे दण्डनायक बलदेवय्य द्वारा सरवुर ग्राम में स्थित बलदेवजिनालयके लिए कुछ भूमि अर्पण की गई थी । बलदेवय्यके पिता गंग कुलके अग्गलदेव थे, माता गोज्जिकब्बे थीं तथा उसके ज्येष्ठ बन्धुका नाम बेल्देव था । इस दानकी व्यवस्थापिका हुलियाज्जिके सूरस्तगण चित्रकूटान्वयके सिरिणंदिपण्डितकी शिष्या थीं । उक्त मन्दिरको सरवुरके दो सौ महाजनोंने भी कुछ भूमि, तेलघानी तथा घर अर्पण किये थे । सिरिणन्दिपण्डितकी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है - चंदनंदि - दावणंदि सकलचन्द्र कनकनंदि - सिरिणंदि । ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० १०७ ] १०२ [ १५३ - १५४ गावरवाड ( जि० धारवाड, मैसूर ) शक ९९३-९४ सन् १०७१-७२, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ २ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रयं श्रीपृथ्वीवल्लभं महाराजाधिराजं परमेश्वर परमभट्टारकं स ३ स्याश्रय कुलतिलकं चालुक्याभरणं श्रीमद्भुवनैकमल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि प्रवर्धमानमाचं Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१५४ ] गावरवादका लेख ४ द्रार्कवारं सलुन्तमिरे । तत्पादपद्मोपजोवि समधिगतपंचमहाशब्द महामंडलेश्वरनुदारमहेश्वरं चलके बलुगडं ( शौर्यमार्तंड ) ૧૦૩ ܕ पतिगे ५ कदाडं संग्राम गरुडं मनुजमान्धातं कीर्तिविख्यातं गोश्रमाणिक्यं विवेकचाणाक्यं परनारीसहोदरं वीरवृकोदरं को ६ पार्थ सौजन्यतीर्थ मंडलीककंठीरवं परचक्रभैरवं रायदंडगोपाल मलेय मंडळीकमृगशार्दूलं श्रीमद्भुव ७ नैकमल्लदेवपादपंकजभ्रमरं श्रीमन्महामंडलेश्वरं लक्ष्मरसरु बेलवल मूनूरुमं पुलिगेरे मूनूरुमन्तेरडरुनूरु ८ मं दुष्टनिग्रह शिष्टप्रतिपालनेयिं प्रतिपालिसुत्तमिरे ॥ वृ॥ अणुगाल् कार्यद शौर्य दाल विजयदाल चालुक्यराज्यक्के कार ९ णमादाल तुलिलाल्तनक्के नेरेदाल कट्टायदाल मिक्क मन्नणेयाल् मातनदाल गलतेव डेदाल विक्रान्तदाल मेलदाल रणदालालदनेन - चुवावेडेयोलं विश्वासदोलु लक्ष्मण | कलितन मिल्ल चागिगे वदान्यते मेय्गकिगिल्ल चागि मेयगलियेनिपंगे शौचगुणमि११ ल्ल करं कलि चागि शौचिगं निले नुडिवोजेयिल्ल कलि चागि महाशुचिसत्यवादि मंडलिकरोलीतनेन्दु पोगल्गुं बुधमंड १२ लि लक्ष्मभूपन ॥ कुदुरेय मेले बिल् परसु तोरिंगे सूलिंगे पिंडिवालमेत्तिद करवालवादिडुव कर्कडे पाहव चक्रमेन्दो डेन्तो१३ दरुवरेन्तु पाथि सुवरेन्तु तरुम्बुवरेन्तु निल्परेन्तोदरुवरेन्तु लक्ष्मणनोलान्तु बर्दुकुवरम्यभूभुज ॥ एने ने १४ गब्द लक्ष्मभूपति जनपतिभुवनैकमहरूदेवादेशं तनगेसदिरे माडिसिदं [ जिनशा - ] सनवृद्धियं प्रवर्धनमागलु || आ चैत्याल Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ १५४ - १५ यद पूर्वावतारमेन्तेने ॥ क ॥ श्रीवसुधेशन बावं रेवकनिर्मडिय वल्लभं तुगनात्मावगतसकलशास्त्र निलाविश्रुतकीर्ति १०४ १६ गंगमंडलनाथ ॥ वृ ॥ रूडिगे रूडिवेत्तेसेद बेल्वलदेशमनाल्द गंगपेर्माडिगलिन्दमणिगेरे नालकेरेवट्टेनिमित्त नाढ नाडा १७ डिगलुंबमेंबिनेगमा पुरदोलु जयदुत्तरंग पेर्माडियिनाय्तु बूतुगनरेंद्र ननल्लि जि १८ नेंद्रमंदिर ॥ वृ || संगतमागे माडि तलवृत्तियनल्लिगे मूडगेरि गुम्मुंगोलनादियागेनेगल दिट्ट १९ में गावरिवाडमेंब बाडंगल शासनं बेरसु सर्वनमस्यमिवेंदु बिहु गुणकीर्तिपंडित मक्ति २० यिनुत्तमदानशक्तियि ॥ क ॥ उदितोदितमेने विभवास्पदमेने भुवनयूकवन्द्यमेने संचलमागदे गंगा २१ न्वयमुलिनमिदु सर्वनमस्यवागि नडेयुत्तमिरलु ॥ वृ ॥ परमश्रीजिनशासनक्के मोदलादी मूलसंघ २२ निरन्तरमोप्पुत्तिरे नन्दिसंघवेमरिंदादम्बयं पेपुवेत्तिरे सन्दर् वलगारमुख्यगणदोलु गंगान्वयविक २३ तिर्गुरुलु तामेने वर्धमानमुनिनाथर् धारिणीचक्रदोलु ॥ श्रीनाथर् जैनमार्गोत्तमरेनिसि तपः ख्यातियं २४ तादिदर् सज्ज्ञानात्मर् वर्धमानप्रवरवर शिष्यर् महावादिगलु विद्यानन्दस्वामिगल तम्मुनिपतिगनुजर तार्किका २५ कमिधानाधीनर माणिक्यनं दिविपतिगलवर शासनोदात्तहस्वरु ॥ तदपत्यर् गुणकीर्तिपंडितर् अवर् तच्छास Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गावरवाडका लेख २६ नख्यातिकोविदरा सूरिंगलात्मजर् विमलचन्द्रर् तत्पादांमोजषट् पदर् उद्यद्गुणचंद्ररन्तवर शिष्यरु नोडिशास्त्रा२७ र्थदोलु विदितरु गण्डविमुक्तरिन्नमयनन्थाचार्य गर्योत्तमरु ॥ वृ ॥ पोले चोलं नेलेगेह तन्न कुल२८ धर्माचारमं बिटु बेलवलदेशक्कडियिह देवगृहसंदोहंगलं सुटु कय्यले पापं बेलेदेते२९ नल्के धुरदोलु त्रैलोक्यमल्लंगे पंदलेयं कोहसुवं बिसु? निज वंशोच्छित्तियं माडिद ॥॥ श्रीपेर्मा३० नडि माडिसिदी परमजिनालयंगलं पोलेवहिर्दा पाण्डयचोलनेब महापातकतिवुलनलिदधोगतिगिलि३१ द ॥ ६ ॥ बलिकी बेल्वलदेशमं पडेददंडाधीशसामन्तमंडलिकर धर्मद बटुंगे? नडेयुत्तिदल्लि तज्ज्ञं मनं३२ गोले कालीयगुणेतरं कृतयुगाचारान्वितं लक्ष्ममंडलिकं निर्मल धर्मयत्तलेय नष्टोद्धारमं माडि३३ द ॥ ई नेलदोलु नेगल्तेय पोगल्तेय बाल्तेय पुण्यतीर्थ सन्तानदोलिन्नविल्लेनिसि संदुदु दक्षिणगंगे तुंगभ३४ दानदि तन्नदीतटदोलोप्पुव कक्करगोण्डमेंबधिष्ठानदोलुबराधिपति चक्रधरं नेलसिर्द बीडिनोलु ॥ ३५ वृ ॥ शककालं गुणलब्धिरंध्रगणनाविख्यातमागल विरोधकृदन्दं बरे चैत्रमागे विषुवरसंक्रान्तियोलु पु३६ प्यतारके पूर्णागिरमागे चक्रधरदत्तादेशदि देशपालकचूडामणि धर्मवत्तलेयनस्युत्साहिदि Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [ १५४ ३७ माडिद ॥ क ॥ त्रिभुवनचन्द्रमुनींद्ररनभिवंदिसि भक्तिर्षिदे कालगचि जगत्प्रभुवनि बेसदिं लक्ष्मणविभु १०६ ३८ कोहं हस्तधारेयिं शासनम ॥ वृ ॥ एरडर्नूर बाडदोलगी जिनगेहवे पूज्यमेंदक्करसर कां ३९ के बिल्बु बिय मुंबल मुंबलिदायमा दियागेरडरुवन्तु पोन्नरुवणं समकने माडि शासनं । ४० बरेयिसि कोहु धर्मगुणमं मेरेदं नृपमेरु लक्ष्मण ॥ जिननाथावासमं वासवरितु निममं कष्ट ४१ कालेयदुर्भावनेयिं चांडालचोलं सुडिसि किडिसे विच्छित्तियागिदुर्दे नेहने नष्टद्धारमं शाश्वतमतिशय ४२ मातेंबिनं माडि तच्छासनमाचंद्रार्कवारं निले निलिसिदनें धन्नो लक्ष्मभूपं ॥ भरसर्गे सेसेयेन्द ४३ रसर काणिकेयेन्दु दायधर्मंद तेरेयेन्दरुत्रणदिंदग्गल मेन्दरेवीसमनक्कि कोंडवर चांडालरु ॥ ४४ स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्दमहासामन्त भुजबलोपार्जितविजयलक्ष्मीकान्तं समस्तारिविजय ४५ दक्षदक्षिणदोर्दण्डं कसले कुलकमलमार्तण्डं मयूरावतीपुरवराधीश्वरं ज्वालिनीलब्धवरप्रसाद क ४६ वर्ष जिनधर्म निर्मलं नेरेकटियंककार नामादिसमस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमन्महासामन्त बे ४७ वलाधिपति भुजबल काटरसरु ॥ ॥ जगमेल्लं देसेगे कयूमुगिगेम कोरियनोन्दु कागिणियुम ४८ ना गगनदोलिर्पादित्यं बगेदुदनित्तपने बेल्वलादित्यन वोलु ॥ इन्तेनिसिद बेल्बलादित्य Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१५४ ] गावरवाडका लेख ४९ य परिधाविसंवत्सरद पुष्यसुद्ध पंचमि - बृहस्पतिवारदंद अग्णिगेरेय गंगपेर्माडिय बस ५० दिय दानसा लेगळिगालव गावरिवाडद सम्म सिवटद मन्त्तरवतुमन् भडिगेरेयोलु क्रयविक्रय ५१ दिं यलियाचार्यरु त्रिभुवनचन्द्र पंडितर कालं कचि धारापूर्वकं माडि बिहू कोहरु | ." ५२ स्वस्ति समस्त विनमदमरमकुटतटघटितशोणमाणिक्य मौक्तिकमयूखकुंकुमलयजाभ्यर्चि 100 ५३ श्रीमदर्हत्परमेश्वरप्रणीतपरमागमविशारदस्मन वरतपरमागमो - पदेशप्रसंगरुमप्प श्रीमदु ५४ दयचन्द्र सैद्धान्तदेवर दिव्यश्रीपादपद्माराधकरुं श्रीमत् बलात्कारगणांबुज सरोवरराजहंसरुमप्प श्री ५५ मत्सकलचंद्र देवरु श्रीमद्राजधानीबद्दणमणिगेरेय महास्थानं श्रीमद्गंगपेर्माडिय बस ५६ दिगालव ग्रामादि वाडदलु याचार्यरुं चकुंडगावुंडमुख्यवागि हेगडे सहित मूवत्तु मनुष्य ५७ देवपुत्रर्गे कोट वृत्तिय क्रम ॥ चंडव्वेय मगं हेग्गडे मल्लय्यनु यादिनाथस्वामिगेयल्लियाचा ५८ रियरों बेसकेय्दुंब वृत्ति मत्तर् ( प ) न्नेरडु केलगावुड याचार्य पादपूजेयं को ५९ तम्म सेनगणद बसदिगे हूलिगोलद सीमेडिदु कुलुपल्लदिं पटुवलु मत्तरेंटु यरुवणं गद्याणं ६० नाटकरिंदधिक कोंडवर चांडालरु || एम्मेय केसि सेटिय साम्यके मत मने व भोगवाडगे गद्याणं ना Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.८ जैनशिलालेख-संग्रह [१५४६१ ल्कु कणबिय सेहिय बम्मि सेहिय साम्यक्के मत्तरेंटु मने वोंदु भोगवाडगे गवाणं नाल्कु कत्ते६२ य दारि सेटिय साम्यक्के मत्तरेंटु मने वोंदु मोगवाडगे गवाणं नाल्कु हब्बेय देवि सेहिय ६३ साम्यक्के मत्तरेंटु मने वोंदु मोगवाडगे गद्याणं नारकु गोलिय चडि सेटिय साम्यके मत्त१४ रेटु मने बोंदु भोगवाडगे गयाणं नाल्कु हड्डलिय संकि सेडिय साम्यक्के मत्तरेंटु भने ६५ वोंदु मोगवाडगे गाणं नाल्कु कंदल मल्लि सेटिय साम्यक्के मत्तरेंटु मने चोंदु भोगवाडगे गधाणं ६६ नाल्कु मालवेय पुत्ररु चण्डि सेहिय साम्यक्के मत्तरेंटु मने वोंदु मोगवाडगे गाणं नाल्कु माध६७ वसेडिय साम्य के मत्सरेंटु मने वोंदु भोगवाडगे गाणं नाल्कु [ इसी तरह ८३वीं पंक्ति तक बयसर बोप्पि सेट्रि, नेमिसेट्रि, गोखर बम्मि सेट्रि, मयिलि सेट्रि, गोखर बोसि सेट्टि, चंदि सेट्टि, एम्मेयर चवुडि सेट्टि, होयसर चवुडि सेट्टि, केल्लर गोरवि सेट्टि, तालबम्मि सेट्टि, कडबर देवि सेट्टि, मंचल बोसि सेट्टि, बेणिल मल्लि सेट्टि, बेण्णेय नालि सेट्टि, दोड्डर केति सेट्टि, मंजडिय येचि सेट्टि, गंडि सेट्टि, मुरियर कलि सेट्टि, बयिसर बसवि सेट्टि, नूति सेट्टि, चिक्कि सेट्टि, इनके बारेमे निर्देश है।] ८३ नाल्कु चिक्कि सेहिय साम्यक्के मत्तरेंटु मने वोंदु भोगवाडगे गधाणं नाल्कु यिन्ती देवपुत्रिकरोलगे याव८४ नोवनु धर्मक्कं याचार्यग विरोधियागि राजगामित्वं माडिदन प्पडे वृत्तिच्छेदसमयबास ॥ ४५ स्वस्ति समस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमन्महाप्रधानं वसुधैकवान्धवं श्रीरेचिदेवदंडनाथ बहकरे Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१५५] गावरवाडका लेख ८६ य श्रीकलिदेवस्वामिजिनश्रीपादानेगे करकुंकुमश्रीगंधसहित यष्टविधार्चनेगे ८. कोर केपियरकेरेयिं मूढलु मत्तंर् पम्नेरदुमं याचार्य देवपुत्रि करुं सर्वाबाधप८८ रिहारवागि प्रतिपालिपरु ॥ दक्षिण ऐयावोलेयुमप्प प्रामादि वाडक्के श्रीगंगाडि ८९ य बसदिय पुरद मर्यादेय घले मूवत्तेंटु गेणु हस्त बेंगोल्लदंगे वृत्ति सल्लदु ॥ वर्धतां जिनशा९. सनं॥ ९१ गंगासागरयमुनासंगमदोलु बाणारसि गयेयेम्बो तीर्थगलोलात्म कुलद्विजपुंगवगोकुलमनलिदरिन्तिदनलि९२ दरु ॥ स्वदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुंधरां । षष्ठिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमिः ॥ ९३ याचार्यर येकटिगनागि बेसकेरदुंब वृत्ति कुरिवर केते... ९४ न्दु ॥ याचार्यरु चबुड गवुडन हेसरिदुदक्के मूगवाड रन"" ९५ लद सीमेयलु कोह वृत्ति मत्तर वोदु यदु हॉलगरे । [ इस बृहत् शिलालेखके चार भाग हैं। पहले भागमें (पंक्ति१-४३) अण्णिगेरे नगरके गंगाडि जिनमन्दिरका वर्णन है। यह मन्दिर रेवकनिमंडिके पति बूतुगके स्मरणार्थ बेलवल प्रदेशके शासक गंगपेर्माडिने' बनवाया था तथा उसने उसे मूडगेरी, गुम्मुंगोल, इट्टगे और गावरिवाड ये चार गांव दान दिये थे। यह दान मूलसंधनंदिसंघ-बलगार गणके गुपकीर्ति । पण्डितको दिया गया था। गुणकीतिकी गुरुपरम्परा इस प्रकार थी-गंग १. रेवकनिर्मडि राष्ट्रकूट सम्राट कृष्ण (तृतीय) की बहन थी जो गंग राजा बूतुगको न्याही गयी थी। गंग पेमाडि इनके पुत्र मारसिंह (तृतीय) (सन् १६०७४) अथवा पौत्र राजमल्ल (चतुर्थ ) होंगे। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ १५४ - वंशके गुरु वर्धमान विद्यानन्द स्वामी - उनके गुरुबन्धु तार्किकार्क माणिक्यनन्दि - गुणकीर्ति - विमलचंद्र - गुणचन्द्र – गण्डविमुक्त - उनके गुरुबन्धु अभयनन्दि । कालान्तरसे चोल राजाने बेलवल प्रदेशपर आक्रमण fear तब इस मन्दिरको नष्ट-भ्रष्ट किया किन्तु शीघ्र ही इस चोल राजाको अपने पापका प्रायश्चित्त करना पड़ा क्योंकि चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्ल सोमेश्वर ( प्रथम ) द्वारा वह युद्धमें मारा गया । तदनन्तर बेल्वल प्रदेश के कई शासक हुए जिनने इस मन्दिरकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया । चालुक्य सम्राट् भुवनेकमल्ल सोमेश्वर ( द्वितीय ) के समय बेल्वल तथा पुलिगेरे प्रदेशका शासन महामण्डलेश्वर लक्ष्मरसको सौंपा गया । उसने इस मन्दिरका जीर्णोद्धार किया तथा उसके लिए मुनि त्रिभुवनचन्द्रकी समुचित दान दिया । इस दानकी अनुज्ञा देते समय सम्राट् सोमेश्वर तुंगभद्रा नदीके तीरपर कक्करगोंडके सेनाशिबिर में ये तथा शक ९९३ वर्ष चल रहा था । ११० - इस शिलालेखके दूसरे भागमें बेल्वलके अगले शासक काटरसका उल्लेख है जो मयूरावती नगरका स्वामी था । तथा ज्वालिनी देवीका उपासक था । इसने उपर्युक्त मन्दिरको शक १९४ में कुछ दान दिया । यह दान भी त्रिभुवनचन्द्रको दिया था । तीसरे भागमें इस मन्दिरके व्यवस्थापक उदयचन्द्रके शिष्य सकलचन्द्रका उल्लेख है । इनने मन्दिरको ज़मीन जोतनेके लिए मल्लय्य आदि तीस श्रेष्ठियोंको सौंपी थीं । चौथे भागमे महाप्रधान रेचिदेव द्वारा बट्टकेरे नगरके जिन तथा कलिदेवकी पूजाके लिए कुछ जमीन दान दिये जानेका उल्लेख है । १. यह राजा चोल राजाधिराज होगा । ( सन् १०१८-५२ ) २. यह युद्ध सन् १०५२ के आरम्भमें हुआ था । ३. पूर्वोक्त गुरुपरम्परासे त्रिभुवनचन्द्रका सम्बन्ध अगले लेखमें स्पष्ट किया है। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -1१५] भषिणगेरिका लेख यह शिलालेख अन्तिम रूपसे सन् ११५० के करीब लिखा गया होगा।] [ ए० ई० १५ पृ० ३३७ ] अण्णिगेरि ( मैसूर ) शक ९९३-६४ %= सन् १०७१-७२, कबाड [ यह लेख अक्षरशः गावरवाड लेखके पहले दो भागों जैसा ही हैसिर्फ चार श्लोक इसमें अधिक हैं। यथा- (१) मंगलाचरणमे-जगत्त्रितयनाथाय नमो जन्मप्रमाथिने। नयप्रमाणवाग्रश्मिध्वस्तध्वान्ताय शान्तये ॥ (२) महामण्डलेश्वर लक्ष्मरसके वर्णनमें--मले यंतो (ट्ट) लतुलिदं मलेयोल मामलेव मलेपरं मग्गिसिदं मलेयेलं कोपिर्दुमनलेदं जलनिधियोलें प्रतापियो लक्ष्म ॥ (३-४) गुणकीति पण्डितकी शिष्य परम्पराके वर्णनमेंकृतकृत्यरभयनन्दिमल तनूजर सकलचन्द्रसिद्धान्तिकरप्रतिमर् सर्वांगमलान्वितगण्डविमुक्तदेवरा मुनिशिष्यर् || एनिसिद गण्डविमुक्तर तनूभवर् चरणकरणपदविद्यापावन मन्त्रवाददो त्रिभुवनचन्द्रमुनीन्द्ररल्ते बुधजनवन्धर् ।। इससे अभयनन्दि - सकलचन्द्र - गण्डविमुक्त - त्रिभुवनचन्द्र इस परम्परा का पता चलता है। इस लेखमें गावरवाड लेखके अन्तिम दो भाग नहीं हैं । अतः प्रतीत होता है कि यह शक ९९४ में ही खुदवाया गया होगा।] [ए० इ० १५ पृ० ३४७ ] १५६ हैदराबाद म्युजियम ( आन्ध्र ) सं० १५ (२) ८ = सन् १०७२, संस्कृत-नागरी [ इस मूर्तिलेखमें वीतरागकी उपासिका रावदेवी-द्वारा देवांगना तथा लोणीपतिको मूर्तियोंकी स्थापना किये जानेका उल्लेख है । समय संवत् Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 जैन शिलालेख संग्रह ११ ( २ ) ८ है । इसका तीसरा अंक कुछ अस्पष्ट है । ] ११२ [ $40 [रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० १५३ ] १५७ लक्ष्मेश्वर (मैसूर) शक ९९६ - सन् १०७४, कमंड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लके समय चैत्र शु० ८, रविवार आनन्द संवत्सर, शक ९९६के दिन लिखा गया था । मणल कुलके महासामन्त जयकेसियरसने पुरिगेरेके पेर्माडिबसदिके दर्शन किये तथा मूलसंघ - बलात्कारगणके गण्डविमुक्त भट्टारकके शिष्य त्रिभुवनचन्द्र पण्डितके निवेदनपर उसे पुरके रूपमे परिवर्तित किया ऐसा इसमें उल्लेख है ।] [रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई० २९ पृ० १६३] १५८ हनगुन्द (मैसूर) शक ९९६ सन् २००४, कराड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लदेव सोमेश्वर (२) के समय पौष शु० ५, रविवार, शक ९९६, आनन्द संवत्सर, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर लिखा गया था । इसमें सूरस्तगण चित्रकूटान्वयके अरुणंदिभट्टारकके शिष्य आर्य पण्डितको पोन्नुगुन्दकी अरसर बसदिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान श्रीकरण देवणय्य नायक, पेगंडे नाकिमय्य, पेगंडे रेवणय्य, करण आय्चप्पय्य, तथा पसायित काटिमय्यने सर्व प्रधानों द्वारा की गयी जिन पूजाके अवसरपर दिया था । उस समय बेल्वल तथा पुलिगेरे प्रदेशोंपर महामण्डलेश्वर संग्रामगरुड लक्ष्मरस का शासन चल रहा था ।] [ मूल कन्नडमें मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ १० १११ ] Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १६१ ] सोमापुर आदिके लेख १५६ सोमापुर ( धारवाड, मैसूर ) ११३ शक ९९६ = सन् १०७४, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा भुवनैकमल्लके समय शक ९९ ( ६ ), आनन्द संवत्सर, पुष्य शु० ५, बुधवारका है। इसमे किसी सेट्टि द्वारा एक जैन सदिको दिये गये दानका उल्लेख है । ] [ रि० सा० ए० १९३३-३४ क्र० ई० ७७ पृ० १२६ ] १६० लक्ष्मेश्वर (मिरज, मैसूर ) शक ९९९-१००० = सन् १०७७-७८, कन्नड [ इस निषिधिलेखमे सूरस्थ गणके श्रीनन्दि पण्डितदेव तथा उनके बन्धु भास्करनन्दि पण्डितदेव के समाधिमरणका उल्लेख है । पुरिकर नगर ( लक्ष्मेश्वर ) के आनेसेज्जेबसदि मे इन्होने सल्लेखना ली थी । मृत्युतिथियाँ क्रमशः आषाढ़ शु० १२, बुधवार, पिंगल संवत्सर शक ९९९ तथा चैत्र अमावास्या, रविवार, कालयुक्त संवत्सर शक १००० इस प्रकार दी हैं ।] [रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई ६ पृ० १६१ ] १६१ अक्कलकोट ( सोलापुर, महाराष्ट्र ) चालुक्यविक्रमवर्ष ४ = सन् १०७८, कन्नड [ इस लेखमें एक जैन मठके लिए कुछ उद्यान, भूमि आदिके दानका उल्लेख है । तिथि पुष्य व० २, रविवार, उत्तरायण संक्रान्ति, सिद्धार्थि संवत्सर, चालुक्य विक्रम वर्ष ४ ऐसी दी है । ( वस्तुतः उस वर्षका नाम कालयुक्त संवत्सर था । ) चालुक्य सम्राट् विक्रमादित्य ६ के समयका यह लेख है । ] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ९६ पृ० ३५ ] ८ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ $98 जैनशिलालेख संग्रह १६२ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) चालुक्यविक्रमवर्ष ६ = सन् १०८०, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्लके राज्यवर्ष ६, पुष्य व० ( ६ ) गुरुवार, दुर्मतिसंवत्सरका है । इस समय महामण्डलेश्वर जोयिमय्यरसको पत्नी नाविकव्वेने कोण्डकुन्देयतीर्थमे चट्टजिनालयका निर्माण किया तथा उसे कुछ भूमि दान दी थी। ] [रि० स० ए० १९१५-१६ क्र० ५६५ पृ० ५५ ] - [ १६२ १६३ अलनावर ( धारवाड, मैसूर ) शक १००३ = सन् १०८१, कन्नड [ यह लेख शक १००३ का है । कदम्ब राजा गोवलदेवके समय अलनावरके जैन वसदिके लिए नरसिंगय्य सेट्टि द्वारा कुछ दान दिये जाने का इसमे उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९२५-२६ क्र० ४७० पृ० ७८ ] १६४ वनवासि (मैसूर) सन् १०८१, कन्नड़ [ यह लेख कादम्बचक्रवति चीरमके राज्यवर्ष १२, दुर्मति संवत्सर में कार्तिक कृ० ५, सोमवार के दिन लिखा गया था । इसमे तिप्पिसेट्टि सातय्य की पत्नी भोगवे समाधिमरणका उल्लेख है। इनके गुरु देसिगण - पुस्तककुण्डकुन्दान्वयके सकलचंद्रभट्टारक थे । ] गच्छ [रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई० १४३ पृ० १७२ ] Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मेश्वरका केस लक्ष्मेश्वर ( मैसूर) चालुक्यविक्रमवर्ष ६ - सन् १०८१, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछन(।)जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥१॥ २ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम महाराजाधिराज परमेश्वर परममट्टारकं सत्याश्रयकुलतिलकं चालुक्या३ मरणं श्रीमत्रिभुवनमल्लदेव ॥वृत्त। धरेयं वाराशिपर्यन्त मनवयदि दुविनीतावनीपालर बेरं कितुं नीरोल गलगलनलेदो४ डाडि मुग्मिन्तु चक्रेश्वररार निष्कंटकं माडिदरेने महि निष्कंटक माडि चक्रेश्वररत्नं सन्ततं पालिसिदनतिबलं विक्रमादित्यदेवं ॥२॥ अन्तु श्रीम५ त्रिभुवनमल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमा चंद्रतारं सलुत्तमिरे ॥ तदनुजं स्वस्ति समस्तभुवनसंस्तूयमान लो६ कविख्यातं पक्षलवान्वयं श्रीमहीवल्लभ युवराज राजपरमेश्वर वीरमहेश्वरं विक्रमामरणं जयलक्ष्मीरमणं शरणागतरक्षामणि चालु७ क्यचूडामणि कदनत्रिनेत्रं क्षत्रियपवित्रं मत्तगजांगराजं सहज मनोजं रिपुरायसूरेकारनण्णनंककारं श्रीमत्त्रैलोक्यमल्ल ८ वीरनोलंब पल्लवपेर्मानडि जयसिंहदेव ॥वृत्त॥ परचक्र-कालचक्रं नलनहुषनृगाद्यादिभूपाळकालोचरितं चालुक्य-चूडामणि सहजमनोजं नतारा Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ जैनशिलालेख-संग्रह [ १६५ ९ तिभूमीश्वरसंघातोत्तमांगामरणमणिगणज्योतिरुत्तंसमास्वधरणं सामान्यने भूपरोलपगतविद्विटकदंब नोलंब ॥३ वचन ॥ एनिसिद पोगल्तेगं नेगल्तेगं नेलेये१० निसि ॥॥ अरसुगुणंगल मयवेत्तिरे पगे मिगदिरे जनानुरागं पिरिदागिरे कीर्तिलतिके निमिरुत्तिरे वीरनोलंबन-वनतारिकदंब ॥४ व॥ एरड[ मू]नूरुमं वनवासेपनि सिरमु११ मं सान्तलिगेसासिरमुमं कंडूर सासिरमुमं सुखसंकथाविनोददि प्रतिपालिसुत्तमिरे । तत्पादपनोपजीवि । समधिगतपंचमहाशब्द महासामन्ताधिपतिं महाप्र१२ चण्डदण्डनायकं रिपुमस्तकन्यस्तसायकं साहित्यविद्यांगनाभुजंग सरस्वतीमुखकमल गनाराधितहरचरणस्मरणपरिणतान्तःकरणं । सरस्वतीकामरणं १३ श्रीमन्महाप्रधान मनेवेगडे दण्डनायकनेरंयमय्यं किंद॥ सकल कलाब्रह्म ब्रह्माकुलार्क वस्सगोत्ररत्नाकरशीतकरं किरियने भुवन प्रकरदोल१४ रिमृत्युभूपनेरेगचमूपं ॥ ५ वृ ॥ एलेयोलु सादृश्यमप्पंदेरेगविभुगे बिपिंगे गुणपिंगे तिणपिंगेले पारावारमिंद्राचलमवसुरणिं रामनिं कृष्णनि संचलम१५ श्लिष्टगंभीरमुमगुरुवुयागिल्दुवारय्ये बेरोंदले बेरोन्दन्धि बेरोन्द निमिषनगमेसानुमुंटप्पो टक्कुं ॥ ६ कंद ॥ परिकिपोडे हस्ति मशकान्तरमेनिपुदु तन १६ गुणद नेगल्दर गुणदन्तरमेने गुणेषु को मत्सर एंव बुधोक्त एरेगविभुगे सदुक्तं ॥ ७ सदमलकीर्तिवल्लरि दिशान्तरमं तेरपिल्लदन्तु पर्विदुदु पराक्रम Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १६५ ] १७ लक्ष्मेश्वरका लेख समिद्धदु बिणपेषमाणबाह्यमादुदु चरितं शिखापदमनेयदिदुदार्पिन सूनु मते पुट्टिदने निपन्तुटाय्लेरिंगनुमतिथं पोगलल् समर्थ ॥ ८ ११७ १८ एनिसिल्दी ख्याति विख्यातिगे सलुतिरे सन्तं बसन्तं तदीयावनिबुदानि चुत्तिरे पुलिगेरेमनूरुमं स्वामिसंपत्तिन पंप तालुदि कैकोण्डनुभवि -- १९ सुसमौदार्यदि सत्यदि कर्णनुमं मिक् कुत्सवं पेत्तिरलेरेगचमूपं बलींद्रराज्यस्त्ररूपं ॥ ९ कंद ॥ तदनुजनपरिमित गुणास्पदनेसेदं भुवनकुंभुकं सुरप- २० तिसंपदनतुलभुजबलं परसुदतीप्रकरप्रसूनबाणं दोणं ॥१०॥ कलितनदोल कुरुकुलसंकुलमथनन तम्मननुपमानाकृतियोल् बलदेवन तम्मं भुजबल - २१ दोल यमसुतन तम्मनेरंगन तम्मं ॥ ११ ॥ एरेगन डिमोदलोलरिनृपरेरगिदोडदन रिये नेरगदिरर्लेबोदागेरगिसुगुं गृध्रादि गलेरेगल पतिकार्य - २२ भरधुरीणं दोणं ॥ १२ वृत्तं ॥ केणमुदारदोल कोरटे सज्जनवृत्तियोलेग्गु शीलदोल काणले बारदेंदोडे पेरर् समनपरे मार्त्यलोकदोल दोनो २३ लंगनाकुसुमबाणनो लिष्ट विशिष्टसंकुलत्राणनोल् अब्ज संभव समानसमस्त कलाप्रवीणनोल ॥ १३ परमाप्तस्वामीदेवं पशुपति जितविद्विकदंब नोलंब २४ पोरेदाद तदे सुंमत्तरगुणगणदि मिक्क तिक्कं विभास्वच्चरितालंकारे कल्वंबिके जननि तदीयाप्रजं दण्डनाथोत्कररत्नं रूढिवेसिलदेरकपनेने दोण' जसक्किकेंदा Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ जैनशिलालेख-संग्रह [१५२५ गं ॥१४ (ई) कलिकालदोल विषमकालदोल उज्वटेवायतु धर्म रत्नाकरनेविर्न पलवु कालदिनीक्षिसलादुदितु कोलपोकुमे धर्म मेन्दोसेदु तनन कौतुकमागे में२६ दिनीलोकमशेषमोंदे कोरलोल पोगलल पडिचंदमप्पिनं ॥१५ कमनीयक्रमविक्रमाब्दततिषट्कं दुर्मतिप्राब्द पुष्यमशुक्लं भृगुषष्टियोप्पलवरोल कूडलु २७ व्यतीपातमेव महायोगमुमुत्तरायणमहासंक्रान्तियुं मानवो त्तमनन्दुज्वलकीर्ति दोणनुरुधर्मत्राणनुस्साहदि ॥१६ कंद॥ परम जिनसमयरत्ना२८ करहिमकरमूलसंघसंभवशोमाकरसेनगणनमःस्थल- सरसिजबान्ध वर सितयशःश्रीधवर ॥ १७ वरमुनिपर विनतक्षितिपर निरवद्यर नरेंद्रसेन२९ चैविथर पादप्रक्षालनपुरःसर दिव्यपुरदोली पुरिकरदोल् ॥१८ चांद्रं कातंत्रं जैन, शब्दानुशासनं पाणिनि मत्तेंद्र नरेंद्रसेनमु३० नींदंगेकाक्षरं पेरंगिवु मोग्गे ॥१९ अवरपशिष्यं ॥ निनगर्नेबेनो शाकटायनमुनीशं ताने शब्दानुशासनदोल् पाणिनि पाणिनीय दोलु चांद्रं चांद्रदोलु तजिनेंद्र३१ ने जैनेंद्रदोला कुमारने गडं कातंत्रदोल पोल्परेन्तेने पोलर नयसनपण्डितरोलन्यर् वार्धिवीतोवियोल ॥२० सरसतियं मनोमुदडे तालदिदनशनवशेगेयदनानिरेनवालके चि:३२ सवतियोल पुदुवालवुदु कष्टमन्दु निष्ठुरवचनंगलं नुडिदु दिक्करियं परिदेरि कीर्ति तां पुरुडिसि दूरिपल वरतपोनिधियं नयसेनसूरियं ॥२१ अवरप्रशिष्यर् ॥ नतभू३३ पेंद्रकिरीटताडितपदाभोजद्वयं नूतनप्रतिमामारवि नारहार Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१६५] सक्ष्मेश्वरका लेख हरहासाकाशनीहारविश्रुतकीर्तिप्रमदानमाजमुकरं हा बाप्यु सामान्यमे श्रुतवाराशि नरेंद्र३४ सेनमुनिपं विद्यचक्रेश्वरं ॥२२ जितविद्विष्टप्रतापान्वितदिनधिक शौर्यस्वदाटोपदिंदूर्जितमास्वजैनधर्मापितदृढमतियिं विप्रवंशा बराहप॑तियेबोंदुद्घतेजस्तवदिनतु३५ लबलैश्वर्यदि त्यागदोंदुमतिथिदं सत्यदिदं दिनकरनतिशोमाकरं पुण्यपुंज ॥२३ दिनकरनोदयदोल तममनितुं ठूलदोडुवन्ते मिथ्यात्वतमं दिनकरनुदयिसे निजकुल३६ वनदि तूलदोडि किडुवुदें विस्मयमे ॥२४ आतन तनयर् जनविख्यातर् जिनपदपयोज{गर् विनयान्वितरेने नेगदर खिलक्ष्मातलदोल राजिमय्यनुं दूडमनुं ॥२५ वृत्त॥ ३७ जिनपादांभोज,गं सुजनजनमनोरंजनं विश्वधात्रीविनुतं दिग्द न्तिदन्ताश्रितविशदयशोमासि शिष्टेष्टकल्पावनिजं सत्पात्रदाना धिकनेनुते मनोरागदि कूतु विद्वजनमे३८ ल्लं बण्णिकुं राजननमललसत्तेजनं निश्चनिच्च ॥ २६ मनुमुनि मार्गनेम जिनपूजेयोलर्तिगर्नेदु दानियेंदनुपमतेजनेंदु शुचियंदु दयापरनेंदु निञ्चलुं मनमो(से)३९ दक्करि बिडदे बण्णिसुगुं जगमेयदे कूडे राजननिनतेजनं पसुगे गोजननाश्रितकल्पभूजन ॥ २७ तप्रियानुजन शौर्यदलवं पेल्वडे । कडुपिन्द ४० धरणीश्वरं बेससे चौरासीशनं बन्दियं पिडिदं साहसदिन्दम मुगेयनिन्दोबीशनं कोपदि पिडिदुग्दा सेरेयिट्ट सोमननस्याश्चर्यदि बन्दियं पिडि ४१ दं तानेने शोर्यदोन्दलवदें सामान्यमे वूडन ॥ २८ निजपतियं Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० जैनशिलालेख-संग्रह [१६५सेरे विडिदोडे भुजबलदि बन्दिविडिदु बिडिसिदनेन्दी त्रिजगं बण्णिसुगुं सद्विजकुलनं शौर्य४२ शालियं दूडमन ॥ २९ इन्तेनिसिद दूडन वरकान्ते मनोभवन कान्तेगं रूपिनोलत्यन्तं मिगिलेने पोगललकेन्तुं नेरेयरियर् एचिकब्बेय रूप ॥ ३० अन्तचर पुट्टिदल सुरका५३ न्तोपमे विचलद लिकुलालके विलसन्मान्तनसमेते बुधजनचिन्ता मणि हम्मिकब्बे ललनारत्न ॥ ३१ आ नेगल्द हम्मिकब्बेगनून प्रियवलमं मनोमवरूपं दानदेडे४४ गन्दिना कानीनन नोल नेगल्दनरसिमय्यं जगदोल ॥ ३२ अनुपमदानशीलगुणभूषणभूषितेयाद हम्मिकावनितेगमत्युदार हरसय्यमहाविभुगं विनी४५ तनोलपिन कणि वैद्यशास्त्रकुशलं सुजनाग्रणि वैद्यकमपं तनय नेनल्के नोन्तनेन कन्नन वोल कृतपुण्यनावनो ॥ ३३ जिनपद पंकजभ्रमरनिन्दपनुदगुणाब्धियीश्वरं वि. ४६ नयविलासि राजि सुजनं कलिदेवनगण्यपुण्यवर्धनकरनादिनाथ नधिकं शुचि शान्ति नेगतेवेत पार्श्वनुमिवरात्मजातरेने कश्मन वोल् कृतपुण्यनावनो ॥ ३४ [यह लेख चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य (षष्ठ) त्रिभुवनमल्लके छठवें वर्षमें अर्थात् सन् १०८१ में लिखा गया था। उस समय बेलवोल, पुलिगेरे, बनवासि, सान्तलिगे, तथा कण्डूर प्रदेशोंपर सम्राट्के पुत्र जयसिंह शासन कर रहे थे। इन्हे त्रैलोक्यमल्ल, वीरनोलम्ब, पल्लवपेर्मानडि ये उपाधियाँ दी हैं। इनके अधीन महासामन्त एरेमय्य पुलिगेरे प्रदेशका अधिकारी था। इसे एरेग या एरेकप भी कहा है। इसका बन्धु दोण था जिसकी लेखमें बहुत प्रशंसा की है। इसने मूलसंघ-सेनगणके नरेन्द्रसेनके प्रशिष्य Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १६७ ] अरसीबीडिका लेख तथा नयसेनके शिष्य नरेन्द्रसेन ( द्वितीय ) को पौष कृष्ण ६, शुक्रबार, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर कुछ दान दिया । इसके बाद लेखमें दिनकर, उसके पुत्र राजिमय्य तथा दूडम, दूडमकी पत्नी एचिकब्बे तथा पुत्री हम्मिकब्बे, हम्मिकब्बेका पति अरसय्य तथा पुत्र वैद्य कन्नप एवं कनपके पुत्र इन्दप, ईश्वर, राजि, कलिदेव, आदिनाथ, शान्ति, एवं पार्श्वका वर्णन है । संभवतः इन लोगोंकी प्रार्थनापर दोणने उक्त दान दिया था । ] [ ए० इ० १६ पृ० ५८ ] १६६ अरसीबीडि ( बिजापुर, मैसूर ) चालुक्यविक्रम वर्ष १० = सन् १०८५, कन्नड १२१ [ इस लेखकी तिथि आषाढ शु० १, बुधवार, कोधन संवत्सर, चालुक्य वर्ष ० ऐसी है । इस समय सुकवेगडे मन्तर बर्मणने विक्रमपुर ( वर्तमान अरसीबीडि ) स्थित गोणद बेडंगि जिनालय के ऋषि-अर्जिकाओंको आहारदान देनेके लिए कुछ करोंका उत्पन्न दान दिया था । सिन्द वंशके सिन्दरसके पुत्र बर्मदेवरसके अधीन प्रान्तीय शासक के रूपमें सुंकवेर्गडे नियुक्त था । ] [ मूल लेख कन्नडमें मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० २३९ ] १६७ मरुत्तवक्कुडि ( तंजोर, मद्रास ) तमिल, सन् १०८६ [ यह लेख ऐरावतेश्वर मन्दिरके आगे मण्डपकी दक्षिणी दीवालपर है । त्रिभुवनचक्रवति कुलोत्तुरंग चोलदेव, जिसने मदुरा जीतकर पाण्ड्य Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ १६८ राजाका शिरच्छेद किया था के १६वें वर्ष में यह लेख लिखा गया था । इसमें जननाथपुरम्के दो जैन मन्दिर चेदिकुलमाणिक्क पेरुम्बल्लि तथा गंगरुलसुंदर पेरुम्बल्लिका उल्लेख है । ] [ इ० म० तंजोर १००३ ] १२१ १६८ दोणि ( धारवाड, मैसूर ) चालुक्यविक्रम वर्ष २० = सन् १०९६, कनड [ यह लेख फाल्गुन शु० १३ गुरुवार, चालुक्यविक्रम वर्ष २० के दिन लिखा गया था । सम्राट् त्रिभुवनमल्ल ( विक्रमादित्य षष्ठ ) के राज्यका यह लेख है । इस समय यापनीय संघ वृक्षमूल गणके मुनिचन्द्र विद्य भट्टारकके शिष्य चारुकीर्ति पण्डितको सोविसेट्टि द्वारा एक उद्यान दान दिया गया था । ] [ मूल लेख कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० १६९ ] १६६ - १७० तुम्बदेवनहल्लि ( मैसूर ) चालुक्यविक्रम वर्ष २१ = सन् १०९६, कन्नड १ श्रीमदेरेयंगदेवर सबब्बर (सि) माडिसिद बसदि मंगल महा श्री २ स्वस्ति समस्तसुरासुरमस्तकमणिमकुटर श्मिरं जितचरणप्रस्तुत जिनेन्द्रशासन ३ मस्तु चिरं सकलमव्य चन्द्रजनानां । (१) मद्रमस्तु जिनशासनाय संभद्रतां प्रति 8 विधानहेतवे अन्य वा दिमदह स्तिमस्तकस्फाटनाय घटने पटीयसे ॥ (२) Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 -१७० ] तुम्बदेवनहल्लिका लेख ५. जयवर्म मुददिन्द हल्दु नियतं पट्टलिगेयं राज्यलो लेयिबालदुबतिथि मनं ६ गोलिसि विद्विष्टव्रजक्केयदे मीतियनितायमनप्पुकेयू दु चलमं कैकण्ड लोकप्रसि ७ दियुतं माडिदनावगन् निले कदम्बाम्नायविख्यातियं ॥ (३) श्रीमत्कदम्बवंशललामा ८ वनिनाथ लगे रणकिक्षितिं भीमपराक्रमनेनिसिदनी महियोल् श्ररातिनृपजयोद ९ यदिदं ॥ ( ४ ) आतन मगनमलगुणोपेतनतिप्रबलजलदघन पवननिनिपाततय १२३ १० शोविलासविनूसते गेडेयागि नेगल्द कलि हृदुवनृपं ॥ ( ५ ) तत्तनयनतुलबलनुद्वित रिपु ११ क्षितिपकुधरवज्र ं धीरोदातनेने नेगलदन कुटिल चित्तं पोचायिनूतपूतं बूत || ( ६ ) १२ आतंगे पुट्टि बलवदरातिमहीभुजर निरिदु गेल्दर्मिनोलुबतक मे पोगले तोरिदनात १३ तसितकीर्ति नोसलकण्णं चिण्ण । (७) एने नेगल्द चिण्णनृपतिगं अनवद्यलतांगि सुग्गियब्बरसिंग १४ मुर्विनदोसगे पुट्टे पुट्टिद तनेयनतिप्रकटविशदयशनेरेयंग अक्कर नेगल्द नृ १५ परननावरनेवेट्टे मीतिथिं बन्दु पोगले तन्ननवर पट्टियोडेयनं पेरगिक्कि काटुनिन्दालवरनं बगेयद् १६ आन्तरिसेनेयनोडिसि गेल्दर्मिनेसकदिं सिन्धुजंगं मिगिलुदग्रबलावलेपनं भुजादण्डनी नन्निमार्तण्डदेव ॥ ( ८ ) १७ मलेदिदिरनात चोलिक बलमेसिदोडान्तुमदिरदरेयंगन दोर्बलदलवनेवोगल्बुदो जक्कल देवननेय्दे Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ जैनशिलालेख-संग्रह [१७०१८ कादुकलिपिद चलमं ॥(९) अन्तु नेगलदेरेगनृपतिगनन्तसुखास्य देयेनिप्प येचाबिकेगं कन्तुवेनिप्प १९ चिण्णं कान्तं पुहिदनुदारतेजोनिलय ॥(१०) पुटलोडं निन्नये पेसरिट्टपरी जगद मनुजरेन्दोडे पेसरों२० दिट्टलमादडे कोल्गु पट्टलिगेय चिण्णनेम्ब मयरसदिदं ।।(११) आतंगे वुट्टिदं विख्यातितशितकीर२१ र्ति नेगल्द गण्डतरण्डं भूतलके कल्पवृक्षसमोपेतनेनिप्प दानि यरेगमहीश ॥ (१२) २१ स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्द महामण्डलेश्वरं बनवासिपुर वराधीश्वरं कादम्ब२३ चक्रेश्वरं नुदारमहेश्वरं नुमयबलगण्डं ननिमार्तडं तनगिल्लदीवं कर्गसहादे२४ वं मानिनोमनोहर हरचरणशेखरं हरिपादसरसीरुहोत्तंसं सरस्वतीक२५ र्णावतंसं विकलकुलनृपतिहृदयसनापकरं विवेकविद्याधरं भृगुमता२६ चायं मन्दरधैर्य कादम्बकुलकमलविकाशनादित्यं विजातिराजता रागणतरुणादि२७ त्यं विक्रमप्रक्रमकिशोरकण्ठीरवं कादम्बकण्ठीरवं मागधिकमा निनीमदहरिषपु२८ लक लाटवधूटीमाललीलातिलकं विरुदत्रिनेत्रं हयशालिहोत्रं तूगितु. २९ तिडव बिरुदरपेण्डिरगण्डं गण्डतरण्डं अरिबिरुदरबायोले सुरि गेयं किरिपु ३० व दोहुंकंबडिव गीतप्रगीतं गेयविनोदं निजकुलोत्तुंग श्रीमदेरे यंगदे३१ व स्थिरं जीयात् ॥ कन्द ॥ गंगेगढल्गल नोरेगं सिंगल बेल पिंगमोदवलडकिलवेलपि Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १७० ] तुम्बदेवनहल्लिका लेख ३२ संगलिसि तीविदन्त्तेरेयंगन जसमखिलभुवनांतरदोल । नटनिट लेक्षणा ३३ ग्नि नृगणंगणं उज्वलकीर्तिपाण्डुरभू कुरुलु जडेयागे जगक्के ३४ देवनादरिबिरुदत्रिनेत्रने मगी कोण्डकुन्दान्त्रयो३५ पन्ने विख्याते देखिगे गणे रविचन्द्राख्यसै यमनियम३६ स्वाध्यायपराणेयरप्प मान्यवेगन्तिय तावरेयकेरेय केलग३७ ण आडणमण्णं धारापूर्वकं कोहर् चालुक्यविक्रमकालद २१ने धातुसंवत्सरद कार्तिक न ३८ न्दीश्वरदष्टमियन्दु मंगलमहाश्री स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धरां षष्टिवर्ष ३९ सहस्राणि विष्टायां जायते क्रिमि || १२५ [ यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके निर्माण के समयका है । यह बसदि एरेयंगदेवकी रानी असबब्बरसि द्वारा बनवायी गयी थी । लेखमे एरेयंगका वंशवर्णन इस प्रकार दिया है--कदम्ब कुलमे रणकि राजा -- तत्पुत्र हृदुवतत्पुत्र बूत—तत्पुत्र चिष्ण - तत्पुत्र एरेयंग - तत्पुत्र चिण्ण २ - तत्पुत्र एरेयंग २ | इस मन्दिरके लिए कोण्डकुन्दान्वय- देसिग गणके रविचन्द्र से (द्धान्तदेव) के उपदेश से माचवेगन्ति द्वारा कुछ भूमि दान दी गयी थी । लेखकी तिथि कार्तिकी नन्दीश्वर - अष्टमी ( शुक्ल ८ ), चालुक्य विक्रम वर्ष २१, धातु संवत्सर इस प्रकार दी है इसी मन्दिरकी एक प्रतिमाके पादपीठपर ११वीं सदीको लिपिमें निम्न वाक्य खुदा है बस (दिगे) वासवुरदे बिदृग २ भत्त ५० अर्थात् — इस बसदिके लिए बासवुर ग्रामके उत्पन्नसे २ गाण ( मुद्राएँ ) और ५० भत्त (चावलके परिमाण) दान दिये गये हैं । ] [ ए०रि० मै० १९३९५० १४५ - १५२] Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ जैनशिलालेख-संग्रह [१७1 हनगुन्द ( बिजापूर, मैसूर ) काह, ११वीं सदी उत्तरार्ध [ इस लेखमे चालुक्य सम्राट् त्रिभुवनमल्लदेव ( विक्रमादित्य षष्ठ ) का उल्लेख है । तिथि शक ९. दी है। मूलसंघ-देशीय गण-पुस्तक गच्छकुन्दकुन्दान्वयके ( इन्द्र )णंदिके शिष्य बाहुबलि आचार्य द्वारा एक जिनमन्दिर बनवानेका तथा उस मन्दिरके लिए कुछ भूमिदान प्राप्त करनेका इसमें उल्लेख है।] [ मूल लेख कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० १४१ ] १७२ तोललु ( मैसूर ) कन्नड, ११वीं सदी उत्तरार्ध १ स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर त्रिभुवनमल्ल तलका २ कमाडि बिट्टन्दु ३ नडसुविरि ४-७ (ये पंक्तियाँ विस गयी हैं ) ८ स्वस्तिश्रीमतु तोलल बसदिगेनाडु ९." १० हिरिय मुद्द गनुण्ड"गनुण्ड बिलग ११ वुण्ड वूलुवनड"वुण्ड वूरवर ओक्कल १२ ""उत्तराण संक्रान्तियन्दु नविलू१३ र नेमिचन्द्रपण्डितर्गे धारापूर्वकं माडि कोहरु आ१४ नविलूरोलगे आवनागि-यदुकुववनु"हण १५ वेन्दु हिडिसिदव""हन्नोन्दु । १६ तलेयं नरकदलिलिवर गंगेयतडियलि कविले. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ -10] तिरुनिकोण्डे भादिक लेखा 1. यं ब्राह्मणरं नोसिद फलमन् एनुवरु १८ स्वदतां परदत्तो वा यो हरेत बसुन्धरांप१९ टिषसहस्राणि विष्ठायां जायते क्रिमिः ।। [ इस लेखमे तोललके जिनमन्दिरके लिए नेमिचन्द्र पण्डितको नविलूर ग्राम दान दिये जानेका उल्लेख है। यह दान हिरियमुद्दगौण्ड, बिलिगोण्ड तथा अन्य ५२ निवासियों द्वारा दिया गया था। लेखमे प्रारम्भमें त्रिभुवनमल्ल ( विक्रमादित्य षष्ठ )के किसी माण्डलिकका उल्लेख है। [ए. रि० मै० १९२७ पृ० ४४ ] १७३ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास) तमिल, ११वीं सदी उत्तरार्ध [ इस लेखके प्रारम्भमें कुलोत्तुंग चोल ( प्रथम )को ऐतिहासिक प्रशस्ति है। राजेन्द्रशोलचेदिराजन् द्वारा देवमन्दिरमे दीपके लिए कुछ धान अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेख है। उडैयार मल्लिषेणका उल्लेख है जो स्पष्टतः कोई जैन आचार्य थे। लेख चन्द्रनाथ मन्दिरके मुख्य द्वारके पास खुदा है। [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०१ पृ० ६५ ] १७४ ऊन ( मध्यप्रदेश) १५वीं सदी, संस्कृत-नागरी [ इस स्थानमे कई जैन मन्दिरोके ध्वस्त अवशेष है। इनमें एक मन्दिरके एक छोटे-से लेखमे मालवराज उदयावित्यका उल्लेख है। अतः यह मन्दिर ११वी सदीका बना है यह स्पष्ट होता है। ] [रि० आ० स० १९१८-१९ पृ० १७ ] Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮ १ श्रीमद्राविलसं ३ न्वयद नन्दिगण ५ निगल शिष्यसन्त ७ जदेवर शिष्यरु ९ वरु होयसल - ११ अग्रगण्यरु स जैन शिलालेख संग्रह १७५ सागरकट्ट े (मैसूर) ११वीं सदी, कन्नड १३ दरवर सध १५ वरु निसिधियं २ घद श्रारंगला - ४ द शान्तिमु ६ति श्रीवादिरा [ १७५ ८ श्रीवर्धमानदे १० कालियदलु १२ न्यसनद मुडि ( प ) १४ मरु कमलदे१६ निरिसिदर [ इस लेखमे द्राविल संघ - अरंगल अन्वय-नन्दिगणके शान्तिमुनिकी परम्परा के वादिराजदेवके शिष्य वर्धमानदेवके समाधिमरणका उल्लेख किया है । वर्धमानदेवके गुरुबन्धु कमलदेवने उनको यह निसिधि स्थापित की थी । वर्धमानदेवको होयसल राज्य में प्रमुख कार्यकर्ताका स्थान प्राप्त था । लेखकी लिपि ११वीं सदी की है । ] [ ए०रि० मै ० १९२९ पृ० १०८ ] १७६ वेणगि ( जि० बेलगाव, मैसूर ) ११वीं सदी, कमड [ इस लेखकी लिपि ११वीं सदीकी है । लेखके समय ( रट्ट वंशके ) कार्तवीर्य ( द्वितीय ) का शासन कूण्डि ३००० प्रदेश पर था । इसे जिनेन्द्रपादसरोजभृंग तथा सेननसिंग कहा है । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ ई० क्र० ८४ १० २४७ ] Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १७९ ] चिकनसोगे आदि के लेख १७७-१७८ चिक्कनसोगे ( मैसूर ) ड, ११वीं सदी [ यह लेख आदिनाथमूर्तिके पादपीठपर है । इसमे हनसोगेके तीर्थबसदिकी स्थापना रामचन्द्र द्वारा की जानेका तथा कालान्तर में शक, नल, विक्रमादित्य, गंग एवं चंगाल्व राजाओं द्वारा उसकी सहायताका उल्लेख है । प्रस्तुत लेखके समय नागचन्द्रदेवके शिष्य समयाभरण भानुकीर्ति पण्डितदेवने इस बसदिका जीर्णोद्धार किया था । इसी पादपीठके दूसरे लेखमें जयकीर्ति भट्टारकके शिष्य बाहुबलिदेव द्वारा बसदिके निर्माणका उल्लेख है । इन लेखोंका समय ११वीं सदी प्रतीत होता है । ये आचार्य मूलसंघ सिगण - पुस्तकगच्छके प्रमुख थे । ] [ ए०रि० मं० १९१३ पू० ५० ] १७६ चिकमगलूर (मैसूर) कन्नड, ११वीं सदी १ स्वस्ति श्रीमतु बूचब्वे २ गन्तियर सिष्य नेचटिम ३ ताय निलिधिगेय नि ४ लि... मज बरेद ॥ ८ १२९ [ यह निषिधि लेख बूचव्वेके समाधिमरणका शिष्य नेचतिमतायि-द्वारा स्थापित किया गया था । सदीकी प्रतीत होती है । ] स्मारक है जो उसके इसकी लिपि ११वीं [ ए०रि० मं० १९३२ पृ० १६२ ] Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . जैनशिलालेख-संग्रह [१८० १८० कोप्पल ( रायचूर, मैसूर ) काड, 11वीं सदी [ यह लेख ११वीं सदीकी लिपिमे है। इसमें कोण्डकुन्द अन्वयके मलघारिदेव तथा अन्य आचार्यों का वर्णन है। एक गृहस्थ जैनका भी वर्णन है। [रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १९८ पृ० ३७ ] मदविलगम् ( बेल्लारी, मैसूर ) काड, ११वीं सदी [ यह लेख ११वीं सदीकी लिपिमे है। किसी जैन मन्दिरके लिए दानशाला, उद्यान आदिकी व्यवस्थाका इसमें उल्लेख है। ] [रि० सा० ए० १९२४-२५ क्र० ३९२ पृ० ५७ ] १८२ बेलूर ( हासन, मैसूर) ११वीं सदी, कन्नड , "युतं जिनेंद्रप्रगुणि२ .."द दर्प "सले महे m ४ नेदिवं.... ५ पूर्वाकमन् एरुष""माणद"य ६ महीतलकति मुददि.. ७ क्लिोक बुध बोध"माग्य"" Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१८३] - हष्ण धादि के लेख ८ न्तं दिविजविमवमं सन्द मासावि बर्म ॥ पतिहितवृत्तियो९ लिवन् अप्रतिमन् एनल दिविज पद्म"महीपतियोडने १. कूडि पोक्कं चतुरं मासावि बर्मन"भा नेगल्द भूमि११ य मुन्नाल्दंग सले."काक्षियं माध्य देनेंताल्दनोडने सग्गम१२ न माल्द"स्यन्दु बर्म' [ इस लेखमें मासावि बर्म नामक व्यक्तिके देहत्यागका वर्णन है। अपने स्वामोकी मृत्युपर खेद व्यक्त करनेके लिए उसने सम्भवतः देहत्याग किया था। यह प्रथा होयसल राजाओंके समय रूढ थी। लेखकी लिपि ११वीं सदीकी प्रतीत होती है। ] [ए० रि० मै० १९४३ पृ० ५९ ] १८३ हहण ( मैसूर ) १२वीं सदी-प्रारम्भ, कनाड [ इस लेखमें होयसल राजा बल्लाल के समय मरियाने दण्डनायक द्वारा एक जिनमूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है। आचार्य शुभचन्द्रका भी इसमे उल्लेख है ।] [ए. रि० म० १९१८ पृ० ४५ ] १८४ चिकमगलूर ( मैसूर ) शक १०२२ = सन् ११०१, कन्नड १ सम्वत सकवर्ष १०२२ नेय २ विक्रमसंवत्सरद फाल्गुन शु (४) ३ सोमवारदंदु द-विन"" Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [१८५'४ सनंगेदु दिवक्के सुन्दरव(र)सद ५ मि मालेगब्बगन्तियप्परो""वि(ने) ६ यमं माडि निसिदिगेय माडि ७ भवर गुड जगमणचारि ब८ रेद [ यह लेख फाल्गुन शु० ४, सोमवार, शक १०२२ विक्रमसंवत्सरमें लिखा गया था। एक व्यक्तिके ( जिसका नाम लुप्त हुआ है ) समाधिमरणके बाद उसके सहाध्यायी मालेयब्बेगन्ति-द्वारा इस निषिधिको स्थापना का इसमें उल्लेख है। उसके शिष्य जगमणचारिने यह लेख उत्कीर्ण किया था। [ए० रि० मै० १९३२ पृ० १६१ ] १८५ टोक ( राजस्थान ) संवत् ११५८ = सन् ११०२, संस्कृत-नागरी [ इस मूर्तिलेखमे आलाक नामक व्यक्तिका उल्लेख है । तिथि वै ( शाख ) शु० ७, संवत् ११५८ ऐसी दी है ।] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ४७२ पृ० ६९ ] १८६ होसुर ( जि० बेलगांव, मैसूर ) शक १०३० = सन् ११०८, काड [ इस लेखकी तिथि सोमवार, पौष शु० ५, शक १०३०, सर्वधारि संवत्सर, उत्तरायण संक्रान्ति ऐसी है । ( रट्ट वंशके ) लक्ष्मीदेव-द्वारा एक बसदिके लिए राजधानी वेणुपुरसे कुछ जमीन दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। यह बसदि लक्ष्मीदेवने ही बनवायी थी।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० क्र. १५ १० २४१ ] Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १८८ ] मुडिगोण्डम् आदि के लेख १८७ मुडिगोण्डम् (मैसूर) शक १०३ ( १ ) = सन् ११०९, कन्नड [ इस लेख में मुडिगोण्डचोलपुरके नगरजिनालयको हदिनाडुका एक गाँव दान दिये जानेका उल्लेख है । यहाँको मुख्य मूर्ति चन्द्रप्रभस्वामीकी थी । तिथि शक १०३ (१) ] [रि० स० ए० १९१० क्र० १० पृ० ५४ ] १८८ श्रवणनहल्लि ( मैसूर ) १२वीं सदी - पूर्वार्ध, कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछ २ नं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं स्वस्ति ३ श्रीमन्महामण्डलेश्वर त्रिभुवनमहल तल४ काडु गोण्ड भुजबलवीरगंग विष्णुवर्धन होय्स५ देवर पिरियरसि चन्तलदेवियरु त्रिभुवनतिल६ .... तीर्थद वीरकों गाल्वजिनालय १३३ ७ द देवर अंग मोगक्कं रिषियराहारदानक्कं त८ म्म बप्प पृथ्वीकोंगाल्ब देवर वग बलिवलि बि९ ट्ट मन्दगेरेय प्रतियोलगे कावनहल्लिय तम्म १० तम्म दुद्दमल्लदेवनु तावुं इदु श्रीमूलसंघ ११ देसिगगण पुस्तकगच्छ कोण्डकुन्दान्वयद श्रीमेघ१२ चन्द्रत्रैविद्यदेवर शिष्यरु प्रभाचन्द्र सिद्धा (न्तदेव-) १३ र कालं कचिं धारापूर्वकं माडि स ( र्वबाधा - ) १४ परिहारं माडि बिट्ट दत्ति सं (गल महा Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१८९१५ श्री ॥ इदन आवन ओवं प्रतिपालिसिद १६ (क) विलेय कोई कोलगर्म १. गंगेय... [ इस लेखमें होयसल राजा विष्णुवर्धनकी रानी चन्तलदेवी-द्वारा तथा उसके बन्धु दुद्दमल्ल-द्वारा वीरकोंगाल्व जिनालयके लिए कावनहल्लि ग्राम दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान मूलसंघ-देसिगगणके मेघचन्द्रविद्यदेवके शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवको दिया गया था।] [ए० रि० मै० १९२७ पृ० १०३ ] १८६ अंकनाथपुर ( मैसूर ) १२वीं सदी-पूर्वार्ध, कन्नड [ इस लेखमे एक जिनमन्दिरके जीर्णोद्धारके लिए राजा दुद्दमल्ल-द्वारा हेण्णेगडंग नगरसे अय्बवल्लि ग्रामके दानका उल्लेख है। यह दान प्रभाचन्द्रदेवको दिया गया था । लिपि ११वीं सदीकी है।] [ए. रि० म० १९१३ पृ० ३३ ] १९० कण्णूर ( मैसूर ) चालुक्यवर्ष ३७ = सन् १९१२, कन्नड [ चालुक्यसम्राट विक्रमादित्य (षष्ठ ) के समय चालुक्यविक्रम वर्ष ३७ ( सन् १११२ ) में कालिदासदण्डनाथ-द्वारा कन्नदुरीके पार्श्वनाथबसदिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका इस लेखमें निर्देश है। मलसंघदेशिगण- पुस्तकगच्छके आचार्य वर्धमानमुनिके प्रशिष्य तथा बालचन्द्रप्रतीके शिष्य अर्हणन्दिबेट्टददेवको यह दान दिया गया था।] [रि० आ० स० १९३०-३४ पृ० २४२ ] Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१९२] जबकि भादि के लेख जक्कलि (बिजापूर, मैसूर) चालुक्यविक्रमवर्ष ४१ =सन् १२१६, कार [ इस लेखमें चालुक्यविक्रमवर्ष ४१ में उत्तरायण संक्रान्तिके समय एक जैन मन्दिरके जीर्णोद्धारके लिए कुछ दानका उल्लेख है ।] [रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई० १९६ पृ० १७ ] २६२ कोल्हापुर ( महाराष्ट्र) शक १०३७ = सन् १११५, संस्कृत-कन्नड पहला पत्र १ स्वस्ति । जयस्याविष्कृतं विष्णोराहं क्षोमितार्णवं (1) दक्षि पोतदंष्ट्राग्रविश्रा२ न्तभुवनं वपुः ॥ (१) जयति जगति रूढो राजलक्ष्मीनिवासः प्रविजित रिपु३ वर्गस्वीकृतोत्कृष्टदुर्ग () सकलसुकृतवासो वीरलक्ष्मीविलासो जनितसुजन४ रागः श्रीशिलाहारवंशः (॥२) श्रीमशिलाहारनरेन्द्रवंशे श्री कीर्तिकान्ताः कमनी५ यरूपाः (1) विख्यातशौर्या बहवो नृपेन्द्राः संपालयामासुरिमा ६ त्री (॥३) तवंशे नृपतिर्बभूव जतिगो गोमन्थदुर्गाधिपो मामः श्रीवनितापतिस्सु. • चरितो गंगस्य पेर्मानडेस्तस्याभूत्तनयः प्रतापनिलय (:) श्री. नायिमां Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१९२“ को नृपः कर्णाटीकुचकुंकुमांकिततनुर्विद्याधराधीश्वरः (४) तस्यात्म९ जस्सुपरिवर्धितराज्यलक्ष्मीः प्रादुर्बभूव समुपार्जितपुण्यपुनः (6) १० चन्द्रायो जगति विश्रुतकीर्तिकान्तत्यागार्णवो बुधनुतो नयनामि११ रामः (॥५) तस्यापि पुत्रो जतिगो नरेन्द्रो जातः प्रवीरो गज यूथनाथ: (1) तस्या१२ त्मजौ गोंकलगूवलाख्यौ जातावुमौ वैरिकुलाद्रिवज्रौ (॥६) तद्____ गोंकलस्य तनुजी रिपुदस्ति१३ सिंहः श्रीमारसिंहनृपतिमरुवक्कसर्पः (१) प्रादुर्बभूव समरां गणसूत्र१४ धारो विख्यातकीर्तिरिह पण्डितपारिजात: (७) तस्याप्रसूनुजंग देकवीरो वी१५ रांगनाबाहुलतावगूढः कीर्तिप्रियो गूवलदेवनामा बभूव भूपाल१६ वरो नरेन्द्रः (१७) तस्यानुजस्सकलमंगलजन्मभूमिरासीन्नृपाल तिलको भुवि भोज१७ देवः (1) प्रोत्तुंगवीरवनिताश्रयवाहुदंडश्चंडारि-मंडलशिरोगिरि वज्रदंडः (३९) दूसरा पत्र : पहला भाग १८ श्रीमत्कदंबांबरतिग्मरश्मे शिशरस्सरोज खलु शान्तरस्य (1) पूजां प्रचक्रे स च चक्रवर्तिश्रीविक्र१९ मादित्यनृपेंद्रपादे (॥१०) किं वय॑ते जगति वीरतरः प्रसिद्धः __कोपात्तु कोंगजनृपोपि२० पपात यस्य (1) सूर्यान्वयांबररविस्स च बिज्जणोपि चक्रे गृह सुरपतेर्भुवि य२१ स्य कोपात् (॥११) यत्प्रतापप्रदीपेस्मिन् कोक्कलशलमायितः (1) पलायिता न गण्यन्ते सोयं Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ -१९२ ] कोल्हापुरका लेख २२ मोजनृपाखकः ( ॥१२) वेणुग्रामदवानको विजयते बैरीमकण्ठीरवो गोविंदप्रयान्त २३ कः शिखरिणो वज्रः कुरंजस्य च (1) मोज: स्वीकृतकोंकणो भुजबलात् तद्भिल्लमोद्बन्ध २४ कृत् सोयं कर्णं दिशापटो रिपुकुभृद्दोर्दण्डकण्डूहर : ( १३ ) तस्यानुजातो गुणराशि २५ रासीत् बल्लालदेवो जितवैरिभूपः (1) जीमूतवाहान्वयरत्नदीपो गंभीर २६ मूर्तिर्भुवि शौर्यशाली ( ॥१४) अजनि तदनुजात स्तिग्मरश्मिप्रतापो दिविजय विजयतिवि २७ भूतिस्सर्व लक्ष्मीनिवास: (1) कृतरिपुमदमंगो राजविद्याप्रसंगो भुवनवि २८ नुतमूर्तिगंण्डरादित्यदेव : (१५) चक्रे चालुक्यचक्रेशो विक्रमादिव्यवल्लभः (1) निश्शं २९ कमल इत्याख्यां गण्डरादित्यभूपतेः (१६) धन्यास्ते मानवास्सर्वे धन्याश्च मृगजात ३० य: ( 1 ) स देशस्सफको यत्र गण्डरादित्यभूपतिः ( ॥५७ ) यत्खड्गाद्भुततीव्रघा ३१ तचकितस्तत्कूण्डिदेशाधिपो दण्डब्रह्मनृपो जगाम सदनं संसेव्यमानं सुरै ३२ स्त्यक्त्वा राष्ट्रमतीवरम्यमतुलां लक्ष्मीं भुजोपार्जितां सोयं गण्डरदेवम ३३ ण्डलपतिस्संशोमते भूतले ( ॥१८ ) रत्नानि यत्नेन ददाति तस्मै रत्नाक ३४ से मंगमयाज्जडात्मा (1) आपूर्य सम्यक् सततं वहित्रं सूक्ष्माणि Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ जैनशिलालेख-संग्रह { १९३३५ वासासि हयाश्च तस्मै (१९) किमिह बहुमिरुक्तैरल्पगमै. चोभिर्भुवन दूसरा पत्र: दूसरा माग ३६ विदितवीरः ऋरसंग्रामधोरः (0) अपरनृपतिकोशं देशमस्यन्तशोमं यदि स कुपितचित्तः ३७ कारयत्यात्मकीयं (॥२०),समधिगतपंचमहाशब्द महामण्डलेश्वरः तगरपुरवरा३८ पीश्वरः। श्रीशिलाहारनरेंद्रः। जीमूतवाहनान्वयप्रसूतः सुव गंगरुड ३६ ध्वजः । मवक्कशसपः । अय्यनसिंहः (6) रिपुमण्डलिकभैरवः (6) विद्विष्टगजकण्ठी४० रवः । गणिकामनोजः । हयवत्सराजः । शौचगांगेयः। सत्यराधेयः । ४१ इडुवरादित्यः रूपनारायणः । कलियुगविक्रमादित्यः । शनिवार४२ सिद्धिः। गिरिदुर्गलंघनः श्रीमन्महालक्ष्मीलब्धवरप्रसादादि समस्तराजाव४३ लोविराजितः श्रीमन्महामण्डलेश्वरः श्रीगण्डरादित्यदेवः श्रीम वलय४४ वाडशिबिरे सुखसंकथाविनोदेन राज्यं कुर्वाणः । सप्तत्रिंशदु. त्तरसह४५ स्रेषु शकवर्षेषु १०३७ अतीतेषु मन्मथसंवत्सरे कार्तिकमासे शुक्लपक्षे। ४६ अष्टम्यां बुधवारे मिरिंजदेशे । मिरिंजेगम्पणमध्ये । अंकुलगे थोप्पे४७ यवाड इति ग्रामद्वयं भादगेनामग्रामस्य प्रविष्टं कृत्वा तद्ग्रा४८ मारुवण त्यक्त्वा तत्रत्यनार्गावुण्डा यदि नायकत्वं कुर्वन्ति तेषां शरी Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१९२] कोल्हापुरका लेख ४९ रजीवितार्थ सुवर्ण न ददाति यदि नायकत्वं नेच्छन्ति स्वेच्छया तिष्ठन्ति त५० दा कोदेवणं नास्ति । एवमनेन क्रमेण • श्रीमत्पवित्रेत्र निगुब तीसरा पत्र ५१ वंशे जातः पुमान् होरिमनामधेयः (1) कीर्तिप्रियः पुण्यधनः प्रसिद्धः श्री५२ जैनसंघांबुजतिग्मरश्मिः (२१) तस्यात्मजोभूदिह बीरणाख्यस्त स्यानुजोभू५६ दरिकंसरीति (1) तद्वीरणस्यापि तनूभवोयं बभूव कुंदातिरिति प्रसिद्धः (०२०) ५४ तस्यानुजस्सुपरिपालितबन्धुवर्ग: श्रीनायिमो जिनमतांबुधिचं५५ द्र एषः (1) त्यागान्वितस्सुचरितस्सुजनो बभूव प्रख्यातकीर्ति रिह धर्मप५६ रः प्रसिद्धः (॥२३) तस्यापि वीरः सुजनोपकारी नोलंबनामा तनयो बभूव (0) ५७ श्रीगण्डरादिस्यपदारज,गो धर्मान्वितो वैरिमतंगसिंहः (॥२४) तस्मै ५८ समस्तगुणालंकृताय निगुबकुलकमलमार्तण्डाय । सुवर्णम५९ त्स्योरगेंद्रध्वजविराजिताय सम्यक्त्वरत्नाकराय पद्मावतोदेवी लब्धवर६० प्रसादाय नोलंबसामन्ताय सर्वनमस्यं सर्वबाधापरिहारं पुत्र६१ पौत्रकमाचन्द्राक दत्तवान् . [ यह ताम्रपत्र चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य (षष्ठ )के माण्डलिक शिलाहार राजा गण्डरादित्यदेव-द्वारा कार्तिक शुक्ल ८, बुधवार, शक १०३७ के दिन दिया गया था। निगंब वंशके सामन्त नोलंबको मिरिंज Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० जैनशिलालेख-संग्रह [ १९३प्रदेशके अंकुलगे तथा बोप्पेयवाड इन दो ग्रामोंका अधिकार अर्पण करनेका उल्लेख इसमें किया है। नोलंबकी वंशावली इस प्रकार थी-होरिम-बीरणकुंदाति - उसका बन्धु नायिम-नोलंब । नोलंबको सम्यक्त्वरत्नाकर तथा पद्मावतीलब्धवरप्रसाद ये विशेषण दिये हैं।] [ए० ई० २७ पृ० १७६ ] होले नरसिपुर ( मैसूर ) १२वीं सदी : पूर्वार्ध (सन् १९१५), कन्नड़ [ इस लेख में महामण्डलेश्वर वीर कोंगाल्वदेव-द्वारा मूलसंघ-देसिगणके मेघचन्द्र विद्यके शिष्य प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेवके उपदेशसे सत्यवाक्य जिनालयके निर्माणका तथा उसे हेण्णेगडलु ग्राम दान देनेका उल्लेख है। ( समय लगभग सन् १११५ । )] [ए० रि० मै० १९१३ पृ० ३३ ] १६४ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास) सन् १९१५, तमिल [ यह लेख चोल सम्राट कुलोत्तुंग राजकेसरिवर्मन्के ४५वें वर्ष में लिखा गया था। तिरुप्परम्बूरकी ग्रामसभा-द्वारा तिरुक्काट्टाम्पल्लि आलवार जिनमन्दिरके लिए कुछ भूमि विक्रय किये जानेका इसमें उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र. १३५ ] तिरुप्परुत्तिकुण्डम् (चिंगलपेट, मद्रास ) राज्यवर्ष ४६ = सन् १११६, तमिल [ यह लेख राजकेसरिवर्मन् कुलोत्तुंग चोलके ४६वें राज्यवर्षका है। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१९७ ] पुदुपट्ट आदि के लेख इसमें तिरुप्परुत्तिकुण्डुके ऋषिसमुदायके लिए एक नहर बनवानेके लिए कैतडुप्पूरको ग्रामसभा द्वारा कुछ भूमि करमुक्त रूपमें बेची जानेका उल्लेख है । यह लेख त्रिकूटबसदिके छतमे लगा है । ] [रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ३८२ पृ० ३७ ] १६६ पुदुप्पट्टु (चिगलपेट, मद्रास ) ११वीं - १३वीं सदी, तमिल अस्पष्ट [ स्थानीय जैन मन्दिरके मण्डपके एक स्तम्भपर यह लेख है । और अधूरा है । इसमे चोल राजा परकेसरिवर्मन्‌का उल्लेख हुआ है । ] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० ७९ पृ० १२ ] १६७ नमकोंडा स्तम्भ लेख ( वरंगलके समीप, आन्ध्र ) चालुक्य विक्रम वर्ष ४२ = सन् १११७, कन्नड़ पूर्वकी मोर १४१ १ श्रीमज्जिनेंद्रपदपद्मम ३ पतद्रमुनींद्रवंद्यं निः५ ण्डं रत्नत्रयप्रभवमुव७ भुवनाश्रय श्री पृथ्वीवल्लभ९ परमभट्टारक सत्याश्रयकु११ त्रिभुवन मल्लदेवर विजयरा१३ मानमाचंद्रार्कतारं सलुत्त१५ गतपंचमहाशब्द महामं (ड) १७ परममाहेश्वरं पतिहितच २ शेषमव्यानव्यात् त्रिलोकनृ४ शेषदोषपरिखंडन चंडका६ गुणैकतानं ॥ (१) स्वस्ति समस्त८ महाराजाधिराजपरमेश्वर१० लतिलकं चालुक्या मरणं श्रीम१२ ज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्ध१४ मिरे । तत्पादपद्मोपजीवि समधि १६ लेश्वरनन्म कुंडापुरवरेश्वरं १८ रितं विन (य) विभूषणं श्रीम Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [ १९७ १९ न्महामण्डलेश्वरं काकतीयेत (भू) २० पालकुल क्रमागतं तदीयरा२१ ज्यमरनिरूपितमहामात्यप- २२ दवीविराजमान मानोत प्र२३ भुमंत्रोत्साहशक्तित्रयसं- २४ पद्मना (गि) ॥ घनशौर्याटोप (दिं) २५ माम्तनद महियेयिं चारुचारि- २६ त्रदि (दो) पिन तेलपिं सरक२७ लदिनो ) दविदाश्चर्य (सौं)- लाकौश १४२ उत्तरकी ओर २८ दर्यदिंद (र्थि) निकाय प्रार्थितार्थ - २९ (प्र) वितरण (वि) ख्यात ३० (वि) नुतं श्रीकाकतीबेतरसन सचि नादं धरित्री ३१ वं बैज दंडाधिनाथ ॥ ( २ ) अगणित शौर्य३२ दिं नेगल्द काकतिबेतनरेंद्रनं जगं ३३ पोगले चलुक्यचक्रिचरणं सले का३४ णिसि तत्प्रसादर्दि बगेगोले सब्बिसा३५ रिमनालिसि (दु ) धयशो - ३७ ककाकतिबेतन मंत्रि बैजन ॥ (३) आ ३३ कमव्येगं जनियिसिदं ख्यातं ४१ त्रिजनमकुटचूडारत्न || ( ४ ) ४३ नेविसिद श्रीकाकतीप्रोलभू४५ सकलकलाकोविदं सच्चरित्र - ४० घरेयोल पेगंडे बेतं मं४२ आतं मां (घा) तरामोपम४४ पख्यातामात्यं विवेकाग्रणि ४६ प्रीतं साहित्यविद्यानिधि बु ४७ धविबुधोवीरुहं सत्यधर्मो- ४८ पेतं स्वग्रामदोल माडिदनतिमु ४९ दर्दि हत्तु देवालयंगलु || ( ६ ) ५० अतिशय जैनधर्म समयोचित ५१ शासनदेवि मारतोसति शशिबिंबव (स्त्र) ५२ दशनच्छदे शुद्धसुवर्ण कुंभसन्नुतत ३६ धिनाथनं पोगलदरारो मंड (लि) ३८ तंगं विकसितकंजातानने या - - Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ roaster स्तम्मका लेख - १५७ ] ५३ सुवर्णपीवरपयोधरि मैल (मया ) ५४ कमांबिकासुततदमात्यवेतह ५५ दयेश्वरि निश्चलक्ष्मि माविसलु || (६) 1. १४३ पश्चिम की ओर ५६ पददिंदालु कितालकं बेरेग (मं) गो ५७ पांगमं पंचरत्नदिनगोचित मागे ५८ निर्मिसि सुरस्त्री भाग्य सौभाग्य५९ सम्म (द) सौंदर्यमनादुतीवि ६० पदेदं कंजात संजातनी सु(दवी) ६१ मनेंदु मैलमननारार् बष्णिस-६२ लोकदोल ॥ ( ७ ) नुतरूपवति कला (व) - ६३ ति रतिरति श्रीसतिघटान्तकी- ६४ णीसतिर्येदमात्यबेतन सतियं सति वा ६५ क्षितियेल्लमेदे नुतिथिसुतिकुं- ६६ मुदर्दिदेने नेगल्द रमास्पदे मै॥ (C) ६७ लम भक्तिदेि माडिसि तन- ६८ यकर मागिरल बेहद (मे) गण गभ्युद ६९ कदलालयबसदिय ने सेयलु ॥ (९) ७० अदर्के नित्यपूजेगं धूपदीप (नि) वेद्य ७१ क्कं पूजारिगाहा (२) वस्त्रादि ७२ श्रीमत्रिभुवमलमंडळिकभूगलगं (91) ७३ लपुत्रनप्प काकतियपोलरसन रा- ७४ ज्यमुत्तरोसरामिवृद्धिप्रवर्ध मानमा ७५ गमम्म कुन्देयला चंद्रार्कवारं स ७६ लुम्वमिरे श्रीमन्चालुक्यविक्रमचर्ष Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ १९७ ७७ द नाल्व तेरडेनेय हेमलंबि (सं) - ७८ वत्सर पौष्यबहुल १५ सोमवा७९ रदिनुत्तरायणसंक्रांतिनिमि- ८० तं धारापूर्वकमागि तन वल्लमनप्प ८१ बेतन- पेगंडे तन पेसरिंद माडि- ८२ सिद्ध केरेयेरिय केलगनेरडुं ८३ हासरेगल्लुगल नडुवण गर्दे ( ख ) ८४ मतरेरढुं मत्तमाकेरेय प८५ दुवण नेल दोणेय तेंकलेरेय ८६ मसर्नालुकु करंखं मत्तरारु८७ मं को निरिसिदलीशासनगंम ॥ १४४ दक्षिणकी ओर ८८ मत्तमी धर्मक्के तेल्लुटियागे ॥ ९१ घातमित्येते माधववर्म ८३ अ ( ) दन्ति सहस्त्राणि दशको- ९० टी च वाजिनामनन्तं पादसं९२ वंशोद्भवरप्प श्रीमन्महा९४ य मेलरसं तन्ना (लि) के९६ येरिय केलगे कालुवेय ९८ मीपदले करंबं मत्त१०० दनलिदवं सासिरकवि (ले) - १०२ गुमादरदिं रक्षि (सि) दंसा१०४ शुभ (मं) पडेगु ।। (१०) स्वद१०६ वसुंधरां । षष्टिवर्षसहस्रा१०८ बहुभिर्वसुधा दत्ता राजमिस्स ९३ मण्डलेश्वरनुग्रत्रा (डि ) - ९५ योगल कूचिकरे९७ मोदल गय मन्त्तरोन्दा स९९ रुहतुमनित ॥ निरुतमि१०१ यनलि (द) पापमं (पो ) दु१०३ सिरयज्ञद पलमनेयदि १०५ तां परदत्तां वा यो हरेत १०७ णि विष्ठायां जायते कृमि: ॥ ( ११ ) १०९ गरादिभिः । यस्य यस्य य- ११० दा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं ॥ (१२) ११२ अपरंगे पाग वोंदु ॥ १११ अलिक बसदिय कसं गलेव बो [ यह स्तम्भ चालुक्यविक्रमवर्ष ४२ ( सन् १११७ ) में पौष अमावस्याको उत्तरायण संक्रान्तिके समय स्थापित किया था । उस समय Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१९९ ] कोविलंगुलम्का लेख १४५ चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य (षष्ठ) के माण्डलिक काकतीय बेतका पुत्र पोलरस ( प्रोल ) सब्बि प्रदेशपर शासन कर रहा था । बेतका महामात्य वैज था । वैजकी पत्नी याकमब्बे थी तथा पुत्र बेत पेगंडे था । बेत पेगडे प्रोलका मन्त्री था । इसको पत्नी मैलम थी । इसने अन्मकुन्द पहाड़ी पर कदललायदेवीका मन्दिर बनवाया तथा उसे उक्त तिथिको कुछ जमीन दान दी। इसी मन्दिरको उग्रवाडिके मेलरसने जो माधववर्मा के कुलमें उत्पन्न हुआ था-भी कुछ जमीन दान दी । कदललायदेवी सम्भवतः पद्मावतीका नाम है । इस समय यह मन्दिर ब्राह्मणोंके अधिकारमे है तथा वे उसे पद्माक्षी देवी कहकर पूजा करते हैं ।] [ ए० ई० ९ पृ० २५६ ] १६८ कोविलंगुलम् (रामनाड, मद्रास ) सन् १११८, तमिल [ एक भग्न मन्दिरके दक्षिण तथा पश्चिमकी आधारशिलापर यह लेख त्रिभुवनचक्रवति कुलोत्तु गचोलदेवके ४८वें वर्षका है । कुम्बनूरके २५ जैनों द्वारा मुक्कुडैयार के लिए एक मण्डप तथा सुवर्ण विमान बनवानेका इसमे निर्देश है । कुम्बनूर गाँव वेम्बुवलनाडु प्रदेशके शेगाट्टिरुक्कै विभागमें था । इस लेखमे त्रिछत्राधिपति देव तथा एक यक्षोकी तांबेकी मूर्तियोंकी स्थापनाका भी उल्लेख है । इस मन्दिरके लिए जमीन और प्याऊके लिए भी दान दिया गया था । इस लेखकी तमिल भाषा साहित्यिक दृष्टिसे बहुत अच्छी है । ] [ इ० म० रामनाड १७ ] १६६ ऐहोले ( बिजापुर, मंसूर ) चालुक्य विक्रमवर्ष ४४ = सन् १११९, कन्नद [ यह लेख त्रिभुवनमल्लदेव विक्रमादित्य षष्ठके समय वैशाख शु० ३, १० Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ जैनशिलालेख-संग्रह [२०० सोमवार, विकारी संवत्सर, चालुक्य विक्रमवर्ष ४४ के दिन लिखा गया था। इसमें जेमपार्य तथा जातियक्कके पुत्र केशवय्य सेट्टिका उल्लेख है जिसने स्थानीय जिनमन्दिरमें पूर्व और पश्चिमकी ओर बसदियां, एक पट्टशाला तथा कूपका निर्माण कराकर लोकपाल-मतियोंकी स्थापना की थी और देवपूजाके लिए कुछ भूमि आदि दान दिया था।] [ मूल लेख कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० २१९ ] २०० कुमारबीडु ( मैसूर ) शक १०४४-सन् ११२२,कमड १ श्रीमत्परमगंमीरस्यावादामोघलांछनं () जीयात् २ त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं (1) स्वस्ति समधिग (त) पंच३ महाशब्द महामण्डलेश्वरं कुलोत्तंगचोलभुजब४ लवीरगंगहोयसलदेवरु गंगवाटि तोमहरु५ सासिरमनेकच्छत्रदि तलकाडलिदुं सुखसकतावि. ६ नोददि राज्यं गेय्युत्तमिरे शकवर्ष १०४४ ने७ य प्लवसंवरसरद मार्गसिर सुध ५ सोमवार८ दंदु महाप्रधान दण्डनायक गंगपय्य९ गलु तम्म सोवणदण्डनायकंगे हादरिवागिल१० बीडिनलु परोक्षविनयक्के माडिसिद बसदिगे ११ बिह दत्ति मैसेनाड चन्दवनहल्लियुं बीडिंद १२ मूडण कम्माडिय केरेय गद्दे ३० सलगेयु १३ श्रा केरेयिं बडगलु एरिय बेद्दले बेलि २ १४ आ केरेय हडवण कट्टद केलगे तोंट १५५०० गुलियुं बोडिन २ गाणद एण्णेयुं Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ -२०१] बेलूरका लेख १६ सोडरिंगे सलुबुदु ॥ बसदिगे बिट्टीधर्मम१७ नोसदु करं सलिसुतिर्दर्गक्कुं पुण्य असव१८ सदि केडिसिदवर्गलु पसुबुं ब्राह्मण५९ न कोंद वधे समनिसुगु ॥ स्वदत्तां पर२० दत्तां वा यो हरेत वसुंधरां षष्टिवर्षस२१ हस्राणि विष्टायां जायते क्रिमि (:) [यह लेख होयसल राजा विष्णुवर्धनके राज्यमे मार्गशिर शु० ५, सोमवार, शक १०४४, प्लव संवत्सरके दिन लिखा गया था। दण्डनायक गंगपय्य-द्वारा सोवणदण्डनायकको स्मृतिमे हादरवागिलु ग्राममे एक जैन मन्दिरको स्थापनाका तथा उसे दिये गये दानका उल्लेख इस लेखमे किया [ए० रि० मै० १९३८ पृ० १६६ ] २०१ बेलूर ( मैमूर ) १२वीं सदी - पूर्वार्ध, कन्नड १ पुणिसचमूपनेम्बेसेव शासनवाचकचक्रवर्तिगिन्तेनिसलोडं पोगर्ते ननगागिरे पुट्टिद चामराज नाकण कुमरय्यनेम्ब रत्नत्रयमू२ तिगे पुत्रनोप्पिद पुणिसमदण्डनाथनुदितोदितचामचमूपसंभवं (1) __नमः सिद्धभ्यः (1) [ यह लेख किसी जैन मन्दिरके स्तम्भपर था। वह स्तम्भ बादमें केशवमन्दिरमै लगाया हुआ पाया गया। इसमें सेनापति पुणिस तथा उसके तीन पुत्र चामराज, नाकण तथा कुमरय्यकी प्रशंसा की है। यह पद्य अन्य लेखोंमें भी पाया गया है । पुणिस राजा विष्णुवर्धनका जैन सेनापति था।] [ए० रि० मै० १९३४ पृ० ८३ ] Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ जैन शिलालेख संग्रह २०२ रताल ( जि० धारवाड़, मैसूर ) शक १०४५ = सन् ११२३, कन्नड [ यह लेख चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लके समयका है । उस समय बनवासि तथा पानुंगल प्रदेशोपर कदम्ब कुलका महामण्डलेश्वर तैलपदेव शासन कर रहा था । मूलसंघक्राणूरगणके कनकचन्द्र के शिष्य गंगर बम्मिसेट्टिने कोन्तकुलि विभागके प्रमुख नगर पयिट्टणमे एक मन्दिर बनवाया । बिसेट्टि बट्टकेरेका निवासी था । इस लेखकी तिथि पोष अमावास्या, सूर्यग्रहण, रविवार, शक १०४५, शुभकृत् संवत्सर ऐसी दी हैं ।] [रि० स० ए० १९४३ -४४ एफ् १] २०३ हिरेसिंगनगुत्ति ( बिजापुर, मैसूर ) ११वीं - १२वीं सदी, कन्नड [ २०२ [ इस खण्डित लेखका समय चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लदेव (विक्रमादित्य पष्ठ ) के राज्यका है। देसिगगण - पुस्तक गच्छके आचार्य बालचन्द्रका इसमें उल्लेख है । किसी मन्दिरके लिए उन्हे कुछ भूमि अर्पण की गयी थी ।] [ मूल लेख कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० २६२ ] २०४ तोगरकुण्ट ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) ११वीं - १२वीं सदी, कन्नड [ यह लेख चालुक्यराजा त्रिभुवनमल्लके समय एक सूर्यग्रहण के अवसरपर लिखा है । इसमे तोगरकुण्टेके चन्द्रप्रभदेवबसदिके लिए दण्डनायक Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२०७] उगरगोल आदिके लेख १४९ कोम्मणार्यद्वारा कुमारतैलपदेवकी पुण्यवृद्धिके लिए कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। यह दान मूलसंघके पद्मनन्दिदेवके शिष्यको अर्पित किया गया था । [रि० सा० ए० १९२५-२६ क्र० ३४४ पृ० ६६ ] २०५ उगरगोल ( बेलगांव, मैसूर ) ११वीं-१२वीं सदी, कन्नड [ यह लेख जिनशासनकी प्रशंसासे प्रारम्भ होता है। चालुक्यसम्राट त्रिभुवनमल्लदेवके किसी महाप्रधानका इसमे उल्लेख है। लेख खण्डित है ।। [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० क्र० ८२ पृ० २४७] २०६ सिरसंगि ( जि. बेलगाँव, मैसूर ) १२वीं सदी, कन्नड [चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लके समयका यह लेख है। तिथि पौष शु० १३, रविवार, उत्तरायण संक्रान्ति ऐसी है। ऋषिशृंगीके छह गावुण्डोंका इसमे उल्लेख है। बाचि गावुण्ड तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा किसी बसदिको जमीन आदिके दानका उल्लेख है । गण्डवि ( मुक्त ) सिद्धान्तदेद, अत्तिमब्बे, देवरस, तथा कलिदेवसेट्टिका भी उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० क्र० ७६ पृ० २४६ ] हूलि ( जि० बेलगाँव, मैसूर ) १२वीं सदी-पूर्वाधं, संस्कृत-कन्नड १ ( श्रीमत्परमगंभी)रस्यादवादामोघलांछनं। जीयात् त्रैलोक्य Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० जैनशिलालेख संग्रह [२०७नाथस्य शासनं जिनशासनं ॥(१) श्रीवीरनाथस्य गणेश्वरोभूत् सुधर्मनामा प्रविधूत... २ यापनीये सं(घ) पुनस्तत्र र चारुमार्गे ॥(२) कण्डूरुविख्यातगणे बभूवुः पुरा मुनींदा बहवो महा." ३ ... दैकसिंहो मुनीश्वरो बाहुबली बभूव ॥(३) जयतु शुमचंद्रदेवः कण्डूगणपुंडरीकवनमार्तडश्चंडत्रिदंड.. ४ . पारगो बुधविनुतः ॥(४) नुतयापनीयसंघप्रतीतकण्डूगणाब्धि चंद्रमरेंदी क्षितिवलयं पोगविनमुनतिवेत्तर मोनि (दे५ वदिव्यमुनींद्र) रु ॥(५) श्रीमाघनंदिव्रतिनाथमोडे कामारिमोमो (र) गचैनतेयं । नम्रावनीपालकविद्धकीति सि(द्वां)त त(वा) र्णवपूर्णचं(द) ॥(६) ६ ( स्वस्ति । समस्तभुव ) नाश्रयं श्रीपृथ्वीवल्लमं महाराजाधि राज परमेश्वरं परमभट्टारकं सत्याश्रयकुलतिलकं चालुक्यामरणं श्रीमत्रिभुवनमल्ल७ ( देवर विजय ) राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमाचंद्रावतारं. बरं सलुत्तमिरे । क्षितिगेल्लं तम तेज तोलगि बेलगे तनाज्ञे चोला ( वनी)८ "लु नर्तिसुतिरे मले तन्ना' लोकक्के कल्पक्षितिजातं कूडे पणतंतिरं ___ कलियुगदोलु पुट्टियुं राघवादिक्षितिपालानीकरोलु पा... ९ (विक्रमादित्यदेव ॥(७) जलधिपरीतभूतलवधूटिगे कुंतलदंददि मनंगोलिसुवुदंतु नोपंडमे कुंतलदेशमदक्कं चिन्नपूगल तेरदंते रंजि' . १० .''दृ मौक्तिकावलिय पोदलद हारद वोलिपुदु नोपंडे पूलि लीलय ॥(८) मत्तं । पोंगलसंगलिंदेसेव देवगृहंगलिनोप्पुवेत्त वारांगनेयर्कल" Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 -२०८ ] डूलिका लेख ११ पोद) रूद वेदंगले मूर्तिगोंडु देनिपं ददलोप्पुव विप्ररिंदे प्रामंगल चक्रवर्तियेसेदिदुदु नोपडे पूलि कोलेयिं ॥ (९) मत्तमल्किय विप्रर महिमेये (न्वेंदोडे) | १२ पोंठनेनिप श्रीकृष्णदेवं सविस्तरदिं तन सहस्रमप पेसरं रूपागिलु माडि साक्षरवेदाक्षरजीवमंत्र चयमं तीचिह्न पुली महापुर... १३ ... ( एसेदर् ) सासिर्वरितुर्वियोलु ॥ (१०) उपमातीतमेनिष्प पेंपु गुणमौदार्य चलं साहसं जपहोमं नियमं महोन्नतिकसत्यं शौचमा... १५१ १४ ... शास्त्रदोदविं श्रीकेशवादित्यदेवपादांभोजवरप्रसादरेसेदर सासिरितुर्वियो || (११) हरि किलेनेलेथिं चलिसिद हरिबदबेहि १५ ....क्केंदु निराकरिपुदु सासिर्वरुचितदे चलितवचनं ॥ ( १२ ) स्वtranded विनमदम (र) राजत् किरीटको टिताडित जिनेंद्रचरणारविंदम १६ ... (चल) दुतरंग । वीरविद्विष्टसंहरणप्रतापकार्तिकेय । गंगगांगेय । चपलबैरिवाहिनी संहननप्रतापलंकेश्वरं । कोलालपु (स्वराधीश्वरं । ) १७ . ( एंतें) दोडे । मंडलिकजगदलं मार्कोडर जवनार्थिजनके कल्पमहीजं गंडर तीर्थं सितगर गंडं मार्कोल भैरवं पिनृपं ॥ (१३) मत्तं... १८ पुट्टिदरोप्पे पेर्मनृप बिज्जमहीपति कीर्तिभूपनुं जेहिंग गोमं नुं नेगर्द (द) मैललदेवियुमंते रूपनिधिट्टलवागि... १९ ॥ (१४) लिंकदं कदरिभूभुजरं तवे कोंडु गुर्जराष्ट्रद जयसिंहदेव धरणीश्वरनं निजराज्यलक्ष्मयोलु पदु.. २० ....पोगलुतिर्युदु बिज्जल भूमिपालनं || (१५) मतं । रेवकनिमंड कन्हर देवं गतक्कनंते भूनुते सिरिया (देवि ) Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ जैनशिलालेख-संग्रह [२०७२१ ॥(१६). "दु दल्नायवनेयेंदु बिज्जलनृपं चउवीसतीर्थर्कलं मुददि माडिसि कल्वेसं समेसि... २२ ..."दि विट्ट-बेलवलदोलितोप्पिप्प पेर्गुम्मियं ॥(३७) हरलारु बाडकसि २३ ..."चालुक्यचक्रवर्ति पेर्माडिरायन कय्योल'... २४ "माडिसिद माणिक्यतीर्थ.... । [ यह लेख चालुक्यसम्राट विक्रमादित्य (षष्ठ) के राज्यकालका है। इसमे प्रथम सुधर्म गणधरकी परंपरामे यापनीय संघ-कण्डर गणके बाहुबली, शुभचंद्र, मौनिदेव तथा माघनंदि इन आचार्योका उल्लेख है। इनका परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट नहीं है । अनन्तर एक पूलि नगरके पिट्ट नृपका उल्लेख है जो गंगवंशमे उत्पन्न हुआ था। इसके चार पुत्र थे- पेम, बिज्जल, कीर्ति, गोर्म - तथा एक कन्या थी - मैललदेवी। बिज्जलके सम्बन्धमे गूर्जराष्ट्रके जयसिंहका उल्लेख किया है किन्तु इसका ठीक अर्थ स्पष्ट नही क्योंकि यहाँके कई अक्षर घिस गये है। इसी तरह कृष्णराजकी बहिन रेवकनिमंडिकी एक श्लोकमें सिरियादेवीसे तुलना की है उसका पूर्वापर सम्बन्ध भी स्पष्ट नहीं है। अनन्तर कहा है कि बिज्जलने एक जैन मन्दिर बनवाया तथा उसे पेगुमि ग्राम दान दिया। लेखके अन्तिम भागमें माणिक्यतीर्थका उल्लेख है। इसका सम्बन्ध भी स्पष्ट नहीं है। ] [ए० इं० १८ पृ० २०१] २०८ बेलवत्ति (धारवाड, मैसूर) १२वीं सदी - पूर्वाध, कन्नड [ इस लेखमें सवणूरके बम्मिसेट्टि-द्वारा एक ब्रह्मजिनालयके निर्माणका उल्लेख है । इस जिनालयके लिए वम्मिसेट्टिने बेलवत्तिके ३०० महाजनों. Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ -२१०] बैल होंगल प्रादिके लेख को कई दान दिये थे। इस स्थानके कुछ आचार्योके नाम भी लेखमें दिये है। तिथि आषाढ़ शु० प्रतिपदा, सोमवार, उत्तरायणसंक्रान्ति, शोभकृत् संवत्सर ऐसी दी है। उस समयके चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लदेवके राज्यका उल्लेख किया है।] [रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० २१६ ] २०६ बैल होंगल ( बेलगाँव, मैसूर ) ११वी - १२वीं सदी, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्लदेवके समयका है । शक वर्षके अंक अस्पष्ट हुए है। इसमे रदृवंशीय महासामन्त अंक, शान्तियक्क तथा कूण्डि प्रदेशका उल्लेख है। अनन्तर यापनीयसंघ- मैलाप अन्वय-कारेयगणके मुल्लभट्टारक तथा जिनदेवसूरिका उल्लेख है। यह सम्भवतः किसी जिनमन्दिरको दिये गये दानका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५१-५२ क्र० ३३ पृ० १२] २१० गोलिहल्लि ( जि. बेलगाँव ) सिद्धेश्वरमन्दिरके समीप शिलापर १२वीं सदी, कन्नड [ मैललदेवी तथा जयकेशिन्के पुत्र वीर पेर्माडि तथा विजयादित्यके शासनका इस लेखमें निर्देश है । अंगडिय मल्लिसेट्टि-द्वारा किरुसंपगाडिमे बनवाये गये जैन मन्दिरके लिए भूमिदान देनेका इसमें उल्लेख है । मूलसंघ, बलात्कारगणके नेमिचन्द्र भट्टारकके शिष्य वासुपूज्य भट्टारकको यह दान दिया गया । वासुपूज्यकी गुरुपरम्परा कुछ विस्तारसे दी है। लेखके समय फाल्गुन शु० १५, गुरुवार, मन्मथ संवत्सर था तथा चालुक्य भूलोकमल्ल सम्राट् थे।] [रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० १५ ] Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ जैन शिलालेख संग्रह २११ वरांग (मैसूर) १२वीं सदी - मध्य, कन्नड [ २११ [ यह लेख आलुप राजा कुलशेखरके समयका । इसमे माधवचन्द्र, प्रभाचन्द्र, तथा श्रीचन्द्र इन आचार्योंका उल्लेख किया गया है । ] [रि० आ० स० १९२८-२९ पृ० १२७ ] २१२ दडग ( माडया, मैसूर ) १२वीं सदी - पूर्वार्ध, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछनं ( 1 ) जी २ यात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ( | ) ३ कुलरत्नाकरदोलु कौस्तुभादिगल वोलु पलरुं लोकोपकारपरिणतर् एकीकृ ४ तसकळराजगुणरु सकलजनोक्ति यादवकुलदोल पुलि पाये ५ सलेयिं पुलियं पय् सल येने पोय्दुहरि पोय्सणवेसरवनिंद वादुद ६ लिंलंद''''नयं प्रदारण ननायुरदिं जग ७ नयनिसि पोरेदं विनयादित्यं समस्तभुवनस्तुत्यं आतं गतिमहिम८ समाख्यातकीर्ति सन्मूर्तिमनोजात मदितरिपुनृपजातं तनुजातनादन् एग्यंग ९ नृपं ॥ च धर्मार्थकामसिद्धिवोलू अवनीवल्लभर् आतन तन१० यर बल्लालं बिट्टिदेवन् उदयादित्यं ॥ मृवर्- तनयरोलं तां माविसे म... Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२१२] दडगका लेख ११ ध्यमनागियुं सदगुणसद्मावदिन् उत्तमनादं विनुतविमवद्भूत जिष्णु वि. १२ ष्णुमहीशं । स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्द महामंडले१३ श्वरं द्वारावतीपुरवराधीश्वरं यादवकुलांवरद्युमणि सं१४ म्यक्त्वचूडामणि मलपरोलुगण्डं गण्डभेरुण्ड शशकपुरनिवास १५ वासंतिकादेवीलब्धवरप्रसाद दानसन्मानसंपादितविप्रप्रगामोद १६ नामादिसमस्तप्रशस्ति सहितं तलकाडु कोंगु नंगलि गंगवाडि नो१७ णंबवाडि बनवासे हानुंगलु गोंड भुजबलवीरगंग प्रताप ५८ होयसणदेवर् पृथ्वीराज्यं गेयुत्तमिरे तपादपद्मोपजीविगलप्प ॥ भीम अ१९ जुनलवकुशरी मालकेयेनल अंते पुट्टिये मेरेदरु श्रीमन्मरियाने. २० युं उद्दामगुण भरतराजदण्डाधिपरु ॥ करिगति सिंहमध्ये कल२१ सस्तनि दोस्स्रजपुण्यवाधि मित्ररुचिरकटाक्षे वलिमुखि वेण्यहि २२ गेहविलासलक्ष्मि भासुरे सुमनोविमाने गुणरत्नयशोहारि की२३ तिगोपति स्थिरसत्वे जक्कियक्कनेने पोल्वर आर अमलकान्त तनुवं ॥ २४ बल्लेशनधीशं चरितार्थ नेगलद तन्दे मारायर् ॥ तत्परमजिन दव्यमन्दि २५ हरियबेयन्तेरदे नोन्त कान्तयरोलरे ॥ श्रीमूलसंध कुण्डकुंदान्व२६ य काणूरगण नित्रिणिगच्छद जवलिगेय मुनिभद्रसिद्धान्तदेवर शिष्य २७ मेघचन्द्र सिद्धान्तदेवर्गे श्रीमन्महाप्रधान दण्डनायक मरिया२८ नेयु श्रीमन्महाप्रधान दण्डनायक भरतिमय्यगलुं दडिग२९ नकेरेय पंचबसदियोलगे बाहुबलिकूटम धारापूर्व३० कं माडि कोहरु मरियानेसमुद्रद बयलुमं Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख - संग्रह ३१ मलेहल्लिय सुंदण किरुकरेयं अल्लिय होलगुप्त३२ गेयुं कोडियहल्लिय मुंदण किरुकेरेयं आबेदलेय ३३ हिरियकेरेय केलगण अडकेय तोटमुं । श्रन्तु सर्वाय सुद्धवागि देशियगणद बसदि ४ क्कं काणूर्गणद ब १५६ [ २१३ ३४ सदि वोन्दक्कं अन्तु पंच बसदिगे समानबागे इल्लि हुट्टि - ३५ द माचिगौडनु कसवगौडनु ॥ ३६ स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरंत वसुंधरा षष्टिवर्ष सह३७ साणि विष्टायां जायते क्रिमि [ इस लेखमे होयसल राजा विष्णुवर्धनके महाप्रधान दण्डनायक मरियाने तथा भरतिमय्य-द्वारा दडिगनकेरे स्थानकी पाँच बसतियोंमें बाहुबलिकूट नामक बसतिका दान तथा कुछ भूमिके दानका निर्देश है । यह दान काणूर गण- तित्रिणिगच्छके मुनिभद्र सिद्धान्तदेवके शिष्य मेघचन्द्रदेवको दिया गया था ।] [ ए०रि० मै० १९४० पृ० १५६ ] २१३ कम्बदहति (मैसूर) १२वीं सदी - पूर्वार्ध (सन् ११३० ), कन्नड १ (द्रोह ) घरट्ट दण्डनायक गंगराजन मग बोपदेवरिगे रूवारि २ द्रोहघरट्टाचारि कन्नेवसदिमं माडिद ॥ मंगल महाश्री [ यह लेख स्थानीय शान्तीश्वर बसदिके भग्नावशेषोंमें है । यह बसदि दण्डनायक गंगराज के पुत्र बोप्पदेवके लिए द्रोहघरट्टाचारि नामक शिल्पकारने बनवायी ऐसा लेखमे कहा गया है । यह कन्नेवसदि अर्थात् निर्माताद्वारा बनवायी पहली वसदि थी । अतः इसका समय लगभग सन् १९३० है क्योंकि बोप्प द्वारा सन् १९३३ मे हलेबिडमें निर्मित दीवरबसदि विद्यमान है । ] ( ए०रि० मैं ० १९३९ पृ० १९३ ] Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ •२१४ ] सालूरका लेख १५७ २१४ सालूर ( मैसूर ) सन् ११३०, कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोधलांछनं जीयात् लोक्य२ ( नाथस्य शासनं जिन ) शासनं ॥ स्वस्ति समस्तभुवना३ .."(म)हाराजाधिराज परमेश्वर पर४ ." (सत्या)श्रयकुलतिलक चालुक्याभरणं ५ श्रीम(भूलोकमल्ल)देवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभित्र६ ( द्धिप्रवर्धमान ) माचंद्रार्कतारं सलुत्तमिरे । समधिगतपंचम७ (हाशब्द महामंडलेश्वरं बनवासिपुरचराधीश्वर त्रिक्षयक्ष्मा८ ( संभव चतुराशीतिनग )राधिष्टितल( लाटलोचन )चतुर्भुजं ९ श्रीजयंतीमधुकेश्वरदेवलब्धवरप्रसादं नामादि१० समस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमन्महामण्डलेश्वरं मयू११ वर्मदेव तत्पादपद्मोपजीवि श्रीमन्महामण्डलेश्वरं १२ मगर कारगरसर सान्तलिगेसायिरमुमं दुष्टनि१३ ग्रहविशिष्टप्रतिपालनदिनालुत्तिरे ॥ श्रीमूलसंघको१४ (ण्ड) कुन्दान्वय काणूर्गणद मेष(पाषाणगच्छद श्रीप्रमाचं. १५ द्रसिद्धांतदेवर शिष्य कुलचंद्रपं(डिस) देवर गुड्ड(भ)१६ दायिसेटि श्रीमदनादियग्रहार सालियूर सासिर्ब१७ र ब्रह्मजिनालयद बसदिय निवेद्यक्के भूलोकवर्षद १८ ५ नेय साधारणसंवत्सरद पुष्य सुख ३ सोमवारद बुत्त [यह लेख चालुक्यसम्राट् भूलोकमल्लके ५वें वर्षमे पौष शु० ३ सोमवारको लिखा गया था। उस समय कदम्बवंशीय मण्डलेश्वर मयूरवर्माके शासनान्तर्गत सान्तलिगे प्रदेशपर मगर कारगरसर शासन कर रहा था। उक्त तिथिको सालियूर अग्रहारमे स्थित ब्रह्मजिनालय बसदिको भद्र Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ जैनशिलालेख-संग्रह [२१५रापिसेट्टिने कुछ दान दिया था। मूलसंघ-काणूरगण-मेषपाषाणगच्छके प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवके शिष्य कुलचन्द्रपण्डित भद्ररायि सेट्टिके गुरु थे।] [ए० रि० मै० १९३० पृ. २४५ ] २१५ तिरुप्परुत्तिकुण्डम् ( चिंगलपेट, मद्रास) राज्यवर्ष १३ तथा १७ = सन् ११३१ तथा ११३५, तमिल [ यह लेख चोल राजा परकेसरिवर्मन् विक्रमचोलके राज्यवर्ष १३का है । इसमे विलशाको ग्रामसभा-द्वारा त्रैलोक्यनाथजिनमन्दिरके लिए कुछ भूमि करमुक्त रूपमे बेची जानेका उल्लेख है। इसीके बाद इसी राजाके १७वें वर्षमे तिरुप्परुत्तिकुण्डुकी कुछ भूमि आरम्बनन्दिको बेची जानेका भी उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ३८१ पृ० ३७ ] २१६ लक्ष्मेश्वर ( मैसूर) सन् ११३२, कन्नड [ इस लेखमें गोग्गियबसदिके इन्द्रकीति पण्डितका उल्लेख है। उन्होंने तथा पेगडे मल्लियण्ण आदिने बसदिकी भूमिमे घर आदि बनवानेके कुछ नियम बनाये थे। हेमदेव-द्वारा बसदिके पुजारीको कुछ भूमि दान दी जानेका भी उल्लेख है। तिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा, परिधावि संवत्सर, भूलोकवर्ष ( चालुक्यसम्राट् भूलोकमल्लका राज्यवर्ष ) ७, बुधवार इस प्रकार दो है।] [रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र० ई० ४८ पृ० १६४ ] Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२१८] बहुरीबंदका लेख १५९ २१७ बहुरीबंद (जि० जबलपुर, मध्यप्रदेश) १२वीं सदी-पूर्वाधं, संस्कृत-नागरी स्वस्ति"वदि ९ भौमे श्रीमद्गयाकर्णदेवविजयराज्ये राष्ट्रकूटकुलोद्मवमहासामंताधिपतिश्रीमद्गोल्हणदेवस्य प्रवर्धमानस्य ॥ श्रीमद्गोल्लापूर्वाम्नाये वेल्लप्रमाटिकायामुरुकृताम्नाये तर्कतार्किकचूडामणिश्रीमन्माधवनंदिनानुगृहीतः साधुश्रीसर्वधरः तस्य पुत्रः महामोजः धर्मदानाध्ययनरत: । तेनेदं कारितं रम्यं शांतिनाथस्य मंदिरं ॥ स्वलात्यमसंजकसूत्रधारः श्रेष्ठिनामा वितानं च महाश्वेतं निर्मितमतिसुंदरं ॥ श्रीचंद्रकराचार्याम्नायदंसीगणान्वये समस्त विद्याविनयानंदितविद्वजनाः प्रतिष्टाचार्यश्रीमत्सुभद्राश्चिरं जयंतु ॥ [ यह लेख कलचुरि राजा गयाकर्णके सामन्त राष्ट्रकूट गोल्हणदेवके राज्यकालमें लिखा गया है। वेल्लप्रभाटिका गाँवमें गोल्लापूर्व जातिका महाभोज नामक श्रावक था जो माधवनन्दिके शिष्य सर्वधरका पुत्र था । उसने शान्तिनाथका एक सुन्दर मन्दिर बनवाया। इस मन्दिरकी प्रतिष्ठा चन्द्रकराचार्याम्नाय-देशीगणके आचार्य सुभद्रके हाथों हुई थी।] [ इन्स्क्रिप्शन्स ऑफ दि कलचुरि-चेदि एरा पृ० ३०९ ] २१८ आदिनाथमन्दिर, नाडलाई ( जि० देसूरी, राजस्थान ) संवत् १९८९ = सन् ११३३, संस्कृत-नागरी १ ओं ॥ संवत् ११८९ माघसुदि पंचम्यां श्रीचाहमानान्धय श्री महाराजाधिराज ( रायपा) ल Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० जनशिलालेख-संग्रह [-२१९ २ देव तस्य पुत्रो रुद्रपालअमृतपा (लो) ताभ्यां माता श्रीराज्ञी मा ___ (न) लदेवी तया (नदू) ल (डा) गिका३ यां सतां परजतीनां (रा)ज कुलपल (म) ध्यात् पलिकाद्वयं घाण (क) प्रति धर्माय प्रदत्त । मं० वार्गास४ वप्रमुखसमस्त ग्रामीणक । रा० तिमटा वि० सिरिया वणिक पोसरि । लक्ष्मण एतं सा । ५ खिं कृत्वा दत्तं । लोपकस्य यदु पापं गोहत्यासरसण। ब्रह्म हत्यासतेन च । तेन ६ पापेन लिप्यते सः ॥ श्री॥ [ यह लेख संवत् ११८९ मे चाहमान राजा रायपालके राज्यमे लिखा गया था। इसके दो पुत्र थे--रुद्रपाल तथा अमृतपाल । इनकी माता मानलदेवीने नदूलडागिका आनेवाले यतियोके लिए कुछ दान दिया था। [ ए० ई० ११ पृ० ३४] २१६ तिरुनिङकोण्डै ( मद्रास ) सन् ११३४, तमिल [ यह लेख परकेसरिवर्मन् विक्रम चोल राजाके १६वें वर्ष मे लिखा गया था। इसमें वैगाशि मासमें उत्सवोंके अवसरपर अरुमोलिदेव (अर्हत) तथा नित्यकल्याण देवकी पालकी-यात्राकी व्यवस्थाके लिए मलैयन् मल्लन् अर्थात् विक्रमचोलमल्लन-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३१० पृ० ६६ ] Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२२.] शेरगढ़का लेख २२० शेरगढ़ ( कोटा, राजस्थान ) संवत् ११६१ = सन् ११३५, संस्कृत-नागरी १ माहिल्लभार्यान्तिमा-स्य तिलके सूर्याश्रमे प (त) ने । श्रीपालो गुणपालकश्च विपु२ ले खण्डि (ल्लवा) ले कुले सूय (या) चन्द्रमसाविवाम्बरतले प्राप्ती क्रमान्मालवे ॥१॥ श्रीपालादिह देवपालतनयो दानेन चिन्तामणि(:) शा३ (न्तः श्री ) गुणपालठक्कुरसुताद् रूपेण कामोपमात् । पुनीमर्थ जनेरुतुकप्रभृतयः पुत्राश्च येग्रा नव तैः सर्वैरपि कोशवर्धनत४ ले रत्नत्रयः कारित(:) ॥२॥ वर्षे रुद्रशतैर्गतैः शुमतमैरकानव त्याधिकैवैशाख (खे) धवले द्वितीय दिवसे देवान् प्रतिष्ठा५ पितान् । वन्दन्ते नतदेवपालतनया माल्हूसधान्यादयः पूनी शान्तिसुतश्च नेमिभरताः श्रीशान्तिसरकुन्धवरान् । ६ ॥३॥ दांदिसूत्रधारोत्पन्नः शिलाश्रीसूत्रधारिणा । शान्तिकुन्थ्वरना__ मानो जयन्तु घटिता जिनाः ॥४॥ देवपालसु. ७ तेल्हुकः गोष्ठिबीसललल्लुकः मौकः हरिश्चन्द्रादिः गागासुपुत्र (:) अल्लकः ॥५॥ संवत् ११९१ वैसाष सुदि २ (म)८ गलदिने प्रतिष्ठा कारापिता ॥ [ यह लेख वैशाख शु० २, मंगलवार, मंवत् ११९१ का है । इस समय खण्डिल्लवाल कुलके शान्तिके पुत्रोने रत्नत्रय अर्थात् शान्ति, कुन्थ तथा अर इन तीन तीर्थकरोंकी मूर्तिया स्थापित की थीं । इनका निर्माण सूत्रधार दादिके पुत्र शिलाश्रीने किया था।] [ ए० ई० ३१ पृ० ८३ ] ११ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ દૂર १ जैन शिलालेख संग्रह २२१ कोल्हापुर (महाराष्ट्र ) शक १०५८ - सन् ११३५ कन्नड़ [ २२१ श्रीमत्परमगंमीरस्यादवादामोघलांछनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ ( १ ) स्वस्ति समधिगत पंचमहाशब्द महाम २ ण्डलेश्वरं । तगरपुरवराधीश्वरं श्रीशिलाहारनरंदं । जीमूतवाहनान्वयप्रसूतं । सुवर्ण गरुडध्वजं मरंबोक्कस । अय्यन ३ सिंगं । रिपुमण्डलिकभैरवं । विद्विष्टगजकण्ठीरवं । इडुवरादित्यं । रूपनारायणं । कलियुगविक्रमादित्यं । शनिवारसिद्धि गिरिदु ७ ४ लंघनं । श्रीमहालक्ष्मीदेवीलब्धवरप्रसादादिसमस्तसजावलीविराजितस्य श्रीमन्त्रहामण्डलेश्वरं गण्डरादित्यदेवरु वलवाडद ने ५ लेवोडिनल सुखसंकथाविनोददिं राज्यंगेय्युत्तमिरे । तत्पादपद्मोपजीवि समधिगतपंचमहाशब्द महासामन्तं । विजयल ६ क्ष्मीकान्तं । रिपुसामन्तसीमन्तिनी सीमन्तभंगं । वीरवरांगनाप्रियभुजंगं । वैरिसामन्तमेघविघटनसमीरणं । नागलदेविय गन्धवा रणं विद्विष्टसामन्त विलयकालं । सामन्तगण्डगोपालं । दायादसामन्ततारासुरवीर कुमार । सामन्तकेदारं । तोण्डसामन्तपुण्डरीक ८ षण्डप्रचण्डमदवेदण्डं | गण्डरादित्यदेव दक्ष दक्षिणभुजादण्डं । याचकजनमनोभिलषितचिन्तामणि । सामन्तशिरोमणि । जिन चरणसरसिरु Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२२१] कोल्हापुरका लेख १६३ ९ हमधुकरं सम्यक्स्वरत्नाकरनाहारामयभैषज्यशास्त्रदानविनोदं पद्मावतीदेवीलब्धवरप्रसादं । नामादिसमस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमन्महा । सामन्नं । निंबदेवरसरु । कवडेगोक्लद वलिय सन्तेय मुद्गोडेयल माडिसिद वसदिय पाश्वनाथदेवरष्टविधार्चनक्कमा बसदिय जीर्णोद्धारक्क११ मल्लिप्प ऋषियराहारदानक्कं । स्वस्ति । समस्तभुवनविख्यात. पंचशतवीरशासनलब्धानेकगुणगणालंकृत सत्यशौचाचारचारचारित्रनयविनयविज्ञान वीरबलंजधर्मप्रतिपालन विशुद्ध गुडध्वजविराजमानानूनसाहसोत्तुंग कीर्यङ्गनालिंगित निजभुजोपार्जितविजयलक्ष्मीनिवासवक्षस्थललं भुवनपराक्रमोन्नत वासुदेवखण्डलीमूलभद्रवंशोद्भवलं । भगवतीलब्धवरप्रसादरुं । तावु काडि सोलदरं । मरुवकमारिगलु परस्त्रोपर १४ धनवर्जितरं चतुष्पष्टिकलेगलोल प्रवीणरप्पुरि । ब्रह्मानन्नरूं। चक्रमुल्लुदरिं नारायणनन्न। दृष्टियोल नोडि कोल्युदरि । कालाग्निरुदनन्नरुं । को१५ न्दरनरसि कोल्वुइरिं । परशुरामनग्नरुं । तुलिदु कोल्वुदरं । मदान्धगन्धसिन्धुरदन्नरूं। गिरिदुर्गसं मरेवोक्करं तेगेदु कोल्वे डेयोल सिंहदन्न । १६ पातालमं पोक्कर कोल्वेडेयोल वासुगियन्नरुं। आकाशदोलिदेर कोल्वेडेयोल गरुत्मननलं । पंपिनल पृथ्वियनरं। विपिनल कुलगि१७ रियनलं । गुणपिनल महासमुद्र दारूं। उद्योगदल रामनन्नरु । १३ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ जैनशिलालेख-संग्रह [२२१पराक्रमदोल् पार्थनन्नरुं। शोचदोल गांगेयनझरुं । साहसदोल भामनन१८ रुं। धर्मदोल धर्मपुत्रनगरुं । ज्ञानदल सहदेवनन्नरुं । मोगदलि. ननरुं । त्यागदल कर्णनन्नरुं । तेजदलादित्यनमरूं । अहिच्छत्रमेनिसुवय्य वोलेपुरपरमेश्वररुमप्पयनूर्वर स्वामिगलं गवरेयरुं । गात्रियरुं । सेट्टियाँ। सेविगुत्तरं । गामण्डरुं । गामण्डस्वामिगहुँ । वीर २० रु। बीरवणिगरुं । कोल्लापुरद बिलपाणसेटियु । गोविन्दसेट्टियुं । कोमर अण्णमय्यनुं । मिरिंजेय बिजसेट्टियु । बाप्पिसे२१ टियु । गण्डरादित्यदेवर राजश्रेष्ठि वेसपटयसेट्टियाँ। आ मण्ड लेश्वरन बाडिन बम्मिसेट्टियुं । कूडिपट्टनदादित्यगृह२२ द सासनिगं हेग्गडे रावसेट्टियुं । चौधोरे बोप्पिसेट्टियुं । तार बगेय प्रभु कन्नपथ्यसेट्टियुं । मयिसिगेय काजगारं चौधो२३ रे गोरविसट्टियुं । बलेयवट्टणद शान्तिसेट्टियुं । अय्यवोलेयय नूर्वर सिंगं हालियसटियुं । कवडंगोल्लद प्रभु खप्परय्यना२४ दियागि समस्तदेशं नेरेदु । शकवर्षद सासिरदयवत्तेंटेनेय राक्षससंवत्सरद कातिकबहुल पंचर्चाम सोमवारदंदु श्रीमूलसंघ२५ देसीयगण-पुस्तकगच्छद कोल्लापुरद श्रीरूपनारायणप्रसदिया चार्यरप्प श्राश्रुतकीर्तित्रैविद्यदेवर कालं कर्चि। धारापू२६ वकमागि कोट्टायमेन्तंदोडे अडके हेरिंग अवत्त । जवलक्किपत्त हसरकरयदु। एले हेरिंगे नूरु । तलेबोरेगरवत्तु। हसरकि२७ त्तरदु । तुप्पमेण्णेये बिबु कोडक्क सोल्लगे सिदिगेगरवाणं संगडि गोर्माण दूसिगवसरक्कमक्कसालेगं होंगे हणं । हत्ति मलवेग२८ यवलं । मण्डिय करुसेय मलवेगेरडु बीसिगे। जवलक्के पलं Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२२१] कोल्हापुरका लेख १६५ पत्त । लंकरोक्कलल्लि पारु सिंगलगे मणेतिविगे मरवियेंदिवोन्दक्कुं । वर्षक्के मंचवोन्दक्कुं । अल्लवरिसिनं शुण्ठि बेल्लुल्लि बजे भद्रमुस्तेवियु मोदलागि तूगि मारुव मण्डंगलगे हेरिंगयवलं जवलक्किप्पलं हसरकोप्पलं जीरगे मेलसु सासवियें बिवु हेरिंगोम्मानं जवलक्करवनं हसरक्के सोल्लगे । उप्पु मोदलागि हदिनेंटु ध्यानगलगं भंडिगे कोलगोंदु हेरिंगे मानवेरडु तलेबोरेगोर्मानं बाडु कार्यबिवु मंडिग हत्तु तलेवोरेगे नाल्कक्कुं। भण्डिगे दण्डिगे बोंदु । ३२ सेवेयरदुः हूटेयेरडक दण्डिगे वोदु सेवेयरड हविन हेडलिगेगे माले वोन्दु कुंबररल्लि हसरक्क मडके बोन्दु ॥ इन्तीया३३ यमन लिदातांते बाणराशि कुरुक्षेत्रादिगलोल पंचमहापातकम माडिद फलमकुं॥ [ इस लेखका साराश द्वितीय भागमे क्र० ३०२ मे दिया है किन्तु उस समय मूल लेख प्रकाशित नही हुआ था। यह लेख शिलाहार वंशके महामण्डलेश्वर गण्डरादित्यके समय शक १०५८ मे लिखा गया था। इसका सामन्त निम्बदेव था जिसने तोण्डमण्डलके युद्धमे शूरता प्रदर्शित की थी। निम्बदेवने कवडेगोल्ल नगरमे एक जिनमन्दिर बनवाया था। इसके बाद वीरबलंज लोगोंके संघका विस्तृत वर्णन है। उसके प्रतिनिधियोंने कोल्हापुरके रूपनारायण जिनमन्दिरके व्यवस्थापक मूलसंघ-देशीय गणके श्रुतकीति विद्यको कवडेगोल्ल जिनमन्दिरके लिए उक्त तिथिको कुछ करोंका उत्पन्न दान दिया।] [ए० इं० १९ पृ० ३० ] Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ जैन शिलालेख संग्रह २२२ कोल्हापुर (महाराष्ट्र ) १२वीं सदी पुर्वार्ध कन्नड महालक्ष्मी मन्दिर में छतके खम्मोंपर [ २२२ [ यह लेख शिलाहार राजा गण्डरादित्यके समयका है । इनके सामन्त निम्बने एक चैत्यालय बनवाया था । नाकिराजको कन्या कर्णादेवीका भो उल्लेख है जो एक रानी थी । कोण्डकुन्दान्वयके माघनन्दि आचार्यका भी उल्लेख है । ] [रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० ३५१ ] २२३ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) सन् ११३७, तमिल [ यह लेख कुलोत्तुंग चोलदेव ( द्वितीय ) के राज्यवर्ष ४ मे लिखा गया था । आलप्पिरन्दान् मोगन् उपनाम कुलोत्तु गशोलकाडवरायन्- द्वारा कच्चिनायनार ( चन्द्रप्रभ) की पूजा के लिये जननाथमंगलम् गाँवके उत्पन्नसे ४२० कलम् ( नापका प्रकार ) चांवल अर्पण किये जानेका इसमे उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३११ पृ० ६६ ] २२४ गणपवरम् (गुण्टूर, आन्ध्र ) ११वीं - १२वीं सदी, तेलुगु [ यह लेख श्रावण शु० ३ का है - शकवर्षके अंक लुप्त हुए है । कुलोत्तुंग राजेन्द्र के पुण्यवृद्धि के लिए अक्कसाल कामोजुद्वारा कुछ दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है । अन्तमे चन्द्रप्रभजिनालयका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९१५-१६ पृ० ४३ क्र० ४५८ ] Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२३० ] तिरक्कोल आदिके लेख २२५-२२७ तिरक्कोल ( उ० अर्काट, मद्रास ) ११वीं - १२वीं सदी, तमिल [ इस लेख में तण्डपुरम्की पल्लि ( जैनवसति ) के लिए एरणन्दि उपनाम नरतोंग पल्लवरैयन् द्वारा कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । यह ग्राम पोन्नूरनाडुमें सम्मिलित था । यहींके एक अन्य लेखमें शेम्बियन् शेम्बोत्तिलाडणार् द्वारा कनकवोर शित्तडिगलको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । यह चोल राजा परकेसरिवर्मन्‌के १२वे वर्षका लेख है । तीसरा लेख स्थानीय वर्धमानमन्दिरके दो स्तम्भोंपर है । ये स्तम्भ अरुमोलिदेवपुरम्के इडैयारन् आट्कोण्डान् मावोरन्-द्वारा स्थापित हुए थे । ] [रि० स० ए० १९१५-१६ क्र० २७६-२८० पृ०९१ ] २२८-२३० बस्तिहल्लि ( मैसूर ) १२वीं सदी - पूर्वार्ध, कन्नड १६७ [ यहाँ तीन लेख हैं । एक जिनमूर्ति के पादपीठपर मूलसंघ - देसियगण के - कुक्कुटासन- मलधारिदेव के शिष्य शुभचन्द्र सिद्धान्तिदेव के शिष्य दण्डनायक गंगपय्यका नामोल्लेख है। एक दूसरे मूर्तिके पादपीठपर मूलसंघ- देसिगणके दिनकर जिनालय मे हेग्गडे मल्लिमय्य-द्वारा मूर्तिस्थापनाका उल्लेख है । इस मन्दिरके द्वारके लेखमे इस मन्दिरको स्थापनाका वर्ष सन् ११३८ दिया है । ] २३१ नाङलाई (जि. देसूरी, राजस्थान ) संवत् ११९५ = सन् ११३९, संस्कृत - नागरी १ ओं नमः सर्वज्ञाय ॥ संवत ११ [ ए० रि० मै० १९११ पृ० ४४ ] Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६८ जैनशिलालेख-संग्रह [२३१ २ ९५ पासउज वदि १५ कुजे । ३ प्रोह श्रीन (इ) लडर (गि) कायां महा४ राजाधिराजश्रीराय (पा) लदेवे । विज - ५ यी राज्यं कुर्वतीत्येतस्मिन् काले ६ श्रीमदुजिततीर्थः श्री (ने)मिनाथदेव७ स्य दीपधूपनैवेद्य)पुष्पपूजाद्यर्थे गू८ हिलान्वय: राउ० उधरणसूनु ९ ना मोक्तारि ठ• राजदेवेन स्वपु१० ण्यार्थे स्वीयादानमध्यात् मागें[ग] ११ च्छतानामागतानां वृषभानांशेके (७) १२ यदामाज्यं भवति तन्मध्यात् वि(श) १३ तिमो माग: चंद्राकं यावत् देवस्य १४ प्रदत्तः ॥ अस्मवंशीयनान्येन वा १५ केनापि परिपंथा न करणीया १६ अस्मद्दत्तं न केनापि लोप(नी)यं ॥ १७ स्वहस्ते परहस्ते वा यः कोपि लोप१८ यिष्यति तस्याहं करे लग्नो १९ न लोप्यं मम शासनमिदं । लि०२० (पां सिलेन ॥ स्वहस्तोयं साभि२१ ज्ञानपूर्वकं राउ० रा(ज)देवे२२ न मतु दत्तं ॥ अत्राहं साक्षि-(णा)२३ ज्योतिषिक (दृदू)पासूनुना गूगि२४ ना । तथा पड़ा. पाला । पृथिं २५ वा ! मांगु(ला) ॥ देपसा । रा २६ पसा ॥ मंगलं महा (श्री:)॥ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२३२ ] नाइलाईका लेख [ उक्त लेख संवत् ११९५ मे चाहमान राजा रायपालके लिखा गया था । इसमें नदूलडागिकाके नेमिनाथमंदिर के लिए ठा० द्वारा कुछ दान दिये जानेका निर्देश है ] २३२ नाङलाई (जि. देसूरी, राजस्थान ) संवत् १२०० = सन् ११४४, संस्कृत - नागरी 1 १६९ राज्य में राजदेव [ ए० ई० ११ पृ० ३६ ] | संच (तु) । १२०० जेष्ट (सु) दि ५ गुरौ श्रीमहाराजाधिराज - श्रीरायपाल देवराज्ये - हास - २ समये रथयात्रायां आगतेन रा० राजदेवेन आत्म-पाइलामध्यात् ( सर्व साउत पुत्र ) विंसो ३ पको दत्तः । आत्मीय घाणकतेलच (ल) मध्यात् । मातानिमित्तं पलिकाद्वयं । प्ली २ दत्तः ॥ म ४. हाजनप्रमीण । जनपदसमक्षाय । धर्माय निमित्तं विसोपको १ पलिकाद्वयं दत्तं ॥ गोह - ५ स्थानां सहस्रेण ब्रह्महत्यासतेन च । स्त्रीहत्याभ्रणहत्या च जतु पापं तेन पापेन लिप्यते सः ॥ [ यह लेख संवत् १२०० मे राजा रायपालके राज्यमे लिखा गया था । यात्रा के लिए आये हुए रा० राजदेव द्वारा कुछ दान दिये जानेका इसमे निर्देश है । ] [ ए० ई० ११ पृ० ४१ ] २३३ कम्बदहल्लि ( मैसूर ) सन् ११४५, कन्नड [ इस लेख में होयसल राजा नरसिंह के दो दण्डनायक मरियाने तथा Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२३४भरतिमय्य-द्वारा शान्तीश्वरबसदिके लिए मोदलियहल्लि ग्रामके दानका उल्लेख है। यह दान क्रोधनसंवत्सरका है। तदनुसार सन् ११४५ का यह लेख है। ये दण्डनायक आचार्य गण्डविमुक्तदेवके शिष्य थे। 1 [ए० रि० मै० १९१५ पृ० ५१ ] २३४ बालेहल्लि ( धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष ८ = सन् ११४५, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्लदेवके राज्यवर्ष ८, क्रोधन संवत्सरमें फाल्गुन शु० १, रविवारके दिन उत्कीर्ण किया गया था। बम्मिसेट्टिने बालेयहल्लिमे पार्श्वनाथमन्दिरका निर्माण किया तथा उसकी रक्षाके लिए देसिगण, पुस्तकगच्छ, ( कोण्डकुन्द ) अन्वयके मलधारिदेवको कुछ दान दिया ऐसा इसमे उल्लेख है । मन्दिरको दिये गये कुछ अन्य दानोका भी इसमे उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० १७६ पृ० २२] २३५ नाडलाई ( जि० देसूरी, राजस्थान ) संवत् १२०२ = सन् ११४६, संस्कृत-नागरी १ ओं ॥ संवत् १२०२ श्रासोज वदि ५ शुक्रे श्रीमहाराजाधिराज श्रीरायपालदेवराज्ये प्रवतं(माने) २ श्रीनदूलडागिकायां रा० राजदेवठकुरेण प्रव(त)मानेन श्रीमहा वीरचैत्ये साधुत३ पोधननि (ठाधे) श्रीअभिनवपुरीय वदार्या अत्रे)पु स(म)स्त वणजारकेषु देसी मिलित्वा वृ - Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२३७ ] कुण्टन होलि आदिकं लेख ४ (ष) म (म) रित जतु पाइलालगमाने ततु वोसं प्रति रूभा २ किराडse गाडं प्रति रू १ वण - ५ जारकै धर्माय प्रदत्तं | लोपकस्य जतु पापं गोहत्यासहस्त्रेण ब्रह्महत्यासतेन पापेन लिप्यते सः ॥ ३७१ [ यह लेख संवत् १२०२ मे चाहमान राजा रायपालके राज्यमें लिखा गया था। इसमें नदूलडागिका के महावीर मन्दिरमें आये हुए साधुओंके लिए ठ० राजदेव द्वारा कुछ दान दिये जानेका निर्देश है । ] [ ए० ई० ११ पृ० ४२ ] २३६ कुण्टन होसल्लि ( जि० धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष १० = सन् ११४८, कन्नड बसवण्ण मन्दिर के समीप शिलापर [ यह लेख खराब हुआ है । चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्लके समय दसवें वर्ष, प्रभव संवत्सरमे यह लिखा गया था । नागिसेट्टि द्वारा किसी जैन देवताको कुछ जमीन दान दिये जानेका इसमें निर्देश है । कदम्बवंशीय तैल मण्डलेश तथा आचलदेवीका भी इसमें उल्लेख ] (रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० ६८ ) २३७ नीरलगि ( धारवाड, मैसुर ) राज्यवर्ष १० = सन् १९४८, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा जगदेकमल्लके राज्यवर्ष १० मे पुष्य शु० १३, गुरुवार, उत्तरायण संक्रान्तिके दिनका है । इसमें नेरिलगेके नाल्प्रभु मलगावण्ड द्वारा स्वनिर्मित मल्लिनाथ - जिनालयके लिए कुछ भूमि मूलसंघ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२३८सूरस्थ गण-चित्रकूट गच्छके हरिणन्दिदेवको अर्पित की जानेका उल्लेख है । मल्लगावुण्ड चतुर्थज्ञातिका व्यक्ति था।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ क्र० ई० ६१ पृ० १२४ ] २३८ करगुदरि ( जि. धारवाड, मैसूर ) सन् ११४८, कन्नड [यह लेख पौष शुक्ल १, सोमवार, प्रभव संवत्सर, के दिन लिखा गया था। महावडुव्यवहारि कल्लिसेट्रि-द्वारा करेगुदुरेमे विजयपार्श्वजिनेन्द्र मन्दिर बनवाया गया उसे कुछ जमीन दान देनेका इसमें निर्देश है। यह दान सूरस्थ गण, चित्रकूट अन्वयके वासुपूज्यके शिष्य हरिणन्दिके शिष्य नागचन्द्र भट्टारकको दिया गया था। उस समय महाप्रचण्डदण्डनायक सोवरसका शासन हानुंगल ५०० के प्रदेशपर चल रहा था तथा उसके एक भागपर मण्डलेश कदम्बवंशीय तैलका अधिकार था। इस समय चालुक्य प्रतापचक्रवर्ती जगदेकमल्ल सम्राट थे।] [रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० ६७ ] २३६ हुलगूर (जि. धारवाड, मैसूर ) १२वीं सदी - मध्य, कन्नड [ यह लेख अधूरा है । चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्लके समय पुरिगेरे तथा बेलवोल प्रदेशोपर महाप्रचण्डदण्डनायक वावणरस शासन कर रहा था। इसका सामन्त मणलेर कुलका जयकेशी था जो पुरिगेरेके राष्ट्रकूट पदका अधिकारी था। इसके समयकी एक जैन श्राविका नीलिकब्बेका इस लेखमे निर्देश है। (रि० सा० ए० १९४४-४५ एफ ३२) Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२४३] शृंगेरी आदिक लेख २४० भंगेरी ( मैसूर ) शक १०७१ = सन् ११५०, कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलां२ छनं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ३ स्वस्ति श्री(म)तु सकवरुषंगलु १०७१ ने प्रमोदू४ तसंवत्सरद चयिसावमासद "शुद्ध सप्तमि ५ स दन्दु श्रीकाणूरगण मूलसंघ.. ६ पुस्तकगच्छद.."हरिय ७ मंगल [ यह लेख पाश्वनाथदसदिके मुखमण्डपके एक पाषाणपर है । वैशाख शु० ७, शक १०७१, प्रमोदूत संवत्सर इस तिथिका तथा मूलसंध-काणूरगण-पुस्तकगच्छका इसमे उल्लेख है। लेख अस्पष्ट होनेसे इसका उद्देश आदि विवरण ज्ञात नहीं हो सकता।] [ ए० रि० मै० १९३४ पृ० ११३ ] अरसीवीडि ( बिजापूर, मैसूर ) चालुक्य विक्रम नर्ष ७६ = सन् ११५१, कन्नड [ इस लेखमे चालुक्य राजा त्रैलाक्यमल्लदेवके सामन्त वीरचाउण्डरस तथा उसको पत्नी देमलदेवी-द्वारा पौष व०-२, बुधवार, चालुक्य विक्रम वर्ष ७(६)के दिन मूलसंघ-देशियगणके आचार्य नयकोति सिद्धान्तदेवके शिष्य नेमिचन्द्र पण्डितदेवको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई ३३ पृ० ४३ ] Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२४२ २४२-२४३ छतरपुर ( मध्यप्रदेश) सं० १२०८ = सन् १५५१, संस्कृत-नागरी [ ये दो लेख लखनऊ म्युजियमकी दो मूर्तियोंके पादपोठोंपर हैं। ये मूर्तियाँ छतरपुरसे प्राप्त हुई थीं। सुविधिनाथ तथा नेमिनाथकी इन मूर्तियोंकी स्थापनातिथि आषाढ शु० ५, गुरुवार, सं० १२०८ थी ऐसा लेखमे कहा है । ] [ मे० आ० स० ११ ( १९२२ ) पृ० १४ ] २४४ स्टेट म्युजियम, भरतपुर ( राजस्थान ) सं० ११०९ = सन् १०५३, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमे ज्येष्ठ शु० (१) रविवार, संवत् ११०९ के दिन पार्श्वनाथमतिकी स्थापनाका उल्लेख है। लेख मूर्तिके पादपीठपर उत्कीर्ण किया है।] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० १६३ पृ० २१ ] २४५ शेडबाल ( बेलगांव, मैसूर ) शक १०७५ %= सन् ११५३, कन्नड [ यह लेख बसवण्णमन्दिरमे लगा हुआ है। इसमें सेणिग कोत्तलिद्वारा निर्मित जिनमन्दिरके लिए कुछ करोके उत्पन्नके दानका उल्लेख किया है। तिथि चैत्र शु० ५, रविवार, श्रीमुख संवत्सर शक १०७८ ऐसी दी है। किन्तु तिथि आदिको गणनानुसार यह शक १०७५ का लेख है।] [रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र. १८७ पृ० ३६ ] Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलूरका लेख २४६ बेलूर (मैसूर) शक १०७६ = सन् ११५३, कन्नड १ निशेषशास्त्रवाराशिपारगैः । श्रीवर्धमानस्वामिगल धर्मतीर्थ प्र - २ भद्रबाहुमहारकरिं । भूतवलिपुष्पदंतस्वामिगलिंद | एकसंधिसु (मतिगलिंद अ) - ३ कलंकदेव रिंद | वक्रग्रीवाचार्यरिंद | वज्रदिमहार करिंद सिंहणं (दि कनक - ) ४ सेन वादिराजदेवरिंदं । श्रविजयदेवरिंदं । शांतिदेवरिंदं पुष्पसेन (देव रिंद ।) ५ अजित सेन पंडित देवरिंदं । कुमारमेन देवरिंदं । मल्लिषेण मलधारिंदे (वरिंद) -२४६ ] १७५ ६ ( श्रुतकीर्ति श्रीपालं वरवाणिश्रीपाल बिरुदवादिसदविस्फार्लं ॥ तमगे - ७ (अ) मदेत्ति धरेगे तम्म मुखदोल षट्तर्कवारा शिविभ्रममापो... ८ रुमं कील्पडिसित्तु पेंपिनेस कं श्रीपालयोगींदर ॥ आवन विषयम... १ (ग) द्यपद्यवचोविन्यासं निसर्गविजयविलासं । कश्चिद् वादविनोदकोविद... १० दक्षः कश्चन कश्चनापि गमको वाग्मी परः कश्चन । पांडित्ये सुचतुर्विधेपि निपुण. श्रीपालदेवः पुनस्तर्कव्याकरणागम ११ प्रवणधस्त्रैविद्यविद्यानिधिः । अवर सघर्मर । वर्गत्यागद सूचित मार्गोपन्यासदलम मार्नुडियकामगंगवरदे १२ नल्के निरर्गलमादत्तनन्तवीर्यप्रतियो || आ श्रीपाल नैविद्यदेवर शिष्यर् ॥ श्रीमत्त्रैविद्यविद्यापतिपदकमलारा Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ २४६ १३ धनालब्धबुद्धिः सिद्धांतां मोनिधानप्रविसरदमृतास्वादपुष्टप्रमोदः । दीक्षाशिक्षा सुरक्षाक्रम कृतिनिपु १७६ १४ णः सन्ततं भव्यसेव्यः सोयं दाक्षिण्य मूर्तिर्जगति विजयते वासुपूज्यव्रतोद्रः ॥ सत्यशौचकरुणागुणोरकरैहस्य १५ क्तलोममदमान रोषणैः । शुद्धवृत्तियुतबाधदर्शनैर्वादिराज मुनिराज राजसे ॥ श्रापालनैविद्यश्रीपादप १६ मान्तरंग संगतभृंगं श्रीपरिपूर्ण होयसलभूपालकमंत्रि माचदण्डाधीशं ॥ जिननाप्तं पोरेद नृपालतिलक श्री १७ विष्णु (भूपा ) लकं जनकं सं एरेयंगवेग्गड जगद्विख्याते राजन्वे तनगिनिम्मडिदण्डनायकने तां मावं महामंत्रि ता १८ येईनला माचिणदण्डनाथने वलं धन्यं परं धन्यने ॥ सुरगुरुमंत्रक्रमदोल घुरदोल सिंहप्रतापनप्र १९ तिमतेजं सुरतरु वितरणगुणदिं नरसिंहमहीशमंत्रि माचचमूपं ॥ स्वस्ति समस्तप्रशस्तिसहितं श्रा २० मन्महाप्रधानं माचियणदण्डनायकं तनगे व्रवगुरुगलु श्रुतगुरुगलुमैनिसिद परवादिमल्ल २१ वादीमसिंह महामण्डलाचार्य श्रीपालनैविद्यदेवर माडदादिदेवर बसदिय केलसद कोरगं देवर् २२ अष्टविधार्चनंग ऋषियराहारदानक्कवागि शकवर्ष १०७६ नेय श्रीमुख संवत्सरदुत्तरायणसंक्रमण २३ दंदु महादानंगलं माडु तिर्पा समग्रदोले माचिणदण्डनायकं fani गेय्य होय्सलश्रीनारसिं २४ हदेवर कब्भुणा नागरहालं सर्वबाधापरिहार वा गियादिदेवर्गे धापूर्वक माडि कोट्ट दत्तियं " २५ तु देवदानवादा नागरहाल चतुःसमियप्पुटु मूडलु कल्ल दोणे संचरिवल्ल । श्राग्नेयदल कडवदको Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ -२४६] बेलूरका लेख २६ लद होरेयणि मागवागि बन्द हेब्बट्टे । तेकल जालदहल्ल वल्लि हडवलु केंदलिरहल्ल । नैऋत्यदल हुलियक२७ रलाल हडवलु हुलियहल्ल । वायव्यदलु सूलद हिरियकणि । बडगल मागेडेगे होह हेदारियब२८ डगण मोरडि । ईशान्यदोल कोडेयालवल्लि तेंकलु नदृ कल्लु । ___इंता चतुःसीम वेरसु नागरहालं बल्लजिना (ल)य२९ क्के सर्वनमम्यवागि पडिसलिसुववर्गे गंगेय तडियल सायिर कविलेयं कोडं कोलगुमं होनल कट्टिसि चतु३० ...'गुत्तरायणसंक्रमणग्रहणव्यतीपातदंदु दानं माडिद फलवी धर्ममं कि३१ .."यला कविलेयुमना ब्राह्मणरुमना तिथिवारदलु३२ ""ममं प्रतिपालिसुवुदु ॥ स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरत.. ३३ ... जायते क्रिमिः ॥ मंगल महा श्री श्री पालित ३४ .."जालोलं विशदयशोलीलं गुणसेनपंडितं बुधनि... ३५ ..पुरंदरं गुणसेनपंडित.... [ यह लेख केशवमन्दिरके छतमे लगा पाया गया। इसमे पहले वर्धमानस्वामी ( महावीर ) से प्रारम्भ कर कई आचार्योकी परम्परामे श्रीपाल विद्यदेवका वर्णन किया है। इनके द्वारा निर्मित आदिदेवकी बसदिके लिए होयसल राजा नरसिंहके सेनापति माचियणने नागरहाल ग्राम दान दिया था। दानकी तिथि शक १०७६ की उत्तरायणसंक्रान्ति थी । लेखमे श्रीपाल विद्यके गुरुबन्धु अनन्तवीर्य तथा शिष्य वासुपूज्य एवं वादिराजका भी वर्णन है । अन्तम गुणसेन पण्डितका भी उल्लेख है।। [ए० रि० मै० १९३८ पृ० १०२ ] Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२४७-- २४७ बल्गेरि ( बेलगाँव, मैसूर) शक १०७८ = सन् ११५६, कन्नड [ इस लेखमें चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्लके राज्यकालमे कलचुरि वंशके बिज्जल ( द्वितीय ) तकके सामन्तोंकी वंशावली दी है। बिज्जलके बन्धु मलुगि तथा उसकी पत्नी लक्ष्मादेवीका शासन बेलवल ३०० प्रदेशपर चल रहा था उस समय राजाके मन्त्री कालिदास चमूपने पार्श्वनाथतीर्थको यात्रा कर एक मन्दिर बनवाया तथा उसके लिए कुछ दान दिया। इसकी तिथि पुष्य शु० (१२), धातु संवन्सर, शक, १०७८, उत्तरायणसंक्रान्ति ऐसी दी है । ] [ रि० इ० ए० १९५३-५४ ऋ० १७५ पृ० ३५ ] २४८ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् ११५६, तमिल [यह लेख चोल सम्राट राजराजदेवके १०वे वर्षमे लिखा गया था। इस मन्दिरमे सन्ध्यासमय दीप प्रज्वलित रखनेके लिए मन्दिर-अधिकारीद्वारा ३०० काशु स्वीकार किये जानेका इसमे निर्देश है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र ० १४१ ] २४६-२५० करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् १९५६-५७. तमिल [ इस लेखमे जयंगोण्डशोलमण्डलम् प्रदेशके ऊरुक्काडु ग्रामके एक वेल्लाल-द्वारा करन्दस्थित जिनमन्दिरमें दीप प्रज्वलित रखनेके लिए कुछ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२५२] करडकलका लेख १७९ गायें दान दी जानेका उल्लेख है। यह चोल सम्राट राजराजदेवके १०३ वर्ष में दिया गया था। राजराजदेवके ११वे वर्षका एक लेख यहीं है ! इसमे पर्नेयूर्नाडु प्रदेशके अरुमोलिदेवपुरम् स्थानके नगरत्तार लोगों द्वारा तिरुप्परम्बूरके जिनमन्दिरमें प्रबोधन समारोहके अवसरपर दिये गये दोपदानोंका विवरण दिया है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० ऋ० १३१-१३२] करडकल ( रायचूर, मैसूर ) शक १०८१ = सन् १९५९, कन्नड [ यह लेख कलचुर्य राजा त्रिभुवनैकवीर बिज्जलके राज्यकालमे आषाढ, दक्षिणायन संक्रान्ति, शक १०८१, प्रमायि संवत्सर, गुरुवारके दिन लिखा गया था। इसमे एक सेनापति तथा पद्मलदेवीका उल्लेख है तथा मूलमंघ-देसिगण-पुस्तकगच्छके किमी आचार्यको दान दिये जानेका उल्लेख है। इस समय यह लेव वीरभद्रमन्दिर में लगा है।] [रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र ० २३८ पृ० ४१ ] २५२ केरेसन्ते ( कट्टर, मैसूर) १२वीं सदी ( सन् ११५९), कन्नड १ बहुधान्यसंवत्सरद माघ सु १५ रलु २ श्रीमत् प्रतापचक्रवति होयसण श्री ३ वीर नारसिंहदेवरसरु भडकेय पा. ४ रिशदेवन मग चिक्कमलण्णंगे केरेयसंथे५ य द्रविलसंघद आदिनाथदेवर पाश्वदेवर ६ बसदिगलिगे आ केरेयसंथेय हिर्यकेरेय Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख - संग्रह ७ केलगुलंत स्थलवृत्तिय तोट गढे बेदलु म८ ने आ देवरुगलिगुलं तह समस्ततेजस्वा९ यवनु श्रा श्रीवीरनारसिंहदेवरसरु आ मल्ल१० ण्णंगे दानवागि धारापूर्वके माडि श्राचद्रार्क११ तारं बरं सल्वंतागि कोहरु मंगल महा श्री श्री [ इस लेख मे होयसल राजा नरसिह द्वारा केरेयसंथे स्थित द्रविलसंघकी आदिनाथ- पार्श्वनाथ बसदिके लिए चिक्कमल्लण्णको कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । लिपि १२वीं सदीकी है तदनुसार यह लेख बहुधान्य संवत्सर = सन् १९५९ का होगा । तब नरसिंह प्रथमका राज्य चल रहा था । इस समय यह लेख जनार्दनमन्दिर मे लगा है । ] [ ए०रि० मै० १९४५ पृ० ११२ ] २५३ १८० हुलियार (मैसूर) १२वीं सदी-मध्य, कन्नड | इस लेखमे होयसल राजा नरसिह १ के समय चान्द्रायण देवके शिष्य सामन्त गोवकी पत्नी श्रीयादेवी द्वारा एक जिनमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । इस समय यह पादपीठ विष्णुमूर्ति के लिए उपयोगमे लाया जाता । ] [ १५३ [ ए०रि० मं० १९१८ पृ० ४५ ] २५४ हरिद्वार ( उत्तरप्रदेश ) सं० १२१६ = सन् ११५९, संस्कृत-नागरी [ यह लेख पीतलकी चौबीसी - मूर्तिके स्थापनातिथि आषाढ़ ९, सं० १२१६ दी है। म्युजियम है । ] पीठपर है । इसमे मूर्तिकी मूर्ति इस समय लखनऊ [ मे० आ० स० ११ ( १९२२ ) पृ० १५ ] Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५५ ] श्रृंगेरीका लेख २५५ श्रृंगेरी (मैसूर) शक १०८२ = सन् ११६०, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्यादवादा मोघलांछनं (i) २ जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं (ii) ३ स्वस्ति श्रीमत् सकवर्ष द १०८२ ४ विक्रमसंवत्सरद कुम्भ शु५ द्व दशमि बृहबारदन्दु श्रीमनिडगोड ६ विजयनारायण शान्तिसेहिय पुत्र बा७ सिट्टियर अक्क सिरियबेसेट्टियर म८गलु नागबेसेहियिर मगलु सिरिय९ लेसेट्टितिगं हेम्माडिसेट्टिगं सुपुत्रन१० प मारिसेट्टिगे परोक्षविनयक्के मा११ डिसिह बसदिगे बिट्ट दत्ति केरेय केलग१२ ण हिरिय गदेय बसदिय बडगण होस१३ युं भंडियु होलेयुं नडुवण हुदुविन होरद १४ मण्णु कण्डुग सुल्लिगोड अरुगण्डुग मण्णु १८१ १५ .....बणजमुं नानदेसियुं बिट्टय १६ ... मलवेगे हाग हंज हात्तिय मल १७ ....ले मेलसिन मारक्के हागमुं १८ मत्तं पत्तो लुप्पु हेरिगय्वत्तेले श्ररिसिनद मलवेगे वीसक्के विहं तपिदडे तपिदवनु गंगेय १९ लु साहूर कविलेय कोण्ड पातक [ यह लेख पार्श्वनाथमन्दिर के सभागृह में । इसकी तिथि शक Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૮૨ जैनशिलालेख-संग्रह [२५६ १०८२, विक्रमसंवत्सर, कुम्भ मास शु० १० गुरुवार ऐसी है। इस दिन इस मन्दिरके लिए कुछ भूमि तथा व्यापारियों द्वारा कुछ करोंका उत्पन्न दान दिया गया था। यह मन्दिर हेम्माडिसेट्टिकी पत्नी सिरियबेके पुत्र मारिसेट्टिकी स्मृति में बनवाया गया था। मन्दिरके गर्भगृहकी पार्श्वनाथमूर्तिके पादपीठपर इमी समयकी लिपिमें निम्न वाक्य खुदा है-श्रीमत्पारिसनाथाय नमः ।। [ ए० रि० मै० १९३३ पृ० १२२, १२५ ] २५६ बाबानगर ( बिजापूर, मैसूर ) शक १०८३ = सन् ११६१, कनाड [ यह लेख कलचुर्य राजा बिज्जणदेवके समय शक १०८३, विक्रम मंवत्सरका है। इसमें मूलसंघ-देसिगणके मंगलिवेडके आचार्य माणिक्यभट्टारकका तथा मैलुगि नामक शासकका उल्लेख है । इसने कन्नडिगेके जैन बसदिको कुछ दान दिया था। ] [रि० सा० ए० १९३३-३४ पृ० १३० क्र० ई १२० ] गुत्तल ( धारवाड, मैसूर ) शक १०(८४) = सन् १९६२, कन्नड [ यह लेख गुत्त वंशके महामण्डलेश्वर विक्रमादित्यरसके समय पौष शु० १५, सोमवार, शक १०(८४) का है। इसमे केतिसेट्रि-द्वारा निर्मित पार्श्वदेवमन्दिरके लिए गजा-द्वारा भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है। पुस्तकगच्छके मलधारिदेव तथा सोमेश्वरपण्डितदेवका भी उल्लेख है ।] [ रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई ५१ पृ० ९६ ] Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२५८] हालुगुडेका लेख १८३ हालुगुड्डे ( मैसूर ) शक १०८४ = सन् ११६२, कन्नड १ नमस्तुंगशिरथुम्बिचन्द्रचामर चारवे । त्रैलोक्यनगगरम्ममूलस्त म्माय शम्भवे ॥ स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्द २ अशेषमहामण्डलेश्वरनुत्तरमधुराधीश्वरं पट्टिपोग्बुच्चपुरवरेश्वरं पद्मावतीलब्धवरप्रसाद मृगमदामोद सन्तत३ सकल जनस्तुत्यं नीतिशास्त्रज्ञ-बिरदसर्वज्ञ-नामादिप्रशस्तिसहितं श्रीमन्महामण्डलेश्वरं प्रतापभुजबल ४ शान्तरदेवरु सान्तलिगेसायिरमं सुखसंकथाविनोददि राज्यं गेय्युत्तमिरे तत्पादपद्मोपजीवि समधिगतपंच. ५ महाशब्द महाप्रचण्डकुमार वेदण्डपंचानन रिपुकुमारतारक षडाननं अरसंकगाल विजयलक्ष्मीलोल श्रीमतु. ६ होसगुन्दद बीररसरु मलुसान्त लिगेयुमं अग्रहारमुमं सुखदि नालुत्तमिरं शकवर्ष १०८४ नेय चित्रमानुसंवत्सरद ७ वैशाख सुद १. वहुवारदन्दु कटद दण्ड अलिय बम्मणेयर्नु पाण्ड्यरसनुम्बलिगारनु समस्तसाधन बेरसि""वूरलु बिट्ट ८ वत्ति बहल्लि नेल्लिबडेयलु जिनपादशेखर मन्धिावग्रहि माचि राजन ॥ कं० तलपारिनायकगे एलेयल बोप्पेयब्बे नायकत्ति । ९ मगं भूवलयदोल अधिकं पुहिद कलिगल मुखतिलकं गोग्गि मण्टरदेव । रूपिनालु कामसन्निम कूपिनोला नरतनूज अभिमन्यु ५० तां बेपं जनक्कीवेडयोलु नोपडे कलि गोग्गि कल्पवृक्षं जगदोल धुरदोल अरातिभूभुजरनन्तघटिंदरसंकगाल वीर १५ नलूथि बससे गांगणन्तिरिल्लि बिदं बीरर नोरनेत्तरि नेणन खण्डद दिण्डेगरुलगलिं भयंकरं एने विक्रमं कलिग Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४. जैनशिलालेख-संग्रह [२५४-- १२ ना जगदेकवीरन । अणियरमोड्डिदड्डणद चोररनान्तिसुतिर्प बिल्ल बल्लणिय तुरंग साधनमनातिरिवल्लि महामयं । १३ (ने)णमय खण्ड दिण्डि नोरेनेत्तर कापुरमन्दु नोर्पोडेनणकमो गोगियान्तिरिद विक्रममाहवरंगभूमियो (ल) १४ कलहदोलान्त वीरचतुरंगबलगलनान्तु गोग्गि तोलवालटिन्दे ___तूदिरिये बिहरिसनेय लोहिताम्बुर्वि पलवु सिरंगल... १५ रब्द वोलोप्पिरे वीररहेगल तोलतोलगेन्दु तलतिरिव सम्भ्रम संगररंगभूलियोल १६ "णमय लोहितवारि नेणद केसरुगल कुणिवठूगल एन्दडिदेन णकमो विक्रमद १७ .."वागलोन्दु तिरुविं बिडुवागलु नूरु परिये सायिरवरियं नेवल्लि कोटियेने पोडवियोल'' १८ रु तरिसन्दोड्दिरातिय मरुवक्कमनान्तु गोग्गि यिरियल धुरदोलु परिदलेयोलु मह.. १९ .."दलव ॥ नायकतन मुम्बरिसिद नायकरिदिरागि गोग्गियोलु तागुउदुं सायकदिनेञ्चु तू.. ..."देवरदेन पलुवे ॥ मामलेदोड्दिन्य नृपसैन्यपयोधिगे बीरभूभुजं नूमडि बाडबानल २१ ..."नोपुदु कृर्मनखास्त्रमेम्बुरिय नालगेगल बिडेयहिबेवेढुं मुम्म लियायतु वैरिब २२ 'कृतास्त्रनो ॥ धुरदालरिसेनेयं निर्भरमिरियल गोरिंग वैरिवि. क्रान्तसरल भरदिन् तनुवनुच्चा २३ ... दोला सिन्धुसुतनं पोल्तं ॥ सन्ततमोड्डि निन्दरिबलालगल नान्तिरिवाल्ल बैरिविक्रान्तसलिगल तनुवनुच्चा २४ 'प्रदोल् ॥ सन्तनसूनुवेन्तु सरसैयेयोलोप्पिदनन्ते गोग्गि विक्रान्तमनासेवह सरलोहिदनाह ... Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२५९] एकसम्बिका लेख १.५ २५ ..'योल ॥ संगरदोलिरिद वीरमे शृंगारममेक्केवात गोग्गिय नम्मुत्संगदोल इट्टयदि निलिंपांगनेयर् २६ "(अ)मरावत्तियं ॥ अन्तु तलप्रहारिनायकन मग गोग्गिय नायक कटकमनान्तिरिदु तुमुल... २७ .. मसान्तरनेनिसिद श्रीवल्लभदेवनग्रपुत्र प्रतापभुजबल सान्तर मेनिसिद तैलपदेवरु बिदियम्मरसन पुत्र श्रीमतु २८ रु तम्मरसर हेसरलु (?) गोट्टनेन्दु (?) हालुगुड्डेय त्रिमोगा___ भ्यन्तरसिद्धियागि कल्लु नह कारुण्यं गेयदु को होस... २९ वर मने वडि (?) इविन कैयोलगे होद कैय मक्कि (?) ___ सहितमागि कोहरु ॥ मंगल महा श्री श्री [ यह लेख वैशाख शु० १०, बुधवार, शक १०८४, चित्रभानु संवत्सरके दिन लिखा गया था । पट्टिपोम्बुच्चके सान्तरवंशीय राजा श्रीवल्लभदेवके पुत्र तैलपदेव-द्वारा हालगड्डे ग्राम दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है। तलप्रहारि नायकके पुत्र सेनापति गोग्गिको पाण्डयरसके विरुद्ध लड़ते हुए मृत्यु हुई थी। गोग्गिके कुटुम्बियोंको यह ग्राम दान दिया गया था। लेखमे तैलपदेवको पद्मावतीलब्धवरप्रसाद यह विशेषण दिया है तथा गोग्गिको जिनपादशेखर कहा है। तैलपदेवके अधीन मेल. सान्तलिगे प्रदेशके शासक बीररसका भी उल्लेख किया गया है।। [ए० रि० मै० १९२३ पृ० ७४ ] एकसम्बि ( वेलगाँव, मैसूर ) शक 1०८७ -सन् ११६५, काड [ यह लेख शिलाहार राजा गण्डरादित्यके पुत्र विजयादित्यके समयका है। रहवशीय कत्तम (कार्तवीर्य) का सेवक मारगौड था। इसकी Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२६०वंशपरम्परा इस प्रकार दो है - मारगौड - आचगौड - होल्लिगौड - जिन्नण, कालण तथा मदुवण । इनमें जिन्नण गण्डरादित्यका सेनापति था तथा कालण विजयादित्यका। कालणकी पत्नी लन्छले थी तथा उसे तीन पुत्र थे-जिन्नण, आचण तथा रामण । कालणने एक्कसम्वुगेमें नेमिनाथबसदि बनवायी तथा उसके लिए यापनीय संघ-पुन्नागवृक्षमूलगणके महामण्डलाचार्य विजयकीतिको कुछ भूमि दान दी। विजयकीतिको गुरुपरम्परा यह थी - मुनिचन्द्र-विजयकीर्ति-कुमारकीति विद्य-विजयकीति ( प्रस्तुत ) । इस मन्दिरकी कीर्ति सुनकर राजा कार्तवीर्यने भी इसके दर्शन किये तथा फाल्गुन शु० १३ शक १०८७ को विजयकोतिको कुछ भूमि दान दी।] [ ए० रि० मै० १९१६ पृ० ४८ ] २६० मन्तगि ( धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष १० = मन् ११६५, कन्नड [ यह लेख कलचर्य गजा बिज्जणदेवके राज्यवर्ष १०, पार्थिव संवत्सरमे (?) मासके शु० ५. गरुवारके दिन लिखा गया था। पान्थिपुर ( वर्तमान हनगल) के कलिदेक्सेटि-द्वारा चतुविंशति तीर्थकरमूर्तिकी प्रतिष्ठा तथा मन्दिरके निर्माणका इसमे उल्लेख है । इसके लिए नागचन्द्र भट्टारकको कुछ दान दिया गया था। हानुंगल नगर तथा कलिदेवसेट्टिको विस्तृत प्रशंसा की है। रि० इ० ०० १९४७-४८ क्र० २०७ पृ० २५ ] अरसीवीडि ( विजापूर, मैसूर ) राज्यवर्ष ५२= सन् ११६७, कन्नड [ इस लेखमे कलचुयं राजा भुजबलमल्लके राज्यवर्ष १२, सर्वजित Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२६४] नदिहरलहल्लि आदिके लेख संवत्सरमे पुष्य शु० १४, सोमवारके दिन सिन्द कुलके बिट्टरसके पुत्र होलरस द्वारा गुणबेडंगिय बसदिके लिए कुछ करोंके उत्पन्न दान देनेका उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई ४० पृ० ४४ ] नदिहरलहल्लि (धारवाड, मैसूर ) शक १०९० = सन् ११६८, कन्नड [ इस लेखमे कलचुर्य राजा बिज्जणदेवके समय शक १०९०, सर्वधारि संवत्सर, चैत्र पूर्णिमा, सोमवारके दिन जैन साधु-साध्वियोंके आहारदानके लिए कुछ भूमि दान दी जानेका उल्लेख है।] रि० सा० ए० १९३४-३५ क्र ० ई ५८ पृ० १५२ ] हलसंगि ( विजापूर, मैसूर ) शक १०९० %3D सन् ११३८, कन्नड [ इस लेखमै शक १०९० मे चन्द्रग्रहणके समय धोरजिनालयके लिए कुछ भूमिदानका उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९३७-३८, क्र० ई० २५ पृ० २०१] हिरमन्नर ( धारवाड, मैमूर ) शक १०९१ % सन् १९७०, कन्नड [ यह लेख पुष्य शु० ५, गुरुवार, शक १०९१ विरोधि संवत्सरका है। इसमे सिन्द कुलके महामण्डलेश्वर चावुण्डरस-द्वारा हिरियमणियूरके जैनशालाके अधिष्ठायक दासबोवकी प्रार्थनापर कुछ भूमिके दानका उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९२७-२८ क्र० ई ४ पृ० २० ] Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ जैनशिलालेख-संग्रह [२६५ २६५ बिजोलिया ( राजस्थान ) संवत् १२२६ = सन् १९७०, संस्कृत-नागरी १ सिद्धम् ॥ ॐ नमो वीतरागाय । चिद्वपं सहजोदितं निरवधि ज्ञानकनिष्ठापितं नित्योन्मीलितमुल्लसत्परकलं स्यात्कारविस्फारितं । सुव्यक्तं परमाद्भुतं शिवसुखानन्दास्पदं शास्वतं नौमि स्तौमि जपामि यामि शरणं तज्ज्योतिरात्मो(स्थितं ॥:॥ नास्तं गतः कुग्रहसग्रहो न नो तीव्रतेजा... .."नैव सुदुष्टदेहोऽपूर्वो रविस्तात् स मुदे वृषो वः ॥२॥ [स] भूयाच्छीशांति: शुमविमवमंगोमवभृतां विमोर्यस्यामाति स्फुरितनखरोचि: करयुगं । विनम्राणामेषामखिलकृतिनां मंगलमयी स्थिरीकर्तुं लक्ष्मीमुपरचितरज्जु व्रजमिव ॥३॥ नासाश्वा सेन यन प्रबलबलभृता पूरित: पांचजन्यः ३ ."वरदलमलि(नीपाद)पद्माग्रदेशः। हस्तांगुष्टेन शांग धनुरतुलबलं कृष्टमारोप्य विष्णोरंगुल्यां दोलितोयं हलभृदवनितं तस्य नमस्तनोमि ॥४॥ प्रांशुप्राकारकांतात्रिदशपरिवृढन्यूहरुद्धावकाशा वाचाला केतुकोटि(क्व)णदनणुमणीकिंकिणीभिः समंतात् । यस्य व्याख्यानभूमामहह किमिदमित्याकुलाः कौतुकेन प्रेक्षते प्राणमाज: ४ ( स भुवि ) विजयतां तीर्थकृत् पार्श्वनाथः ॥ ५॥ वर्धतां वर्धमानस्य वर्धमानमहोदयः । वर्धतां वर्धमानस्य वर्धमान( महोदयः ॥ ६॥ सारद सारदा स्तौमि सारदानविमारदां । भारती भारती मक्तभुक्तिमुक्तिविशारदां ॥७॥ निःप्रत्यूहमुपास्महे जिनपतीनन्यानपि स्वामिनः श्रीनाभेयपुरःसरान् परकृपापीयूषपाथोनिधीन् । ये ज्योतिःपरमागमाज Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२६५ ] बिजोलियाका लेख ५ नतया मुक्कात्मतामा ( श्रिताः श्रीमन्मुक्ति नितं विनोस्तनतटे हारश्रियं बिभ्रति ॥ ८ ॥ मग्यानां हृदयामिरामवसतिः सद्धर्म(मर्म) स्थिति: कर्मोन्मूलनसंगतिः शुमततिः निर्बाध (बो) घोदुष्टति: । जीवानामुपकारकारणरनिः श्रेयः श्रियां संसृतिः देयान्मे भवसंभृतिः शिव (म ) ति जैने चतुर्विंशतिः ॥ ९ ॥ श्रीचाहमान क्षितिराजवंशः पौर्वोप्यपूर्वी न जडावनद्धः । मिनो न चां ६ ( गो न च ) रंध्रयुक्तो नो निःफलः सारयुतो नतो नो ॥१०॥ लावण्यनिर्मल महाज्वलितांगयष्टिरच्छोच्छलच्छुचिपयः परिधानधा( श्री । उत्तुं ) गपर्वतपयोधरमारभुग्ना शाकंभराजनि जनीव ततोपि विष्णोः ॥ ११ ॥ विप्रः श्रीवत्स गोत्रेभूदहिच्छत्रपुरे पुरा । सामंतोनात सामन्त पूर्णतल्लो नृपस्ततः ||१२|| तस्माच्छ्रीजयराजविग्रहनृपौ श्रीचन्द्रगोपेन्द्रकौ तस्माद्दु (लं) सगूनकी शशि७ नृपो गूत्राकसचंदनौ । श्रीमद्बप्पयराजविंध्यनृपती श्रीसिंह विग्रहो | श्रीमदूदुलं मदुवाक्पतिनृपाः श्रीवीर्य रामोऽनुजः ॥ १३ ॥ ( चामुंडो ) वनिपोऽतिश्च राणकवर. श्रीसिंघटो दूसलस्तभ्राताथ ततोपि वीसलनृपः श्रीराजदेवीप्रियः । पृथ्वीराजनृपोथ तत्तनुमत्रो रासल्लदेवीविभुस्तत्पुत्रो जयदेव इत्यवनिपः सोमल्लदेवीपतिः ॥ १४ ॥ हत्वा चच्चिगसिंघला भिधयसोराजादिवीरत्रयं । १८९ ८ क्षिप्रं क्रूरकृतांत वक्त्रकुहरे श्रीमार्गदुर्गान्वितं । श्रीमत्सो (क) णदण्डनायकवरः संग्रामरंगांगणे जीवन्नेव नियंत्रितः करभके येन (क्षि) सात् ॥ १५॥ अण्र्णोराजोस्य सूनुर्धृतहृदयहरिः सत्ववांशिष्टसीमो गांमीयौदार्यवर्यः समभवद (चि ) रालब्धमध्यो न दीनः । तच्चित्रं जं न जाड्यस्थितिरवृत महापं कहेतुर्न मध्या न श्रीमुक्तो न दोषाकरर चितरतिनं द्विजिह्वाधिसेव्यः ॥ १६ ॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ २६५ ९ यद्राज्यं कुशवारणं प्रतिकृतं राजांकुशेन स्वयं येनात्रैव तु चित्रमेतत् पुनर्मन्यामहं तं प्रति । तच्चित्रं प्रतिभासते सुकृतिना निर्वाणनारायणन्यक्काराचरणेन मंगकरणं श्रीदेवराजं प्रति ॥ १७ ॥ कुत्रलयविकासकर्ता विग्रहराजोजनि (स्तु) नो चित्रं । ततनयस्तचित्रं य (न) जडक्षीणसकलंकः || १८ || मादानत्वं चक्रे मादानपत्रे: परस्य मादानः । यस्य दधत्करवालः करतलाकलितः १० करतलाकलितः ॥ १९ ॥ कृतांतपथमज्जोभूत् सज्जनो सज्जनो भुवः । वैकुतं कुंतपालोग ( द्यत ) ने कुं ( त ) पालकः ॥ २० ॥ जाबालिपुरं ज्वाला (पु) रं कृता पल्लिकापि पल्लीव । नद्वलतुल्यं रोषान्नदृल येन शोर्येण ॥२१॥ प्रतोल्यांच वलभ्यां च येन विश्रामितं यशः । दिल्लिकाग्रहणश्रांतमाशिकालामलंमितं ॥२२॥ तज्ज्येष्ठभ्रातृपुत्रोऽभून पृथ्वीराजः पृथूपमः । तस्मादजित मांगी हमपर्वतदानतः ॥ २३ ॥ अतिधर्मरतेना ११ पि पार्श्वनाथस्वयंभुवे । दत्त मोराशरीग्रामं भुक्तिमुक्तिश्च हेतुना ||२४|| स्वर्णादिदान निव है? शभिर्महद्भिस्तोलानरैर्नगरदानचयैश्च विप्राः । येनाचिताश्चतुरभूपतिवस्तुपाल माक्रभ्य चामनसिद्धिकरी गृहीतः ||२५|| सोमेश्वराल्लब्ध राज्यस्ततः सोमेस्वरो नृपः । सोमेश्वरनमो यस्माजनः सोमेस्वरोभचत् ॥२६॥ प्रतापलंकेस्वर इत्यमिख्यां यः प्राप्तवान् प्रौढपृथुप्रतापः । यस्याभिमुख्ये वरवैरिमुख्याः केचिन्मृता केचिदभिद्रुताश्च ॥ २७ ॥ येन श्र १९० १२ पार्श्वनाथाय रेवातीरे स्वयंभुवे । सासने रेवणाग्रामं दत्तं स्वर्गाय कांक्षया ॥ २८ ॥ छ ॥ अथ कारापकवंशानुक्रमः ॥ तीर्थे श्रीनेमिनाथस्य राज्ये नारायणस्य च । अंमधिमथनादेव बकि भिर्बलशालिभिः ॥ २९ ॥ निर्गतः प्रवरो वंशा देववृंदैः समाश्रितः । श्रीमालपत्तने स्थाने स्थापितः शतमन्युना ॥ ३० ॥ श्रीमालशैकप्र Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२१५] बिजोलियाका लेख १९१ वरावचूलः पूर्वोचरसत्वगुरुः सुवृतः। प्राग्वाटवंशोस्ति बभूव तस्मिन् मुकोपमो वैश्रवणामिधानः ॥३१॥ तडागपत्तने येन कारितं १३ जिनमंदिरं । (ती) भ्रांस्वा यशस्तस्वमेकत्र स्थिरतां गतं ॥३२॥ योचोकर चंदसुचिप्रमाणि व्याघ्ररकादी जिनमंदिराणि । कोतिहमारामसमृद्धिहेतोविमांति कंदा इव यान्यमंदाः ॥३३॥ कल्लोलमांसलितकीतिसुधासमुद्रः सदबुद्धिबंधुरवधूधरणे ध(रेशः) । पाकारकरणप्रगुणांतरात्मा श्रीचच्चुलस्वतनयः.." पदभूत् ॥३४॥ शुभंकरस्तस्य सुतोजनिष्ट शिष्टमंहिष्ठः परिकार्यकार्तिः। श्रीजासटोसूत तदंगजन्मा यदंगजन्मा खलु पुण्यराशिः ॥३५॥ मंदिरं वर्ध१४ मानस्य श्रीनाराणकसंस्थितं । माति यत्कारितं स्वीयपुण्य स्कंधमिवोज्वलं ॥३६॥ चत्वारश्चतुराचाराः पुत्राः पात्रं शुभश्रियः । अमुष्यामुष्यधर्माणोर्वभूवुर्भार्ययोद्धयोः ॥३७॥ एकस्यां द्वावजायतां श्रीमदाम्बटपनटो। अपरस्यां (स्तो जानो श्रीमल्ल)क्ष्मदसलो ॥३८॥ पाकाणां नरवरे वीरवेश्मकारणपाटवं । प्रकटितं स्त्रीय वित्तेन धातुनेव महीतलं ॥३८॥ पुत्रौ पवित्री गुणरत्नपात्रौ विशुद्धगात्री ममशीलसत्यौ। बभूवनुर्लक्ष्मटकस्य जैत्री मुनींदुरामंदभिधी प्रशस्तौ ॥४०॥ १५ षटग्वंडागमबद्ध सौहृदमराः षड्जीवरक्षेश्वराः षड्भेदेप्रियवश्यता परिकराः षट्कर्मक्कृप्तादराः । षट्खंडावनिकीर्तिपालनपराः षाड्गुण्यचिंताकराः षडदृष्टयंबुजमास्कराः समभवः षट देशलस्यागजाः ॥४१॥ श्रेष्टी दुचकनाथकः प्रथमकः श्रीमोसली वीडदेवस्पर्श इतोपि सीयकवरः श्रीराहको नामतः एते तु क्रमतो जिनक्रमयुगांभाजैक गोपमा मान्या राजशतैर्वदान्यमतयों राजति जंबूत्मवाः ।।४२॥ हम्यं श्रीवर्धमानस्याजयमेरोविभूषणं कारितं यैर्महामार्गवि. Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख - संग्रह [ २६५ १६ मानमिव नाकिनां ॥ ४३ ॥ तेषामतः श्रियः पात्रं ( सीय) कः श्रेष्टिभूषणं । मंडलकरमहादुर्गं भूषयामास भूतिना ॥ ४४ ॥ यो न्यायांकुरसेचनैकजलदः कोर्तेर्निधानं परं सौजन्यांबुजिनो विकासन रविः पापाद्विभेदे पविः । कारुण्यामृतवारिधेर्विलसने राकाशशांकोपमो नित्यं साधुजनोपकारकरणव्यापारबद्वादरः ॥४५॥ येनाकारि जितारिनेमिभवनं देवाद्विशृंगोदूधुरं चचत्कांचनचारुदंड कलश श्रेणीप्रमाभास्वरं । खेलत्-खेश्वर सुन्दरीश्रमभरं भंजद ध्वजोगीजनैर्धत्तेष्टापदशैलश्रृंग जिन भृत प्रोद्दाम सद्म श्रियं ॥ ४६ ॥ श्रीसीयकस्य मायें द्वे १९२ सुतद्वयं ॥४७॥ १७ सौनागश्रीमामटामिधे । श्राधायास्तु त्रयः पुत्राः द्वितीयायाः पंचाचारपरायणात्ममतयः पंचांगमंत्रोज्वलाः पंचज्ञान विचारणासुचतुराः पंचेन्द्रियार्थोजयाः । श्रीमत्पचगुरुप्रणाममनसः पंचाणुशुद्धवता: पंचैते तनया गृही ( तवि ) नया: श्रीसीकश्रेष्ठिनः ॥ ४८|| आद्यः श्रीनागदेवोऽभूल्लोला कश्चाज्यलस्तथा । महीधरो देवधरो द्वावेतावन्यमातृजां ।। ४९ ।। उज्वलस्यांगजन्मानौ श्रीमदूदुर्लमलक्ष्मणौ । अभूतांभुवनोद्भासियो दुर्लमलक्ष्मणौ ||२०|| गांभीर्यं जलधे. स्थिरत्वमचला तेज१८ स्वितां भास्वतः सौम्यं चंद्रमसः शुचित्वममरस्रोतस्विनीतः परं । एकैकं परिगृह्य विश्वविदितो यो वेधसा सादरं मन्ये बीजकृते कृतः सुकृतिना सल्लोलक श्रेष्टिनः ॥ ५७ ॥ अथागमन्मं (दिर मे ) कीर्त : श्रीवि (ध्यव ) लीं धनधान्यवल्लीं । तत्रालु ( लोकं ह्यमितल्पसुप्तः ) कचिन्नरेशं पुरतः स्थितं सः ॥ ५२ ॥ उवाच कस्त्वं किमिहाभ्युपेत. कुतः स तं प्राह फणीश्वरोहं । पातालमूलात्तव देशनाय (श्री) पार्श्वनाथः स्वयमेध्यतीह ॥ ५३ ॥ प्रातस्तेन समुत्थाय न किंचन विवेचितं । स्वप्नस्यांत मनोभावा यतो वातादिदूषिताः ॥ ५४ ॥ लोला Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२३५] बिजोलियाका लेख १९॥ १९ क(स्त्र) प्रियास्तिस्रो बभूवर्मनसः प्रियाः । कलिता कमलनीच लक्ष्मीलक्ष्मीसनामयः ॥५५॥ ततः स मकां कलितां बमाणे गत्वा प्रियां तस्य निशि प्रसुप्तां । शृणुष्व मद्रे धरणोहमेहि श्री (पार्श्वनाथं खलु द)शयामि ॥५६॥ तया स चोको... ( यत्त्वं न हि ) सत्यमेतत् । श्रीपार्श्वनाथस्य समुद्धति स प्रासादमा च करिष्यतीह ॥५७॥ गत्वा पुनलोलिकमेवमूचे भो भक्त शक्तानुगतातिरिक्त । देवे धनं धर्मविधी जिनोष्टौ श्रीरेवतीतारमिहाप पाश्वः ॥५०॥ समुदरेनं कुरु धर्मकार्य स्वं कारय श्रोजिनचे२० त्यगेहं। येनाप्स्यसि श्रीकुलकर्तिपुत्रपौनोरुसंतान-सुखादिवृद्धिं ॥५५॥ त(देतही) माख्यं वनमिह निवासी जिनपतेस्त एते प्रावाणः शठकमठमुक्ता गगनतः। सदारा(मः) (शश्वत्स) दुपचयतः कुंटसरितोस्तदत्रैतत् स्थानं...(नि)गमं प्रायपरमं ॥६॥ अनास्त्युत्तममुत्तमाद्रिसिखरं साधिष्टमंचोच्छितं तीर्थ श्रीवरलाइकात्र परमं देवोतिमुक्ताभिधः । सत्यश्चात्र घटेश्वरः सुरनतो देवः कुमारेश्वरः सौभाग्येश्वरदक्षिणेश्वरसरो माकड रिच्छेश्वरी ॥३॥ सत्योंबरेश्वरो देवो ब्रझमहोश्वरावपि कुटि२१ लेशः कर्करेशो यत्रास्ति कपिलेश्वरः ॥६२॥ महानाल-महा कालिम)रथेश्वरसंशकाः श्रीत्रिपुष्करतां प्राप्ता(:संति) त्रिभुवनाचिंताः ॥६३॥ कीर्तिनाथश्च (केदारः). "मिस्वामिनः। संगमेशः पुटीशश्व मुखेश्वरवटेश्वराः ॥६॥ नित्यप्रमोदितो देवो सिद्धेश्वरगयेश्वराः । (गंगाभेदश्र) सोमेशः गंगानात्रिपुरांतकाः ॥६५॥ संस्नात्री कोटिलिंगानां यत्रास्ति कुटिला नदी। स्वर्णजालेश्वरी देवः समं कपिलधारया ॥६६॥ नाल्पमृत्युन वा रोगा न दुर्मिक्षमवर्षणं । यत्र देवप्रमावेन कलि२२ पंकप्रवर्षणं ॥६७॥ षण्मासे जायते यत्र शिवलिंग स्वयंभुवं । Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ २६५ ae aerat at का श्लाघा क्रियते मया ॥६८॥ इश्येवं ... कृत्वावतारक्रियां | कर्ता पार्श्वजिनेश्वरोत्र कृपया सोधाद्य वासः पतेः शक्तेर्वै क्रियिकः श्रियस्त्रिभुवन प्राणिप्रबोधं प्रभुः ॥ ६९ ॥ इत्याकर्ण्य वचो विभाग्य मनसा तस्योरगस्वामिनः स प्रातः प्रतिबुध्य पार्श्वमभितः क्षोणी विदार्य क्षणात् । तावत्तत्र विभुं ददर्श सहसा निःप्राकृताकारिण कुंडाभ्यर्णत एव धाम दधतं स्वायंभुवं श्रीश्रितं ॥७०॥ २३ नासीद्यत्र जिनेन्द्रपादनसनं नो धर्मकर्मार्जिनं ( न स्नानं ) न विलेपनं न च तपो ध्यानं न दानार्चनं । नो वा सम्मुनिदर्शनं (न) -- ॥७१॥ तत्कुंडमध्यादथ निर्जगाम श्रीसीयकस्यागमनेन पद्मा । श्रीक्षेत्रपालस्तदथांबिका च (श्रीवा) किनी श्रीधरणोरगेंद्रः ॥७२॥ यदावतारमकार्षीदत्र पार्श्वजिनेश्वरः । तदा नागहदे यक्ष गिरिस्तंबः पपात सः ॥७३॥ यक्षोपि दत्तवान् स्वप्नं लक्ष्मणब्रह्मचारिणः । तत्राहमपि यास्यामि यत्र पाश्र्वविभुम ॥७४॥ रेवतीकुण्ड २४ नीरेण या नारी स्नानमाचरेत् । सा पुत्रं भर्तृसौभाग्यं (लक्ष्मी च) लमते स्थिरं ॥ ७५ ॥ ब्राह्मणः क्षत्रियो वापि बैश्यो वा शूद्र एव वा । रेवतीस्नानकर्ता यः स प्राप्नोत्युत्तमां गतिं ॥ ७६ ॥ धनं धान्यं धरां धाम धेयं धौरेयतां धियं । वराधिपतिसम्मानं लक्ष्मी चाप्नोति पुष्कळां ॥७७॥ तीर्थाश्चर्यमिदं जनेन विदितं यद्गीयते सांप्रतं कुष्ठप्रेत पिशाच कुज्वररुजाहीनांग गंडापहं, संन्यासं च चकार निर्गतभयं धूकसृगालीद्वयं काली नाकमवाय देवकलया किं किं न संपद्यते ॥७८॥ इाध्यं जन्म कृतं धनं च सफलं नीता प्रसिद्धिं मतिः । २५ सद्धर्मोपि च दर्शितस्तनुरुहस्वप्नोर्पितः सत्यतां मरदृष्टिदूषितमनाः सदृष्टिमार्गे कृतो जै (ने) ना श्रीलोलक श्रेष्ठिनः ॥ ७९ ॥ १९४ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२६५ ] बिजोलियाका लेख किं मेरो: श्रृंगमेतत् किमुत हिमगिरेः कूटकोटिप्रकांड किंवा कैलासकूटं किमथ सुरपतेः स्वर्विमानं विमानं । इत्थं यचस्यते स्म प्रतिदिन ममरैर्मर्त्य राजोत्करैव मन्ये श्रीलोलकस्य त्रिभुवनभरणादुच्छ्रितं कीर्तिपुंजं ||८०|| पवनधुतपताकापाणिनो भव्यमुख्यां पटुपदनिनादादाह्वयत्येष जैनः । कलिकलुषमथो दूरमुत्सारयेद्वा त्रिभुवनाव २६ (भुला) मान्नुत्यतोवालयोयं ॥ ८१ ॥ ( काश्चित् स्था) नकमाघरं ति दधते काचिच्च गीतोत्सवं काश्चिद् बिभ्रति तालकं सुललितं कुर्वति नृत्यं चकाः । काश्विद् वाद्यमुपानयंति निभृतं वीणास्वरं काश्वन यत्रोच्चैर्वकिंकिणीयुवतयः केषां मुद्दे नाभवन् ॥ ८२ ॥ यः सद्वृत्तयुतः सुदीप्तिककितवासादिदोषोज्झितचिंताख्यातपदार्थदान चतुरश्चिंतामणेः सोदरः । सोभूच्छ्राजिनचंद्रसूरि सुगुरुस्वत्पादपंकेरुहे यो भृंगायत एव छोलकवरस्तीर्थं चकारैष सः ॥८३॥ रेवत्याः सरितस्तटे तरुवरा यत्राह्वयंते भृशं २७ शाखा बाहुळतोत्करैर्न ( रसु ) रानू पुंस्कोकिलानां रुतैः । मत्पुष्पोचयपत्र सत्फलचयैरानि (र्मलें ) वरिमिय मोभ्यर्चयतामिषेकयत वा श्रीपार्श्वनाथं विभुं ॥८४॥ यावत्पुष्करतीर्थ सैकतकुलं यावच्च गंगाजलं यावत्तारकचंद्रमास्करकरा यावञ्च दिक्कुजराः । यावच्छी जिन चंद्रशासनमदं यावन्म ( हैं ) द्वं पदं तावतिष्ठतु तत् प्रशस्तिसहितं जैनं स्थिरं मंदिरं ॥ ८५ ॥ पूर्वतो रेवतीसिंधुदेवस्यापि पुरं तथा । दक्षिणस्यां मठस्थानमुदीच्यां कुण्डमुत्तमं ॥ ८६ ॥ दक्षिणोत्तरतो वाटी नानावृक्षैरलंकृता । कारित २८ लोलिकनैतत् सप्तायतनसयुतं ॥ ८७ ॥ श्रीमन्मा (थु) रसंघेभूद् गुणमद्रो महामुनिः । कृता प्रशस्तिरेषा च कवि (कं) ठ (वि) भूषणा ||८|| नैगमान्वय कायस्थछोतमस्य च सूनुना । लिखिता केशवेनेदं मुक्ताफलमिवोज्वला ॥ ८६ ॥ हर सिगसूत्रधाराय १९५ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ २६५ तत्पुत्रो पाल्हणो भुवि । तदंगजेमाह डेनापि निर्मापितं जिनमंदिरं ॥६०॥ नानिगः पुत्रगोविंदपाल्हणसुतदेल्हणौ । उत्कीर्णा प्रशनिरेषा च कीर्तिस्तम्भं प्रतिष्ठितं ॥ ६१ ॥ प्रसिद्धिमगमद्देवः कालं विक्रमभास्वत: षड्विंशे द्वादशशते फाल्गुने कृष्णपक्ष के ॥ ६२ ॥ २६ ( तृतीयायां तिथों वारे गुरुस्वारे च हस्तके | धृतिनामनि योगे च करणे तैतिले तथा ॥ ६३ ॥ (सं) वत् १२२६ फाल्गुन वदि ३ कांवारेवणाग्रामयोरं तराले गुहिलपुत्र रा० दाधरमहं वणसीहाभ्यां दस क्षेत्र ढोहली १ खदुंबराप्रामवास्तव्य गौडसोनिगवासुदेवाभ्यां दत्त ढोहलिका १ आंतरीप्रतिगणके रायताप्रामीय महंतमडिपोप लिभ्यां दत्त क्षेत्र डोहलिका लघुवीझोलिग्राम संगुहिलपुत्र राज्याहरूमहंतममाहवा- १९६ ३० (भ्यां द) त क्षे (य) डोहलिका १ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिस्तादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमी तस्य तस्य तदा फलं ॥ छ ॥ [ इस लेखका निर्देश जै० शि० सं० के तृतीय भाग मे क्र० ३७४ पर हुआ है किन्तु उस समय इसे श्वेताम्बर लेख समझकर मूल पाठ नही दिया गया था । इसमे पहले २८ श्लोकोंमें साभरके चौहान राजाओकी वंशावली चाहुमान से सोमेश्वर तक दो है । इसमे कुल ३१ राजाओंके नाम है । इनमे अन्तिम दो राजाओंने इस स्थानके पार्श्वनाथ मन्दिरको दो गाँव दान दिये थे - पृथ्वीराज ( द्वितीय ) ने मोराझरी गाँव और सोमेश्वरने रेवणा गाँव दिया था । तदनन्तर इस मन्दिर के निर्माताकी वंशावली विस्तार से ५१ वें श्लोक तक दी है जो इस प्रकार है प्राग्वाटवंशीय वैश्रवण ( इसने तडागपत्तन, व्याघ्रेरक आदि स्थानोंमे मन्दिर बनवाये ) - उसका पुत्र चच्चुल पुत्र जासट ( इसने नाराणक स्थानमे वर्धमान दो स्त्रियोंसे दो दो पुत्र हुए - आम्बट, पद्मट, - उसका पुत्र शुभंकर - उसका मन्दिर बनवाया ) - उसको लक्ष्मट तथा देसल ( इनने Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२६६] इन्दोर म्युजियमका लेख १९. नरवर नगरमें वीरजिनमन्दिर बनवाया) - लक्ष्मटके पुत्र मुनीन्दु तथा रामेन्दु- देसलके पुत्र दुद्यक, मोसल, वीगडि, देवस्पर्श, सीयक तथा राहकसीयकने मण्डलकर दुर्ग विभूषित किया और नेमिनाथ मन्दिर बनवाया -- उसकी स्त्रियां नागश्री तथा मामटा - नागश्रीके पुत्र नागदेव, लोलक तथा उज्वल - मामटाके पुत्र महीधर तथा देवधर - उज्वलके दो पुत्र दुर्लभ तथा लक्ष्मण । इनमें सीयकके पुत्र लोलकने यह मन्दिर बनवाया । मन्दिरके निर्माणका वर्णन ८७वें श्लोक तक किया है। कहा है कि लोलक तथा उसकी पत्नियां ललिता, कमलश्री और लक्ष्मी विध्यवल्ली नगरमें थे उस समय घरणेन्द्र ने स्वप्नमे लोलाक श्रेष्ठीको इस मन्दिरके निर्माणका आदेश दिया। तदनुसार जमीन खोदते हुए एक पार्श्वनायमूति मिली और उसके लिए लोलकने यह मन्दिर बनवाया। इस स्थानको वरलाइका तीर्थ कहकर यहाँके कई शिवमन्दिरोंका माहात्म्य भी इस लेखमें दिया है। यहाँके रेवतीकुण्डमे स्नान करनेसे कोढ़ आदि रोग दूर होनेका भी वर्णन है। लोलाकके गुरु जिनचन्द्रसूरि थे। इस लेखकी रचना माथुर संघके महामुनि गुणभद्रने की। इसे केशवने शिलापर लिखा और गोविन्द तथा देल्हणने उत्कीर्ण किया । यह कार्य फाल्गुन कृ० ३ संवत् १२२६ को सम्पन्न हुआ । अन्तमे इस मन्दिरको दानरूपमे प्राप्त कुछ जमीनोंका विवरण दिया है। ] (ए० ई० २६ पृ० १०२) इन्दोर म्युजियम ( मध्यप्रदेश ) संवत् १२२७ = सन् १९७१, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमे शंख चिह्न है जिससे प्रतीत होता है कि यह नेमिनाथकी मूर्तिका पादपीठ होगा। इसमे देशीगणके गुणचन्द्र, श्रीकीर्ति, रत्नचन्द्र तथा भावचन्द्रका उल्लेख है और गुर्जर जातिके वोन नामक व्यक्तिका भी उल्लेख है । समय संवत् १२२ (७)। ] [रि० ६० ए० ० ( १९५०-५१ ) १६१ ] Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह २६७ नदिहरलहल्लि ( धारवाड, मैसूर ) शक १०९(५) = सन् १९७३, कन्नड [ यह लेख कलचुर्य राजा रायमुरारि सोविदेवके समय श्रावण शु० (?) गुरुवार, शक १०९ (५), नन्दन संवत्सरका है। इसमें उल्लेख है कि दण्डनायक महेश्वरदेवके अधीन कर संग्रह करनेवाले अधिकारियोंने गोट्टगडि स्थित नागगावुण्डकी बसदिके लिए कुछ करोका उत्पन्न दान दिया। उस समय वनवासि प्रदेशपर कासिमय्य दण्डनायकका शासन चल रहा था। [रि० सा० ए० १९३४-३५ क्र० ई० ५९ पृ० १५२ ] २६८ बोगाडि ( मांड्या, मैसूर ) शक १०९५ = सन् १९७३, कन्नड १ श्रीमत् पार्थिवकुलचंद्र यदुवंशवाधिवर्धनचंद्र मीमभुजं ललना जनकामामिरामन् बल्लालं ॥ दिगिमंगलु मदविहलंगल मलुकलु कूर्मनिन्तोर्मेयु मोगमीयं भुजगाधिपं बहुमुखं सारल्कु यारसंगमंन्दुगुणोदग्रसमग्रलक्षणलसहोर्दण्डदोल संतोषं मिगे भूकामिनि यिदल आपदुलदि बल्लालभूपालन ॥ आ नृपनगण्य पुण्यं मानसरूपादुदैबिनं भुवनजनं मानोगतकनकाचलन् मानतरक्षेकदक्षरस्ननिधानं ॥ महांगमन्त्रकमनीयालंबितसुरराजज्यचरणाक्यन् एनलु सचितकीर्तिपराक्रमप्रभावनन् एनिसि २ माचिराज नेगल्दं ॥ तनुर्वि कामन(न)र्थिगीव गुणदि कल्पाद्रियं हेमाचलमं चारुचरित्रदिदुदधियं गांभीर्यदि स्थैर्यदि कनकाद्रीन्द्र Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२६८] ___ बोगाडिका लेख १९९ मनिंद्रनं विभवादिं गेन्दिर्दना माचिराजनन् भार्मणि ( सलापर ई ) विश्वंभरामागदोलु ॥ आ विभु माधिराजन मावं बल्लय्यन् श्रयन् ई धरेगेल्लं काव गुणदिन् श्रादन् अदाव गुणगणदिन पातन् एणेयप्पनं ॥ भधिगमसम्यग्दृष्टियन अधिगतसकलागमार्थनं कविबुधमागधदीनजैनजनतानिधियं पोगललुके बल्लर आर बल्लय्यनं विरिदवन् ईयलु बल्लं सरणदडे करुणदिंदे कायलु बल्लं पुरुषांतरमं बल्ल परिकिपडतल्ते.. ३ ल नादं बल्लं ॥ परकान्तालकजालकक्के पर.."दाराहरलक्के... पानतरोत्तुंगस्तनद्वन्द्वसुंदरसंगक्के परांगनाभुजलतासंश्लेषणकोडिसं निरुत श्रा'बलदेव'"निदं परिहतपरदारः दीनांधनाथ.." विदितविशदकीर्तिविश्रुतोदारमूर्तिः स जयतु बलदेवः श्रीजिनेन्द्रांघ्रिसेवः ॥ अन्ता बल्लालमहीकांतन वरमन्त्रिवल्लमं बल्लय्यं सन्ततजिनपूजनेगागन्तुकर्म भो(ग)वदिय बसदिगे बिह ॥ नीचेकी ओर ४ होरवारु ओलवारु मग्गदेरे कालबोवनहल्लिय""यिनितर मत्तंतु मनेसुंक नेरे मलवत्तियसुंक विनितं.॥ वनपालम सुंकवनितं मनुमार्ग मदनमूर्ति विभु बल्लय्यं मनमोसदु भोगवसदियोलु जिनपूजेगे मक्तिदिदा... ५ दिदिन्तिदनेरदे काव पुरुषंगायुं जयश्री.दं कायदे काव्य पापिगे वारणासियोल एकोटिमुनीन्द्ररं कविलेयं वेदाध्यरं कोन्दुदोंदयशं पोर्दुगुमेंदु सारिदपुदीशैलाक्षरं धात्रियोल ॥ विषं न विषमित्याहुः देव६ स्वं विषमुच्यते विषमेकाकिनं हन्ति देवस्वं पुत्रपौत्रकं ॥ स्वदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुंधराः षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते क्रिमिः ॥ मंगल Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२६९७ सामान्योयं धर्मसेतुर्नृपाणां काले-काले पालनीमो भवद्भिः सर्वानेतान् माविनः पार्थिवन्द्रान् भूयो भूयो याचते रामचंद्रः ।। स्वस्ति श्रीमन्महामंडलेश्वरं त्रिभुवनमल वीरगंग बल्लालदेवरु दोरसमुद्रदलु सुखसंकथाविनोददि राज्यं गेयुत्त विरलु तत्पादपभोपजीवि महाप्रधान सर्वाधिकारि हेगडे बल्लय्य शककालं सासिरद् तोमत्तेदनेय विजय संवत्सरद कार्तिक शुद्ध पंचमि सोमवारदंदु कालबोवनहल्लिसहितवागि बोगवदियलुल समस्तसुंकवं श्रीकरणजिनालयद श्रीपाश्वदेवर भष्टविधार्चनेगेंदु श्रीमदकलंकदेव(सिंहा-) ८ हासनस्थितरप्प श्रीपनप्रमस्वामिगलगे धारापूर्वकं माडि कोहरु ( इस लेखमे होयसल राजा बल्लालके महाप्रधान हेग्गडे बल्लय्य-द्वारा भोगवदिके पार्श्वजिनालयके लिए अकलंकदेवकी परम्पराके पद्मप्रभ स्वामीको कुछ करोंका उत्पन्न दान दिये जानेका निर्देश है। यह दान कार्तिक शु० ५, शक १०९५, विजयसंवत्सर,के दिन दिया गया था। हेग्गडे बल्लय्य महाप्रधान माचिराजका माव ( ससुर या चाचा था ) [ए० रि० मै० १९४० पृ० १५० ] २६६ सोगि ( जि० बेल्लारी, मैसूर ) १२वीं सदी, कन्नड (वीरप्पके घरके श्रागे एक शिलाखण्डपर) [ इस लेखमे होयसल राजा विष्णुवर्धन वीरबल्लाल-द्वारा कातिक कृ० ५, गुरुवारको किसी जैन मंस्थाको भूमिदान दिये जानेका निर्देश है। [ इ० म० बेल्लारी २३७ ] Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ -२७१] कलसापुरका लेख २७० चिक्कहन्दिगोल ( धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष ८ = सन् ११७५, काट [ इस लेखमे कलचुर्य राजा सोविदेवके राज्यवर्ष 'जयसंवत्सरमें शंखजिनालयको दिये गये दानका वर्णन है। इस लेखकी रचना 'अनुपमकविकालिदास' हित्तिन सेनबोव-द्वारा की गयी थी।] [रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई० १५० पृ० १२] २७१ कलसापुर ( कडूर, मैसूर ) शक १०६८ = सन् ११७६, काड १ (घिस गयी है) २ कैवल्यबोधेन्दिराधामं षोडशतत्व(तीर्थ)कर्तृ विमलज्ञानाप्तियं सत्सुखारामं माल के विनेयसन्ततिगे नित्यं शान्ति३ तीथेश्वरं ॥ (१) श्री स्वस्ति होयिसलवंशाय प्रतापार्जितकीर्तये । ___ यदुवंशनृपान""भूभृ. ४ ते ॥ (२) तदन्वयावतारमेन्तेन्दोडे ॥ सरसीजोदरनामिपद्मजनज तस्पुत्रनन्तत्रियनिरुहोभूनबु५ धं पुरूरवने तज्जं तत्तनूजायुवायुरपत्यं नहुषं ययातिमहिपं तरसम्म नरेश्वरजा६ तं । यदु तस्कुलं सलनृपं लोकोत्तम पुष्टिदं । (३) यादवरोले होयिसलवेसरादुदु सलनिन्दे हुलि• य सेलेयुण्डिगेयादुदु चिहूं वरमन्तादुदु सले शशकपुरद वासन्तिकेयिं ॥ (४) सलनृपनि ब Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ जैन शिलालेख संग्रह ८ लियिं यदुकुलदोल पलम्बरोगेदर् विरोधिकुलिशं जनियिसिद ने सेयेवि ह नयादित्यं ॥ ( ५ ) वनमार्गानुगतं जगत्प्रणुतमित्र मण्डलाग्रप्रतापनयुक्तं रिपुभूपसम्तम [ २०१अवरन्वयदोल । बलवद् ५० सभेदं सज्जनं नसन्तोषकरं स्त्रबन्धुजनचक्राह्लादर्क पुट्टिद विनयादित्यनृपाल ११ कं यदुकुलोगोदयादीन्द्रदि । ( ६ ) विनयादित्यनृपालन कुलवधुवेनिपि सिरियोल १२ वाणियोलं तनगे केलेयोलन्दु बुधजनवेने केलियब्बरसि सरसिजानेनेयेसेदल ॥ ( ७ ) सति केलियब्बर सिगमा १३ विनयादित्यनृपत्तिगं पुहिदमुद्धतवैरिदर्पदलनोद्यतमयनयशौर्य शालियेरेयंगनृपं ॥ (c) १४ विनयादित्यावनिपालन सुतनेरेयंगं सगविंत धर्मदीक्षागुरुविनतमहीभृत्समू भूनिरव्ये १५ हैकरक्षावनधिप्रियं समस्ताश्रितनटनटीसिन्धमू कलनिव निजतसत्यवाणिमुखमणि मा १६ पुरनिर्मलाबोधसुतं हिमरुचियन्ते सेवादरवियं लतियं सरसिजमं मनोरम कुसुमंगलं कद १७ नयं मदनं बिदियागि ताने तोय्दमृत दिनेयदे निर्मिसिदनेनदे केलदेयं भूरमणन कान्तेयं पेरत १८ नेनदिर् एचदेविराणियं ॥ ( ९ ) अन्तेरेयंगमहीशन कान्तेगे जनियिसिदरे सेव बल्लालमहीकान्तं विष्णुमहिपननन्तगुणं १९ नृपलकामनुदयादित्यं । (१०) अवरोधदुमनागियं बुधनिकायस्तूयमानि श्री विशेषोन्नतियिन्दमु - २० तमनेनिष्यं सच्चरिताद्रि वगगाजलधौत निर्मलकुल हप्ता रिदर्पापहं भुव विमवंश - Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२७.] कलसापुरका लेख २०१ २१ श्रीविष्णुभूपालकं ॥ (११) जनियिसिदं विष्णुमहीशन ल... विदनुपमं नरसिंहावनिप नतरिपुभूपाल-निकायलला२२ टसटविघटितचरणं देवनृसिंहन प्रियमहिषीपट्टदोलरेत्त पट्टमहि षिये 'देचलदेवा सल्लतांगि २३ राजीवदलाक्षि पल्लवनिमाधरे पाटलकण्ठि कोकिलारावे.. राजीव नल''य । यनेयं तालदिदल ॥ (१२) कालनिभप्रत - २४ जनरसिंहमहीपतिगं मदेमलालालसयानेकम्बुनिमकन्धरे येचल देविगं. श्रीललनेशन्तानेने पुटिदनूर्जित - २५ पुण्यमूर्ति बल्लालनृपालं समदरिमहीभुजदपंमंजनं ॥ (१३) क्रा'"वादिधरावनितेय चातुर्यदि नीढी ?) २६ निरमणि रमणीशकुलमं श्रायोलायशनुरत्यागदि वन्दिवृन्द मनित्यानतसत्यदि चरितदि सन्ततमुं तन्नोल क्रमदि निश्चल - २० मपूर्वतलेदं बल्लालभूपालकं ॥ (१४) निजपादानत"दित- ' लक्ष्मीवल्लम - ला 'मूर्ति विबुधाराध्य २८ जगन्नेत्र नीरजमित्र स“दे कान्तनेनिपं प्रतापदेवं समस्त जगद्वन्धपदारविन्द रारा'नल ॥ (१५) पुरुहू (त) २९ ख्यातमोगं शिखिनिमधनते यमावार्यशौर्य नरवाहातोष"वायु सत्रं धनाधीश्वरसं३० घर महेशप्रकटितमहिमं लोकपालप्रमावान्तरनादं दिग्वधूमण्डन विशदयशं वोरबल्लालदेवं ॥ (१६) भृगुगेनिं वत्सराज ३१ हयदिनिमसमारूढप्रोढियिन्दं मगदत्तं वेषदिन्दं दिविजपति'" सत्वगुण प्रभूति ३२ राघवन् इनतनयं त्यागदिं वादिभूपाल''नदिदतप्रतिमनेनिसिदं वीरबल्लालदेवं ॥ (१७) स्वस्ति समधिगतपच - ३३ महाशब्दमण्डलेश्वरं द्वारावतीपुरवराधीश्वरं यादवकुलाम्बर धमणि सम्यक्त्वचूडामणि तलकाहुकोगुणिब - Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२७१३४ नवामिवुच्छंगिहा गलगोण्ड भुजबलवीरगंगनसहायशूर निश्शं कप्रताप होयसलवीरबल्लालदेवरसर द्वारसमु३५ द्रदोल सुखदि राज्यं गेयुतिरे तत्पादपनोपजीविगल एनिसिद श्रीमन्महावडुव्यवहारि कवडेमयं नति ३६ हरबर गुरुकुलान्वय क्रममेन्तेन्दोडे ॥ विमल श्रीजैनधर्मक्कमल तोऽविनन्तोप्पुगु मूलसंघ कमनीयं ३७ कोण्डकुन्दान्वयमे वरगणं देशि गच्छ' "क्रमदि तत""वर्ध.... गेसेये श्रीवधूटीरम - ३८ ण देवेन्द्रसैद्धान्तिक मुनियेसेदं महोत्साहधामं ॥ (१८) तच्छिष्यं नाडे विस्तगुण वृषनमन्दि मुनि कायो - ३९ सगंगोण्डुपवासदिन्द चतुर्मुखाख्येयनाल्दम् । (१९) भवरम शिप्यरोलअन्तदि द्विजराजिकुमतवादमददपंद - ४० नावर्तिकीर्तिवृक्ष- श्रीगोपनन्दिपण्डितदेवर् ॥ (२०) जिनसमय यशश्चन्द्रं जिनागमाम्मोनिधिप्रवर्धनचन्द्र जिनमुनिकु - ४१ वलयचन्द्र जिनचन्द्रं विबुधनिकरराकाचन्द्र ॥ (२१) निरवद योधदर्शनचरणयुतर माघनन्दिसैद्धान्तिकदेवरशि४२ प्यरार् शमान्त्रितनिरुपमधर्मेन्द्र रत्ननन्दिमुनीन्द्रर् ॥ (२२) तत्सधर्मर""संहिताखिलागमार्थनिपुणभ्याख्यानसंशुद्धि - ४३ यि "रु सैद्धान्तिकतस्वनिणयवचाविन्यासदि श्रुतिसम्बद्ध... तयनार्थशास्त्रमरतालंकारसाहित्यदिरुद्धानूह ४४ बालचन्द्रमुनियं विद्याधर (२३) चक्रे श्रीमूलसंघ पद्माकर राजहंसो..."निपुणप्रवरावतंसः जीया - ४५ जिनेन्द्रसमयाणवपूर्णचन्द्रः क्रधाः। (२४) अन्तेनिसिद श्री.""हलाचार्यर गुड्डु देदी४६ उजयान्वयवारिधिचन्द्रमनु"ग अहंन्स्य चरितर्नु वरजैनसमय कुमुदेन्दु अन्यायार्जितधनम - Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।' २०५ -२७१] कलसापुरका लेख ४७ नेयदे कवडेमय्यन् अणुवन्तय्यम् ॥ (२५) बरसुगुणसमन्धित कवडेमय्य ता. पूज्ययशःसद्गुणि केतिसेहियुमुदास - ४८ प्रणयरेचिसेटिगमन्ता पूणुससेट्टिगमिलासंस्तुत्य देकम्वेगं प्रियपुत्रं प्रभु बास "सम्पूर्णमब्योदय ४९ अनुपम "सेटि"यदा कान्ते 'अनूनशौर्य निधि ५० "नामादि''अपूर्व 'जनविनुत जक्किसेट्टिय वनिते सु५१ . दामेतिय तलेदल ॥ (२७) अवरात्मीयोदयपुण्योदय ५२ निखिलगुणक्कास्थान बर्मन पुण्यकुलवधु दंक५३ .."दितोदात्तलक्ष्मीनिवासं ॥ (२८) नीतिलता'"दानधर्मपयो५४ धिचन्द्रम "राहिमनु"बंददानकल्पभूजं विरो५५ तनुजोत"णिसेट्टिय ।। (२९) स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर भुजबलवीरगंगनसहायशूर निःशंकप्र. ५६ ताप"होयसळ देवरसरु शकवर्ष १०९८ नेय दुर्मुखिसंवत्सरद उत्तरायणसक्रमणदोल अमरदानव५. माहुवल्लि श्रीमन्महावडव्यवहारि कवडमय्यन देविसेट्टिय तां मादिसिद श्रावीरबल्लाल जिनाल५८ यद"यकलाहारदानक्क खण्डस्फुटितजीर्णोद्धारक्कमेन्दु विमपं गेय्यळवर ५६ "गणद"तंद श्रीमन्महामण्डलाचार्य बालचन्द्रसिद्धान्त देवगै धारा६. पूर्वकं "बालचन्द्र""होसनाडोलगण कोरटिकेरेयनदर कारवा ल्लिगलो६१ लनादि "नाचहल्लि मडबद मरियहल्लियोलगाद हल्लिगल सीमासम्बन्धमन्तेन्दोडे मू६२ वनाल"पदु - रि - ककय हलेयिलेय मोरडि तेंकलारडिगेरे नैरिस्य Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ २७१ ६३ यदोल वायव्य दोल नेरिल केरेयोलगण माविनमर देवर अरगल्ली' २०६ ६४ वडमुं नगर मुन्ता वायव्य ६५ ... लाल तिगुल तेलुंग कन्नडग देश मुख्यमाद सु ६६ द्रद नेरेपुलिय चिकहनिय केतलदेविय गडिय बावलेश्वरदे सम ६७ स्तनख''''श्रीशान्तिनाथदेवरकर कैंकर्यक्के बिट्टायमेन्तेन्दोडे होय्पल नाडोल ६८ त्ति हेरिंगे हागवेरदु कन्तेय हेरिंगे हाग ओन्दु कुदुरे ६६ ''''कर्पूरपट्टनूलण्ड-क्के हणवोन्डु श्रीगन्धद माळवेगे ७० ... हणनव वडिय मलवेगे हण नाल्कु येतिन मलवेगे हण वोण् ७१ . हसु बगे हाग वोन्दु पडसालेय गडिगे बरिसके हण वोन्दु विडिव..... ....रल देविय गडिगे बरिसक्के हाग वोन्दु निच्च सेडिव दवसद हेरिगे मान वोन्डु ७३. मेलसुदड हेरिंग मान वोन्दु गणदोल धारेयेर ७२ ७४ .... गेय तडियोल् शतसहस्रब्राह्मणर्गलं कारसमन्वित शतसहस्रकविलेलं ७५ ... क्षेत्रदोलनिबर् ब्राह्मणरुमन नितुकविलेगलं कोन्द महापताकनक्कु परिपालिपु ७६ ··· गन्तं बर''''निन्निरे घरंगे शिलाशासनाभरावलिये सेगु ॥ स्वदत्तां ७७ ... हरेत वसुन्धरां षष्टिवर्षसहस्राणि विष्टायां जायते क्रिमिः ॥ सामान्यायं धर्मसे - Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२०२] कुषंगिका लेख ७८ .."लनीयो भवद्धि : । सर्वानेतान् भाविनः पार्थिवेन्द्रान् भूयो भूयो याचते राम - ७६ ."य स्थलद चतुस्सीमय निवेशनमेन्तेन्दोडे मूडलु हिरिय राजबीडि मोदल. ८० "य घलेयलु पश्चिमके नीलविप्पत्तु बडगण "मोदलोल तेकलु अ" [ यह विस्तृत लेख दुर्मुखि संवत्सर, शक १०९८ में लिखा गया था। इसके प्रारम्भमे होयसल वंशके राजाओंका कुलवर्णन वीरबल्लालदेव (द्वितीय) तक किया है । इनके समय देविसेट्टि नामक धनिकने बीरबल्लालजिनालय नामक मन्दिर बनवाया। मलसंघ-देसिगण-कोण्डकुन्दान्वयके आचार्य बालचन्द्रकी प्रेरणासे यह कार्य हुआ। इस मन्दिरके लिए राजा वीरबल्लालने कुछ गाँव तथा कुछ करोका उत्पन्न अर्पण किया था। बालचन्द्रकी गुरुपरम्परा देवेन्द्र सैद्धान्तिक - वृषभनन्दि-चतुर्मुख-गोफ्नन्दि-जिनचन्द्रमाधनन्दि-रत्ननन्दि-उनके गुरुबन्धु बालचन्द्र इस प्रकार दी है। ] [ए० रि० मै० १९२३ पृ० ३६ ] २७२ कुञ्चगि (तुंकूर, मैसूर ) १२वीं सदी (सन् १९८० ) काड [ यह लेख एक जिनमूतिके पादपीठपर है। इसकी स्थापना मूलसंघदेशीगण-पनसोगे शाखाके नयकीर्तिसिद्धान्त चक्रवतिके शिष्य अध्यात्मि बालचन्द्रके उपदेशसे बम्मिसेट्टिके पुत्र केसरिसेट्टिने बेलूर में की थी। (समय लगभग ११८० ई० )।] [ ए० रि० मै० १९१६ पृ० ८३ ] Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ जैनशिलालेख-संग्रह [२५३ २७३ पाटशोवरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) शक १९०७ = सन् ११८५, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा बीर सोमेश्वरके समय शक ११०७ विश्वावसु मंवत्सरका है। इसमे राजाके सामन्त भोगदेव चोल महाराजाका तथा वोरणन्दिसिद्धान्तचक्रवति और उनके शिष्य पद्मप्रभमलधारिदेवका उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९१७-१८ क्र० २८ पृ० ७२ ] २७४ लक्कुण्डि ( धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष ४ = सन् ११८५, कन्नड [ यह लेख त्रिभुवनमल्ल वीरसोमेश्वरके राज्यवर्ष ४, विश्वावसु संवत्सरमै पुष्य शु० २ बुधवारका है। इसमे कुछ सेट्टियों द्वारा अष्टविधार्चनके लिए नोम्पियबसदिको कुछ दान देनेका उल्लेख है। कुछ शिल्पकारों द्वारा शान्तिनाथदेवको दिये हुए दानोका भी उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई० ५५ पृ. ५ ] २७५-२७६ कुमठ ( उत्तर कनडा, मैसूर ) १२वीं सदी, कन्नड [ यह लेख कदम्ब राजा वीर कावदेवरसके राज्यकालमें चैत्र व० १, मंगलवार, श्रीमुख संवत्सरके दिन लिखा गया था। चन्द्रकीति भट्टारकके शिष्य तथा वर्धमानसेट्टिके पुत्र सातिपेद्दके समाधिमरणका इसमे उल्लेख है। यहीके एक अन्य लेखमे एक सेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है । ] [रि० ० रा० १९४७-४८ क्र० २३८-२४० पृ० २७ ] Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२० ] बम्बई भादिके लेख २७७-२७० बम्बई (महाराष्ट्र) १२वीं सदी, काड [ यह लेख भायखलाके जैन मन्दिरमे है। कदम्ब राजा कावदेवके राज्यवर्ष ४४, ईश्वर संवत्सरमे भाद्रपद शु० १२, सोमवारके दिन नागय्यके समाधिमरणका इसमे उल्लेख है। यहींके एक अन्य समाधिलेखमें दी हई तिथि इस प्रकार है - भाद्रपद शु० ७, सोमवार विक्रम संवत्सर । [रि० इ० ए० १९५३-५४ ० १९९-२०० पृ० ३७ ] २७६ नागपुर म्युजियम (महाराष्ट्र ) संवत् १२४५ = सन् १९८८, संस्कृत-नागरी [ यह लेख एक मतिके ऊपर है। माणिकसेनदेव, वीरसेनदेव तथा बाजसेन (?) देवका इसमे उल्लेख है जो सम्भवतः जैन आचार्य थे । तिथि संवत् १२४५ दी है। ] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र. २६७ पृ० ५० ] बिलिगिरि रंगनबेट्ट ( मैसूर) शक १११२%=सन् ११६०, कन्नड १ शुममस्तु श्रीमत्परमगंभी. २ रस्याद्वादामोधलांछन जी३ यात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं ४ जिनशासनं स्वस्ति श्रीप्र. ५ तापचक्रवर्ति होयिसल श्रीवी- ६ रबल्लालदेवरसरु पृथुविरा७ ज्यं गेय्युत्तिरलु सकवरुस ८ २ साधारण संवरद बै. ९ साकसुद्ध पंचमि बिह १०...... Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [ यह लेख रंगनबेट्टके समीप जंमलमे श्रवणनअरे नामक पापाणपर खुदा है । होयसल राजा वीरबल्लाल ( द्वितीय ) के राज्यमे वैशाख शु० ५, गुरुवार, शक १११२, साधारण संवत्सरके दिन यह लिखा गया था। लेख टूटा होनेसे इसका उद्देश ज्ञात नहीं हो सकता। किन्तु प्रारम्भमे जिनशासनकी प्रशंसा है अतः यह किसी जैन व्यक्तिका निसिधिलेख या किसी जैन मन्दिरको दिये गये दानका उल्लेख प्रतीत होता है। [ए. रि० मै० १९३८ पृ० १९३ ] २८१ होसनगर ( मैसूर) शक १११२= सन् १९९०, कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछनं २ जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ३ स्वस्ति श्रीबल्लालदेवरसरु ५ जेयं उत्तरोत्तरामिरुद्ध मिरलु सक बरुष २१५१२ एरडनेय सर्वधारिसंवत्सरद ७ ज्येष्ठ सुध एकादशि वड्डवारदलु गु८ गसंपनरप्प पुष्पसेनदेवर गुद्धि श्री९ मतु सर्वाधिकारि बम्माचारिय हेण्डति ह१० व्वक्कनु सुरलोकप्राप्तेयादलु [ इस लेखको तिथि ज्येष्ठ शु० ११, शनिवार, शक १११२, सर्वधारि संवत्सर है (यह तिथि अनियमित है क्योंकि शक १११२ साधारण संवत्सर था)। उक्त समय होयसल राजा बल्लाल (द्वितीय) का राज्य था। सर्वाधिकारी बम्माचारिकी पत्नी हन्वक्काके समाधिमरणका इस लेखमे निर्देश है । इनके गुरु पुष्पसेनदेव थे।] [ ए० रि० मै० १९३१ पृ० १७२ ] Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२८२ ] सोमपुरका लेख २८२ सोमपुर (मैसूर) शक १९१४ = सन् १९९२, कन्नड २११ १ श्रीमत्परमगं मीरस्यादवादामोघलांछनं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ (१) जयति सकळ विद्यादेवता - २ रत्नपीठ हृदयमनुपलेपं यस्य दीर्घं स देव: ( 1 ) जयति तदनु सर्व मिथ्यासमय तिमिरघातिज्योंतिरेकं शास्त्रं तस्य यत् नराणां (॥२) ३ ... ब्रायदि सहनेम्बानाग पुलियं पोय्दा सल पोय्लक योग ४ ... पलम्बरं राज्यं गेयुसिर्पिनं । ( ३ ) विनयप्रतापमेम्बी जननाथोचितचरित्रयुगदिं जगमं जननयनवेनिसि नेगलदं विनया ५ दिव्यं समस्तभुत्र नस्तुत्यं । (४) आतंगतिमहिमं हिमसेतुसमा६ ख्यातकीर्ति सन्मूतिमनोजातं मर्दितरिपुनृपजातं तनुजातनादनेरेयंगनृपं । (५) बल्लिदरवनीपतिसम्पादितधर्मार्थ - ७ काम सिद्धिवोलवनीवल्लभरातन तनयर बल्लालं ब्रिट्टिदेवमुदयादित्यं । (६) मूचरर सुगलो ं तां माविसे मध्यमनदागियूँ ८ नृपगुणपद्मावदिनुत्तमनाद माविभवद्भूत जिष्णु विष्णुनृपालं । (७) मलेयं साधिनि माणूदने तलबनं कांचीपुरं कोयतू - हर् मलेनाडा तुलनाडु नीलगिरिया कोलालमार्कोगु नन्गलियुकलंगि विराटराजनगरं बल्लूरिवेल्लं दुर्वारदोलदि १० लीकेयि साध्यमादुवेणेयार विष्णुक्षमापालनोल् । (८) येनलाल्ं चूडामणि हारमने ११ किनरेश्वरशिरःप्रोतुंग फणि गुणमणिः १२ सम्यक्तचूडामणिः आ विष्णुवर्धनंगं येनिसिद लक्ष्मादविगमुद् विसदनी भूवित नरसिंहनाहब Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ जैनशिलालेख-संग्रह [२८२-- १३ सिंह ॥ () पडेमातेम्बन्दु कण्डंगमृतजलधि तां गर्वदि गण्ड वातं नुडिवातंगेन नेम्बै प्रलयसमयदोल मेरेयं मोरि बर्षा कडलन्१४ नं कालमन्नं मुलिद कुलिकनन्नं युगान्ताग्नियन्नं सिटिल सिंगदन्नं पुरहरनुरिगण्णनभनी नारसिंह । (१०) रिपुसपंदर्प दावानलबहलशि१५ खाजालकालाम्बुवाहं रिपुभूपालप्रदीपप्रकरपटुतरस्फारझंझासमीर रिपुनागानीकताक्ष्य रिपुनृपलिनी१६ षण्डवेतण्डरूपं रिपुभूभृद्भरिवज्रं रिपुनृपमदमातंगसिंह नृसिंहं ।। (११)"पोगल्द तीव्रप्रताप""गिदु पोगलदुदं मा१७ ण्डोडं शत्रुगात्रप्रगलद्रक्तप्रवाहप्रबलगुरुवानमुं शत्रुभूभृद्भूरि___ सन्दोहदाहप्रचुरचिटिचिटिवानमुं निर्विक१८ रुपं पोगलुत्तिद्दु नृसिंहप्रबल भुजबलाटोपमं धात्रिगेल्लं ॥ (१२) श्रा विभुविन पट्टमहादेविगे सद्गुणचरित्रदिन्दं सीतादेविगे मि१६ गिलादेचलदेविगे बल्लालदेवनुदयंगेय्दं ॥ (१३) कलिकाल क्षत्रपुत्रप्रबलतरदुराचारसन्दोहदिन्दं-पोले पोर्दल पेसि बेसत्तलच२० लिद महाकान्तेयं रभिसलका जलजाभं ताने बन्दिन्तवतरिसि दवाल वीरबल्लालदेवं कुलजात्याचारसारं नृपवरनुदयंगेयद२१ नाश्चर्यशीयं ॥ (१४) विनयश्रीनिधियं विवेकनिधियं ब्रह्मण्यनं पूर्णपुण्यननुद्दामयशोर्थियं जितजगत्प्रत्यर्थियं सर्वसज२२ नसंस्तुत्यननुभवद्वितरणश्रीविक्रमादित्यनं मनुजेशर मलेराज राजनन बरलालनं पोल्वरे । ( १५) उरिंगणनि बन्द चण्डा निपुर२३ मुरिदवोल चुचुरिलदारुगार्गरि दन्दर धगिल धन्धग धग चेटे चेल्चेल्चिटिलगटु पोर्दैम्बरवं कैगणमे दिक्पालकर अलवलिय Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२४२] सोमपुरका लेख २१३ २४ ल वीरबल्लालनि (दि) दुरिदत्तुच्छंगियोडे रिपुनृपति....पेल लुण्टे ॥ (१६ रणरंगांगणशूदक नवेदोडिन्तुच्छंगि नुर्चलित २५ तत्क्षणदि नोडे विराटराजपुर वोत्तुत्तायतु मुसान सेवुणरापोश नमात्रकं ने दरिल्लेन्दन्दु बल्लालदोर्गुणवं वाणिसलण्ण २६ बल्लवरदारी भूरिभूचक्रदोल ॥ (१७ ) विलयाद्रि येनिप सेवुण बलन'निचयाविल मकराकुलवी यदुकुलपरितलग२७ तवायतु बन्दु.....॥ ( १८ ) कन्दनहप्तारिरक्तं कूडे हयखुर दिन्दा 'गेलिगेत्तग्गद यादोल मुम्पेण"पेणन बेत्ति२८ .."भूतालि पुण्यराशीकृतविपुलतलं वीरबल्लालदेवं ॥ (१६) २६ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम राजाधिराजपरमेश्वर परममट्टारक द्वारावतीपुरवराधीश्वरं वासन्तिकादेवीलब्ध३० वरप्रसाद रिपुसम्मदनविनोद यादवकुलाम्बरयमणि सम्यक्त्व चूडामणि शत्रुक्षत्रिय३१ मानमर्दनं वीररिपुदपंशर्पझंझानिल श्रीमद्वीय 'पराक्रमक प्रभाव । निरुपमात३२ क्यं प्रताप नविनयस्वभाव । सकलजनसत्याशीर्वाद ।""मुद्गर समरकेलिसंस३३ क्त""रिपुविजितादित्यप्रताप । सप्तांग विलास''सरस्वती .. स्तम्बरम राज३४ कण्ठीरव । पाण्डयकुल "दण्ड । पल्लवकुलयशोविपिनदावानल । सिंहलसपालकुरंगकुलपलायनकार३५ ण कठोरनिजविजयदोर्दण्ड ... । सकल रिपुनृपकुल' इत्यादि नामादि३६ समस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमत्सार्वभौम संग्रामराम मिल्लमदिशा पट्ट"धरित्रोपट्ट मलेराजराज मलेपरोलगण्ड Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [२८२३७ तलकाहु-गंगवाहि-नोलम्बवाडि-बनवासे - पानुंगल-हुलिगेरे-हल. सिगे-बेलवल-तलबलि-तलियगगोण्ड भुजबलवीरगं३८ गनेकांगीर सनिवारसिद्धि गिरिदुर्गमहल बलदंकरामनसहाय शूर निश्शंकप्रतापचक्रवर्ति श्रीवीरबल्लालदेवनसंख्यातनिजचतु रंगबलं ३९ बेरसु सेवुणबलमेल्लमं वीरविलासनेम्ब पट्टमानदिं ताल दुलदुलिये । सेवुणबलजलधि-बडवानलनकांगदि सप्तांगसा४० म्राज्यमनलवडिसि राष्ट्रकण्टकर निर्मूलमं माडि कल्याणपर्यन्त___मागि सुखसंकथाविनोददि राज्यं गेय्युत्तमिरे ४१ तद्राज्यपूज्यमप्प राजधानि दोरसमुद्र दोलु श्रीमद्वादीमसिंह ___तार्किकचक्रवर्ति श्रीपालविद्यदेवरुमवर गुड्डुगल मा४२ रिसैट्टियुं कण्णिसेट्टियु मरतिसेष्टियुमिन्ती नाल्बलं नानादसियुं नगरमु श्रीमदभिनवशान्तिनाथदेवर मव्यजिनालयममि४३ प नगरजिनालयमं माडिसिद राजसेट्टियन्वयमुमाचार्यवलियु मेन्तेन्दोडे(1)श्रीमद्रमिलसंधेस्मिन् नन्दिसंघांस्त्य४४ रंगल:(१)अन्वया माति निश्शेषशास्त्रवाराशिपारगैः(1)श्रीवर्ध मानस्वामिगल धर्मतीर्थ प्रवर्तिसुवल्लि गौतमस्वामिगलिं मद्रबा४५ हुस्वामिगलिं भूतबलिपुष्पदन्तस्वामिगलिं''सुमतिमटारकरिन कलंकदवरिन्दं वक्रप्रवाचायरिं वज्रनन्दिगाल सिंहनन्दिगलिं परवादिमल्लरि ४६ श्रीपालदेवरि श्रीहेमसेनरि दयापालमुनीन्द्ररि श्रीविजयदेवरि शान्तिदेवरि पुष्पसनदेवरि चक्र४७ वर्ति श्रावादिराजदेवरि श्रीशान्तदेवरि शब्दब्रह्मस्वामिदेवरि अजितसेनपण्डितदंवरि मल्लिषेणमलधारिस्वामिगलिं ४८ श्रीपालविद्य गद्यपथवचोविन्यासं निसर्ग विजयविलासं । तद नन्तरं श्रीमत्त्रविविद्यापति-पदकम Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२] सोमपुरका लेख ४६ लाराधनालब्धबुद्धिः सिद्धान्ताम्मोनिधाम"मृतास्वाद"दीक्षा. शिक्षासुरक्षा"क्रवाक्पतिनिपुण: सन्ततं मन्यसेव्यः सोयं । ५. दाक्षिण्यमूतिर्जगति विजयतेवासुपूज्यव्रतीन्द्रः (1) तदनन्तरं सुरराजेन्द्रमदेमदन्तचयदोल दिग्गामि ''मन्दिरदोल म५१ र्गकराल वि."लतमी हिमाद्रिकूटंगलोल धरणान्द्रोद्धकिरीटकूट तलदाल वाग्देवि 'येन्दरिवल श्रीमुनि वज्र५२ नन्दिय गमीरोदार वलसित"जं. ५३ गल कोडिनोल पोदलदेसेदु मन्दरमनेयदे 'यशोलतेये मुनि वज्रनन्दिय ५४ इंगडलनरुवलि"वज्रनन्दिवतिया। तत्स५५ मयदोल कुमारनन्दु समस्तप्रभुगावुण्डगलि नाड कायु"प्रताप चक्रवर्ति वीरबल्लाल ५६ देवनं काणलवेडि बन्दिदल्लि अभिनवश्रीशान्तिनाथदेव""ममष्ट विधार्चनेयुमं पूजेयुमं ऋषियराहारदानमुमं ५७ कण्डु पिरिदुं सन्तसं माडि देवर श्रीकार्यक्के "नाडगौण्डुगल तम्मोलैकमत्यवागि प्रतापचक्र५८ वर्ति वीरबल्लालदेवं बन्दु शान्तिदेवरष्ट-विधाच नेगं खण्डस्फु टितजीर्णोद्धारक ऋषियराहारदानक्कवागि ५९ शकवर्ष १११४ नेय विरोधिकृत्संवस्मरद उत्तरायणसंकवाण दन्दु"वज्रनन्दिसैद्धान्त-देवरिगे धारापूर्वक ....."नाड मैसेनाड ६० गुम्मनवृत्तियोलु'"मुञ्चण्डियं कडलहल्लियं.""कडलहल्लिय ईशा न्यद नारेना६१ ड सन्तेनाडा गपिणनाड"नडदु येलुवलद सीमेय नट्ट कल्लु ___ अल्लि गुरविनगुण्डिये "मरनितालेयमो - ६२ रडिमोरडि चंचरिवल्लद तडि कडलेयहल्लिय भाग्नेयदलुरिद. वालिकेय लविवल्लिय गुम्मनवृत्तिय ना Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ जैनशिलालेख-संग्रह [२८२१३.६३ गवय मोरडि चंचरिबल्लं मत्तवी कडलेयहल्लिय नैऋत्यद . बल्लरेय कणि-- ६४ यकलु खडेय"कोलबूबल्लं मत्तिय मरन''गल्लुत१ मत्तवी कल्लेपहल्लिय वायव्य६५ द सोरेनाड हल्लियबीडिन त्रिसन्धियोलु'""कर्गलमोरडि अलिं चंचरिवल्लं तेन्तट्ट वटवृक्ष म ६६ लिं मत्तवी कडलेयहल्लिय ईशान्य गुम्मनवृत्तिय त्रिसन्धिय ' नडुगणेय कूडित्तु इन्तिदु सीमाक्रम । मंगल महाश्री ६७ भूमिदानात् परं दानं । स्वदत्ता परदत्तां वा यो .६८ हरेत वसुन्धरां षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते क्रि मिः [ इस लेखके प्रारम्भमे होयसल राजाओंकी वंशावली वीरबल्लाल (द्वितीय ) तक दी है। वीरबल्लालने मैसेनाड प्रदेशके दो ग्राम-मच्छण्डि तथा कडलेहल्लि अभिनवशान्तिनाथमन्दिरको अर्पण किये थे। इस दानकी तिथि शक १११४ की उत्तरायणसंक्रान्ति थी। यह मन्दिर कई नाडुगौण्डोंने तथा सेट्रियोंने मिलकर बनाया था। मन्दिरके कार्यका निरीक्षण कर युवराजके प्रसन्न होनेपर राजाने यह दान दिया था। वासुपूज्य व्रतीन्द्रके शिष्य वज्रनन्दि सिद्धान्तदेव इस मन्दिरके प्रमुख थे। इनकी गुरुपरम्परामे द्रमिलसंघ-नन्दिसंघ-अरुंगलान्वयके निम्नलिखित आचार्योके नाम दिये हैगौतम, भद्रबाहु, भूतबलि, पुष्पदन्त, सुमति, अकलंक, वक्रग्रीव, वज्रनन्दि, सिंहनन्दि, परवादिमल्ल, श्रीपाल, हेमसेन, दयापाल, श्रीविजय, शान्तिदेव, पुष्पसेन, वादिराज, शान्तदेव, शब्दब्रह्म, अजितसेन, मल्लिषेण, श्रीपाल (द्वितीय)। श्रीपाल विद्यके शिष्य वासुपूज्यव्रतीन्द्र ही वज्रनन्दिके गुरु थे। वर्तमान समयमे यह लेख सोमपुरके निकट नंजेदेवरगुड नामक पहाड़ीपर है । वहाँके मन्दिरका रूपान्तर शिवमन्दिरमें हो गया है । ] [ए. रि० म० १९२६ पृ० ४७ ] Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~२८५] इंगलेश्वर भादिके लेख २८३ इंगलेश्वर ( बिजापूर, मैसूर ) शक १११७ = सन् १९६५, कन्नड [इस लेखमें तीर्थ चन्द्रप्रभदेवकी शिष्या पेण्डर वाचि मुत्तम्वेके समाधिमरणका उल्लेख है । शक १११७ का उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३०-३१ क० ई १४ पृ० ८५ ] ताडपत्री (जि. अनंतपुर, आन्ध्र) शक ११२० = सन् ११६८, कन्नड रामेश्वर मन्दिरके प्राकारके उत्तर पश्चिम कोनेपर [ इस लेखमे सोमिदेव तथा कांचेलादेवीके पुत्र उदयादित्यका उल्लेख है जो जैन था और ताटिपर ताडपत्रीमे रहता था। ] __ [इ० म० अनन्तपुर २०३ ] २८५ बेलगामि ( मैसूर ) सन् १९६९, काड [ इस लेखमे होयसल राजा वीरबल्लालके समय सन् ११९९ में महाप्रधान मल्लियण दण्डनायकके अधीन हेग्गडे सिरियण्ण-द्वारा मल्लिकामोदशान्तिनाथजिनालयके लिए आचार्य पद्मनन्दिको कुछ करोंका उत्पन्न दान दिये जानेका उल्लेख है। ] [ ए. रि० म० १९११ पृ० ४६ ] Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ जैनशिलालेख संग्रह २८६ कान्तराजपुर ( मैसूर ) १२वीं सदी, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघ २ लांछनं (1) जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शा ३ सनं जिनशासनं ॥ [ २८६ ४ स्वस्ति श्रीमन्महाप्रतापचक्रवर्ति गण्डभेरुण्ड मलपरोल् ५ गण्ड शनिवारसिद्धि गिरिदुर्गमल्क चलदंकराम होयसळवी६ बल्लालदेवरु सुखसंकथा विनोददि पृथ्वी) राज्य गेयुतु७ तमिरे || ततुश्रीपादसेव करु कब्बहिनवृत्तिय अधिष्टा८ यकरु महापसायतरु परमविश्वामिगल सामिसन्8 तोषकरू सेवुणकटक सूरेकाररुं शरणागतत्रज्रपंजर१० रुमप्प बेहूरमोतद सुग्गियनहल्लिय भरकेरेय बो११ कंयनायक होनहल मादेयनायक कलियनायक १२ बाचिहल्लिय बोकयनायक बेल्लूर माचयनायक मोनू१३ गलाचार्य केस वेयनायक चलुवन माचयनाय - १४ क अरसयनायक बरजियन माचयनायक मसणेय१५ नायक कोलेयादिनायक बचन मारेयनायक कोलेयत१६ न माचयनायक बलेयन मारेयनायक हलवनाय१७ कन बचेयनायक बोम्मेर कयिदालद बंयक कमविथ१८ नायक हेगडेनायक मैलेयनायक मारदेव बालना Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२८१] कान्तराजपुरका लेख २१९ १६ यक काचिनायक पम्मणनायक मावियनाय (क) २० सावुकनायक चिकवनायक मादियनायक बडघर बिज२१ पनायक बहुगेयनायक सनियमनायक हे२२ माडिनायक हरियणनायक पूमयनाय२३ क जवनेयनायक मैलयनायक बैजयणनायक मा२४ केयनाय (क) बमय नायवेयनायक गुडेयनायक २५ मारतमनायक मल्लेयनायक हरियड्र माचोड सिं२६ गगौड सोमगौड बदिय गौडन मादिगौड उत्तगौड बयचिगौड २७ मारगोड मादिगोड अबिगोड हलुवाडिगट्टद कुदरंय के२८ चगौड सकरनायकर नायक मल्लिगोड कसिय-हलिय वा२६ हुबलि सेटि पारिससहि बिजे सेटि अवर पुत्रक बल्लगोड ब३० सवगौड माचेय भरतय मादय आलय माचयउत्त३१ गौडन मारय पापय चिक्करम बिरिशेष्टिय मग आलगो३२ ड चिकगौड सीमगोड चिण्णयगांड मारगोड कसवगौड श्रीमन्महा(मं)ण३३ डलाचार्यरु राजगुरुगलु नयकीर्तिसिद्धांतदेवर शिष्यरु नेमि३४ चंद्रपंडितदेवरु बालचंद्रदेवरु नयकीर्तिदेवरगुडु३५ गलु बाहुबलिसेट्टि पारिससटि माडिसिद एक्कोटिजिनालय३६ द पद्मप्रभदेवर अष्टविधार्चनगे वूर मुन्दे आरिय मारे३७ यनायक कट्टिसिद कर आ कोलेरिय गई भा मूडलु सुत्तलु नट्ट ३८ ... बेदलेय हिरियकरय मोदलेरि३९ ""गर्दय श्रीमुखसंवत्सरद वयि.. Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह ४० बोम्म नातिवेय सासेनबोव सामन्त ४१ पूर्वकं माडि बिट्ट दसि विधर्मवं प्रतिपालिसिद गंगे ४२ २२० ***** [ यह लेख होयसल राजा वीरबल्लालदेवके राज्यकाल में वैशाख, श्रीमुख संवत्सरमे लिखा गया था । बाहुबलिसेट्टि तथा पारिससेट्टि द्वारा निर्मित एक्कोटि जिनालय के पद्मप्रभदेवकी पूजाके लिए अरेय मारेयनायकद्वारा एक तालाब तथा अन्य कई नायको, गोडो तथा सेट्टियों द्वारा ज़मीन दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है । इनमे नयकीर्तिसिद्धान्तदेवके शिष्य नेमिचन्द्र तथा बालचन्द्र पण्डित भी सम्मिलित थे । ] [ ए०रि० मैं० १९२७ पृ० ४५ ] २८७ वेरावल (सौराष्ट्र, गुजरात ) १२वीं सदी, अन्तिम चरण संस्कृत-नागरी [ २८७ १. ''''न्नवम्प्रति नित्यमद्यापि वारिधौ ॥ १ भूयादभीष्टसंसिद्ध्यै मु२. पाटकाख्यं पत्तनं तद्विराजते ॥ ३ मन्यं वेधा विधायैतद्विधित्सुः पुनरीश ... "रेंद्र नेयमंत्र ज्ञेयंत्र लक्ष्मीः स्थिरीकृता ॥ ५ तनिःशेषमहीपालमौलि घृष्टशंहि... ४ सौ नृपः । तेनोत्खाता सुहृन्मूलो मूलराजः स उच्यते ॥७ एकैकाधिकभूपालाः सम -- ५ . जिव्रजखुराहतं । अतुच्छ मुच्छलत्सूर्य पर्वभ्रममजीजनत् ॥ ६ पौरुषेण प्रतापेन पुण्येन- Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेरावलका लेख ૧૧ रन्यूनविक्रमः । श्रीमीमभूपतिस्तेषां राज्यं प्राज्यं करोत्ययं ॥ 99 मालाक्ष राण्यनम्राणां यो बभंज म- -२८७ ] ६ ७ नंदिसंघे गणेश्वरा । बभूवुः कुंदकुंदाख्याः साक्षात्कृतजगत्त्रया: ॥ १३ येषामाकाशगामित्वं स्था- ८ ... तपंचकमुज्वलं । रचयित्वाथ जल्पति येऽन्यनियमपूर्वकं ॥ १५ कालेऽस्मिन् भारते क्षेत्रे जाता- ह...रणास्तववर्त्मनि तेषां चारित्रिणां वंशे भूरयः सूरयोऽभवन् ॥१७ सद्वेषा अपि निद्वेषाः सकला अक १० भावस्यारुरोह तत् । श्रीकीर्ति प्राप्य सत्कीर्ति सूरिं सूरिगुणं ततः ||१३ यदीयं देशनावारि सम्यग्वि ११ कश्चित्रकूटाश्चचाल सः । श्रीमने मिजिनाधीश तीर्थ यात्रा निमित्ततः ॥२१ अहिल्लपुरं रम्यमाजगाम १२ ...नींद्राय ददौ नृपः । विरुदं मंडलाचार्यः सछत्रं ससुखासनं ॥ २३ ॥ २३ श्रीमूलवसतिकाख्यं जिन भवनं तत्र १३ ... संज्ञयैव यतीश्वरः । उच्यतेऽजितचंद्रां यस्ततोभूत्स गणीश्वरः ॥२५ चारुकीतियशःकीत ध १४.मुक्तो यो रत्नत्रयवानपि । यथावद् विदितार्थोभूत् क्षेमकीर्तिस्ततो गणी ॥ २७ उदेति स्म लसज्ज्योति १५ ...लेपि वासिते हेमसूरिणा । वस्त्रप्रावरणाय १६ कीर्तिर्यस्कीतिर्नर्तकी व नरिनर्ति । त्रिभुवनरंगे वासुकिनपुरशशितिलकनेपथ्या ॥ ३१ ते १७ ति ॥ ३२ समुद्र्ष्टतसमुच्छन्नशीर्ण जीर्णजिनालयः । यः कृतारं म निर्वाहसमुत्साहशिरोम ( णिः ॥३३ ) Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ जैनशिलालेख-संग्रह [२८७१८ ..."च यैरवगण्यते ॥३४ वादिनो यत्पदद्वंदनखचंद्रेषु बिबिताः । कुर्वते विगतश्रीकाः कलंक१९ ."दं तीर्थभूतमनादिकं ॥३६ सीतायाः स्थापना यन सोमेशः पक्षपातकृत् । बामन्त्रैलोक्य२० तदुद्धतं तेन जातोद्धारमनेकशः ॥३८ चैत्यमिदं ध्वजमिषतो निजभुजमुद्धस्य सक.. २१ .."षतो मंडलगणिकलितकीर्तिसस्कीतिः । चतुरधिकविंशखिलस ध्वजपटपटुहस्तक."मेतदीयसद्गोष्ठिकानामपि गल्लकानां ॥४१ यस्य स्नानपयो नुलिप्तमखिलं कुष्ठं दनी२३ चंद्रप्रभः स प्रभुस्तीरे पश्चिमसागरस्य जयताद् दिग्वाससां शासनं ॥४२ जिनपतिगृह१४ चार्यवों व्रतविनयसमेतैः शिष्यवर्गश्च साई ॥४३ श्रीमद्विक्रम भूपस्य वर्षाणां द्वाद (श)२५ कीर्तिलघुबंधुः । चक्रे प्रशस्ति मनघा (मतिदिव्यां) प्रवरकीर्ति रिमां ॥४५ सं १२..." [ यह लेख टूटा है तथा उसका आधा भाग मिल नही सका है। गुजरातके चौलुक्य राजा भीमदेव ( द्वितीय ) के समय बारहवीं सदीके अन्तिम चरणमे यह उत्कोण किया गया है। पश्चिम समुद्रके तीरपर चन्द्रप्रभ तीर्थकरका पुरातन मन्दिर था । यहाँकी मूतिके गन्धोदकसे कुष्ठरोग दूर होता था। इस मन्दिरके जीर्णोद्वारका इस लेखमे वर्णन है। आचार्य कुन्दकुन्दको परम्परामे नन्दिसंघमे श्रीकोति मुनि हुए। ये चित्रकूटसे नेमितीर्थकरके तीर्थ (गिरनार ) की यात्राके लिए जाते हुए मुजरातकी राजधानी अणहिल्लपुरमें आये । वहाँ राजाने उनका सत्कार कर उन्हे Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२८८] कुमारवीडका लेख २१३ मण्डलाचार्य यह विरुद दिया। इस नगरके मूलवसतिका नामक जिनमन्दिरका भी यहाँ उल्लेख है। अनन्तर क्रमशः अजितचन्द्र , चारुकोति, यश:कीति, तथा क्षेमकीर्ति इन मुनियोंका नामोल्लेख है। किन्तु इनका परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट नहीं है। इसी तरह आगे मण्डलगणि ललितकीतिका उल्लेख है जिनने सम्भवतः यह जीर्णोद्धार कार्य कराया था। इस लेख की रचना प्रवरकीतिने को थी। इसका ४२वां पद्य मदनकीर्तिकृत शासनचतुस्त्रिशिकासे लिया गया है। ] [ए० ई० ३३ पृ० ११७ ] २८८ कुमारवीड ( मैसूर ) कमड, १२वीं सदी १ श्रीमतपरमगंभीरस्याद्वादामोधलांछनं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं (1) जयति स२ कलविद्या (दंबतारत्नपीठं हृदयमनुपलेपं यस्य दीपं स देवः ) __ जयति तदनु शास्त्रं तस्य यस्स ( मिथ्या ) ३ समय ( तिमिरहारि ज्योतिरकं नराणां ) स्वस्ति समधिगतपंच महाशब्द महामंडलेश्वरं द्वारावतीयु४ रखराधीश्वरं यादवकुलांवरामणि सम्यक्त्वचूडामणि मलेराजराज मलपशेलुगंडायनक५ नामावलीसमलंकृतरप्प श्रीमत् त्रिभुवनमल तलेकाडु कोंडुनंग लेगंगवाडिनोलंबवाडिवनवासि ( मुंदे बरवण्णगेयिल्ल ) [ यह लेख किसी जैन सैनिककी मृत्युका स्मारक है । होयसल वंशके किसो राजाके विरुद प्रारम्भमें दिये है । किन्तु राजाका नाम तथा सैनिकके नामादिका विवरण नहीं मिलता क्योंकि लेख अधुरा है।। [ए० रि० म० १९३८ पृ० १६८ ] Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ जैनशिलालेख संग्रह २८६ ग्राम ( हासन, मैसूर ) कन्नड, १२वीं सदी [ इस लेखमे किसी होयसल राजाके सेवक पेर्गडे वासुदेवके पुत्र जिनभक्त उदयादित्यका वर्णन है । इसने सूरस्थगणके चन्द्रनन्दि गुरुके उपदेशसे वासुदेवजिनवसतिका निर्माण किया था । यह लेख इस समय केशवमन्दिर में लगा है । ] [ २८९ [ ए०रि० मैं ० १९१७ पृ० ४४ ] २६० ग्राम ( हासन, मैसूर ) कन्नड, १२वीं सदी [ इस लेखमे शान्तिग्रामके होनिसेट्टि तथा अन्य भव्यो द्वारा देसियगण - इंगलेश्वर शाखा के हरि आचार्यके उपदेशसे सुमतिभट्टारककी मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । लिपि १२वी सदीकी है । ] [ ए०रि० मं० १९९७ पृ० ६० ] २६१ कुप्पटूर ( मैसूर ) कन्नड, १२वीं सदी [ यह लेख पार्श्वनाथमूर्ति के पादपीठपर है । मूलसंघकाणूरगणतित्रिणीक गच्छके पर्वतमुनिका इसमे उल्लेख है । लिपि १२वी सदीकी है ।] [ ए०रि० मैं ० १९११ पृ० ४० ] Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२९४ ] माविनकेरेका लेख - ૨૨૫ २२५ २६२ माविनकेरे ( कडूर, मैसूर ) संस्कृत-कमड, १२वीं सड़ी १ श्रीमूलसंघपनसोगवतीप्रसिद्धदेशीयविदितपु२ स्तकचारुगच्छे । यः कुण्डकुंदमुनिवं. ३ शललामभूलललितकीर्तिमहा४ मुनींद्रः । तरपादयुगलांमोजशेखरी५ भूतमस्तकः जिनदत्तान्वयः स्वामी योभूत... ६ नन्दनः ॥ स्वस्तिश्रीशकवत्सरे... ७ पृथ्वीपतिः सो ८ यं श्रीकलशाहै ख्यचारुनगरे श्रीचं. १० द्रनाथप्रमो(:)प्रि(प्री)११ त्या साधयदुत्स १२ वेन महता बिंब१३ प्रतिष्ठापितं ॥ श्री १४ श्रीदेवचं१५ द्रदेवरु गे १६ यि ओदु [ यह लेख स्थानीय बसदिके चन्द्रनाथमूर्तिके समीप है । मूलसंघदेशीयगण-पनसोगा शाखाके ललितकीर्ति मुनिके शिष्य देवचन्द्र-द्वारा यह मति स्थापित की गयी थी। जिनदत्तके वंशके किसी राजाका इसमे उल्लेख है । शकवर्षके अंक लुप्त हुए है । लिपि १२वी सदीकी है। ] [ए. रि० मै० १९४६ पृ० ३६ ] २६३-२६४ निट्टर ( मैसूर ) कनड, १२वीं सदी [ यह लेख शान्तोश्वरबसदिके द्वारपर है। मालवेके पुत्र मलेय-द्वारा यहाँके मतियोंके निर्माणका इसमें उल्लेख है। लिपि १२वीं सदीकी है। यहाँके एक अन्य लेखमें शिवनहसेट्टिकी निषिधिका उल्लेख है । ] [ए. रि० मै० १९१९ पृ० ५१] Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ जैनशिलालेख-संग्रह [२९५२६५ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) कन्नड, १२वीं सदी [ यह लेख रसासिद्धलगुट्ट नामक पहाड़ोपर एक पाषाणपर खुदा है। इसमे गुम्मिसेटिके पुत्र ब्रमदेवका उल्लेख किया है। लिपि १२वीं सदीकी है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० ४५७ पृ० १२६ ] २६६ हूलि (जि० बेलगाँव, मैसूर ) कन्नड, १२वीं सदो [ इस लेखको लिपि १२वीं सदीको है। नेमिचन्द्र सिद्धान्त-चक्रवर्तीके शिष्य नविलरुके गोवरिय कलिगावुण्ड, तावरे महादेविशट्टि आदिके द्वारा इस दरवाजेके बनवाये जानेका इसमे उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई क्र० २४ पृ० २४२ ] २६७ गोरूर ( हासन, मैसूर ) कन्नड, १२वीं सदी [ इस लेखमे मलवसेट्टि, कटकद बम्मिसेट्टि तथा केसिसेट्टि इन तीन व्यक्तियों द्वारा गोरवूर ग्रामकी बसदिके लिए पांच खंडुग भूमि दान दिये जानेका वर्णन है । मल्लियका नामक स्त्रीको भी प्रशंसा की है। लेखकी लिपि १२वीं सदीकी है। इसका बहुत-सा भाग घिसनेसे नष्ट हो गया है।] ( मूल लेख कन्नड लिपिमे मुद्रित ) [ए० रि० मै० १९४३ पृ० ७४ ] Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३०.] मनोलीके लेख २६८-३०० मनोली (जि. बेलगाँव, मैसूर ) कनाड, १२वीं सदी [ इस लेखकी लिपि १२वीं सदीकी है। यापनीय संघके आचार्य मुनिवल्लिके मुनिचन्द्रदेवकी समाधि कुल्लेयकेतगावुडकी पुत्री गंगेवेद्वारा स्थापित की गयी थी। ये मुनिचन्द्र सिरियादेवी-द्वारा स्थापित बसदिके आचार्य थे। इसी समयके दूसरे लेखमें मुनिचन्द्रके शिष्य पाल्यकी(ति) देवके समाघिमरणका उल्लेख है । तिथि आश्विन कृ० ५, शुक्रवार, साधा(रण) संवत्सर, ऐसी है। यहाँके तीसरे लेखमे इसी परम्पराके एक और आचार्यके समाधिमरणका उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० क्र० ६३-६५ १०२४५ ] ३०१ कोलक्कुडि ( जि० मदुरा, मद्रास ) कन्नड, १२वीं सदी समणरमलै पहाड़ीपर पाषाणके दीपस्तम्भके समीप [ इस लेखमे आरियदेव, बेलगुलके मूलसंघके बालचन्द्र देव, नेमिदेव, अजितसेनदेव तथा गोवर्धनदेवका निर्देश है । लिपिके अनुसार यह १२वों सदीका लेख होगा।] [रि० इ० ए० १९५०-५१ ० २४४ ] Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ जैन शिलालेख संग्रह ३०२ बेहार ( नरसिंहगढ़, मध्यप्रदेश ) प्राकृत - नागरी, १२वीं सदी ...अं घणोममं सुंदरं १ २ सि ३ | तिहुअणतिलअं सी४ री- शावडस्स अमराल ५ अं रम्मं ॥ श्रीभाण ६ देवेन गाथा वि७ रचिता ******* **** [ ३०२ [ यह लेख सोलखंभ नामक उध्वस्त जैन मन्दिरमे एक स्तम्भपर है । इसमे श्री आणदेव द्वारा लिखित एक गाथा है जो किसी तिहुअणतिलअ ( त्रिभुवनतिलक ) मन्दिर तथा उसके स्थापक शावडके बारेमे है । इसी स्तम्भपर कुछ अन्य व्यक्तियोंके नाम भी खुदे है । गाथाकी लिपि १२वीं सदीकी है । ] [रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० १७४ ] ३०३ सवणूर ( धारवाड, मैसूर ) १२वीं सदी कन्नड, [ यह निसिधि लेख मलधारि आचार्य के समाधिमरणका स्मारक है । तिथि शुचि व० ८, सोमवार, विश्वावसु संवत्सर ऐसी दी है । लिपि १२वीं सदी की है । ] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ५९ पृ० ३३ ] Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३०८] अम्मिनमावि भादिके लेख २२९ ३०४ अम्मिनभावि ( धारवाड, मैसूर ) [ यह लेख वर्धमानमूतिके पादपीठपर है। बहुत अस्पष्ट हुआ है। लिपि १२वीं सदीकी है।] [ रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ७० पृ० ३४ ] ३०५-६ मण्दूर ( धारवाड, मैसूर) [ यहाँ १२वीं सदोकी लिपिमें दो लेख हैं जो जैनोंसे सम्बन्धित प्रतीत होते हैं। [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ९४-९५ पृ० ३६ ] ३०७ सालिग्राम ( मैसूर ) कन्नड. १२वीं सदी [ यह लेख अनन्तनाथकी मूर्तिके पीठपर है । मूलसंघ-बलात्कारगणके माघनन्दि सिद्धान्तचक्रवतिके शिष्य शम्बुदेवकी पत्नी बोम्मन्वे-द्वारा अनन्तव्रतकी समाप्तिपर यह मूर्ति स्थापित की गयी थी। लिपि १२वीं सदी को है। [ए० रि० मै० १९१३ पृ० ३६ ] ३०८ गोरूर ( हासन, मैसूर) कमड, १२वीं सदी १ भो श्रीमतु परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछन(1)जीयात् त्रैलोक्य नाथस्य शासनं जिनशासन(३) Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० जैनशिलालेख-संग्रह [३०८२ ओं मेलेनिसिपुदी मलेगे धात्रियोल किसुवल्लियन्तद पालिसि ___ संततं सुखदिन इर्पिनेगं सिरि ३ पुट्टे पुट्टिदं हेरियबासेवेग्गडेगवातन वलभे निजिकब्बेगं लीलेयोल एंदे वणिपुदु पे" गंडे सत्यमनं जगजनं । स्थिरने बाप्पमराद्रियिंदधिकगंमीरने बाप्पु सागरदिंदग्गलद५ न्तु दानिये सुरोर्वीजकं मारण्डलं सुरराजंगेणेयेण्दे कीर्तिपुदु कैकोण्डकार संततं ६ धरेयेल्लं सले सत्यवेगंडेयोल औदार्यमं सौर्यमं ॥ कोपेनेंदोड् ईश्वरन कोट्ट बर दूसग ७ सरणेंदु बंदर नेट्टने 'डे वज्रि''पूण्डु कोडिट्ट विरो... ८ तरिवन् एन्दोडे ताने कृतान्त' "यि' 'पेगडे... ९ आतन मावं सकल मही""जवल्लि 'वेनिसि नेगल्वं भूतल १० दोलगेसेये कच्छवेगडेय 'पु.य विण्पु ११ नाडे केसरिय पोड'."मनो""यनि १२ सिर्द वीरनोल अदेंदु कर नलितरिपुदु क "ले पलर निरन्तरं तीसरा माग १३ एने नेगल्द कच्छवेगंडेगनुपम कुलगे धोरे १४ यलु विनुततं बगे १५ रेनिप्पर मणिय१६ न्तवरीवरीतन यं."सन्तत जस" १७ यल अखिल भूमण्डलदे "ख्यातंगे सले नेगल्द गंगेगं गौरिगं वेम्म १८ ""नो दोरेयेनिप्पर भूतलदोलु 'यं ॥ गत्यंतंबरि१९ य समर समयदोल"वस''मन पोललितर''"आ विभुविन Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३०८] गोरूरका लेख २३१ २० कुलवधु ता भूविनुत श्रीगे नेलेयेनिष्पगनेवर पलहं... पेण्डितिगेनेगे वपरे २१ ..."योलु ॥ आतन किरिय पेण्डति रतियं पोस्वलु पिपति चरियोल अतियब्बे २२ प्रोल्वलनिधि तत यशोवल्लरिम मतिहीनर अदेनु बण्णिपर बाचवेय ॥ अवरीवर गु२३ (रु)गल् अवर भुवनजनाराध्यरखिलगुणगणनिलयर कडि"वर नयकीर्ति२४ देवसिद्धान्तेशरु ॥ आ महानुभावनर्धागियरवसान कालदोलु ॥ बोधिसुत जिनपदम बा२५ व सिद्धपदमन अक्षय पदमं विनुतं मुनिपदम बाचवे वेग्गडि तियर सुरगतियं २६ ""परम जिनेश्वर पदपंकरहमनानंददि नेनेयुतागलु पिरिदोंदु मक्तिथि २७ तियं बाचियकन् एदिदल आगलु ॥ अवर परोक्षदोल आदं सविनयदि केल.... २८ यिन्ति काल भुवनजन्वरिये निरिसिदल अविचलमप्यन्तु चंद्रतारंबरं ॥ [ इस लेखमे किसुवल्लि ग्रामके शासक सत्यवेग्गडेका उल्लेख है । यह हेरियबासेवेग्गडे तथा उनकी पत्नी निजिकब्बेका पुत्र था। इस सत्यवेग्गडेकी पत्नी बाचवे थी। वह कच्छवेगडेकी पुत्री थी। इसके गुरु नयकीर्ति सिद्धान्तदेव थे। लेखमे बाचवेके देहत्यागका उल्लेख है जो सम्भवतः सत्यवेग्गडेकी मृत्युके कारण किया गया था। लेखकी लिपि १२वीं सदीकी प्रतीत होती है । ] [ए० रि० मै० १९४३ पृ० ७१ ] Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह ३०६ इलेबोड (मैसूर) कन्नड, १२वीं सदी १ स्वस्ति श्रीमय कीर्तिसिद्धांत चंद्रयतिदेवर्गे कवडेयर जकन्वेयरु माडिसि कोट्ट पट्टशालेय शान्तिनाथदेवर अष्टविधार्च (ने) गं खंडस्फुटितजीर्णोद्धारकं २३२ [ ३०९ २ शिष्यरु सुरभिकुमुदचंद्रापरनामधेयरप्प नेमिचंद्रपंडित देवरु जीवंगल हिरियकेरेय बोलवगह दोलगरेय हुणसेय '''' ३ ल्लगे मूरु गंगवुरद उत्तमवागि ? मूनूरु बेदलेयं सर्वबाधपरिहारवागि चंद्रार्कतारं बरं सल्वंतागि कोहरु ई धर्मवं अवर शिष्य संतानगलु नडेसुवरु [ यह लेख १२वीं सदीकी लिपिमें है । कवडेयर जकव्वे द्वारा निर्मित पट्टशाला के शान्तिनाथदेवकी पूजा आदिके लिए कुछ भूमि बोलवगट्ट तालाबके समीप और गंगवुर ग्रामके समीप दान दी गयी ऐसा इसमे निर्देश है। यह दान सुरभिकुमुदचन्द्र अपरनाम नेमिचन्द्र पण्डितदेवने दिया था । जकव्वेके गुरु नयकीर्ति सिद्धान्तचन्द्र थे । ] [ ए०रि० मै० १९३७ पृ० १८५ ] ३१० अथनी (बेलगांव, मंसूर ) कन्नड, १२वीं सदी [ इस लेखमे बम्मण द्वारा देसिगण- इंगलेश्वरबलिके सामन्तण बसदिसे सम्बद्ध रत्नत्रयमन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । लिपि १२वीं सदीकी है । ] [ रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० १७३ पृ० ३४ ] Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३१२] मरसे आदिके लेख २३३ ३११ मरसे ( मैसूर ) संस्कृत-कन्नड, १२वीं सदी १ श्रीमदविलसंधेस्मिन् नन्दिसंघस्त्यरंगल: अ. २ न्यो माति योशेषशास्त्रवा३ राशिपारगैः [ यह लेख एक खेतमे मिली पार्श्वनाथमूर्तिके पादपीठपर है। इसमे द्रविलसंघ-नन्दिसंघके अन्तर्गत अरुंगल अन्वलकी प्रशंसा है। यह श्लोक अन्य कई लेखोंमें पाया जाता है। लेखकी लिपि १२वीं सदीकी है। मूर्तिके वारेमें अन्य कुछ विवरण नहीं दिया है।] [ए० रि० मै० १९२९ पृ० १०६ ] मावलि ( मैमूर ) कन्नड, १२वीं सदी १ श्रीमत्परमगंभीरस्यावा(दा)२ मोघलांछनं जीयात् त्रैलोक्य३ नाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ श्री (म)४ लसंग कुण्डकुन्दान्वयद ५ काणू गण माधवचंद्रदेव(र गु)६ डि नागवे गोकवेय भगलु स(मा)७ धिविधियिद मुडिपि स्वर्ग८ स्तेयादलु मंगल महा ९ श्री श्री Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [३१३ [ इस निसिधिलेखमें मूलसंघ-कुण्डकुन्दान्वय-काणूर गणके माधवचन्द्रदेवकी शिष्या तथा गोकवेकी कन्या नागवेके समाधिमरणका उल्लेख है । लेखकी लिपि १२वीं सदीकी है। ] [ए० रि० मै० १९४१ पृ० १९२ ] ३१३ हम्पी ( बेल्लारी, मैसूर ) कन्नड, १२वीं सदी [ यह लेख एक भग्न स्तम्भपर १२वीं सदीकी लिपिमे है। इसमें गोल्लाचार्य, उनके शिष्य गुणचन्द्र तथा उनके शिष्य इन्द्रनन्दि, नन्दिमुनि .. तथा कन्तिका उल्लेख है। [रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० ३३५ पृ० ५० ] ३१४ कलकत्ता ( नाहर म्यूजियम ) कमड, १२वीं सदी १ देमायपगलाणन्तियनोंपि निमित्त२ वागि माडिसिद प्रतिष्ठे [ यह लेख पीतलको चौबीस तीर्थकरमूर्तिके पिछले भागपर खुदा है । यह मूर्ति देमायप्प नामक व्यक्तिने अनन्तव्रतकी समाप्तिके समय स्थापित की थी। लिपि १२वीं सदीकी है। लिपिसे पता चलता है कि इसका निर्माण कर्नाटकमे हुआ था।] [ए० रि० मै० १९४१ पृ० २५० ] Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३१] रूगि आदिके लेख ३१५ रूगि ( बिजापूर, मैसूर) कन्नड, १२वीं सदी [ यह लेख किसी जैन आचार्यके समाधिमरणका स्मारक है। लिपि १२वीं सदीकी है। [रि० सा० ए० १९३६-३७ क्र० ई० ७९ पृ० १८८ ] शेरगढ ( कोटा, राजस्थान ) संस्कृत-नागरी, १२वीं सदी [ इस लेखमे आचार्य वीरसेन तथा सागरसेन पण्डितका उल्लेख है। लिपि १२वीं सदीकी है। [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ४३१ पृ० ७० ] रायबाग ( बेलगांव, मैसूर ) कन्नड, शक ११२४= सन् १२०१ [ यह लेख रट्ट वंशके कार्तवीर्य ४ के समयका है। इस राजाने वैशाख पूर्णिमा, शक ११२४, शुक्रवारको एक जिनमन्दिरके लिए कूण्डि ३००० प्रदेशका चिचलि ग्राम दान दिया था।] [रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १५१ पृ० ३३ ] Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [३१८ बेलगाँव ( क्रमाक १ ब्रिटिश म्यूजियम ) कन्नड, शक ११२७ = सन् १२०४ १ श्रीमवरमगंभीरस्याद्वादामोघलांछनम् । जोयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ नमो वीतरागाय शान्तये ॥ २ श्रीजिनसमयनवांधि राजिसुतिर्कमयमोर्जितामृतरस्न-श्रीजननगृहं सत्वदयाजीवनमपरिमितगमीरमपारं ॥ नवमौक्तिकहारं ३ श्रीयुवतिगिदेनिसिद कृष्णनृपवंशजपार्थिवचयदोल सेनरसं भुवननुतं मिसुपनेसेव नायकमणिवोल् ॥ वरकू. ४ डिमडलाधीश्वरनेनिपा सेनविभुगे सुतनादं दुर्धरवैरिभूप मीकरपराक्रम कार्तवीर्यननुपमशीयं ॥ आ विभुगादल सति पना५ वति जिनसमयवृद्धिकरणापरपन्नावति बुधाभिमतपमावति वज्रा युधंगे पौलोमिय वोल ॥ अवरिवरगं पुट्टिदनवनीश्वरमौ६ लिमंडनं लक्ष्मनृपं परिमलमुक्ताफलमोसेव वार्धिगं ताम्रपणेगं पुटुववोल ॥ एनेबे लक्ष्मिदेवक्षितिभुजन भुजाटोपमं विद्विषद्धा. ब्रीनाथर संजे• गपं मटपदहतियंदाद केंदूलियेंदालीनाभ्रधानमं तांनयतुरग खुरोद्घोष मेंदंजि नानास्थानस्थायित्वमं केल्पडेयदे बिडदोदुतमिदंपरिन्नुं ॥ अपराधिगलने नोलपुदु नृपालकरदंडनीति वाप्पु धनाज्ञाधिपनागे लक्ष्मभूविभुवपराधं दंडमेंबिविल्ले कृतियो॥ ९ अमृतांभोराशियोल पुट्टिद सिरियनणं बस्तु धात्रं स्वमायाक्रमदि बेरोवलं निर्मिसि चपलेयना कृष्णनोल. कूडि मत्ता विम Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३१८] बेलगांवका देख १० लोचद्भाग्यं सुस्थिरेयनोसेदु कोडे महीभृषिकायोत्तमनप्पी लक्ष्मिदेवंगेने मिगे तलेदल चंद्रिकादेवि चेल्वं ॥ प्रणुतश्रीनिधि चंद्रिका११ सतिय शीलवातमं कूडे धारिणियोल वण्णिसलारुमातपरे लक्ष्मोझेशनं क्षत्रियाग्रणियं शील मचिसल फणिपनं पूण्डे१२ ते तां तन कयगुणमं कंडुदरिंदवं पोगलला विश्वजिह्वालियिं ॥ नरपतिलक्ष्मिदेवसति चंदलदेवि निजोद्धहस्तदि धरंगेसेयल्के १३ संक्रमणदोल कुडे कांचनम बेरलगलोल बेरेसेद हेमकालिकेय कप सेदियुदु बाहुकल्पवल्लरिय तलप्रवालद नखप्र१४ सवक्केलसिर्द तुंबिवोल ॥ श्रीवसुदेवनंतेस्त्र लक्ष्मनृपंगवनिंद्य देवकीदेविवोलोप्पुर्वी विनुतचंदलदेविगमादरात्मजर भूवलय१५ प्रबबलकेशचरेंदेने कार्तवीर्यधात्रीवरमल्लिकार्जुनकुमारकरूर्जित. शौर्यशालिगल ॥ दृढशोर्य कार्तवीर्य तल१६ रे बलयुतं दिग्जय कन्यधात्रीपतिगल बेनित्तु नीरं पुगलवर शरी रोष्णदि बत्ति चित्तोद्गतमीत्युत्कर्षवृत्तिप्रसरणविसरद्ध१७ मतोयोमियिं विस्तृतमागल हानियुं वृद्धियुमदु निजममोधिगेंब विमूढर् ॥ ई कमनीयवाजिचयमी क. १८ रिसंकुलमी विलासिनीलोकमिवेम्मवा कविय कालेगदोल बयला जियोल पुराणीकद युद्धदोल पिडिदनितिवनी कलिकार्तवीर्यनेंदा१९ कुलमागि नोडुबुदु बन्धनशालेयोल इदरिब्रजम् ॥ श्रीरहवंशमेंब सुमेरुवनायिसि कल्पकुजननमेनले राराजि२० पुदुदो विबुधाधारं श्रीमत्कुलं प्रमोदनिवासं । प्रा महनीय कुलक्के शिरोमणि मज्यांबुजक्के तेजोमणि रक्षामणि बुधविततिगे Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ जैनशिलालेख-संग्रह २. चिंतामणि बेलपर्गेनल्के रंजिपनुदयं । ललितगुणौघं लक्ष्मीनिलयं संश्रितमधुब्रतं तलेदं निर्मलमप्पुदयसरोवरदोल उदयमं पुरुष पुंडरीकं बी२२ चं ॥ प्रकटश्रीनिधि बीचणं कुलगृहं शीलक्के लीलाश्रयं सुकृत बकुद्भवमंदिरं सिरिंगे सेवास्थानकं सद्गुणक्के कलाभ्यासपदं सरस्वतिगे संचारालयं २३ धर्मकार्यकलापक्कमिवृद्धिगेहममलाचारकेनल रंजिपं ॥ बीचंगे सुकवि संस्तुतवाचंगादर् सुतर् जिनेंद्रमतश्रीलोचनसंनिभरात्महिता२४ चारपर नेगलद पेमणनुमप्पण- ॥ पापापहारिजिनपश्रीपदभक्तं सुपात्रसंकुलदानन्यापारगमितदिननेनिपी पेमेंगे पेर्मणं तवर्मनेयादं ॥ २५ स्थिरपद्मोदयमंबुजक्के कमलं पद्माकरक्कंबुजाकरमुद्यानवनक्के पूर्ण फलिताराम पुरकोप्पुवंतिरे लोकोत्तमकार्तवीर्यनृपराज्यं२६ गोप्पुवं सद्गुणाभरणं श्रीकरणाग्रगण्यवेनिसिर्दप्पं जगं बाप्पेनल ॥ अनवद्योक्ति विनूतवाणिगुण्देशं चागमस्वप्नभूजनिकायकतिविस्म२७ यस्थितिकरं जैनक्रमांमोजपूजनमैंद्रवजविभ्रमश्रुतिलसत्संवादिये. ____दंदनिंद्यनयश्रीकरणाप्पणंगे दोरेयारी धात्रियो२८ क धार्मिकर् ॥ अचलितगुणनिलयं चतुरचतुर्मुखनेनिसुवप्पण वल्लभे सुप्रचुरविवेकास्पदचारुचरिते वागदेवियेंब पेसरिंदेसेवल ॥ वरवा२६ गदेविगमप्पणप्रभुगमादर् नंदनर् श्रीजिनेश्वरमार्गप्रतिमासक प्रविलसदनत्रयंगल विनेयर पूर्वार्जितपुण्यदिंदे निरुतं मेवेत. वेखते Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३१८ ] बेलगांवका लेख २३९ ३० सुस्थिरलक्ष्मीपतिबीच बैजवळ देवर् सज्जनानंदकर ॥ प्रणुतोद्यत्पात्रदानं व्रतगुणचरितं सज्जिनावासनिर्मापणवात्मोची ३१ शराज्याभ्युदयनयचयं तम्मोलोप्पुत्तिरल धारिणियोल विख्यातितिर्वरे सोगयिपरा गंडरादित्यसेनाग्रणी निबं कार्तवीर्यक्षि३२ तिपतिसचिवोत्तंसनी बीविराजं ॥ सुजनाकर्षणमात्मवल्लमवशीकारं सुहृन्मोहनं कुजनोच्चाटन मन्य मंत्रिचयमानस्तं मनं दुर्णयव निजमंत्रांगंगलिं रंजिपं विजयश्रीनिधि ३३ जविद्वेषण विवागे कार्तवीर्यं सचिव लक्ष्मीचणं बोचणं ॥ परवधुगनुमतिथं जैनरीय T लागदु पर - ३४ वर्तनेयोल जैनरोल धिकं बीचं तंदरिनृपभुज विजयलक्ष्मयं पतिगीवं ॥ हृदयाह्लादकनादनुर्विगिवनोर्व सर्वसंपद्गुणास्पदबीचानुजवैजणं वि ३५ भूतयो धर्मात्मजं मूर्तियोल मदनं चागदोल बांधवतनूजं जैन पूजाभिषेकदोलिंद्रं नयदोल बृहस्पति रणोद्यत् क्रीडेयोल राघवं ॥ विदि ३६ तजिनागमांत्रुनिधिवर्धनदोल निजवंशवारिजाभ्युदयविधान दोल् बुधमनोमिमतार्पणदोल कलंकमिल्लद हिमरोचि तापकृतियिल्लद भानुषिमू ३७ दवृत्तियिलिद सुरभूरुहं धरेयोलप्पसुतं बलदेवनोपुवं ॥ स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्दमहामण्डलेश्वरं कार्तवीर्यदेवं निजानु 1 , ३८ जयुवराजकुमारवीरमल्लिकार्जुनदेवं बेरसु वेणुग्रामस्कम्बावारदोल साम्राज्य पुखमनुभवि सुत्तमात्मीय श्रीकरणाप्र ३९ गण्यनुमखिलमंत्रिजनवरेण्यनुमध्य बीचिराजं माडिसिद Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० जैनशिलालेख-संग्रह [३:रजिनालयद श्रीशान्तिनाथदेवर नित्यपूजाभिषेकं मोदलाद धर्मकार्यनिमित्त४० मागि तज्जिनालयाचार्यश्रीशुभचंद्रभट्टारकदेवगें शकवर्षद ११२७ नेय रक्ताक्षिसंवत्सरद पुष्यसुद्धबिदिगे बड्डवारदोल आद संक्रमण४५ समयदोल नालछासिर्व महाजनंगल सहितमागि धारापूर्वकं माडि वेणुग्रामेयोल कोह स्थलवृत्ति अदर तेंक देसेय बजेय खारिगेयिं प४२ डुवल कोडगेय्य इप्पत्तनाल्कनेय हत्तियविल इरिसिलगट्टे सहितं मत्तरयदु ॥ आ वेणुग्रामलिल हिरिय मूडगेरिय पडवण बरियो. ४३ ल दुग्गियर तोकणन मनेयिं बडगल मनेयोंदु । पडवर्गेरिय पडुवण हरियोल मनेयोंदु । पडुवण गवनियल्लि मनेयोंदु । साल बसदियिं मूडण४४ कपिलेश्वरदेवर धवलारद कट्टिदिरोलमने मूरु। भानेयकेरेगे होद बट्टेयिं बडगल हृदोटं आ वेणुग्रामद कोलिं मत्तरेरड कम्मविन्नरेलपत्तारु । कणंबुरिंग५५ यालरिं पडुवण हगैरेयिं पडुवल केयमत्त हनेरडु। पडवण हट्टियल्लि तकगेरियोल भयगय्यगलदिप्पत्तोंदु कयनीलद मनेयोंदु ॥ मत्तं स्वस्त्य४६ नेकगुणगणालंकृतसत्यशौचाचारनयविनयसंपन्नरुमाश्रितजन प्रसन्नरं मघपटिपुरप्रतिष्ठितजिनमुनिजनोपदिष्टगुड्डशास्त्र क्रमप५७ रिपालितवीरवणंजुधर्मरूं समाचरितपुण्यकर्महें। पद्मावतीदेवी लब्धवरप्रसाद विहितसकलजनालादरुं। न्यायोपार्जनव्यवहारप्रशस्तर Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३१०] बेलगांवका लेख ४८ मल्लुंकिर्दडहस्तरमप्प समयचक्रवर्ति जयपति सेट्टि मुख्यमागि वेणुग्रामद स्थलद समस्तमुम्मुरिदंडंगलं कूडिम्सासिरद पणिग मोदलादु. ४९ भयनानादेशिमुम्मुरिदंडंगलं परशुराम नायक पोम्मण नायक अम्मुगि नायक प्रमुखरप्प समस्तलालव्यवहारिगलुं पडप नायक कों५. १ नंबि सेष्टि पोरेयच सेष्टि मोदलादेशला मलेयालव्यवहारिंगखें मतमा वेणुग्रामद स्थलद चिनगेयिकदवरं दूसिगरुं मुख्यमागुलिद परदरुं । तेलिगरुं । दिक५१ सालिगरुमितिवरेल्ल नेरेदा शान्तिनाथदेवर वसदिगे बिद्यायवेत दोडे बडगणिं बंद कुदुरेगे नेलमेटु हागवोंदु । तेकल नडेववकें सुंक हागनोंदु । मलेयालर ५२ कुदुरेगे हागोंदु । अरुवत्तयदेत्तु कोनंगलोलेनं पेरिदोडं सर्वाबाध परिहारं । चिनगेयिकद चीरक्के दूसिगवसरक्के । हत्तिवसरक्के । मणिगारवसरक्के । गंधवण५३ वसरक्के गंधवणिगरंगडिगे। अक्कसालेगमटक्के बेरेवेरे अरिसदेरे बरिसदेरे हिरिय हागोंदु । होरगणिं बंद सीरेय कडगेगे वीसवोंदु। होरगणिं बंद गंधवणके । कक्षमंडके। आ मं५४ डं गाणं तूकवरदु । हत्तिय मंडिगे तारं मरु आ पेरिंगे काणियोंदु । मत्तद मंदिगे मत्तवोवल्लं भा पेरिंगे भत्तवोर्मानं । अंकणथ मत्तं मारिदढा मत्तमोवल्लं । मत्त५५ वसरदंगडिगे मत्तं निचसोल्लगे। अकिवसरके अनिय मेलसिण हेरिंगे मेलसोर्मानं आ जवक्के भरेवानं । इंगिन पेटिगेगे इंगु गयाणं तूकदारु अलपरिसिनद जवलक्के भा म Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ३१८ ५६ ण्डं पलवस्तु आ हेरिंगे अल्लधरिसिनं पलं हन्तु । गाणक्के निचत्वेण्णेय । अडकेय हेरिंगे अडकेयिष्यत्तरदु था जबलक्के के हंनेर । एलेय हेरिंगेले नूरु हो २४२ " ५७ रंगेलेययवत्त । तेंगिन काय हेरिंगा कार्योंदु | ओलेय हेरिंगे ओलेय सूडेरडु आ होरेगे सूडोंदु । होरगणि बन्द बेल्लद मंडिगे बेल्लदच्च हदिनदु आ ५८ होरेगे अच्चोंदु | बालेय हेरिंगा कायारु आ होरेगे कायमूरु । नेल्लिय काय हेरिंगा काय्बल्लवोंदु । कर्विन हगरक्के ओदु कर्बु । बलहद हरिं ५९ मे बहवोपलं मत्तमा शान्तिनाथदेवर बसदिगे श्रीकार्तवीर्यदेवं कोट्ट अंगडि बडगगेरिय बडगण हरिय पडुवण कडेयोल राजवीथियिं मूडल नाल्कु ॥ ६० बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः, यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं ॥ अपि गंगादितीर्थेषु हन्तुर्गामथवा द्विजं निष्कृतिः स्यान्न देवस्व ६१ ब्रह्मस्वहरणे नृणां ॥ ओदविंदी धात्रियेक्लं मिगे पोगले चिरं वर्तत निस्याभ्युदय श्रीकात वीर्य क्षितिपविपुल साम्राज्यसन्तान मुर्वीविदि ६२ श्री बी चिराजप्रथितविमलशान्तीशरावासधर्मं सदलंकारस्फुटार्थावितपदकविकन्दर्प सुव्यकसूकं ॥ दोषव्यतीतमर्थ विशेषमिदेने पेलूदनोल्दु शासनमं पीयू ६३ समसूक्ति चातुर्माषाविचक्रवर्ति कविकन्दर्प ॥ श्रीमन्माधव चंद्रविद्यचक्रवतिवाक्सुधारसनाभ्युदितनिस्य साहित्य कमलवन मरालं बालचंद्रदेवं पेes शासनं Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३१९] बेलगांवका लेख २४३ [इस लेखका सारांश जै० शि० सं० भा० ३ में क्रमांक ४५३ में आ गया है । किन्तु उस समय मूल लेख प्राप्त नहीं हुआ था। पाठकोंकी सुविधाके लिए सारांशको मुख्य बातें यहां दोहरायी जाती हैं। इस लेखमें रट्ट वंशके राजा कार्तवीर्य ( चतुर्थ) तथा उनके बन्धु मल्लिकार्जुनका एवं उनके मन्त्री बीचणका उनके पूर्वजोंसहित परिचय दिया है। बीचणने बेलगांवमें रजिनालय स्थापित किया था। इस मन्दिरके प्रधान भट्टारक शुभचन्द्रको शक ११२७, रक्ताक्षी संवत्सरमें द्वितीय पौष शुक्ल २ को बेलगांवकी कुछ जमीन तथा कुछ करोंका उत्पन्न दान दिया गया था। इस शिलालेखके पाठको रचना माधवचन्द्र विद्यके शिष्य बालचन्द्र कविकन्दर्पने की थी। [ए० इं० १३ पृ० १५ ] ३१६ बेलगांव ( क्रमांक २ ) ( ब्रिटिश म्यूजियम ) शक ११२७ = सन् १२०१, कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्यादादामोघलांछनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ नमो वीतरागाय शान्तये ॥ २ श्राजिनसमयनवांबुधि राजिसुतिर्कमथनूर्जितामृतरत्नश्रीजननगृहं __ सत्वदयाजीवनमपरिमितगभीरम३ पारं ॥ जंबुद्वीपद भरतदोलंबुजभवसारसृष्टि कूडिमहीचक्रं बगे गोलिपुदु सकलजनांबकवनसुकृ४ तफलविलासनिवासं ॥ श्रीराष्ट्रकूटवंशसरोरुहवनराजहंसनाद नावं विस्तारियशोनिधि सेनमहीरमणं ५ संभृतामलोमयपक्षं । सिरियं निजानुजेयनादरदिं शशियित्त राजनादं नणपं धरियिसि मिकता सेनराजनो Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ जैनशिलालेख-संग्रह [३१९६ ल सेणसि राजनेनिपवनावं ॥ स्थिरतेयनुत्तंगतेयं धरिथिसिदा सेननृपवरोदयदोल भासुरतेजोनिधि पनाभिराम७ नेने कार्तवीर्यरवियुदयिसिदं ॥ विनरिपुप्रतिबिंबालि नितांतं कार्तवीर्यपदनखदोल चेल्वेनिकुं पूर्वपदाधिम तरनलिदु तन्मंत्रकृतिगे पदेदप्पुववोल ॥ स्थितिकारिणि विमल गुणान्विते पद्मलदेवि कार्तवीर्यधरित्रीपतिदयिते तो त्रिव६ गोभतिसाधिकेयपरनीतिविद्येवोलेसेवल ॥ जनियिसिदं समस्त गुणसंकुलसंस्तुतलक्ष्मभूमिपं जननुतकातवीर्य५. विभुगं सतिपालदेविगं सुतं जनियिपचोल जयन्तनमरप्रभुगं शचिगं मयूरवाहनमवंगवद्रिजेगमंगमवं हरिगं ११ रमाख्येग ॥ वनितेयरं मरुलचुव समाकृतियि सुमनोभिवृद्धियं जनियिप शीलदि कुवलयके विकासमनीव मयमेयिं जन१२ नयनके कामनो वसन्तनो चंद्रमनो दिटक्के पेलेने विभु लक्ष्मी देवनेसेवं कविसंकुलकल्पभूरुहं ॥ विजितरिपुराजराजाल्म१३ जे चंदलदेवि लक्ष्मनृपसतियसंवल विजितघटसर्पमदे विश्वजन स्तुतचारुचरितेयेने धारिणियोल ॥ अवरिवगं कलिकार्तवी१४ यनुं मल्लिकार्जुननुमादर प्रोद्भवसाम्राज्यरामाधिपयुवराज कुमाररारमजर धनतेजर ॥ जनमेल्लं पेञ्चे चल्लं १५ पेगेवरुरद सेल्लं जयश्रोगे नल्लं मनुमार्ग सत्रिवर्ग' तनगेसेये निसर्ग गृहीतारिदुर्ग सनयालापं १६ सुरूपं नेगल्दन तिदिलीपं जितारातिभूपं घनशौर्य क्षत्रवयं सुरकुजसदृशौदार्यनी कार्तवीर्य ॥ १७ श्रीमन्कुलाब्धिवर्धनसोमनेनिप्पुदयविभुविनात्मजनयुद्दामयशो निधि बीचं भूमाहितं सौम्यवृत्तियं तलेदेसेवं ॥ बीचं१८ गे सुकविसंस्तुतवाचंगादर सुतर् जिनेंद्रमतश्रीलोचनसंनिमरात्म हिताचरणर् नेगल्द पेर्मणनुमप्पण- ॥ तनगं Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ -३१९] बेलगांवका लेख १९ ब्रह्मगमुद्यचतुरते तनगं वाधिगं गुणपु चागं तनयं कर्णगमत्युश्चति सरि तनगं मेरुगं भूप्रियत्वं तनगं चंद्रगमहन्मवरू२. चितनगं वारिषेणंगमेंदेशनिशं मन्यालि बग्णिप्पुदु गुणिये नि सिर्दप्पणं प्रीतिथिदं ॥ श्रीकरणामणिगप्पंगाकलितलस२१ चरित्रे दयितेयलंकाराकोणे विनुते वरवर्णाकृति वागदेवियुचित नामदिनेसेवल ॥ धनलक्ष्मीपतिपांडुगं नेगल्द कु२२ न्तीदेविगं धर्मनंदन भीमार्जुनरादवोल तनुजरादर् विश्रुतर् कार्तवीर्यनृपश्रीकरणाप्पणंगमेसेवी वागदेविगं सारशौ२३ र्यनिधान विभुवीचवैजबलदेवर निर्जितारातिगल ॥ अनुपम विद्यगुद्धविनयं सिरिगोप्पुव चागदेलगे जौवनके विनिर्मला२४ चरणमायुगे विस्तृतकोर्ति वाक्प्रवर्तनेगे ऋतोक्ति तंनेसकर्दि सले मंडनमागे वर्तिपं जनपतिकार्तवीर्यसचिवैकशिरो२५ मणि बीचनुर्वियोल ॥ इदु तां श्रीकरणप्पणाग्रसुतसत्पुण्यप्रमा जालमिन्तिदु रट्ट क्षितिपालमंत्रिय रमास्मरावलोकांशु२६ मत्तिदु दल धार्मिकचक्रवतिय दयादुग्धाब्धिवीचिसमभ्युदयं तानेने बीचिराजन यशं पवित्तु मूलोकमं ॥ विनुतनिज२७ प्रमुगालोचनदाल नयशास्त्रदृष्टि दुर्धरसमावनियोल निशित. जयास्त्रं विनोददोल नर्मसचिवनेनिपं वैजं ॥ भरदि तंनं नो२८ डिद तरुणीजनवेरेद दिदं मत्तोरनीक्षिसदेरेयदेनल सुरूपन नतिशयवितरणं बलदेवं ॥ श्रीकार्तवीर्यनृपति२९ श्रीकरणाधिपन बीचणन गुरुकुलदोल लोकोत्तरसुचरित्रविवेकर मलधारिदेवमुनिपर् नेगल्दर् ॥ आ मुनिमुख्यर् शिष्यर् भूमीश्वर३० वंद्यरमलतरसिद्धांतश्रीमुखतिलकर् प्रथितोदामगुणर् नेगल्द नेमिचंद्रमुनींद्रर ॥ निरुपमतपोनिधानर धरणीश्वरजालमौ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ जैन शिलालेख संग्रह [ ३१९ ३१ rिaातिपदरें दुरुमुदद्धि कीर्तिपुदुवरे विभुशुभचंद्र देव भट्टारकरं ॥ स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्दमहामंड ३२ लेश्वरं कार्तवीर्यदेवं निजानुजयुवराजकुमार वीरमल्लिकार्जुन देवं बेरसु वेणुग्रामस्कंधावारदोल साम्राज्य सुखमनु ३३ भविसुत्तमात्मीयश्रीकरणाग्रगण्यनुमगण्य पुण्यनुमध्य बीचिराजं माडिसिद रहजिनालयद श्री शान्तिनाथदेवर अंगभोग३४ रंगमोगनित्याभिषेकाचंनत दावासखंड स्फुटितजीर्णोद्धरणाहारादिदाननिमित्तं श्रीमूल संघकोंडकु दान्वयदेशीयगणपु ३५ स्तकगच्छहनसोगप्रतिबद्धत जिनालयाचार्य श्रीशु मचंद्र मट्टारकदेवर्गे शकवर्षद ११२७ नेय रक्ताशिसंवत्सरद पु ३६ प्यशुद्ध विदिगे वडवारदोलाद संक्रमणसमय दोल कुंडिम्मासिरदोलगण कोरवल्लि गंपदण उंबरवाणियंब ग्रा ३७ ममं सर्वाबाधपरिहारमष्टभोगतेजस्वाम्यसहितं निधिनिक्षेप जलपाषाणरामादिसमन्वितं सर्वनमस्यं माडि स्वकीयसा ३८ म्राज्यसंतानयशोभिवृद्ध्यर्थमागि धारापूर्वकमतिप्रोतियं कोहनदर्के सीमे ऐशानिय कोणोल् नस्वल मोनेय ३९ ल्कि नट्ट कल्लल्लि तेंक मोगदे मूडण दिक्किनोल नह कल्लल्लिं मुंते नट्ट कल्ललिं मुंडे नगरकेरेयाल्कि मुंटे आनेयिय कोणोल् मू ४० लवल्लिबेलगोड मुग्गुड्डेयल्ल नट्ट कल्ललि पडुव मोगदे तेंकण दिक्किनोल बम्मणवाडकटुकवाडद मुग्गुड्डेय इंगुणिगेरे ४१ य केलगे नट्ट कल्लल्लिं मुंडे कुनिकिल गल्ललि नह कललिं मुंटे निरुतिय कोणोल कटुकवाडकरवसेय मुग्गुयलि नह कल्ललिं बडग मो १ ४२ गदे पडवण दिकिनोल मेलुगुंडिय करवसेय मुग्गुड्डेयलि नट्ट कल्ललि मुंडे केंदरिय मोंकिनोल नट्ट कल्लल्लिं मुंते वायुविन Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३१९] बेळगाँवका लेख ४३ कोणोल मेलगुंडिय नाविदिगेय मुग्गुड्डेय गोयटे गहिनाल्लि नह कल्ललिं मूड मोगदे बडगण दिक्किनोल सुण्णद कोडिय मेगणो टुगल्ल४४ लिं मुंडे सिंदिकेवेट्टद पडुवण मोनेल्लि नट्ट कल्लल्लिं मुंते हेरहिनकोडिय कल्लहुजिकेय मेल नह कल्लल्लिं मुंदे मालद मेल नह कल ॥ ४५ मतं नाडोल कोह स्थलवृत्ति कबूर काल्वल्लि मूलवल्लियोलरिं मूडल बेलकब्बेय केरिय तेकल केयकम्मवेंटु नूरु माकबूरो४६ महि गावूडन मनेयिं पडुवलरुगय्यगलदिप्पत्तोंदु कयनीलद मनेयोंदु ॥ कुलियवालिगेयोलरिंगीशान्य४७ दल्लि केनेश्वरदेवर केरिय मूडल कूडिय कोल मत्तरोंदु बसदियिं तेकल हसिकम्यगलदिपत्तोंदु कयनीलद मनेयोंदु ॥ ४८ हरिगब्बेयालूशेलरिं पडुवल हिंगलजेय बयिं बडगला कोल मत्तरोंदु बडगण केरियलि हभिर्कय्यगकदिर्पत्तु ४९ कयनीलद मनेयोंदु ॥ चच्छक्यिल्लि मूडण प्रभुमान्यदोलगे बोच्चुलगेरेयिं मूडल मुदुगोडेय बट्टेयिं तेंकल हारुव५० गोल मत्तर मूवतु सेटिगुत्त नागणन मनेयिं बडगल हषिर्क___व्यगलदिर्पत्तु कयनीलद मनेयोंदु ॥ बेलगलेय हल्लि हद्विगुं५१ तियोलूरि मूडणोत्तिं पटुवल् कम्म नालनूरबत्तु ॥ उच्चुगावेय हल्लि निटूरोलारिं नैर्ऋत्यदोल महाजनंगल कोट्ट५२ ग्गोडगेयं अप्पेय सावन्तनुबलियल्लि कोड केयं सीमे कंडेय केरेयि बगल हुलगन गुत्तिपि मूडल सावन्तन कोडगे५३ रिय तेकल सेल्लसरलिं पडुवल नट्ट कल् मूडगेरियल्लि दनगर मनेय स्थलदोल हदिना (ल्कु) गय्यड्डवने मुंतेरड गोहिगे। काणगावेया Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ जैनशिलालेख-संग्रह [३१९५४ लूरि नैऋत्यदल्लि एलेदोंट हारुगोल मत्सरोंदु कम्मवेलनूरस्वसेंटु तेकणि बंद मुगुलिय हल्लवदकें तेंकण हेले प५५ दुवला हल्लं बडगहरुबबाविय तोटं । मूडल मूलस्थानदेवर तोटं । भानेयकोणोरूल नडुवण देवालयद तोटं । आ ए. ५६ लेय तोरदि तेंकला हल्लदिं मूडल हृदोंट कम्मं नाल्नूरु ॥ ई ___ सीमेगलोलेल्ल नट्ट कलगल ॥ ओसेदी शासनमार्गदिं नृपरदार पालिप्परी ५७ धर्ममं निसदं तत्सुकृतात्मरात्मबलमित्रप्रेयसीगोत्रपुत्रसमृद्ध स्वदोलोंदि विश्वधरेयं निष्कंटक माडि संतोसदि राज्यमनप्पु केन्दु पडेव५८ दीर्घायुमं श्रीयुमं ॥ एनिसुं लोमदे शासनक्रममनावों मोरिदं तद्दुरात्मनसेव्याचरणान्वितं पलिगे पैशून्यक्के पापक्के भाजन नल्पा५६ यु रुजाविलं रिपुहृतात्मोर्वीतलं दुर्वलं धनदुःखास्पदनागलु नरकदोलोल काडुगु मूडुगुं ॥ सामान्योयं धर्मसे६० तुर्नृपाणां काले काले पालनीयो भवद्भिः। सर्वानेतान् माविनः पार्थिवेंद्रान् भूयो भूयो याचते रामभद्रः ॥ स्वदत्ता परदत्तां ६५ वा यो हरेत वसुन्धरां षष्ठिं वर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमिः ॥ प्रहतारिवजकार्तवीर्यसचिवं श्रीबीचिराजं यशोमहि६२ तं पेलिमेनल के शासनमनोर्षि बालचंद्र गुणाग्रहि विद्वजन संमतस्फुटपदार्थालंक्रियासंकुलावहमप्पन्तिरे पेल्दनिन्तु कवि कन्दपं बुधाधीश्वरं ॥ [इम लेखका साराश जै० शि० सं० भाग ३ में क्रमांक ४५४ में दिया है । किन्तु उस समय मूल लेख प्राप्त नहीं हो सका था । यह लेख भी पहले लेखके ही दिन अर्थात् पौष शुक्ल २ शक ११२७ को लिखा गया Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३२१] बालूरके लेख २४९ था। इसमें भी रट्ट वंशके राजा कार्तवीर्य ( चतुर्थ ) तथा उनके मन्त्री बीचणका उनके पूर्वजोंके साथ परिचय दिया है। बेलगांवमें बीचणके द्वारा स्थापित रजिनालयके अधिष्ठाता शुभचन्द्र भट्टारक थे। ये मूलसंघ - कोण्डकुन्दान्वय-देशीयगण-पुस्तकगच्छके मलधारिदेवके शिष्य नेमिचन्द्रके शिष्य थे। इन्हे कूण्डि प्रदेशके कोरवल्लि विभागका उम्बरवाणि ग्राम दान दिया गया था। [ए० ई० १३ पृ. २७] ३२० बालूर ( धारवाड, मैसूर) कन्नड, राज्यवर्ष १६-सन् १२०५ [ इस लेखमे होयसल राजा वीरबल्लाल २ के समय राज्यवर्ष १६, क्रोधन संवत्सरमें आषाढ़ ३० ३ बुधवारके दिन मेघचन्द्रभट्टारकके शिष्य कसप गावुण्डकी इस निसिधिको स्थापनाका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० २१९] ३२१ बालूर ( धारवाड, मैसूर ) कन्नड, १३वीं सदी [यह निसिधिलेख बहुत घिस गया है । 'श्रीवीतराग' इतने अक्षर पढ़े जा सकते है।] [रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० २१४ ] Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० जैन शिलालेख संग्रह ३२२ बेलगामे (मैसूर) कन्नड, सन् १२०६ १ स्वस्ति श्रीमत् वीरबल्लालदेववर्षद १६ नेय क्षयसंव२ सरद माद्रपद व ११ बृहस्पतिवारदन्दु कमलसेन३ देवर गुड्डि कौव्वे समाधिविधियि मुडिपि सुगति४ य प्राप्तेयादल || श्रीवातरागाय नमो [ इस लेखमे होयसल राजा वीरबल्लालके १६ वें वर्ष क्षयसंवत्सरके भाद्रपद कृष्णपक्ष मे ११ को कमलसेनकी शिष्या जकौव्वेके समाधिमरणका उल्लेख है । ] - [ ३२२ ३२३ हंचि ( मैसूर ) सन् १२०७, कन्नड [ यह लेख सन् १२०७ का है । होयसल राजा वीरबल्लालके राज्यमें नागरखण्ड प्रदेश के बान्धवनगरमे कदम्बवंशीय सामन्त बोप्पके पुत्र ब्रह्मका शासन चल रहा था । उस समय सावन्त मुद्दने मागुण्डिमें एक बसदि बनवायी तथा उसे कुछ भूमि दान दी । यह दान मूलसंघ-काणूर गण- तिंत्रिणीक गच्छके अनन्तकोति भट्टारकको दिया गया था । उनकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है - गोवर्धन सैद्धान्ति मेघनन्दि सैद्धान्ति दिवाकर सिद्धान्तदेवपद्मनन्दि सैद्धान्त मुनिचन्द्र सैद्धान्त - भानुकोति सैद्धान्त - अनन्तकोति भट्टारक | मुद्दकी प्रशंसा विस्तारसे की है तथा उसे रेचचमूपतिके समान कोप्पण तोर्थका रक्षक कहा है । ] [ ए. रि. मै. १९११ पृ० ४६ ] Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३२६ ] आनन्दमंगलम् आदिके लेख ३२४ आनन्दमंगलम् ( चिंगलपेट, मद्रास ) राज्यवर्ष ३८ = सन् १२१६, तमिल २५३ [ इस लेखमे विर्णयाभशूर कुरवडिगलके शिष्य वर्धमानपेरियडिगल्द्वारा जिनगिरिपल्लिमें एक श्रावकको आहारदान देनेके लिए ५ कलंजु ( सुवर्णमुद्रा ) अर्पण करनेका उल्लेख । यह लेख चोल राजा ( कुलोत्तु - ग३ ) मदिरैकोण्ड परकेसरिवर्मन्‌के ३८वें वर्षका है । ] [ रि. सा. ए. १९२२-२३ क्र. ४३० पृ. २५ ] ३२५ मनगुन्दि ( धारवाड - मंसूर ) शक ११३८-४० = सन् १२१६-१८, कन्नड [ यह लेख कदम्ब राजा जयकेशि तथा वज्रदेवके समय चैत्र व. ७, शक ११३८ तथा कार्तिक शु. ८, शक १९४० इन तिथियोंका है। इसमे मणिगुन्दिके जिनालयके जीर्णोद्धार के लिए कई भव्य पुरुषों द्वारा दान दिये जानेका उल्लेख है तथा वहाँके जैन आचार्योंकी नामावली दी है । ] [रि. सा. ए. १९२५-२६ क्र ४३९ पृ. ७५ ] ३२६ कंदगल ( बिजापूर, मैसूर ) राज्यवर्ष (२) १ = सन् १२३०, कन्नड [ यह लेख यादव राजा सिहणदेवके राज्यवर्ष (२) १, विक्रम संवत्सर ज्येष्ठ अमावास्याका है । इसमे मूलसंघ - काणूरगणके सकलचन्द्र भट्टारककी शिष्या नागसिरियव्वे द्वारा निर्मित पार्श्वनाथ बसदिके लिए भूमि आदिके दानका उल्लेख है । ] [ रि. सा. ए. १९२८-२९ क्र. ई ५० पृ. ४५ ] Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ जैनशिलालेख-संग्रह ३२७ हलेबीड ( मैसूर ) शक ११५७ = सन् १२३६, संस्कृत-कन्नड १ श्रीमद्देवासुराहीन्द्रपूजितश्चांगजन्मजिद् देवः श्री. २ वीरतीर्थेशः पायाद मध्यजनबजान् ॥ (१) श्रीमल्लोकैकविख्या३ तमूलसंघो विराजते कोण्डकुन्दान्वयस्तत्र देशीयाख्यगणा४ ग्रणीः ॥ (२) श्रावोरनन्दिसिद्धान्नचक्रवत्यनुजो महान् श्रीमदबा५ हुबली नाम मुनिः सिद्धान्तपारगः ॥ (३) सकलज्ञ प्रतिपादितोमयनया६ मिज्ञानसंपन्नको मदनोद्यदवदावतोयदविभुः सद्धर्मरक्षामणिः दलिता७ ष्टादशसत्पदार्थनिपुणः षड्व्य वेदो जयत्यखिलो/नुतचारु ___ बाहुबलिसिद्धान्तीश्वरः८ सन्मुनिः ॥ (५) तस्याप्रशिष्योखिलशब्दशास्त्रपारंगमः स्वात्म सुखानुवर्ती । स्याद्वादविद्याकुश९ लो विभाति कामाम्बुजेन्दुः सकलेन्दुयोगी ॥ (५) अहणंदिमुनी न्द्राणां चारित्रं विस्मयावहं । १० तेषां प्रणयिनी वाणी तस्यास्तन्मुनयः प्रियाः ॥ (६) जल्प वितण्डकथासु च शब्दाग५१ मजिनमुखोत्थपरमागमयोरुभिद्रं यश्चित्तं स विद्यारुहोहणन्दि१२ मुनिः ॥ (७) एष श्रुतगुरुय॑स्य सकलेन्दुमहावतेः । तस्य विद्यामहाप्रौढिर्मा१३ शेवण्यते कथं । (८) इत्थंभूतो यमीशो वरजिनमुनिसद्वन्द मध्ये विराजत् षड्विंशत्यधि Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३२७ ] हलेबोडका लेख २५३ १४ तोरूर्जितवस्तिपरः सप्ततरथप्रवेदी । प्रायश्चित्तादिषट्क द्विगुणित सुतपाश्रयं १५ वर्यप्रसिद्धो द्वात्रिंशद्भागसद्भावनयुत सकलेन्दु तन्द्रो विभाति ॥ (९) एवं कतिपय १६ काळे प्रवर्तिते सकल चन्द्रमु - १७ निरायाति ( ॥ १०) सत्पाण्ड्यदेशमध्यस्थित बिलिचाग्राम चैत्यगृहमासाद्य ज्ञात्वा स्वान्त्यं ग्रामनगरखेडेषु तत्रत्या मज्योत्पलविकाशयन् १८ त्रिदिनादनशन विधिना त्रिविष्टपं संप्राप्तः ॥ ( ११ ) सप्ताग्रबाणेन्दुशशिप्रमाब्दशकाख्यके म १९ न्मथवत्सरे च सत्फाल्गुने शुद्धतृतीय केन्दुवारेगमत् श्रीसकलेन्दुदेव: ॥ (१२) अरुहं नमः २० श्रीमद्वीरणन्दि सिद्धान्त चक्रवर्तिगल सधर्मस्य बाहुबलिसिद्धान्तिदेवरे दीक्षा २१ गुरुगल श्रीमदर्हणन्दित्रैविद्यदेवर श्रुतगुरुगलुमप्प श्रीस२२ कलचन्द्र भट्टारकदेवर्गे श्रीमद्रराजधानि दोरसमुद्रद समस्तमन्य२३ नगरंगल् परोक्षविनयार्थवागि माडिसिद मंगलमहाश्रीश्री [ यह निसिधिलेख राजधानी दोरसमुद्रके नागरिकोंने सकलचन्द्र भट्टारकके समाधिमरणकी स्मृति में स्थापित किया था । वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती गुरुबन्धु बाहुबलि सिद्धान्तीसे दीक्षा लेकर अर्हन्दि मुनीन्द्रके पास सकलचन्द्रने शास्त्राध्ययन किया था। उनकी मृत्यु पाण्ड्य देशके बिलिचा ग्राममें फाल्गुन शु० ३, सोमवार शक १९५७ मन्मथ संवत्सरके दिन हुई थी । वे मूलसंघ - कोण्डकुन्दान्वयदेशीयगणके आचार्य थे । ] [ ए०रि० मं० १९२९ पृ० ७४ ] Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ जैनशिलालेख संग्रह [ ३२८३२८ हूविनसिगलि (धारवाड, मैसूर ) शक ११ (६) ७ = सन् १२४५, कमड [ यह लेख यादव राजा सिंघणदेवके समय चैत्र शु० ५ रविवार, विरोधकृत् संवत्सर, शक ११(६)७ के दिन लिखा गया है। इसमे एक श्राविका-द्वारा सिग्गलि ग्राममे चैत्यालय बनवानेका उल्लेख है। इस ब्रसदिके शान्तिनाथदेवके लिए महाप्रधान सर्वाधिकारि प्रभाकरदेवने तथा पुलिगेरेके मन्नेय एवं आठ हिटुओंने कुछ भूमि दान दी थी।] [रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र. २९६ ] ३२४ कलकेरि ( बिजापुर, मैसूर ) शक ११६७ = सन् :२४५, कन्नड [ इस लेखमे यादव राजा सिघणदेवके समय भाद्रपद शु० ४ रविवार शक ११६७ क्रोधि संवत्सरके दिन महाप्रधान मल्ल, वाच तथा पायिसेट्टिद्वारा निर्मित अनन्ततीर्थकर मन्दिरके लिए कलुकेरके महाजनों द्वारा भूमि आदि दान देनेका उल्लेख है । यह मन्दिर कमलसेन मुनिके उपदेशसे बनवाया गया था।] [रि० सा० ए० १९३६-३७ क्र० ई ५३ पृ० १८६ ] ३३० लक्ष्मेश्वर ( मैसूर ) शक ११६६ = सन् १२४७, कन्नड [ यह लेख यादव राजा सिंहणके ममय ज्येष्ठ अमावास्या, शक ११६९, प्लवंग संवत्सरके दिन लिखा गया है। इसमें महाप्रधान बीचिराजकी कन्या राजलदेवी-द्वारा पुरिकरनगरके श्रीविजयजिनालयके लिए कुछ भूमि तथा द्रव्य दान दिये जानेका उल्लेख है। इनके गुरु पद्मसेन मुनि थे।] [रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र० ई० ९ पृ० १६१] Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३३३ ] शिंगिकुलम् आदिके लेख २५५ ३३१-३३२ शिगिकुलम् ( तिन्नेवेली मद्रास ) सन् १२५३, तमिल [ये दो लेख भगवती मन्दिरके दीवारोंपर खुदे हैं। पहलेकी तिथि मारवर्मन् सुन्दर पाण्ड्यदेव (द्वितीय ) के राज्यवर्ष १५ का ३६०वां दिन यह दी है तथा दूसरेकी तिथि कोणेरिणमकोण्डानके राज्यवर्ष १५ का ३८८वां दिन यह दो है। पहलेमे जो राजाज्ञा है उसीका पालन होनेका वर्णन दूसरे लेख में है। इस आज्ञाके अनुसार राजमन्त्री अण्णन् तमिलप्पलवरैयनकी प्रार्थनापर राजा-द्वारा स्थानीय जिनमन्दिरको भूमिको करमुक्त किया गया था। यह भूमि पुगलोकरनाथनल्लरनिवासी मदि. सागरन् आदिभट्टारकन्-द्वारा मन्दिरको अर्पित की गयी थी। मन्दिरका नाम न्यायपरिपालपेरुम्बल्लि तथा उसमें स्थित जिनमूर्तिका नाम एणक्कुनल्लनायकर था । मन्दिर जिस पहाडीपर था उसको जिनगिरिमल यह नाम दिया गया था। वर्तमान समयमे इस मन्दिरकी जिनमूति गौतम ऋषिके नामसे पूजी जाती है । ] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० २६९-७० पृ० १०५ ] ३३३ सहेट महेट ( उत्तरप्रदेश) संवत् ११७७ = सन् १२५५, संस्कृत नागरी [ तीन चरणपादुकाओके एक पट्टपर यह लेख है। इसके मध्यमे स्वत् ११७७ ऐसा निर्माणकालका उल्लेख है । लेखका अन्त 'प्रणमति नित्यं' इन अक्षरोंसे हुआ है । अतः यह जैन लेख प्रतीत होता है । ] [रि० आ० स० १९१०-११ पृ० १८ ] Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह ३३४ बिजापूर (मैसूर) शक ११७९ = सन् १२५७, कन्नड [ यह लेख करीमुद्दोनकी मसजिदमे पाया गया । यह मसजिद एक जैन मन्दिरके स्थानपर बनवायी गयी थी । इस मन्दिरके आचार्य कर सिदेवके लिए यादव राजा कन्हरदेव के समय शक ११७९ मे कुछ भूमि दान दिये जानेका इस लेखमे निर्देश है । ] [ रि० आ० स० १९३०-३४ पृ० २२४ ] २५६ ३३५ बस्तिहल्लि ( मैसूर ) सन् १२५७, कन्नड [ यह मूर्तिलेख होयसल राजा नरसिह के समय सन् १२५७ का है । इस समय श्रीकरणद मधुकण्णके पुत्र विजयण्ण तथा दोरसमुद्रके अन्य जैनोंने मूलसंघ - देसिगण हनसोगे शाखाके शान्तिनाथ मन्दिरका निर्माण किया था । इस मन्दिरके लिए हीरगुप्पे नामक ग्राम नयकीर्ति सिद्धान्तचक्रवर्तिको अर्पित किया गया था । ] [ ३३४ ३३६ कलकेरि (बिजापूर, मैसूर ) राज्यवर्ष ४ = [ ए०रि० मं० १९११ पृ० ४९ ] • सन् १२६०, कन्नड [ यह लेख यादव राजा कन्नरदेवके राज्यवर्ष ४ साधारण संवत्सरमे लिखा गया था । इसमें अनन्ततीर्थकरमन्दिरके लिए रंगरस-द्वारा-पुत्र प्राप्ति के उपलक्ष्य में कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । करसंग्राहक सर्वदेव नायक द्वारा भी इस समय कुछ दान दिया गया था । ] [रि० स० ए० १९३६-३७ क्र० ई० ५४ १० १८६ ] Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१३५ ] नेगलूर मादिके कैवा ३३७ नेगलूर ( धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष (६) = सन् १२६२, कवाड [ यह लेख यादव राजा कन्धरदेवके राज्यवर्ष (६) विरोधी संवत्सर में भाद्रपद शु० १४, गुरुवारको लिखा गया था। इसमें कुलचन्द्रभट्टारकके शिष्य सकलचन्द्र भट्टारक के समाधिमरणका उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई० १६२ १० १०७] ३३८ बालूर ( धारवाड, मैसूर ) शक ११८४ = सन् १२६२, कन्नड १७ ३५७ [ इस निसिधि लेखमें कहा गया है कि सेंबुरके कावय्यकी माता deart यह निसिध स्थापित की। लेखकी तिथि पौष शु० ११, सोमवार, शक ११८४, दुर्मति संवत्सर ऐसी दी है । ] [ रि० ६० ए० १९४५-४६ क्र० २१८ ] ३३६ बालूर ( धारवाड, मैसूर ) १३वीं सदी, क [ इस लेखमें यादव राजा कन्धरदेवके राज्यकालमें नल संवत्सरके पौष मासमे गुरुवारके दिन इस निसिधिके स्थापित किये जानेका उल्लेख है । लेख बहुत घिस गया है । ] [ रि० ६० ए० १९४५-४६ क्र० २१७ ] Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ जैमशिलालेख संग्रह [ ३४० ३४०-३४१ हत्तिमत्तर ( धारवाड, मंसूर ) राज्यवर्ष ५ तथा १ = सन् १२६५ तथा १२६९, कनड [ ये दो लेख हैं । पहला लेख यादव राजा महादेवके राज्यवर्ष ५ में कार्तिक व० १३, बुधवार, क्रोधन संवत्सर के दिन सेवयर जक्कयकी पत्नी मादके समाधिमरणका स्मारक है । दूसरेमे महादेवके राज्यवर्ष ९ में हत्तियमत्तूरकी बसदिके आचार्यके समाधिमरणका उल्लेख है । (न) न्दिभट्टारकदेवका भी उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९३२-३३ क्र० ई० ६८-६९ पृ० ९८ ] ३४२ इलेबीड (मैसूर) सन् १२.५, कड [ यह लेख होयसल राजा नरसिंह ३ के समय सन् १२६५ का है । इस वर्ष मे राजा द्वारा त्रिकूट रत्नत्रय शान्तिनाथ जिनालयके लिए माघनन्दि सैद्धान्तिको कल्लनगेरे ग्राम दान दिया गया था । माघनन्दिकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है - मूलसंघ - नन्दिसंघ - बलात्कारगणके वर्धमानमुनिजो होयसल राजाओके गुरु थे, श्रीधर त्रैविद्य-पद्यनन्दित्रैविद्य वासुपूज्य सैद्धान्तिशुभचन्द्र भट्टारक- अभयनन्दिभट्टारक - अरुहणंदि सिद्धान्ति, देवचन्द्र, अष्टोपवासि कनकचन्द्र, नयकीर्ति, मासोपवासि रविचन्द्र, हरियनन्दि, श्रुतकीर्ति विद्य, वीरनन्दि सिद्धान्ति, गण्डविमुक्त, नेमिचन्द्रभट्टारक, गुणचन्द्र, जिनचन्द्र, वर्धमान, श्रीधर, वासुपूज्य, विद्यानन्द स्वामि, कटकोपाध्याय श्रुतकीर्ति, वादिविश्वासघातक मलेयालपाण्डयदेव, नेमिचन्द्र, मध्याह्नकल्पवृक्ष वासुपूज्य । श्रीषरदेव - वासुपूज्य - उदयेन्दु - कुमुदेन्दु - माघनन्दि । माघनन्दिके चार Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३४५] मणिगेरि पादिके लेख ग्रन्थोंका उल्लेख किया है - सिद्धान्तसार, श्रावकाचारसार, पदार्थसार तथा शास्त्रसार समुच्चय । इनके शिष्य कुमुदचन्द्र पण्डित थे। अन्तमें इस दानके सहायकके रूपमें महाप्रधान सोमेय दण्डनायकका उल्लेख किया है। [ए. रि० मै० १९११ पृ० ४८ ] ३४३ अण्णिगेरि (धारवाड, मैसूर ) शक ११८९ = सन् १२६७, काड [ इस लेखमें चैत्र व० ४, मंगलवार, शक ११८९, प्रभव संवत्सरके दिन मूलसंघ-कोण्डकुन्दान्वयके सोमदेवाचार्यकी शिष्या आकलपे अब्वेके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ ३० ई २०४ पृ० ५३ ] ३४४ संगूर (धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष १ = सन् १२६९, काड [ इस लेखमें यादव राजा महादेवके राज्यवर्ष ९, विभव संवत्सरमें नन्दिभट्टारकके शिष्य नयकीति भट्टारकके शिष्य नालप्रभु गंगर सावन्त सोवके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई १६८ पृ० १०७ ] ३४५ हुलिकेरे ( मैसूर ) सन् १२७१, कार १ स्वस्ति प्रजोत्पत्तिसंवत्सरद चैत्र सुनि दंदु श्रीमत् प्रतापवीर होम्सल श्रीवीरनारसिं....... Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३० जैन शिका लेख संग्रह [ ३४६ २ वादुनं सोमेयदण्णायकरु मेय्वुन बाचेयदृण्णायकरु हॉकंवद बसदि जीर्णवा... ३ दण्णा करुं जीर्णोद्धारखं माडिसिके य निडिसिद्रु - [ इस लेखमे होयसल राजा नरसिंहके शासनकाल में चैत्र शु. १, गुरुवार, प्रजोत्पत्ति संवत्सर के दिन होंकुंदकी बसदिके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । यह कार्य सोमेय दण्डनायकके बहनोई बाचेय दण्डनायक द्वारा किया गया था । लिपि १३वीं सदीकी है । संवत्सर नामानुसार यह वर्ष सन् १२७१ होगा जब नरसिंह तृतीयका राज्य चल रहा था । ) [ ए०रि० मे १९३७. पृ० १८७ ] ३४६ मुलगुन्द ( धारवाड, मैसूर ) शक ११९७ = सन् ११७५, कवड [ यह लेख वैशाख व. १ (३), गुरुवार, शक १९९७ युव संवत्सरका है तथा पार्श्वनाथ सदिके भीतरी दीवालमें लगा है। इसमें सरटूरुके तिलकरसके मन्त्री देवण्णके पुत्र अमृतयके समाधिमरणका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९२६-२७ क्र० ई ९१ पृ० ८ ] ३४७ अमरापुरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) शक १२०० = सन् १२७८, कचर [ यह लेख निडुगल्लुके महामण्डलेश्वर इरुगोण चोल महाराजके समय आषाढ शु० ५ सोमवार शक १२००, ईश्वर संवत्सरका है । इसमें मूलसंघ-देशियगण के त्रिभत राउलके शिष्य बालेन्दु मलधारिदेवके उपदेशसे संगयन बोम्मिसेट्टि तथा मेलब्वेके पुत्र मल्लिसेट्टिद्वारा Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३५.] इन्दौर भादिके लेख २१. तैलंगेरैके प्रसन्नपार्श्वदेवके लिए २००० वृक्षोंके उद्यानके दानका वर्णन है । इस मन्दिरका उपाध्याय जैन ब्राह्मण चल्लपिल्ले था जो पाण्डयप्रदेशके भुवलोकनाथनल्लूरका निवासी था।] [रि० सा० ए० १९१६-१७ ० ४० पृ०७४ ] ३४८ इन्दौर म्युजियम ( मध्यप्रदेश) संस्कृत नागरी, सं० १३३४ - सन् १२७८ [इस लेखमें पण्डिताचार्य रत्नकीति-द्वारा एक मूर्ति सं० १३३४ में ८ स्थापित किये जानेका उल्लेख है। [रि० इ० ए० १९५०-५१ ऋ० १२३ ] ३४६ एटा ( उत्तरप्रदेश) संवत् १३३५ = सन् १२७८, संस्कृत-नागरी [ मूलसंघके गोललतक कुलके कुछ साधुओं द्वारा संवत् १३३५ में तीन मूर्तियां स्थापित की गयी थी ऐसा इस लेखमें वर्णन है।] [रि० आ० स० १९२३-२४ पृ० ९२ ] कडकोल ( धारवाड, मैसूर ) शक १२०१=सन् १२८०, कबड [इस लेखमें मूलसंघके पपसेन भट्टारकके शिष्य सावन्त सिरियम गौडकी पत्नी चण्डिगौडिके समाधिमरणका तथा कई गौड़ों-द्वारा एक बसदिको दान दिये जानेका उल्लेख है । तिथि भाद्रपद शु० ६, सोमवार, शक १२०१, प्रमाथि संवत्सर ऐसी है। ] [रि० सा० ए० १९३३-३४ ० ई ५१ पृ० १२३ ] Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ जैन शिलालेख संग्रह ३५१ सण्णमल्लीपुर ( मैसूर ) शक १२०७ = सन् १२८५, कन्नड १ स्वस्ति श्रीप्रतापचक्रवर्ति ३ हदेवरसरु पृथिवि ५ शक वरिष १२०७ नेय ●ण ९ ... गरबेलु ११ ...मतरु १३ 'कोडगे" १५ तदने...सा १७ ...सिद सासन ॥ १९ *****.. .....भाऊ [ ३५१ २ होइसल वीर नरसिं ४ राज्यं गेयुतिरल ६ सुभक्रितुसंवत्सरद पावगु .... १० लबुं १२ हि श्रातन तम्म आल १४ ...हदु होलवेरड अन्तु १६ यिर मत्सरु बिह १८ "दक्षिण तगडूरलि २० (ता) यूर गुलियपुर २१ ...यपण भल २२ ''''नागगावुड ॥ वीतराग [ यह लेख होयसल राजा नरसिंह ३ के समय शक १२०७ के फाल्गुन में लिखा गया था। किसी हेग्गडे-द्वारा नागगावुडको तगडूर, तायूर तथा गुलियपुर ग्रामकी कुछ भूमि करमुक्त दी जानेका इसमें वर्णन है । अन्तमें वीतराग यह मुद्रा है इससे दानदाता जैन प्रतीत होते हैं । ] [ ए०रि० मै ० १९३० पू० १८४ ] Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२५५] ताडकोड भादिके केस ३५२-३५३ ताडकोड (धारवाड, मैसूर) राज्यवर्ष १४ - सन् १२८५, कार [ यह लेख यादव राजा रामचन्द्रके राज्यवर्ष १४, चित्रभानु संवत्सरका है। इस समय कन्नरदेवकी रानीकी आज्ञासे सर्वाधिकारी मायदेवने एक जिनमन्दिर बनवाया था। यहींके अन्य लेखमें चन्द्रनाथको नमस्कार कर बालचन्द्रके शिष्य श्रीवासुपूज्यका उल्लेख किया है । ] [रि० सा० ए० १९२५-२६ क्र० ४४४-४४५ पृ० ७६ ] कलकेरी ( मैसूर ) राज्यवर्ष १८-सन् १२८९, कन्नड [ यह लेख यादव राजा रामदेवके राज्यवर्ष १८ में पौष शु० ८, वड्डवार, (सर्व)धारि संवत्सरके दिन लिखा गया था। इसमें नागेयिसेट्रि और मादग्वेके पुत्र मादैय्यके समाधिमरणका उल्लेख है। इनके गुरु समन्तभद्रदेव थे।] [रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र० ई० ७२ पृ० १६७ ] डम्बल (जि. धारवाड, मैसूर ) शक १.११%सन् १२९०, कन्नर [ यह लेख रामदेव ( यादव ) के समयका है। धर्मवोललके महानाड़के १६ प्रतिनिधि तथा नाडुके ८ प्रतिनिधि एवं साल्ववीर चवुण्डके छोटे बन्धु सप्तरस-द्वारा नगर जिनालयके लिए कुछ करोंका उत्पन्न दान देनेका इसमें उल्लेख है। इसी मन्दिरको अय्वत्तोक्कल तथा उगुरु ३००-द्वारा कुछ तेल वगैरहका दान भी दिया गया था। तिथि पौष शु० २, रविवार, शक १२११, सर्वधारी संवत्सर ऐसी दी है । ] [रि० सा० ए० १९४४-४५ क्र० एफ ६३] Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ जैनशिलालेख-संग्रह पोन्नूर ( उ० अर्काट, मद्रास) राज्यवर्ष = सन् १२९०, तमिल [ यह लेख स्थानीय जैन मन्दिरमे है। मारवर्मन् विक्रमपाण्डयके राज्यवर्ष ७ में विडालपरके नाट्टवर् ( ग्रामप्रमुखों )-द्वारा आदिनाथके पल्लिविलागम्में रहनेवाले लोगोंसे प्राप्त करोंका उत्पन्न इस जिनमन्दिरमें पूजा आदिके लिए अर्पण किए जानेका इसमे उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ४१५ पृ० ४० ] हुमच ( मैसूर ) शक १२१७% सन् १२९५, कमर १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछ२ नं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशास३ नं स्वस्ति श्रीमतु सकवर्ष १२१७ नेय मनु४ मथसंवत्सरद चैत्र सु पाडिव बृहस्प५ तिवारदंदु श्रीमसिद्धान्तयोगी६ द्रपादपंकजभ्रमर बम्मगवुड म७हापुरुषो 'गतो सिद्धिं समाधिना। ८ नमनार्ण "गुणसेनमुनिश्वरं ९ . द्राविडान्वय १. मौलिना [ इस निसिधिलेखमें श्रीमत् सिद्धान्त योगीन्द्रके शिष्य बम्मगवुडके समाधिमरणका उल्लेख है जो चैत्र शु० १, बृहस्पतिवार, शक १२१७ मन्मथसंवत्सरके दिन हुआ था। लेखके अन्तमें द्राविड अन्वयके गुणसेन मुनीश्वरका नाम भी आता है।] [ए. रि० मै० १९३४ पृ० १७७ ] Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कश्मेश्वर आदिके लेख ३४८ लक्ष्मेश्वर (मैसूर) शक १२१७ = सन् १२१५, संस्कृत-कवड [ इस लेखमें पुरिकरके शान्तिनाथ मन्दिरके लिए सोमय-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । तिथि भाद्रपद शु० ५, सोमवार, शक १२१७ ऐसी दी है । ] [ रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई २८ पृ० १६३ ] - ३६० ] २६५ ३५६ मनेर मसलवाड ( बेल्लारी, मैसूर ) शक १२१९ = सन् १२९७, कन्नड [ यह लेख यादव राजा रामचन्द्रदेव के समय मार्गशिर शु० ५ गुरुवार शक १२१९ हेमलम्बि संवत्सरका है । इसमें महामण्डलेश्वर भैरवदेवरस - द्वारा मूलसंघ - देसिगण नेमिचन्द्र राउलके शिष्य विनयचन्द्रदेवको भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान भोसलेवाडके जिनमन्दिर के लिए था जिसका जीर्णोद्धार महामण्डलेश्वर सालेवेय तिकमदेव राणेयके मन्त्री सावन्त fuses पुत्र केशव पण्डित द्वारा किया गया था । ] [रि० स० ए० १९१८-१९ क्र० २५६ पृ० २२ ] ३६० कोलि (बेल्लारी, मैसूर ) १३वीं सदी, कन्नड [ इस लेखमें होयसल राजा प्रतापचक्रवति रामनाथदेव - द्वारा युव कोगलिके चेनपार्श्वजिनमन्दिरके लिए सुवर्णदान देनेका संवत्सर मे उल्लेख है । ] [ इ० म० बेल्लारी १९२ ] Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ ● बैन शिलालेख संग्रह ३६१-३६७ विप्यगिरि ( जि० बेल्लारी, मैसूर ) १३वीं सदी, कड [ ये छह लेख हैं । मूलसंघ-देशीयगण - कोण्डकुन्दान्वय-पोस्तकमच्छ के haiदि भटारके शिष्योंके समाधिमरणका इनमें उल्लेख है । इन शिष्योंके नाम हैं—गोपरस, तथा उसकी पत्नी हालौवे, मादलदेवी, तिप्पयकी पत्नी जाकवे, नागलदेवी, मूलिग तिप्पय, बैतलेय बोम्मिसेट्टि तथा उसकी पत्नी and | लिपिके अनुसार ये लेख १३वीं सदी के प्रतीत होते हैं। इसी समयके एक और लेखमें माघवचंद्र भट्टारकदेवके शिष्य परिसयके समाधिमरणका उल्लेख है । ] 1 [ ३६१ (रि० स० ए० १९४४-४५ ई ६३-७२ ) ३६८ अदरगुचि ( जि० धारवाड, मैसूर ) १३वीं सदी, कन्नड [ यह लेख लिपिपर-से १३वीं सदीका प्रतीत होता है । यापनीय संघ - काडूरगणकी एक बसदिके लिए दी हुई जमीनकी सीमा बतलानेवाला यह पत्थर है । यह वसदि उच्छंगि नगरमें थी । यह दान अदिर्गुण्टेके गौण्ड और स्थानिकों द्वारा दिया गया था । ] ( रि० स० ए० १९४१-४२ ई० क्र० ३ पृ० २५५ ) ३६६ बसवपट्टण ( हासन, मैसूर ) १३वीं सदी कन्नड १ श्रीमूल संघ देसियगण पोस्तकगच्छ २ कोंडकुंदान्वयद इंगलेश्वरद ब Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३७.] रस्नापुरिभादिके लेख ३ लिय श्रीश्रुतकीर्तिदेवर गुगल कोंग नाड श्रीकरणद कावण्णगल मक्क५ लु नाकण्ण होनण्णंगलु माडिसिद श्री६ नेमिनाथस्वामिगल प्रतिमे मंग७ ल महा श्री श्री श्री [ इस लेखमें श्रीकरणद कावण्णके पुत्र नाकण्ण तथा होनण्ण-द्वारा, जो कोंगु प्रदेशके निवासी थे, नेमिनाथकी इस मूर्तिके स्थापित किये जानेका उल्लेख है। ये दोनों मूलसंघ-देसियगण-पुस्तकगच्छकी इंगलेश्वरबलिके आचार्य श्रुतकीर्तिके शिष्य थे। लेखको लिपि १२वीं या १३वीं सदीकी प्रतीत होती है । (ए. रि० मै० १९४४ पृ० ४२) ३७० रत्नापुरि ( मैसूर) १२वीं-१३वीं सदी, कसद [ यह दो पंक्तियोंका लेख एक मूतिके पाद-पोठपर है जिसमें किसीभट्टारकदेव-द्वारा इस मूर्तिको स्थापनाका निर्देश है। लिपि १२वीं या १३. वीं सदीकी प्रतीत होती है।] [ मूल कन्नड लिपिम मुद्रित ] [ए० रि० मै० १९४४ पृ० ७० ] ३७१ बेलगोल ( मांडया, मैसूर ) १२वा-१३वीं सदी, कनाड [ इस छोटे-से मूर्ति-लेखमे द्रविल संघ-नन्दिसंघ-अरुंगल अन्वयके कुछ व्यक्तियों द्वारा इस पार्श्वनाथ मूर्तिको स्थापनाका निर्देश है । लिपि १२वीं या १३वीं सदीकी प्रतीत होती है। [ मूल कन्नड लिपिम मुद्रित ] [ए. रि• मै० १९४४ पृ० ५७ ] Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ जैनशिलालेख-संग्रह [३७२ बिदिरूर ( शिमोगा, मैसूर ) १३वीं सदी, कन्नड १ श्री मैणदान्वयद देसियगणद नागर एक्कगू डिय सु. २ मचंद्र देवरु माडिसिद बसदिगे ॥ श्रीजिनपद३ पंकजविराजितमधुकरन् एनिप्प मल्लि कोष्ट ५ पूजितवेने तीर्थकरबाजिस प्रतिकृतिय५ नुचित कडितले गोनं ॥ [ इस लेख में बिदिरूर ग्रामके बसदिमे मल्लि नामक व्यक्ति-द्वारा इस चौबीसी मूर्तिके अर्पण किये जानेका वर्णन है। यह बसदि देसियगण-मैणदान्वय-कडितले गोत्रके सुभचन्द्रदेव-द्रारा बनवायी गयी थी। लेखकी लिपि १३वीं सदीकी है।] [ए० रि० मै० १९४३ पृ० ११४ ] ३७३ होगनर (मैसूर) १३वीं सदी, कमल १ स्वस्ति श्रीमूलसंघ श्रीकाण्वद श्रीसकलचंद्रमष्टा२ रकदेव सिध्यरु माधवचंद्रदेवर गुड् ढुगलु ३ उभयनानादेसिगलु मादिसिद होंगनूर शा. ४ न्तिनाथदेवर जोगवडिगेय बसदि मंगल महा [यह लेख एक शान्तिनाथ मूर्तिके पादपीठपर है जो वर्तमानमें लक्ष्मीदेवी मन्दिरके एक चबूतरेमें लगी है। इसमे होंगनूरकी बसदिका निर्माण सकलचन्द्रके शिष्य माधवचन्द्रके शिष्यों द्वारा किये जानेका उल्लेख है । ये मूलसंघ-क्राण्व (क्राणूर गण) के अन्तर्गत थे। लिपि १३वीं सदी की है। ] [ए० रि० मै० १९४२ पृ० १२६ ] Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -104] arनन्दी आदि लेख ३७४ तवनन्दी (मैसूर) १३वीं सदी, कड १ श्रीमद् दविल ३ वे रंगले - १ स्वस्ति श्रीमूलसंच सूर ३ प्रतिबद्ध [ यह छोटा-सा लेख एक खण्डित जिनमूर्तिके पादपीठपर है । मूलसंघ-सूरस्तगण चित्रकूटान्वयके किसी व्यक्ति द्वारा यह मूर्ति स्थापित की गयी थी । लिपि १३वीं सदीकी है । ] [ ए०रि० मै० १९४२ पृ० १८५ ] ३७५ वरुण ( मैसूर ) १३वीं सदी, संस्कृत-कड ५ श श्रीपाल ७ तच्छिष्यो विदुषां २ स्तगण चित्रकूटान्वयद ९ मुनीश्वरः तस्य ११ धर्मसेनमहा १३ शुद्ध ( ) स्वमावस्तो १५ त्यक्तो जिनपदाप्रे २ संगस्य नन्दिसं ४ मयेऽशेषशास्त्र ६ मुनिराश्रियः २६९ श्रेष्ठः पद्मप्रभ १० पुत्रः तपोसी १२ मुनिः ॥ सोयं १४ बाह्यां (त) परिग्रहा १६ त्रिदिवं गतवान् बुध १७: [ इस लेखमें द्रविलसंघ- नन्दिसंघ - अमंगल अन्वयके आचार्य श्रीपाल के प्रशिष्य तथा पद्मप्रभके शिष्य धर्मसेनके समाधिमरणका उल्लेख है । लेखकी लिपि १३वीं सदीको प्रतीत होती है । ] [ ए०रि० मं० १९४० १० १७२ ] Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ অনাহাকাসহ [३७६ केलगेरे ( मांड्या, मैसूर) १३वीं सदी-उत्तरार्ध, कन्नड पश्चिमको ओर १ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादा२ मोघलांछनं (1) जीयात् अलोक्य३ नाथस्य शासनं जिनशासनं । ४ मई मयाग्जिनेन्द्राणां ५ शासनायाधनाशिने । कुतीर्थ६ ध्वान्तसंघातप्रमिनधनमान७ वे । स्वस्ति समधिगतपंचमहाश८ब्द महामंडलेश्वरं द्वारावतीपु. है स्वराधीश्वरं यादवकुलांबर१० थुमणि सम्यक्त्वचूडामणि मलपरो११ लुगण नामादिसमालंकृतरप्प १२ श्रीविनयादित्यपोय्सलन् एरेयं१३ ग बिट्टिदेव नारसिंह बल्लाल नारसिं दक्षिणकी ओर १४ घयदव तस्य पुत्रं नारसिं१५ हरसरु दोरसमुद्रदोलु पृथ्वीराज्यं गेयु५६ तमिरलु स्वस्ति श्रीमूलसंघ बलात्कार १७ यदोल अनेकाच यह न१८ ..."प्रवर्तिसल भवरोलु वर्धमानमटा१६ रकर श्रीधराचार्यरु देवनन्दिवि Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -10] केलगरेका लेख २० यह वासुपूज्यसिद्धान्तदेवरु शुभचन्द्र २३ महारकरु अमनन्दिभटारकरु अर्हन२२ दिसिद्धोतिगलु देवचं(द) सिद्धांतिगलु अष्टोप२३ वासि कनकचन्द्रदेवरु नयकीर्ति चान्द्रा२४ यणदेवरु मासोपवास रविचन्द्रसिद्धा२. न्तिगलु हरियनन्दिसिद्धान्तिगलु श्रुत२६ कीर्तिविद्यदेवरु वीरणं दिसिद्धान्तदे. २७ वह गण्डविमुक्त नेमिचन्द्रमट्टारकदेव पूर्वकी और २८ (वर्ध )मानमुनीन्द्रह श्रीधराचार्यरु वा२६ सुपूज्यत्रैविद्यदेवरु उदयचंद्रसिद्धां३. सदेवरु कुमुदचन्द्रमष्टारकदेवर मा... ३. माघनन्दिसिद्धान्तचक्रवर्तिगल श्रीपादप२२ मंगलिगे होय्सलभुजबल श्रीवीरनारसिंहदेवरस३३ रु दोरसमुदद त्रिकूटरत्नत्रयद श्रीशान्तिनाथ ३४ देवर अं(ग)भोग रंगभोग भाहारदान मुन्ताद ३५ समस्तधर्मकार्यक्का.. ३६ चिकनेयनहलि ३. "ब येनुल्लंथा भष्टमो३८ ग तेजस्वाम्यसहिसवागि माधनं३९ दिसिद्धान्तचक्रवर्तिगल श्रीपाद४० पचंलगे धारापूर्वकं माडि ४१ कोहरु स्वदचा परदत्ता वा यो हरेत ४२ वसुधरा" Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [३४[इस लेखके प्रारम्भमें होयसल वंशके राजाओंकी परम्परा नरसिंह (तृतीय ) तक दी है। नरसिंहने राजधानी स्थित शान्तिनाथ जिनालयके लिए चिककन्नेयनाल्लि ग्राम दान दिया। यह दान मूलसंध-बलात्कारगणके कुमदचन्द्र भट्टारकके शिष्य माघनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तीको दिया गया था। लेखमें कुमुदचन्द्रके पूर्ववर्ती १९ आचार्योंके नाम भी उल्लिखित हैं।] [ए. रि० म० १९४० पृ० १६४ ] ३७७-३७८ मूगूर ( मैसूर ) १३वीं सदी, कराड (अ) १ श्रीमूलसंघ देसियगण पुस्त २ कगरछ कोडकुंदान्वयक "हगेरे३ यतीर्थद प्रतिबद्धद भरतपण्डितरिगे ४ जक्कियब्वेय मगलु.... (ब) १ मूलसंघ देगसिण पुस्तकगच्छ कोंडकुंदान्वय इंगणेश्वर सं(घ)द श्रीभानुकीर्तिपं. २ डितदेवर शिष्यरप्प कान"नंदिदेवर गुडगलप्य भूगूर समस्त ३ गावुण्डगलु'कोडेयर बमदिय जीर्णोद्धारणवमा ४ डि"सिदर मंगलमहाश्री [ये दो लेख मूगूरकी आदिनाथबसदि तथा पार्श्वनाथबसदिके मूर्तियोंके पादपीठोपर है। पहलेमे मूलसंघ-देसियगणके क-हगेरे तीर्थसे सम्बद्ध भरत पण्डितके लिए जक्कियब्बेकी कन्या (नाम लुप्त )-द्वारा कुछ दान दिए जानेका उल्लेख है ! लेख अधूरा होनेसे विवरण स्पष्ट नहीं हो सकता। दूसरेमें मूल संघ-देसिगण-इंगणेश्वर संघके भानुकीति पण्डितके शिष्य - नन्दिके शिष्य गावुण्डों द्वारा मृगूरको कोडेयरबसदिके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । लेखोंकी लिपि १३वीं सदीकी है।] [ए. रि० मै० १९३८ पृ० १८२-८३ ] Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३८० ] इलेबीड आदि के लेख ३७६ लेबीड (मैसूर) १३वीं सदी, कम १ जिननात्मीयेष्टदव्यं निजगुरु नयकीर्तिव्रतीशं कसमवि२ नुतं तानुक्किसेट्टिप्रभु पितृ तनगेब्वे वायेन्दो डिन्तीवन ३ भिन्यावृतधात्रीतल दोल भदें पुण्योद्मं ववातदोऴ् कूडि निवान्४ तं नामिसेट्टि स्फुट विशदयशोलक्ष्मियं ताने पेत्तं ॥ ५ श्रन्तातं व्यवहारदिमत्र चिक्रमाक्रान्त... ६ लदेव मान्धातं दो... ७ कोण्डु स्वान्तं विश्रुत ना = मिसेट्टि दिवदोल कैवल्यमं तालदिवं ૨૭ [ इस लेखमे उक्किसेट्टि और एकव्वेके पुत्र नामिसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है । नामिसेट्टिके गुरु नयकीर्ति व्रतीश थे । लेखकी लिपि १३वीं सदीकी प्रतीत होती है । पंक्ति ५ के अस्पष्ट भागमें सम्भवतः वीरबल्लाल (द्वितीय) के राज्यका और तिथिका उल्लेख था । ] [ ए०रि० मं० १९२९ पृ० ७८ ] १८ ३८० तिरुनिडं कोण्डे ( मद्रास ) १३वीं सदी, तमिल [ इस लेखमे कहा गया है कि कुलोत्तुंग चोल राजा द्वारा कनकच्चिaffर अप्पर देवको अर्पित नल्लूर यह एक धार्मिक स्थान है । यह लेख चन्द्रनाथ मन्दिर के वरण्डेमें लगा है तथा १३वीं सदीकी लिपिमें है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० २९९ १०६५ ] Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जैन शिलालेख संग्रह ३८१ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) १३वीं सदी, तमिल [ यह लेख चन्द्रनाथ मूर्तिके पादपीठपर खुदा है। इस मूर्तिकी - जिसे कच्चिनायकर कहा है - स्थापना मालपिरन्दान् मोगन् कच्चियरायरद्वारा की गयी ऐसा लेखमें कहा है । लिपि १३वीं सदीकी है । ] [ रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३१९ पृ० ६७ ] ३८२ कोट्टगेरे (मैसूर) १३वीं सदी, कड [ ३८१ [ इस लेखमें देसियगण इंगलेश्वर बलिके हेरंगु निवासी आचार्य हरिचन्द्रके शिष्य माघनन्दिन्द्वारा एक शान्तिनाथ मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख । लिपि १३वीं सदीकी है । ] [ ए०रि० मे० १९१९ पृ० ३३ ] ३८३ तिरुनिडंकोण्डे ( मद्रास ) १३वीं सदी, तमिल [ यह लेख यहाँकी पहाड़ीपर चढ़नेके लिए बनी सीढ़ियोंके पास है । इन सीढ़ियोंका निर्माण गुणवीरदेवन् पण्डितदेवन्ने किया ऐसा लेखमें कहा है । लिपि १३वीं सदीकी है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३१६ पू० ६७ ] Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१८७] हुकेरी आदिके लेख ३८४ हुकेरी (जि. बेलगांव, मैसूर ) १३वीं सदी, काड [ यह लेख टूटा है। यापनीय संघके किसो गणके कीर्ति आचार्यका इसमें उल्लेख है । लिपि १३वीं सदीकी है। ] [रि० सा० ए० १९४२-४३ ई ६ पृ० २६१ ] ३८५-३८६ हले हुबलि ( जि. धारवाड, मैसूर ) १२वीं-१३वीं सदी, कमर [ यहाँके अनन्तनाथ बसदिमें दो लेख हैं। एक ब्रह्मदेवको मूर्तिपर है। इसकी लिपि १२वीं सदीकी है। सेटि महादेवी-द्वारा इस मतिको स्थापनाका इसमें निर्देश है। दूसरा एक जिनमूर्तिपर है। इसकी लिपि १३वीं सदोको है। इसमे यापनीय संघके (क)डूर गणका उल्लेख है। [रि० सा० ए० १९४१-४२ ई० ३३-३४ ] मोटे बेनर ( धारवाड, मैसूर ) १३वीं सदी, कन्नड [ यह लेख १३वीं सदोको लिपिमें है । तिथि चैत्र शु. १०, गुरुवार, सौम्य संवत्सर ऐसी दी है। इसमें जिनचन्द्रदेवके शिष्य बोम्मिसेट्टिके पुत्र बाचिसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ क्र० ई १०८ पृ० १२९] Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ जैन शिलालेख संग्रह ३८८-३८६ बनवासि (उत्तर कनडा, मैसूर ) १२वीं - १३वीं सदी, कराड [ यहाँ दो मूर्तिलेख हैं जो १२वीं - १३वीं सदीकी लिपिमें हैं किन्तु अस्पष्ट हैं । एकमं मूलसंघके किसी आचार्यका उल्लेख है । ] [ रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २४३-४४ पृ० २८ ] [ ३८८ ३६० बिजापूर (मैसूर) शक १२३२ = सन् १३१०, कन्नड [ इस मूर्तिलेखमे मूलसंघ - निगमान्वयके कृष्णदेव द्वारा शक १२३२, साधारण संवत्सरमे इस मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है । ] [ रि० स० ए० १९३३-३४ क्र० ई० १६४ पृ० १३४ ] ३६१ बेलगामे (मैसूर) सन् १३१९, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमतु यादवचक्रवर्ति भुजबलवी बल्लाल २ बंद ९ नेय सिद्धार्थिसंवत्सरद आषाढ शु... ३ वार व्यतीपात संक्रान्ति शुभदिनद" ४ (श्री) मद् राजधानिपट्टणं बल्लिग्रामेय हिरियब ५ सदिय मल्लिकामोदशान्तिनाथदेवर अष्ट ६ विधार्थी (न) गे श्रीमनु महाप्रधानं सेनाधिपति मलि Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३९. ] बेलगामेका लेख २७७ • यणदण्डनायकरु नागरखण्ड जिड्डुलिगेयन्तेर८ डेप्पत्तमं दुष्टनिग्र(इ) शिष्टप्रतिपालनं माडुत्तं ९ मु(खसं)कथाविनोददि राज्यं गेय्युत्तमिरे पट्टणद अधि१० कारि हेग्गडे सिरियण्णं तमंतरालिकेय भूलेवर्तमु११ ख्यवागि हेज़ुकडधिकारि चावुण्डरायनुं सोमय्य१२ नुं ममेयदे कोप(?)विसदधिकारि मालवेग्गडे इन्तिनि१३ बरं तंतम्म सुकर्म येत्तिप्पत्तक्कं सर्वबाधा१४ परिहारवागि सिरियण्ण'"आचार्य १५ पचनन्दिदेवर कालं कर्चि धारापूर्वकं माडि कोहरु ई धर्म१६ मं प्रतिपालिसिदंगे वारणासिकुरुक्षेत्रदल्लि साधिर १७ कविलेयिं वेदपालरप्प ब्राह्मण, कोह फल१८ मक्कु [ यह लेख होयसल राजा वीरबल्लालके राज्यवर्ष ९ सिद्धार्थसंवत्सरमे आषाढ शुक्लपक्षमे संक्रान्तिके दिन लिखा गया था । राजधानि बल्लिग्रामेके मल्लिकामोदशान्तिनाथदेवकी पूजाके लिए पद्मनन्दि आचार्यको कुछ करोंका उत्पन्न दान दिये जानेका इसमें निर्देश है। यह दान हेग्गडे सिरियण्ण, चावुण्डराय, सोमय्य और मालवेग्गडे इन चार अधिकारियोंने दिया था। इस समय नागरखण्ड और जिड्डुलिगे प्रदेशपर महाप्रधान सेनापति मल्लियणका शासन चल रहा था। बल्लाल द्वितीय अथवा बल्लाल तृतीय इन दोनोंके ९वे वर्ष में सिद्धाथि संवत्सर नहीं था। अतः अनुमान किया गया है कि यह बल्लाल ( तृतीय ) के २९वें वर्षके सिद्धार्थ मंवत्सरका उल्लेख होगा। तदनुसार सन् १३१९ यह इस लेखका वर्ष होगा।] [ए० रि० मै० १९२९ पृ० १२८ ] Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ जैनशिलालेख संग्रह ३६२ कुमठ ( उत्तर कनडा, मैसूर ) शक १२६६= सन् १३४४, कार [ इस लेखमें मूलसंघ, देसियगणके विशालकीर्ति राउलके अग्रशिष्य नागचन्द्रदेव के समाधिमरणका उल्लेख है । तिथि श्रावण व० ११, रविवार, शक १२६६, सुभानु संवत्सर ऐसी दी है । ] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २३९ पृ० २७ ] ३६३ रायद्ग (बेल्लारी, मैसूर ) शक १२७७ = सन् १३५५, कन्नड-संस्कृत [ ३९२ तालुक ऑफ़िसमे रखो हुई मूर्तिके पादपीठ पर [ विजयनगर के राजा हरिहरके समय शक १२७७, मन्मथ संवत्सर मे यह लेख लिखा गया । कुन्दकुन्दान्वय, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगण, मूलसंघ के अमरकीति आचार्यके शिष्य माघनन्दि व्रतीके शिष्य भोगराजद्वारा शान्तिनाथको मूर्तिकी स्थापनाका इसमें निर्देश है । ] [ इ० म० बेल्लारी ४५८ ] [रि० स० ए० १९१३ - १४ क्र० १११ पृ० १२ ] ३६४ होसाल (द० कनडा, मैसूर ) शक १२७६ == सन् १३५७, कन्नड [ यह लेख स्थानीय बुक्कण्ण महाराय के जैन शक १२७९ विलम्बि भग्न जिनमन्दिरमे है । इसमे विजयनगर के राजा सेनापति बैचय दण्डनायकका उल्लेख है । तिथि संवत्सर ऐसी दी है । ] [रि० स० ए० १९३१-३२ क्र० २८४ पृ० ३१ ] Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३३७ ] frofessiण्डे आदिके लेख २७९ ३९५ तिरुनिडंकोण्डे ( मद्रास ) शक १२८३ = सन् १३६१, तमिल [ इस लेखकी तिथि धनु शुक्ल १३ बुधवार, शक १२८३ शुभकृत् संवत्सर ऐसी दी है। इसमें शेम्बादि विल्लवडरैयन् के पुत्र ( नाम लुप्त )द्वारा अप्पाण्डार् मन्दिरमे दीपके लिए भूमि दान दी जानेका उल्लेख है । यह दान गोप्पण्ण उडैयार की प्रेरणासे दिया गया था । लेख अप्पाण्डार् चन्द्रनाथमन्दिरके मण्डपकी दीवालमें लगा है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३०३ पृ० ६५ ] ३६६ साविकेरि ( धारवाड, मंसूर ) शक १ ( २ ) ६८ = सन् १३७६, कन्नड [ इस लेखमें मार्गशिर व ० १ (३), बुधवार, शक १ ( २ ) ९८ नल संवत्सर के दिन बाले हल्लिके बेलप्पके समाधिमरणका उल्लेख है । उस समय विजयनगरके वीरबुक्करायका शासन चल रहा था । ] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २३३ पृ० २७ ] ३६७ गेरसोप्पे (मैसूर) शक १३०० = सन् १३७८, कब्रट १ श्रीमत्परमगं मीरस्यादवादामोघलांछनं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं (१) श्रीमद्देव २ जिनेन्द्राय तस्मानंतमहात्मने सर्वबोधविशिष्टाय भव्यालिकुमुदेन्दवे (२) तं वंदे देवदेवं सुरुचि Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० जैनशिकालेख-संग्रह [ ३६७ ३ रमनघं चारुकैवल्यनेत्रं नित्यं निर्वाणरामाकुच विलिखित काश्मीर रागं वरांगं तुंगं देवेन्द्रानखपा ४ दं गुणविकसदनन्तं स्वबोधात्मतत्त्वं मांगल्यं मन्यसार्थं निहतमनसिजं नव्यधर्म स्वरूपं । ( ३ ) इदु ५ जम्बूद्वीपमंता भरतविषयदोल पडव मेरुसिदं पदपिन्दा मेरुविं दक्षिणदे तुलु कोंगिन्दवी शुद्ध ६ दीपं मुददिं तेंगुवलि पनसं नदीतीरदोल कौंगु जम्बूसदर्न गोकु ७. बिडार हस्तिसमूहं । ( ४ ) मा तुलुवाधीशरमणि वदनमागि तोर्पुदु नयदि नीतियुत गरसोप्पे सोलि ८ सुतिपुंदु विभवदिंदायमरावतियं । (५) अन्ता नगिरिय राज्यकवीश्वरनेनिसिद मरुलयरस रन्वय संप्रदायदा ९ यदि बन्दकीर्तिगे जयस्तंभनेनिसिर्द हैवेभूपालन प्रतापवेन्तेने सान्द्र... देम कुन्दोद्गमकुमुदन १० मलमल्लिका फुलमुख्यवृन्दं गंगात रंगतरलहरहासं तारनीहारहारं सन्दिद चारुकीर्ति.... ११ प्रसवदनुनयवेंबिन-''माल् पुदु श्रीवेभूपालन निजयशमं for बल्लना १ १२ वं दक्षिणमण्डलिक निजनिवास सल्लक्षण राजराजकटकंगल सूरेयन / १३ यदे तोण्डमण्डलभूपर मन्दि रक्षिसु हैवेराज वेनुतिपुंदु १४ नलियदे नोलपडं मावनियं क काररतिचक्रद हस्तपराक्रमांकनी हैवनृपाल चित्रय १५ शो निश्चय दुन्दुमिताडनंगुलिं जावलिशब्ददिं परिदु दूरदि संचरितमिदा.... Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -३९०] गेस्सोप्पेका लेख २० १६ ..."येसेच राजहृदयंगलु मिनगलाद वद्भुतं । श्रीमदेव गुरुगुणाद्भुतमहानागेन्द्रपंचा१७ स्थसन्दिई हासद बैहालि महाराकिनीनामोपद्रवं एल्लवं.... श्रीपार्श्वतीर्थेश्वरा१८ वासमं श्रीमदनन्तपालंगीगे नित्यं दीर्घायुमं श्रीयुमं अन्सा नगिरियपुरवराधीश्वरं मासा.. १९ वनियंककार मावंगेमलेव रायरगण्ड शिवसिंहासनचक्रवर्ति परसालुवदहविमाड कलिगल मुखद २० सम्यकचूडामणि वसन्तराज्यचातुर्वर्ण्यक्के "हलुव रायरगण्ड हैवेभूपालं सुखसंकथाविनो२१ ददि राज्यं गेय्युत्तिरलु भा गैरसोप्पेय महाजनंगल गुणं गलेन्तेन्दोडे ॥ ॥ अदरोल नानाजा२२ तिपरदरग्रणी सम्यकरादी नैनर पडेवर् जैनमार्गाश्रयजलनिधि संवर्धितपूर्णचन्द्रर् मुदमं क्रोधादि२३ मू मादुद्धपेकुलनिवर बिटु"रादर"मुख्यमादधिपनखिल कलावल्लभर् कोर्तिवेत्तरंताता२४ मादण्डाधिपगल'"सहजात कुलक्षत्रियरादरसुगलन्वयमन्तेन्दोडे स्वस्ति समधिगतपंचमहा२५ महिमप्रसिद्धमाद बनवासिपुरवराधीश्वरर बैजयन्ती-मधुकेश्वर लब्धवरप्रसाद मृगमदामोद गोकर्ण... २६ महाबलेश्वरदिव्यश्रीपादपमाराधकर परबलसाधकरुं हरसिबरुवर शूल निगलंकमल्ल चलदंकराम राय२७ रगण्ड साहसमल्ल गण्डरडावणि सत्यराधेय साहसोग शरणागतवज्रपंजर पश्चिमसमुद्राधिपतियप्प हैवे२८ क्षत्रियकुलकमलवनमार्तण्ड परनृपतामरस'"पूर्णचन्द्र नेनिसिद बसवदेवरसरु""देवरसर Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ २९ राज्यलक्ष्मियेनिसिद जैन शिलालेख संग्रह ३८ ३६ [१९७ चन्द्रपुरवेम्ब पट्टणदोलु राज्यं गेय्युव कालदोल भ सुगलिगे पट्टवर्धनबाहत्तर नियो ३० गिगल जिनसेन्यनुं त्रिशक्तिबलयुतनुं षड्गुणसमर्थनुं राजक्षत्रियचतुर्दन्त सोमेश्वरदण्डनायक ३१ न अन्वयद कीर्तियेन्तेन्दोडे श्रीसोमदण्डपुत्रनु भासुर कामण्णदण्डनायकनेनिपं सासनचक्र ३२ वर्ति धर्मधारक सामन्तं कीर्तिवेत्तनमलचरित्रं श्रीमत्सोमदण्डनायकेंगे कामार्थ तावु पुट्टिदर् श्रीमद्रामणनेम्ब हेगडेयदशरथसामध्ये दियपराजिता ३३ सुवेम्बीपुत्रसंसेव्यकं रामं पुहिद रमणिगं साहित्यरत्नाकरमन्ता ३४ रामणनेम्ब हेग्गड रामकेंगे तां पुहिदं शान्तं योजजनम्बिपुत्रनेनिस कुन्तीदेवि समन्तु ३५ श्रापाण्डुराजंगे तां शान्तं धर्मजनेन्तु पुट्टिद बोला सम्यक्त्वरत्नाकरमन्ता योजणसेट्टिय जननि रामकनन्वयमेतेन्दोडे ३६ वसुधेयोलु ने गलते असमैश्वर्यसम्पत्वरुं दानगुणसम्पतरुमप्प नम्बसेर तम्मसेहिसहोदररेनिसिद म ३७ लिसेट्टि होनपसेट्टि गुणाभ्यरुं जैनजनबान्धवरुं श्रा सेहरोळगे महाधननेनिसिद मा होनपसेहि ******.. 'शककाल साविरद मुन्नूर" ( अवशिष्ट ६ पंक्तियां पढ़ी नहीं जा सकतीं 1 ) भूपालके शासनकालमे चन्द्रपुर मे दो मन्त्री सोमण दण्डनायक और रामण्ण था जिसकी पत्नी रामक्क [ यह लेख शक १३०० मे लिखा गया था । गेरसोप्पेके राजा हैवेय बसवदेवरस शासन कर रहे थे । उनके कामण्ण दण्डनायक थे । सोमण्णका पुत्र थी। उनके पुत्रका नाम योजणसेट्टि Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८३ हजनका लेख था । इनके कुलके होन्नपसेट्टि तथा नम्बिसेट्टि इन बन्धुओंने दिये हुए दानका विवरण इस लेखमें दिया था।] [ए० रि० मै० १९२८ पृ० ९५ ] ३६० हडजन ( मैसूर) शक १३०(१)=सन् , १३८४, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमतु शकवरिष १३०""संवत्सरद २ ज्येष्ठ ब १ मा । श्रीमतु मैसुनार"ह३ उदनद तंडेयर कुलद बम्मय्यनवर सुपुत्र हिरि४ य मादण्णनवरु देवरिगे। श्रीमद् रायराजगुरु मंडलाचार्य ५ सकलविद्वज्जनचक्रवर्तिगलुमप्प सैद्धांतिदेवर प्रियगुडि केशवदे६ (वि)यरु आ केशवदेवियर भक्क मारदेवियरु स्वर्गग७ तरादरु । अवर निसिदियं माडिसि आ निसिदिय अर्चनेगे बि. ८ ९ तह क्षेत्र बसदिगे पूर्वदलुल्लगहेयिं तेकण ब ९ तिन असरिसदलु हत्तु खंडुग गहेयनु भारापू१० वकवागि नडव होंगे प्रा हिरिय मादण्णनवरु बिट्टदत्ति [ यह लेख मण्डलाचार्य सैद्धान्तिकदेवकी शिष्या केशवदेवीकी बड़ी बहन मारदेवीके समाधिमरणका स्मारक है। इस निसिदिको पूजाके लिए हिरिय मादण्णने स्थानीय बसदिको कुछ भूमि दान दी थी। लेखकी तिथि ज्येष्ठ व० १, रविवार शक १३० ( चौथा अंक लुप्त है ) दी है। तिथि और वारके योगसे यह शकवर्ष १३०६ निश्चित होता है।। [ए० रि० म० १९३८ पृ० १६४ ] Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ जैन शिलालेख संग्रह ३६६ इन्दौर म्युजियम ( मध्यप्रदेश ) संवत् १४४२ = सन् १३८६, संस्कृत-नागरी [ यह लेख शान्तिनाथमूर्ति के पादपीठपर है । इसमें संवत् १४४२ में प्रौढाचार्य श्री महाकोतिका उल्लेख है । ] [रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० १५९ ] ४०० [ ३०६ गेरसोप्पे (मैसूर) शक १३१४ = सन् १३९२, कन्नड १ श्रीमत्परमगं मीरस्याद्वादामोघळांछनं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं । जिनगिरिय देशवेम्ब ललनामु २ खक्के बेसेदिप गेरसोप्पेगे वर सेज्जेकार सले दण्डिगेय छत्रचामरालियिं बगेवुगे तोर्प हैवेनृप रामकं बम्मपु ३ त्रनोब्बणं नेगले सन्नुतनाद जिनचैत्य जिनालय मन्दिरं वरं afoयुगोल महापुरुष योजण तन्न मंगल'... ४ मण समवेन्दु माविसि नितान्तस्थानमं जिनालयंगलं सले माडि गोपुर सुमनोहर विचित्र वलयं अनन्तनाथन पति५ य दें कृतार्थनो । अन्ता योजणसेहिय प्राणवल्लभेयाद रामक्कन गुणंगलेन्तेन्दोडे श्रीमतु सन्" ६ तनाथन पदाम्बुभृंगनु यो ७ जणसेहि प्रनिनिवरु = लांग रम्य .. " गोत्रचि ९ तामणि पार्थिव तपमेने Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४०० 1 गेरसोप्पेका लेख १० दोल सत्यधीरोदात.... ११ सेव रामकनोप्पिदली धरित्रियोलु १२ पतिम शीलवति भूनुतचारुचरि१३ त्रे सकलजीवदयापरे सन्ततश्चतुर्वि १४ भदानदोल अविनिपुणतेयिन्देसेदली " १५ रामक्कं । जिन मतवाक्यदोलु १६ ....सके जिनराजपदाब्जभृंगे तां जननुत चारु १७ सीले गुण सुव्रत दान पूजेयि १८ १६ याम २८५ मुखि कामिनोजनशिरोमणि योनिजनामदिं श्रीजिनराजपूजेबोल श्रीमुनिराजपदाब्जसेवे २० योल नैजगुणंगलिं विनयदिं मयदिं निजमावतुष्टियिं पूजिसि तिथिदेगितां स्तुतिमाडियुं कीर्ति २१ योकिन्तु वणिकोण्डी निजनामदि रामकनी धरित्रियोलु कमलदलायताक्षि कमलानने कमलसुगन्धि कोमल निजकुलोन्नति रामकनोपपतिर्दलु | २२ ''''बिमलकतांगिरसयुतरी जिनराजपूजेबोल समरसभावदोल् सले माणिकसेहिपुत्र राम २३ कं क्रमगुणहस्तिकश्पकतेयं नेरे योप्पुत्रो धरित्रियोलु कमलाकरदोल कमलिनि कमरूदोलं २४ कमले पुहुवन्तिरं नागमनमलान्त्रयदोलु रामक विमलगुणाभरणे दिल कलियुगदोल २५ रामक्कन अन्वयमन्तेन्दोडे । हुलिगेरेय पचत्रस्तिय सुन्दण हिरिय अंगडिगे मुख्य २६ वाद किरिय रामसेहि आ मदुवलिगे गंगाथि अवर मक्कलु बैचेसेडियर आतन तंगि सोमब्वे Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ४०० २७ आ सोमग्वेयनु आ हुलिगेरेय माणिकसेहिगे विवाहमादी..." अवर मगलु नागवे २८ आकेय तन्दे माणिकसेट्टि समस्तरू भा वैश्चिसेहि हुकिगेरेगे दि हन्दिगुरूदकि प्र २६ ....आ नागब्बेयनू सलहि हिरिय हन्दिगुरूद चन्द्रनाथस्वामिगल चैत्यालय दोलु पूजे ३० शादिके श्रीकार्य नडेवन्तागि वृत्तियन् बिहु शासनव हाकिसिहरु बैचरसि तम् ३१ म सोसे नागवेयन् गेरसोध्येय सेट्टि गुतवायि भोजेय मग माणिकसेहियन् तानु विवा ३२ हव माडि भा माणिक सेट्टिय नन्वयमेतेन्दोडे गुच्छक्किय नागिट्टिय मगलु रामब्वे बाकेय पु ३३ त्र माणिकसेट्टि माणिकलेहिगू नागवेयवरिगू जनिसिद मक्कलु हरिसेहि कामण ३४ नेमणसेहि सरणसेहि संगप यिन्तैवरोळगे रामक्कनन् गरसोप्पंय रामण हेग्गडेय मंगराज ३५ णन भजणंगे विवाहव माडि आ वोजण्णसेहियू रामक्कन् सुखसंकथाविनोददि २८६ ३६ दिहल्लिगे गेरसोध्धेय अनन्ततीर्थंकर चैत्यालवनारब्धिसि महाप्रतिष्ठेयन माडिसि ३७ पिरुसं बिरलु सक वहस सासिरद मूनूर इदिनाल्कनेय प्रजापतिसंवत्सर ३८ द कार्तिक शुद्ध पंचमि आदित्यवार सन्यसनसमन्वितवागि स्वर्गस्तरादरु'' मदवल्लिगे ३३ रामशनवर सन्दे मोहलुगोण्डु चरित्रदिं नेगळे विक्रम संवत्सरद भाषार Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -०२] सावरपुकोटका लेख २८७ ४. सुध पंचमि सुक्रवार रोहिणीनक्षत्रदल तुंगतमाधि. १ .."चन्द्रार्कमागि ४२ मूडे भत्तवन वोजण५३ सेहि"रामक.. ४४ निषधिय कल्लिंगे मंगल महा श्री [ इस निषिधिलेखमें कार्तिक शु० ५, रविवार, शक १३१४, प्रजापति संवत्सरके दिन योजणसेट्टिकी पत्नी रामक्कके समाधिमरणका उल्लेख किया है। रामक्कने गैरसोप्पेमें अनन्ततीर्थकरका मन्दिर बनवाया था। उसका वंशवर्णन भी लेखमें दिया है। रामक्कके पिता माणिकसेट्टिकी मृत्यु आषाढ़ शु० ५, शुक्रवार, विक्रमसंवत्सरके दिन हुई थी।] [ए० रि० मै० १९२८ पृ० ९७ ] ४०१ लक्कवरपुकोट ( विजगापटम्, आन्ध्र) संवत् १४५८=सन् १३९२, संस्कृत नागरी [ इस मूर्तिलेखमें संवत् १४४८ में जिनचन्द्र भट्टारक-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । इस समय यह मूति वीरभद्र मन्दिरमे है । ] [रि० सा० ए० १९११-१२ क्र० ४७ पृ० ५० ] ४०२ संगर (धारवाड, मैसूर ) शक १३:७-सन् १३६५, कार [ इस लेखमें जैन मल्लप्पके पौत्र तथा संगमदेवके पुत्र नेमण्ण-द्वारा संगूरके पार्श्वनाथ मन्दिरको भूमि दान देनेका उल्लेख है। विजयनगरके सम्राट् हरिहरके समय गोवाके शासक माधवका यह सेनापति था । नेमण्ण Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ४०३ के पिताका समाधिमरण पुष्य शु० ११, गुरुवार, युव संवत्सर शक १३१७ में तथा पितामहका समाधिमरण फाल्गुन व० १४, सोमवार, नल संवत्सरमे हुआ था । ] [रि० स० ए० १९३२-३३ क्र० ई १६७ पृ० १०७ ] २८८ ४०३ गूटी ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) १४वीं सदी, संस्कृत-कचढ [ इस लेखमें विजयनगरके राजा हरिहरके समय इरुग दण्डनायक - द्वारा एक जिनमन्दिर के निर्माणका उल्लेख है । कोण्डकुन्दान्वयकी परम्परामे वक्रग्रीव, एलाचार्य, अमरकीर्ति, सिंहनन्दि तथा वर्धमानदेशिकका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९२०-२१ क्र० ३२६ पृ० १८ ] ४०४ हम्पी ( बेल्लारी, मैसूर ) शक १३१७ = सन् १३९५, संस्कृत तेलुगु [ यह लेख एक जिनमूर्तिके खण्डित पादपीठपर है । तिथि फाल्गुन व० १, सोमवार, भावसंवत्सर ऐसी दी है । शक वर्षके अंक लुप्त हुए हैं। मूलसंघ-बलात्कारगण-सरस्वतीगच्छके धर्मभूषण भट्टारकके उपदेशसे इम्मडिबुक्क मन्त्रीश्वर द्वारा कुन्दनवोलु नगरमे कुन्थुतीर्थकरंका चैत्यालय बनवाये जानेका इसमे उल्लेख है । यह मन्त्री बैचय दण्डनाथके पुत्र थे । संवत्सरनामानुसार यह शक १३१७ का लेख प्रतीत होता है । ]. [रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ३३६१० ४१ ] Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०५] करन्देका खा ४०५ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) १४वीं सदी, तमिळ २८९ [ यह लेख विजयगण्डगोपालदेवके २०वें वर्षमें लिखा गया था । पोनूरके निवासी अरुवन्दै आण्डालु तिरुच्छोरुत्तुरं उडेयारद्वारा इस जिनमन्दिरमें सन्ध्यासमय छह दीप प्रज्वलित रखनेके लिए तीन पलवनमाडै तथा कुछ चावल के दानका इसमें उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० १३८ ] ४०६ हिरेचीटि (मैसूर) १४वीं सदी, कन्नड १ नमो वीतरागाय । श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलां २ छनं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं । सागरवारिवेष्टितसमस्त ३ धरारमणीधनस्तनाभोगविदेम्बिनं विदितविस्तृतसारतरामहारदि ४ नागरखण्डपत्रपरिवेष्टनदिं जननेत्रपुत्रिकारागमनितु माणदुदे 644 मनस्सु ५ खर्द बनवासिमण्डलं । नागरखण्डं बनवासेगागिकुं भूषणं-बोलु ६ .... गिरेबागि मेरेगुं नागलतापूगवनदिनेसेव तवे सों ७ ..''नागरखण्ड सागरमागे तोर्पु सुख किम्बागिगे मेरेबुदी नमुना सेणिसेडि ९ ...बसदिय माडिसिद्र-इन्वण्णतम्मंदिब्बिरु शाम्बिजिनेश्वर१० बसदियं माडिति सन्तोषदि सन्तसर्दि पडेदर्द भराचन्द्र ११ ... गुणवार्षिय पढेडु बालुत्तिरे पलका पुरुषनिधि नाम १९ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह १२ सेहि तन्नय पेम्पि देसेवलरसियक्कनुमत मतं १३ पडेदु सुखदं बालबुदु स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर भरिराय१४ विमा अगलि भाषेगे तप्पुवरायरगण्ड चतुस्समु१५ द्राधिपति श्रीवीकराय महारायरु राज्यं गेय्युत्तुमि वि१६ रोधिसंवत्सर कार्तिकशुद्धतदिगेवर देवर नि १७ - चन्द्रगुड्डिगलुमप्प सान्तिना १८ नाथदेवर अमृतपडि नन्दादीप १६ केरेय केलगे गद्दे ख ४.... २० ... यी धर्ममं प्रतिपालिसु" २१ वारणासि कुरुक्षेत्र ... २२ कविलेय २३ पातकनक्कु श्रीशान्तिनाथ, २९० [ ४०७ [ यह लेख कार्तिक शु० ३, विरोधिसंवत्सरके दिन वीरबुक्करायके राज्यकालमे लिखा गया था । बनवासि प्रदेशके नागसेट्टि तथा सेणिसेट्टि - द्वारा शान्तिनाथमन्दिरके निर्माणका तथा उसमे दीपादि पूजाके लिए ४ खण्डुग भूमि अर्पण किये जानेका इसमे उल्लेख है । ] [ ए०रि० मै० १९२८ पृ० ८३ ] ४०७ हले सोरब ( मैमूर ) १४वीं सदी उत्तरार्ध, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछनं जीयात् - २ लोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं । अमरावतियळकावति स ३ ममेनिखुव सोरण तवनिधियुमेंबेरडं समनागि वि ४ पालिसिदं सुमनलतरु सङ्कंस तवनिधिय ब्रह्माख्यं ॥ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९१ तवनन्दी आदिके लेख २९॥ ५ "सिंगलवेन्तिर्दडे नाक... ६ ""युविक... ७ .''वाधि [ यह निसिधिलेख बहुत खण्डित है। सोरब और तवनिधिके शासक ब्रह्मके समय किसी व्यक्तिके समाधिमरणका यह स्मारक है। मृत व्यक्ति कोई महिला थी क्योंकि लेखके पाषाणपर एक स्त्रीमूर्ति उत्कीर्ण है।] [ए० रि० मै० १९४२ पृ० १७९ ] ४०८ तवनन्दी ( मैसूर) १४वीं सदी, कसद : जिनहं जिनमुनिगलु मत्तनु- २ पम प्राणीश हरियन३ दन नेनदुं वनजाक्षि महा- ४ लक्ष्मयु धनतर शौर्य५ दोलुमनियोल स ६ ले पायिदल ७ महालक्ष्मिय सद्गुण- 5 समुद्रोपमान ॥ मंहै गलमहा श्री श्री [ इस लेखमे महालक्ष्मी नामक किसी महिलाके अग्निप्रवेश-द्वारा मरणका उल्लेख है । जिन, मुनि और अपने पति हरियनंदनका स्मरण करते हुए उसने धैर्यपूर्वक प्राणत्याग किया था। लिपि १४वी सदीकी है।] ए. रि० में० १९४२ पृ० १८५ ] ४०६ तलकाड ( मैसूर) १४वीं सदी, कलह [ यह लेख द्रविल संघ-नन्दिगणके कमलदेवके शिष्य लोकाचार्यके समाधिमरणका स्मारक है। लिपि १४वीं सदीकी है। यह लेख वैकुण्ठनारायणमन्दिरकी दीवालमें लगा है। [ए० रि० मै० १९१२ पृ० ६३ ] Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ जैनशिलालेख-संग्रह ४१० मत्तावार ( मैसूर) १वीं सदी, काड , महलजिन जकबेहहि घटवे२ गन्ति मत्तवूर बसदि तपसु ३ माडि सिद्धि आदल अबेय मा४ चरन मग मार कल्ल निलिसि [यह निषिधिलेख मरुलजिन-जकवेहट्टि नामक प्रामकी निवासी चटवेगन्तिके समाधिमरणका स्मारक है । उसका मृत्यु मत्तवूरको बसदिमे हुआ था । अबेय माचरके पुत्र मारने यह स्मारक स्थापित किया था। लेखको लिपि १४वीं सदीको प्रतीत होती है। ] [ ए० रि० मै० ९९३२ पृ० १७१ ] ४११ हुलेकल ( उत्तर कनडा, मंसूर ) १५वीं सदी, कार [ यह लेख १४वीं सदीकी लिपिमें है और बहुत घिसा है। इसके प्रारम्भमें जिनशासनको प्रशंसा है तथा बादमे किसी मठमें आहारदान आदिके लिए कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९३९-४० ई० क्र० २१ पृ० २२९ ] Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ४१५] कोनकोण्डल नादिकेलेल આર-૪૩ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) १४वीं सदी क " [ ये दो लेख १४वीं सदीकी लिपिमें रसासिद्धलगुट्ट नामक पहाड़ीपर पाषाणोंपर खुदे हैं । इनमें विपगिरिके श्रीविद्यानन्दस्वामी तथा बोलय नागका उल्लेख हुआ है । अक्षर कुछ अस्पष्ट हुए हैं । ] [ रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ४५२-५३ ] ४१४ उहरि ( मंसूर ) १४वीं सदी, कनड १ श्रीमत्परमगंभीरस्यादवादा २ मोघलांछन । जोयात् त्रैलोक्यना ३. थस्य शासनं जिनशासनं ॥ स्वस्ति श्रीमतु २९३ ४ .....विजयकीर्तिमटारर [ यह लेख खण्डित है इसलिए विजयकीर्तिभटार इस नामके अतिरिक्त अन्य विवरण इससे प्राप्त नहीं होता । लिपि १४वीं सदीकी है । ] [ ए०रि० मै ० १९२९ पृ० १४२ ] ४१५ सक्करेपट्टण (मैसूर) संस्कृत-कन्नड, १४वीं सदी १ २ तस्मिन् सेनगणान्तरिक्षतरणिः श्रीवीरसेनो भुवि संसाराम्बुधितारणैकतरणिः श्रेयोवनीसारणी । तच्छिष्यः प्रचुर Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ जैनशिलालेख-संग्रह [५१५३ प्रबन्धरचनाचातुर्यपद्मासनः पायाद् वो जिनसेन इत्यभिधया ख्यातो मुनिग्रामणीः । (१) श्रीमत्पुस्तक४ गच्छसूरसदृशो विश्वप्रकाशात्मकस्त्रैवियो गुणमद्रदेवयतिपः श्रीसूरसेनस्तत: (१) शिष्यः श्रीकमलादिमद्रगणभृद् दे. ५ वेन्द्रसेनस्ततः । तेनाकारि कुमारसेनमुनिपो वादीन्द्र-चूडामणिः (२) तच्छिष्याः हरिसेनदेवादयः । मा६ धुर्य वाचि कारुण्यं हृदि तीव्र तपस्ततः । श्रोप्रमाकरसेनाल्य. गुरुश्रेयो विराजते । (१३) तत्पद्मोदय७ शैलतिग्मकिरणस्त्रविद्यपारंगतो भूपालार्चितपादपंकजयुगः श्रीलक्ष्मिसेमो मुनिः (1) लोकं सत्त८ पसां निधानमनघं कारुण्यवारांनिधिः दाने कल्पकुजोपमो विजयते कामेमकण्ठीरवः । (४) ६ श्रीमदनसेपमुनिपो सज्ज्ञानामृतपयोधिपूर्णेन्दुः (1) सुदृढतपोगुण युक्तो भाति श्रीमत्प्रमा१० करायसुतः । (५) द्वीपितटाकनामनगरीपति शंखजिनेन्द्रचन्द्र मश्रीपादपंकजालिरमकाम११ रकीर्तिमुनीन्द्रपादसेवापरिपक्वबुद्धि बलगारसमाइयवंशपद्म तारापति रंजिपं स्वजनक१२ जनमोमणि वैश्य मायणं । (६) गुणतुंग होलराजं पितृ गुणवति देवमाम्बेतन्नम्बेयु१३ यद्गुणरत्नं नागराज परिकिपोडे पितृव्यं गुणकालयं माकणन् ___भात्मीयानुजं तानेनिपगणित१४ सौमाग्यदि माग्यदि धारिणियोल विख्यातिवेत्तं जिनसमय सरस्सारसं मायणाय । (७) मतं लोकै१५ कमित्रं प्रचुरतरकलावल्लभं वन्दिवृन्दोत्करपुष्यत्-कल्पभूजं बुधनुतचरितं वाक्परं Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -११६] तेरकणांविका लेख २९५ .. १६ काव्यगोष्ठि-सरसं विद्विष्टशैलाशनि सुरपुरमोदलान्तगल मीन__ केतूद्धर रूपं सद्गुणोदय१७ हमयन एनल आश्चर्यमे मायणाय । (5) इन्तु 'होयसक भूविभुलक्ष्मीलपनमुं १८ श्रीवीरबुक्कराजसाम्राज्यरमारमणीयविलासदर्पणोपमं एनिसि सोगयिसुव होसपट्टणदोलु प्रसिद्धिवडेद - १९ श्थ मायण्ण माकप्पगलु न""दवागि माडिद श्रीलक्ष्मीसेन मटारकर निषधिय प्रतिष्ठे शासन मंगल महा श्री श्री श्री श्री श्री [ यह निषिधिलेख सेनगणके लक्ष्मीसेनभट्टारकको मृत्युका स्मारक है। इनको गुरुपरम्परा इस प्रकार थी - वीरसेन - जिनसेन - गुणभद्र विद्या ! देव - सूरसेन - कमलभद्र - देवेन्द्रसेन - कुमारसेन - हरिसेन -प्रभाकरसेन - लक्ष्मीसेन । लक्ष्मीसेनके गुरुबन्धु मदनसेन थे। यह निषिधि बलगार वंशके मायण तथा माकण नामक दो वैश्यों-द्वारा स्थापित की गयी थी। ये होसपट्टणके निवासी थे। यह नगर होयसल प्रदेशमें था तथा वीरबुक्कराजके राज्यके अन्तर्गत था। ] [ए० रि० मै० १९२७ पृ० ६१] ४१६ तेरकणांवि ( मैसूर) १४वों सदी, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमूलसंघ देशियगण पुस्तक२ गच्छ कोंडकुंदान्वय हनसोगेय बलि३ य राजगुरु ( मंड) लाचार्यरुमप्प ( सम )५ यामरण ललितकीर्तिमहारकरु मादिसिद ५ (प्रतिमे ) मंगळ महा श्री श्री श्री Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैगशिकालेत-संग्रह [80[ यह लेख पाश्र्वनाथमूर्तिके पादपीठपर है । इस मूर्तिकी स्थापना मूलसंघ-हनसोगे बलिके ललितकीर्ति भट्टारकने की थी। लिपि १४वीं सदी की है। [ए० रि० मै० १९३४ पृ० १६९ ] ४१७ तगडूर ( मैसूर) १४वीं सदी, कन्नड १ (कोंडकुन्दान्वय २ (मू )लसंघ नागनन्दि ३ (अन)न्तमहारकशिष्य ४ नन्दिमहारकरशि५ ""यन्तगहू ६ "यिल्लेकन्तिय(र) ७ (स)न्यसनंगेरदु सुर- ८ (लोकक्के) सन्दर [ इस निसिधिलेखमें मूलसंघ-कोण्डकुन्दान्वयके नागनन्दि भट्टारकके शिष्य नन्दिभट्टारककी शिष्या 'यिल्लेकन्तिके समाधिमरणका उल्लेख है । पाषाण टूटा होनेसे कुछ अक्षर नष्ट हुए हैं । लिपि १४वीं सदीकी है । ] [ए० रि० मै० १९३८ पृ० १७३ ] ४१८ चामराजनगर ( मैसूर ) १५वीं सदी, कन्नड ५ श्रीमूलद संगद का- २ जूर्गणद अन३ न्तकीर्तिदेवर गुड ५ बोप्पय सन्ब. सनविधियि [ इस लेखमें मूलसंघ-काणूर गणके अनन्तकीतिदेवके शिष्य बोप्पयके समाधिमरणका उल्लेख है । लिपि १४वीं सदीकी है। ] [ए० रि० मै० १९३१ पृ० ११२ ] Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४१९ ] मामिका केल સ माविमरे ( कडूर, मैसूर ) १४वीं सदी, कचड १ स्वस्ति श्रीमतु मन्मवसंवत्सर प्रथम श्रावण झु । गुरुवार पुष्यनक्षत्रदलू श्रीचंद्रनाथन चैरथाकबदलू २ तोलहरवलिय अनलकसेहितिय मग आदिसेहिय येरमिसिद चतुर्विंशतितीर्थंकरप्रतुमंच बिरिसि कु २९० ३ तार्थ नादेन मद्र शुभं मंगलं भूयात् पुनदर्शनं शुभं मंगल महा श्री श्री श्री [ इस लेखमें चतुविंशति तीर्थकर मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । अनंत कसेट्टितिके पुत्र आदिसेट्टिने यह मूर्ति स्थापित की थी । तिथि प्रथम श्रावण शु० (?) मन्मथ संवत्सर ऐसी दी है। लिपि १४वीं सदीकी है । ] [ ए०रि० मं० १९४६ १० ३७ ] ४२० गेरसोप्पे (मैसूर) शक १३२३= सन् १४०१, कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्यादवादामोघलांछनं जी २ यात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ३ नगिरि कुलचक्रवर्ति....राजनिर्जित... ४ ला सामन्तर बलियं यिन्ता होमभूपनलियं आ साम ५ न्तन पुत्रनर्थिकामं कोमल "मरसं भरिनृपालनातन ... ६ दे.घर चारुकीर्तिपण्डित सद्गुरुप्रभु आ कामनृपालन मान ७ योजि राज्यमे नगिरियुमनितुं तनगागे बैचणभूपति म... ८ नेगल रिपुसैन्य 'नवरन पदसरसि जिन मुनिपादांबुजात "नृपाल Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह 8 बैचणसेट्टि परिणतान्तस्करणमन्तप हैवेरायन प्रतापवेन् १० सेन्दोडे स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर .....नियमोसरगण्ड प्रताप... ११ सूरेकार सिवसिंहासनचक्रवर्ति निलिंपपुरवरा१२ वीश्वरनेनिप बैचिराजं राज्यं गयिवलि शकवरुष २९८ १३ १३२३ नेय विक्रमसंवत्सर माग शु १ मन्दवारद १४ रात्रियालु हैवेराजन अलिय मंगराजनु स्वर्गस्थनाद श्रीजि१५ नराजराजितपदाम्बुजभृंग कीर्तियिन्दी जगदोलो १६ ... वलमोपुव दानियु हैवेभूपन राजिय पट्टदानेयं १७ .....गोविजनरह विक्रमसं नगिर मंगनृपं सुरलोक१८ केयदिदं विसुन्दरस्य मत्त राजं जिनमतांबुधिहिमकि१६ रणं नगिरपुराधीश मंगरसंगं राजसत २० ''''रतिपंचबाणनस' श्रीमंगभूपालकं हिमरुक "श्री"विक्रमसंवत्सरद माघमासद... २१ २२ लु सुरांगनारमण ... २३ जीये म्बिनं... २४ ....ससिमिते श्रीविक्रमा.... [ ४२० २५ काल्यस्थे देवप्प' सूभे पक्षे वल२६ क्षे मन्दवार.." २७ सुरपदमं.. [ यह लेख गरसोप्पेके राजा हैवेयरायके जामात नगिरपुरके प्रमुख मंगरसको मृत्युकी स्मृतिमें लिखा गया था । इसकी तिथि माघ शु० १, शनिवार, शक १३२३ विक्रम संवत्सर यह थी । लेखका बहुत-सा भाग घिस गया है । इसके पूर्वभागमे होन्न राजा तथा बैचणसेट्टिका उल्लेख है । उनका मंगरससे क्या सम्बन्ध था यह स्पष्ट नहीं है । ] [ ए०रि० मै० १९२८ पृ० १०० ] Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४२२ ] सक्करेपण आदिके लेख २९९ ४२१ सक्करपट्टण ( मैसूर ) शक १३२८= सन् १४०५, कन्नड १ श्रीमत् परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछनं (1) जीबात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ( 1 ) . २ श्रीमद् राय राजगुरु मण्डलाचार्य पुरविक्रमादित्य मध्याह्न - श्रीमल्लक्ष्मीसेन मट्टारकरवर ३ कल्पवृक्ष सेनगणाप्रगण्यरुमध्य श्रीमत् श्रीमानसेनदेवर निषिधि शकव ४ . १३२८ नेय पार्थिव संवत्सर १० लु ५ श्रीमुत्तद होसऊर बैचसेहिय मक्कलु मायसेहि बोग्मि सेटि नागणसेहि अवर मोम्मक्कलु बैच ६ शेट्टीय तम्मसेट्टि को रिसेहि चिक्कवैवसेहि मादिसेहियर मक्कल को रिसेहियरु [ यह लेख सेनगणके भट्टारक लक्ष्मोसेनके शिष्य मानसेन देवकी समाधिका स्मारक है । यह निषिधि मुत्तदहोसकरके बैचसेट्टि के पुत्र मायसेट्टि, वोम्मिसेट्टि आदि शक १३२७ मे स्थापित की थी । ] [ ए०रि० मं० १९२७ पृ० ६२ ] ४२२ कोरग (द० कनडा, मैसूर ) शक १३३१ = सन् १४१०, कन्नड [ यह लेख केरवसेके राजा सान्तर वंशीय वीरभैरवके पुत्र पाण्ड्यभूपालके समय पुष्य शु० १०, गुरुवार, शक १३३१, सर्वधारि संवत्सरका है । इसमे बलात्कारगणके वसन्तकीतिराउलकी प्रार्थनापर बारकूरुकी सदिके लिए राजा द्वारा कुछ भूमिके दानका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ५३० पृ० ४९ ] Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० जैनशिलालेख संग्रह [ ४२१ ४२३-४२४ भटकल ( उत्तर कनडा, मैसूर ) शक १३३२ = सन् १४१०, कड [ ये दो लेख हैं । कार्तिक शु० १०, सोमबार, शक १३३२ सर्वधारी संवत्सर, यह इनकी तिथि है । एकमे संगिराव ओडेय द्वारा उनके किसी सम्बन्धित मल्लिराय नामक व्यक्तिके समाधिमरणपर निसिधिकी स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें किसी राजकन्या के समाधिमरणपर निसिधिस्थापनाका उल्लेख है । इसमें हैवभूप, भैरादेवी तथा संगिरायका भी नामोल्लेख है । ] [ रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० ३३९-४० ] ४२५ लक्ष्मेश्वर (मैसूर) शक १३३४ = सन् १४१२, कमड [ यह लेख विजयनगरके देवराय महारायके समय मार्गशिर शु० २, रविवार, नन्दन संवत्सर शक १९३३४ को लिखा गया था। शंख बर्सात के आचार्य हेमदेव तथा सौम्यदेव ( शिवमन्दिर ) के शिवरामय्य-द्वारा दोनों मन्दिरोंकी भूमिकी सीमाके बारेमे कुछ विवादका समझौता किये जानेका इसमें उल्लेख है । यह कार्य नागण्ण दण्डनायक द्वारा सम्पन्न हुआ था । ] [रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई० ३३ पृ० १६३ ] ४२६-४३० टोंक ( राजस्थान ) संवत् १४७० = सन् १४१३, संस्कृत - नागरी [ ये ५ मूर्तिलेख है । मूलसंघके आचार्य प्रभाचन्द्रके शिष्य पद्मनन्दि उपदेश से खण्डिलवाल कुलके कुछ व्यक्तियों द्वारा ज्येष्ठ शु० ११, गुरुवार, संवत् १४७० को ये मूर्तियां स्थापित की गयी थीं । ] [ रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ४६६-७० पृ० ६९ ] - Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुलगुन्दके केस ४३१ मुलगुन्द (धारवाड, मैसूर ) शक १३४२ सन् १९९०, कसद [ यह लेख वैशाख शु० १४, रविवार, शक १३४२, शार्वरी संवत्सरका है। इस समय रायराजगुरु हेमसेनके शिष्य बुलिसेट्टिका समाधिमरण हुआ था। [रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई० ९५ पृ०८] मुलगुन्द ( धारवाड, मैसूर) शक १३४३ सन् १४२१, संस्कृत-कन्नड [ यह लेख चन्द्रनाथबसदिमें है। इसकी तिथि भाद्रपद शु० ९, शुक्रवार शक १३४३ प्लव संवत्सर है। इस समय स्वरटौरके तिलकरसके मन्त्री हेग्गडे मदुवरसके पुत्र नागरसकी मृत्यु हुई थी।] [रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई० ९४ पृ०८ ] गेरसोप्पे ( मैसूर) शक १३४३=सन् १४२१, संस्कृत-कन्नर १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछन । जीवात् त्रैलोक्य नाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ श्रीजम्बूद्वी२ पमध्यस्थितजनसर"स्मारवाम्बकृतश्रायर"तर"जिनपदपद्मभंग"स्तमित""जायातं पसनं त्यतपंक Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [ ४३३३ ... विद्यवल्ली' "मुक सुलमरारम्य""स्थितजिनेन्द्रपादयुगपद्ध भुंगा संसा४ २."माधि''तेसेद"दुदुभूबरें५ द्रः तदीयवंशोभवमंगभूपो साहित्यलक्ष्मी "भामाति लक्ष्मी जिनमंदिरेषु कामं कामितदायकः कन६ रुट कन्दर्पसर्वप्रियः कल्याणकलनानन्त''''श्रीमंगभूपस्य जिनेन्द्र पादद्वयपद्मगन्धमिल गोभवत् सन्ततं ७ तदीयवंशसंभूतः केशवाख्यः क्षितीश्वरः वशीकरोति सहसा वन्दिगेहेषु सम्पदं""मुपासितुं मवतु ते गात्रं हि८ भाद्रीकृतं । श्रीमत्केशवभूमिपालचरितं श्रुत्वा स्तुवन् किन्नरैः तोषाकम्पितशंभुमौलिविलसद्गंगातरंगास्पदं आश्रयाशो दहस्थाशु स्वाश्रयं स्वतनाथ सा ( ? स्वीयतेजसा) है केशवेन्द्रप्रतापाग्निः नाश्रयं तापयस्यहो । कंशवेन्द्रगुणान् वक्तुं को वा शक्नोति पण्डितः आकाशस्थितनक्षत्रगणना केन मुच्यतं ।। वर्धमानान्वयोद्भवे निधूताश्रित१० दरिद्रे निजपतिनियमांतधियुते होन्नबरसि विशुद्धात्मिके आने वलिगे तिलकमेनिक्कुं १ मा होन्नबरसियरसं श्रीदेवनृपं जिनक्रमांबुज गं बाहुबलनिर्जितरि११ पुभूपं साहससमुद्रनमिनवकामं । तयोरभून्निर्मलजकबरसी नुता सुशीला जिनभक्तियुक्ता तं चोपयेमे वरमंगभूपो जामातृवयों भुवि है१२ वराजः अनिन्दादपि निर्गन्तुं भोरवः खलु योषितः मंगभूपाल कीर्तिस्तु कामिनीवातिलंबिनी तयोरभूनां जिननाथनम्रौ मात्रा पुनीताखिलजैनल". Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१५३] गेरसोप्पेका लेख १३ धात्रीव हैवणश्रीमावलरसो समूर्जिताद्वानयुता सुशीला श्रीमन्नननिलिम्प - मौलिविलसन्माणिक्य. सर्पद्यतिपादपन - नखर श्रीपार्श्वना१४ थेन तु कामं मंगरसात्मजो गुरुगुणीहैवणाख्योमवत्""" जैनयोगिनिकरर साहित्यरत्नाकरर् श्रीमद्धातृनितम्बिनीव नितरां नृपालंकृता भू१५ मौ भूरिगुणोजमास्करलसत्प्रत्यग्रमासान्विता काम मंगनृपा... गुरुदया देवी""श्रीमावलांवा "सुभासूतियुति प्रत्यहं १ कं । १६ आ मावकरसियरसं भूमीशविनम्रपाद केशवभूषं कामारिमसित मस्तकसोमद्युतिकीर्ति को"सुरलोकद सुरतरुविन गुरुफ१७ लमं मेदु तृप्तियिल्लदे सुरक्षं धरेयोल भूसुरादरु बरकेशवभूप कल्पभूजस्पृहेयिं मातिकीर्त्या श्रीकेशवमापतिरप१८ रांबुधितीरगा जिनपतिश्रीपादपमानता भूमौ भाविजिनेन्द्रचन्द्र विलसच्चारित्रनु"रागोदया संसारसारोदया। १९ त्र्यन्ध्यग्न्यैकसमन्धिते शककृते श्राशावरीवत्सरे माधे मानित पंचमीतिथियुते श्रीसौम्यवारे सिते पक्षे 'आदिराजवनिता धर्मामिधाने पुरे कामं कारयति स्म २० जक्यबरसी पाश्च प्रतिष्ठा मुदा। अनन्तरं । नगिरद राज होन्नरसनन्वयवार्षिगे चन्द्रं सले तां सोगयिप हैवेभूपनलियं कलिकालद २१ कर्णनेम्बरी जगदलु मंगभूवरन बान्धवे तंगलेदेविनन्दनं नगेमोगदा कल्पभूज केशवरायनु कीर्तिवल्लमं । के। अन्ता नगिरद राज२२ र सन्तानाधियोलु लक्ष्मीमाणिकदेवीकान्तनू एनिपंवीरायंगे कन्तुविनन्तुदयिसिद संगनृपालं संगविदूर क्षेमपुरतीर्थ जिनेन्द्र पाद Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जैनशिलालेख संग्रह [ ४३३ २३ पद्मकं शंगणजीयनालजनु अम्बमहोशन पुत्र संगम सन्न मनमोल्वन्तीधर्मवं माडि पूर्व दोल पिंगिद धर्मवेल२४ वनु पालिसिदं रविचन्द्ररुक्किनं । अन्ताधर्मप्रतिपालक ने निप श्रीसंग भूपालं सुखदिं राज्यं गेयुन्तिरलू विडेयोलु कुन्तखनाडु करं रंजि २५ से पश्चिमनाडु देशदोल कलवे वापी कूप नदी मामरनिं पनसीले बालेयि बालेचिं बल सिकोड को कमिथुनमोदलागिरकल्कि बारवेगल नडवोप्पु २६ वी पुरजनालुवन् अज्जनृपाकबेम्बवं । बिरुन्दुरधिपति तां करमोga अडिवरवलियिं करमेसेवनु तम्मरस...बलियं कीर्ति२७ बेतना तम्मरसं । आा तम्मरसनप्रजेय तनूजं धरेयोल इस्टूर भूसुरनुत कल्करसननुजे तंगदेबिगे वरनेमिप हॅवेयरसन वरपुत्रं प२८ ग्रणरस जैनपदमक्तं । आ पद्मन्णरसनू आतनग्रजे अक्कलदेविय." तन्दे हैवण्णरसरू पार्श्वतीर्थेश्वर माडिद नित्यपूजे२९ आहारदानमोदलाद (बु) मेस्कवं पुरो दिगे सकिसि मुन्निन धर्मवेल्लवं नेरेमाडि बलिक तन्नोलु सन्नुतबुद्धि पुट्टे जिनेन्द्रनमिकनु नित्यपू ...: ३० जनं सुन्नेसेवन्नदानमोदकादवनुं पिरिदायि माहितृप्तिथिन्दोfar पद्मरसं मिगे कोह वृत्तिवं । श्रीपार्श्वतीर्थेश्वर श्रीकार्य३१ क्केयू अंग मोगचैत्यालयद जीर्णोद्धारक्के धारा पूर्वकवागि कोहन्ता वृत्तिय विवर हैवण्णरसरू ताबु मलवागि आकुतिर्द कोणुवणिय३२ लि कंगन कुलिय इन्नेरड मूडे सुनिमे सीमे मडलु अमिनसेहितं हित्तल गदे तेंकलु हरिदु कोडि गाडि पडुबलु तम्मरसर होसगद्देयलु चिक्किद कल्लुगडि ३३ बडगलु डीलेयभागे यडिबिल्डी चतुस्सीमेविदोकगुल्क ककवेय समस्तवृत्ति पद्मरसरु तावु मूलवागि आलुत्तर होन्नमय केरेब Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४३० ] મ્ય १४ मेले येति होम्नाबरद नास्कुवरे होम्नन् तम्म अम्म संगलदेवियरिगे पुण्यार्थ परिहारमागे बिहुदु हैवण्णरसरू त३५ म्म मनःपूर्वकवागि कोहु सर्वमान्यवागि मूलस्थलागि तावु भालु यिदु बडेय मज्जन वृत्तिगे गढि मूढलु होळे तेंकलु होले गडि पडवल afafter ३६ ३७ ... समस्तवृत्तियन् श्राहारदानक्कवागि याचन्द्रा कंत्रागि ३८ धारापूर्वकं माडि कोहरु मस्तु आहारदानक्के या चिस्यालयद गृह [ इस लेख में पद्मण्णरस-द्वारा पार्श्वतीर्थकर मन्दिरके लिए ४ होन्नु कीमत की भूमि दान दिये जानेका निर्देश है। पद्मण्णरसकी माता तंगलदेवी तथा पिता हैवण्णरस थे। उसकी बड़ी बहिन जक्कलदेवी थी । तंगलदेवीका बन्धु कल्लरस था जो इरुबुन्दूरके शासक तम्मरसका भानजा था । यह कुन्तलनाडुके राजा अज्जका जामाता था । अज्जका समकालीन राजा संग था जो अम्बराजाका पुत्र था। अम्बका पिता संग था जो अम्बीराय और माणिकदेवका पुत्र था तथा राजा केशवका वंशज था । केशवकी पत्नी माबलरसि मंग राजाकी कन्या थी । मंगकी पत्नी जक्कब्बरसि हैवण और होन्नबरसिकी कन्या थी । इस दानकी तिथि माघ शु० ५ बुधवार, शक १३४३, शार्वरी संवत्सर ऐसी दी है । ] [ ए०रि० मं० १९२८ पृ० ९३ ] ४३४ उडिपि (द० कनडा, मैसूर ) शक १३४६ = सन् १४२४, संस्कृत- कन्नड [ यह लेख ( ताम्रपत्र ) विजयनगरके देवरायमहाराजके राज्यकालमें पुष्य शु० ६, बुधवार, शक १३४६ क्रोधि संवत्सर के दिनका है। इसमें २० Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [ ४३५मूलसंध-बलात्कारगण-सरस्वतीगच्छके वर्धमान भट्टारककी प्रार्थनापर राजा-द्वारा वरांग नामक ग्राम नेमिनाथमन्दिरको अर्पित किये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ए १२ पृ० ५ ] [ इस ताम्रपत्रको प्रतिलिपि वरांग ग्रामस्थित नेमिनाथबसदिमें एक पाषाणपर उत्कीर्ण है। ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ५२५ पृ० ४९ ] ४३५ माण्डू (धार, मध्यप्रदेश) (संवत् ) १४८३ =सन् १४२६, संस्कृत-नागरी [इस लेखमें सम्भवनाथको मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है। तिथि ( संवत् ) १४८३, वैशाख ( चैत्र ) शु० ५, गुरुवार ऐसी दी है । ] " [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १८२ पृ० ४४ ] बसरूर ( दक्षिण कनडा, मैसूर ) शक १३.३=सन् १४३१ [ यह लेख देवराय २ के राज्यमे शक १३५३ में लिखा गया था। इसमे जैन मन्दिरके लिए बसरूरके चेट्टियों द्वारा वहाँके बाजारमें आनेवाली चावलकी हर गाड़ीपर एक 'कोलग' दान दिये जानेका उल्लेख है। [इ० म० दक्षिण कनडा २७ ] Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५३९] कुष्णतर मादिके लेख ४३७ कुण्णतूर ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) शक १३६३-सन् १४५१, तमिल [ यह लेख ऋषभनाथबसदिके पूर्वी दीवारपर खुदा है। कुरै ( कुण्णत्तर ) के अहंत्-मन्दिरका निर्माण शक १३६३ में होनेका इसमें वर्णन है। [रि० सा० ए० १९४१-४२ क० १०३ पृ० १४० ] ४३८ बदनोर ( भीलवाडा, राजस्थान ) संवत् १(8)१७ सन् १४४२, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमे संवत् १(४)९७ में शान्तिनाथका उल्लेख किया गया है। [रि० इ० ए० १९५४-५५ ० ४५० पृ० ६७ ] ४३६ कुण्डघाट (जि. मोंधोर, बिहार ) संवत् १५०५= सन् १४४६, संस्कृत नागरी मग्न मन्दि में एक महावीरमूर्तिके पादपीठपर [इस लेखमे संवत् १५०५ फाल्गुन शु० ९ को महावीरमूर्तिकी स्थापनाका निर्देश है । ] [रि० ई० ए० ऋ० ८ (१९५०-५१) ] Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३.६ बनशिलालेख-संग्रह [ . ४४०-४४१ बैन्दुरु (द० कनडा, मैसूर) शक १३(७) = सन् १४५०, कमर [ यह लेख विजयनगरके मल्लिकार्जुन महारायके समय चैत्र शु. १०, गुरुवार, शक १३(७)१ शुक्ल संवत्सरका है। इस समय बंदूरके पार्श्वनाथ बसदिके लिए कुछ लोगों द्वारा दिये हुए दानोंका विवरण इसमें दिया है । देवप्प दण्डनायकका भी उल्लेख है। इसी समयका दूसरा लेख यहीं है। इसमे हाडुवलिय राज्यके शासक संगिराय ओडेयके पुत्र इंगरस ओडेयके समय पार्श्वनाथबसदिको प्राप्त दानोंका विवरण है । ] [रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० ५३६-३७ पृ० ५३ ] वितलद्रग ( मैसूर ) शक १३८५=सन् १५६३, कमर १ सखवरुस १३८५ सोमकृति सं. २ वछरद कतिकसुध १५ प्राकिय मं. ३ गिसेट्टिय मग गुम्मिसेटियर नि४ स्तिगे श्रीवीतराग [ यह एक निसिधिलेख है। आकिय मंगिसेट्टिके पुत्र गुम्मिसेट्टिके समाधिमरणका यह स्मारक है । तिथि कार्तिक शु० १५, शक १३८५, शोभकृत् संवत्सर इस प्रकार दी है। [ए. रि० मै० १९३९ पृ० १०४ ] Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वितलबुग बादिके लेखा ३०१ ४४३-४४४ चितलगुग ( मैसूर) १५ों सदी ( सन् १४७२), कार १ नंदन सं २ बाचण्णगल ३ निस्तिगे [ यह निसिषिलेख वाचण्णके समाधिमरणका स्मारक है। १५वों सदीकी लिपिमें नन्दन संवत्सरका उल्लेख है अतः सन् १४७२ का यह लेख होगा। यहींका एक अन्य लेख इसी समयकी लिपिमें है जिसमें गुम्मटदेवकी निसिधिका उल्लेख है । यथा १ सखबर- २ भासामु ३ (गु) मटदेव इसमें तिथिके अंक लुप्त हो चुके हैं । ] [ए. रि० मै० १९३९ पृ० १०४-५ ] गुरुवयनकेरे (द० कनडा, मसूर ) शक १५०६=सन् १९८४, काड [ इस लेखमें शक १४०६ मे नरसिंह बंग-द्वारा कन्नडिबसदि नामक जिनमन्दिरको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ४८१ पृ० ४५ ] बिदिकर (शिमोगा, मैसूर ) शक १४१०=सन् १९८८, कपड , स्वस्ति स (क) परिष १० नेप प्लवंग संघरद जेष्ट सुर Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० जैनशिलालेख संग्रह [ ४४७ पंचमि आदिवारदल अदियर् बलिय गण्डलिकेय उटेकोंड रामनायकनु बिदिरुरल्लि तनगे स्वर्गापवर्गसुखक्के का २ (२) वागि चैत्यालय व कट्टिसि आदीश्वरन प्रतिष्ठेयन माडिसिदनु श्री [ इस लेख मे रामनायक द्वारा बिदिरूर ग्राममें चैत्यालय बनवानेका तथा आदिनाथकी इस मूर्तिकी स्थापना करवानेका वर्णन है । यह कार्य ज्येष्ठ शु० ५, शक १४१० के दिन सम्पन्न हुआ था । ] [ ए०रि० मं० १९४३ पू० ११३ ] ४४७ जबलपुर ( मध्यप्रदेश ) संवत् १५४३ = सन् १४६३, संस्कृत-नागरी [ यह लेख पार्श्वनाथकी भग्न मूर्तिके पादपीठपर है । तिथि वैशाख शु० ३, संवत् १५४९ ऐसो दी हैं । ] [रि० इ० ए० १९५१-५२ क्र० १२३ पृ० २१ ] ४४८ शिवडूंगर ( राजस्थान ) सं० ० १५५६ = सन् १५००, संस्कृत नागरी [ यह लेख मूलसंघ-बलात्कारगण - सरस्वतीगच्छके आचार्य रत्नकीर्तिके समय सं० १५५६ में लिखा गया था। इनकी गुरुपरम्परा पद्मनन्दि-शुभचन्द्रजिनचन्द्र रत्नकीर्ति इस प्रकार बतलायी है । ] [रि० आ० स० १९०९-१० पृ० १३२ ] Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४४९] हुमचका लेख हुमच ( मैसूर) १५वीं सदी, कन्नड , श्रीमत्परमगंमीस्था- २ द्वादामोघलांछनं ३ जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शा. ४ सनं जिनशासनं ५ विरोधिकृत् संवत्सरद आश्वी. ६ ज बहुल दसमि सोमवा७ रदलु । श्री मदायराज- गुरु मंडलाचार्यरुं १ महावादवादीश्वर रा- १० यवादिपितामह सकल" विद्वजनचक्रवर्तिगहुँ श्रीम- १२ द्वादोंद्रविशालकीर्तिम१३ -स्वरकुलकमलमातंडाँ १४ श्रीमदमरकातियतीश्वरप्रि१५ याप्रशिष्यहं मूलसंघ ब- १६ लात्कारगणाग्रगण्यरुमप्प १७ श्रीधर्मभूषण महारकदे- १८ वर प्रियगुड्ड श्रीमदम१९ रेंद्रवंदितजिनेंद्रपादार- २० विंदमधुकरचें चतुर्विधदा२१ नचिंतामणियुं खंडस्फुटि- २२ तजीर्ण जिनालयोद्धारकनुम २३ पविटिसेट्टिय मग चोकिसटि-२४ व निसिधि ॥ [ इस लेखमें बिटिसेट्टिके पुत्र चोकिसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है जो आश्विन २०१० सोमवार, विरोधकृत् संवत्सरके दिन हुआ था। चोकिसेट्रिके गुरु धर्मभूषण भट्टारक थे जो मूलसंघ-बलात्कारगणके अमर. कीति यतीश्वरके शिष्य थे। लिपि १५वीं सदीकी है।] [ए. रि० म० १९६४ पृ० १७५ ] Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ जैनशिलालेख-संग्रह [१५० ४५०-४५१ आदवनी ( बेल्लारी, मैसूर ) १५वीं सदी, तेलुगु [ ये लेख पहाड़ीपर एक पाषाणपर खुदे हुए तीर्थकरमूतिके पास और चरणपादुकाओंके पास हैं। ये बहुत घिसे हुए हैं। मूतिके पास एक शकवर्षकी संख्या खुदी है तथा पादुकाओके पास किसी आचार्यका नाम है। दोनों अच्छी तरह पढ़ना सम्भव नहीं है । लिपि १५वीं सदीको है।] [रि० सा० ए० १९४१-४२ क्र० ७४-७५ पृ० १३७] ४५२-४५३ नरसिंहराजपुर ( मैसूर ) १५वीं सदी, कमाड [ यहाँके दो मूर्तिलेख १५वीं सदीके लिपिके है। इनपर देविसेट्टिके पुत्र दोडणसेट्टि तथा नेमिसेट्टिके पुत्र गुम्मणसेट्टिके नाम उत्कीर्ण है।] [ए० रि० में० १९१६ पृ० ८४ ] हनसोगे ( मैसूर) १५वीं सदी, कमर १ हनसोगेय हिरियबसदिय २ कोण्डिय कल्ल ओरसेय बोम्मि३ सेट्टियरु इक्किसिदा [ यह लेख स्थानीय आदीश्वरबसदिके सभामण्डपके छतके पाषाणपर खुदा है। यह पाषाण ( कोण्डियकल्लु) बोम्मिसेट्टि-द्वारा स्थापित किया गया था ऐसा लेखमें कहा है । लिपि १५वीं सदीकी है। ] [ए० रि० म० १९३९ पृ० १९४ ] Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ४५६ ] मूडबिदुरे आदिके लेख ४५५ मूडबिदुरे (मैसूर) शक १४२६ = सन् १५०४, कट ३१३ [ इस ताम्रपत्र मे उल्लेख है कि कदंब कुलके शासक लक्ष्मप्परस अपरनाम भैररसने जैनोंके ७२ संस्थानोंके प्रधान आचार्य चारुकीति पंडिताचार्य के एक शिष्यको अपने राज्यके एक हिस्से के धार्मिक अधिकार प्रदान किये । तिथि आश्विन कृ० ५, शक १४२६, क्रोषि संवत्सर । ] [रि० स० ए० १९४० - ४१ ० २४ क्र० ए ५ ) ४५६ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) शक १४३१ = सन् १५०९, तमिल [ यह लेख मकर शु० १०, गुरुवार, शक १४३१ को लिखा गया था । विजयनगरके शासक नरसिंहरायके समय रामप्प नायकने मन्दिरोंकी भूमिपर जोडि संज्ञक कर लगाया था जिससे मन्दिरोंकी हानि हुई थी । कृष्णदेवराय सिंहासनारूढ़ हुए तब उन्होंने मन्दिरोंकी भूमिको करमुक्त घोषित किया | इस घोषणाका लाभ पडैवीट्ट तथा चन्द्रगिरि प्रदेश के जैन और बौद्ध मन्दिरोंको भी हुआ । करन्दै स्थित जिनमन्दिर भी इससे लाभान्वित हुआ ऐसा लेखमें कहा गया है । ] [ रि० स० ए० १९३९-४० क्र० १४४ ] Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख-संग्रह [४५७ ४५७ गुरुवयनकेरे ( द० कनडा, मैसूर ) शक १४३१ % सन् १५१०, कन्नड [ यह लेख स्थानीय शान्तोश्वरबसदिके मण्डपमें है। इसमें माघ १० १०, सोमवार शक १४३१ को बेलतंगडीके कुछ लोगों-द्वारा कुछ भूमिके दानका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ४८० पृ० ४५ ] ४५८ वरांग ( ६० कनडा, मैसूर) शक १४३७ = सन् १५१५, कन्नड [ यह लेख विजयनगरके कृष्णदेवमहारायके समय माघ शु० ५, शुक्रवार, शक १४३७ भावसंवत्सरका है। इसमें तुलुराज्यके शासक रत्नप्पोडेयका उल्लेख किया है। देवेन्द्रकीतिकी प्रार्थनापर इस बसदिके लिए देवराय-द्वारा पहले दी हुई भूमिके पुन. खेतीयोग्य बनानेका इसमे उल्लेख है। यह कार्य अक्कम्म हेग्गिडिति तथा उनके सहयोगियों-द्वारा सम्पन्न हुआ था ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ पृ० ४९ क्र० ५२८ ] ४५६ चामराजनगर (मैसूर) सन् १५१८, काड [ इस लेखमे अरिकुठारके महाप्रभु कामैय नायकके पुत्र वीरेय नायकद्वारा विजय ( पाव ) नाथ मन्दिरके लिए सन् १५१८ में कुछ दानका उल्लेख है। [ए० रि० मै० १९१२ पृ० ५१] Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४६२] कोह नगोरी भादिके लेख ४६० कोहनगोरी ( जयपुर, राजस्थान) संवत् १५७७ = सन् १५२१, संस्कृत-नागरी [ इस लेखकी तिथि माघ शु० ५, संवत् १५७७ यह है। इसमें मूलसंघ-बलात्कारगणके आचार्योकी परम्परा दी है तथा खण्डुलवाल अन्वयके राय रामचन्द्रके शासनका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ४१६ पृ० ६९ ] ४६१ वरांग ( द० कनडा, मैसूर ) शक १४४१ = सन् १५२२, कन्नड [ यह लेख पोंबुच्चके राजा इम्मडि भैरवरसके समय चत्र व० १२, सोमवार शक १४४४ चित्रभानु संवत्सरका है। इसमे राजा-द्वारा वरांगके नेमिनाथ बसदिके लिए भैरवपुर नामक ग्रामके दानका उल्लेख है। ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ५२९ पृ० ४९ ] ४६२ सोदे ( उ० कनडा, मैसूर) शक १४४५ = सन् १५२२, संस्कृत-काड [ यह ताम्रपत्र आषाढ़ पूर्णिमा शक १४४५ चित्रभानु संवत्सरका है। तोलव प्रदेशके क्षेमपुर (गेरसोप्पे ) नगरसे इम्मडि देवराय ओडेयर्ने बण्डवाल ग्रामकी कुछ भूमि लक्ष्मणेश्वरके शंखजिनबसतिके लिए दान दी थी। यह दान देशोगणके चन्द्रप्रभदेवके लिए था। ] [ए. रि० मै० १९१६ पृ. ६९] Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३११ जैनशिलालेख-संग्रह सोड (जि० उत्तर कनडा, मैसूर) शक १४४४ = सनू १५२२, कार [ यह ताम्रपत्र यहाँके भट्टाकलंक मठमें प्राप्त हुआ। हुलिगेरेकी शंखजिनर बसतिके लिए मल्लिसेट्टिने मासूरु मोसलेयकुरुवु विभागमें इम्मति देवराज ओडेयझसे कुछ जमीन खरीदकर दान दी । इसकी प्रेरणा देसिगणके विजयकीर्तिदेवके शिष्य चन्द्रप्रभदेवने दी थी। श्रावण शु० ५, गुरुवार, शक १४४४, विषु संवत्सर यह इसकी तिथि है। ] (रि० सा० ए० १९३९-४० ए० क० १५ पृ० २२) ४६४-४६५ भंटगेरी ( मैसूर) १६वीं सदी (सन् १५२३), काड [ये दो लेख है। पहला अनन्तनाथमूर्तिके पादपीठपर है। चैत्र कृ० ५, रविवार, स्वभानु संवत्सरके दिन यह मूर्ति अर्पित की गयी थी। इसका स्थापक हलुमिडि निवासी देविसेटिका पुत्र देवणसेटि था। मूर्तिका वजन १८० हल कहा गया है। दूसरा लेख चन्द्रनाथ मूतिके पादपीठपर है। यह मूर्ति आदिसेट्टि के पुत्र बोम्मरसेट्टि-द्वारा वैशाख शु० १, गुरुवार, स्वभानु संवत्सरके दिन अर्पित की गयी थी। दोनों लेखोंकी लिपि १६वीं सदीको है अतः संवत्सरनामानुसार ये शक १४४५ अर्थात् सन् १५२३ के प्रतीत होते हैं।] (मूल लेख कन्नडमें मुद्रित) [ए० रि० मै० १९३३ पृ० १२४ ] Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१६८1 मेल्लिका भादिके लेख नेल्लिकर ( द० कनडा, मैसूर ) शक १४४७=सन् १५२५, कमर [ यह लेख स्थानीय अनन्तनाथबसदिके प्राकारमें है। देवण्णरस उपनाम कोनको बहन शंकरदेवी-द्वारा कोयरवुरको बसदिके लिए धनु १५, रविवार, शक १४४७, तारण संवत्सरके दिन कुछ भूमिके उत्पत्रके दानका इसमें उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र. ५२२ पृ० ४९ ] ક૬૭ पल्लिच्छन्दल ( द० अर्काट, मद्रास ) शक १४५२= सन् १५३०, तमिल [ यह लेख एक भग्न जैनमन्दिरके स्थानपर है जिसे शैनियम्मण कोयिल कहा जाता है। विजयनगरके राजा अच्युतदेवमहारायने वैयप्प नायकके निवेदनपर शबके नायनार् विजयनायकर् नामक जिनमूर्तिकी पूजाके लिए जोडि और शालुवरि करोंका उत्पन्न अर्पण किया था। यह राजाज्ञा वेलूर बोम्मुनायकके समय उत्कीर्ण की गयी ऐसा लेखमें कहा है । तिथि मिथुन शु० १०, बुधवार, शक १४५२, नन्दन संवत्सर ऐसी दी है। [रि० सा० ए० १९३७-३८ क्र० ४४९ पृ. ५१ ] पटना म्युजियम (बिहार) संवत् १५९३= सन् १५३१, संस्कृत-नागरी [ यह लेख एक पीतलकी जिनमूर्तिके पादपीठपर है । इसकी स्थापना मूलसंघ-कुन्दकुन्दाचार्यान्वयके मण्डलाचार्य धर्मचन्द्र के उपदेशसे खंडेलवाल Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह अन्वयके कुछ सज्जनोंने की थी। प्रतिष्ठा तिथि ज्येष्ठ शु० ३, सोमवार, संवत् १५९३ ऐसी दी है। ] [रि० इ० ए० १९५३-५४ ऋ० १६२ पृ० ३३ ] ४६६ हनुमंतगुडि ( रामनाड, मद्रास ) शक १९५५ = सन् १५३३, तमिल मलवनाथ जैन मन्दिरके आगे पड़ी हुई शिलाओंपर [इसमें शक १४५५ के लेखके खण्ड है । एकमे जिनेन्द्रमंगलम् अथवा कुरुवडिमिदिका निर्देश है जो मुत्तोरु कूरम् विभागमे था।] (इ० म. रामनाड २७९) ४७० नीलत्तनहल्लि ( मैसूर) सन् १५३४, कन्नड [ इस लेख में सन् १५३४ में मदवणसेट्टिके पुत्र पदुमणसेट्टि-द्वारा अनन्तनायचैत्यालयमे किसी व्रतके पालनका उल्लेख है।] [एरि० म० १९१५ १० ६८ ] ४७१ लक्ष्मेश्वर ( मैसूर) . शक १४(६१)=सन् १५३९, कन्नड [ इस लेखमें जैन और शवोके एक विवादके समझौतेका उल्लेख है। यह विवाद जिनमूतियों के सम्मानके सम्बन्धमे था । जैनोंकी ओरसे शंखबसतिके शंखणाचार्य तथा हेमणाचार्यने और शैत्रोंको ओरसे दक्षिणसोमेश्वर Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारकल भादिके लेख मन्दिरके कालहस्ति और शिवरामने यह समझौता किया था। तिथि ज्येष्ठ शु० १ सोमवार, शक १४(६१), विलबि संवत्सर ऐसी दी है। (शकवर्षको संख्या अन्तिम अंक लुप्त हैं जो संवत्सरनामानुसार दिये गये हैं)। [रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र. ई १८ पृ० १६२ ] कारकल ( द० कनडा, मैसूर) शक १४६५= सन् १५४३, कन्नड [ यह लेख ( ताम्रपत्र ) चैत्र शु० ४ शक १४६५ शोभकृत् संवत्सरका है। इसमे चन्दलदेवीके पुत्र पाण्डयप्परस तथा तिरुमलरस चोटर इनमे अनाक्रमण सन्धिका उल्लेख किया है। इसके साक्षोके रूपमें जैन आचार्य ललितकोति भट्टारका उल्लेख हुआ है। ] [रि० सा० ए० १९२१-२२ पृ० ९क० ए ५ ] ४७३ कुरुगोड्ड (बेल्लारी, मैसूर ) शक १४६७ = सन् १५४५, काड एक मग्न मन्दिरके दक्षिणी दीवालपर [विजयनगरके राजा वीरप्रताप सदाशिव महारायके समय शक १४६७, विश्वावसु संवत्सरमें यह लेख लिखा गया। रामराज्य-द्वारा जिनमन्दिरके लिए कुछ भूमिदान देनेका इसमें निदंश है।] (इ० म० बेल्लारी ११३ ) Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह ४७४ कारकल ( मैसूर) शक १४६६=सन् १५४५, काड [ यह लेख माघ शु० ३, गुरुवार, शक १४६६, क्रोधि संवत्सरका है। चन्दलदेवीके पुत्र चन्द्रवंशीय पाण्ड्यप्प वोडेयके राज्यकालमें कारिजे निवासी सिदवसयदेवरस-द्वारा कारकलके गुम्मटनाथ स्वामोको कुछ भूमि अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० ३३९ पृ० ५२ ] ४७५ मूडबिदुरे ( मैमूर ) शक १४६८ = सन् १५४६, संस्कृत-कमड [ इस ताम्रपत्रमे बिलिगिके शासक वीरप्पोडेयको वंशावली छह पीढियों तक दी है । बिदुरे नगरकी त्रिभुवनचूडामणि बसतिके लिए इस शासकने चिक्कमालिगेनाडु विभागके कुडुगिनबयल ग्रामकी कुछ जमीनका उत्पन्न दान दिया था । इसी मन्दिरके चन्द्रनाथदेवको नैवेद्य अर्पण करनेके लिए एक चाँदीका प्याला और कुछ धन भी दान दिया था। यह दान वीरप्पके चाचा तिम्मरसको पत्नी वीरम्मके नामसे था। इसी तरह घण्टोडेयके पुत्र तिम्मप्पके नामसे चन्द्रनाथदेवके दुग्धाभिषेकके लिए कुछ दान दिया गया था। कात्तिक शु० ७, शक १४६८, विश्वावसु संवत्सर, यह इस दानकी तिथि थी। प्रथम आषाढ शु० १०, पराभव संवत्सर यह दूसरी तिथि दी है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र. ए २ पृ० २३ ] Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४०६ ] काम ताम्रपत्र लेख ४७६ काप ताम्रपत्र ( जि० दक्षिण कनडा, मैसूर ) शक १४७९ = सन् १५५६, संस्कृत-कन्नड १ श्री धर्मनाथ (ने) शरणु ॥ श्रीमत्परमगम्मीरस्याद्वादामोघलांछन । जोया ३२१ २ स्त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ स्वस्तिश्रीसकलज्ञानसाम्राज्यपदराजितः । व ३ र्धमानजिनाधीशः स्वाद्वादमठभासुरः ॥ तिन्त्रिणीगच्छवाराशेःसुधांशुर्ज्ञानदी ४ विविः । सद्धमंसरसीहंसः प्रवादिगज केसरी ॥ नमोभागे मामाति मुनि - काणूर गण ५ कुं (ज) रः । अज्ञान तिमिरोद्धृतिः श्रीमान् मानुमुनी (श्व) र: ॥ पंचाचारशरध्वस्त पंच अखण्डश्रोत पोलक्ष्मीनायको मानुसंयमी ॥ ६ बाणशरवजः । श्रीमद्भानुमु ७ नीश्व (रो) विजयते स्याद्वादधर्माम्बरे श्रीमद्ज्ञानविनूनदीधिति (a) तध्वस्तान्धका ८ स्वजः । श्रीमूलामलसं घनीरज महाषण्डेश्वखण्डश्रियं ध्यात (त्व) नू मुनि a areareनिकरं सौख्यार्णवे मग्नयन् ॥ तुलुदेशवेम्बभूपन पोलेव २१ महाप १० दकदंडे येसर्ग (से) गुं निच्कं । धरेयोळगे कापिन नगरद नेकननाल्व भूप महग्गडे यंम्बं ॥ ११ पंगुलवलि अधिपतियनु पोंगलसदे नेळके तानु नृपकुछतिलकं । संगतसभेयोलु Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ जैनशिलालेख-संग्रह [४७६१२ पो (गल्गुं) अंगजजयजिनपदाब्जमधुकरनें । भूदेविय मुखकनडि बाडे हेल्व१३ में कापुवेनिसिद नगरं । भादरदिगदरो (ल्गा) मेदिनिमतधर्म नाथनेन (से) गुंजिनपं ॥ आ नगर१४ क्कधिपतियुं श्रीपति तिरु (म) स नृप (अ)वनीतिलकं । वोमनदलि पातानुं वोतुकरं मुक्तिल१५ दिमागत्तं मनमं ॥ येनेम्बे मदहेग्गडे दानचतुर्विधक्के ताने चिंतारनं । सन्नुतगुणगण१६ निलेयं उन्नतशीलवनु ताल्द (नृ) परिपुसंहारं ॥ धर्मदोलं (ख) चित्तनु निर्मल१७ गुरुमक्तियल्लि तिरुमरसनृपं । धर्मजिनजैनशासनमं वोम्मन्दि तानु माडि क्रिति (य) १८ नितं ॥ स्वस्ति श्री जयाभ्युदय शालिवाहनशकवर्ष १५७६ नेय संद नलसंवरसर१९ द कार्तिक शुद १ आदित्यवारदलु श्रीमन्महाराजाधिराजराजपर मेश्वर सत्यरत्नाकर २० शरणागतवज्रपंजर चतुःसमुद्राधोश्वर कलियुगचक्रवर्ति श्रीवीर प्रताप सदाशिव२१ राय राजराजद्र दक्षिणभागमाग्यदेवतासंनिमरुमप्प रामराजय्य नवरू ये२२ क (च्छ) ऋदि राज्यवनु प्रजिपालिसुतिदं कालदलु बारकूरु मंगलूग्लु सदा(शि)वनायकर २३ राज्यवं गे(यि)तिर्द कालदलु तुलु(व)देशकामिनीमुखकमलतिल कायमानानादिसि२४ दुप्रसिद्धकापिसिंहासनोदयाचलालंकरणतरुणतरणीप्रकाशरूं अनन्यराजन्यसौ(ज) Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२३ -१७६] কাজ না কর २५ भ्य (ो)दार्यवीर्यधैर्य (मा)धुर्यगांभीर्यनयविनयसत्वशौचायनं तगुण२६ गणनूनरस्लामरणगणकिरणोधोतितमस्तादिसकल (पु)राणपुरुष रुमप २७ तिरुमलरसराद मइहेग्गडेयरु अवर नालिनवरु गणपणसावंतर कापिन राज्यव२८ नु प्रतिपालिसुतिदं कालदलु ॥ स्वस्ति श्रीमद्रायराजगुरु मंडला चार्य महा२९ वादवादीश्वर राज्यवादिपितामह सकलविद्व(ज)नचक्रवर्तिगलु इत्याधनेकबि३० रुदावलीविराजमानरं काणूगणाग्रण्यरुगलुमप्प श्रीमदमिनव३१ देवकीर्तिदेवरुगल शिष्यरु मुनिचंद्रदेवरुगलु (अ)वरुगल शिष्यरु देवचंद्रदे३२ वरुगलु तम्म गुरु मुनिचंद्रदेवरुगलिगे स्वर्गापवर्गक्के कारणवागि कापिन३३ लु धर्मवनु मादकैब चित्तविंद तिरुमलरसराद मदहग्गडेयरु ३४ डेयु अवर नालिनवरु गण(५)गसामंतर कूईयु कापिन हलर सहायदि३५ द धर्मके वोदु क्षेत्रवनु कोडबेकु येंदु चित्तैसलागि अबरुगलु धर्म३६ परिणामस्वरूपवने वुल्लवराद कारण गुरुमक्तियिद तम्म सीमेय३७ लुम(ला)रेग्ध (बू)रोलगे पडु(व)ण दिक्किनलु कलंतोपतिना बाल्कयलु अगलि३८ द वोलगे बेटिन गद्देल्कं बीज बल्ल मूवत्तर लेक्कद बत्त मूडे २ मत्तम. Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ जैनशिलालेख-संप्रह [७t३६ गालिंदं होरगे पापिनादियष गद्देदकं बीज बल्ल मूवसर लेकद बीज ४० मूडे ४ मतं बागिल गहल्कं बीज बल्ल मूवत्तर लेखद मूडे . ग मू पिछला माग ४१ रकं बीज मूडे १० ई भूमिगलिगे वुल्ल करे मुरे मने बावि हलसु मावु सुं. ४२ बे निक्विलिरुक्कंदै कदिर जल पाषाण सह मूलधारेयनु एरदु को४३ हु यिसिकोंद दोड्डवराहग ८० अक्षरदलु यभट्ट वराह यो हो४४ निगे येरड बेलेयलु सह वर्ष के बह अक्कि अंगडिय होरिगेय ४५ बल्ल ऐवत्तर लेक्कद अक्कि मूडे २४ ई अक्किगे नडव धर्मद विवर कापिन वस्ति४६ य केलगण नेलेयलु धर्मतीर्थकरसनिधियलु मध्याह्नकालदलु नित्यद - ४७ लु दिन वोदक्के वोंदुवल्ल अक्कि नैवेद्यक्कु (मु) निचंद्रदेवरुगल ५८ रिनलु नड(व) हालधारेगु मह अक्कि मृडे १० तिंगलु तिंगलु तप्पदं ति४६ गलल्लि १७ होहाग नडव वार ! मत्तं इप्पत्तदु २५ होहाग नड़व ५० वार १ अंतु तिंगलल्लि येरड वार समदाय नडवुदक्के अक्कि मूडवु ५१ १२ई वारंगलल्लि मंगलग्रयोदशी बहाग मा मंगलप्रयोदशी नडव Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काप ताम्रपत्र लेख ५२ (बैंदु) विशेषवागि यिरिसिद अक्कि मूडे २ अंतु मक्कि मूडे यिप्पत्तनाकु ५३ यो धर्मद स्थलदरित बल्लारिंगे अनाय सनाय सल्लदु इल्ल श्रा ५४ बोलिंगे विष्टि विडार सल्लदु काणिके देसे अप्पणे पददल्लि येत्तु सलदु मेंदु ५५ सर्वमान्यचागि तिरुमलरसराद महहेग्गडेयरु अवर नालिनवरु ग५६ गएणसामंतरु सह तम्म धर्मपरिणामनिमित्तवागि तम्म स्वरुधि५. विंद गुरुभक्तियिद वोडंबटु बरसि कोट्ट तांत्रशासन इंत५८ पुदक्के साक्षिगलु अधिकारि कांतसेष्टि चटं विक्रसेटि सामणि संकर५६ सेट्टि राजसेट्टि बग्गे(से)ष्टिय अलिय केसण मूलूर बेलिले बिरुमाल ६० दुग्ग बंडारि बिरुसामणि पितिनवर वुमयान्म(त)दि मं६१ गलूरु संकै सेनबोवन बरह । यिंती धर्मशास(न)के मंगल६२ महा श्री श्री श्री ॥ स्वदत्ताद् द्विगुणं पुण्यं परदत्तानुपालनं । ६३ परदत्तापहारेण स्वदतं निष्फलं भवेत् ।। दानपालनयोमध्ये ६४ दानाच्छ योनुपालनं । दानात्स्वर्गमवाप्नोति पालनादच्युतं ६५ पदं । यी धर्मशासनके पावनानोब्ब जैननादव सप्पिदरे बेलुगु६६ लद गुम्मटनाथ कोपणद चंद्रनाथ ऊर्जतगिरिय नेमीश्वर६७ मोदलाद जिनबिंबगलनोडद पापके होहरु शैवनादरं प६८ वतगोकर्ण मोदलादवरल्लि कोटिलिंगवनोडद पापक्के होहरु ६९ वैष्णवनादरे तिरुमलेमोदलादवरल्लि कोटिविष्णुमूर्तियनोड७० द पापक्के होहरु ।। मद्रं भूयाजिनशासनस्य ।। श्री Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [यह ताम्रपत्र शक १४७९ में लिखा गया था। उस समय विजयनगरसाम्राज्यके अधिपति सदाशिवराय थे तथा रामराज उनके प्रधान सेनापति थे । इस साम्राज्यके बारकूरु तथा मंगलूरु प्रदेशपर केलडि सदाशिव नायककी नियुक्ति की गयी थी। इस प्रदेशमे काप नगरका अधिकारी मह हेग्गडे था। इसने धर्मनाथ तीर्थंकरको पूजा आदिके लिए मल्लारु गाँवमे कुछ जमीन दान दी जिसकी आय ८० वराह थी ( वराह उस समयकी रौप्यमुद्राकी संज्ञा थी )। यह दान अभिनव देवकोतिके प्रशिष्य तथा मुनिचन्द्रके शिष्य देवचन्द्रके उपदेशसे दिया गया था। इसके पहले मूलसंघ-काणूरगण-तिन्त्रिणोगच्छके भानुमुनीश्वरकी प्रशंसा की गयी है। देवचन्द्र भी काणरगणके ही थे । अन्तम दानकी रक्षाके लिए जो शाप दिये हैं उनमे श्रवणबेलगोलके गोम्मटेश्वर, कोपणके चन्द्रनाथ तथा गिरनारके नेमिनाथको मूर्तियोंका उल्लेख किया है ] [ए० इं० २० पृ० ८९] चिप्पगिरि ( जि० बेल्लारी, मैसूर ) शक १८२ =सन् १५६०, काड [ इस लेखमे आदवानीके विशालकोतिगुरु तथा चिप्पगिरिके श्रावकोंद्वारा चतुर्थमुनीश्वरकी वन्दनाका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९४४-४५ ई ७४ ] ४७८ मूडबिदुरे (जि० दक्षिण कनडा, मैसूर ) शक १४८५= सन् १५६३, कन्नड [ इस ताम्रपत्रमे बिदुरे नगरकी चण्डोम पारिश्वतीर्थकर बसतिके लिए शंकरसेट्टि ऊर्फ विरणन्तर-द्वारा उसकी बहन शंकरदेवीके आग्रहसे कुछ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -...] मूरविदुरेके मेत धन दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान अभिनव चाएकीति पण्डितके आज्ञावर्ती सेट्टिकारोंको सौंपा गया था। १२५० वराह मुद्राओंके एक और दानका भी इसमें उल्लेख है। तिथि मेष ( त्रयोदशी), शुक्रवार, शक १४८५, रुधिरोद्गारी संवत्सर ऐसी दी है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ पृ० २३ क्र. १ ए] ४७६ प्रिन्स आफ वेल्स म्युजियम, बम्बई शक १४८५= सन् १५६३, शिलालेख क्र. B.B. ३०७, कबड [ यह लेख चैत्र शुक्ल १२, सोमवार, शक १४८५, दुन्दुमि संवत्सर, के दिन लिखा गया था। विट्ठप्प नायक तथा हेम्मरसि नायिकितिके पुत्र सालुव नायक-द्वारा गेरसोप्पेमें शान्तिनाथका मन्दिर बनवाये जानेका तथा इस मन्दिरको कुछ जमीन दान देनेका इसमें निर्देश है। इसमें नगिरे, हवे, तुलु तथा कोंकण इन पश्चिम समुद्रतटके प्रदेशोंपर रानी चेन्न भैरादेवीके शासनका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० ( १९५०-५१ ) क० २४ ] ४८० मूडबिदुरे ( मैसूर) शक १४९३ सन् १५७१, कार [ इस ताम्रपत्रमें मीचारमागाणे विभागके मरकत प्रामको कुछ जमीन विदुरेकी बसतिमे आहारदानके लिए अर्पित करनेका उल्लेख है । यह दान चौट कुलको अब्बक्कदेवीने उसकी बहन पदुमलदेवोकी पुण्यवृद्धि के लिए दिया था। पुत्तिगेके शासक इस दानका भंग न करें ऐसी सूचना अन्तमे दी है। तिथि पौष शु० ८, रविवार, शक १४९३ प्रजोत्पत्ति संवत्सर, इस प्रकार दी है। [रि० सा० ए० १९४०-४१ पृ० २३ ० ए ३ ] Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ जैनशिलालेख-संग्रह ४८१ महेश्वर ( मध्यप्रदेश) सं० १६२७ = सन् १५७१, संस्कृत-नागरी [ यह लेख सम्राट अकबरके राज्यकालमे संवत् १६२७ में लिखा गया था। मालवामे उस समय ख्वाजा अजोझ बेग प्रान्तीय शासक नियुक्त था। इस समय मण्डलोई सुजानरायने महेश्वरस्थित आदिनाथमन्दिरका जीर्णोद्धार किया। अकबरके शासनकालके अन्य दो लेख यहीं प्राप्त हुए हैं। इनमे मण्डलोई देवदास ( सुजानरायके बन्धु ) द्वारा संवत् १६२२ में महेश्वर मन्दिरका तथा संवत् १६२६ मे कालेश्वर मन्दिरका जीर्णोद्धार किये जानेका उल्लेख है। इस तरह जैन सज्जनों द्वारा जैनेतर मन्दिरोंको सहायताका यह उदाहरण है।] [इ० हि० का० १९४७ पृ० ३९२ ] ४८२ कुश्चंगि ( तुंकूर, मैसूर ) सन् १५७३, काड [ इस मूर्तिलेखमें कहा है कि नाल्कुवागिलु निवासी बोम्मिसेट्टिके पुत्र दानप्पने यह मूर्ति तथा प्रभावलि सन् १५७३मे स्थापित की।] [ए० रि० मै० १९१६ पृ० ८४ ] चित्तामूर ( द० अर्काट, मद्रास ) शक १५००=सन् १५७८, कमर-तमिल-संस्कृत [ यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके मानस्तम्भपर है। इस स्तम्भकी Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४८५] कारकस भादिके लेख ३२९ स्थापना जगतापिगुत्ति निवासी बायिसेट्टिके पुत्र बुश्शेट्टिने शक १५००, बहुधान्य संवत्सर में की ऐसा इसमें उल्लेख है । स्तम्भके दूसरी ओर संस्कृत भाषा और कन्नड लिपिमें इसी वर्णनका लेख है। इसमें बुश्शेट्टिको महानागकुलका कहा गया है। [रि० सा० ए १९३७-३८ क्र. ५१७-१८ पृ० ५७-५८ ] कारकल ( द. कनडा, मैसूर ) शक १(५). सन् १५८०, कन्नड [ इस लेखकी तिषि कार्तिक शु० १, शक १(५)०१ है। प्रारम्भ श्रीमत्परमगम्भीर""आदि श्लोकसे है । अन्य विवरण लुप्त हुआ है।] [रि० इ० ए० १९५३.५४ क्र० ३३७ पृ० ५२ ] सेतु ( शिमोगा, मैसूर ) शक १५०५-सन् १५७३, कन्नड १ स्वस्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहनशक वरुष १५०५ चित्रमानु संवत्सरद भाद्रपद सुद्ध १० शुक्रवारदंदु करूरु नाड चैपल्लिय तिम्म गौडरु यिवल्लिय नायक्क गौडरु जहिगौडर मग सेट्टिगौडरु मा समस्त श्रावकर सह मुंतागि सेनुविन बसदि श्री भादितीथेश्वररिंगे माहिस्त लोहद २ प्रभावलिगे आ समस्त जनंगलिगे मंगल महा श्री श्री श्री विरपयनु माडिदुदु [ यह लेख आदिनाथमूर्तिके पादपीठपर है। इस मूर्तिको स्थापना भाद्रपद शु० १० शक १५०५ के दिन हुई थी। स्थापक चैपल्लि ग्रामके तिम्मगौड तथा यिवल्लि ग्रामके सेट्टिगोड थे।] [ए. रि० मै० १९४४ पृ० १६७ ] Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० जैनशिलालेख संग्रह ४५६ येडेहल्लि ( मैसूर ) शक १५०६ = सन् १५८४, काड १ शुभमस्तु नमस्तुंगशिरश्च॑विचंद्रचामर (चार)वे २ त्रैलोक्यनगरारं ममू(ल) स्तंभाष शंभवे ॥ स्वस्ति श्री३ विजयाभ्युदय सासिवाहसकवरुष १५०६ नेय संद वर्तमान । ४ तारण सं। भाश्विजा शु १० मि भादिवारदलु श्रीमतु । दानिवा५ सद चेवरायवडेर । मकलु चिकचीरप्पवाडेरु मालु पेनवि६ रबाडेरु गेरसोप्पे समंतमद्रदेवर सिष्यरु गुणभद्रदेवरु सिष्य७ है। वीरसेनदेवरिगे। कोट भूमि क्रयपत्रद क्रमवेन्तेन्दरे मालेपा(ल) ८ बन्दप्पन मग लिंगण्णनु । नष्टलन्तनवा(गि)होद सम्मंद। प्रातन भू. है मि नागलपुरद प्रामद बलगे तेंगिनहितलग खकंग वंभ१० स बीजवरि । आ भूमि नम्म आरमनिगे हरवरियागि बन्द ११ सम्मंद । यी वीरसेनदेवरिगे क्रेयावागि कोटेवागि आ भूमि१२ गे सलुव क्रय द्रव्य । लक्षणलक्षित तरकालोचित मध्यस्तपरि. कल्पित उ१३ भयवादिसंप्रतिपन कालपरिवर्तनक्के सलुव पियसाहेनिजग१४ हि वरह ग ३२ अक्षरदलु मूवत्तु येस्ड वरहनु । तरविस उलि१५ यद। सले-साकल्यवागि सल्लिसि कोण्डेवागि। मा भूमिगे सलुव चत्तु१६ सीमेय विवर । मूडलु । ई गद्देय नीरएकल आगलिंद पडुलु Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ४८७ ] येडेहलिके लेख ३३१ १७ कलु केरेपरिविंद ब (ड) गलु || पहुवलु गुरुवध्य हेमरुवन तो१८ टदिदं मूडलु । बढगलु हानम्बियिंद तेंकलु । यिती चतुस्सि १९ मेवलगुल्क | निधि । निक्षेपजल । पासण अक्षोणि । आगमि । सिद्धमां २० ध्यंगलेंब । श्रष्टाभोग तेजसाम्यबलु नीड निम्म शिष्वरुपा२१ रम्पर्यवागि सुखदिं बोगिसि बहिरि यन्दं बरसि कोट क्रय शा२२ सन पटे दिक्के अबिलासे बिटवरु देवलोक मर्त्यलोक विर२३ हित । श्रीहत्य | गोहत्यक्क बजिनरहरू । विरपत्र२४ डेरु श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री [ यह लेख आश्विन शु० १०, रविवार, शक १५०६, तारण संवत्सर के दिन लिखा है । इसमें दानिवासके शासक चेन्नरायके पौत्र तथा चिक्कवीरपके पुत्र चेनवोरप्प वडेरद्वारा गरसोप्पेके वीरसेनदेवको कुछ भूमि दी जानेका उल्लेख है । वीरसेनके गुरु गुणभद्र तथा प्रगुरु समंतभद्र थे । उन्होंने ३२ वराह मूल्य देकर यह भूमि खरीदी थी जो पहले भालेपाल aratपके पुत्र लिंगurat थी और उसके सन्तानरहित स्थिति में मृत्यु होने से राजाधीन हुई थी । यह भूमि नागलापुर गाँवके क्षेत्रमें थी । ] [ ए०रि० मं० १९३१ पृ० १०४ ] ४८८७ येडेहलि (मैसूर) शक १५०७ = सन् १५८५, कड 3 सुभमस्तु । नमस्तुंगशिरश्धुं विचंद्रचामरवा २ वे त्रैलोक्यनगरारं ममूळस्तं माय शंभवे (1) स्व ३ स्ति श्रीजन्याभ्युदय शालिवाहनशकवरूप १५०७ ४ संद वर्तमान पार्थिवसंवत्सरद वयित्र व ७ मि आदि Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह ५ वारदल श्रीमस्तु । दानिवासद चेन्नरायवोडेयर म ६ कलु | चिकवीरपवोडेयर मक्कलु । वेनवीरप्पोडेयरू । गेरसो७ प्पे समंतभद्रदेवर सिव्यरु | गुणभद्रदेवर सिब्ब ८ वीरसेन देवरिगे । कोट भूमि क्रयपत्रद क्रमवेंतें I ३३२ [ ४८७ ९ दरे । बालेपाक तम्मयन मग नरसप्पनु नष्टसं १० तानवागि होद सम्मंद आतन भूमि यीचलदाल ग्रामदकि । ११ एण्टु खण्डुग बिजवरि भूमि नम्म भरमनिगे हरवरियागि १२ बन्द सम्मंद आ भूमिनू दानिवासद चेलरायवोडेय १३ र मक्कलु । चिक्कत्रीरवोडेयर मक्कल चेनवीरवोडेयरु । १४ गेरलोप्पेय समंतमद्रदेवर शिष्यरु गुणमद्रदेवर शिष्यरु १५ वीरसेन देवरिगे । क्रेयवागि कोटवागि। आ भूमिगे । सलुव । क्र१६ यद्रव्य । लक्षणलक्षित तत्कालोचित मध्यस्तपरिकल्पित उभे १७ यवादिसंप्रतिपक्ष कालपरिवर्तनके सलुव प्रिय १८ साहे । निजगति वरह गद्याण ग ३० अक्षरदलु मू१६ वत्तु वरहंनु तारविस उलियदे सल्लिसि कोण्डेवागि । श्रा एण्ड २० खण्डुग भूमिगे सलुव चतुसीमेय विवर मूडलु नन्दिगाव | २१ तिम्मरसैयन गदेविंदल पडवलु । पडुवलु नरसोपुर२२ हलदिं वलु (?) मूडल | बडगलू दरविंदलू । कलू । तें२३ कलु श्ररमने गदेविंदलु बढगलू । यिति चतुसीमैयालगु२४ ल निधि निक्षेप जल पाषाण अक्षोणि श्रागमि सिध साध्यंगलेंब २५ अहमोग तेजसाम्यवनु आगुमादिकोण्डु निवु निम्म शिष्य२६ रु पारम्परेयागि आचंद्राकंस्तायियागि सुखद भोगिस २७ बहिरि दुबरसि कोट क्रयस्यासनपटे यिदक्के अभिला२८ से बटवरु देवलोक मर्त्यलोकक्के विरहितरु । श्रोहत्य २९ गोहत्य बजनरहरु चेमवीरखोडेर श्री ३० श्री श्री श्री Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -४८९] चिकहनसोगेका लेख ३३३ [यह लेख चैत्र २०७, रविवार, शक १५०७, पार्थिव संवत्सरके दिन लिखा है। इसमें दानिवासके शासक चेन्नवीरप्प वोडेयर-द्वारा गेरसोप्पेके वीरसेनदेवको कुछ भूमि दी जानेका उल्लेख है। इस भूमिके लिए ३० वराह कीमत दी गयी थी। यह पहले बालेपाल तम्मयके पुत्र नरसप्पकी थी जो पुत्ररहित स्थितिमे मृत्यु होनेसे राजाधीन हुई थी। भूमि योचलदाल ग्रामके क्षेत्रमें थी।] [९० रि० मै० १९३१ पृ० १०८ ] ४८८ विकहनसोगे ( मैसूर) सन् १५८५, कराड [ यह लेख आदिनाथवसदिके गोमुखपर है। चारुकीर्ति पण्डितदेवके शिष्य तथा ब्राह्मणप्रमुख चिक्कणय्यके पुत्र पण्डितय्य द्वारा आदीश्वर, चन्द्रनाथ तथा शान्तीश्वरको मूर्तियोंको स्थापनाका इसमे उल्लेख है। समय सन् १५८५ है।] [ए० रि० मै० १९१३ पृ० ५१] ४८६ येडेहल्लि ( मैसूर) शक १५०९= सन् १५८७, कन्नड १ सुभमस्तु । नमस्तुंगशिरश्चुंबिचंद्रचामर२ चारवे त्रैलोक्यनगरारंभमू(ल)स्तंमाय शंभवे । ३ स्वस्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहन शक वरुष १५०६ ४ नेय संद वर्तमान । सर्वजित्तु सं । वयिशाक शु ५ मि ५ यु आदिवारदलु श्रीमत्त । दानिवासद चेन्नरा Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ जैनशिलालेख-संग्रह [१८९६ यवडेर मकलु । विक्कवीरप्पवाडेर मक्कलु चेन्नविरवा७ डेरु । गेरसोप्पे समंतभद्रदेवर शिष्यरु । गुणमद्रदेव८ र सिप्यरु । वीरसेनदेवरिंगे। कोट भूमि क्रयपत्रद क्रम९ वेंतेंदरे नालपुरद प्रामदोलगे संकण्णन मग मल१० यन डोंकिन कोडिगे बिजवरि ख १० हत्तु खण्डुग भूमि ११ यु । सलविटु नम्म प्रारमनिगे हरवरियागि भंद सं१२ मंद । यी वीरसेनदेवरिगे यक्के कोटेवागि। आ भूमिगे सलु१३ व क्रय द्रव्य । लक्षणलक्षित । तत्कालोचितमध्यस्तपरिकल्पित १४ उमयवादिसंप्रतिपन्न कालपरिवर्तनक्के सलुव प्रियसा१५ हे । निजगटि वरह ग ४० अक्षरदलु नाल्वत्त वरहनु । तर १६ विस उलियदे साकल्यवागि । सलिसि कोण्डेवागि आ भूमिगे सलु१७ व चतुसिमेय विवर। मुडलु यिगद्देय नीरस्कलगलिं१८ द पडुवलु । बडगलु केरेयेरियिं दं तकलु तेंकलू नं१६ म गद्देयिदं बडगलु। यिती चतुरसीमेयोलगुल नि२० धि निक्षेप जल पासण अक्षाणि आगमि सिध सांध्यंग२१ लेब आष्टभोग तेजसाम्यवंनु निउनिम्म शि२२ प्यरु पारम्परियवागि सुखदि बोगिसि बहिरि २३ यंदु बरमि कोट क्रयशासनपटे । यिदक्के अबिला(षे) बटवरु दे२४ वलोक मत्यलोक विरहितरु श्रीहत्य गोहत्यक बजनरह२५ रु। चेन्नवीरवडेरु श्री श्री श्री श्री श्री [ यह लेख वैशाख शु० ५, रविवार, शक १५०९ सर्वजित संवत्मर इस तिथिका है। दानिवामके शासक चेन्नवीरप्प बडेर-द्वारा गैरसोप्पेके बीरसेनदेवको कुछ भूमि दी जानेका इसमे उल्लेख है। नालपुर ग्रामकी यह भूमि ४० वराह क़ीमत देकर खरीदी गयी थी।] [ए. रि० मै० १९३१ पृ० ११० ] Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१९] बोलिगि प्रादिके लेख ३३५ ४६० रलत्रयबसदि बोलिगि, ( उत्तर कनडा, मैसूर ) १६वीं सदी (सन् १५८७ ) [ इस लेखमें मूलसंघ-देसिगण-पुस्तकगच्छके श्रवणबेलगुल मठके चारुकीर्ति पण्डितका उल्लेख किया है। इन्हें रायराजगुरु, मण्डलाचार्य, बल्लालरायजीवरक्षापालक आदि उपाधियाँ प्राप्त हों। इनको परम्परामे श्रुतकीर्ति पण्डित हुए। इनको शिष्यपरम्परा इस प्रकार थो-श्रुतकीर्ति-विजयकोतिश्रुतकोति (द्वितीय)- विजयकोति (द्वितीय,) अकलंक - विजयकोति ( तृतीय )- अकलक ( द्वितीय ) - भट्टाकलंक । भट्टाकलंकदेवका समय शक १५१० = सन् १५८७ दिया है। संगीतपुरका लोकप्रयुक्त नाम हाडुवल्लि है। यहाँके राजा इन्द्रभूपालको विजयकीर्ति (प्रथम ) को कृपासे सिंहासन प्राप्त हुआ ऐसा कहा गया है। विजयकीर्ति (द्वितीय) को प्रेरणासे पश्चिम समुद्र तटपर भट्टकल नगरको स्थापना हुई थी। [ए० इं० २८ पृ० २९२] ४६१ जि० दक्षिण कनडा ( स्थान नाम अज्ञात ) शक १५१३ -सन् १५६१, कन्नड [ यह ताम्रपत्र शक १५१३ खर संवत्सरमे किन्निग भूपालने दिया था। इसमे एक जैन मन्दिरके लिए कुछ भूमिदानका उल्लेख है।] ( इ० म० दक्षिण कनडा २) Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [५९३ ४६२-४६३ रायबाग ( मैसूर ) शक १५१९ = सन् १५९७, संस्कृत-कन्नड [ ये दो लेख स्थानीय आदिनाथमन्दिरके दो स्तम्भोंपर हैं - एक कन्नडमे है तथा दूसरा उसीका संस्कृत रूपान्तर है। इसमें ज्येष्ठ २० १४, शक १५१९ के दिन मूलसंघ-सेनगणके सोमसेन भट्टारक-द्वारा इस मन्दिरके जीर्णोद्धारका तथा पार्श्वनाथमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है।] [रि० इ० १० १९५५-५६ क्र० १५२-५३ पृ० ३३ ] ४६४-४६५ मारूरु ( दक्षिण कनडा, मैसूर ) शक १५२० = सन् १५६८, कन्नड [ये दो लेख है। मारूरुके पार्श्वनाथबसतिमे स्थित तीर्थकरमूर्तियोंकी पूजाके लिए पार्श्वदेवा बिन्नाणि-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका इनमें उल्लेख है। पहला लेख चैत्र शु० ३, सोमवार, शक १५२० का है तथा दूसरा लेख पौष शु० २ शुक्रवार, शक १५२० का है। [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ७४-७५ ] ४९६-४६७ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) संस्कृत-ग्रन्थ, १६वीं सदी [ यह लेख १६वीं सदीको लिपिमे है। पुष्पसेन योगीन्द्र के गुरु समन्तभद्रकी अक्षय कीतिका इसमे वर्णन है। यहीके एक अन्य लेखमें मुनिभद्रस्वामीका नामोल्लेख किया है। ] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० १३४, १४५ ] Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५०१ ] हुम आदिके लेख = हुमच ( मंसूर ) १६वीं सदी, कन्नड १ श्री बोम्मरसनु रूपवतिदिदन् [ यह लेख पार्श्वनाथबसदिमे स्थित क्षेत्रपालमूर्तिके पादपीठपर १६वीं सदीकी लिपि है । इसमें मूर्तिके निर्माताका नाम बोम्मरस दिया है । ] [ ए०रि० मैं ० १९३४ पृ० १७७ ] ४६६ सेतु ( शिमोगा, मैसूर ) १६वीं सदी, कन्नड ३३७' १ स्वस्ति श्रीगुम्मै सेट्टियर बस्तिय श्रीवर्धमानस्वामिय संनिधानदल्लि गणपणसे हियर मग संघय्यसेवियरु तमगे पुण्यात - वागि प्रतिष्ठे माडिसिद अभिनन्दनतीर्थेश्वरनिगे मं २ गल महा श्री श्री श्री श्री श्री [ इस लेख में संघय्य सेट्टि द्वारा अभिनन्दन तीर्थंकरकी इस प्रतिमा की स्थापनाका निर्देश है । इस समय गुम्मैयसेट्टिकी बसतिके वर्धमानस्वामी उपस्थित थे । लिपि १६वीं सदीकी प्रतीत होती है । ] [ ए० रि० मं० १९४४ पृ० १६६ ] ५००-५०१ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) १६वीं सदी, तमिल [ इस लेखमे एक पद्यमें कोण्डमले निवासी गुणबद्दिरमुनिवन् ( गुणभद्रमुनि ) की प्रशंसा की गयी हैं जो दक्षिणप्रदेशमें तमिल और संस्कृतके २२ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ जैनशिलालेख-संग्रह [-५०१ सुप्रसिद्ध विद्वान् थे। लेख १६वीं सदीकी लिपिमें है तथा चन्द्रनाथमन्दिरके मुख्य द्वारके पास खुदा है । मन्दिरके मण्डपकी दीवालपर खुदे एक अन्य लेखमें इन्हीं आचार्यको वीरसंघप्रतिष्ठाचार्य यह विशेषण दिया है। [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र०, ३०२ पृ० ६५ ] ५०२ सोदा ( उत्तर कनडा, मैसूर) शक १५३० =सन् १६०७, कार पहली भोर १ श्री (1) स्वस्ति (1) श्रीजयाभ्युदय शालिवाह२ नशकवरुष १५३. नेय प्लवंगसंवत्सर३ द कार्तिक शु १० बुधवारदलि श्रीमद् राय दूसरी ओर ४ (राजगुरुम) डलाचार्य महावाद५ (वादीश्वर रा) यवादिपितामह सकलविद्वज६ (नचक्रवर्ति ब) लालरायजीवरक्षापा तोसरी ओर ७ लक देशिगणाग्रगण्य संगीतपुरसिंहा (सन)८ पट्टाचार्य श्रीमदकलंकदेवरुगलु ९ श्रीपंचगुरुचरणस्मरणियिंद स्वर्गस्थरा चौथी ओर १० (दरु) (1) अवर निषिधिमंटपके मंगल महाश्री (1) ११ भट्टाकलंकदेवेन स्याद्वादन्यायवादिना(0) निषि१२ धीमंटपो हब्धः स्थेयादाचंद्रमा (स्क) र (३) Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५०४ ] करन्दै आदिके लेख [ इस लेखमें देशिगणके प्रमुख संगीतपुरके पट्टाचार्य अकलंकदेवके स्वर्गवासका निर्देश है जो कार्तिक शु० १० शक १५३० के दिन हुआ था । उनकी यह निषिधि उनके शिष्य भट्टाकलंकदेव द्वारा स्थापित की गयी थी। ] [ ए० ई० २८० २९२ ] ५०३ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) शक १५४१ सन् १६१९ [ यह लेख विजयनगरके महामण्डलेश्वर रामदेव महारायके समय शक १५४१, कालयुक्ति, चैत्र ३ के दिन लिखा गया था। वाल नागम नायक और तलत्तार लोगों द्वारा कयिलायप्पुलवर् ( नामक जैन विद्वान् ) को कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० १३७ ] ५०४ ३३६ मूडबिदुरे (मैसूर) शक १५४४ = सन् १६२२, कन्नड [ इस ताम्रपत्र निर्देश है कि सेनगणके समन्तभद्रदेवने इक्केरिमें hofs वेंकटप्प नायकसे मिलकर तथा उसके अधीन अधिकारी चिन्नभंडार देवपसे साहाय्य पाकर बिदुरे नगरकी त्रिभुवनतिलक बसतिका जीर्णोद्धार कराया । तिथि - वैशाख, शक १५४४, रुधिरोद्गारी संवत्सर । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ पृ० २४ क्र० ए४ ] Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० मैनशिलालेख-संग्रह ५०५ कलकत्ता ( नाहर म्युजियम ) शक १५४८ %-सन् १६२६, कन्नड १ सक १५४८ श्रीमूलसंघ भट्टारक २ श्रीधर्मचंद्रोपदेशात् प्रणम ३ श्रीमतिवीर [ यह लेख पोतलकी चौबीसतीर्थकरमूर्तिके पादपीठ पर है । मूलसंघके धर्मचन्द्र भट्टारकके उपदेशसे श्रीमतिवीर-द्वारा इस प्रतिमाकी स्थापना शक १५४८ मे की गयी थी । लिपिसे पता चलता है कि यह मूर्ति कर्नाटकमें निर्मित है।] [ए० रि० मै० १९४१ पृ० २४९ ] __ कोलारस ( शिवपुरी, मध्यप्रदेश ) संवत् १६८४ = सन् १६२८, हिन्दी-नागरी [ इस लेख में शाहजहाँके अधीन शासक अमरसिंहके समयमे एक जैन चैत्यालयके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । तिथि आषाढ़ शु० ९, गुरुवार, संवत् १६०॥८४ इस प्रकार दी है। ] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० २४१ पृ० ४८ ] ५०७ मूडबिदुरे ( मैसूर ) शक १५५४ =सन् १९३२, काड [ इस ताम्रपत्रमें उल्लेख है कि बिदुरेके दो विभाग बेट्टकेरी तथा मारलंगडिकेरीमै रहनेवाले श्रावक पहले दीवालीका त्योहार मनाते वक्त Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५०४ ] मूडविदुरेका लेख एक दूसरोंसे पत्थर, लाठी आदिसे लड़ते थे। सेनमणके समन्तभद्रदेवने उन्हें इस कार्यसे रोककर दीपाराधना और अन्य पूजाओंसे यह त्यौहार मनानेका आदेश दिया। तदनुसार देवण्ण तथा अन्य शिष्योंके प्रभावसे उसका पालन भी कराया। तिथि-दीपावली, आंगिरस संवत्सर, शक १५५४1] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ऋ० ए० ४ पृ० २३ ] ५०८ मूडबिदरे ( मैसूर) शक १५६२ =सन् १६४१, कन्नड [ इस ताम्रपत्र-लेखकी तिथि शक १५६२ विक्रम, मार्गशिर कृ० २ शक्रवार, ऐसी है। मंगलर तथा बारकरके शासक केलडि वीरभद्र नायकके समयका यह लेख है। पुत्तिगे निवासी चौटवंशके चिक्कराय ओडेयद्वारा अभिनव चारुकोति पण्डितदेव तथा मडबिद्रेके अन्य श्रेष्ठियोंको संरक्षणका आश्वासन दिये जानेका इसमें निर्देश है। इसके पूर्व अधिकारियोंद्वारा धार्मिक तथा वैयक्तिक सम्पत्तिका अपहरण किया गया था अतः यह आश्वासन ज़रूरी हुआ था । ] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० ए ८ ] ५०६.५१० शिवपुरी ( मध्यप्रदेश) संवत् १७०३=सन् १६४७, हिन्दी-नागरी [ इस लेखमें महाराज संग्रामके पोतदार जैन मोहनदास-द्वारा कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। यहींके एक अन्य लेखमें गंगादास और गिरधर Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ जैनशिलालेख-संग्रह दास-द्वारा मालवदेशस्थित शिवपुरी ग्राममें एक जिनमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है। प्रथम लेखकी तिथि वैशाख शु० ३, शक १५६८, संवत् १७०३ ऐसी दी है ।] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० २५०-५२ पृ० ४८-४९ ] सोदा ( उत्तर कनडा, मैसूर ) शक १५७७ =सन् १६५५, काड ५ स्वस्ति (i) श्रीजयाभ्यु(द)य शालिवाहनसकवर्ष) २१५७७ जय संवत्सर)द कार्तिक सुध्ध दशमि ३ सूर्यो)दयवाद यरडने घलिगेय४ ल्लि देसि श्रीमद् रायराजगुरु मंड५ लाचार्यरु महावादवादीश्वर रा६ यवादिपितामह सकलविद्वज्जनच७ (क) वर्तिग(लु) बहलालरायजीवरक्षापा८ लकरमप्प श्रीमद् मट्टाकलंकजीय्य(दे). है वरु १० (श्री)पंचगुरुचरणस्मर(णेयिंद) ११ चतुसंघ(समक्ष) दल्लि स्व१२ गंवनैदिदरु () इं१३ ती श्री श्री श्री (ii) [ इस लेखमें देसिगणके श्रीमद् भट्टाकलंकदेवके स्वर्गवासका निर्देश है जो कार्तिक शु० १० शक १५७७ के दिन हुआ था। उनको समाधि पर यह लेख है। ] [ए० इ० २८ पृ० २९२ ] Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टोडा रायसिंह आदिके लेख टोडारायसिंह (जयपुर, राजस्थान ) संवत् १७१८=सन् १६६२, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमें अम्बावतीके कछवाह वंशके राजा जयसिंहके मन्त्री मोहनदास-द्वारा विमलनाथ मन्दिरके निर्माणका वर्णन है । तिथि फाल्गुन व० १०, बुधवार, संवत् १७१८ ऐसी दी है। उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँका राज्य चल रहा था।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ४१४ पृ० ६९] ५१३ श्रीरंगपट्टम् ( मैसूर ) सन् १६६६, काड [ यहाँके आदीश्वरमन्दिर में सन् १६६६ का एक लेख है। इसमें चारुकीति पण्डिताचार्यके शिष्य पायण्ण-द्वारा अष्टाह्निकामहोत्सवके लिए कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है।] [ए० रि० म० १९१२ पृ० ५६ ] मुलगुन्द (धारवाड, मैसूर ) शक १५९७ = सन् १६७५, कन्नड [ यह लेख भाद्रपद व० ५, रविवार, शक १५९७ राक्षस संवत्सरका है। इसमे नागभूपको पत्नी बनदाम्बिके द्वारा अहंत आदिनाथकी मूर्तिकी पुनः स्थापनाका वर्णन है। यह मूर्ति मुसलमानों द्वारा भ्रष्ट की गयी थी। [रि० सा० ए० १९२६-२७ ३० ई ९३ पृ०८] Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ जैनशिलालेख संग्रह [५१५ ५१५ ,बेल्लूर ( मैसूर) शक १६०२ = सन् १६८०, कन्नड १ ॥शुभमस्तु॥ नमस्तुंगशिरश्चुम्बिचंद्रचामर२ चारवे । त्रैलोक्यनगरारम्भमूलस्तं माय शम्भ३ वे ॥ स्वस्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहनशकवरुषंग४ लु १६०२ ने खुद्धि सं । भाद्रपद ब १० ब्लु दिल्लिकोल्डा पुरजि५ नकंचिपेनुगोंडेसिंहासनद समंतमद्रस्वामिगल शि. ६ व्यराद वीरसेनभट्टारकरवर प्रियशिष्यराद लक्ष्मीसेनम७ धारकरवरिगे प्रात्रेयगावद भापस्तंभसूत्रद य८ जुःशारवायायिगलाद श्रीमन्महाराजश्रीहरति सम्मेटरंगहै पराजरवर पौत्रराद कृष्णप्पराजरवर पुत्रराद राय १० प्पराजरवरु रत्नगिरिबस्ति देवस्थानदल्लि यी जिनेश्वर स्वामिप्रतिष्ठा११ कालदल्लि दारागृहीतवागि कोह भूदानद दर्मशासनदान१२ पट्टे क्रम तेंदरे ( पंकि ३ से १२ तकका पाठ पंक्ति २६ तक दो बार दोहराया है।) २७ क्रम वैतेंदरे यी रत्नगिरि स्थलदल्लि अनादियागियिथाब२८ स्ति देवस्थानदल्लि जिनेश्वरस्वामिगे आराधने नडेयदे यिद Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५१५ ] बेल्लूरका लेख पिछला माग २६ थादरहित नीबू मत संरक्षण्यकर्त रागि वुद्धविसिदधा यो३० गनिष्ठरादनिंद यी देवस्थानवनू पुनः जीर्णोद्धारव मादि ३१ संप्रोक्षणे प्रतिष्ठेयन् माडि देवता नित्य वैभव सावं ३२ कालवु नढदुआ सुकृत नमगु बुंतागुव रीतिगे नडसिधिरागि ३३ अदु निमित्य आ महोत्सवाकालदल्लि निगमे नम्म सिरेहद सीमे३४ योलगण संते दोड्डेरि होबलि गूडिद बहुवन हलिस्थ३५ दोलगण आपिनहल्लियन् सहिरण्योदकदानधारा३६ गृहीतवागि त्रिवाचवु त्रिकरणयुक्तवागि धारेयने३७ रदु कोट्टेवागि आ ग्रामछे सलुवंता यरेनेल कॅनेलका३८ डारम्भ नीरारम्भ अणे अच्चुकट्टु यात कपिले गूडेंगू३६ यिलु केरे कुंटे कालुवे मोदलागि आ ग्रामक्के सलुवंता परिस्तरण४० दोळगागि वुत्पत्ति प्रदता सकल सुवर्णादाय सकलमत्ता४१ दायवन् निम्म सिष्यपारम्पर्यवु अनुभविसि कोंडुसु४२ खदल्लि देंदु बरसि कोह दानपट्टे । स्वदत्ताद्वि - ४३ गुणं पुण्यं परदत्तानुपालनं । परदत्तापहारंण ४४ स्वदत्तं निष्फलं भवेत् ॥ श्रीरामा [ इस दानपत्रकी तिथि भाद्रपद कृ० १०, शक १६०२ रौद्र संवत्सर, ऐसी है : इसमें रंगप्पराजके पौत्र तथा कृष्णप्पराजके पुत्र रायप्पराज द्वारा लक्ष्मीसेन भट्टारकको रत्नगिरिवस्तिके लिए आपिनहल्लि नामक ग्राम दान दिये जानेका उल्लेख है । लक्ष्मीसेनको दिल्ली, कोल्लापुर, जिनकंचि तथा पेनुगोंडे के सिंहासनाधीश कहा है । वे समंतभद्र स्वामीके प्रशिष्य तथा वीरसेन भट्टारकके शिष्य थे । दानदाता रायप्प राजा हरति नगरके प्रमुख थे । उन्हें आत्रेय गोत्रके आपस्तंबसूत्रानुयायी कहा हैं । [ए. रि. मं. १९३९ पृ. १८७ ] Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ जैनशिलालेख-संग्रह [५१६ बेल्लूर ( मैसूर) कन्नड (सन् १६८०) [ यह लेख विमलनाथमूर्तिके पादपीठपर है। पद्मकुलके शर्कर-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापना हुई थी। यह हुलिकल निवासी था तथा समन्तभद्राचार्य के शिष्य लक्ष्मीसेनाचार्यका शिष्य था। समय लगभग सन् १६८० का है।] [ए० रि० मै० १९१५ पृ० ६८ ] ५१७-५१८ पोन्नूर ( उ० अर्काट, मद्रास) शक १६५५ = सन् १७३३, तमिल [ स्थानीय जिनमन्दिरके छतमें लगे स्तम्भपर यह लेख है । तिथि बंगाशि २७, प्रमादी संवत्सर, शक १६५५, कलिवर्ष ४८३४ यह है । इसमें कहा है कि स्वर्णपुर-कनकगिरिके जैन हेलाचार्यकी साप्ताहिक पूजाके लिए प्रति रविवारको पार्श्वनाथ तथा ज्वालामालिनीको मतियाँ नोलगिरिपर्वतपर ले जाते हैं। यहींके अन्य लेखमें पार्श्वनाथको स्तुतिमें कुछ मन्त्र लिखे हैं। [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ४१६-१८ पृ०४० ] मूललेख १ स्वस्ति श्री शालिवाहनशकाब्दः १६५५ कल्यब्दः ४८३४ का मेळ चेल्ला निण्रा प्रभवादि ग (श ) काब्दः वरुष ४६ क्कु प्रमादिच वरुषं बैगाशिमादं १० (उ) एलुदिय शासनमावदु (1) स्वस्ति श्रीस्व (ण) पु (र) कनकगिरि आदीश्वरस्वामिचेस्यालय सम्बन्दमान वायुमूलैयिलि Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५२.] करन्दै आदिके देख २ रुक्कुं नीलगिरि हेलाचार्यपादपूजै आदिवारन् तोरुम् मेरि आळयत्तिन् श्रीपाश्र्वनाथस्वामियुं ज्वालामा (लि) निमम्मणयु मेडि स्वर्णपुरजैनगल एडुत्तुकोण्ड पोय पूजिप्पदु (1) इन्द शासनमनन्तसेनदेव (नाले ) लुइपटदु (1) [ए० ई० २९ पृ० २०२] ५१६ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास) शक १६६९ = सन् १७४८, तमिल [ यह लेख ज्येष्ठ शु० ५, शुक्रवार, शक १६६९ को लिखा गया था। मुनिगिरि स्थित कुन्थुनाथस्वामीके मन्दिरके गोपुरका जीर्णोद्धार अगस्तियप्प नायिनार्ने किया ऐसा इसमें कहा गया है। [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० १३६ ] ५२० मूडबिदुरे ( मैसूर ) शक १७६ = सन् १७५७, कन्नड [विद्यानगर ( विजयनगर ) के राजा विजय सदाशिव महारायके अधीन सोदे प्रदेशके शासक अरसप्पोडेयके पुत्र इम्मडि अरसप्पोडेयने वेण्णेगावे ग्रामकी कुछ ज़मीन अपने गुरु चारुकीति पण्डितदेवको अर्पित की ऐसा इस ताम्रपत्रमे उल्लेख है । तिथि-मार्गशिर शु. १ शक १६७९, राक्षस संवत्सर । [रि. सा. ए. १९४०-४१ पृ. २४ क्र. ए ६ ] Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ जैनशिलालेख संग्रह [५२१ ५२१ बालूर ( धारवाड, मैसूर ) शक १(६) ८५- सन् १७६३, कमड [ जैन मन्दिरके सन्मुख दीपमाला स्तम्भपर यह लेख है । देवण्ण और उसके पुत्रोंका इसमें उल्लेख है । तिथि कार्तिक शु. १०, सोमवार, विक्रम, शक १६८५ ऐसी दी है । ] [रि. इ. ए. १९४५-४६ क्र. २१३ ] ५२२ तिलिवल्लि ( धारवाड, मैसूर) १८वीं सदी, काड [ इस निसिधि लेखमें वैशाख शु. ५ सोमवार, स्वर्भानु संवत्सरके दिन पुजारी पेवय्यके समाधिमरणका उल्लेख है। ] [रि. इ. ए. १९४५-४६ क्र. २५३ ] ५२३ काकन ( जि० मोघोर, बिहार ) संवत् १८२२=सन् १७६६, संस्कृत - नागरी जैन मन्दिरमें चरणपादुकाओंके चारों ओर [ इस लेखमें काकन्दीके जैन संघ-द्वारा संवत् १८२२ वैशाख शु० ६ को जैन मन्दिरके जीर्णोद्धारका तथा सुविधिनाथके चरणोंकी स्थापनाका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५०-५१ ० ३ ] Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५२७ ] मैसूरके लेख ५२४ मैसूर शान्तीश्वर बसतिमें दीपस्तम्भोंपर [ इस लेखमे चामराजकी रानी देवीरम्मण्णि-द्वारा उक्त दीपस्तम्भ शान्तीश्वर बसतिको अर्पित किये जानेका उल्लेख है। ये चामराज मैसूरके राजा चामराज वोडेयर ( नवम ) ( सन् १७७६-९६ ) होंगे।] [ मूल लेख कन्नड लिपिमें मुद्रित ] [ए० रि० मै० १९३६ पृ० १०२] ५२५ मैसूर कसड उपर्युक्त बसतिमें चार कलशोंपर [ इस लेखमे उपर्युक्त रानी देवीरम्मण्णि-द्वारा शान्तिनाथके अभिषेकके लिए इन चार कलशोंके दानका निर्देश है। ] [ मूल लेख कन्नड लिपिम मुद्रित ] [ ए० रि० म० १९३६ पृ. १०२] ५२६-५२७ नरसिंहराजपुर ( मैसूर ) सन् १७७८-७१, काट [ यहाँके दो लेख सन् १७७८ तथा १७७६ के हैं। पहलेमें वियंग बरमैयके पुत्र नागप्प-जो काम्बोदि वैश्य था तथा निषंडेवृक्षसंघका था - Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० जैन शिलालेख संग्रह [ ५२८ द्वारा एक मण्डपको स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें इसी व्यक्ति द्वारा मूर्तिका पादपीठ अर्पित करनेका उल्लेख है। रविवारव्रतकी समाप्तिपर यह दान दिये गये थे । ] [ ए०रि० मै० १९१६ पृ० ८४ ] ५२८ मैसूर शक १७३६ = सन् १८१४, कवड शान्तीश्वर बसति-गर्म गृह के द्वारके पीतल के आवरणपर [ इस लेख मे दनिकार पद्मयके पुत्र नागय-द्वारा ३९३ ( सेर ) वजनके इस पीतल के गन्धकुटी ( द्वार ) के आवरण दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान आश्विन शु० १, शक १७३६, भाव संवत्सरके दिन दिया गया था । ] [ मूल लेख कन्नड लिपिमे मुद्रित ] [ ए०रि० मैं ० १९३६ पृ० १०२ ] ५२६ मैसूर ( शक १७३६ = सन् १८१४ ) संस्कृत-कन्नड शान्तीश्वर बसति सुखनासि द्वारकं आवरणपर श्रीमच्छांतिजिनेन्द्रस्य पंचकल्याणसंपदः । श्रिया मेरुजिनागारं हसतश्चैक्यवेश्मनः ॥ १ ॥ परार्ध्यं रचनोपेतं कवाटमिदमद्भुतं । कारयामास सद्भक्त्या श्रावको जैनमार्गतः ॥ २ ॥ नागनामा पितुः स्वस्य मरिनागाह्वयस्य च । धनिकारपदापस्य स्वर्मोक्षसुखभये ॥३॥ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५३० ] मैसूरका लेख ३५१ [ इस लेखमें निर्देश किया है कि प्रस्तुत द्वारका निर्माण धनिकार मरिनागके पुत्र नाग-द्वारा किया गया । इस लेखमें समयनिर्देश नहीं है किन्तु पिछले लेखका ही समय इसका भी होगा ऐसा अनुमान होता है । ] [ ए०रि० मं० १९३६ पृ० १०३ ] ५३० मैसूर शक १७५४ = सन् १८३२, संस्कृत-कड अनन्ततीर्थंकरकी मूर्ति - शान्तीश्वर वसति १ श्रीमत्कश्यपगोत्रजो जिनपर्दा भोजे कसं षट्पदः क्षात्रीयोत्तमदेवराजनृपतिः सद्धर्म २ पल्या सह ( 1 ) कॅपम्मण्यभिधानया व्रतयुजा स्वर्गापवर्गप्रदं कृश्वानंतव्रतं तदा ३ रचितवान् बिंबं मुदैवच्कुमं ॥ अंधींद्रिय शैलेंदु-प्रमितेस्मिन् शकाब्दके । ४ नन्दने वत्सरे माद्रमासे शुक्काष्टमीतिथौ । अनंतनाथबिंबस्य प्रतिष्ठां जग ५ दुतरां (1) कारयामास पूर्वोकदेवराजनृपोत्तमः ॥ [ इस लेखमे कश्यप गोत्रके उत्तम क्षत्रिय राजा देवराज तथा उनकी धर्मपत्नी केंपम्मणि- द्वारा अनन्तव्रतको पूर्णताका उल्लेख है । उक्त दम्पतिने इस अवसर पर भाद्र शुक्ल अष्टमी, शक १७५४, नन्दन संवत्सर, के दिन अनन्तनाथकी यह मूर्ति स्थापित की । इस समय मैसूरमे कृष्णराज as (तृतीय) का राज्य चल रहा था । अतः लेखोक्त देवराज नृपति मैसूरकी अरसु जातिके प्रमुखोंमें से एक थे ऐसा अनुमान होता है । ] ( ए० रि० मं० १९३६ पू० १०१ ) Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [ ५३१ ५३१ हले हुब्बलि (जि. धारवाड, मैसूर ) शक १७८४ = सन् १८६२, काड [ यह लेख शक १७८४ का है । कहा गया है कि इस वर्ष एक नया जगट बनवाया गया । यह उस पुराने जगटसे बनवाया था जो यहाँके अनन्तनाथबसदिमे पिछले ११०० वर्षोंसे था।] ' [रि० सा० ए० १९४१-४२ ई० ३५ पृ० २५७ ] ५३२ चित्तामूर ( द० अर्काट, मद्रास) शक १७८७ =सन् १८६५, संस्कृत-ग्रन्थ [ यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके गोपुरकी दीवालपर है । इस गोपुरका निर्माण अभिनव आदिसेन भट्टारकने सार्वजनिक सहायतासे किया ऐसा उल्लेख है। तिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा, शुक्रवार, शक १७८७ क्रोधन संवत्सर ऐसी दी है। इसी दीवालपर एक अन्य लेखमे जिनालयनिर्माणसे प्राप्त पुष्यको प्राप्त पुण्यको प्रशंसाके कुछ श्लोक है । ] [रि० सा० ए० १९३७-३८ ० ५१९-२०१० ५८ ] ५३३ मैसूर १६वीं सदी, कबड शान्तीश्वर बसतिमें सर्वाण्ह यक्षकी मूर्तिकं पादपीठपर इस लेखमें मरिनागय नामक व्यक्ति-द्वारा महिसूरके शान्तीश्वर बसतिमे सर्वाहयक्षको मूर्तिके पादपीठपर पीतलका आवरण लगानेका Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५३५] मैवर भादिके लेख उल्लेख किया है। मरिनागेय दनिकार पयका पुत्र था। लिपि १९वीं सदीकी है। [ मूल लेख कन्नड लिपिमें मुद्रित ] [ए० रि० म० १९३६ पृ० १०० ] ५३४ मैसूर १९वीं सदी, कमल उपर्युक बसतिमें घण्टापर [ इस लेखमें शिरसैयके छोटे भाई पुट्टेय-द्वारा इस घण्टेके दानका उल्लेख है । लिपि १९वीं सदीकी है। ( मूल लेख कन्नड लिपिमें मुद्रित ) [उपयुक्त पृ० १०० ] मत्तावार ( मैसूर) १९वीं सदी, कार मत्तवर बस्ति पार्श्वनाथस्वामिचैत्यालयक ऐवर अंबणनुव [ यह लेख एक घण्टेपर खुदा है। ऐवर अंबण-द्वारा यह घण्टा मत्तवूरके पार्श्वनाथस्वामी चैत्यालयमे अर्पण किया गया था। लिपि १९वीं सदोकी है। [ए. रि० मै० १९३२ पृ० १७५ ] Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ जैन शिलालेख संग्रह ५३६ कन्नुपर्तिपाडु ( नेलोर, आन्ध्र ) तमिल [ ५३६ [ इस लेखमें करिकालचाल जिनमन्दिर के लिए मतिसागरदेवके उपदेशसे प्रमलदेवी-द्वारा सीढ़ियाँ बनवानेका निर्देश है । यह लेख सम्राट् राजराजदेवके ३७वें वर्षका है । नोट- चोल राजराज नामक किसी भी राजाका राज्य ३७ वर्षकी दीर्घ सीमा तक नहीं पाया जाता । अतः इस लेखकी तिथि ग़लत प्रतीत होती है । ] ( इ० म० नेलोर ५०२ ) ५३७ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) तमिल [ यह लेख पल्लव राजा सकल भुवनचक्रवत पेरुं जगदेव के तीसरे राज्यवर्षका है । इसमें इस देव मन्दिरकी प्रदक्षिणामालिकाका निर्माण पालैपूर निवासी ... शिंगन द्वारा किये जानेका उल्लेख है । लेख चन्द्रनाथमन्दिरके प्राकार के पश्चिमी दीवारपर खुदा है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३१४ पृ० ६६ ] ५३८ गेर सोप्पे (मैसूर) संस्कृत-क १ घनशोकवलीमंजुल देशीगणकलित कीर्तिमुनिसुनोः चन्द्र सूरेरुपदेशाने मिजिनबिम्बं ॥ (1) श्रीदेव Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५३९] गेरसोप्पेके लेख २ श्लोकः ॥ भोजणश्रेष्टिपुत्रोसौ कल्पवेष्ठिपुंगवः (1) अकारयत् सुतो यस्य मावाम्बागर्भजोजनाः ॥ [ यह नेमिनाथ मूर्ति ओजणश्रेष्ठिके प्रपौत्र तथा कल्लपोष्ठि एवं माबाम्बाके पुत्र अजणश्रेष्ठिने देशीगण-घनशोकवलीके आचार्य ललितकोतिके शिष्य देवचन्द्रसूरिके उपदेशसे स्थापित की।] [ ए० रि० म० १९२८ पृ० ९५ ] ५३६ गेरसोप्पे ( मैसूर ) काड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछन (1) जीयात् त्रैलोक्यनाथ स्य शासनं जिनशासनं (1) २ श्रोजिनराजराजितपदाम्बुजरा जमराल नगिरिय राजशिरो३ मणि प्रचुरकीर्तिदिशावलयप्रकाशनुं तेजभुजप्रतापरिपुराजमुखां४ बुजं हस्तवीरनुं भूजनवन्ध होनृपनर्थिजनावन कल्पवृक्षy होन् ५ नमहीशनात्मजेयु मालियब्बरसिगे कामराजगं सन्नुतमूर्ति होन नृपनात्मसबान६ धव मंगराजनुं मन्मथरूप हरिहरनृपालकनातन पुत्र हैवणरसंगे मन:प्रियान्७ गनेयु सान्तलदेवि समाधिकाल दोलु भाकेय गुरुगलु लोकल्याति यनान्तिद् अनन्८ तवीर्यरु रतिसंकाशसोबगेनिसि सन्दिा कान्तेगे हैवणरस वल्लमनादं । स्मररूपं ९ सूद्रकंगी पुरदोलु कीर्तिवेत्त बोम्मणसेटिव वरवनिते बोम्मकंग Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ जैनशिलालेख-संग्रह [५४०5. णि सान्तलरसि पुट्टिदलागल । अरसप्पोडेयर तनूजे वरगुणि बोम्मकनाकेयात्मजे सान्तकरसि१ यु परमन पदमं स्मरियिसि सुरलोकवेदि सुखदिन्दिदल अहंन्तन पादाम्बुजमं १२ स्मरयिसुतं नम्बि(?) पदम नालगेयोलु उच्चरिसुत्त सान्तकरसि शरीरमं पत्तेण्टुदिन१३ दोलु सन्दलु वरवत्सर तारणदोलु सुरुचिर-फाल्गुणद शुद्ध पाडिवतिथियोलु हरिदश्व१४ दिनदि सान्तकरसियु स्वर्गस्थलादल भाकेनिमित्तं माडिसिद निषिधिय कल्लिगे मंगल महाश्री[ यह निषिधि-लेख रानी सान्तलदेवीके समाधिमरणका स्मारक है । इसकी तिथि फाल्गुन २० १, रविवार, तारण संवत्सर ऐसी थी। यह देवी बोम्मणसेट्टिकी कन्या तथा हेवणरसकी पत्नी थी। हैवणरसका पिता मंगराज था जो कामराज और मालियब्बरसिका पुत्र था। मालियब्बरसिके पिता गेरसोप्पेके राजा होन्न थे । उसका एक और पुत्र हरिहर नृपाल था। सान्तलदेवीकी माता बोम्मक्का अरसोप्पोडेयकी कन्या थी।] [ए० रि० मै० १९२८ पृ० ९९ ] सालर ( मैसूर ) कार १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादा२ मोघलांछन ।... ३ ""शासनं जिनशा... ४ सनं श्री चन्द्रनाथदेव Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५७ -५४२] सालूर आदिके लेख ५ र गुड्डि नादोश्वेय. ६ "नागय्यंगलु निलि७ सिद कल्लु'"सालियूर 5 "महाजन.... [ इस निषिधिलेखमें चन्द्रनाथदेवको शिष्या नादोव्वेके समाधिमरण तथा नागय्य-द्वारा इस निषिधिकी स्थापनाका उल्लेख किया है।] [ए. रि० मै० १९२७ पृ० १२९ ] ५४१ सक्करेपट्टण ( मैसूर ) काड १ श्रीमत्परमगंभीरस्थाद्वादामोघलांछन । जीया२ त् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं । श्रीमद् राजगुरु ३ .."मौनपाचार्य श्री होसूर शिष्य नूलवागि४ सेट्टिय मग नूलवन्दिसेट्टिय निषिधि ५ शार्वरि संवत्सरद ६ भाषाढ सुध १४ आदि [ यह निषिधिलेख होसूरके राजगुरु मौनपाचार्य के शिष्य नूलवागिसेट्टिके पुत्र नूलवन्दि सेट्टिका स्मारक है । तिथि आषाढ शु० १४, रविवार, शार्वरी संवत्सर, इस प्रकार बतलायी है। ] [एरि० म० १९२७ पृ० ६३ ] तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) तमिल [ इस लेखमे अप्पाण्डार ( चन्द्रप्रभ ) मन्दिरके इस गोपुरका निर्माण परमजिनदेवजीयर्-द्वारा किये जानेका उल्लेख है। लेखकी तिथि पंगुणि Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ जैन शिलालेख - संग्रह [ ५४३ द्वितीया, रेवती नक्षत्र, रविवार, युव संवत्सर इस प्रकार दी है । लिपि आधुनिक है । [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ३१५ पृ० ६७ ] ५४३ मुत्तगदहोसूर ( मैसूर ) १ सिद्धजिनालय २ सान्तेवेय बसदि ३ बगे माडिदिनु [ इस छोटे-से लेख में सान्तंऔवे नामक महिला द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका उल्लेख है । ] कन्नड १ स्वस्ति श्री राज ३ सयसनं गेट मुडि ५ न पण्डितं.. ... [ ए०रि० मै० १९२४ पृ० २३ ] ५४४ उम्मत्तूर (मैसूर) २ मटाररुनोतु ४ पिदर् कल्ल निलिसिंद शा [ इस लेखमें राज भट्टारकके समाधिमरण तथा ज्ञान पण्डित द्वारा इस निषिधिको स्थापनाका उल्लेख है । ] [ ए०रि० मैं ० १९२८ पृ० ४७ ] Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५४५] कम्मनहल्लिका मेल कम्मनहल्लि (मैसूर ) १ श्रीमत्परमगंभीरस्यावादामोघलांछनं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जि" २ ..श्रीमति मूलसंघसंघोद्मवे""शुभे देशीगणे ३ ""स्याद्वादारिनगाशनि 'कैवल्यजन्मावनिः . .""मयचन्द्रकरुणा"कलियुगे." ५ ..."बुल्लप'शोमते... ६ ..."जिनपदसेवेयोलुचितदानदोलु"यिन्तु सुख... ७ जिनेश्वरनाम' "मनदोल"बुल्लपं ८ . प्रमवसंवत्सर"देवाल" है माडिसि"(1) हारदानक्क [ यह लेख बहुत घिस गया है। प्रभवसंवत्सरमें बुल्लप-द्वारा किसी मन्दिर निर्माणका तथा उसमे आहारदानके लिए कुछ व्यवस्थाका इसमें उल्लेख है। मूलसंघ-देशीगणके अभयचन्द्र आचार्यका भी उल्लेख हुमा है।] [ए० रि० मै० १९२८ पृ० ८७ ] गोणिबीड ( मैसूर) १ स्वस्ति श्री. ३ नन्तन उ २ मतु भ४ चापनेय Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जैनशिलालेख-संग्रह ५ चउवीस तीर्थक ६ र प्रति७ मे मंगल [ यह चौबीसतीर्थकरमूर्ति अनन्तव्रतके उद्यापनके समय स्थापित की गयी थी। इस समय बन्नि महाकाली मन्दिरमें सुनारों-द्वारा इसकी पूजा की जाती है।] [ ए० रि० मै० १९२७ पृ० ७४ ] ५४७ कल्लहल्लि ( मैसूर ) काड १ स्वस्ति श्रीमूलसंग देसिगण पुस्तकगत्स कुण्डकुन्दान्ववायं.... श्रीजयदेवम२ हारकदेवर प्रियसिस्यरु श्रीअनन्तवीर्यदेवर प्रियगुडगलु जीब३ गौड मल्लिगौडन मग मुहिगौडन मग राय४ गोड माडिसिद श्रादिपरमेश्वरप्रतिमेश्वररु मंगल म५ हाश्री श्री श्री रूवारि बूपोजन मग रूवारि नागोज माडिद [ इस लेखमें देसिगणके जयदेवभट्टारकके शिष्य अनन्तवीर्यदेवके शिष्य रायगौड-द्वारा आदितीर्थकरकी मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । यह मूर्ति रूवारि बूपोजके पुत्र रूवारि नागोजने उत्कीर्ण की थी। ] [ए० रि० मै० १९२५ पृ० ९३ ] ५४८-५५६ तंगले ( मैसूर ) काड [ यहाँ एक शिलाखण्डपर कुछ मुनियोंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं तथा उनके नीचे इस प्रकार नाम दिये हैं - १ नमोहते अजितकीर्तिगलु २ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५५८] तंगले आदिके लेख ३६१ देवनन्दियतिगलु ३ गुणसागरभटारकरु ४ कोतिसागरभटाररु ५ अजितसेनभटारकर ६ प्रभाचन्द्रदेवरु ७ विमलगुणवतिगलु ८ अजितसेनभटाररु ९ शुभचन्द्ररु । [ए० रि० मै० १९२५ पृ० ५१] कनकरायनगुड्ड ( मैसूर ) १ श्रीकोण्डस्यसेट्टियर् २ मूलस्थानबसदिय स्था३ नक्के "कन्तियर मगल ४ विजयक्कं कोह मण्णु ५ मू. [ इस लेखमें कोण्डय्य सेट्टि-द्वारा निर्मित मूलस्थान जिनालयके लिए विजयक्का-द्वारा कुछ भूमि दान दी जानेका उल्लेख है।] [ए० रि० मै० १९२५ पृ० ३८ ] हुलदेनहल्लि ( मैसूर ) कलन १ परमेश्वर पृथ्वीराज्य२ रसारपुर दूरवेल्लिय३ योलकटि किलगणकेरे-- ४ नन्दियडिगल पडेदराताद५ रु साक्षि सिडिलवडु तोरेदे६ पालु अरुगोल केरेय केलग-- ७ ग देसे एलु मने तार इदके सा Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [५५९ ८ वत्तरु तेकलनाड एलपत्तारु द-- [ इस लेखका ऊपरका और दाहिना भाग टूटा है। नन्दियडिगल आचार्यको कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है । ] [ए० रि० मै० १९२६ पृ० ८३ ] तोललु ( मैसूर) १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादा२ मांधलांछनं जीयात् लोक्यना३ थस्य शासनं जिनशासनं । स्वस्ति यमनि४ यमस्वाध्यायगुणसम्पन्नरप्प अभयच५ न्द्रदेवरु सर्गगामिगलाद परोक्ष६ यममागल् पद्मावतियक्क माडिसिद सास७ नं ॥ अरेवेसनागिरह बसदियं माडि८ सिदरु देवर मनेय परिसूत्रद गट्टुं कट्टि६ यिसिदरु मनेयं माडि नदुम्मरनुमं नट१० रु इनिसक्कं यिक्कि पूजिसिद गवाणवेप्प११ तु । इन्तप्पुदक्के साक्षि मुद्दगवुण्डनु मास१२ गवुण्डनु तम्मडिय"रु । बिटियणर्नु ने. १३ मण- ईस्तानकोडेयरु । [ इस लेखमें कहा है कि आचार्य अभयचन्द्रकी मृत्यु होमेपर उनको शिष्या पद्मावतियक्काने एक अधूरे जिनमन्दिरको पूर्ण किया। इस कार्यमें ७० गद्याण खर्च हुए। इस मन्दिरके व्यवस्थापक बिट्टियण तथा नेमण थे। मुद्दगवुण्ड तथा भासगवुण्ड इसके साक्षी थे।] [ए० रि० मै० १९२६ पृ० ४२] Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५६३] यलवट्टि आदिके लेल ५६०-५६१ यलवट्टि ( जि. धारवाड, मैसूर ) [ यहाँ दो लेख है । एकमें मूलसंध-देशीयगणके सकलचन्द्रदेवके गृहस्थ शिष्य सेनबोव केतय्यको मृत्युका उल्लेख है। इसकी तिथि मार्गशिर शु० ८ शुक्रवार, आनन्द संवत्सर ऐसी दी है। दूसरे लेखमें मूलसंघ-देशीगण-पोस्तक गच्छ - कोण्डकुन्दान्वयके देवकोति भट्टारकके एक शिष्यकी मृत्युका उल्लेख है। इसकी तिथि श्रावण कृ. ९ रविवार, साधारण संवत्सर ऐसी है।] (रि० सा० ए० १९४४-४५ एफ् ६०-६१) शाबल (जि. धारवाड, सैसूर ) [ इस लेखमे देशीयगणके बालचन्द्र विद्यदेवके एक गृहस्थ शिष्यको मृत्युका उल्लेख है। मार्गशिर कृ० ३, व्यय संवत्सर ऐसी तिथि दी है।] (रि० सा० ए० १९४४-४५ एफ् ५४) ५६३ दानबुलपाडु (जि० कडप्पा, आन्ध्र ) काड [ इस लेखमे कनककोतिदेवके शिष्यकी - जो पेनुगोण्डका एक व्यापारी था - निसिधिका उल्लेख है।] (इ० म० कडप्पा १४९) Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ जैनशिलालेख-संग्रह ५६४ मुल्कि ( दक्षिण कनडा, मैसूर ) [जैन बसदिके आगे मानस्तम्भकी दक्षिण बाजूपर । इसमें तीर्थकरोंकी प्रशंसामें पांच श्लोक लिखे गये है।] ( इ० म० दक्षिण कनडा ९३ ) मद्रास ( म्यूजियम) कन्नड [यह लेख शान्तिनाथको मूर्तिके पादपीठपर है। महाप्रधान ब्रहदेवणद्वारा स्थापित किये हुए येरग जिनालयमें यह मूर्ति थी। मूलसंघ, कुण्डकुन्दान्वय, काणूरगण, तिन्त्रिणि गच्छके महामण्डलाचार्य सकलभद्र भट्टारक ब्रहदेवणके गुरु थे।] (इ० म० मद्रास ३२४ ) मद्रास ( म्युजियम ) कन्नड व संस्कृत [ इस लेखमे साहित्यप्रिय साल्व-राजा द्वारा शास्त्रोक्त रीतिसे शान्तिनाथकी मूतिके निर्माणका तथा स्थापनाका निर्देश है। ] ( इ० म० मद्रास ३२५ ) Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५६९ ] कोगलि मादिके लेख ३६५ कोगलि (बेल्लारी, मैसूर) कमड जैन मन्दिरमें एक मूर्तिके पादपीठपर [चैत्र शु० १४, रविवार, परिधावि संवत्सरमें अनन्तवीर्यदेवके शिष्य ओबेयमसेट्टि-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापनाका इस लेख में निर्देश है। ] ( इ० म० बेल्लारी १९०) ५६८ कोलक्कुडि ( मदुरा, मद्रास) तमिल [ गुहामे जैन मूतिके पादपीठपर । ____ गुणसेनदेवके शिष्य वर्धमानव पण्डितके शिष्य गुणसेनपेरियडिगल-द्वारा यह मूर्ति खुदवायी गयी ऐसा इस लेखमे निर्देश है। यहाँकी अन्य दो मूर्तियोंके लेखोंमें भी गुणसेनदेवका उल्लेख है।] [इ० म० मदुरा ३९] कुण्डघाट ( जि० मोंधोर, बिहार ) __ संस्कृत-गौडीय जैन मन्दिरमें महावीरमूर्तिक पादपीठपर [ इस लेखमें वीरेश्वरक-द्वारा इस मूर्तिके दिये जानेका निर्देश है।] [रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० ९] Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ जैन शिलालेख संग्रह ५७० पेनुकोण्ड ( जि० अनन्तपुर, आन्ध्र ) कन्नड [ ५०० पार्श्वनाथ मन्दिर के समीप एक कुँएके पास शिलापर [ यह जिनभूषणभट्टारक देवके शिष्य नागय्यका समाधि लेख है । ] [ इ० म० अनन्तपुर १६७ ] ५७१ कायापट्टि (मद्रास ) तमिल [ यह लेख शमणर् तिडल नामक भग्न जिनमन्दिरके पास है । जयवीर पेरिलमैयान्-द्वारा तिरुवेण्णायिल स्थित ऐन्नूरुव पेरुम्पल्लि ( जिनमन्दिर) के आगे फ़र्श बनवानेका इसमें उल्लेख है । ] [ इ० पु० क्र० १०८३ पृ० १५१ ] ५७२-५७३ मलैयकोविल् (मद्रास) तमिल [ इस लेखमें जैन आचार्य गुणसेनका नाम दिया है । साथमे परवादिनिदा यह उपाधि है । स्थानीय गुहामन्दिरके पास पाषाणपर यह लेख उत्कीर्ण है । ऐसा ही लेख तिरुमय्यम्‌के सत्यगिरीश्वरमन्दिर के एक पाषाणपर भी है । ] [ इ० पु० क्र० ४-५ पृ० १ ] Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेणिमलै आदिके लेख ३६७ तेणिमलै ( मद्रास) तमिल [ यह लेख एक पाषाणपर उत्कीर्ण जिनमूर्तिके नीचे है। यह मूर्ति (तिरुमेणि ) श्रिवल्ल उदण सेरुवोट्टि-द्वारा उत्कीर्ण थी ऐसा लेखमें कहा है।] [इ० पु. क्र. १. पृ० १] पण्डि (जि० उत्तर अर्काट, मद्रास ) तमिल पोमिनाथ जैन मन्दिरके पश्चिमी दीवाळपर [ इस लेखमे शम्बुवरायका उल्लेख है। वीरवीरजिनालय नामक मन्दिरको स्थापनाका तथा उसे एक गांव दान देनेका उल्लेख इस लेखमे है ।] [इ० म० उत्तर अर्काट २१० ] ५७६ मूडबिदुरे ( मैसूर) काट [ इस ताम्रपत्रके तीन भाग है। पहला भाग वृषभ २२, गुरुवार, तारण संवत्सरके दिनका है। इसमें चन्द्रकोतिदेव-द्वारा २४ तीर्थंकरोंको पूजाके लिए २०० होन्नु अर्पण किये जानेका उल्लेख है। यह रकम विष्णु कलुम्बरुको कर्ज दी गयी थी। उसने अपनी कुछ जमीन गिरवी रखकर इस रकमके ब्याजके रूपमें १६ मन चावल देना स्वीकार किया था। दूसरा भाग कर्क ९, बुधवार, स्वर्भानु संवत्सरके दिनका है। इसमें श्रीधर पडि Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ जैन शिलालेख संग्रह [ ५७७ कोदि द्वारा ज़मीन गिरवी रखकर २१०० वीररायफण क़र्ज़ प्राप्त करनेका उल्लेख है । इसके ब्याजके रूपमे २८ मुडे चावल देना स्वीकार किया था । इसका उपयोग गेरुसोप्पेकी ललितादेवी द्वारा स्थापित बसदिमें पूजाके लिए होना था । तीसरा भाग मेष १, रविवार, नन्दन संवत्सरके दिनका है । इसमें तीन बन्धुओं द्वारा पार्श्वनाथबस्तिसे कुछ क़र्ज़ लेनेका तथा उसपर कुछ निश्चित रकम ब्याज देनेका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ए९ ] ५७७ मूडबिदुरे (मैसूर) कलड [ इस ताम्रपत्र-लेखमे चारुकीति पण्डितदेव द्वारा निर्मित चण्डोग्र पार्श्वनाथबसदि के लिए कर्नरबलिकं बर्मनन्द तथा उनके बन्धु कुंगिय दान दिये जानेका निर्देश है । लेखको तिथि संवत्सर ऐसी दी है । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ए७ ] बमसेट्टि द्वारा ७० गद्या वृषभ १५, रविवार, दुर्मुखि ५७८ निट्टूर ( मैसूर ) कराड १ चित्रभानु २ संवत्सर ४ द शुद्ध ७ गलु स्वर्गस्त = राद निविधि ५ यु सोम ३ द फाल्गुण ६ वार बोम्मण्ण [ इस निषिधिलेखमे फाल्गुन शु० ८ चित्रभानु संवत्सर के दिन बोम्मणके समाधिमरणका उल्लेख है । ] [ ए०रि० मं० १९३० पू० २५७ ] Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -५८.] तलान मेख ११९ ५७६ तललूर ( मैसूर) काड १ मावसंवत्सरद श्राव २ ण शुद्ध त्रयोदसि मा३ दिवारदंदु स्वस्ति ४ श्रीमद् "अजितेश्व५ रदेवर""महाजन... ६."धागि... . .."केशवदेवर बम्म- ८ ब्वे टोटर्टि... ९ .."वागि कमर... १० कोण्ड" " "येनुल्क [यह लेख काफी अस्पष्ट हुआ है। श्रावण शु० १३, रविवार, भावसंवत्सरके दिन किसी ग्रामके महाजनों द्वारा अजितेश्वर देवके मन्दिरके लिए कुछ भूमि दान दी गयो ऐसा इसमें उल्लेख है। केशवदेवकी कन्या बम्मन्बेके उद्यानके समीपको २ कम्म जमीन भी इस दानमें सम्मिलित थी। [ए. रि• मै० १९३० पृ. ११३ ] अंबले ( मैसूर ) कवड , जिनचंद्रदेवरु २ ""मुडि(पि)... [ इस छोटे-से लेखमें जिनचन्द्रदेवके समाधिमरणका उल्लेख है। ] [ए० रि० म० १९३० पृ० १३३ ] Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० जैन शिलालेख संग्रह ५८१-५८४ हैदराबाद ( म्युजियम ) ( आन्ध्र ) संस्कृत-कराड [ ये चार मूर्तिलेख हैं जो घिसनेसे अस्पष्ट हुए हैं । एकमें मूलसंघके किसी व्यक्तिका उल्लेख है । दूसरेमें एक मूर्तिकी स्थापना फाल्गुन शु० १५, बुधवार, शर्वरी संवत्सर के दिन किये जानेका उल्लेख है । तीसरेमें पण्डित मल्लिसेनका उल्लेख है | चौथेमें नेमिचन्द्रदेवके शिष्य कुमार मायदेव महामण्डलेश्वर द्वारा पार्श्वनाथ मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है । इन लेखोंका समय निश्चित नहीं है । ] [ रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० १४९, १५०, १५२, १५४ ] ५८५ भोसे ( सातारा, महाराष्ट्र ) कराड [ ५८१ बेलगामे (मैसूर) संस्कृत-कन्नड [ इस लेख में मूलसंघ - काणूरगणके वामनन्दि व्रतोश्वरका उल्लेख है । लेख बहुत घिस गया है । समय निश्चित नहीं ] [ रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० २४३ ] ५८६ १ गणप्राच्य महीभृदकी श्री२ भव्याधिवर्धिष्णुशशांक मूर्तिः 斑 Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -YER] कारकस आदिके लेख ૩૦૧ [ यह लेख एक जिनमूर्तिके पादपीठपर है और इसका आधा भाग अस्पष्ट हो जानेसे अधूरा हुआ है। इसमें किसी गणके एक आचार्यका उल्लेख रहा है । ] [ ए०रि० मै० १९२९ पृ० १२६ ] ५८७ कारकल (मैसूर) संस्कृत [ यह लेख गोम्मट मूर्तिके सम्मुख ब्रह्मस्तम्भके समीप उत्कीर्ण पादुकाओंके पास है । लिपि आधुनिक है - ( मूल- ) श्रीगणघरपादम् । ] [रि० ३० ए० १९५३-५४ क्र० ३३८ पृ० ५२ ] ५८८ कोप्पल ( रायचूर, मैसूर ) कन्नड [ इस लेखमें चावय्यद्वारा जटासिंगनन्दि आचार्यको पादुकाओंकी स्थापनाका उल्लेख है । ] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १६१ पृ० ४१ ] ५८६ बादंगट्टि ( धारवाड, मैसूर ) कन्नड [ यह लेख बोम्मिसेट्टिके समाधिमरणका स्मारक है । ] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० १६९ ० २२ ] Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ जैनशिलालेख-संग्रह वालेहल्लि ( धारवाड, मैसूर) [ इस लेख में मार्गशिर २० १०, शुक्रवार, शुभकृत् संवत्सरके दिन माधवचन्द्रदेवके शिष्य नागगौडको पत्नी सायिगबुडिके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क० १९१ पृ० २३ ] ५६१ गुडुगुडि ( धारवाड, मैसूर) कन्नर [ यह लेख सरस्त ( सूरस्त ) गणके किसी आचार्यको शिष्या लागवेके समाधिमरणका स्मारक है।] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र. २०० पृ० २४ ] ५९२ मन्तगि ( धारवाड, मैसूर) [ यह लेख टूटा है। हरिकेसरिदेव, हरिकान्तदेव तथा तोयिमरस द्वारा विभिन्न बसदियोंको दिये गये भूमिदानोंका इसमें उल्लेख है। इनमें बंकापुरको उम्पंटाचण बसदि तथा कोन्तिमहादेविय बसदिका भी समावेश है।] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २०८ पृ० २५ ] Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्तगि आदिके लेख ५६३ मन्तगि ( धारवाड, मैसूर ) कन्नड [ इस लेखमें फाल्गुन - ? - बडुवार, सर्वधारि संवत्सरके दिन सूरस्तगणके सहस्रकीतिदेवके शिष्य तथा मल्लिगुण्डके महाप्रभु विठगोडके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र. २१० पृ० २५ ] ५९४ येलबर्गि ( रायचूर, मैसूर) [ यह लेख एक भग्न मूर्तिके पादपीठपर है। इसमें मूलसंघ, सूरस्तगण तथा कन्निसेट्टिका उल्लेख है । ] [रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र. २२५ पृ० ३९] ५९५ तिरुप्परंकुण्डम् ( मदुरै, मद्रास ) तमिल (?)- ब्राझी [ यहाँ पहाड़ीपर दो गुहाओमे निम्न पंक्तियाँ खुदी हैं। ये गुहाएँ जैन श्रमणोंके लिए उत्कीर्ण की गयी थीं (१) न य (२) मा ता ये व (३) अ न तु वा ण को टु पिता का ण] [रि० इ० ए० १९५१-५२ क्र. १४०-४२ पृ० २२] Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह ५६६ देवसूर (मदुरा, मद्रास) वट्टलुत्त [ यह लेख बहुत अस्पष्ट है । इसमें किसी पल्लि (जैन वसति) तथा तुंग पल्लवरैयन्का उल्लेख है। ] [रि० सा० ए० १९३१-३२ क्र० ५९ पृ० १२] ५६७ अपकूर (धारवाड, मैसूर) काड [ यह लेख वीरभद्र मन्दिरकी एक भग्न मूर्तिके पादपीठपर है। इसमें शान्तिनाथ, सोमदेव तथा वसुधाकरदेवकी स्तुति को है। सातोज-रामोजद्वारा इस बसदिके निर्माणका उस्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९३२-३३ क० ई० ७ पृ०९२ ] हावेरी ( धारवाड, मैसूर ) [ इस लेखमें मादरस-द्वारा जिनमन्दिरको सीढ़ियां बनवाये जानेका उल्लेख है । इस समय यह लेख वीरभद्र मन्दिरमें लगा है। ] [रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई० ९६ पृ० १०१ ] ५६१-६०२ इंगलेश्वर ( बिजापूर, मैसूर ) [ये चार समाधिलेख हैं। पहलेकी तिथि तारण, अमावास्या, शुक्रवार यह है । यह सत्यण्णकी समाधि है । दूसरा लेख अग्गलसेट्टिके पुत्र शान्ति Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कागिनोल्लि बादिके लेख ३०१ सेट्टिकी समाधिपर है। तिथि आंगिर संवत्सर, चत्र १, सोमवार यह है । तीसरी समाधि शान्तिदेव मुनिको है । तिथि प्रमादि संवत्सर, "मास व ६, शुक्रवार यह है । चौथी समाधि माघनन्दि मुनिपको है। तिथि श्रावण शु० ११, शुक्रवार, युव संवत्सर है।] [रि० सा० ए० १९३०-३१ ० ई १५.१८ पृ० ८५ ] कागिनोल्लि (धारवाह, मैसूर) [ यह लेख एक स्तम्भपर है। इसमें दानविनोद वैरिनारायण लेंकमसण आदित्यवर्माकी स्तुति की है तथा उसके द्वारा काणूरगण, मेषपाषाणगच्छकी बसदिमें एक स्तम्भको स्थापनाका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ क० ई० २८ पृ० १२१] ६०४ माकनूर (धारवाड, मैसूर) [इस लेखमें खर संवत्सर, कार्तिक शु० (?), शुक्रबारके दिन मूल संघ-सूरस्थगणके नन्दिभट्टारकके शिष्य बोप्पगोडके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३४-३५ क० ई ५० पृ० १५१ ] लवकुण्डि (धारवाड, मैसूर ) [ यह लेख एक भग्न जिनमूर्तिके पादपीठपर है। इसकी स्थापना विद्य नरेन्द्रसेनके शिष्य वैश्य जेमिसेट्टिकी कन्या राजब्वेने की थी।] [रि० सा० इ० १९३४-३५ क० ई ७५ पृ० १५४ ] Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ जैन शिलालेख संग्रह ६०६ देवर ( बिजापूर, मैसूर) कड [ इस लेख में मूलसंघ - देसिंगण इंगलेश्वर बलिके नेमिदेव आचार्य के देविसेट्टि, पदुमव्वे तथा सिंगेयके समाधिमरणका शिष्य सिंगिसेट्टि, उल्लेख है । ] [ 805 [रि० स० ए० १९३६-३७ क्र० ई २२ पृ० १८३ ] ६०७ शिरूर ( जमखंडी, मैसूर ) कजर [ इस लेखमें यापनीय संघ -वृक्षमूलगणके कुसुमजिनालय में कालिसेट्टि - द्वारा पार्श्वनाथमूर्ति की स्थापनाका वर्णन है । ] [रि० स० ए० १९३८-३९ क्र० ई ९८ पृ० २१९ ] ६०८ इडेयालम् (द० अर्काट, मद्रास ) तमिल [ यहाँ जैन मन्दिर के समीप पाषाणोंपर चरणपादुकाएं उत्कीर्ण हैं तथा निम्न नाम खुदे हैं। Hayw ( १ ) मल्लिषेणमुनीश्वर ( ३ ) अप्पाण्डार नायिनार् [रि० स० ए० (२) विमलजिनदेव ४ ) इडेयालम्के जिनदेवर् ] १९३८-३९ क्र० ३११-१४ ० ४२ ] Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोनगछु मादिके लेख तोरनगल्लु (बेल्लारी, मैसूर) कबाड [ यह लेख अकलंकदेवके शिष्य बयिचिसेट्ठिके समाधिमरणका स्मारक है। [रि० सा० १० १९२२-२३ क्र० ७२९ पृ० ५१ ] ६१० लोकिकेरे (बेल्लारी, मैसूर ) कमर [ यह लेख श्री रत्नभूषण भट्टारकके प्रिय शिष्य लोकेयकेरे निवासी मरगोण्डके समाधिमरणका स्मारक है। ] [रि० सा० ए० १९२४-२५ ० २९९ पृ० ४९ ] ६११.६१२ गरग ( धारवाड, मैमूर) काड [ यह लेख यापनीय संघ-कुमुदिगणके शान्तिवीरदेवके समाधिमरणका स्मारक है । तिथि श्रावण व० ४, गुरुवार, विकृति संवत्सर ऐसी दी है। यहींके एक अन्य लेखमें भी यापनीय संघ-कुमुदिगणका उल्लेख है। अन्य विवरण लुप्त हुआ है। [रि० सा० ए० १९२५-२६ क्र. ४४१-४४२ पृ० ७६ ] Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह ६१३ कुमठ ( उत्तर कनडा, मैसूर ) कराड [ स्थानीय जैन बसदिमे पार्श्वनाथमूर्तिके पादपीठपर यह लेख है । मूलसंघ, सूरस्तगण, चित्रकूट गच्छके मुकुन्ददेव द्वारा इस मूर्तिकी स्थापना की गयी थी । ] ३७८ [ ६१३ [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २३७ पृ० २७ ] ६१४ कुमठ ( उत्तर कनडा, मैसूर ) कार [ इस लेखमें पुष्य शु० ( ? ) क्रोधन संवत्सरके दिन क्राणूरगणके गंजिय मलधारिदेवकी शिष्या कंचलदेवीके समाधिमरणका उल्लेख है । इसके पतिका नाम त्रिभुवनवीर था तथा कदम्ब राजाओंकी उपाधियों उसे दी गयी हैं । ] [रि० ३० ए० १९४७-४८ क्र० २४२ पृ० २८ ] ६१५ रायद्रुग ( बेल्लारी, मैसूर ) कनाड [ यहाँके निसिधि लेखोंमें निम्न व्यक्तियोंके नाम हैं - मूलसंघके चन्द्रभूति, आपनीय संघके चन्द्रेन्द्र, बादय्य तथा तम्मण्ण । एक लेखपर माघ शु० १ सोमवार, प्रमाथि संवत्सर यह तिथि दो है । ] [रि० सा० ए० १९१३-१४ क्र० १०९ पृ० १२] Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -६१९ ] कोगकि भादिके लेख ६१६-६१७ कोगलि ( बेल्लारी, मैसूर ) काद [ इस मूर्तिलेखमें अनन्तवीर्यदेवके शिष्य ओडेयमसेट्टि द्वारा इस मूर्ति की स्थापनाका उल्लेख है । यहाँके एक स्तम्भपर जिनमूर्तियोंके अभिare लिए कई व्यक्तियों द्वारा दिये गये दानोंका उल्लेख है । प्रथम लेखकी तिथि चैत्र शु० १४ रविवार, परिधावि संवत्सर ऐसी दी है । ] [रि० स० ए० १९१४-१५ क्र० ५२०-२१ पृ० ५३ ] ६१८ मुलगुन्द ( धारवाड, मैसूर ) कन्नड T [ इस लेख में देसिगण -हनसोगे अन्वयके ललितकीर्ति भट्टारकके शिष्य सहस्रकीतिक मृत्युका उल्लेख है । मुस्लिमों द्वारा पार्श्वनाथबसदिपर आक्रमणके समय उनकी मृत्यु हुई थी। ] [रि० स० ए० १९२६-२७ क्र० ई ९२ पृ० ८ ] ६१६ कलकेरि ( धारवाड, मंसूर ) कार [ इस लेखमें मूल संघ - काणूरगण- तित्रिणी गच्छके भानुकीर्ति सिद्धान्तदेवके शिष्य हलिगावण्ड द्वारा कलिकेरेके अकलंकचन्द्रभट्टारकके लिए एक सदिके निर्माण तथा पार्श्वनाथमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९२७-२८ क्र० ई ५१ पृ० २४ ] Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह [१२० कम्मरचोडु ( बेल्लारी, मैसूर ) कन्नर [ इस लेखमें पद्मप्रभमलधारिदेवके प्रियशिष्य महावड्डव्यवहारि रायरसेट्टिकी पत्नी चन्दन्वे-द्वारा इस जिनमूर्तिके जीर्णोद्धारका वर्णन है । इस समय यह मूर्ति हिन्दू देवताके रूपमें पूजी जाती है । ] [रि० सा० ए० १९१५-१६ ऋ० ५६० पृ० ५५ ] ६२१-६२२ कोहशीवरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) कन्नड [ यह लेख एक स्तम्भपर है। काणूर गणके पुष्पनन्दि मलघारिदेवके शिष्य दावणन्दि आचार्य-द्वारा एक बसदिके निर्माणका इसमे उल्लेख है। यहींके एक अन्य लेखमें काणूरगणके (?) आचार्यको शिष्या इरुंगोल राजाकी रानी आलपदेवी-द्वारा इस बसदिकी रक्षाका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१६-१७ क्र० २०-२१ पृ० ७२ ] ६२३-६२६ अमरापुरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) कन्नड [ यहाँके निसिधिलेखोंमे निम्न व्यक्तियोंके नाम है-(१) प्रभाचन्द्रदेवके शिष्य कोम्मसेट्टि (२) पोतोज तथा उसका पुत्र सयबि मारय (३) मलसंघ-देसियगणके बालेन्दु मलधारिदेवके शिष्य विरूपय तथा मारय (४) मूलसंघ-सेनगणके प्रसिद्ध वादि भावसेन विद्यचक्रवति (५) इंगलेश्वरके प्रभाचन्द्र भट्टारकके शिष्य बोम्मिसेट्टियर वाचय्य (६) बेरिसेट्टिके पुत्र सम्बिसेट्टि । यहाँके एक अन्य लेखमें इंगलेश्वरके त्रिभुवनकोति राउलके शिष्य देशियगणके बालेन्दु मलधारिदेव-द्वारा एक बसदिके निर्माणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१६-१७ ० ४१-४७ पृ० ७४ ] Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मवालि मावि मेल ६३० तम्मदहलि ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) [ इस लेखमें मूलसंघ-देसियगणके चारुकोति भट्टारकके शिष्य चन्द्रांक भट्टारकके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१६-१७ क्र० ४८ पृ०७४ ] ६३१ रामपुरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र) [ इस लेखमें मूलसंघ-देसियगणके देवचन्द्र देवके शिष्य बेट्टिसेट्टिके पुत्र कृष्णसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१७-१८ क्र० ७१४ पृ०७४ ] रामतीर्थम् (विजगापटम आन्ध्र ) तेलुगु [ यह लेख एक भग्नजिनमूतिके पादपीठपर है। ओंगेरुमार्गस्थित चन्द (यो) ल निवासी प्र (मि) सेट्टि-द्वारा इस मूर्तिको स्थापना हुई थी।] [रि० सा• ए. १९१७-१८ क्र. ८३२ पृ. ८५] वेलर ( द० अर्काट, मद्रास) तमिल [ इस लेखमें जयसेन-द्वारा इस जिनमन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है। लिपि उत्तरकालीन है। [रि० सा० ए. १९१८-१९ क्र० १२४ पृ०५९] Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ जैनशिलालेख संग्रह [६३५ निडुगल ( मैसूर) कन्नड [ इस लेखमें बेल्लुम्बट्टे के भव्यों-द्वारा-जो मूलसंघदेसिगणके नेमिचन्द्र भट्टारकके शिष्य थे-पार्श्वनाथ मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है । ] [ए. रि० मै० १९१८ पृ० ४५ ] ६३५-६३६ नेल्लिकर ( द० कनडा, मैसूर) ___ संस्कृत-कन्नड [ यह लेख स्थानीय अनन्तनाथवसदिमे है। इसके मण्डपका निर्माण मंजण कोन्नभूप-द्वारा किया गया ऐसा कहा है । यहींके दूसरे लेखमे इस मन्दिरका निर्माण ललितकोति भट्टारकदेवके शिष्य कल्याणकोतिदेवकी सम्पत्तिसे देवचन्द्र-द्वारा किये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ५२०-५२१ पृ० ४८-४९ ] मुनुगोडु (गुण्टूर, आन्ध्र) तेलुगु [ इस लेख में बिल्लम नायक-द्वारा पृथियोतिलकबसदिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० १९ पृ. ६ ] ६३८-६३६ लक्कुण्डि ( धारवाड, मैसूर ) कन्नड [ये दो लेख हैं। एकमें मूलसंघ-देवगणके शंखदेव-द्वारा एक जिन Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -६५० ] जबूर आदिके लेस ३८३ मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें वसुषैकबान्धवजिनालयके त्रिभुवनतिलक शान्तिनाथदेवके लिए एक दानशालाके समर्पणका उल्लेख है । ] [ रि० स० ए० १९२६-२७ क्र० ई ३१, ३४ पृ० ३] ૬૦ जावूर ( धारवाड, मैसूर ) कसर [ इस लेखमें बीचिसेट्टि द्वारा सकलचन्द्र भट्टारकको जावूरु ग्रामके पुनः दानका उल्लेख हैं । नविलगुन्दमें जयकीर्तिदेव-द्वारा निर्मित ज्वालामालिनीबसदिके लिए मल्लिदेवने पहले यह गांव अर्पण किया था । ] [ रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ई २२८ १० ५५ ] ६४१ कोमर गोप ( धारवाड, मंसूर ) कड [ इस लेखमें त्रिभुनतिलक जिनालय में आहारदानादिके लिए बालचन्द्र सिद्धान्तदेवके शिष्य पेगडे वासियण्णकी पत्नी चामिकब्बे द्वारा सुवर्णदानका उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई २३० १० ५५ ] ६४२-६५० गुण्डकेजिंग ( बिजापूर मैसूर ) कण्ड [ यहाँ भग्न मूर्ति - पाषाणोंपर निम्न नाम खुदे हैं । (१) देशियगण - इंगलेश्वर (बलि) के चन्द्रकीर्तिदेव तथा जयकीतिदेव (२) अपराजिता देवी (३) वृषभयक्ष ( ४ ) पातालयक्ष (५) कुबेरयक्ष ( ६ ) महानसीयक्षी (७) अनन्तमती (८) चक्रेश्वरी ( ९ ) (शा) न्तनाथस्वामी ] [रि० सा० ए० १९२९-३० क्र० ई १६-१७ पु० ६६ ] Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनशिलालेख-संप्रड ६५१ हुलर ( बिजापूर) काड [ इस लेखमे कण्डूर गणकी एक बसदिके लिए पुलुवरणिके महाजनों द्वारा भूमिदानका उल्लेख है। ] [रि० सा० ए० १९२९-३० पृ० ६७ क्र० ई २९] तम्मदहहि ( बिजापूर, मैसूर) [ इस निसिधि लेखमें इंगलेश्वरतीर्थको बसदिके आचार्य देवचन्द्र भट्टारकके शिष्य बोगगावुण्डके समाधिमरणका उल्लेख है । [रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० ई ७० पृ० ६९] ६५३ तुम्बिगि (बिजापूर, मैसूर ) [ यह लेख पुष्य शु० १०, सोमवार, ईश्वरसंवत्सर, राज्यवर्ष ८ का है। राजाका नाम लुप्त हुआ है । इस समय बोचुवनायककी निसिषिकी स्थापना की गयी थी तथा तदर्थ पाश्वदेवको कुछ भूमि अर्पित की गयी थी। [रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० ई० ७४ पृ. ६९] ६५४ इविन हिप्पर्गि (बिजापूर, मैसूर ) । कमट [ इस लेखमें हबु रेमरस तथा रेचरस-द्वारा ऋषियोंके आहारदानके लिए देवचन्द्र भट्टारकको कुछ भूमि दान देनेका उल्लेख है। इंगलेश्वरके देवकीति भट्टारकका भी उल्लेख है। ] [रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० ई ९१ पृ० ७१ ] Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट श्वेताम्बर लेखोंकी सूचना [पहले संग्रहको पद्धतिके अनुसार हम यहाँ श्वेताम्बर सम्प्रदायसे सम्बद्ध लेखोंकी सूचना दे रहे हैं। इस सूचीमें सरकारी प्रकाशनोंमें प्रकाशित लेखोंका अन्तर्भाव है। श्री० पूरणचन्द नाहरका प्राचीन जैनलेखसंग्रह, श्री० अगरचन्द नाहटाका बीकानेर जैनलेखसंग्रह, आदि ग्रन्थोंमें प्रायः श्वेताम्बर सम्प्रदायके ही लेख है। इन लेखोंकी संख्या ३५००से, ऊपर है। इनका प्रस्तुत सुचीमें उल्लेख आवश्यक नहीं समझा गया।] कोटा ( बडोदा, गुजरात ) - ८वीं सदी रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र. १६-१९ २ अकोटा -1वीं-१०वीं सदी रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० २०-३५ तथा ३९-४८ ३ बडोदा (गुजरात)-सं०१०१३ =सन् १०३७ रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० १६९-७१ • भरतपुर (राजस्थान )-सं० ११०१%Dसन् १०५३ रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र. ३८८, ३९४ ५ पाबू ( राजस्थान)-सं० १११९ = सन् २०६३ ए०६०९३० १४८ सिरोही (राजस्थान ) सं० ११३५ - सन् १०७॥ __ रि० आ० स० १९२१-२२ पृ० ११९ ७ कारोल (गुजरात) -सं० १९४० - सन् १०८४ रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ए २ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ मैनशिकाल-संग्रह ८ हाडोल-सं० ३१५६ -सन् ११०० रि० इ० ए० १९५२-५३ क० ए ३ ९ उदयपुर ( राजस्थान )-सं० १७७६ = सन् १९२० रि० आ. स. १९३०-३४ पृ. २३७ १० नाडोल ( राजस्थान )-सं० १२१३ = सन् ११५७ इ० ए० ४१ पृ० २०२ ११ लखनऊ ( उत्तरप्रदेश)-सं० १२१६= सन् १९६० रि० आ० स० १९१३-१४ पृ० २९ १२ जालोर ( राजस्थान )-सं. १२२१-सन् १९६५ ए० इं० ११ पृ० ५४ १३ मथुरा ( उत्तरप्रदेश) सं० १२३४ = सन् ११७८ रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र. ५२६ १४ मद्रेशर ( गुजरात )-सं० १३१५ = सन् १२५९ रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र. १६९ १५ मद्रेशर-सं० १३२३ = सन् १२६७ रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १७० १६ जालोर ( राजस्थान )-सं० १३३१ = सन् १२७५ ए० इ० ३३ पृ० ४६ १७ आमरण ( राजस्थान )-सं० १३३३ =सन् १२७० पूना ओरिएण्टलिस्ट ३ पृ० २५ १८ चितोड ( राजस्थान )-सं० १३३४ =सन् १२७८ रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र. २३२-२३३ १६ उदयपुर (राजस्थान )-सं० १३३५=सन् १२७९ रि० इ० ए० १९५४-५५,क० ४८५ २० बम्बई-सं० १३५६ = सन् १३०० रि० इ० ए० १९५३-५४ क० २०१-३ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १० २१ उदयपुर- वीं सदी रि० इ० ए० १९५४-५५ ० ५०७ २२ खंभात (गुजरात)-सं० १४२०से सं० १४६८% सन् १३६४से सन् १४१२ रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र. १५९-१९५ २३ आंतरी ( राजस्थान ) स० १४६८ = सन् १४१२ रि० आ० स० १९२९-३० पृ० १८७ २४ मेडता ( राजस्थान )-सं० १५०७से १९८० सन् १४५१से १९३३ रि० आ० स० १९०९-१० १० १३३ २५ ब्रिटिश म्यूजियम-सं०१५१५से १५५३ = सन् १४५३से सन् १५२७ रि० इ० ए० १९५४-५५ ० ५३०-५३८ २६ सिरोही ( राजस्थान )-सं० १५२५ = सन् १९६८ रि० आ० स० १९२१-२२ पृ० ११९ २७ बम्बई-सं० १५२५ = सन् १९९९ रि० आ० स० १९३०-३४ पु० २४९ २८ उदयपुर-सं० १५५६ = सन् १५०० रि० इ० ए० १९५४-५५ क० ४८६ २६ मौगामा ( राजस्थान )-सं० १५७१ =सन् १५१५ रि० आ० स० १९२९-३० पृ. १८८ ३० अलवर (राजस्थान )-सं. १५७३ = सन् १५१७ रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र. ३८६ ३१ अलवर-सं. १६२६ = सन् १५७. रि० इ० ए० १९५२-५३ क० ३७८ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ जैनशिबाल-संग्रह ६१ वैराट ( राजस्थान )- १५०१ = सन् १.. रि० आ० स० १९०९-१० पृ० १३२ ३३ अलवर-सं० १६४५ = सन् १५८९ रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ३७६ ३४ लखनऊ-सं० १६५२ = सन् १५९६ रि० आ० स० १९१३-१४ पृ० २९ ३५ मद्रेशर (गुजरात)-सं० १६५९ = सन् १६०३ रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १७० ३६ उदयपुर-सं० १६६२ = सन् १६०६ रि० आ० स० १९३०-३४ पृ० २३७ ३० भद्रेशर-सं० १९०५-१९३४ = सन् १८४8-१८७८ रि० इ० ए० १९५४-५५ पू० ४२ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट २ जैनेतर लेखोंमें जैन व्यक्ति प्रादिके उल्लेख । ( १ ) बेलगामे काड सन् १२९४ [ इस लेख में यादव राजा रामचन्द्रके समय बल्लिगावेके भेरुण्डस्वामीमन्दिरका उल्लेख है । इस मन्दिरके हेग्गडे पदपर वैद्य दासण्णकी स्थापना कर उसे कुछ भूमि अर्पित को गयी थी। इस भूमिमें प्रथमसेनबसदि ( जिनमन्दिर ) की कुछ भूमि भी शामिल कर दी गयी थी। ] [ ए०रि० मं० १९२९ पृ० १२४ ] (२-६) देवगेरी तथा कोलूर (जि० धारवाड, मंसूर ) ( ११वीं - १३वीं सदी ) - कड पहला लेख चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्ल ( सोमेश्वर प्रथम ) के राज्यकालका है । इनके अधीन बासबूर १४० प्रदेशमे जीमूतवाहन अन्वयमे उत्पन्न हुआ कलियम्मरस शासन कर रहा था । इसे सम्यक्त्वचूडामणि तथा पद्मावतीलब्धवरप्रसाद ये विशेषण दिये । इसने कोलूर के कलिदेवेश्वर के मन्दिर में दीपदानके लिए कुछ दान दिया था। इस दानकी तिथि पौष शु० ५, शक ९६७, उत्तरायण संक्रान्ति थी । दूसरे लेखकी तिथि शक १९७, पौष शु० १४, उत्तरायण संक्रान्ति थी । इस समय चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्ल सोमेश्वर द्वितीयका राज्य चल रहा था । इसमें भी कलियम्मरसके शासनका उल्लेख है तथा देवने सेके कांकलेश्वर मन्दिर के लिए दण्डनायक वण्णमय्य-द्वारा कुछ दान दिये Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९० जैनशिलालेख संग्रह जानेका निर्देश है । इसी लेखके दूसरे भागमें उसी कुलके एक दूसरे कलियम्मरसका उल्लेख है जो चालुक्य सम्राट् भूलोकमल्ल सोमेश्वर तृतीयका सामन्त था । इसने सम्राट्के राज्यके ९ वें वर्ष अर्थात् शक १०५६ में उक्त मन्दिरको कुछ दान दिया था। इस कलियम्मरसने माहेश्वर दीक्षा ग्रहण की थी । तीसरे लेखमें उक्त कलियम्मरस ( द्वितीय ) का उल्लेख सम्राट् विक्रमादित्य ( षष्ठ ) के राज्यके दसवें वर्ष ( सन् १०८५ ) मे किया है जब उसने कोलूर में कुछ धार्मिक दान दिया था । चौथा लेख सम्राट् विक्रमादित्य ( षष्ठ ) के राज्यके ४६ वें वर्ष ( स० ११२१ ) का है । इसका सामन्त हेमडियरस था जो उक्त कलियम्मरस (द्वितीय) का पुत्र था । इसने कोलूर में त्रिभुवनेश्वर तथा भैरवके मन्दिरोंको कुछ दान दिया था । तथा माहेश्वर दीक्षा ग्रहण की थी । पाँचवाँ लेख यादव राजा सिंघण ( तेरहवीं सदीका पूर्वार्ध ) के राज्यकालका है । इसका सामन्त मल्लिदेवरस था जो उक्त जीमूतवाहन अन्वयमे उत्पन्न हुआ था । इसने कोल्लूरके क्षेत्रपाल मन्दिरको कुछ दान दिया था । यहाँ द्रष्टव्य है कि कलियम्मरस (द्वितीय), हेमडियरस तथा मल्लिदेवरस शैव थे फिर भी उन्हें पद्मावती लब्धवरप्रसाद यह पुराना विशेषण दिया है । छठा लेख विक्रमादित्य ( षष्ठ ) के राज्यके ४थे वर्ष (सन् १०७९) का है । इसके अधीन नोलम्बवाडि तथा सान्तलिंगे प्रदेशपर त्रैलोक्यमल्ल ( जयसिंह तृतीय ) शासन कर रहा था तथा बनवासि प्रदेशपर बलदेवय्यका शासन था । बलदेवय्यको जिनचरणकमलभृंग यह विशेषण दिया है । इसके अधीन कुछ करोंका उत्पन्न कोलूरके ग्रामेश्वर मन्दिरके लिए किसी कडाचार्यको दान दिया था । ] [ ए० ६० १९० १७९-१९७ ] Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट (७) शिवमन्दिर, नीडूर (जि. तंजोर, मद्रास ) तमिल - सन् १६ [ यह लेख कुलोत्तुंग चोलके राज्यके ४६वें वर्षमें लिखा गया था। इसमें कण्डन् माधवन्-द्वारा शोमवाररिवार (गणपति) देवका मन्दिर बनवाने का निर्देश है। यह माधवन् कुलत्तूर स्थानका शासक था जहां अमिदसागर ( अमृतसागर ) मुनिने कारिंग ( याप्परुंगलक्कारिंग) नामक छन्दःशास्त्र तमिल भाषामे लिखा था। इस रचनाके लिए जिनने प्रेरणा की वे सज्जन माधवनके चाचा (अथवा ससुर) थे। इस छन्दःशास्त्रमे ४४ कारिकाएं है तथा उरुप्पियल, शेय्युलियल् एवं ओलिबियल ये तीन प्रकरण है । इसपर गुणसागरने टोका लिखी है।] [ए० ई० १८ पृ० ६४ ] (८) कमलापुर और हंपोके बीच कृष्णमन्दिरके समीप एक मण्डपमें शक १३३२ = सन् १४१०, कमर [ यह लेख मधुर नामक जैन कविने लिखा है जो वाजि कुलमे उत्पन्न हुमा था। लेखमें देवरायके मन्त्री लक्ष्मीधर-द्वारा महागणनाथ ( शिव) को स्थापनाका वर्णन है। मधुरने धर्मनायपुराण तथा गुम्मटाष्टक लिखा है। यह हरिहररायके मन्त्री मुद्ददण्डेश्वरका आश्रित था। इस लेख में लक्ष्मीधर-द्वारा मधुरको हाथी, घोड़े, रत्न, जमीन आदि दान देनेका उल्लेख है।] [इ० ए० ५५, १९२६ पृ० ७७ ] (6) गोकर्ण ( उत्तर कनडा) १५वीं सदी, कसड [ इस लेखमें महाबलेश्वर मन्दिरमें अनसन तथा अन्यपूजाके लिए कुछ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह दान दिये जानेका उल्लेख है। दानको रक्षाके लिए कहे गये शापात्मक वर्णनमें गैरसोप्पेकी हिरियबस्तिके चण्डोन पार्श्वनाथका भी उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० ई० ० १०८ पृ. २३७ ] (१०) बोराम्बुधि ताम्रपत्र ( मैसूर ) शक १४८६ = सन् १५६७, कन्नड [ जिनशासनको प्रशंसासे इस ताम्रपत्रका प्रारम्भ होता है । कुलोत्तुंग विक्रमरायके पुत्र चंगालराय-द्वारा भारद्वाजगोत्रके ब्राह्मण नरसीभट्टको वीराम्बुधि नामक ग्राम दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है । दानकी तिथि माव शु० १०, शक १४८९, सर्वजित् संवत्सर ऐसी दी है । ] [ए. रि० मै० १९२५ पृ० ९३ ] Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ नागपुर-प्रतिमा लेखसंग्रह इस परिशिष्टमें हम नागपुरके समस्त प्रतिमालेखोंका संकलन दे रहे है । इन लेखोंका संग्रह श्री शान्तिकुमारजो ठवली ( वर्तमान निवासदेवलगाँव राजा, जि. बुलडाणा, महाराष्ट्र) ने कोई २७ वर्ष पहले सन् १९३५ में किया था। आपने यह संग्रह नागपुरके लोकप्रिय जैन श्रीमान् स्व. सवाई सिंगई श्रो० नेमलालजी पासूसावजीको स्मृतिमें अपित किया था। इस संग्रहके लिए स्व० पूज्य ब्र० शीतलप्रसादजीने भूमिका लिखी यो जो इस प्रकार थी - "जैनधर्मके इतिहासके निर्माणके लिए इस बातकी परम आवश्यकता है कि सर्व जैन स्मारकोंके लेख संग्रहीत किये जावें- इन स्मारकोंमें प्रतिमाओंके लेख, यन्त्रोके लेख, अन्य शिलालेख तथा शास्त्रोंकी प्रशस्तियाँ आवश्यक हैं - श्री शान्तिकुमार ठवली नागपुरने नागपुरके सर्व दिगम्बर जैन मन्दिर व चैत्यालयोंके लेखोंको लिखकर पुस्तकाकार सम्पादन करनेमें जो परिश्रम उठाया है वह सराहनीय है। अच्छा हो यदि इन मूर्तियोंके लेखोंके साथ यंत्रोंके लेख और शास्त्रको प्रशस्तियोंका विवरण प्रकट किया जावे। एक संक्षिप्त तालिका ऐसी दी जावे कि लेखरहित प्रतिमाएं इतनी व अमुक संवत्की इतनी-जिससे पाठकको प्राचीनता व अर्वाचीनताका पता तुरत लग जावे । ऐसी पुस्तकोंसे भविष्यमें बहुत काम निकलेगा - आशा है ठवली महोदय मध्यप्रान्त व बरारके सर्व स्थानोंके लेखोंके संग्रहका प्रयत्न करेंगे । अन्य उत्साही युवकोंको अपने-अपने प्रान्तोंके लेखोंको प्रकट करना चाहिए जिससे किसी समय भारतीय दि. जैन लेख संग्रह पुस्तक निर्माण हो सके । क्र. सीतक ९-३-१९३६ नागपुर" Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९५ जैनशिलालेखा-संग्रह इस पुस्तिकाका प्रकाशन अन्यान्य कारणोंसे अबतक नहीं हो सका था। अतः हमने इस परिशिष्टमे इसका पुन. संपादन किया है। संग्राहकने मूल लेख मन्दिरोंके क्रमसे अलग-अलग संग्रहीत किये थे तथा यन्त्रोंके लेखोंके परिशिष्ट अन्तमे दिये थे । हमने मन्दिरों तथा मूर्तियोंका विवरण अलग दिया है तथा लेख समयक्रमसे अलग दिये है। इन लेखोंके विशेष नामोंका समावेश सूचीमे कर दिया है तथा वहाँ लेखांकके साथ (ना० ) यह संकेत दिया है। नागपुर नगरका अस्तित्व यद्यपि राष्ट्रकूट साम्राज्यके समयसे शात होता है तथापि इसे भोंसला राजा रघूजी के समयसे -- सन् १७३४ से प्रधान स्थान प्राप्त हुआ है । तबसे १९५६ तक यह मध्यप्रदेशको राजधानी रही है। नागपुरके सभी मन्दिर प्रायः भोंसला राजाओंके राज्यमे ही बने है किन्तु इनमे कई प्रतिमाएँ अन्य स्थानोंसे भी लायी गयी है । इस नगरमें कूल ९ मन्दिर है । विदर्भकी रीतिके अनुसार यहाँके प्रमुख जैन व्यक्तियोंके घरोंमे भी छोटे छोटे चैत्यालय है । ऐसे गृहचैत्यालयोंकी संख्या ३७ है । इन सब स्थानोंमे कुल मिलाकर ६४६ मूर्तियां आदि हैं जिनमें धातुको ४४० तथा पाषाणकी २०६ हैं। इन मूर्तियों आदिके ४१ प्रकार हैं जिनकी संख्या इस प्रकार है - (१) आदिनाथ ४३ (२) अजितनाथ १३ (३) सम्भवनाथ १ (४) सुमतिनाथ २ (५) पद्मप्रभ ७ (६) सुपाश्वनाथ १२ (७) चन्द्रप्रभ ४३ (८) पुष्पदन्त ३ (९) शीतलनाथ ५ (१०) श्रेयांस ३ (११) वासुपूज्य ६ (१२) अनन्तनाथ २ (१३) धर्मनाथ ३ (१४) शान्तिनाथ १० (१५) अरनाथ ६ (१६) मुनिसुव्रत १३ (१७) नेमिनाथ १४ (१८) पार्श्वनाथ १३३ (१९) महावीर १० (२०) चौबीसी ३४ (२१) पंचमेरु ९ (२२) नन्दीश्वर ७ (२३) सिद्ध ४ (२४) बाहुबली ६ (२५) रत्नत्रयमूर्ति ३ (२६) पंचपरमेष्ठि १ (२७) यक्षिणी २७ (२८) सरस्वती ३ (२९) क्षेत्रपाल १ (३०) सप्त ऋषि १ (३१) चौसठ ऋषि १ (३२) गुरुपादुका २(३३) रत्नत्रय यन्त्र ५ (३४) सम्यग्दर्शन यन्त्र ४ (३५) सम्यकचारित्र Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-नागपुस्के लेख ३१५ यन्त्र ६ (३६) दशलक्षण यन्त्र ६ (३७) षोडशकारण यन्त्र २ (३८) कलिकुण्ड यन्त्र १ (३९) सिद्ध यन्त्र १ (४०) नवग्रह यन्त्र १ (४१) जलयात्रा यन्त्र १ । इन मूर्तियों आदिमें ५२९ के पादपीठों अथवा किनारोंपर लेख हैं। ऐसे लेखोंकी संख्या ३२४ है ( जहाँ दो अथवा अधिक मूर्तियोंपर एक ही लेख है वहां हमने उस लेखको एक लेखके रूपमें ही गिना है।) समयकी दृष्टिसे ये लेख आठ सदियोंमे इस प्रकार विभक्त हैं - विक्रम तेरहवीं सदी ४, पन्द्रहवीं सदी ३, सोलहवीं सदी २२, सत्रहवीं सदी ५१, अठारहवीं सदी ७२, उन्नीसवीं सदी ६९ तथा बीसवीं सदा १००। इन सब लेखोंकी भाषा अशुद्ध संस्कृत है। कुछ लेखोंमें नागपुरकी स्थानीय भाषाओं-हिन्दी तथा मराठोका अंशतः प्रयोग हुवा है (लेख क्र. २०६,२६३,२६७,२६९,२७८,२८५) किन्तु शुद्ध हिन्दी या मराठीमें कोई लेख नहीं है। एक लेख (क्र. ७३) कन्नडमे तथा एक (क्र० ३१९) उर्दूमे है किन्तु इनका वाचन प्राप्त नहीं हो सका। मूर्तिप्रतिष्ठाके स्थानाके सोलह नाम उल्लिखित हैं - नागपुर (क्र. १५२,१९०-२,२१२.२१५,२१६,२२०-१,२२७,२२९,२३१,२३३, २३५, २४२,२४७,२४९,२५०,२५५-७,२५९,२६१,२७९,२८२,२९५), कारंजा (क्र. ८१,१२५,१५७-८,२१०), सिरसग्राम (क्र० २०२,२०४ ), रामटेक (क्र०७३,२५३ ) भीसो (क्र. १४३ ), तजेगांव (क्र० १०६ ) उमरावती ( क्र० १९९), इंगोली ( क्र. २३२ ), संजालपुर (क्र० ७०) बहादरपुर ( ऋ० ६५ ), अवडनगर (क्र० १३० ) सिवनी (क्र० २८०) छपारा ( क्र० २८४ ), कामठी ( ऋ० १५४ ), सावरगांव (क्र. २९३), सवाई जयनगर ( ऋ० १९३)। प्रतिष्ठाकर्ता व्यक्तियोंकी पन्द्रह जातियोंका उल्लेख मिलता है - राइकवाल (क्र. ९), अगरवाल (क्र० ५३ ), गंगराडा (क्र० १०), गोलसिंघारा (क्र. ७३ ), पल्लीवाल (क्र० ५१), गुजरपल्लीवाल (क्र. २१), पपावती पल्लीवाल (क्र० ११४), उज्जेनीपल्लीवाल Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ जैन शिलालेख संग्रह ( क्र० १०८, १२०, १४३ ), श्रीश्रीमाल ( क्र० ४९-५० ) हुंबड ( क्र० ८, २०,३०,३९,८६ ), गोलापूर्व ( क्र० ६८, २९१), परवार (क्र० ६९, १८८, १९१-९२,२५०,२५४, २६३, २७२, २८५ ), खंडेलवाल ( क्र० १०७, २८२) सैतवाल ( क्र० ९५, २७९, २८६, २८७ ), बघेरवाल ( क्र० १४, २९, ३८, ४४,४६,५५-६,६६,८०-८२,८८-९०, ९२,९४,९६, १२२, १२५, १३०-१, १३५,१५७,१८२,१९८, २०१, २०२, २०४, २२७ ) । प्रतिष्ठापक आचार्य अधिकांश मूलसंघके सेनगण तथा बलात्कारगणके थे, काष्ठासंघ के नन्दीतटगच्छके कुछ आचार्योंके उल्लेख भी है । इन उल्लेखों का उपयोग हमारे ग्रन्थ 'भट्टारक सम्प्रदाय' में किया गया है । उससे इन भट्टारकोंके बारेमे अन्य जानकारी प्राप्त की जा सकती है । संवत् १५४८ के दो लेख ( क्र० १८, १९ ) विशेष रूपसे उल्लेखनीय है । इनमें पहला लेख कोई ७७ मूर्तियों पर है। ये मूर्तियाँ मुडासा शहरमे शिवसिंहके राज्यकाल मे सेठ जीवराज पापडीवालने प्रतिष्ठित करवायी थीं । इस समारोहके प्रमुख भट्टारक जिनचन्द्र थे । इस समारोहमें प्रतिष्ठित मूर्तियां प्रायः प्रत्येक दिगम्बर जैन मन्दिरमे पायो जाती है । Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल लेख , संमत १२०, बैसाख वदी तीन । (विवरण क्र. १४०) २ सं० १२३४ स तु हा ले ()" ( विवरण क्र. १६६) ३ संमत १२६२ साल" ( विवरण क्र० ११५) ४ संमत १२६९ वर्ष भाषाढ़ सुदी ३ "। (विवरण क्र० ११४ ) ५ संमत १४५७ वर्षे बैसाख सुदी ६ श्रीमूलसंघ म०"श्रोजिन देव साह माणिकचंद"। (विवरण क्र० २३१,२३२) ६ मूलसंव म० धर्मभूषणोपदेशात् संमन १४६५ वर्षे। (विवरण क्र. ३०२) ७ संवत १४८५.। ( विवरण क्र. ४०) । ८ संवत १५१० वर्षे माहमासे शुक्लपक्षे ५ रवी श्रीमूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुंदकुंदाचार्यान्वये म० पद्मनंदि तस्पट्टे म० श्रीसकलकीर्ति तशिष्य ब. जिनदास हुंबज्ञातिय सा० तेजु मा० मलाई सुत हरिचंद्र मा० नागाई सुत गोविंद मा० बजाई । (विवरण क्र. १६७) सं० १५२१ वर्षे बैसाख बदि २ श्रीमूल संघ सरस्वतीगने बलात्कारगणे श्रीविद्यानंदिगुरूपदेशात् श्रीराइकवालज्ञातिय... भार्या अहिवदे सुत वेणा भार्या वनादे कारितं श्राचंद्रप्रमचतुर्वि शति नित्यं प्रणमौत ॥ श्रीशुमं ॥ (विवरण क्र. १५७) ५. संमत १५२५ मूलसंग सेनगणो माणिकसेनगुरु गगराडा माल सेटा मार्या तानाई । ( विवरण क्र. ८०) " संमत १५३१ फागुण वदी ५ मू."। (विवरण क्र. १८८) १२ संमत १५३५ श्रीमू. म. भूवनकीर्तिस्तपट्टे म० शानभूषणस्त दुपदेशात् सं० दि० समाज । (विवरण क्र. ११३ ) Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ जैनशिलालेख संग्रह १३ सं० ५५३५ वर्षे पौस वदी ३ श्रीमूलसंधे म० सालकीर्तिस्त. म. श्रीभुवनकीर्तिस्त० भ० श्रीशानभूषणगुरूपदेशात् चांगा मार्या भूसनदे वदासा मा० तानो'""जो वासपूज्य । (विवरण क० १६० ) १४ [ सक] १९०२ व० श्रीक""""ज्ञात बघेरवाल''गोत्र सं० पासधन""सं० जेनराज मातापुत्र प्रणमंति (विवरण क्र. ४१३) १५ सं० १५४३ श्रीमूलसंग म. श्रीभुवनकोर्तिस्तपट्टे श्रीज्ञानभूषणगुरूपदेशात्"दिवसी मा० गुणा सुत""मा० नामलाई । (विवरण क्र. ३८०) १६ सं. १५४३."पदमसी""दन (विवरण क्र. ४३३) १७ संमत १५४५ का ज्येष्ठ"। (विवरण क्र. ३४३ ) १८ संवत १५४८ वर्षे वैसाख सुदी ३ श्रीमूलसंधे मट्टारक श्रीजिन चंद्रदेव साह जीवराज पापडीवाल नित्यं प्रणमंति शहर मुडासा राजा स्योसिंघ । ( विवरण क्र० १.३.१०.२६,४६-४८,८७,९१ १०२,१४६-१५६,२३८-२६४,३६७-६९) १९ संमत १५४८ वरपे वैमाखसुदी ३ श्रीमूलसंधे मट्टारकजी श्रीमानुचंद्रदेव साह जीवराज पापडीवाल नित्यं प्रणमंति सहर मुडासा श्रीराजा सोसिंघ । (विवरण क्र० २१८,२१९) ॐ नमः सं० १९५२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ७ शुक्रे श्रीमूलसंधे म. भुवन कार्तिस्त० म० श्रीज्ञानभूषणगुरूपरंशात् हुं० श्रे० पर्वत मा० दंक सु. राजा मा० शलदे सुन कर्मसी प्रणमंति श्रीमुम तिनाथ प्रणमंति । ( विवरण क्र. १६५) २१ सके १९२४ मूलसवे सेनगणे म. माणिकसेन उपदेशात गजर. पहिलवाल ज्ञाति संघवी नेमा.."। ( विवरण क्र. १३७) २२ सं० १५६१ वर्षे बैसाख सुदि १० बुधौ आमूलसधे म० श्री ज्ञानभूषण त० म० श्रीविजयकीर्तिगुरूपदेशात् प० लाडण स० Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ नागपुर के ल ३३३ क० राजा भा० माणिकी सु० कान्हा मा० रूपी भ्रा० गोईबा मा० मरगदि भ्रा० 'श्रीरस्नत्रय नमंति । ( विवरण क्र० १६८ ) संमत १५६१ वर्ष फागुण सुदी । ( विवरण क्र० ११७ ) सं० १५७८ मू० म० धर्मभूषण । ( विवरण क्र० ३८३ ) संमत १५८२ | ( विवरण क्र० ४८२ ) सं० १५८३ । ( विवरण क्र ० १२१ ) सं० १५८३ ती १३ । ( विवरण क्र० ४५३ ) संमत १५८४ श्री मू. स. भ. विजयकीविं तत्पट्टे भ. शुभचंद्रदेवोपदेशात् ब्रह्म श्रीशांता बेलीबाई- ति प्रणमति । ( विवरण क्र. २०५ ) संमत . ६०० वर्षे फागुण वदी ५ शुक्रे श्रीमूलसंगे भट्टारक श्रीरामकीर्ति प्रतिष्ठितं सेनगणे बघेरवाल ज्ञातिय चवरिया गोत्रे सा. भाऊजी मार्या बोपाई सुत मा. माणिक मार्या पदमाई भ्राता रतन भार्या पसाई पुत्र भाऊजी एते श्रा सुपार्श्वनाथ नित्यं प्रणमंति । ( विवरण क्र. ३०९ ) संवत १६०७ वर्षे बैमाख वदी ३ गुरु श्रीमूळसंघे म. श्रंशुमचंद्रगुरूपदेशात् हूँ सखेस्वरा गोत्रे सा. जीना मा. माबी सु. नाका भा. नाकदे भ्रा. जगा भा. ललितारं भ्रा. गर एते सर्वे निक्ष्यं प्रणमति । ( विवरण क्र. ४.६ ) [ सं . ] १६०८ - उषा- । ( विवरण क्र. ४८४ ) संमत १६०३ फाल्गुण २ दिन- । ( विवरण क्र. १३९ ) संवत १६११ ते रागविदे (१) प्रणमंति । ( विवरण क्र. ४३० ) संमत १६१४ संनगण घरमाई बापाई चांगाता । ( विवरण क्र. २००,३६६ ) सं० १६१५ मा० १३ । ( विवरण क्र. ४६० ) सं० १६१४ | ( विवरण क्र. ४६ . ) 1 Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. ३८ जैनशिलालेख संग्रह सके १४८५ ० स । ( विवरण क्र. २२५) सक १४८७ प्रजापतसंवत्सरे श्रीम. सरस्वती. बलात्कार. म. धर्मचंद्राणाम् उपदेशात ज्ञाति बघेरवाल भुरा गोत्रे सा रतन सं. मार्या पुतली लखमाई-प्रणमंति । (विवरण क्र. ४३४ ) सं. १६२५ भाषाढ शुद्धि५ श्रीमलसंधे ब्रह्म श्रीहंस ब्रह्म श्रीराजपालोपदेशात् हुंबड ज्ञातौ सा. समराज मा. लोकोई स. आसजी मा. बाकाई । ( विवरण क्र. २६८ ) श्रीमलसंघ संमत १६३१ वर्षे फाग सुदी १० सोमे म. श्रीगुणकीर्तिगुरूपदेशात् सं. कर भार्या सहागदेई सं. वीरदास भा, ताकमई श्रीअजितनाथ जिन प्रणमंति । (विवरण क्र. ३०७) संमत १६३६ मरानोजी पु (?) । (विवरण क्र. ३०६) संवत् १६३६ श्रीकाष्ठासंधे भ० विद्याभूषण प्रतिष्ठितं झुंबड सा. जयवंतमार्या ससमादे सु-जीवराजसा धनराजसा प्रणपालसा नित्यं प्रणमंति । ( विवरण क्र. ४०८) शक १५०१ मा. तिथी ८ काष्टासंघे म. श्रीश्रीभूषणसदुपदेशात् प. जयवंत ( विवरण क्र. ४३६) सके १५०३ वृषा नाम संवत्सरे फागुण सुदि ७ श्रीमलमंध ब. म. धर्ममषणोपदेशात् बघेरवालज्ञाति उवलागोत्रे सं. पासुसा मार्या सं० रुपाई तयो पुत्री मापुसा मार्या लिंबाई रामासा भार्या बोपाई एते प्रणमंति । ( विवरण क्र. ४२१) सके १५०६ माघ वदी १ गोत्र चवरिया गुणासा। (विवरण क्र. ३९१) संमत १६४५ वैसाख सुदी ७ सोमवार श्रीकाष्टासंघे लाडबागडगणे पुष्करगच्छ मट्टारकीप्रतापकीर्ति तस्य भाम्नाये बघर ४४ ४६ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ नागपुरके लेख वालज्ञातिये बोरखंडियागोत्रे संगई पुंजासास. पवाई प्रणर्मति । (विवरण ० १५०) संमत १६४६ वर्षे श्रीमलसंग महारक श्री. "वीर तत्पट्टे म. श्री."सेन तस्य शिष्य पंडित श्रीगजा उपदेशात् साह बावनी मार्या दामाई तयो पुत्र गकुरसाह तस्य मार्या पेमाई तयो सुत तुवाजीसाह मार्या लखमाई तेषां नित्यं प्रणमंति'"साव फागुण शुदी १० गरुवासरे श्रीचिंतामणी पाश्र्धनायचैत्यालये प्रतिष्ठितं । शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ जे पूजता ते मवंतु ॥ जयस्तु । (विवरण क्र. ३११) सं. १६४९ फा. शु. १३ म. बलात्कार. म. पनकीर्ति उपदेशात्"" ( विवरण क्र० ४३०) [सं०] १६५२ बैसाख सुद १४ श्रीमलसंधे बलात्कारगणे पद्मकीर्ति विद्याभूषण हेमकीर्ति सदुपदेशात् श्रीश्रीमाल... (विवरण क्र. १६६, २६९) संमत १६५३ बैसाख शुद्ध १४ श्रीमलसंधे बलात्कारगणे मट्टारक हमकीर्ति उपदेशात् श्री श्रीमानहाती महासा नित्यं प्रणमतु (विवरण ऋ० ४७५) शके १५१९ मन्मथनामसंवत्सरे बैसाख सुदि त्रयोदशीदिने घटापितं श्रीमलसंधे सरस्वतिगच्छे बलात्कारगणे कुंदकुंदाचा. र्यान्वये म० श्रीधर्मभूषणोपदेशात् पल्लीवालशातीय स. वायासा तस्य मार्या गंगाई तयो पुत्र सं. लखमसी तस्य भार्या द्वौ गोमाई कालाई तेषा पुत्र द्वौ प्रथमपुत्र सं. मोतासा द्वितीय नेमा प्रणमंति । (विवरण क्र. १२४) श्रीमूलसंधे सेनगणे वृषभसेनगणधरान्वये श्रीसम्मतमकक्ष्मीसेनमधारकउपदेशात् सके १५२१ फागुण सुद पा. रबी संधी सोमसेठी श्रीमंगल । (विवरण क्र. १३०) २६ ५२ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ जैवविमोल संग्रह संवत् ११५८ वर्षे मापात बदी""मवस्वाना । (विवरण क्र. १८३)। शके १५२५ वर्षे शुमकृत् नाम संवत्सरे ज्येशुपक्षे १३ तिकी प्रतिष्ठिता। (विवरण क० २७१) संमत १६६० वर्षे फालगुण शुद्धि १० श्रीकाष्ठासंघे लाडवागडगच्छे म. श्रीप्रतापकीर्ति नंदिसंघे बघेरवालज्ञातिय-सा मारया वीरूना परिनवाई तयो पुत्र सा० नोगु मा. परिहाई श्रीपद्मावति प्रणमंति श्रीकाष्टासंघे नंदितटगच्छे महारक श्री श्री श्रीभूषण प्रतिष्ठितं । (विवरण क्र० ४१४) सक १५२५ वर्षे श्रीमलसंधे सेनगणे श्रीमत्वृषमसेनगणान्वये म० श्रीसोमसेन तत्पट्टे म. श्रीमाणिकसेन तपट्टे म. श्रीगुणमद तस्प? भ. श्रीगुणसेन उपदेशात् बघेरवालज्ञातीय खटवडगोत्रे. सं० श्रीहस्कसा मार्या गोमाई त्यो सुत सं० गणासा मार्या कहताई येते श्रीरत्नत्रयचतुर्विंशति प्रणमंति । (विवरण क्र. १९०) संमत १६६० वर्षे फाग सुद ।। गु० श्री एतत्-वा- मुनाबाई श्रीशीतलनाथबिंबका म०-1 (विवरण क्र. २७८) सक १५२६ माहो सुद १३ मट्टारक हेमकीर्ति उपदेशात् प्रतिष्टितं सितलसिंघधी-ताजी सवाल तुरासु (१) रुपा नित्यं प्रणमंति। ( विवरण क्र. ४३९) संबख १६६३ वर्षे... श्रीमूलसंघे."भ० जगतकीर्ति सदुपदेशात्. स्वरान्वये प्रतिष्ठितं ( विवरण क्र. ५८६) संमत १६६४."महाराजाधिराज"श्रीचन्द्रकीर्ति तर महारक देवेन्द्रकीर्तिजी आम्नाय सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुंदकुदाचा र्यान्वय प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र. २७) संमत १६६९ वसुद १५ रन मूकसंथे कुं० म. यशोकीर्ति ६१ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ gat तप मा ललितकीसि तत्प म०. धर्मकीर्सि उपदेशात्-पहे। (विवरण क्र. २१३) ॐ नमः संमत १६७१ वर्षे वसास सुद ५ मलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्यान्वये म० अशकीर्ति तत्प? म. धर्मकीति तदुपदेशात् पौरपहे सा उदयचंद मार्या-अचिनारा मूले गोविलगोत्रे उदयगोरेंद्र प्रतिष्ठा प्रसिद्धं सोनी दामोदर निर्मापितं संमवानि संसाहित प्रतिष्ठामध्ये प्रतिष्ठितं नंदिश्वरजिनबिंब । (विवरण क्र. २१५) संवत् १६७२ वर्षे फागुण सित २ तिथौ मेडतानगर लोढागोत्रे सं० वारपात मार्या सकतादेवीभ्यां श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनचद्रसूरिमिः । (विवरण ऋ० १५८ ) सके १९३७ । ( विवरण क्र०५४१) संमत १६७६ वर्षे माघवदो ८ श्रीकाष्टासंघे लाडवागढगच्छे महारक श्रीप्रतापकीर्ति आम्नाये बरवालज्ञातौ बोरखंज्यागोत्रे धर्मतीसा मार्या अंबाई तयो पुत्र लखमणसा प्रमुख पंचपुत्र समार्या सपुत्र श्रीचन्द्रप्रभु प्रणमंति । श्रीकाटासंधे नंदितटगच्छे म० श्रीभूषण प्रतिष्टितं बहादरपुरे । (विवरण ऋ० २९८) संमत १६७६ वर्षे माधवदो""काष्टासंगे लाडवागडगच्छे श्रीप्रतापकीर्ति उपदेशात् बघेरवाल ज्ञातिय गोवालगोने सं. बापु भार्या जमुना ( विवरण ऋ० १४३) [सं०] १६८१ पार्श्वनाथ मानिक । ( विवरण क्र. ४३८) संवत १६८१ वरपे चैत्र सुदी ५ रवऊ श्रीमलसंधे महारकलीललितकीर्तिदेवास्तस्पट्टे मंडलाचार्यश्रीरत्न कीर्तिदेवास्तत्पढे आचार्यश्रीचंद्र कीर्तिस्तदुपदेशात् गोलापूर्वान्वये खाग नाम गोत्रे सेटि मानु भार्या चंदनसिरी तरपुत्र सेटि कतुरु भार्या किसवा तस्य पुत्री आदी निस्य प्रगमति (विवरण ० २६५) Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९ ७० ७१ ७२ जैन शिलालेख संग्रह संमत १६८१ वर्षे माघ सुदी १५ गुरौ भ० धर्मकीर्ति उपदेशात् परवारज्ञातो"। (विवरण क्र. २२३) संमत १६८१ बै० सु० १ दिने संजालपुरवास्तव्य सं० चंद्रा श्रीपाश्र्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्टितं श्रीविजयदेवसू [ रिमिः । (विवरण क्र० २०.) संवत १६८१ माघ सुदी 1 दिन"। ( विवरणक्र. १०८) मंवरगोत्र पानासा संमत १६८६ । ( विवरण क्र० १४४) संवत १६८६ श्रीमलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्यान्वये भ० श्राधर्मचंद्र सदाकीय प्रा(चार्य )पासकीर्ति तदुपदेशात् संघवि बरहरसाह गोलसिंधारा रामटेक सांतिनाथ प्रसादेन ज्येष्ठ वद्य ५ शमि तिलक मंगलं शुभं भवतु ॥ छ । (विवरण क्र. २७४) सं० १६९१ मा० रनकीर्ति । ( विवरण क्र० ३८२) संमत १६६२ मिति वैसाख वदी ११ सोमवासरे भ० धर्मचंद्रजी। (विवरण क्र. १२०) शके १५६१ प्रमवनामसंवत्सरे फालगुण सुदी द्वितीया मूलसंघ पुष्करगच्छे सेनगणे महारक श्रीसोमसेन उपदेशात् प्रतिष्ठितं । (विवरण क्र. १११) शके १५६१ फालगुण सुदी २ गुरु श्रीमूलसंघे पुष्करगच्छे सेनगणे"हुंबड। (विवरण ऋ० १३.) शक १५६१ फालगुण'"श्रीमलसंघ सेनगण भ. श्रीसोमसेन तुकसाव गुणासाव बोपासा नित्यं प्रणमंति। (विवरण क्र. २११) शके १५६१ फाग वदी १० शनैश्चरे काष्ठासंघे लाडवागड व-हागच्छे पुष्करगणे लोहाचार्यान्वये श्रीनरेंद्रकीर्ति तस्पट्टे तमो.... ७६ ७८ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके केस उ.सा. पामादि पु. देवासा निः प्रतिष्ठित श्रीकक्ष्मीसेन प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र. २३५) शके १५६१ पार्थीवनामसंवत्सरे श्रीमू० ब० स० म० धर्मचंद्रोपदेशात् बघेरवालज्ञासीय खंडारियागोत्रे श्रावण मा. गंगाई तयोपुत्र माणिकसा मार्या गोपाई प्रतिष्ठितं । (विवरण क्र० ३८९) मंमत १७०३ वर्षे ज्येष्ठ वदी १० शक्रे श्रीकाष्टासंघे लाडवागडगच्छे लोहाचार्यान्वये बराइप्रदेशे कारंजीनगरे प्रतापकीर्तिभाम्नाय बघेरवाल ज्ञातीय कापला गोत्र सा श्रीपासला मार्या पभाई तयो सुत सा वण भार्या मणकाई तयो पुत्र द्वौ प्रथमपूत्र स. श्रीरामा मार्या अंबाई द्वितीय पुत्र सा पतसा एते समस्तै श्रीकाष्टासंघे नंदितटगच्छे म० श्रीरामसेनान्वये तदनुक्रमेण म. श्रीविश्वमेन तत्प? श्रीविद्याभूषण तत्पट्टे म. श्रीश्रीभूषण तपट्टे श्रीचंद्रकीर्ति तत्प४ म० श्रीराजकीर्ति तत्प? भ. श्रीलक्ष्मी सेनजी प्रतिष्ठितं । ( विवरण ऋ० १३५) मूलसंगे बलात्कारगणे म० धर्मभूषणगुरूपदेशात् बघेरवाल... पुत्र “सा ( भिन्न अक्षरमें ) संमत १७०६ वर्षे मी "माह सु. ५ मो""पुजासा (विवरण क्र० ३१०) शके १५७२"। (विवरण क्र. ११८) संमत १७११ म० सकलकीर्ति सा० लाले पुत्रवते प्रणमंति। (विवरण क्र. ३३६) ॐनमः सिद्धेभ्यः साम. संवत १७११ श्रीमहारक। ( विवरण क्र. ४७६) संवत १७१३ वर्षे माघ सुदि ११ गुरौ श्रीमलसंधे ब्रह्म पोशांतिदास तत्पष्टै ब्रह्मश्रीवादिराज गुरूपदेशात् हुबड शातीय बाई Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनमियाचा संग्रह लाबाई इति सि निस्पं प्रणमति । शुमं भूयात् । (विवरण क्र. २७५) शक:५७८-सुखनाम म ० स० म. श्रीधर्मभूषण उपदेशात् तिमासा भार्या वखाई त्यो पुत्र भूतसा त. देवाई। (विवरण क. १८७) शके १५८० माघ सुदी ५ सोमे कारंजानगरे काटासंघे नंदितटगच्छे म० इंद्रभूषण प्रतिष्ठितं बघेरवाल ज्ञाति गोवलगोत्रे "मा० दुलणबाई""प्रणमंति । ( विवरण क्र. १४१) संवत १७१५ वर्षे माघ सुदी ५ काष्टासंघे नंदितटगच्छे विद्यागणे."बघेरवाल ज्ञातीय वोरखंडयागोत्रे स. खामा भार्या पुतलाई तयो पुत्र सं० धनजो मार्या पदाई येन सुपार्श्वनाथ प्रणमंति । ( विवरण क्र० १४२) शके १५८० माघ सुदी ५ सोमवार काष्टासंघे मंदितटगच्छे भट्टास्क श्री इंद्रभूषण प्रतिष्टितं बघेरवालज्ञाती बोरखंडियागोत्र तेऊजीसा मार्या जसाई खयो पुत्र पौत्र नाथुला सा. चिंतामणसा एते अंबिका नित्यं [ प्रणमंति] ( विवरण क्र. ४४०) संमत १७१५ माघ सुदी ५ सोमवार काष्टासंघे नंदितटगच्छे विद्यागणे मट्टारकरामसेनान्वये राजकीर्ति तत्प महारक लक्ष्मीसेन तत्प? म० इंद्रभूषण प्रतिष्ठितं संघवी खांमा मार्या पुतलाई तयो पुत्र सं० धनजी मार्या पदाई अंबिका प्रणमंति काष्ठासंघे लोहाचार्यान्वये प्रतापकीर्ति संघवी खांभा मार्या पुतलाई सं० धनजी । (विवरण क्र. ४४८) संवत १७५५ माघ सुदी ५ सोमे काष्ठासंघे काढबागडगच्छे म० प्रतापकार्ति तदाम्नाये बघरवालज्ञातो काबरी। (विवरण क्र. ५) १२ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ का सौ. का.व.३००० पासोति सोका बुनसेट माग्या भाता।(विवरण क्र. २.१) ४ . १५८१ क. प. प. म. बे. का. शा. बघेरवाक लुगाई का पुता सा मा वा सात (?)"ग गु" (विवरण क्र. ४०६, १०१) सक १५८२ स्यारी नाम संवत्सरे तीथ फागुण सुद दसमी १०॥ श्रीशांतीनाथचैत्यालय श्रीवलाकार गणे सरस्वतीगच्छे भोकंदकुंदाचार्यान् महारक श्रीपत्रकीर्ति उपदेशात् रामटेक नाम हाती सइतवाल "राबाजी जाई । (विवरण ०२५३) सके १५८२ फालगुण शुद्ध • तिलक सेन महारक श्रीजिनसेन बरवाज्ञातौ सवरियागोत्रे सा.."मार्यानित्यं प्रणमंति। (विवरण क० ४४५) ९. संमत 10121 (विवरण क्र. १२३) सके १५८३ प्रभवनामसंवत्सरं ज्येहवी प्रथम ब. ई. म..। ( विवरण क्र. २२९) शके १५८६ वर्षे क्रोधनामसंवत्सरे विधी फागुण शुद ५ भीमससंधे काकास्मले सरस्वतीमच्छे म. धर्मचंद्र वरपहे म. धर्मभूषण महाराज प. नेमाजी मार्या सबाई पुत्र सोपराजी प्रतिष्ठितं । (विवरण क० २०८) १०. धक १५८६" (विवरण क्र. ३४८) १.१ शके १५८९ । (विवरण क्र. ) १०२ शके १५९२ बैसाख"मुझसंघ सरस्वतीगच्छ बक्षात्कारगणे कुंदकंदाचार्यान्वये मष्टारक कुसुवचंद्र तत्प? म. अजितकीर्ति त० म० विशालकीर्ति उपदेशात्' सोनोपंडित रोडे । (विवरण. १८०) १०३ संमत १७३३ (विवरण ० १२२) Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ १०४ १०६ १०७ १०५ शके १५९७ मुलसंघ बलात्कारगण म० धर्मभूषण ॐ हरीसाव पुत्र फकीचंद प्रणमति । ( विवरण क्र० २२८ ) श० १५९७ म्० ० सेनगणे म० जि० तजेगामग्रामे गु० गनसेठ मा० शिबाई पु० कृस्नाजी भा० मेगाई पु० जोगाजी प्रणमति । ( विवरण क्र० ४५७ ) संमत १७३२ वर्षे ज्येष्ठ सुदी २ श्रीमूलसंघे महारक श्री सुरेंद्रकीर्तिस्तदाम्नाये खंडेरवालान्वये गृधवालगोत्रे सा देवसी पुत्र संगहान प्रतिष्ठा कारिता । ( विवरण क्र० ३७७ ) शाके १५९७ मू ॥ ब ॥ म० श्रीधर्मचंद्रोपदेशात् ऊजानीपल्लीवालज्ञातीय माणिकसा तत्पुत्र नारसा सुत शतसा प्रणमति । ( विवरण क्र० १५९ ) १०८ जैन शिलालेख संग्रह 'कीर्ति तत्पट्टे दयाभूषण श्रीमू० ११० 119 ११२ ११३ ११४ सके १५९६ फा० शु ॥ ३ म० स० ब० । ( विवरण क्र० २२१ ) १०९ [ श० ] १५३७ मु० जीनसेन उ० कखसेट माहोरकर अणमंति । ( विवरण क्र० १६२ ) शके १५१६ पिंग्लू श्रीमू० । ( विवरण क्र० ४९० ) सक १६०१ संमत १७३६ | ( विवरण क्र० ३५९ ) सक १६०१ मार्गशिर्ष ( विवरण क्र० २२० ) १६०९ सं० श्रीमू० । ( विवरण क्र० ४९१ ) सके १६०१ फालगुण सुदि ११ श्रीमूलसंधे बलात्कारगणे भट्टारकश्रीपद्मकीर्तिसदुपदेशात् श्री पद्मावती पल्लीवालज्ञातौ अडनाव कुस्तानी पानसी मार्या मगनाई तयोपुत्र बाबुजी प्रणमति । ( विवरण क्र० २७२ ) ११५ सांतिनाथ सके १६०४ श्री....। ( विवरण क्र० ३७५ ) ११६ रा० अरजुनसा सके १६०७ क्रोधनामसंवत्सरे मार्गशिर्ष सुदी ५ श्रीमूलसंवे खंडारिया गोत्रे सः पो० । ( विवरण क्र० १२९ ) Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके लेख ४०.६ $10 सातनाथ सके १६०७४ माघेर । ( विवरण क्र० ४६२ ) ११८ सके १६०७ ( विवरण क्र० ४७४ ) ११६ सके १७०७ संमत १७४२ । ( विवरण क्र० ४५२ ) १२० शके १६०७ प्रभवनामसंवत्सरे फालगुण वदी १० भ० धर्मचंद्र उपदेशात् मु० नगरे ज्ञाते उज्जेनीपल्लीवार गोदसा मार्या सेमाई ब० साह मार्या नागाई प्रणमति । ( विवरण क्र० १८७ ) सके १६०८ फागण वदि १० श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुंदकुंदाचार्यान्वये महारक श्रीविशालकीर्तिस्तत्पट्टे भ० श्रीपद्मकीर्तिस्तत्पट्टे म० श्रीविद्याभूषण स्वकर्मक्षयार्थ । १२१ ( विवरण क्र० २६७ ) संवत १७४४ सके १६०९ फाल्गुण सुद १३ श्रीमत्काष्टसंघे लाडवागढ गच्छे म० प्रतापकोति आम्नाये बघेरवालज्ञातो गोवालगोत्रे संघवी पदाजी मार्या तानाई तयो पुत्र संघवी जमनाजी भार्या हांसुबाई तयो पुत्रा तुर्य स० पुतलाबा मार्या गंगाई म० पुजात्रा मा० देवकु स० शीतलाबा मा० सकाई इ० पदाजी एते सह नित्यं प्रणमंति श्रीकाष्ठासंघे नदितटगच्छे म० इंद्रभूषण म० सुरेंद्रकीर्तिः । ( विवरण क्र० १७२, १७१, ४४६ ) १२३ सके १६०६ फा०सु० १३ काष्ठासंघे लाडवागडगच्छे प्रतापकीय नाय म० सुरेंद्रकीर्ति सं० पदाजों मा० तानाई पु० राजबा मा० सोनाई पु० अनतोबा मा पामाई जी प्रतिष्ठितं ( विवरण क्र० १७५) १२४ सके १६०९ बलात्कार | ( विवरण क्र० ४७८ ) ว १२५ संवत १७४५ ज्येष्ठ सुदी २ सोमवार श्रीकारंजानगरे काटासंघे प्रतापकीर्तिमाम्नाये बघेरवालज्ञातौ बोरखंडियागोत्रे सा० मनासा are me at पुत्रा अब सा अर्जुन भा० रंगाई शितलसा मार्या सायरा लक्ष्मणसा मा० जोवाई येसोबा पुतलोबा निस्वं प्रणमति । ( विवरण ६० ४४९ ) १२२ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. जैननिकास-संबह १२६ मिती देसास सुदी ३ संमत १७१५." (विवस्म ० ६६) १२७ संमत १७५६। (विवरण क्र. ३२६) १२८ शकं १६११ श्री."। (विवरण क्र. ३६.) १२२ सं. १७४६ । (विवरण क्र. ३४४) १३. संमत १७४० सके १६१२ ज्येष्ठ वदी ७ म० श्रीइंद्रभूषण त. भ० सुरेंद्रकीर्ति प्रतिष्ठितं श्रीकाटासंधे काडबागडगच्छे पुष्करगणे कोहाचार्यान्वये म. श्रीनरेंद्रकीर्ति प. म. श्रीप्रतापकीर्ति आम्नाये बघेरवालज्ञाति गोवालगोत्रे सं० बापु पुत्र सं० मोज संघवी पदाजी भार्या तानाई पुत्र सं० बापु सं० जमनाजी सं० राजबा अथ संघवी जमनाजी मार्या इसाई समस्त कुटमपरिवार नित्यं प्रणमंति दर्शनयंच श्रीभबडनगर प्रतिष्ठितं । ( विवरण क. १७६) १३, शके १६१२ ज्येष्ठ वदि . श्रीमलसंधे सरस्वतीगच्छ बळाका रगणे म. श्रीकुंडकुंदाचार्यान्वय म. धर्मभूषण त..म० विशामकीर्ति त• म० धर्मचंद्रोपदेशात् बघेरवाशाति सडासो गोत्रे सा० राघुसा सुत पुसा भंषिका नित्यं प्रणमंति । (विव. रण क्र. ४३२) १३२ संमत १७५० सबधारी नाम संवत्सरे आषाढ कृष्ण तिय भार्य श्री." । ( विवरण क्र० ०३) १३३ शके १६१७ फा० ५.। ( विवरण क० ३७८) सं० १७५२ माव वदी ८ श्रीमूळसंघ म० श्रीहेमकीर्ति गु० त० न न जा सबजी (?) । विवरण क्र. ४११) १३५ संवत १७५३ वर्षे बैसाख सुदि ६ सनी श्रीकाष्टासंघे लाडवा गडगच्छे लोहाचार्यान्वये तदनुक्रमे महारक श्रीप्रतापकीर्ति तदाम्पये बघेरवालज्ञातौ गोवालगोत्रे संघर्वा मोज भार्या पदमाई तयोपुत्र अरजुन मार्या सकाई वासो पुत्र सं० तवना मार्या Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिता पुत्र मं मामा मार्य वेगई संबबी धर्मा भार्या सामाई तयो पुत्र सं० सितल भार्या देनकु मार्या हियई यो पुत्र मोज द्वितीय मार्या इत्यादि सपरिवार नित्यं प्रणमंति । श्राकाष्टासंधे नंदीतटगच्छे भ० रामसेनान्वये तदनुक्रमेण म० इंद्रभूषण तत्पट्टे मासु (रेंद्रकीर्ति)" (विवरण क्र. १६९) संमत १७५३ बरथे मिती वैसाख सुदी ३"पापडीवाल प्रति ठितं। (विवरण क्र. ५८,१३,६४ ) १३. भकं १६१६ वै० सु० ३ श्रीमूलसंध सेनगण । (विवरण क. १६४,२१६) १३८ संवत १७५४ मूलसंधे सेनगणे पुष्करगळे भ० छत्रसेनोपदे शात्"। (विवरण क्र. ८) १३९ [मं०] १७५६ श्रोमु० बा० स० श्रीदेवेंद्रकीर्सि म० प्रतिष्ठित मिती माघ सुद ५। (विवरण क. २०४,४६९) १४. सके १६२२."म. श्री .."चंद्रगुरूपदेशात्" (विवरण . १४. शके १६२४ विभवनामसंबरसरे माम। स. १९२६ म. हेमकीर्ति उपदेशात् प्रतिष्ठितं सी० स०। (विवरण क० ४१२) १४३ भक १६२६ तारणामसंवत्सरे माहो सुद १३ पुके मुनसंध बलात्कारगण कुंदकुंदाचार्यान्वये भ० पनकीति तत्प४ म० विद्याभूषण त. म. हमकीति उपदेशात् उज्जैनापल्लीवालज्ञातीय सिंगवी लखमप्रसादजी मार्या गोमाई तस्य पुत्र नेमासिंगवी सितलसिंगवी"सितमसिंगवीप्रतिक्षितं मोसीनगरे चंद्रनाथ स्थालये गुमासा चिंतामणिसा नित्यं प्रणमतु (विवरण क्र. २१०) १४४ शक १६२६ तारण संवत्सर माह सुद १३ मलसंघ ब. भ. Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह हेमकीर्ति उपदेशात् सितलसंगई प्रतिष्ठितं शुभं भूयात् । ( विवरण क्र० १८६ ) शके १६२८ - विभवनामसंवत्सरे माघ । ( विवरण क्र० ३०५, ३३८, ४०१ ) सक १६३६ जय० [फा० दताजी । ( विवरण क्र० ४३५ ) संमत १७७२ श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुंद ( कुंदाचार्यान्वये ) ) ( विवरण क्र० ५७ ) १४८ संमत १७७८ चैत्र सुदी १ श्रीमू० स० । ( विवरण क्र० २९ ) १४९ सं० १७८३ । ( विवरण क्र० ४६३ ) १५० संमत १७९१ मूलसंघ | ( विवरण क्र० ११९ ) १५१ संमत १७९३ प्र० श्रीमू० स० ब० भ० श्रीधर्मचंद्रना उपदेशात् ज्ञान वा० मोजसा माः नावाई त० पु० फदना (?) नित्यं प्रणमति । ( विवरण क्र० ४०५ ) ४१२ १४५ १४६ १४७ १५२ संवत १८०० वैसाख शु || ३ मौमवासरे श्रीमूल संघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुंदकुंदा चाश्रन्विये नागपुर मे प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० ५१, ५६ ) १५३ संमत १८०० बैसाख सुदी ३ । ( विवरण क्र० ५१ ) १५४ संमत १८१० माघ सुद २ श्रीमूळसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्यान्वये गोपाचलपट्टे महारक श्री चारुचंद्रभूषण तदोपदेशात् नगरे प्रतिष्ठा करापिता कामठी ( विवरण क्र० २०९ ) सदर'। १५५ शके १६७६ । ( विवरण क्र० ३३५ ) १५६ श्रीमूलसंगे सके १६७६१ ( विवरण क्र० ४४३ ) १५७ शके १६७७ क्रोधनामसंवत्सरे मार्गशिर्ष सुदी १० त्रुधे मुलसंघ पुष्करगच्छे सेनगणेनाये भट्टारकजी सोमसेनदेवा तत्पट्टे महारक श्री जिनसेनगुरूपदेशात् कारंजामामवास्तव्य बघेरवालज्ञात Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ नागपुरके लेख सावळागोत्रे वीरासाह मार्या हिराई सयोपुत्र बिनासाह मार्या गोपाई तयो पुत्र द्वौ प्रथम पुत्र तवनाला भार्या अंबाई द्वितीयपुत्र शितलसाह मार्या पदाई नित्यं प्रणमंति। (विवरण क० १७७ ) १५८ शक १६७८ माघ सुद १४ मूलसंघ म. शांतिसेनोपदेशात् प्रतिष्ठितं कारंजाग्रामवास्तव्येन नेवाज्ञाति फु० गोत्र पु० चिंतामणसा नित्यं प्रणमंति । ( विवरण क्र. २१२) १५६ संमत १८१४ शक १६७९ (विवरण क्र. ४४४] १६० शक १६८१ फा० ॥ ६ . स. ब. कु. म. धर्मचंदे.. पाश्वनाथबिंब (विवरण क्र. १६८) १६१ शक १६८६ स० म० ब० म० धर्मचद्र। (विवरण क्र. २०३) १६२ शके १६८७ फा० ५ ०। (विवरण क्र. १३१) १६३ सके १६८७ मन्मथ अजितकीर्तिउपदेशात् स० छ रे मटा क (१) फा० सु० २।( विवरण क्र. ४७०) १६. संवत १८२३ चैत्र वदी । (विवरण क्र. ३१६) १६५ संमत १८२७ सके १६९२ वैसाख सुदी १२'उपदेशात् । (विवरण क्र. २९९) १६६ सके १६९२ मिती वैसाख वद" श्रीमूलसंधे स० ब० म. धर्मचंद्र प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र. ६) १६७ शके १६६५। (विवरण क्र. ४६७) १६८ सके १६६५ मन्मथनामसंवत्सरं (विवरण क्र. २३६ ) १६९ सके १६९० फा ।। ५ अ० बावज । (विवरण क. ४५१) १७. सके १६९७ स० म. स."म. भजितकीर्ति (विवरण क्र. ४६५) १७१ सके १६९. म. फा० सु. ५ म० भ० मना । (विवरण क्र. १७२ सके १६१७ फा० ५ म अयं ति। विवरण • ४७७) Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिक्षा-संग्रह १७३ (सके) १६१७ फा० ५ अ० ज० ० । ( विवरण क्र० ४७३ ) १७४ शके १६९७ मन्मयनाम संवत्सरे अजितकीर्ति उपदेशात् परवार हिरामन फाळ० शु० द्वितीया २ । ( विवरण क्र० ४८० ) सके १६३७ मनाजी सेठ भ० अ० । ( विवरण क्र० ४२३ ) शके १६९७ मि० [फा० २ 'नथु । ( विवरण क्र० ३१५ ) संमत १८३२ मन्मथनामसंवत्सरे मू० ब० स० कु० भ० पद्मकोतिं भ० विद्याभूषण भ० हेमकीर्ति तत्पट्टे अजितकोति फालगुण मासे शुद २ पंचपरमेष्टी । ( विवरण क्र० २२७ ) शक १६६७ नाम संवत्सर म० अजितकीर्ति उपदेशात् फा० सु० २ | ( विवरण क्र० २०६ ) १७९ शके १६९८ मु० ( विवरण क्र० ३२४ ) १८० श्रमूकसंघी सके १७०५ । ( विचरण क्र ४४० ) १८१ 218 १७५ १७६ १७७ १७८ १८२ सक १७०७ चैत्र वद १३ श्रा मूलसंघे सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण । ( विवरण क्र० ७३ ) संमत १८४५ सके १७१० श्रीमत्काष्टासंघे लाडवागड नंदिष्टगच्छे म० सुरेंद्रकीर्तितरपट्टे म० सकलकीर्ति तत्पट्टे म० लक्ष्मी सेनजी "श्रीबघेलवालज्ञाति जुगिया गोत्रे "काष्टासंघ गाड़ी " 1 ( विवरण क्र० १३३ ) १८३ सके १७१० शै कीलनामसवत्सरे मिती श्रावण सुद १२ श्रीमूलसंघ चिमनाजी सरावगे तय पुत्र मुरारजी । विवरण क्र० १२८ ) १८४ ला० १७१० काष्टासंबी वर्षासा जोगी । ( विवरण क्र० १७३ ) १८५ संमत १८४६ कार्तिक सुदी ४ काष्टासंचे नंदितटगच्छे.... श्रीलक्ष्मीसेनजी प्रतिष्ठित । ( विवरण क्र० १३२ ) १८६ संमत १८५२ भट्टारक... उपदेशात् रामळालेन प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० ४६८ ) Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ सके १७१८ संबत १८५३ मावस्"। (विकरण.० ५६२, १८८ ॐ नमः सिडेभ्यः संमत १८५७ शके १७२२ भादवा मुदी सोमवासरे कुंदकदाचार्याम्नाय सरस्वतीगच्छे बसमस्कारगणे म० श्री श्री श्री अजितकीर्ति तस्य उपदेशात्"गोहिक परकार ज्ञाते "मंगलं भूयात् । ( विवरण क. ३. ) १८९ साल १७२३ संवत १८५८ फागवदी २। (विवरण क्र. १२५) १९० संमत १८५९ शके १७२५ का नामपूरमध्ये म० रनकति उपदेशात्""। ( विवरण क्र० ३०, ४४, ४५) १६५ संमत १८५६ दुंदुभिनामसंवत्सरे नागपूरनगरे रघुवरराज्ये म. श्रीरस्नकीतिउपदेशात् श्रीपरवार वंशे"। (विवरण ० ३२) संमत १८५३ शके १७२४ श्री महसंघ बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे म. रत्नकीर्ति उपदेशात् नागपूरनगरे रघुवरराज्ये परवारान्बय सेतगागर गोहिल्कगोत्र भार्या "प्रतिष्ठा कराषितं । ( विवरण क्र. ३३, ४३) १९३ संमत १८६१ वैसाख सुदी ५ सोमवासरे सवाईजयनगरे श्री. सुरेंद्रकीर्ति उपदेशात्'हिरा'प्रतिष्टा कारिता। (विवरण क्र. ३५६) १९५ संघत १८६६ फालगुण कृष्ण ५ शुक्रवारे श्रीमलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुदकुदाचार्यान्वये प्रतिष्टितं । (विवरण ३७०, ३७२) ११५ संमत १८६८ फागुण सुदी • बुध श्रीमूलसंघ बलात्कारगण सरस्वतीगछ'"""प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र. ११०) १९६ शके १७४१ श्रीम"। (विवरण 1 ) १९७ बाके १७४४ श्रीमरुसंध । (विवरण ऋ० ९०, १७१) १९८ संबव वर्षे माघ माले शुब ५ सोम श्रीकाटासंघ म. Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह सुरेंद्रकीर्ति ततशिष्य भ० देवेंद्रकीर्ति राजोमान ज्ञाति बघेरवाल। ( विवरण क्र. १७०) १६६ संमत १८८१ म० स० ब. आचार्य श्रीरामकीर्ति उपदेशात प्रतिष्ठित श्रीउमरावतीनगरे । ( विवरण ऋ० ११२) २०० संवत १८८५ श्रीमूलसंघ सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुदकुदा चार्यान्वय महारक श्रोदेवेंद्रकीर्ति उपदेशात् प्रतिष्टितं । (विवरण क्र. ५२) २०१ संवत १८८५ मार्गशिर्ष वद १२ गुरुदिने श्रीमत्काटासंघे लाड बागडगच्छे म० प्रतापकीर्ति माम्नाय नंदितटगच्छे म० सुरेंद्रकीर्ति तस्य भ० देवेंद्रकीर्ति राज्यमान ज्ञाति बघेरवाल गोत्र बोरखंख्या सा० खेमासा पु० पूनासा यंत्र प्रणाम्यति । (विवरण क्र० ३९२) २०२ संमत १८८७ श्रीमलसंघ सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुदकुदा चार्याम्नाये श्रीमतमट्टारक धर्मचंद्रदेवात् तपट्टे भट्टारक देवेंद्रकीर्ति देवात् तस्पट्ट म. पद्मनंदिदेवात् तस्पट्ट म० देवेंद्रकीर्तिदेवात् उपदेशात् बघेरवाल पाससा मवसा सरसग्राममध्य प्रतिष्ठा करार्पितं । ( विवरण क्र० ४२८) संमत १८८७ शके १७५२ श्रावणमासे शुक्लपक्षे ती० ५ आदितवासरे बालात्कारगणे कारंजापुरपट्टाधिकारी श्रीमंत म. देवेंद्रकीर्तिस्वामीजी मीदं विंब प्रतिष्ठितं । ( विवरण ० ४७१) २०४ शक १७५२ संमत १८८७ वैसाख सुदी ७ गुरुवार स्वस्ति श्री मलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतःगच्छे कुदकुदाचार्यान्वये म. धर्मचंद्रदेवात् तत्पट्टे म. देवेंद्रकीर्तिदेवात् त० म० पभनंदिदेवात् कार्यरंजकपुरपहाधिकारी श्रीमत् देवेंद्रकीर्तिउपदेशात् वैरामभेग्रे सिरसग्रामे माणिकसा वघरवाल तत्पुत्र पामा गोत्र चवरे प्रतिष्ठा करावितं । (विवरण ऋ० १९१) २०३ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके लेख ४१. २०५ संमत १८८७ का ज्येष्ठ सुदी ९ विशतिनामसंवत्सर श्रीम. स. प. कुं० म० पानंदिदेवात् तत्पी म. देवेद्रकीर्ति . "प्रतिष्ठा करान्वितं । (विवरण क्र. २४) २०६ संवत् १८८८ वैसाख कृष्ण ५ रविवासरे श्रीमलसंधे ब० स० श्रीकु• इदं प्रतिमा कारयेत् श्रीसकसपंचकमेटिके स्वकर्मक्षयार्थ प्रतिमा प्रतिष्ठिनिय । ( विवरण क्र. ५५) २०७ संमत १८८८... (विवरण क्र. १०६) २०८ संमत वैसाख शुक्ल ११ गुरुवासर मलसंध ब० स० कुंदकुंदाचार्यान्वय । ( विवरण ऋ० ८५) २०६ संमत १८८९ वृषभायणे. (विवरण क्र. १०३) २१० संमत १८६१ शके १७५६ जयनामसंवत्सरे श्रावणमासे कृष्ण पक्षे पराकी मलसंधे स. १० कारंजानगरे इदं पधादवि श्री मद्देवेंद्रकीर्तिस्वामिना प्रतिष्ठितम् । ( विवरण २० २३७) २११ संमत १८९३ वर्षे माघ सुद १० बुधदिनी मुलसंध कुंदकुंदा चार्याम्नाय ब. स. महारकपनंदिदेवात् तशिष्य म० देवेंद्रकीर्तिदेवात् तत् उपदेशात्"मार्या हिता पुत्र नेमुराम भ्राता दामजी भार्या लाव"प्रतिष्ठितं प्रणमंति । (विवरण का २१२ सं० १८९३ श्रीम. नागपूर श्रीपाशू चं०। (विवरण . ३९६) ११३ श्रीमूलसंघ सक १७५९ । ( विवरण ० ४५४,५५८) २१४ श्रीसंवत १८९४ साल मापाड़ श्रीमहावीर स्वामीजीका मुख । (विवरण क्र. ४६,५०) २.५ संमत १८९७ शके १७६२ भगवतिनामसंवत्सरे बैसाख सुदी १ बुधवासरे इदं श्रीपाश्वनाथस्वामी श्रीमूलसंधे सरस्वतोगच्छे बलात्कारगणे कुंदकुंदाधार्यान्वये महारक श्रीमद्देवेंद्रकीर्तिस्वामी Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेखसंग्रह नागपूरे प्रतिष्ठितं । (विवरण क्र. २१४) २१६ सवत १४९८ मिती श्राषण सुदि ८ सोमदिने नागपूरे श्रीपार्श्व नाथचैत्यालये इदं जलयात्रायंत्रं प्रतिष्ठितं (विकरण क० २७०) २१७ संमत १८९६ फागुण सुदी ७ बुधवासरे श्रीमलसंग, बालात्कार गण सरस्वतीगच्छ कुंदकुंदाम्नाये तेन प्रतिज्ञानुसारेण प्रतिमा प्रतिष्ठितं गोपीसाह । ( विवरण ऋ० ३३२४) 1. २१८ श्रीमलसंघे शके १५.६४.। ( विवरण ऋ० ११३) २१६ श्रीपारसनाथजी सक १७६५ "नाम संवत्सरे । ( विवरण क्र० ७७) २२० संमत १९०० सके १७६५ सोबल ,नाम संवत्सरे चैत्र सुदी ३ सोमवासरे श्रीमलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे नागपूर पार्थनायचैत्यालये अयं मेरू देवेंद्रकीर्तिस्वामीना प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र. १८१) । । । २२१ संवत १६०० के. १७६५ सोमवक नाम संस्वसरे क्षेत्र सुद ३ सोमवार मलसंघे. सरस्वतीमच्छे बलात्कारगणे श्रीनागपूरे श्रीमत् चिंतामणिपार्श्वनाथचैत्यालये श्रीशांतिनाथस्वामी देवेंद्र कीर्तिस्वामीना प्रतिष्टितं । (विवरण क्र. १७८,१७९) २२२ संमत १६०२ माघ शु॥ १३ (विवरण क्र. २८३,३००) २२३ संमत १९०२ माघ सुदी तेरसी म. देवेंद्र कीर्ति हस्तेन सुखा लाल प्यारेलाल 'प्रतिष्ठा करार्पिता । ( विवरण क्र०.३४२) २२४ शके १७६७ । (विवरण क्र ३१५) २२५ संमत १३०२ शके १७६७ तेरसीदिवसे प्रतिष्ठित (विवरण क्र. ३६) २२६ संवतः १६०४ शके १७६१ मिती वैसाल, सुदी १३ बुधवासरे इदं श्रीचन्द्रनाथस्वामी प्रतिष्ठा श्रीमतदेवेंद्रकीर्तिस्वामी सन प्रतिक्षितं । (विवरण:००,६१) . ; Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके लेख 898 २२७ संमत १३०४ जाके १७६६ प्लवंगनामसंवत्सरे मिती बैसाख सुदी १३ बुधवासरे इदं मुनिसुवत स्वामी श्रीमूलसंघ बलास्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्यान्वये भ० श्रीमद देवेंद्रकीर्ति उपदेशात् बघेरत्रालवंश | चवरिया गोत्रे रतनसावजी श्रीनागपूरे प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० २२४ ) २२८ संमत ११०४. मिती वैसाख सुदी १३ । ( विवरण क्र० २८२ ) २२६ संवत् १९०७ शके १७७२ मिती श्रावणसुदी ५ सोमवार नागपूरनगरे श्रीमूह संघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण श्रीपाइवंनाथस्वामिचैत्यालये इदं पद्मावतिदेवि प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० २३४ ) २३० संवत् १९०७ शके १७७२ मिती श्रावण सुदी ५ सोमवासरे नागपूरनगर मुकसंबे सरस्वतीमच्छे बलात्कारगणे श्रीपार्श्वनाथस्वामीचैत्यालये अयं पार्श्वनाथप्रतिमा म० देवेंद्र कीर्तिस्वामिना प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र०१९६ ) २३१ समत १३०७ मिती श्रावण सुद: ५ म्० स० ब० नागपूरे पार्श्वनाथदेवालये प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० १८५, ३८५ ) २३२ अयं मेरू इंगोलीग्रामे शांतीनाथस्वामीचैत्यालये स्थापित संवत् १९०८ शक १७७३ वर्षे विरोधकृत नाम संवत्सरं श्रावणमासं शुक्लपक्षे १० बुधवासरे मुलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगणे कुंदकुंदाचार्यान्वये नागपूरनगरे पार्श्वनाथस्वामीचैत्यालये भयं मेरू जिनान् श्रीदेवेंद्र कीर्तिः स्वामीना प्रतिष्ठाप्य इंगोलीग्रामे स्थापितं ( विवरण क्र० १६५ ) : २३३ संमत १९०८ शक १७७३ श्रावण सुद १० बुधवार मुळसंग सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण कुंदकुंदाचार्याश्वये नागपुरनगरे ओपाश्र्वनाथ चैत्यालये अयं श्रीनेमिजिन देवेंद्रकीर्ति प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० २१७, २३० ) Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० जैनशिलालेख-संग्रह २३. शके १७७५ पार्थिवनामसंवत्सरे ज्येष्ठ सुदी १ तिलक श्री. मलसंघे सेनगणे पुष्करमच्छे गुणमददेवात् तस्प? श्रुतवीरदेवात् तत्पट्ट भ. माणिकसेनदेवात् त. नेमसेन उपदेशात् बधनोरा ज्ञाति माणिकशेटी भार्या सोनाई तस्य पुत्र धायसेटी मार्या गुणाई तस्य पुत्र आयसेटी भार्या रत्नाई लखमणसेटी भार्या धरवाई रंगसेटी मार्या मालाई इदं प्रतिष्ठा केकी द्वितीय साखा म. गुणमद्रदेवा तस्पट्टे म. लक्ष्मीसनश्री प्रतिष्ठितं श्री बाबाजी लखमजी रंगो ( विवरण क्र. २२६) २३५ संमत १६१३ शके १७७८ मिती फाग सुदी २ मुल संघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण कुदकुंदान्वय अनंतनाथस्वामी नागपूर प्रतिष्ठितं (विवरण क्र. १८३) २३६ संमत १९१५ शके १७८० माघ सुदी ३ म० स० ब० कु. प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र. १९८) २३७ मा य धा म न (?) संवत १९१५ । ( विवरण क्र. ४१६ ) २३८ संमत १९१६ मि० फाग सुद ११ श्री म. स. २०० हिरालालसा अकूर । ( विवरण क्र. ३५, ५३) २३६ संमत १११६ मि० फाग सुद ११ श्री भू. स. ब. कु. लुखुसा चोणसाव । (विवरण क्र. ३५,३६,३२०,३२६) २१. संमत १६१६ फागुण सुद ११ समतावृतं (?) कुंदकुंदाम्नाय गणहु गंगाराम । ( विवरण क्र० ३७) २४१ संवत १९१६ मि० फागण सुदी ११ श० श्रीम. स. २० कुं. अयं श्रीअजितनाथस्वामी सुखीसाव परवार तेन प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र. ४१,२८६,२८८-२९०,२६३,३०३,३०८,३३१) २४२ संमत १६१६ मिती माघ सुदी १० श्रीमलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुंदकुंदाचार्यान्वये अयं श्रीमहावीरस्वामीजी भट्टारक श्रीदेवेद्रकीर्ति स्वामीजी उपदेशात् संबुरामजी तस्य Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके लेख पुत्र मागचंदजी अजमेरा खंडेरवाल भावकेन प्रतिष्ठितं गुरुवासरे नागपुर शुक्रवारीपेठ श्रीजिनचैत्यालय । ( विवरण क्र० ६५, ६६,७२,७५,७६ ) २४३ संमत १३१६ मिती माघ सुदी १० गुरुवार । ( विवरण क्र० ६७,६८,८२ ) ४२१ २४४ संमत १९१६ मिती माघ सुदी १० सरुपचंद अजमेरा तेन प्रतिष्ठितं । ( विवरण ऋ० ७१ ) २४५ संमत १३१६ माघ सुदी १० मूलसंघे प्रतिष्टितं । ( विवरण क्र० ७८ ) २४६ संमत १९१६ माघ सुदी १० गुरुवारे श्रीमू० स० ब० कुं० नेमिनाथस्वामीजिन । ( विवरण क्र० ८१, १६९ ) २४७ संमत १६१६ मिती माघ सुदी १० गुरुवासरे श्रीम० स० ब० भट्टारक देवेंद्रकीति स्वामीजी हस्तेन प्रतिष्टितं नागपूरमध्ये | ( विवरण क्र० ८8 ) २४८ संमत १९१६ मि० फा० सुदी ११ शनिवार श्रीम० स० ब० कुंद० अयं श्रभादिनाथ श्रीदेवेंद्रकीर्ति स्वामीना प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० २८७ ) २४९ संमत १९१६ मिती फागुण सुदी ११ शनिवासरे नागपूरनगरे श्रीमहावीरस्वामी चैत्यालये श्रीमूलसंघे स० ब० कुं० श्रयं श्री पार्श्वनाथस्वामीजी श्रीदेवेंद्रकीर्ति स्वामीजी स्वहस्तेन प्रतिष्ठितं । ( विवरण क० २९१ ) २५० संमत १३१६ मिती फागुण सुदी ११ शनिवासरे श्रीमू० स० ब० कुं० नागपूरनगर श्रीजिनचैत्यालये अयं श्रीभादिनाथस्वामी मूलनायक भ० श्रीदेवेंद्र कीर्तिस्वामी उपदेशात् गकुरदास तरपुत्र मनीलाल परवार बोछल सुर कोछल गोत्र ते प्रतिष्टितं । ( विवरण क्र० ३६६ ) Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ जैनशिलालेख-संग्रह २५१ संवत १९१६ मिती माघ । (विवरण ऋ० ८६,४२७) २५२ संमत १९२५ मार्गशिर्ष सुदी ५ गुरु श्रीम० भ० हेमकीर्ति तत्पट्टे भ०""करा" (विवरण क्र० २८०) २५३ संमत १९२५ का माघ सुदी ५ सोमवारे श्रीमलसंघे बलात्कार गणे सरस्वतीगच्छे कुदकुदाचार्यान्वये नागौरपट्टे म० हमकोर्ति उपदेशात् रामटेकमध्ये संघवी मनालालेन प्रतिष्टितं । (विवरण क्र० २८४ ) २५४ संवत १९२५ श्रीमूलसंधे सरस्वतीगच्छे कुदकुदाचार्यान्वये नागौरपट्टे म. श्रीविद्यामषणजी तत्पटे मट्टारक श्रीहमकीर्तिजी तदाम्नाय "परवालान्वये कोछलगोत्रे संघवी भुरसीदास तत्पुत्र मनालालेन प्रतिष्टा करान्वितं । ( विवरण क्र. ) २५५ संवत १९२५ शके १७६० विभवनाम संवत्सरे शुक्लपक्षे तीथी ७ बुधवासरे श्रीमलसंघ सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुदकुदा. चार्याम्नाये इदं प्रतिमा देवदकीर्ति स्वामीन हस्ते नागपूरमध्ये चोखालाल तस्य मार्या वोरावाई ने प्रतिष्ठा करान्वितंr २५६ श्रीजिनो जयति ॥ श्रीपार्श्वनायजिनेंद्रेभ्यो नमः । संमत १९२५ का शके १७६० का विभवनामसंवत्सरे सिमरतो मासातमासोत्तममासे मार्गशिर्षमास शुभ शुक्लपक्षे तिथी ५ पंचमी गुरुवासरे उत्तराषाढ नक्षत्रे गजनामयोगे श्रीनागपुरवास्तव्यमे श्रीमलसंघ सरस्वतीगच्छे. बलात्कारगणे नंद्याम्नाये कुंदकुदाचार्यान्वये श्रीनागौरपट्टे मट्टारकधी हरषकार्तिजी तत्पट्ट म० श्रीविद्याभूषणजी तराडेण (?) इक्ष्वाकुवंशे धुरामारी गोत्रे संघवी कृपारामजी तत्पुत्र कलुषाऊजी भार्या होराबाई तत्पुत्र वृयपाल सावजी छोटेलाल.."तेन सपरिवारेण संघवी कलुषाऊ श्रीप्रतिष्ठा करापितं ॥ श्रीरस्तु ॥ श्रयामस्तु ॥ रक्षिवमस्तु ॥ (विवरण क्र० २८५) Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके लेख ४२५ २५७ श्रीसंमत १९२५ शक १७९० विभवनामसंवत्सरे मिती बैसाख मासे शुक्लपक्षे तीथी • बुधवासरे श्रीमलसंधे बालात्कारगणे श्रीसरस्वतीगच्छे श्रीकुदकुंदाचार्यान्वये श्रीचन्द्रप्रभस्वामीन प्रतिमाया श्रीमद् देवेंद्र कीर्तिस्वामीहस्ते श्रीनागपूरमध्ये प्यारे. सावजी मार्या पुनाबाई परवार तेने प्रतिष्ठा करार्पितं । . . . "(विवरण क्र. २९.) २५८ संमत १९२५ बै० शु॥७ मुकुं० दे० नागपूरमध्ये गुमान साव तस्य पुत्र खुडामणसा तस्य पुत्र भोजराज परवार तेन प्रतिष्ठा करान्वितं । (विवरण ० २९६ ) २५९ संमत १९२५ बैसाख शुद्ध ७ बुध. श्रीम. स.ब. कुं० श्रीपार्श्वनाथस्वामीना देवेन्द्रकीर्तिस्वामीनहस्ते नागपूरमध्ये प्रतिष्ठितं । (विवरण क्र० ३१२-१४) २६० संमत १९२५ बैसाख सुदी ७ प्रतिष्ठितं मनबोध जिन मुंगा बाई । ( विवरण क्र. ३२७) । २६१ संमत १९२५ मिती अषण सुदी ५ प्रतिष्ठा नागपूरमध्ये आदि नाथबी। (विवरण ३० ३३१) २६२ संमत १९२५ शके १७९० आदिनाथस्वामी। (विवरण क्र. ३४.) २६३ संमत १६२५ का मिती माघ सुदी ५ सोमवासरे श्री मूलसंध बस." कुंदकुंदाचार्यान्वये नागौरपष्टे भ. श्रीविद्याभूषणजी तस्पष्टे भ० हेमकीर्तिना सदाम्नायवरती पंडित सवाईरामोपदेशात् परवारान्वये कोछल्लंगोत्रे संघई तुलसीदास तत्पुत्र सं०""लाल कुंजलाल बिहारीलालेन प्रतिष्ठा की । (विवरण क्र. ३५५) २६४ संमत् ११२५ वैसाख सुदी • बुधवारे श्रीमूलसंधे बलात्कारगमे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्याम्नाये भट्टारकश्रीमदेवेंद्रकीर्ति... प्रतिष्ठितं । (विवरण ० ३७१) Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह २६५ संमत १६२५ माघ सुदी ५ सोमे प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० ३७३ - ४ ) २६६ श्रीमूळसंगचे संमत १३२६ प्रभवनाम संवत्सरे श्रावण व ॥ ५ ॥ ( विवरण क्र० ४५१ ) २६७ संमत १९२८ प्रभवनामसंवत्सरे माघ शुक्ल द्वादशीतिथौ बुधवासरे प्रतिष्ठाचार्य श्रीमत् देवेंद्रकीर्तिमहारक प्रतिष्ठा करणार प्यारेसाव मनासाव । ( विवरण क्र० ३३३ ) २६८ श्रीपारसनाथजी संमत १३२८ । ( विवरण क्र० २१२ ) २६ संवत १९२८ प्रजापतिनामसंवत्सरे माघशुक्ले द्वादशीतिथौ बुधवासरे प्रतिष्ठाचार्य श्रीमत् देवेंद्रकीर्ति महारक प्रतिष्ठा करबिणार मनालाल सवाईसंघवी । ( विवरण क्र० ४२ ) २७० संवत १६२८ ( विवरण क्र० ३८ ) २७१ ॐ चंद्रनाथ येन संमत १९३३ । ( विवरण क्र० ७० ) २७२ संमत १६३६ शके १८०४ प्रतिष्ठाचार्य विशालकिर्ती भट्टारक प्रतिष्ठा करविणार सुतीयाबाई परवारीन । ( विवरण क्र० २७९ ) २७३ श्रीपारसनाथजी सं० १९४८ ( विवरण क्र. ३०४ ) २७४ संमत १९५२ वैसाख सुदि १३ सोमवासर प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० ८४ ) २७५ सं० १९५८ व० सु० १२ पदाला भोजासाव । ४२४ ( विवरण क्र० ४०२ ) २७६ संमत १३५८ वैसाख शुद्ध १५ मूलसंघे कुंदकुंदाम्नाये महारक देवेंद्रकीर्ति प्रतिष्टितं । ( विवरण क्र० ३७६ ) २०७ मा० शी० ७ श्री० रा० ब० स्व० बा० सी० प्र० प्र० ना० सं० १९६१ | ( विवरण क्र० ४१८ ) * यह संवत्सर नाम गलत प्रतीत होता है। Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके लेख १२५ २०० संमत १९६१ मिती ज्येष्ठ शु ॥१० श्रीवीरसेन स्वामो उपदेशात् चांगासाव गंगासावजी चवरे वाहानी प्रतिष्ठा करविली । (विवरण ३० १४५) २७९ नागपूर शेतवाल मन्दिर प० रवि० संमत १६६१ मार्गशिर्ष । सक्षम्यां पण्डितवर्य रामचंद्र ब्रह्मचारिणां पंच कोतवाल अनुराया प्रतिष्ठितं इदं प्रतिमा । (विवरण क्र. १०७) २८. संमत १९६६.""कुं०म्नाय मिवनीनग्र प्रतिष्ठितं । (विवरण क्र. ३२५ ) २८॥ बीरसंमत २४३६ मि० मा० शु॥ ५ मु. बा. ग. प्रतिष्टितं । (विवरण क्र. ४३७) २८२ संमत १९६८ ज्येष्ठ सुद । शुक्रवासरे मुलसंघे बलास्कारगणे सरस्वतीगच्छे कारंजापुरे पहाधिकारी म० देवेंद्रकीर्तिस्वामी उपदेशात् शिखरजीकी पादुका खंडेलवालज्ञातिय पाटणीगोत्र हजारीलाल गेंदालाल येन प्रतिष्टा करापितं नागपूरनगरे । (विवरण क्र. १६७, २३३ ) २८३ संमत १९७६ पण्डित रामभाऊना प्रतिष्ठितं कन्हैयालालजी गरीचे यांचे आईचे नन्दिश्वर व्रतोद्यापनार्थ । (विवरण क्र. २२२) २८४ स्वस्ति श्री २४५८ श्रीवीरसंवत्परे १९८८ विक्रम माघमासे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ बुधवासरं श्रीमलसंधे बलात्कारगणे सर. स्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्याम्नाये फणिद्रपुरनिवासी परवारज्ञातिय रेलामूर गोइलगोत्रोत्पन्न परमानंदीप्रजात्मज परवारभूषण फसेचंददिपचंदाभ्यां छपारानगरे प्रतिष्ठितं । (विवरण क्र. ३२०-२३) २८५ श्रीमहावीरनिर्वाणसंमत २४६० विक्रम संमत १९९० शके १८५५ फालगुण शुद्ध १२ सोमवार श्रीमलसंघ सरस्वतीगच्छ Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह बलात्कारगण श्रीकुंदकुंदाचाम्नायांसोल वासरू गोत्रांतील परवारज्ञाति नागपूरनिवासी शेठ कनईकाल नेमिचंदजी यांनी दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र गजपंथ येथील श्री अ० जीवराज गौतमचंद सोलापूर याचे प्रतिष्ठामध्ये श्रीमहावीर तीर्थकराचे विच प्रतिष्टित केले असे ॥ ( विवरण क्र० ६२) २८६ श्रीमद्देवाधिदेव १०० भगवान शांतिनाथ तीर्थकर जिनबिंब प्राणप्रतिष्ठा स्वस्ति श्री १०८ म० विशालकीर्तिस्वामीमहाराज संस्थान तक्त लातूर गादी नागपूर पहाचार्य सदुपदेशात् नागपूरस्थ दि. जैन सैतवाल समाज वारसंवत २४६१ मिती मार्ग शिर्ष कृष्ण १२ श्याम् कृतेति शम् । (विवरण क० १०४-५) २८७ श्रीमद्देवाधिदेव १०८ भगवान आदिनाथ तीर्थकर जिनबिंब प्राण प्रतिष्ठा स्वस्ति श्री १०८ म. विशालकीर्तिस्वामीमहाराज संस्थान तक्त लातूर गादी नागपूर पट्टाचार्य सदुपदेशात् नागपूरस्थ दिगम्बर जैन सैतवाल समाज व श्री. राजाराम दुब्बीसाव काटोळकरेण प्रतिमा आणिता प्रतिष्ठाचार्य श्री. पंडितवर्य रामभाऊ महामहोपाध्याय पंडित श्री. अखिल सैतवाल जैन राजगुरुपीठ संस्थान तक लातूर गादी नागपूर वीरसंवत् २५६१ मिती मार्गशिर्ष कृष्ण १२ श्याम कृतेति शम् । . (विवरण क्र. १०६) २८८ स्वस्ति श्री १०८ श्रीमहारकविशालकीर्ति उपदेशात् सं० २४६१ मार्गशिर्ष कृष्ण १२ इयाम् बुधौ प्रतिष्ठितं । . (विवरण ०.३६६-७, ३९३.४, ४१५-७) [अनिश्चित समयक लेख] २८९ संवत १५४ - संघ र नी गी पुत्रा न र नौ (?) (विवरण क्र. ४१०) Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके लेख २९० सं० १५ "सुद १३ सकला पुत्र मनसुख मार्या महना। (विवरण क्र. १२२) २६१ संवत १५ - ६ वर्षे वैसाख सुदि ३ मंगलदिने महारकजिन चंद्राम्नाये गोलापूर्व संधे इलाम (विवरण ऋ० १६३) २९२ संमत १-६१ वर्षे वैसाख सुदीको'"जीवराज" | . (विवरण क्र० ७१) २६३ सकं १-७९ शुभकृत नाम संवत्सरे कार्तिक शुद्ध प्रतिपदा १ बुधवार सावरगावप्राम श्रीआदिनाथचैत्यालये श्रीमहिचंद्र भट्टारकउपदेशात् तस्य श्रावक तिमाजी पळसापुरे तस्य भार्या बचाई व गंगाई तस्य पुत्र येजि कोनेरवा तस्य यंत्रं । (विवरण क्र० २७६-२७७) २६४ ..७८ वैसाख सुदी ३ पुत्र मोती भार्या "म...। . (विवरण क्र० ३९७ ) [अज्ञात समयके लेख] २९५ संवत "वैसाख मासे शुर ३ मौमवासरे श्रीमलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्याम्नाये तेन प्रतिज्ञानुसारेण प्रतिष्टितं नागपूरमध्ये"। (विवरण क्र. ५४ ) २९६ भीकाजी। (विवरण क्र. ११६) २९७ ""मूलसंघ बलात्कारगण पितल्यागोत्रे रामासा मार्या नेमाई पुत्र रतनसा मार्या पदमाई द्वितीय पुत्र हिरासा मार्या पुंजाई तृतीय पुत्र तवनासा चतुर्थ पुत्र पदाजी''श्रीचंद्रप्रम प्रतिष्टा... संवत'! (विवरण क्र. १३.) २६८ श्रीकाष्टासंघ नंदितटगच्छ भ० श्रीरामसेनान्वये म० श्रीलक्ष्मी सेनजी प्रतिष्ठितं । ( विवरण ऋ० १३६) . २६६ श्रीवासुपूज्य जिनवर । (विवरण क्र. १२) Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह ३०० .."महाराजाधिराज""देवेंद्र कीर्ति'""बलात्कारगण सरस्वतो [गच्छ "। (विवरण क्र. १९३) ३०१ भ० हेमकीर्ति उपदेशात्म क प्रतिष्ठितं । (विवरण क० २०७) ३०२ हेमराज तस्य पुत्र हंसराज मार्या तमावाई प्रतिष्ठा माघ सुदी"। (विवरण क्र० २८१) ३०३ .."सातनाथ (विवरण क्र. ३५३) ३०४ श्री आदिसर । (विवरण क्र० ३५८ ) ३०५ श्रीमू• स० भ० श्रीधर्मचंद्रोपदेशात् रामसेन । (विवरण क्र. ३७९) ३०६ श्रीमू० भ० जि० का प सेठ प्र (?) (विवरण क्र० ३८१ ) ३०७ श्रीमूलसंधे म० श्रीभुवनकीर्ति। ( विवरण क्र. ३९०.४६३) ३०८ श्रीमृलसंग । ( विवरण क्र० ३९, ४०३, ४५६, ४८६ ) ३०९ श्रीम० स० ब० । ( विवरण क्र० ४०० ) ३१० श्रीधर्मचंद्रउपदेशात् कषरसेट । (विवरण क्र. ४०४ ) ३११ लखमनसा रुपा। (विवरण क्र० ४०.) ३१२ ब्र०५० नेमीचंद्रजी। (विवरण ऋ० ४२०) ३१३ सेनगण म. श्रीलक्ष्मीसेन"च्यारित्रमति संवक देवीचे चंद्रा इत्ये"। (विवरण क्र. १६४) ३१४ म० व० स० धर्मचंद्र हेमसेठ नित्यं ता । (विवरण क्र. ४४२) ३१५ मलसंधे भ. सुरेंद्रकोर्ति प्रतिष्टितं । (विवरण क्र० ४५५) ३१६ "म० म० जि० पार वा गट (१) (विवरण क्र. ४६४) ३१७ श्रीआदिनाथ सा० श्रीवंत। ( विवरण क्र० ४६६ ) ३१८ मा संघ तानसेट बमनोमा। (विवरण ऋ० ४७२) ३१९ श्रीमलसंघ ब्रह्म. मल्लिदास साभार्या सखाई। (विवरण ७० ४४४) Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरके लेखा १२९ ३२० श्रीमूलसंघ संकराजी पुजारी ना। (विवरण ऋ० १२५-६ ) ३२१ रुखबसा ठवली । ( विवरण ऋ० १२७) ३२२ बावाजी वडलकार । ( विवरण क्र. ४४) ३२३ मू० भ० जि० गदसेठ स्वहित । (विवरण क्र. ४३५) ३२४ श्रीमूलसंधे म० श्रीमल्लिभूषण सा० लखा भार्या अजी सुता सोनाई । ( विवरण क्र० १६१) Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण [१] अजितनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, केलीबाग, नागपुर । १ अजितनाथ ( सफेद पाषाण १३ फुट ) लेख क्र. १८ २ पार्श्वनाथ ( सफेद पाषाण १ फु० २ इं० ) लेख ऋ० १८ " " , लेख क्र. १८ ४ पार्श्वनाथ (धातु है इ० ) लेख क्र० २५४ ५ चौबीसी (धातु ४ इ० ) लेख क्र. ९२ ६ पाश्वनाम ( धातु ४३ ई० ) लेख क्र. १६६ • धर्मनाथ ( धातु ४ इं.) लेख क्र० १०१ ८ पार्श्वनाथ ( धातु ५ इं० ) लेख क्र. १३८ लेखरहित प्रतिमाएँ - शान्तिनाथ ( धातु ७ ई०), चौबीसी ( काला पाषाण १३ फुट ), पार्श्वनाथ ( धातु ३३ इं० ), चन्द्रप्रम ( काला पाषाण ९ इं०) पाश्वनाथ ( काला पाषाण इ.) पाश्वनाथ ( काला पाषाण 5 इं० ) यक्षिणी ( कृष्ण पाषाण १० ई.)। [२] दिगम्बर जैन मन्दिर, मस्कासाथ, नागपुर है आदिनाथ ( सफेद पाषाण २३ फु० ) लेख क्र० १८ १० पद्मप्रभ (सफेद पाषाण १ फु० ) लेख क्र. १८ ११ आदिनाथ ( सफेद पाषाण १० इं.) लेख क्र. १८ १२ पाश्र्वनाथ ( सफेद पाषाण १ फु.) लेख क्र. १८ १३ अजितनाथ ( सफेद पाषाण १० इ० ) लेख क. १८ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिमूर्तियों का विवरण ,, १४ चन्द्रप्रभ ( सफेद पाषाण ३० इं० ) लेख क्र० १८ १५ आदिनाथ ( सफेद पाषाण १० इं० ) लेख क्र० १८ १६ सुपार्श्वनाथ ( 1 ) लेख कि०) १८ १७ पार्श्वनाथ ( सफेद पाषाण १ फु० : लेख क्र० १६ १८ वासुपूज्य ( सफेद पाषाण ११ इं० ) लेख क्र० १८ १३ पार्श्वनाथ ( काला पाषाण १ फु० २ इं० ) लेख क्र० १८ २० पार्श्वनाथ ( सफेद पाषाण १ कु० ) लेख क्र०) १८ २९ चन्द्रप्रभ ( सफेद पाषाण १० इं० ) लेख क्र० १८ २२ अजितनाथ ( ) लेख क्र० १८ 13 २३ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १ फु० २ इं० ) लेख क्र० १८ २४ आदिनाथ सफेद पा० ७ इं० ) लेख क्र० १८ । २५ नेमिनाथ ( सफेद पा० ८ ई० ) लेख क्र० १८ IIF २६ सुपार्श्वनाथ ( सफेद पा० १० इं० ) लेख क्र० १८ २७ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १ फु० ३ ई० ) लेख क्र० ६० २८ पार्श्वनाथ काला पा० ११ ई० ) लेख क्र० २०५ २६ पार्श्वनाथ ( काला पा० १० इं० ) लेख क्र० १४८ ३० पार्श्वनाथ ( धातु १ फु० ) लेख क्र १६० ३१ पार्श्वनाथ ( धातु १० इं० ) लेख क्र० ३२ पार्श्वनाथ ( धातु ९ इं० ) लेख क्र० १९१ ३३ पद्मप्रभ ( धातु ११ ई० ) लेख क्र० १९२ ३४ चौबीसी ( धातु ७ इं० ) लेख क्र० २३८ ३५ चौबीसी ( धातु ७ इं० ) लेख क्र० २३६ ३६ चौबीसी ( धातु ७ इं० ) लेख क्र० २३९ ३७ पार्श्वनाथ ( धातु ६ ई० ) लेख क्र० २४० ३८ आदिनाथ ( धातु ३ इं० ) लेख क्र० २७० ३९ चन्द्रप्रभ ( सफेद पा० ११ ० ) लेख क्र० २२५. ४३१ Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ जैन शिलालेख संग्रह ४० मुनिसुव्रत ( सफेद पा० १० ई० ) लेख क्र० ७ ४१ अजितनाथ ( धातु ५ ई० ) लेख क्र० २४१ ४२ धर्मनाथ ( धातु ७ इं० ) लेख क्र० २६६ ४३ चौबीसी ( धातु १० इं० ) लेख क्र० १३२ ४४ यक्षिणी ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० ९० ४५ यक्षिणी धातु ७ इं० ) लेख क्र० १९०। लेखरहित प्रतिमाएँ - पार्श्वनाथ ( धातु १ से ४ इं० की दस प्रतिमाएँ ) ३] दिगम्बर जैन मन्दिर, किराणा बाजार, नागपुर ४६ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १ कु० ) लेख क्र० १८ ४७ पार्श्वनाथ ( काला पा० १ फु० ) लेख क्र० १८ ४८ सुपार्श्वनाथ ( सफेद पा० १० इं० ) लेख क्र० १८ ४६ महावीर ( काला पा० ४३ फु० ) लेख क्र० २१४ ५० चन्द्रप्रभ ( सफेद पा० १ फु० ३ ई० ) लेख क्र० २१४ ५१ मुनिसुव्रत ( सफेद पा० १ फुट ) लेख क्र० १५२ ५२ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १ फुट ) लेख क्र० २०० ५३ चौबीसी ( धातु ६ ई० ) लेख क्र० २३८ ५४ चन्द्रप्रम ( सफेद पा० १३ फुट ) लेख क्र० २९५ ५५ पार्श्वनाथ ( धातु १० ई० ) लेख क्र० २०६ ५६ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० २ फु० ५७ चन्द्रप्रभ ( सफेद पा० १ ५८ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ५६ सुपार्श्व ( पीला पा० ० ६० चन्द्रप्रभ ( सफेद पा० १ ६१ पार्श्वनाथ ( पीला पा० १ फु० ६२ महावीर ( धातु १ फु० ३ इं० ) लेख क्र० २८५ २ प्रतिमाएँ ) लेख १५२ फु० ) लेख क्र० १४७ फु० ) लेख क्र० १३६ ० ) लेख क्र० १५३ फु० ) लेख क्र० २२६ ) लेख क्र० २२६ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियों का विवरण १३ चन्द्रप्रभ (काला पा० १ फु० ) लेख क्र. १३६ ६४ नेमिनाथ ( काला पा० १ फु० ) लेख क्र० १३६ लेखरहित प्रतिमाएँ - पाश्वनाथ (सफेद पा० १५ फु०), पार्श्वनाथ ( धातु २ से ३ ० ४ प्रतिमाएँ), चन्द्रप्रम (काला पा० ११ इं. २ प्रतिमाएँ), अज्ञातचिह्न मूर्ति (स्फटिक, १३ ई०), यक्षिणी ( धातु 4 ई.) [४] दिगम्बर जैन मन्दिर, जुनी शुक्रवारी पेठ, नागपुर ६५ महावीर ( धातु ८ ई.) लेख क्र. २१२ ६६ आदिनाथ ( सफेद पा. १ कु. २५० ) लेख क्र. १२६ ६७ सिद (धातु ५३ ई.) लेख क्र. २४३ ६८ नन्दीश्वर (धातु ६३०) लेख क्र.२४३ ६६ पंचमेरु (धातु ११ फु० ) लेख क० २४२ ( दो प्रतिमाएँ) ७० चन्द्रप्रम ( सफेद पा० ६ इं०) लेख ३० २७१ ७१ चौबीसी (धातु ३ इं.) लेख क्र. २४४ ७२ चौबीसी (भानु १ फु.) लेख क्र. २४२ ७३ महावीर ( सफेद ० ६० ) लेख क्र. १३२ ७४ भादिनाथ ( सफेद पा० " ई०) लेख क्र. २१२ ७५ शांतिनाथ (शातु ७३६०) लेख क्र. २४२ ७६ आदिनाथ ( धातु १ फुट २ इं.) लेख क्र. २४२ ७७ पार्श्वनाथ (धातु २ इं.) लेख क० २१९ ७८ चन्द्रप्रम (धातु ई.) लेख क्र० २४५ ७९ चौबीसी ( धातु १ ई०) लेखक. १८५ ८० पाश्र्वनाथ ( धातु . ई.) लेख क्र. १० ८१ नेमिनाथ (धातु ५ ई.) लेख . २४६ ८२ आदिनाथ (काला पा० .इं.) लेखक० २४१ २८ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह ८३ पार्श्वनाथ ( लाल पा० ०ई० ) ( लेख कम है) ८४ पार्श्वनाथ (धातु ३३ ई.) लेख क्र. २७४ ८५ चन्द्रप्रम (धातु ५३ ई० ) लेख क्र० २०८ ८६ वासुपूज्य ( काला पा० . ० ) लेख क्र० २५१ ८. पार्श्वनाथ (सफेद पा. १ फु.) लेख क्र.10 ८८ पार्श्वनाथ (सफेद पा..फु.) लेख क० १३६ चन्द्रप्रम (सफेद पा० . फु० १६.) लेख क्र. २४७ १. यक्षिणी (भातु ६ ई.) लेख ऋ० १९७ लेखरहित प्रतिमाएँ - पार्श्वनाथ (काला पा. १ कु.), आदिनाथ ( काला पा० ६६०), मादिनाथ (काला पा० ३३६० ). सिद (धातु ५३ ई०, दो मूर्तियाँ), यक्षिणी (धातु ४ इं० दो मूर्तियाँ) [ ५ ] दिगम्बर जैन सैतवाल मन्दिर, इतवारी बाजार, नागपुर ९१ पाश्वनाथ ( सफेद पा० १ फु० ६ इं.) लेख क्र. १८ ९२ आदिनाथ (सफेद पा० फु०६इं० ) लेख क्र. १८ ९३ भादिनाथ ( सफेद पा० १ फु०३ ई.) लेख क्र. 15 १४ पार्श्वनाथ (सफेद पा. १० इं.) लेख ऋ० १८ (दो मूर्तियाँ) १५ चन्द्रप्रम ( सफेद पा० "० ) लेख क्र. १८ (दो मूर्तियाँ) ९६ पाश्वनाथ (सफेद पा० १ फु० ) लेख क्र. १८ ९७ पार्श्वनाथ ( काला पा० १०ई०) लेख ऋ० १९ २८ चन्द्रप्रम ( काला पा० ८ ई.) लेख क्र. १८ (दो मूर्तियाँ) ९६ सुपार्श्वनाथ ( सफेद पा. "ई.) लेख क्र. 15 १०. अजितनाथ ( लाल पा० ११ ई.) लेख क्र. १८ १०. मुनिसुव्रत ( सफेद पा० ११ .) लेख ऋ० १४ १०२ सुपार्श्वनाथ ( सफेद पा० १० .) लेख क्र. १८ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण १०३ चन्द्रप्रम ( सफेद पा० १ कु० ) लेख क्र० २०६ १०४ शांतिनाथ ( धातु ११ इं० ) लेख क्र० २८६ १०५ बाहुबली ( धातु १० ई० ) लेख क्र० २८६ १०६ पार्श्वनाथ ( काला पा० ८ इं० ) लेख क्र० २०७ १०७ पार्श्वनाथ ( धातु ११ इं० ) लेख क्र० २७६ १०८ नन्दीश्वर ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० ७१ १०९ आदिनाथ ( धातु ११ इं० ) लेख क्र० २८७ ११० नेमिनाथ ( काला पा० १ फु० ) लेख क्र० १९५ १११ पार्श्वनाथ ( काला पा० १० इं० ) लेख क्र० ७६ ११२ चौबीसी ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० २१८ ११३ शांतिनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० १२ ११४ शांतिनाथ ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० ४ ११५ पार्श्वनाथ ( धातु ४३ ई० ) लेख क्र० ३ ११६ पार्श्वनाथ ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० २९६ ११७ पार्श्वनाथ ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० २३ ११८ पार्श्वनाथ ( धातु ४३ इं० ) लेख क्र० ८३ ११९ पार्श्वनाथ ( ३३ ई० धातु ) लेख क्र० १५० १२० यक्षिणी ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० ७५ १२१ यक्षिणी ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० २६ १२२ यक्षिणी ( धातु ७ इं० ) लेख क्र० १०३ १२३ यक्षिणी ( धातु ८ इं० ) लेख क्र० ३७ १२४ रत्नत्रय यंत्र ( धातु ९ इं० ) लेख क्र० ५१ १२५ सम्यग्दर्शन यंत्र ( धातु में इं० ) लेख क्र० ३२० १२६ दशलक्षण यंत्र ( धातु ८ इं० ) लेख क्र० ३२० १२७ सम्यक चारित्र यंत्र ( धातु ८ इं० लेख क्र० ३२० १२८ षोडशकारण यंत्र ( धातु १२ ई० ) लेख क्र० १८३ ४३४ Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ जैनशिलालेख-संग्रह १२६ अज्ञातवर्णन यंत्र ( धातु ७.) लेख ऋ० ११६ लेखरहित प्रतिमाएँ - चन्द्रप्रम (काला पा० १० दो मूर्तियाँ), चरणपादुका (धातु ३ ई०, दो पादुका ), अजितनाथ (काला पा० ४ इं.), चौबीसी (बातु ५ इं. दो मूतियाँ) पावंनाथ (धातु-छोटी छोटी ८ मूर्तियाँ ) घरणपादुका (धातु ३ इं०, दो पादुका ), [ ६ ] दिगम्बर जैन सेनगण मन्दिर, लाडपुरा इतवारी, नागपुर १३० पार्श्वनाथ ( धातु १. ई.) लेख क्र. ५२ १३१ चन्द्रप्रम (सफेद पा० १०इं.) लेख क्र. २६७ १३२ शीतलनाथ ( सफेद पा० १० इं.) लेख क्र. १८५ १३३ पार्श्वनाथ (सफेद पा०१ फु० ) लेख क्र. १८२ १३४ शांतिनाथ ( सफेद पा० ११ इं०) लेख क्र० ७७ १३५ बाहुबली ( धातु ११ ई०) लेख क्र० ८१ ( दो मूर्तियाँ) १३६ बाहुबली (धातु १० ई.) लेख क्र. २६८ १३७ अस्पष्ट चिह्न मूर्ति (धातु ९ ई.) लेख क्र० २१ १३८ पार्श्वनाथ (भातु ३३ इं०:) लेख क्र. १६० १३६ चौबीसी ( धातु ३ ई.) लेख क्र० ३२ १५० पार्श्वनाथ (धातु २ इं.) लेख क्र. १४१ पार्श्वनाथ ( काला पा० ९ इं० ) लेख क्र. ८८ १४२ सुपार्श्वनाथ ( काला पा० १० ई.) लेख ऋ० ८९ १४३ पार्श्वनाथ ( काला पा. १ फु० ) लेख क्र. ६६ १४४ पाश्वनाथ ( धातु १ ई.) लेख क्र. ७२ १४५ आदिनाथ ( धातु १० इं.) लेख क्र. २७८ १४६ चन्द्रप्रभ ( सफेद पा० १० ई.) लेख क्र. १४ १४७ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ६ ई.) लेख क्र. १८ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण १४८ भरनाथ ( सफेद पा० १० ई.) लेख ०.१८ १४९ पचप्रम (सफेद पा० १० इं.) लेख Cr ( दो मूर्तियाँ) १५० मुनिसुव्रत ( सफेद पा० ११ ई.) लेख क्र. १८ १५१ अजितनाथ (सफेद पा० ११ इं.) लेख क्र. १८ १५२ पार्थनाथ ( सफेद पा...इं.) लेख ऋ० १० १५३ पार्थनाथ ( सफेद प० १, फु० २.ई. ) लेख ऋ० १८ (दो मूर्तियाँ) १५४ भरनाथ ( सफेद पा० ई.० ) लेख ऋ० १८ १५५ चन्द्रप्रभ ( सफेद पा० १ इं०) लेख क्र. १८ १५६ आदिनाथ (४ ई०.धातु ) लेख क्र० १८ १५. चौबीसी (धातु है इं० ) लेख क्र. ९ १५८ धर्मनाथ (धातु ६ ई.) लेख क्र० ६३ १५६ पार्श्वनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख १०८ १६० वासुपूज्य (धातु ५ ६० ) लेख क्र० १३ १६१ आदिनाथ (धातु ५ इं० ) लेख क्र. ३२५ १६२ चिहरहित मूर्ति (धातु ३ इं.) लेख क्र १०६ १६३ पाश्वनाथ (धातु ६ ई.) लेख क्र० २६१ १६४ श्रेयांसनाथ (धातु ३६० ) लेख क्र ३१३ १६५ सुमतिनाथ (धातु ७ ई.) लेख क्र० २० १६६ आदिनाथ (धातु ३ ई०) लेख क्र. २ १६. पंचपरमेष्ठी (धातु ५ ई०) लेख क्र. ६ १६८ रत्नत्रय मूर्ति ( धातु इं० ) लेख क्र० २२ १६६ चौबीसी (धातु ११ ई.) लेख क्र. १३५ . १७. सरस्वती (धातु ५ इं.) लेख ऋ० १९८ १७१ यक्षिणी ( धातु ३ ई.) लेख ० १. १७२ रनत्रय यंत्र (धातु ३ इं.) लेखक. १२२ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ जैनशिकालेल-संग्रह १०३ रखनय यंत्र ( धातु ३ ई०) लेख ऋ० १८४ १७४ दशलक्षण यंत्र ( धातु ३ इं.) लेख क्र. १२२ १७५ रखत्रय यंत्र (धातु ३ इं.) लेख क्र. १२३ १७६ रत्नत्रय यंत्र (धातु ३ ई.) लेख क्र० १३० लेखरहित प्रतिमाएँ - चौबीसी (काला पा० १ फुट ), सिद्ध (धातु ६ इं०, दो मूर्तियाँ ), नंदीश्वर (धातु ५ इं.), पार्श्वनाथ ( काला पा० ३१ फु० चौबीसी के मध्यस्थित ), पद्यावती ( सफेद पा० २ फु०), पद्मावती (धातु ९ ई.), पद्मावती ( धातु ६ ई० ), पद्मावती ( धातु १० ई०), [७] पार्श्वप्रभु दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर, इतवारी, नागपुर १७७ पाश्र्वनाथ ( धातु १३ फु० ) लेख ऋ० १५७ १७८ शांतिनाथ ( धातु १ फु० २ ई.) लेख क्र. २२१ १०९ आदिनाथ ( धातु १ फु० २ इं.) लेख क्र. २२१ १८० नन्दीश्वर (धातु ५ इं०) लेख क्र. ५०२ १८१ पंचमेरु ( धातु ११ इं० ) लेख ऋ० २२० (चार मूर्तियाँ) १८२ वासुपूज्य ( धातु ७ ई.) लेख क्र. २६६ १८३ अनन्तनाथ ( धातु ९ ई.) लेख क्र. २३५ १८. पार्श्वनाथ (धातु ४३ इं.) लेख क्र. ८७ १८५ चौबीसी (धातु ३३ इं० ) लेख क्र. २३१ १८६ चौबीसी (धातु ८ ई.) लेख क्र. १४४ १८७ चौबीसी ( धानु ९ इं० ) लेख क्र. १२० १८० रनत्रय मूर्ति (धातु, इं) लेख क्र. ११ १८९ महावीर ( धातु १० ई.) लेख क्र. २११ १९० चौबीसी ( धातु है इं० ) लेख क्र०५६ १९. क्षेत्रपाल (भानु ६ ई.) लेख क्र. २०४ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण ४३९ १९२ सरस्वती ( धातु ५.) लेख क्र. १३६ (दो मूर्तियों) १९३ पाश्वनाथ ( सफेद पा. १ फु० २ इं०) लेख क्र० ३०. १६४ यक्षिणी (धातु ३०) लेख क्र० १३७ १७५ पंचमेह (धातु २ फुट ९६०) लेख क्र. २३२ १९६ पार्श्वनाथ ( धातु १३ कु०) लेख क्र० २३० ( दो भूतियाँ) १६७ आदिनाथ (धातु १० इं० ) लेख क्र० २८२ १९८ बाहुबली ( धातु इं०) लेख क्र. २३६ ( दो मूर्तियाँ) १९९ आदिनाथ (धातु७३०) लेख क्र० २५६ २०० पार्श्वनाथ (धातु ४ इं० ) लेख क्र० ३४ २०१ पार्श्वनाथ (धातु १३ इ० ) लेख क्र० ७० २०२ पार्श्वनाथ (धातु ३३ ई.) लेख ऋ० १३ २०३ पार्श्वनाथ ( धातु ३ इ० ) लेख क्र० १६. २०४ चौबीसी (धातु ई० ) लेख ऋ० १३६ २०५ चन्द्रप्रम (धातु ५ ६० ) लेख क्र. २८ २०६ पाश्वनाथ (धातु ५ इं० ) लेखक. १७८ २०७ पार्श्वनाथ (धातु.ई.) लेख ऋ० ३०१ २०८ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १० ई.) लेख क्र. ९९ २०६ पंचमेरु (धातु २ फु० ३ ई०) लेख क्र. १५४ (दो मूर्तियाँ) २१० चौबीसी ( धातु १०ई०) लेख क्र. १४३ २११ पार्श्वनाथ (धातु ५ इ० ) लेख क्र. ७८ २१२ पार्श्वनाथ (धातु ४६ ई.) लेख क्र० १५८ २१३ चन्द्रप्रम ( धातु ४६०) लेख क्र०६१ २१४ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १ फु० ३ ई० ) लेख क्र० २१५ २१५ नन्दीश्वर (धातु फु० ) लेख क्र० ६२ २१६ चौबीसी (धातु ३५०) लेख क्र. १३७ २१७ नेमिनाथ (काला पा० १ फु० ३६०) लेख क्र. २३३ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैमशिव-सं १ १ कु० ) ले १० इं० ) लेख क्र० १३ इं०) लेख क्र०११२/ इं० ) लेख क्र० १०४ ० ) लेख क्र० ३ ) लेख क्र० ६६ Re २१८ आदिनाथ ( सफेद पा २१९ प्रम ( सफेद पा २२० चौंसठ ऋद्धि ( धातु २२१ पार्श्वनाथ ( धातु २२२ चौबीसी ( धातु २३ २२३ पार्श्वनाथ ( धातु ५ ई० २२४ मुनिसुत ( काका पा० १ फु० ३ ई० ) लेख क्र० २३० २२५ पार्श्वनाथ ( धातु ५३ ई० ) लेख क्र० ३५ २२६ चौबीसी ( धातु १० इं० ) लेख क्र० २३४ २२७ शांतिनाथ ( धातु ६ इं० ) लेख क्र० १७७ २२८ श्रेयांस ( काला पा० ७.६० ) लेख: क्र० १०५० Ĉ २२३ चिन्ह रहित मूर्ति ( काला पा० १० ६० ) लेख क्र ३८ २३० आदिनाथ ( सफेद पा० १० इ० ) लेकू क्र० २३३ २३१ मुनिसुव्रत ( सफेद पा० ३ ० ३ इ० ) लेख क्र० ५ २३२ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ३ कु० ३ इ० ) लेख क्र० ५ २३३ शिखरजी पादुका ( सफेद पा० १३ फु० ) लेख क्रब २८२ २३४ पद्मावती ( धातु ११ इं० ) लेख क्र०.२२९ २३५ यक्षिणी ( धातु ७ इ० ) लेख क्र० ७९ २३६ यक्षिणी ( धातु ६ ६० ), लेख क्र० ४६८ २३७ पद्मावती ( धातु ११ इं० ) लेख क्र० २१० २३८ आदिनाथ (सफेद पा० १५० २६०) लेख क्र० १८ (दोमूर्तियाँ) २३९ आदिनाथ ( सफेद पा० ९ ई० ) लेन क्र• १८ ( दो मूर्तियाँ ) २४० शीतलनाथ ( सफेद पा० ९ इं० ) लेख क्र० १८ २४१ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १० इं० ) लेख क्र० १८ ( दो मूर्तियाँ ) २४२ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १ फु० ३ इं० ) लेख क्र० १८ ( दो मूर्तियाँ) ४४० १ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तिणुका विवरण २४३ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ११ इं.) लेखक. १८ (दो मूर्तियाँ) २४४ चन्द्रप्रम (सफेद पा. १० ई.) लेख ऋ० १८ (दो मूर्तियाँ) २४५ पचप्रम (सफेदस्या.. इं.) लेखक. १८ २४६ मुनिसुव्रत ( साँवला पा० ५.) लेखक. १% (दो मूर्तियाँ) २४७ चन्द्रप्रम ( साँवला पा. १०) लेखक. १८ २४८ आदिनाथ ( सफेद पा. मु.) लेख क्र.४ (दो मूर्तियाँ) २४६ सुपार्श्वनाथ ( सोद पा० । फु.) खेलक० ३८ २५० सुपाश्वनाथ (सफेद पार ६६० ) लेख क्र. १८ २५१ सुमतिनाथ ( सफेद पा० .ई.) लेख . १८ २५२ भरनाथ ( सफेद पा० फु०) लेख क्र. १८ (दो मूर्तियाँ) २५३ नेमिनाथ ( सफेद डा० ०ई० ) लेख क्र. १८ (दो मूर्तियाँ) २५४ सुपाश्वनाथ ( सफेद पा० ९,६० ) लेख क्र. १८ २५५ अजितनाथ ( सफेद पा. १ कु.) लेख क्र. १८ २५६ श्रेयांसनाथ ( सफेद पा. 'फु० ) लेख क्र. १८ २५७ मुनिसुव्रत (सफेद पा० )हेख १८ (दो मूर्तियाँ) २५८ पाश्वनाथ ( सफेद पा० फु० ४ इं० ) लेखक. १८ २५६ अजितनाथ ( लाल पा. १० ई) लेख: १८ २६० चन्द्रप्रम ( सफेद पा० ७ ई.) लेख ऋ० १८ (दो मूर्तियाँ) २६१ नेमिनाथ ( लाड पा. ११ ई.) लेख क्र. १८ २६२ पार्श्वनाथ ( लाल पा० १०.इं.) लेख क्र. १८ २६३ पार्श्वनाथ (धातु २ इं.) लेख क्र. १८ (दो मूर्तियाँ) २६४ चन्द्रप्रम (सफेद पा० ५ इं० ) लेख क्र० १८ २६५ सम्यकचारित्रयंत्र ( धातु ८ ई.) लेख क्र. ६८ २६६ दशलक्षण यंत्र ( धातु ५ई. ) लेख क्र. ४६ २६७ सम्यकचारित्र यंत्र (धातु इं.) लेखक. १२ २६८ सम्यग्दर्शन यंत्र (धातु ५६०) लेखक० ३६ ।। Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ जैनशिलालेख-संग्रह २६६ सम्यकचारित्रयंत्र (धातु ५ इं० ) लेख क्र. ४९ २७० जलयंत्र ( धातु ८ ई.) ले. क्र. २१६ २७१ सम्यग्दर्शनयंत्र ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० ५४ २७२ सम्यग्दर्शनयंत्र ( धातु ७ ई.) लेख क्र. " २७३ दशलक्षणयंत्र ( धातु ६ इं० ) लेख क्र. १५ २७४ कलिकुण्डयंत्र ( धातु ७ इं० ) लेख क्र०७३ २७५ सिद्धयंत्र ( धातु ६ इं० ) लेख क्र. ८६ २७६ षोडशकारणयंत्र ( धातु १४ ई० ) लेख क्र० २६३ २७७ दशलक्षणयंत्र (धातु ११ इं० ) लेख क्र. २९३ लेखरहिन मर्तियाँ - सप्तऋषि (धातु ५ से ८०), पार्श्वनाथ ( काला पा० । फु० २ ई०), आदिनाथ (पीला वालुकापाषाण २ फु० २ इं० ) [८] दिगम्बर जैन परवार मन्दिर, इतवारी, नागपुर २७८ शीतलनाथ ( धातु ४३ इं० ) लेख क्र. ५७ २७९ नेमिनाथ (धातु ७ इं.) लेख क्र० २७२ २८० पुष्पदन्त (धातु ५ इं० ) लेख क्र. २५२ २८. पाच नाथ (सफेद पा० ११ इ.) लेख क्र. ३०२ २८२ चन्द्रप्रम (पीला पा०६ ई.) लेख क्र. २२८ २८३ पार्श्वनाथ ( काला पा० ६ ई.) लेख क्र. २२२ २८४ चौबीसी (धातु ५ इ.) लेख क्र. २५३ २८५ पार्श्वनाथ (सफेद पा० ५३ फु०) लेख क्र० २५६ २८६ पार्श्वनाथ ( धातु ६३ ई.) लेख क्र. २४१ ( दो मूर्तियाँ) २८७ आदिनाथ (धातु ६ इ) लेख क्र० २४८ २८८ वासुपूज्य (धातु ६३ इ.) लेख क्र. २४१ २८१ महावीर ( धातु ५ ई.) लेख क्र. २४१ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण २९० अजितनाथ ( धातु ६ इं० ) लेख क्र० २४१ २१ पार्श्वनाथ ( धातु १३ कु० ) लेख क्र० २४६ २९२ पार्श्वनाथ ( धातु २ ई० ) लेख क्र० २६८ २६३ चौबीसी ( धातु ६३ ई० ) लेख क्र० २४१ २६४ चन्द्रप्रम ( सफेद पा० ५ फु० ) लेख क्र० २५७ २९५ नेमिनाथ ( सफेद पा० २ ० २ इं० ) लेख० क्र० २५७ २१६ नेमिनाथ ( धातु = इं० ) लेख क्र० २५८ २६७ पार्श्वनाथ ( धातु ८ई इं० ) लेख क्र० २५७ २९८ चन्द्रप्रम ( सफेद पा० १० इं० ) लेख क्र० ६५ २६९ अजितनाथ ( काला पा० ४ इं० ) लेख क्र० १६५ ३०० चिह्नरहितमूर्ति ( काला पा० ५ इं० ) लेख क्र० २२२ ३०१ आदिनाथ ( धातु ६ इं० ) लेख क्र० २५७ ३०२ चिह्नरहित मूर्ति ( सफेद पा० ५० ई० ) लेख क्र० ६ ३०३ चौबीसी ( धातु ४३ ई० ) लेख क्र० २४१ ३०४ पार्श्वनाथ ( धातु २ इं० ) लेख क्र० २७३ ३०५ पार्श्वनाथ ( धातु २ ई० ) लेख क्र० १४५ ३०६ पार्श्वनाथ ( धातु २ इं० ) लेख क्र० ४१ ३०७ अजितनाथ ( सफेद पा० १ फु० ) लेख क्र० ४० ३०८ अनन्तनाथ ( धातु ८ इं० ) लेख क्र० २४१ ३०६ सुपार्श्वनाथ ( काला पा० ११ ६० ) लेख क्र० २६ ३१० चिह्नरहितमूर्ति ( सफेद पा० १ फु० ) लेख क्र० ८२ ३११ मुनिसुव्रत ( काला पा० ११ इं० ) लेख क्र० ४७ ३१२ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ९ इं० ) लेख क्र० २५६ ३१३ मुनिसुव्रत ( सफेद पा० ७ इं० ) लेख क्र० २५६ ३१४ आदिनाथ ( सफेद पा० ११ इं० ) लेख क्र० २५९ ३१५ पार्श्वनाथ ( धातु ३२ इं० ) लेख क्र० १७६ vve Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ जैनशिलाल-संग्रह ३१६ पार्थनाय ( धातु २ इं.) लेखक. १६४ ३१. पार्श्वनाथ ( सफेद पा० २ फु०३ ई.) लेखक. २५७ ३१८ पार्श्वनाथ ( काय पा० २ फु. ४० शेख क. २५७ ३१९ नन्दीश्वर ( धातु ५ इं० ) उर्दू लिपिमें लेख. ।' ३२० आदिनाथ (धातु १३ई) लेख क्र. २८४ ३२. शीतलनाथ ( लाल पा० १फु० ४ इं.) लेख क्र. २८४ ३२२ महावीर ( धातु कु. १०) लेख: ० ८४ ३२३ पुष्पदंत ( धातु १ फु० ९ इं.) शेख क्र. २८४ ३२४ पार्श्वनाथ (धातु २ इं.) सेख क्र. १७६ ३२५ महावीर (धातु ४ ई.) कोख क्र० २८० ३२६ चौबीसी (धातु ३ इ. ) लेख क्र. १२० ३२७ चौबीसो (धातु ५६० ) लेखक. १६. । ३२८ यक्षिणी ( धातु ४६०) लेख क्र० २३९ । ३२१ यक्षिणी (धातु १ इं० लेख क्र. २३९ । ३३० यक्षिणी (धातु ५६०)लेख क. १४० । ३३१ यक्षिणी ( धातु ८ ई.) लेख क्र. २४. (दो मूर्तियाँ ) ३३२ चन्द्रप्रम ( धातु १ फु० २६) लेखक. २१७ ३३३ चौबीसी ( धातु ५ ई) लेख क. २४। ३३४ रत्नत्रयमति ( धातु ५६) लेख क्र०.२४१ ३३५ पार्श्वनाथ ( धातु ३ इ. ) लेख क्र. १५५ ३३६ पार्श्वनाथ (धातु २३ इ.) लोख ऋ० ८४ ३३७ पाश्वनाथ ( धातु ४ इ.) लेख क्र. २४१ ३३८ पार्थ नाथ ( धातु ई.) लेख क्र. १४५ ३३९ आदिनाथ ( धातु " इ.) लेख क्र. २६१ ३४० पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ११.०) लेख क्र. २५७ ३४१ चन्द्रप्रम ( काला पा०८६०) लेख ० २५. Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियों का विवरण ३४२ पार्श्वनाथ लाल पा० १ फु० ) होख क्र० २२३ ( तीन मूर्तियां ) ३४३ नेमिनाथ ( सफेद पा० ११ इ लेख क्र० ३४४ आदिनाथ ( काला पा० ७ इ० ) लेख क्र० २६२ ३४५ पार्श्वनाथ (सफ़ेद पा० १ फु० ) लेख क्र० २५७ ३४६ अरनाथ ( खुला पा० ३ ६०० ) लेख क्र० १३३ ३४७ चन्द्रप्रम धातु ५ ३० ) लेख क्र० २४१ ३४८ आदिनाथ ( धातु ३३ ६० ) लेख क्र० २३९ ३४६ शीतलनाथ ( धातु ६ इं० ) लेख क्र० २४१ ३५० आदिनाथ ( धातु ६ इ० ) लेख क्र० २४१ ३५१ पाश्र्वनाथ ( धातु ५ इ० ) शेख क्र० २४१ ३५२ चौबीसी धातु ४ इं० ) लेख क्र० २४१ ३५३ पार्श्वनाथ ( धातु २३ ६० ) शेख क्र० ३०३ ३५४ पार्श्वनाथ ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० २४१ ३५५ चन्द्रप्रभ ( धातु इं०) लेख क्र० २६३ ६५६ अजितनाथ ( धातु ७ इ० ) लेख क्र० २६३ ३५७ आदिनाथ ( धातु ७३ इं० ) लेख क्र० २४१ ३५८ आदिनाथ ( धातु ४३ ई० ) लेख क्र० ३०४ ३५९ नन्दीश्वर ( धातु ३३ ई० ) लेख क्र० १११ ३६० सुपार्श्वनाथ ( धातु ५ इ० ) शेख क० २४१ ३६१ पार्श्वनाथ ( धातु २३ इ० ) शेख क० १२८ ३३२ महावीर ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० २४१ ३६३ आदिनाथ ( धातु ८ इ० ) लेख क्र० २६७ ३६४ आदिनाथ ( धातु ८ इ० ) लेख क्र० २४१ ३६५ महावीर ( धातु ७३ ६० ) दोल क्र० २४५ ३६६ आदिनाथ ( धातु १ फु० ) लेख क्र० २५० ३६७ पुष्पदन्त ( सफेद पा० १ कु० ) लेख क्र० १८ ७ ४४५ Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ××Ë जैन शिलालेख संग्रह ३६८ अरनाथ ( सफेद पा० ० ६ ० ) लेख क्र० १८ ३६१ चन्द्रनाथ ( सफेद पा० ८ इ० ) लेख क्र०१८ लेखरहित मूर्तियाँ - वासुपूज्य ( काला पा० ५ इं' ० ), पार्श्वनाथ ( सफेद पा० १० २६०), पार्श्वनाथ ( काला पा० १० ई०), शान्तिनाथ ( धातु ४ ई०), १५ मूर्तियाँ लेख तथा चिह्नके बिना छोटी-छोटी हैं। [९] दिगम्बर जैन मन्दिर, सदर बाजार, नागपुर ३७० पार्श्वनाथ ( काला पा० १२ फु० ) लेख क्र० १६४ ३७१ चन्द्रप्रभ ( सफेद पा० १ फु० ) लेख क्र० २६४ ३७२ पार्श्वनाथ ( काला पा० १ फु० ) लेख क्र० १९४ ३७३ शांतिनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० २६५ ३७४ यक्षिणी ( धातु ५ इं० ) लेख क्र० २६५ ३७५ पार्श्वनाथ ( धातु २ इ० ) लेख क्र० ११५ २०६ चौबीसी ( धातु ११ इ० ) लेख क्र० २७६ ३७७ दशलक्षण यंत्र ( धातु ६ इं० ) लेख क्र० १०७ लेखरहित पद्मप्रभ ( सफेद पा० १ फु० ) - [१०] गृहचैत्यालय - श्री० इतवारी, नागपुर ३७८ पार्श्वनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० १३३ ३७९ पार्श्वनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० ३०५ ३८० रत्नत्रय ( धातु २३ इ० ) लेख क्र० १५ ३८१ पार्श्वनाथ ( धातु २ इ० ) लेख क्र० ३०६ ३८२ पार्श्वनाथ ( धातु २ ६० ) लेख क्र० ७४ ३८३ पार्श्वनाथ ( धातु ३ ई०) शेख क्र० २४ सुन्दरसा हिरासा जोहरापुरकर, Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण ३८४ पार्श्वनाथ ( धातु २६.) मेख ऋ० १२९ लेखरहित - छोटी-छोटी धातुकी १० प्रतिमाएँ [११] गृहचैत्यालय-श्री अंबादास गुलाबसा गहाणकरी, इतवारी ३८५ चौबीसी (धातु ४ ई.) शेख क० २३॥ ३८६ आदिनाथ (धातु ३ ६० ) लेख क्र. २८८ ३८७ पार्श्वनाथ (धातु ३ ६ ० ) लेख क्र. २८८ ३८८ पार्श्वनाथ (धातु २ ० ) लेख क० १०० [१२] गृहचैत्यालय-श्री० माणिकसा चिन्तामणसा दर्यापुरकर, इतवारी ३८६ चौबीसी ( धातु ५ इ० ) लेख ऋ० ८० ३९. पार्श्वनाथ ( धातु इ. ) लेख ऋ० ३०७ ३११ यक्षिणी ( धातु ४ इ.) लेख क्र० ४५ ३९२ नवग्रह यंत्र ( धातु १ ई.) शेख क्र० २०१ । [१३] गृहचैत्यालय-श्री० रतनसा गणपतसा देवलसी, इतवारी ३९३ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ४ ० ) सेख क्र. २८८ ३९४ भादिनाथ ( काला पा० ॥ ई०) शेख क० २८८ ३९५ चन्द्रप्रम ( काला पा० ४ ० ) लेख क्र. २२४ ३९६ चौबीसी (पातु ४ इ. ) लेख क्र० २१२ ३७७ पार्श्वनाथ ( धातु २६० ) लेखक० २१४ ३९८ पार्श्वनाथ ( धातु २ ई.) लेख क्र. ३०८ लेखरहित-पार्श्वनाथ ( धातु २६ ई.), आदिनाथ (धातु Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ __ जैनशिलालेख-संग्रह [१४] गृहचैत्यालय-श्री० कन्हयालाल सुन्दरसा गरिबे, इतवारी ३६९ पाश्वनाथ ( धातु ४ इ० ) लेख क्र० ३४ यक्षिणी (धातु ६६० )-लेखरहित [१५] गृहचैत्यालय-श्री०सवाईसंगई मोतीलाल गुलाबसा, इतवारी ४०० पार्श्वनाथ (धातु २ ई.) लेख क्र. ३०९ ४०१ यक्षिणी ( धातु ५ .) लेख क्र. १४५ होखरहित-पार्श्वनाथ (धातु ई०), चन्द्रप्रम (स्फटिक, ३६०) [१६] गृहचैत्यालय-श्री हिरासा पदासा खोरणे, इतवारी ४०२ आदिनाथ (धातु ४ इ० )ोख क्र० २७५ ४०३ पाश्र्वनाथ ( धातु ३ ई.) लेख ०.०४ ४०४ पाश्र्वनाथ ( धातु २ इं.) लेख क्र० ३१० १०५ यक्षिणी (धातु ६ इं० ) लोख क्र० १५१ [१७] गृहचैत्यालय-श्री० दादा गुलाबसा मिश्रीकोटकर, इतवारी ४०६ चौबीसी ( धातु.३ इं० ) लेख ऋ० ९४ [१८] गृहचैत्यालय-श्री० हिरासा खेमासा जोहरापुरकर, इतवारी ४०७ पार्श्वनाथ ( धातु २ ई० ) लेख क्र० ३" [१९] गृहचैत्यालय-श्री जयकुमार प्रभुसा किल्लेदार, इतवारी ४०८ पाश्वनाथ ( धानु ४ इ० ) लेख क्र० ४२ [२०] गृहचैत्यालय-श्री तिलोकचंद येसूसा खेडकर, इतवारी ४०९ चौवीसी ( धातु ३ इं० ) लेख क्र. ९४ ४१० पार्श्वनाथ ( धातु २३ ई.) लेख क्र. २८१ ४११ आदिनाथ (धातु २ ई.) लेख क्र. १३४ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियांका विवरण १२ चरणपादुका ( भातु २ ई.) लेल . ११ केसरहित - शान्तिनाथ (धातु १ ई.), पाश्र्वनाण (धातु २६.) [२१] गृहचैत्यालय-श्री विष्णुकुमार हिरासा जोगी, इतवारी ४१३ यक्षिणी ( भातु ई.) लेख क्र.१४ १५ यक्षिणी (धात ५३ई.) लेखक. ५५ लेखरहित - (चौबीसी धातु ३६०), महावीर (धातु २९६०) [२२] गृहचैत्यालय-श्री नागोराव गुजाबा श्रावणे, इतवारी ४१५ सिद (धात ई.) लेख क्र. २८८ ४६ मादिनाथ (चांदी ३६० ) लेख ० २८८ (दो मूर्तियों) ११. आदिनाथ ( धातु ३६० ) लेख १० २८८ (दो मूर्तियों) ४१८ पार्श्वनाथ (सोना २६.) खेत क. २.. ४.९ चौबीसी ( धातु ५ ई.) लेख क्र. २३० १२० चरणपादुका ( चाँदी १६.) लेख कार लेखर हत - पार्श्वनाथ (धातु ३६०) (दो मूर्तियाँ), वाहुबली ( धातु ३९०), सरस्वती (धातु २६०) [२३] गृहचैत्यालय-श्री गुलाबसा व्यंकुसा मिश्रीकोटकर, इतवारी ४२. चन्द्रप्रम (धातु ३३१०) लेख ऋ० १४ ४२२ पाश्र्वनाथ (धातु ५६.) लेख क्र. २९. ४११ यक्षिणी ( धातु ३६ ई.) लेख ऋ० १०५ लेखरहित-पार्श्वनाथ (लास पा० ३६०) [२४] गृहचैत्यालय-श्री हिरासा जिनदास चवड़े, इतवारी ४२४ सिद्ध ( भातु ई.) लेख ० २८ १२१ पार्श्वनाथ (धातु ई.) केखक. Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० जनशिकाल-संग्रह [२५] गृहचैत्यालय-श्री०नेमासा पासुसा जोहरापुरकर, इतवारी ४२६ पंचपरमेष्ठी (धातु ५ ई.) लेख क० ३० ४२. पार्वनाथ (धातु २३ ई.) लेख क्र. २१॥ ४२८ कलिकुण्ड यन्त्र (धातुई.) लेख क्र. २०२ ४२९ षोडशकारण यन्त्र (धातु० .) लेख क० २०१ [२६] गृहचैत्यालय-श्री०माणिकचंद बालाजो आगरकर, इतवारी ४३० पार्श्वनाथ ( धातु ३ इं० ) लेख क्र. ४८ ४३१ पार्श्वनाथ ( धातु २६ इ.) लेख क्र.१६२ ५३२ यक्षिणी ( धातु . ई.) लेख व.० १३१ [२७] गृहचैत्यालय-श्री सुंदरसा गंगासा खेडकर, इतवारी ४३३ पार्श्वनाथ ( धातु . ) लेख ऋ० १६ ४३४ यक्षिणी ( धातु ७ ई.) लेख क्र. ३८ लेखरहित-पार्श्वनाथ (धातु २ ई.) चौबीसो (धातु ५ ई.) [२८] गृहचैत्यालय-श्री०लक्ष्मणराव सेवाराम पिंजरकार, इतवारी ४३५ भादिनाथ ( धातु ६ ई.) लेख क० ४६ ४३६ पाश्वनाथ (धातु ३३ इंच) लेख क्र. ४३ लेखरहित-यक्षिणी ( धातु ६ ई०) [२९] गृहचैत्यालय-श्री०पुरणलाल बापुसा खेडकर, इतवारी ४३७ चौवीसी ( धातु ३१ ६० ) लेख क्र. २८१ ४३८ पार्श्वनाथ ( धातु ३ इं० ) लेख क्र० ६. [३०] गृहचैत्यालय-श्री०महादेवराव तानबा पिंजरकर, इतवारी ४३५ चौबीसी ( धातु ४६०) लेख क० ५८ B५० पाश्चंनाथ (भाव ३हूं ) कख 0 150 Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण ४४१ पार्श्वनाथ (धातु २३ इं०) लेख क्र. ६४ ४४२ पार्श्वनाथ ( धातु ३ ० ) लेख क्र. ३१४ ४४३ यक्षिणी ( धातु ६ ई.) लेख क्र० १५६ [३१] गृहचैत्यालय-श्री०वर्धासा सकुसा महाजन, इतवारो ४४४ चौबीसी ( धातु ३३ इं० ) लेख क्र. १५६ ४४५ पाश्र्वनाथ (धातु ३ ई.) लेख ऋ० १६ ४४६ षोडशकारण यंत्र ( धातु ३ ई.) लेख क्र० १२२ ४४७ यक्षिणी (धातु ५ ई.) लेख क्र. १० ४५. यक्षिणी (धातु ५ ई.) लेख क्र. ११ ४४६ यक्षिणी ( धातु ५ ई० ) लेख क्र. १२५ ४५० यक्षिणी ( धातु ५ इं० ) लेख क्र. ४६ लेखरहित-पार्श्वनाथ ( धातु ५ इ० ) [३२] गृहचैत्यालय-श्री नत्थुसा पैकाजी चवरे, इतवारी ४५१ सुपार्श्वनाथ ( सफेद पा० ५ ई० ) लेख क्र. २६६ ४५२ चन्द्रप्रभ (धातु २ इं० ) लेख क्र. १६ ४५३ पाश्र्वनाथ (धातु २३ ई.) लेख ऋ० २७ ४५४ पार्श्वनाथ ( धातु २३ ई.) लेख क्र० २१३ ( दो मूर्तियाँ) ४५५ पार्श्वनाथ ( धातु २ इ० ) लेख ऋ० ३ १५ ४५६ पार्श्वनाथ ( धातु ३ .) लेख क्र. ३०८ ( दो मूर्तिण) ५५. यक्षिणी ( धातु ५ ई० ) लेख क्र. १०६ लेखरहित - पार्श्वनाथ (धातु २ इं०) [३३] गृहचैत्यालय-श्री रुख बसा पिंजरकर, इतवारी ४५८ पाश्वनाथ ( धातु २१ ई.) लेख क्र० २१३ [३४] गृहचैत्यालय-श्री लक्ष्मणराव देवमनसा बोबडे, इतवारी ४५५ पार्श्वनाथ { धातु ३६०) लेख क्र. १६६ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शिलालेख संग्रह ४५० पार्श्वनाथ ( धातु २३ इं० ) लेख क्र० ३५ ४६१ पार्श्वनाथ ( धातु २३ ई० ) लेख क्र० ३६ ४६२ चौबीसी ( धातु ३ इं० ) लेख क्र० ११७ ४६३ चिह्नरहित मूर्ति ( धातु २ ई० ) लेख क्र० १४३ ४६४ पार्श्वनाथ ( काला पा० ३ ई० ) लेख क्र० ३१६ १५२ [३५] गृहचैत्यालय- श्री बापुजी विश्रामजी गिल्लरकर, मस्कासाथ ४६५ आदिनाथ ( धातु ३ इं० ) लेख क्र० १७० ४६६ आदिनाथ ( धातु २ ई० ) लेख क्र० ३१७ ४३० पार्श्वनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० १६७ ४६८ यक्षिणी ( धातु ७ इं० ) लेख क्र० १८६ लेखरहित - पार्श्वनाथ ( धातु १३ इ० ) [३६] गृहचैत्यालय - श्री गोविंदराव शिवराम नाकाडे, इतवारी ४६९ चौवीसी ( धातु ५ ६० ) लेख क्र० १३९ ४०० चिह्नरहित मूर्ति ( धातु ३ इं० ) लेख क्र० १६३ ४७१ पार्श्वनाथ ( धातु ६ इं० ) लेख क्र० २०३ ४०२ पार्श्वनाथ ( धातु २ ६० ) लेख क्र० ३१८ ४७३ यक्षिणी ( धातु ३ ३ ० ) लेख क्र० १७१ ४७४ यक्षिणी ( धातु ४ इ० ) लेख क्र० ११० ४७५ दशलक्षणयंत्र ( धातु ४३ इ० ) लेख क्र० ५० [३७] गृहचैत्यालय - श्रीमती तानाबाई बापुजी गांधी, इतवारी ४०६ पार्श्वनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० ८५ ४०७ पार्श्वनाथ ( धातु ३ ई०) लेख क्र० १७२ ४७८ पार्श्वनाथ ( धातु २ इं० ) लेख क्र० १२४ ४०३ चन्द्रप्रभ ( धातु १३ इं० ) लेख क्र० १७३ केखरहित - पार्श्वनाथ ( धातु ३ इ० ) यक्षिणी (धातु ६ इं० ) Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरों व मूर्तियोका विवरण [३८] गृहचैत्यालय-श्री राजाबापू लच्छाबापू ठवली, इतवारी ४८० चौबीसी ( धातु ३ ई.) लेख ऋ० १७४ ४८) यक्षिणी (धातु ३ ई.) लेखक. १९६%, ४८२ यक्षिणी ( भातु ई.) लेख क्र० २५ [३९] गृहचेत्यालय-श्री जयकृष्णपंत सावलकर, इतवारी ५८३ पाश्वनाथ (धातु ३ ई.) लेख क्र. ५३ v४५ यक्षिणी (धातु ७ ई० ) लेख क्र० ॥ [४०] गृहचैत्यालय-श्री कृष्णाजी भागवतकर, इतवारी ४४५ सिद्ध (धातु ३ ई.) लेख क० २८० ४८६ पार्श्वनाथ (धातु २ ई.) लेख ३० ३०० लेखरहित - यक्षिणी ( धातु ३ ई.) [४१] गृहचैत्यालय-श्री राजाराम डुब्बीसाव काटोलकर, इतवारी ४८७ चौबीसी ( धातु ३ ई.) लेख क्र० २४३ ४८८ पार्श्वनाथ ( धातु २० ) लेख क्र० ३१९ लेखरहित - चन्द्रप्रम ( सफेद पा० ४ इ.) [४२] गृहचैत्यालय-श्री हिरासा नत्थुसा मुठमारे, इतवारी ४८९ पाश्वनाथ (धातु ई.) लेख क्र. ५६ ४९० मादिनाथ (धातु २ ई.) लेख क० ३३ ११ चौबीसी ( धातु ३ इ.) लेख ऋ० १३ ११२ पार्श्वनाथ (धातु २६०) लेखक. १८७ ४५३ पावन य (धातु २०) लेख क्र. ३०७ लेखरहित - यक्षिणी ( धातु ३६०) [४३] गृहचैत्यालय-श्री रुखबसा विनायकसा, इतवारो १४ पावनाय ( धातु ५ ई.) लेख क्र० ३२२ Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह [४४] गृहचैत्यालय-श्री पांडुरंग बापूजी उदापूरकर, इतवारी ४९५ पार्श्वनाथ ( धातु २३ . ) लेख क्र० ३२३ [४५] गृहचैत्यालय-श्री गणपतराव पलसापुरे; इतवारी ४६६ पार्श्वनाथ (धातु २ इ० ) लेख ऋ० १८० [४६] गृहचैत्यालय-श्री सुरेन्द्र गंगासा जोहरापुरकर, इतवारी ४९७ चन्द्रप्रम ( धातु २ ई.) लेख क्र. ११० लेखरहित - पार्श्वनाथ ( धातु २ इ.) Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची Beefखत अंक पृष्ठों के हैं। अकबर ३२८ अकलंक ५८, ६०, १७५, २००, २१४, २१६, ३३५, ३३८, ३३९, ३७७, ३७९ अकालवर्ष ३१, ४४, ५३ अकोटा ३८५ अक्कम्म ३१४ अक्कलकोट ११३ अक्सालकामोज १६६ अक्कादेवी ८४,८५ अक्कूर ३७४ अगरवाल ३९५, ४०२ अगस्तियप्प ३४७ afra ४ अगोमोगे ४० अग्गलदेव ९१, ९३, १०२ अगालसेट्टि ३७४ अग्गोति २७ अच्युतदेव ३१७ अजण ३५५ अजयमेरु १९१ ३० अजितकीर्ति ३६०, ४०७, ४१३ ४१५ अजितचंद्र २२१, २२३ अजितसेन ९२,९३, १७५, २१४, २१६, २२७, ३६१ अज्ज ३०४-५ अदि २१, २२, ४२ अज्जरय्य ५६ अणहिल्लपुर २२१-२ अण्णन २५५ अण्णमध्य १६४ अणिगेरे २५ ८५, १०४, १०७, १०९, १११, २५९ अत्तिमम्बे १४९ अत्तियन्वे ७३ बघती २३२ अदरदि २६६ अनत्तवन २२ अनमकोड १४१, १४३, १४५ अनुपमकवि ६१-२ अनंत कसे ट्टिति २९७ Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनक्षिकाल-संग्रह अनंतकीति २५०, २९६ अम्मरस ३८ अनंतवीर्य १७५, १७७, ३५५-६, अम्मराज ६४, ६५, ६८,६९ अम्मिनमावि २२९ अपराजित ३५-६ अव्यवल्लि १३४ अप्पण २३८-९, २४ अय्यप्प २६ अप्पाण्डार २७९, ३५७, ३७६ अय्यवोले १६४ अबहनगर ३९५, ४१. अवतोक्कल २६३ अवेयमाचर २९२ अवसामि ७१ अम्बक्कदेवी ३२७ बरताल १४८ बमयचंद्र ९६, ३५९, ३६२ अरस्तुलान् देवन् ८३ अभयनंदि १०५, ११०.१, २५८, अरमंडमेगलु ४० २७१ अरयन् उडेयान् ९९ अभिनंदन २२ अरसप्पोडेय ३४०, ३५६ अमरकोति २७८, २८८, ३११ अरसरबसदि ११२ .. अमरमुदलगुरु ४२ अरसय्य १२०-१ अमरसिंह ३४० अरसीबीडि ८३, १२१, १७३, अमरापुरम् २६०, ३८० १८३ अमिदसागर ३९१ मरिकुठार ३१४ अमृतपाल १६० अरिकेसरी १३९ अमृतब्बे ५५.६ मरिन्दमंगलम् ५६ अमृतैय २६० परिमंडल २२. अमोघवर्ष ३३.४, ३६-७ अरिवन् कोथिल् ३९ बम्ब ३०४-५ अरिविगोज ६२ अरिष्टनेमि १६, ५२ अम्बावती ३४३ अगर देवर ९९ मम्बाराय ३०३.५ अमोलिदेव १६० Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहमोलिदेवपुरम् १६७, १७३ अरुन्दै आण्डाल २८९ अरुवाहि १ अरुदि ११२, २५८ नामसूची आकियमगिट्टि ३०८ आगुप्ताविक १५-१६ अगलान्वय १२८, २९४, २१६, आवगड १८६ २३३, २६७, २६९ वाचण १८६ आचन चामुण्डर ६९ बाचलदेवी १७१ अरेयब्बे ८८, ८९ अयंगाविदि २२ राज १८९ अर्हदि ७३, १३४, २५२-३,२७१ अलगरमले ४२ अलनावर ११४ अलवर ३८७-८ आकलपे २५९ आकाशिका ९६ २७१ अम्बरस १२२ असुण्डि ४४ अहिच्छत्र १८९ अंक १५३ अंकनाथपुर ७०-१, १३४ अंकुल १३८, १४० अंकेड ८९ आच्चन् २२ आट्कोण्डान् १६७ आणदेव २२८ आण्डारमडम् ५६ मदगे १३८ अलियमरम ३८ आदवनी ३१२, ३२६ raftपशेखर ३३ आदित्यवर्मा ३७५ अनिमहेन्द्र १८, २० आदिनाथ १२०-१ अविनीत १२, १७, २० आदिराज ३०३ अष्टोपवासी २२, ७७, ९३, २५८ आदिसेट्टि २९७, ३१६ आदिसेन ३५२ आनंदमंगलम् २५१ आनेसेज ब्रबसदि ११३ आपिनहल्लि ३४५ आघू ३८५ आमरण ३८६ आम्बट १९१, १९६ आयतबर्मा ५६, ७७ १५० Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ :: आयुश्चगावण्ड ७६ आयुचपय्य ११२ आश्चिमय्य ९८ आम्बोज ८८-९ आरम्बनंदि १५८ बारान्दमंगलम् ७५ आरियदेव २२७ मारुलपेरुमान् ४१ आर्यदि १५, १६, ४३ पंडित ११२ जैनशिलालेख संग्रह मालाक १३२ आलुप १५४ आशिका १९० आशिरियन् ३९ इन्दरपिट्टम्म ४० इन्दौर १९७, २६१, २८४ इन्द्रकीति ९४, १५८ इन्द्रणंद १५-१६ इन्द्रनंदि ७३, १२६, २३४ इन्द्रराज ३१, ३४, ३६, ५५, ६१ ६३ इन्द्रभूपाल ३३५ इन्द्रभूषण ४०६, ४०९-११ इम्मा १७६ इम्महि अरसप्पोदेय ३४७ इम्मडिदेवराय ३१५-६ नार्यसंघ ५७ आलपदेवी ३८० आलप्पिरन्दान् मोगन् १६६, २७४ इम्मडिबुक्क २८८ इम्म डिभैरवरस ३१५. इरुग २८८ इरुगोण २६० इन्दूर ३०४-५ इरुगोल ३८० आहड १९६ आहवमल्ल ७३, ७८, ८१, ८२ इलपेरुमान डिगल ७५ आंतरी ३८७ इलंगोतमन् ३९ इक्केरि ३३९ इट्टगे १०४, १०९ इयान् १६७ इडैयालम् ३७६ इदम्पटव १२ इन्दप १२०-१ इंगणेश्वर - इंगलेश्वर २१७, २२४, २३२,२६६-७, २७२, २७४, ३७४, ३७६, ३८०, ३८३-४ इंगरस ३०८ इंगोली ३९५, ४१९ चवाडि ५८ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची ईश्वर १२०.१ उरिगपसिडि २० उकाल ७४ ऊन १२७ उक्किसेट्टि २७३ अकाडु १७८ उगरगोल १४९ ऋषिदास ६ उगुरु २६३ ऋषिश्रृंगी १४९ उग्रवाडि १४४.५ एकवे २७३ उच्छंगि २०४, २६६ एकसंधि १७५ उज्जत ३२५ एकसंमि १८५ उज्जेनीपल्लीवाल ३९५, ४०८-९, एक्कसम्बुगे १८६ एक्कोटिजिनालय २१९-२० उज्वल १९२, १९७ एचलदेवी २०२-३, २१२ उडिपि ३०५ एचिकब्बे १२०-१ उडयार १२७ एचिसेट्टि २०५ उदय २३८, २४४ एटा २६१ उदयगिरेन्द्र ४०३ एडेनाडु २८ उदयचन्द्र १०७, ११०, २५८, एणक्कुनल्लनायकर् २५५ २७१ उदयपुर ७५, ३८६-८८ एरणदि १६७ उदयादित्य १२७, १५४, २०२, एरेकप ११७, १२० २११, २१७, २२४ एरेग ११६-७, १२०, १२४ उद्दरि २९३ एरेय ४३.४४ उद्योतकेसरी ५६-७ एरेयप ५८, ६० उमरावती ३९५,४१६ एरेयमय्य ११६, १२० उम्पटाचण बसदि ३७२ एरंयंग ५८, ६०, १२२-५, १५४, उम्बरवाणि २४६, २४९ १७६, २०२, २११, २७. उम्मत्तूर ७०, ३५८ एलवाचार्य २८, ३० Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० एलाचार्य ४४, ५४, २८८ ऐनुरुपेरुम्पल्लि ३६६ ऐवर अंबण ३५३ ऐवरमले ३७ ऐहोले १४५ ओखरिक ५, ६ ओजण ३५५ बोडेयमसेट्टि ३७९ ओड्डिपाणि ४० ओबेयमसेट्टि ३६५ ओरंकल्वायगर १९, २० ओंगेरु ३८१ कक्करगोंड १०५, ११० कच्चिनायकर् २७४ कच्चिनायनार् १६६ कच्चिरायर् २७४ कच्छवेगडे २३०-१ कछवाह ३४३ कडकोल २६१ कडलेहल्लि २१५-६ कडितले २६८ वयसेट्टि १०८ कणितमाणिकसे ट्टि ८३ कण्डन् पोपट्टन् २२ जैनशिलालेख संग्रह १५०, १५२, २७५, ३८४ कण्णम्मन् १८-२० सेट्टि २१४ कण्णूर १३४ कत्तम १८५ कदम्ब १३, १५, २६, ३८, ७१, ८२, ११४, १२३, १२४- ५, १३६, १४८, १५७, १७१-२, २०८-९, २५०-१, ३१३, ३७८ कदलाल बसदि १४३, १४५ कनककीति ३६३ कनकगिरि ३४६ कनकचन्द्र १४८, २५८, २७१ कनकचिनगिरि २७३ कनकनन्दि २२, ७७, ९५, १०२ कनकरायनगुडु ३६१ कनकवीर २२, ५६, १६७ कनकशक्ति ९५ कनकसेन ३९, ९२-३, १७५ कन्नडगे १८२ safeसदि ३०९ कमप १२०-१, १६४ कन्नर ( कन्धर, कन्हर ) देव ४५, १५१, २५६-७, २६३ कण्डन् माघवन् ३९१ कण्डूर, कण्डूर गण ११६, १२०, कन्झिसेट्टि ३७३ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पतिपाडु ३५४ कमलदेव १२८, २९१ कमलभद्र ७०, २९४-५ कमलश्री १९३, १९७ कमलसेन २५०, २५४ कमलापुरम् ७३, ३९१ कम्बदहल्लि १५६, १६९ कम्भराज २८-३० कम्मनहल्लि ३५९ कम्मरचोड ३८० कयिलायप्पुलवर् ३३९ करगुदरि १७२ करडकल १७९ नामसूची करन्दै ९९, १४०, १७८, २८९, ३१३, ३३६, ३३९, ३४७ कर सिदेव २५६ aftकालोलजिन मंदिर ३५४ करिमानी २६ करिविडि ७६, ८५ कर्कराज ३१, ३४-६ कर्णादेवी १६६ कर्म ३ कलकत्ता ४०, २३४, ३४० कल रि २५४, २५६, २६३, ३७९ कलचुम्बुरु ६८ कलचुरि १५९, १७८ कलचुर्य १७९, १८२, १८६-७, १९८, २०१ कलशनगर २२५ कलसापुर २०१ कलिगन्जे ६९ afoगावुण्ड २२६ कलिदेव ८१, १०९-१०, १२०-१, १४९, १८६ कलिमानम् ७८ कलियत्तिगंड ६४ कलियम्म २५, ३८९-९० कलिविष्णुवर्धन ६४ कलसेट्टि १०८, १७२ कलिंग २ कल्कलेश्वर ८६ कल्नेलेदेव ४३-४, ५४ कल्याण ८५, ८६, २१४ कल्याणकीर्ति ७४, ३८२ कल्याणवसंत २४ कल्लप ३५५ कलम्बे ५४ ४६१ कल्लरस ३०४-५ कल्लहल्लि ३६० कल्लारुपल्लि २७ कल्बका ११७ कबडेगोल्क १६३-५ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह काडेमध्य २०४-५ कामनपाल २९७ "कसपगावुण्ड २४९ कामराज ३५५-६ कंचरस ९१-३ कामय ३१४ कंचलदेवी ३७८ काम्बोदि ३४९ कंचिकब्बे ७६ कायस्थ १९५ कंति २३४ कायाम्पट्टि ३६६ कंदगल २५१ कारकल ३१९-२०, ३२९, ३७१ काकतीबेत १४२, १४५ कारंजा ३९५, ४०५.६, ४०९, काकन (काकन्दी) ३४८ ४१२-३, ४१६-७, ४२५ काकुत्स्थ १३ कारिजे ३२० कागिनेल्लि ७७, ३७५ कारेयगण १५३ काटरस १०६, ११० कार्तवीर्य १२८, १८५-६, २३५-९ काटिमय्य ११२ २४२-६, २४८.९ कारगण २६६ कालडिय ७८, ८१ । काणूर (क्राणूर ) गण ५८.६०. कालण १८६ १४८, १५५-८, १७३, २२४, कालहल्लि ३१९ २३३-४, २५०-१, २६८, कालिदास १३४, १७८ २९६, ३२१, ३२३, ३२६, कालिमय्य ९९ ३६४, ३७०,३७५,३७८-८० कालियूर ९९ काण्वायन ९, १७ कालिसेट्टि ३७६ कादलूरु ५४ कावण २६७ कान्तराजपुर २१७ कावदेवरस २०८-९ काप ३२१-३,३२६ कावनहल्लि १३३-४ कामठी ३९५, ४१२ कावटय २५७ कामण्ण २८२, २८६ कावला गोत्र ४०५ कामदेव ७७ काशिक ७.१ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१५.२७ কাহিত ৬ कुदेपली २ काष्ठासंघ ३९६, १००, ४०२-६, कुन्तलनाडु ३०४.५ ४०९-११, ४१४-६, ४२७ कुन्दकुन्दान्वय, कुन्दकुन्दाचार्यान्वय कासिमय्य १९८ १२६, २७८, ३१७, ३९७, कांचन ९८ ४०१-४, ४०७, ४०९-१२, कांचेलादेवी २१७ किन्निगभूपाल ३३५ कुन्दकुन्द २२१-२, २२५ किरसंपगाडि १५३ कुन्दनोलु २८८ किसुबल्लि २३०-१ कुन्दरगे ८५ किसुबोलल २५ कुन्दाति १३९-४० कोरप्पाक्कम् ४२ कुपण ३८ कोयरबुर ३१७ कुप्पटूर २२४ कीर्ति १५१-२ कुब्ज विष्णुवर्धन ६३, ६८ कोतिवर्मन् २५ कुमठ २०८, २७८, ३७८ कीर्तिसागर ३६१ कुमरन् देवन् ४१ कोलक्कुडि २२, ७२, २२७, ३६५ कुमरम्प १४७ कुक्कुटासन १६७ कुमारकीति १८६ कुच्चंगि २०७, ३२८ कुमारनन्दि २८-३० कुडलूर २६, ५४ कुमारपर्वत ५७ कुडुगिनवयलु ३२० कुमारबोड १४६, २२३ कुण्टनहोसल्लि १७१ कुमारसेन १७५, २९४-५ कुण्डकुन्दान्वय ११४, १५५-६ कुमिलिगण ४२ २३३-४, ३६०, ३६४ कुमुदचन्द्र २५८-९, २७१-२, ४०७ कुण्डघाट ३०७, ३६५ कुमुदिगण ८२, ३७७ कुण्डमग्य ४० कुम्बनूर १४५ कुष्णत्तूर ३०७ कुरजन १३७ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ कुरट्टिगल १६ कुरण्डि २२, ६३ कुरुगोड ३१९ कुरुवडिमिदि ३१८ कुलगाण १७ कुलचन्द्र ५७.८, १५७-८, २५७ कुलत्तूर ३९१ कुलशेखर १५४ कुलोत्तुंग १२१, १२७, १४०, १४५-६, १६६, २५१, २७३ ३९१-२ कुलोत्तुंगशोलकाडवरायन् १६६ कुसुम ४ कुसुमजिनालय ३७६ कुंकुम देवी २५ कुंगियमसेट्टि ३६८ जैनशिलालेख संग्रह कूण्डि ७९, ८१, १२८, १३७, १५३, १६४, २३५, २४१, २४३, २४६, २४९ कृष्णवर्मा १७ कृष्ण सेट्टि ३८१ केगावुड १०७, २२७ के तय्य ३६३ के तिसेट्टि १०८, १८२, २०५ केतोज ८८-९ केम्पम्मणि ३५१ केरवसे २९९ केरेसन् १७९ केलगेरे २७० केलडिवोरभद्र ३४१ केलडिवेंकटप्प३३९ केलेयब्बरसि ९५, २०२ केल्लिपुर १८-२० केशदि २६६ केशव १९५, १९७, २६५, ३०२५, ३६९ केशवदेवी २८३ केशवय्य १४६ केशवरस ७६ कूष्माण्डी विषय १५ कृष्णदेव २७६ कृष्णदेवराय ३१३-४ केशिराज ९१ कृष्णप्पराज ३४४-५ केसरिसेट्टि २०७ कृष्णराज ३१, ४४, ५३, १०९, के सिसेट्टि २२६ १५२, २३६, ३५१ केतडुप्पूर १४१ कोकलपुर ९४ केशवसूरि ५१-५२ केशवादित्य ८०, १५१ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची कोकिवाड ५४ कोन्न ३१७, ३८२ कोक्कल १३६ कोप्पण (कोप्पल) ३८, ४५, ७४, कोक्किलि ६४ १३०, २५०, ३२५-६, ३७१ कोगलि २६५, ३६५, ३७९ कोमरगोप ३८३ कोछल गात्र ४२१.३ कोम्मणार्य १४९ कोट्टगेरै १७४ कोम्मसेट्टि ३८० कोट्टशीवरम् ३८० कोरग २९९ कोट्टिय गण ६ कोरमंग १२, १४, १५ कोडिहल्लि ७१ कोरवल्लि २४६, २४९ कोडुगूर १८, १९ कोरिकुन्द ११ कोरिम्मकोण्डाम् २७, २५५ कोलारस ३४० कोण्डकुन्दान्वय ५३, ९४, १२५, कोलूर ६८९-९० १३०, १३३-४, १५७-८, कोल्लापुर ( कोल्हापुर ) १३५, १६६, १७०, २०४, २०७,, २४६, २४९, २५२-३, २५९, कोल्युगे ८५ कोवल ६२ २६६, २७२, २८८, २९५-६ कोविलंगुलम् १४५ कोण्डकुन्देय अन्वय २८, ३० कोशिक २६ कोण्डकुन्देय तीर्थ ११४ कोह नगोरी ३१५ कोण्डग्यसेट्टि ३६१ कोहल्लि ८५ कोण्डमले ३३७ कोंकण ८२, १३७, ३२७ कोनकोण्डल २०, ७२, ११४, कोंगज १३६ २२६, २९३ कोंगणिवर्मा ९, १७, २०, ५४ कोनाट्टन् ८३ कोंगणिवृतराज १७, २० कोन्तकुलि १४८ कोंगण्यधिराज ११, १२ कोन्तिमहादेविवसदि ३०२ कोंगरपुलियंगुलम् २१ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह कोंगरयर् ६३ गण्डरादित्य ६२, १३७-९, १६२, कोंगल देश ५३ १६४-६, १८५.६, २३९ कोंगु १५५, २०३, २६७, २८० गण्ड विमुक्त १०५, ११०-१२,१४९ कोठूरु २४ १७०, २५८, २७१ कोहरगच्छ ७३ गण्डिसेट्टि १०८ क्षेमपुर ३०३, ३१५ गयाकर्ण १५९ क्षेमकीर्ति २२१, २२३ गरग ३७७ क्षोणीपति १११ गंग १२, २०, २६, ४०, ४४, खटवड गोत्र ४०२ ५३.४, ५८-६०, ८९, ९४, खण्डगिरि २-५, ५६-७ १०२, १०४, १२९, १५१-२ खण्डिल्लवाल १६१, ३००, ३१५ गंगपय्य १४६-७, १६७ खण्डेलवाल ३१७, ३९६, ४०८, गंगपेमोडि १०४,१०७,१०९,१३५ ४२१,४२५ गंगरबमिसे ट्रि १४८ खप्परस्य १६४ गंगरसावन्त २५९ खर २ गंगराज १५६ खंडारिया गोत्र ४०५, ४०८,४१० गंगराडा ३९५, ३९७ खंभात ३८७ गंगरुल सुन्दरपेरुम्बल्लि १२२ खारवेल २ गंगवुर २३२ खाग गोत्र ४०३ गंगादास ३४१ खोट्टिग ५४ गंगायि २८५ साजा अजोजबेग ३२८ गंगेवे २२७ गजपंथ ४२६ गंजेनाड १८-२० गजा ४०१ गावरवाड १०२, १०४, १०७, गणपण ३२३, ३२५, ३३७ गणपवरम् १६६ गिरधरदास ३४१ गणिगेमहावति २४ गिरनार २२२, ३२६ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मामसूची गुजरपल्लोवाल ३९५, ३९८ गुडगुडि ३७२ गुडिगेरे २५ गुणकोति ५६, ७६, १०४, १०९, ११०-१,४०० गुणगविजयादित्य ६४ गुणचन्द्र ५३, ७३, १०५, ११०, १९७, २३४, २५८ गुणदबेडगि ८४-५, १८७ गुणनन्दि ५८, ६० गुणनेरिमंगलम् ७५ गुणन्दांगि १६ गुणपाल १६१ गुणभद्र ७२, १९५, १९७, २९४-५ ३३०-२, ३३४, ३३७,४०२, ४२० गुणमति २२ गुणवर्मा ६२ गुणवीर ३७-८, ६३, २७४ गुणसागर ३६१, ३९१ गुणसेन २२, १७७, २६४, ३६५, ३६६, ४०२ गुत्त १८२ गुत्तवायि २८६ गुन्दुराज १८९ गुम्मटदेव ३०९ गुम्मणसेट्टि ३१२ गुम्मिसेट्टि २२६, ३०८ गुम्{गोल १०४, १०९ गुम्मैयसेट्टि ३३७ गुरुवयनकेरे ३०९, ३१४ गुर्जर १९७ गुलियपुर २६२ गुहनन्दि ७-९ गटी २८८, गूवक १८९ गूवल १३६ गधवाल गोत्र ४०८ गैरसोप्पे २७९, २८२, २८४, २८६-७, २९७-८, ३०१, ३१५, ३२७, ३३०.४,३५४. ५, ३६८, ३९२ गोमालभिटा ९ गोकवे २३३-४ गोकर्ण ३३५-६, ३९१ गोकाक १५, ८४.५ गोग्गि १८३-५ गोगियबसदि १५८ गोज्जिका ९१-३, १०२ गोगडि १९८ गोणदबेडगि १२१ गोणिवीर ३५९ Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ जैनशिलालेख संग्रह गोपनन्दि २०४, २०७ गोपरस २६६ गोपाचल ४१२ गोपेन्द्र १८९ गोप्पण्ण २७९ गोविन्दम्म ४० गोरविसेट्टि १०८, १६४ गोरूर २२६, २२९ गोर्म १५१.२ गोललतक २६१ गोलसिंधारा ३९५, ४०४ गोलिहल्लि १५३ गोल्लाचार्य २३४ गोल्लापूर्व १५९, ३९६, ४०३, ४२७, गोल्हणदेव १५९ गोव १८० गोवर्धन २२७, २५० गोवलदेव ११४ गोवा २८७ गोवालगोत्र ४०३,४०६,४०९-१० गोषाटपुंजक ७-९ गोहिलगोत्र ४०३, ४१५, ४२५ गोंकय्य २७ गोकल १३६ गोडसंघ ५३ महकुल ५७ ग्राम २२४ घटेयंककार ७६ घण्टोडेय ३२० धनविनीत १८ धनशोकवली ३५४-५ चविग १८९ चन्वुल १९१, १९६ चटवेगन्ति २९२ घट्टजिनालय ११४ चट्रय्यदेव ८२ चटरसि ८८.९ चण्डब्वे १०७ चण्डिगोडि २६१ चण्डियण ३९ पण्डिमेट्टि १०८ चतुर्थज्ञाति १७२ चतुर्थमुनीश्वर ३२६ चतुर्मुख देव २०४, २०७ चतुर्मुखवसति ४१ धनुदवोलु ३८१ . चन्तलदेती १३३-४ चन्दन १८९ चन्दलदेवी २३७, २४४, ३१९-२० चन्दव्वे ३८. चन्दियम्बे ४५ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मामसूची पन्दिसेट्टि १०८ चान्द्रायणदेव १८०, २७१ चन्द्र १३६, १८९ चामकब्बे ७०, ३८३ चन्द्रकराचार्याम्नाय १५९ चामराज १४७, ३४९ चन्द्र कवाट अन्वय ९२-३ चामराजनगर २९६, ३१४-- चन्द्रकीति २०८, ३६७, ३८३, चामुण्डराज १८९ ४०२, ४०३, ४०५ चारुकीति १२२, २२१, २२३, चन्द्रगिरि ३१३ २९७-८, ३१२, ३२७, ३३३, चन्द्रनन्दि ४०, १०२, २२४ ३३५, ३४१, ३४३, ३४७, चन्द्रनाथ ३५६-७ ३६८, ३८१ चन्द्रपुर २८२ चारुचन्द्रभूषण ४१२ चन्द्रप्रभ ४४, ७२, २१७, ३१५-६ चालुक्य २४-५, २७, ५३, ६३, चन्द्रभूति ३७८ ६६, ६८, ७३-८२, ८४-६, चन्द्रसेन १८-२०, ६७-८ ८९, ९०, ९३.४, ९८-९, चन्द्रांक ३८१ १०२-३, ११०, ११२-५, चन्द्रिकावाट वंश ९८ १२०.१, १२६, १३४, १३७, चन्द्रिकादेवो २३७ १३९, १४१-५ १४८-५०, चन्द्रेन्द्र ३७८ १५२-३, १५७-८, १७०.३, चल्लपिल्ले २६१ १७८, २०८, ३८९-९० चडिसेट्टि १०८ चालुक्यभोम ६४, ६७-८ चण्ड २६३ चावय्य ३७१ चवरिया ३९९.४००, ४०७, चावण्ड ८२ चवरे ४१६, ४१९, ४२५ चावुण्डरस १८७ चंगालराय ३९२ चावण्डराय ८८-९, २७७ बंगाल्व १२९ चाहमान १५९-६०, १६९, १७१, चाउण्डरस १७३ १८९, १९६ चान्दकवटे ९८ चिकण्ण ३७ Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनक्षिकालेख-संमा चिकमगलूर १२९, १३१ बेदिकुलमाणिक्कपेरम्बल्लि १२२ चिक्ककन्नेयनहल्लि २७१-२ चेन्न भैरादेवी ३२७ चिक्कणम्य ३३३ बेनराय ३३०-३ चिक्कमल्लण्ण १७९.८० चेन्नवीरप्प ३३०-४ चिक्कमालिगेनाडु ३२० चैपल्लि ३२९ चिक्कराय ३४१ चोकिसेट्टि ३११ चिक्कवोरप्प ३३०-२, ३३४ चोल ५२, ५६, ६२, ७४-५, ७८, चिक्कहनसोगे ४३, १२९, ३३३ ८३, ९९, १०५.६, ११०, चिक्कहन्दिगोल २०१ १२१, १२७, १४०-१, चिक्किसेट्टि १०८ १४५-६, १५८, १६६-७, चिण्ण १२३-५ १७८-९, २०८, २५१, २६०, चितरल १६ २७३, ३५४, ३९१ चितलद्रुग ३०८.९ चोलपेरुम्पल्लि २७ चितोड ३८६ चोलवाण्डिपुरम् ६२ . चित्तामूर ३२८, ३५२ चौटकुल ३२७, ३४१ चित्तारि ८८-९ चौलुक्य ९८, २२२ चित्रकूट २२१-२ छतरपुर १७४ चित्रकूटगच्छ १७२, ३७८ छत्रसेन ४११ चित्रकूटान्वय १०२, ११२, १७२, छपारा ४९५, ४२५ २६९ छन्बि ९५ चित्रभंडारदेव ३३९ छोतग १९५. चिप्पगिरि २६६, २९३, ३२६ जकवेहट्टि २९२ चिचलो २३५ जकन्वे २३२, २५० चूलकम्म ३ जक्कारसि ३०२-३ चेकवा २५७ जक्कय २५८ चेदि ६२ जक्कलदेवी ३०४.५ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची १ . अक्कलि १३५ जसनन्दि ५७ अक्कियक्क १५५ जाकवे २६६ जस्कियब्बे ४३, २०२ जाकिमब्बे ९८ जक्किसेट्टि २०५ जातियक्क १४६ जगतकोति ४.२ जाबालिपुर १९. जगतापिगुत्ति ३२९ जालोर ३८६ जगदेकमल्ल ७५-७, ८०.१, ९३, जावूर ३८३ १७०-२ जासट १९१, १९६ जगमणचारि १३२ जाह्नवेयकुल ९, १७ जटासिंहनदि ३७१ जिड्डुलिगे २७७ जट्टिगोड ३२९ जिनकचि ३४४.५ जतिग १३५-६ जिनगिरिपल्लि २५१ जननाथपुरम् १२२ जिनगिरिमल २५५ जननाथमंगलम् १६६ जिनचन्द्र १९५, १९७, २०४,२०७ जबलपुर ३१. २५८, २७५, २८७, ३१०, जम्बूखण्डगण १५-१६ ३६९, ३९६, ३९८, ४०३, जयकोति ९५, १२९, ३८३ ४२७ जयकेशि ११२, १५३, १७२,२५१ जिनदत्त २२५ जयदेव १८९, ३६. जिनदास ३९७ जयन्ताचार्य ६८ जिनदेव १५३, ३७६, ३९७ जयराज १८९ जिनभूषण ३६६ जयवीरपेस्लिमैयान् ३६६ जिनवल्लभ ४०.१ जसिह २४, ६३, ७६, ११५, जिनसेन २९४-५, ४०७-८, ४१२ १२०,१५१.२, ३४३, ३९० जिनेन्द्र मंगलम् ३१८ जयसेन ६७, ६९, ३८१ जिन्नण १८६ जयंगोंडशोलमंडलम् १७८ जीमूतवाहनान्वय १३७-८, १६२, Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख संग्रह ३८९.९० तम्मदहल्लि ३८१, ३८४ जीयगोड ३६० तम्मय्य ३३२-३ जीवराज ३९६, ३९८ तम्मरस ३०४-५ जुगियागोत्र ४१४ तलकाड १४६, १५५, २०॥ जेबुलगेरि २५ २१४, २९१ जेमपार्य १४६ तलक्कूडि ४१ बेमिसेट्टि ३७५ तलप्रहारि १८३, १८५ जोगीबडि ५६ तललूर ३६९ जोन्नगिरि ८२ तलवननगर २८-३० जोयिमय्यरस ११४ तलवलि २१४ ज्ञानभूषण ३९७-८ तवनन्दो २६९, २९१ टोहा रायसिंह ३४३ तवनिधि २९०.१ टोंक १३२, ३०० तंगले ३६० ठवला गोत्र ४०० तंगलेदेवी ३०३-५ ठवली, शान्तिकुमारजी ३९३ ताडकोड २६३ सम्बल ९४, २६३ ताडपत्री २१७ दिल्लिका १९० तायूर २६२ तगडूर २६२, २९६ तालराज ६४ तगरपुर १३८, १६२ तिकमदेव २६५ तगरे २६ तिक्क ११७ तजेगांव ३९५, ४०८ तित्रिणीगच्छ १५५-६,२२४,२५० तट्टिकेरे ५९-६० ३२१, ३२६, ३६४, ३७९ तडागपत्तन १९१,१९६ तिप्पगोड ९६ तण्डपुरम १६७ तिप्पय २६६ तमिलप्पलवरैयन २५५ तिप्पिसेट्टि ११४ सम्मष्ण ३७८ विम्मगौड ३२९ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामस्ती १०॥ तिम्मष्प ३२० तुल (तुलब) २८०, ३१४, ३२१तिरक्कोल १६७ २, ३२७ तिरुक्काट्टाम्पल्लि १४० तुलुअडि २६ तिरुक्कामकोट्टपुरम् १९ तुंगपल्लवरैयन् ३७४ तिरुगोकर्णम् २७ तेणिमल ३६७ तिरुच्छाणतुमले १६ तेरकणांवि२९५ तिरुच्छोरुतर २८९ तेवारम् ६३ तिरुनिडंकोण्डै ४१, ७८, १२७, तेकविणाडु २७ १६०, १६६, २७३-४, २७९, तेल ७३, १७१-२ ३३७, ३५४, ३७५ तैलप १४८-९, १८५ तिरुपरम्बूर १४०, १७३ तेलंगेरे २६१ तिरुप्परंकुण्डम् ३७३ तोगरकुंट १४८ तिरुपत्तिकुण्डम् १४०-१, १८५ तोयिमरस ३७२ तिरुप्पान्मल ५२ तोरनगल्लु ३७७ तिरुमणंजेरि ७८ तोरंबगे १६४ तिरुमय्यम् ३६६ तोललु ९५-६, १२६-७, ३६२ तिरुमलरस ३१९, ३२२-३, ३२५ तोलहरबलि २९७ तिरुवपिरै ३७-८ तोल्लग्राम २६ तिरुवेण्णायिल ३६६ तोंडमंडल ७४, २८. तिलकरस २६०,३०१ तोंडर ७५ तिलिवल्लि ३४८ तौलव ३१५ तिगकूरु ८३ त्रिकूटबसदि १४१ तीर्थबसदि १२९ विणयनकुल ६६, ६८ तुगिलिकिलान् ९९ विभुवनकीति २६०, ३८० तुम्बदेवनहल्लि १२२ त्रिभुवनचन्द्र १०६-७, ११०-१२ तुम्बिगि ३८४ त्रिभुवनमल्ल ११४-५, १२०,१२२, Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिलालेख-संग्रह १२६-०, १३३, १४१, १४३, दासण ३८९ १४५, १४८-५०, १५२-३, दासबोव १८७ २००, २०८ ददि १६१ त्रिभुवनवीर ३७८ दिनकर ११९,१२१ कीति २७५ दिनकरजिनालय १६७ त्रैलोक्यमल्ल ८२, ८४-६, ८९, दिल्ली ३४४.५ ९०, ९३-४, ९८-९, १००, दिवाकर २५० १०५, ११०, ११५, १२०, दुग्गमार ३९, ४० १७३, १७८, ३८९-९० दुद्दमल्ल १३३-४ दडग १५४ दुद्यक १९१, १९७ दडिगनकेरे १५५-६ दुर्गभट्ट ३६ दडिगसेट्टि ७० दुर्लभ ( दुर्लभराज ) ४६, ५२, दण्डब्रह्म १३७ १८९, १९२, १९७ दण्डिपल्लि ४४ दुविनीत १७, २०, ९४ दत्ता ५,६ दूडम ११९.१२१ दत्तकसूत्रवृत्ति १० दूसल १८९ दन्तिदुर्ग ३१ देकवे २०५ दमित्र ५, ६ देज्जमहाराज १५-१६ दयापाल २१४, २१६ देमलदेवी १७३ दयाभूषण ४०८ देमायप २३४ दयावसन्त २४ देल्हण १९६-७ दानप्प ३२८ देवकीति ७६, ३२३, ३२६, ३६३, दानवुलपाडु ५५, ६०, ३६३ ३८४ दानिवास ३३१-४ देवगण ३८२ वारिसेट्टि १०८ देवगेरी ३८९ वावर्णदि १०२. ३८. देवचन्द्र २२५, २५८,२७१, ३२३, Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची ३२६, ३५४-५, ३८१-२ ४१६-२५, ४२८ ३८४ देवेन्द्रसेन २९४-५ देवणय्य ११२ देशवल्लभजिनालय ४२ देवण्ण २६०, ३१६-७, ३४१, ३४८ देशीय ( देशो, देसि, देसिग ) गण देवत्तर ३७४ ४३, ५३,७७, ९३.४, ११४, देवदास ३२८ १२५-६, १२९, १३३-४, देवधर १९२, १९७ १४०, १४८, १५६, १५९, देवनन्दि २७०, ३६१ १६४-५, १६७, १७०, १७३, देवपाल १६१ १७९, १८२, १९७, २०४, देवप्प ३०८ २०७, २२५, २३२, २४६, देवमाम्बे २९४ २४९, २५२-३, २५६, २६०, देवरदासय्य ७० २६५-८, २७२, २७४, २७८, देवरस १४९ २९५, ३१५-६, ३३५, ३३८देवराज १९०, ३५१ ९, ३४२, ३५४-५, ३५९, देवराय ३००, ३०५-६, ३१४, ३६०,३६३,३७६, ३७९-८३ देसल १९१, १९६-७ देवस्पर्श १९१, १९७ दोडणसेट्टि ३१२ देवाद्रि १९२ दोण ११७-८, १२०-१ देवांगना १११ दोणि १२२ देवियब्बे ७० दोरसमुद्र २५३, २५६, २७०-१ देविसेट्टि १०८,२०५,२०७,३१२, दोहद ५ मिल संघ २१४ देवीरम्मणि ३४९ द्रविल संघ १७९-८०, २३३, २६७ देवूर ३७६ २६९, २९१ देवेन्द्र ६९, २०४, २०७ द्राविडसंघ १२८ देवेन्द्रकीति ३१४, ४०२, ४११, द्राविडान्वय २६४ Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ द्रोहघरट्टाचारि १५६ द्वीपितटाक २९४ धन्यवसन्त २४ घरवृद्धि ६ धर्मकीर्ति ४०३-४ धर्मचन्द्र ३१७, ३४०, ४००, ४०४५, ४०७-१०, ४१२-३, ४१६, ४२८ धर्मपुर ३०३ धर्मपुरी ३८-९ धर्मभूषण २८८, ३११, ३९७, ३९९-४०१, ४०५-८, ४१० धर्मवोलल ९४,२६३ धर्मसेन २६९ घवल ४६, ४९, ५२ घारवाड ५३ धारावर्ष २८, ३० जैनशिकालेख संग्रह रामोरो गोत्र ४२२ धृति २७ घोरजिनालय ४४, ९५, १८७ ध्रुव ३०, ३२ नकुलरस ८८-९ नगिरि २९७-८, ३०३, ३२७ नदिहरलहल्लि १८७, १९८ नदूलडागिका १६०, १६८- ९, १७०-१, १९० नन्दवर ४५ नन्दवाडिगे ८५ नन्द सेठि १ नन्दापुर ८५ नन्दिआम्नाय ४२२ नन्दिगण (संघ) १०४, १०९,१२८ २१४, २२१-२, २३३, २५८ २६७, २६९, २९१, ४०२ नन्दिबेवूरु ९३ नन्दिभट्टारक २५८- ९, २९६, ३७५ नन्दिमुनि २३४ नन्दियड संघ ७२ नन्दियडिगल ३६१-२ नन्दीतटगच्छ ३९६, ४०२-३, ४०५-६, ४०९, ४११, ४१४, ४१६, ४२७ गिंग ५९, ६० नमयर ५३ नम्बि सेट्टि २८२-३ नयकीर्ति १७३, २०७, २१९-२० २३१-२, २५६, २५८.९, २७१-३ नयसेन ९१-३, ११८, १२१ मरतोंग १६७ नरवर १९१, १९७ नरवाहन ६६-८ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची १.७ नरसप्प ३३२-३ नरसिंगव्य ११४ नरसिंह १६९, १७६.७, १७६, १८०, २०३, २११-२, २५६, २५८-६०, २६२, २७०-२, नागकुमार ४३ नागगावुण्ड १९८, २६२ नागगोड ३७२ नागचन्द्र ९५, १२९, १७२, १८६, २७८ नागण ३०० नागदेव ७३, १९२, १९७ नागनन्दि ३७, २९६ नागपुर २०९, ३९३-५, ४१२, ४१५, ४१८-२३, ४२५-२७ नागप्प ३४९ नागभूप ३४३ नागय्या ४४, २०९, ३५०, ३५७, नरसिंहबंग ३०९ नरसिंहराजपुर २६, ३१२, ३४९ नरसीगेरे ३९, ४० नरसोभट्ट ३९२ नरेगल ५३ नरेन्द्रकीति ४०४, ४१० नरेन्द्रसेन ९२-३, १९८-२१, ३७५ नल १२९ नल जनम्नाडु २३ नल्लूर २७३ नविलगुन्द ३८३ नविलर १२६-७, २२६ नविले ८५ नंगलि १५५ नंजेदेवरगुड्ड २१६ नाकण १४७, २६७ नाकिग ९५ नाकिमस्य ११२ नाकिया ४ नाकिराज १६६ नागरखण्ड ४४, २५०, २७७, २८९ नागरस ३०१ नागरहाल १७६-७ नागराज २९४ नागलदेवी २६६ नागलपुर ३३०-१ नागवर्मा २६, ८८-९ नागवे १८१, २३३.४, २८६, ३७२ नागधी १९२, १९७ नागसारिका ३५.६ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ जैनशिकाल-संग्रह नागसिरियव्वे २५१ नाहर ३८५ नागसेट्टि २८९-९० नाहटा ३८५ नागसेन ७२, ८४-५ निगमान्वय २७६ नागद १९४ निगुम्बवंश १३९ नागिसेट्टि १७१, २८६ निजिकब्बे २३०.१ नागुलपोलमम्बे ३७ निटूर २२५, ३६८ नागुलबसदि ३७ निडुगल (निडुगल्लु) २६०, ३८२ नागेयिसेट्टि २६३ नित्वकल्याणदेव १६० नागोज ३६० नित्यवर्ष ४४-५, ५५ नागौर ४२२-३ नित्वगोहाली ७.९ नाडलाई १५९, १६७, १६९, १७० निधियण्ण ३९ नाडलि १००.१ निम्बदेव १६३, १६५-६, २३९ नाडोल ३८६ निरुपम ३० नाथशर्मा ७-९ निर्घडेवृक्षसंघ ३४९ नायसेन ६७-८ निलिम्पपुर २९८ नादौवे ३५७ नोडूर ३९१ नानिग १९६ नोरलगि १७१ नामिसेट्टि २७३ नीलगिरि ३४६-७ नायिम १३५, १३९-४० नीलत्तनहल्लि ३१८ नाराणक १९१, १९६ नोलिकब्बे १७२ नारायण ३६, ४० नूतिसेट्टि १०८ नारियप्पाड ४१ नूलवन्दिसेट्टि ३५७ नालिसेट्टि १०८ नूलकागिसेट्टि ३५७ नालपुर ३३४ नेगलर २५७ नाल्कुवागिल ३२८ नेवटिमतायि १२९ नाविकल्वे ११४ नेमण ८१.२, २८६-७, ३६२ Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमसेन ४२० नेमिचन्द्र ४२-३, १२६-७, १५३, १७३, २१९-२०, २२६, २३२, २४५, २४९, २५८, २६५, २७१, ३७०, ३८२, ४२८ नेमिदेव २२७, ३७६ नेमिट्टि १०८, ३१२ नेरिलगे १७१ नामसूची नेल्लिकर ३१७, ३८२ नवाज्ञाति ४१३ नगम १९५ नोम्पियबसदि २०८ नोलम्ब ३८-९, ७६, ९३, ११६, १३९-४० नोलम्बवाडि ( नोणम्बवाडि ) ७६, १५५, २१४, ३९० न्यायपरिपालपेम्बल्लि २५५ पटना ३१७ पट्टिपोम्बु ८६, ८९, १८३, १८५ पडियरकाटि ८८-९ पडेवल ७३ पोट्टु ३१३ पण्डितब्ध ३३३ पदमूलिक ४ पदार्थसार २५ पदुमणसेट्टि ३१८ पदुमलदेवी ३२७ पदुमध्ये ३७६ पद्मकोति ४०१, ४०७-९, ४११. ४१४ पद्मकुल ३४६ पद्मट १९१, १९६ ४०९ पद्यण्णरस ३०४-५ पद्मनन्दि ४५, ५५-६, १४९, २१७, २५०, २५८, २७७, ३००, ३१०, ३९७, ४१६-७ पद्मप्रभ २०० २०८, २६९, ३८० पद्मम्बरसि ५३ पद्मलदेवी १७९, २४४ पद्मसेन २५४, २६१ पद्मावती २३६, ३६२ पद्मावतीपल्लीवाल ३९५, ४०८ पद्मंय ३५०, ३५३ पनसोगे ४३, २०७, २२५ पण १४८ परकेसरिवर्मन् ५२, ७५, १४१, १५८, १६०, १६७, २५१ परमजिन देवजीयर् ३५७ परमार ८६ परम्बूर ९९ परवार ३९६, ४०४, ४१५, ४२३-६ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८. जैनशिलालेख-संग्रह परान्तक ५२ पायण्ण ३४३ परिसय २६६ पायिम्म ७८,८१ पर्नेयूरनाडु १७९ पायिसेट्टि २५४ पर्वतमुनि २२४ पारिसदेव १७९ पलसिगे ८२ पारिससेट्टि २१९.२० पल्लव ११.२, ३८, ९३, ३५४ पाश्र्व १२०.१ पल्लवपेनिडि ११५, १२० पार्श्वदेव ३८४ पल्लवरैयन् १६७ पावदेवी ३३६ पल्लवादित्य २३ पालियड ९६ पल्लवेलरस १८, २० पालैयूर ३५४ पल्लिका १९० पाल्यकोति २२७ पल्लिच्छन्दल ३१७ पाल्हण १९६ पल्लीवाल ३९५, ४०१ पासकीर्ति ४०४ पसिडिगंग २६ पिट्टनुप १५१.२ पहाड़पुर ६ पितल्यागोत्र ४२७ पंचस्तूपनिकाय ७-९ पिरियमोसंगि ७६-७ पाटणी गोत्र ४२५ पुगलोकरनाथनस्लूर २५५ पाटशीवरम् २०८ पट्टय ३५३ पाण्डय २७, ३८-९, ७४, १०५, पुणिस १४७ २५३, २५५, २६१, २६४, पुण्ड्रवर्घन ७, ९ २९९ पुतडिगल ६३. पाण्डपप्परस ३१९.२० पुत्तिगे ३२७, ३४१ पाण्डयरस १८३, १८५ पदुप्पट्ट १४१ पानूगल १४८, २१४ पुनागवृभमूलगण ८०, ८१, १८६ पान्थिपुर १८६ पुषाद १७, १८, २८, ५४ पापडीवाल ३९६, ३९८, ४११ पुरगूर ८५ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८१ नामसूची पुरिकर ११३, ११८, २५४, २६५ पेण्डरवाचिमुत्तम्वे २१७ परिगैरे २५, ११२, १७२ पेहगालिडिपर्क ६७, ६९ पुलिगेरे ९०, ९३, १०३, ११०, पेनिकेलपाडु २१ ११२, ११७, १२०,२५४ पेनुगोण्ड ३४४-५, ३६३, ३६६ पुलवरणि ३८४ पेरियनक्कनार् ४१ पुल्लिऊर ११-२ पेरियवडुगणार् ४१ पुष्करगण (पुष्करगच्छ) ४००, पेनकिल २७ ४०४, ४१०-१२, ४२० पेजिगदेव ३५४ पुष्पदन्त ९६, १७५, २१४, २१६ पेरूरु ८५ पुष्पनन्दि ३८० पेरेर १२ पुष्पसेन ८८-९, १७५, २१०, पेमि १५२ २१४, २१६, ३३६ पेर्म १५१.२ पुस्तकगच्छ ११४, १२६, १२९, पेमण २३८, २४४ १३३-४, १४८, १६४, १७०, पेाडिबसदि ११२ १७३, १७९, १८२, २२५, पेनिटि ९३,१०५ २४६,२४९, २६६.७, २७२, पेयल ८९ २९४-५, ३३५, ३६०, ३६३ पेवय्य ३४८ पूणुससेटि २०५ पोगरियगण ३९ पण्डि ३६७ पोतोज ३८० पूर्णतल्ल १८९ पोन्निनाय ३६७ पूलि ७९-८२, १५०.२ पोन्नगुन्द ८५, ११२ पृथियोकोंगणि १७, १८,२० पोन्नूर १६७, २६४, २८९, ३४६ पृथिवोदेशराहि २४ पोम्बुच्च ३१५ पृथ्वीकोंगाल्व १३३ पोयसण ( पोयसल) ९५, १५४, पृथ्वीराज १८९, १९०, १९६ २११, २७० पृष्ठिमपोतक -९ पोलेग ७६ Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८१ जैगशिलालेख संग्रह पोसवूर ७६ प्रतापकीति ४००, ४०२-३, ४०५. ६, ४०९-१०, ४१६ प्रथमसेनबसदि ३८९ प्रभाकरदेव २५४ प्रभाकरसेन २९४.५ प्रभाचन्द्र ५४, ५८, ६०, ७०, १३३-४, १४०, १५४, १५७- ८, ३००, ३६१, ३८० प्रमलदेवी ३५४ प्रमिसेट्टि ३८१ प्रवरकोति २२२-३ प्राग्वाट १९१, १९६ प्रोल १४२-३, १४५ बघेरवाल ३९६,३९८-४०३,४०५ ७, ४०९-१०, ४१२, ४१४, ४१६, ४१९ बट्टकेरे १०८, ११०, १४८ बडोदा ३८५ बण्डुवाल ३१५ बदनगुप्पे २८, ३० बदमोर ३०७ बद्देग ५३ बषनोरा ४२० बनदाम्बिके ३४३ बनवासि ८५, ११४, ११६, १२०, १२४, १४८, १५५, १५७, १९८, २०४, २१४, २७६, २८१, २८९.९०, ३९० बन्दलिके ४४ बप्पयराज १८९ बमण्ण ६९, २३२ बम्बई २०९, ३२७, ३८६-७ बम्मगवुड २६४ बम्मय्य २८३ बम्मम्वे ३६९ बम्माचारि २१० बम्मिसेट्टि १०८, १५२, १६४, १७०, २०७, २२६ बयिचिसेट्टि ३७७ बर्मदेवरस १२१ बर्मनन्द ३६८ बलगारगण १०४, १०९ बलगारवंश २९४-५ बलगेरि १७८ बलदेव ७१, ९१, ९३, १०२, १९९, २३९, २४५, ३९० बलभद्र ५०.२ बलात्कारगण १०७, ११२, १५३, २२९, २५८, २७०, २७२, २७८, २८८, २९९, ३०६, ३१००१, ३१५, ३९६-७, Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची ४००-५, ४०७-१२, ४१४. बादंमट्टि ३७१ २३, ४२५-८ बान्धवनगर २५० बलिकुल ६१-२ बाबानगर १८२ बलेयवट्टण १६४ बायिसेट्टि ३२९ बल्लस्य १९९, २०० बारकूरु २९९,३२२, ३२६, ३४१ बल्लाल १३१, १३७,१५४, १९८, बारलो १ १९९, २००,२०२-४, २०७, बालचन्द्र ५८, ६०,७०, ८०.१, २०९-१८, २२०, २४९-५०, १३४, १४८, २०४-५, २०७, २७०, २७३, २७६-७, ३३५ २१९.२०, २२७, २४२-३, बल्लिग्राम ( गावे ) २७६-७, ३८९ २४८, २६०, २६३, ३६३, बसरूर ३०६ ३८०, ३८३ बसवदेव २८१-२ । बालप्रसाद ४७, ५२ बसवपट्टण २६६ बालूर २४९, २५७, ३४८ बसविसेट्टि १०८ बालेहल्लि १७०, २७९, ३७२ बस्तिहल्लि १६७, २५६ बासबे ७१ बहादरपुर ३९५, ४०३ बासवुर १२५, ३८९ बंकापुर ४४, ३७२ बासिसेट्टि १८१ बंकेयरस बाहुबलि १२६, १२९, १५०, बागियूर ५४ १५२, २१९-२०, २५२-३ बाचण्ण ३०९ बाहुबलिकूट १५५.६ बाचय्य ९४ बिजापुर ४५. २५५, २७६ बाचवे २३१ बिजोलिया १८८ बाचिगावुण्ड १४९ बिज्जण १३६, १८२, १८६-७ बाचिसट्टि २७५ बिज्जल १५१.२, १७८.९ बाय २६. बिटिसेट्टि ३११ बादच्य ३७८ बिट्टय्य ४४ Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८. बनशिलालेख संग्रह बिट्टरस १८७ बिट्टिदेव १५४, २११, २७० बिट्टियण ३६२ विडक्क ७१ विण्डिगनवले ५५ बिदिरूर २६८, ३०९-१० बिदुरे ३२०, ३३६-७, ३३९.४० बिरणंतर ३२६ बिलगोण्ड १२६-७ बिलपाणसेट्टि १६४ बिलिगि ३२०, ३३५ बिलिगिरि रंगनबेट्ट २०९ बिलिचाग्राम २५३ बिल्लमनायक ३८२ बीचगवुड ७४.५ बोचण (बोचिराज) २३८-९, २४३.६, २४८-९, २५४ बोचिसटि ३८३ बोरण १३९-४० बोरव्य ९४ बीररस १८३, १८५ बुक्कराज २७८-९, २९०, २९५ बुधगुप्त ९ बुलिसेट्टि ३०१ बचम्चे १२९ बूत १२३, १२५ बूतय्य ५३ बूतुग ५८, ६०, १०४, १०९ बूपोज ३६० बुवनहल्लि ७. बंगूर ४२ बेचारकबोमलापुर ७४ बेट्टकेरि ३४० बेट्टिसेट्टि ३८१ बेन १४२-५ बेन्नेवुर ९८ बेरिसेटिट ३८० बेलगामि २१७, २७६, ३७०, ३८९ बेलगांव ४२, २३६, २४३, २४९ बेलगुल २२७, २६७, ३२५ ६ बेलतंगहि ३१४ बलप्प २७९ बेलूर १३०, १४७, १७५, २०७, ३४४, ३४६ बेलगलि ८५ बेलदेव ९१, ९३, १०२ बेल्लट्टि ५६ बेल्लुम्बट्टे ३८२ बेल्वत्ति १५२ बुश्शेट्टि ३२९ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८५ बेल्वल ७९, १०४.६, १०९-१०, बोम्मम्बे २२९, २६६ ११२, १७८, २१४ बोस्मिसेटि २६०, २६६, २७७, वेल्योल ९०, ९३, १०३, १२०, २९९, ३१२, ३२८, ३७१, १७२ बेहार २२८ बोयुगट्ट २७ बेंटर ३७ बोरखंडधागोत्र ४०१, ४०३,४०६, बैचण २९७-९ ४०९, ४१६ बैवय २७८, २८८ बोलगड ७८, ८१ बचिसे टि २८५.६, २९९ बोलयनाग २९३ बन्दुरु ३०८ बोसिसे ट्टि १०८ बराट ३८८ अमदेव २२६ बैगमक्षेत्र ४१६ अहदेवण ३६४ बहरु ९३ ब्रह्म २५०, २९..१ बोगगाण्ड ३८४ बोगाडि १९८ ब्रह्मजिनालय १५२, १५७ बोचुवनायक ३८४ ब्रह्माधिराज ९३ बोप्पगोड ३७५ ब्रिटिश म्यूजियम २७, ३८७ बोपदेव १५६, २५० मटकल ३००, ३३५ बोप्पय २९६ भट्टाकलंक ३१६, ३३५, ३३८-९, बोप्पिसे ट्रि १०८, १६४ ३४२ बोप्पेयब्बे १८३ भट्टिदाम ६ बोप्पेयवाड १३८, १४० भद्रबाहु ९६, १७५, २१४, २१६ बोम्मक्क ३५६ भद्ररायि १५७-८ बोम्मग्ण ३६८ भद्रेशर ३८६, ३८८ बोम्मरस ३३७ भरत ७३, १५५-६, २७२ बोम्मरसेट्टि ३१६ भरतपुर १७४,३८५ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ जैनशिलालेख-संग्रह भरतिमम्य १७० भूलोकमल्ल १५३, १५७-८,३९० भरतिसेट्टि २१४ भैररस ३१३ भंवर गोत्र ४०४ भैरवदेव २६५ भागिणब्बे ७९, ८१ भैरवपुर ३१५ भागियब्बे ४०.१, ९५ भैरादेवी ३.. भानुकोति १२९, २५०, २७२, भोगदेव २०८ ३७९ भोगराज २७८ भानुचन्द्र ३९८ भोगवदि १९९-२०० भानुमुनीश्वर ३२१, ३२६ भोगवे ११४ भालेपालबन्दप्प ३३०.१ भोगादित्य ९८ भावचन्द्र १९७ भोज ८६, १३६-७ भावनगन्धवारण ८५ भोसले ३९४ भावसेन ३८० भोसे ३७० भासगवुण्ड ३६२ मगर कारगरस १५७ भास्करनन्दि ११३ भिल्लम १३७,२१३ मणलकुल ११२ भीम ६७ मलिमनेओडेयोन् २६ भोमदेव ९७.८, २२१-२ मणलेर १७२ भोसो ३९५, ४११ मणिचन्द्र ४२ भुजबलमल्ल १८६ मण्टूर २२९ भुरा गोत्र ४०० मण्डलकर १९२, १९७ भुवनको ति ३९७-८, ४२८ मण्डालगेरे ८५ भुवनकमल १०२-३, ११०,११२. मण्डलोई ३३८ ३, ३८९ मण्णे ६९ मुबलोकनाथनल्लूर २६१ मतिबीर ३४० भूतबलि १७५, २१४, २१६ मतिसेन ९९ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मतिसागर ३५४ मत्तावार ९९, २९२, ३५३ मत्तिकट्टि ९९ मथुरा ५, ६, ७२. ३८६ मदनसेन २९४-५ मदनूर ६८ मदमसैष्टि ३१८ मदविलंगम् १३० मदिरं ३९ मदिरकोण्ड ५२, २५१ मदिसागर २५५ मदुवण १८६ मदुवरस ३०१ मद्दहेग्गडे ३२१-३, ३२५-६ मद्रास ३६४ मधुकण्ण २५६ मधुर ३९१ मनगुन्दि २५१ मनोलो २२७ मनोविनोत १८ मन्तरबर्मण १२१ मन्तगि १८६, ३७२.३ मन्त्रचूडामणि ९५ मन्नेरमसलवार २६५ मम्मट ४६, ५०-२ मयिलिसेट्टि १०८ मामसूची मयूरवर्मा १५७ मरकत ३२७ मरगोंड ३७७ मरवोलल ७६ मरसे २३३ मरिनाग ३५०.३ मरियाने १३१, १५५.६, १६९ मरुत्तुवाकुटि १२१ मालजिन २९२ मक्लयरस २८० मरोल ७५ मलघारिदेव १३०, १७०, १८२, २२८, २४५, २४९ मलयकुल ६३ मलयन ३३४ मलबसेट्टि २२६ मलेय २२५ मलेयालपाण्डय २५८ मलयन कोविल ३६६ मलयन् मस्लन् १६० मल्ल २५४ मल्लगाकुण्ड १०१.२ मल्लप ६४, २८७ मल्लस्य १०७, ११० मल्लबल्ल २६ मल्लवादि ३५.६ Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ जैनशिलालेख संग्रह मल्लम्वे १०८ महाभोज १५९ मल्लि २६८ महामद ४ . मल्लिकामोद २१७, २७६-७ महामेघवाहन २ मल्लिकार्जुन २३७, २३९, २४३-४, महालक्ष्मी २९१ २४६, ३०८ महावीर ४२ मल्लिगुण्ड ३७३ महीचन्द्र ४२७ मल्लिगोड ३६० महीधर १९२, १९७ मल्लिदेव ३८३, ३९० महोशबुद्धिक ८६ मल्लिभूषण ४२९ महेन्द्र ३८-९, ४६, ५२-३ मल्लिमय्य १६७ महेन्द्रकीति ७१ मल्लियका २२६ महेश्वर ३२८ मल्लियण्ण १५८, २१७, २७६-७ । मंगभूप ३०२-५, ३५५-६ मल्लिराय ३०० मंगराज २९८ मल्लिसेट्टि ८२,१०८,१५३, २६०, मंगलिवेट १८२ २८२, ३१६ मंगलूर ३२२, ३२६, ३४१ मल्लिसेन (मल्लिषेण) ९९, १२७, मंगियुवराज ६३ माकण २१४.५ १७५, २१४, २१६, ३७०, माकनूर ३७५ ३७६ माकव्व ७४ मसुलिपट्टम् ६३ मागुण्डि २५० मस्को ७५ माघनन्दि २२, ५८, ६०, ९८, महाकौति २८४ १५०, १५२, १६६, २०४, महादेव २५८-९ २०७, २२९, २५८, २७१-२, महादेवी ७६ २७४, २७८, ३७५ महादेविसेट्टि २२६ माच १७६ महानागकुल ३२९ माचम्बे १२५ Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची माधियण १७६-७ माचिराज १८३, १९८, २०० माचेल २४ माणिकदेवो ३०५ माणिकसेटि १००-१, २८५-७ माणिकसेन २०९, ३९७-८, ४०२, ४२० माणिक्यतीर्थ १५२ माणिक्यनन्दि १०४, ११० माणिक्यभट्टारक १८२ माण्ड ३०६ माथुर संघ १९५,१९७ मादरम ३७४ मादलदेवी २६६ मादलंगडिकेरि ३४० मादवे २५८, २६३ मादय २६३ माधव २८७ माधवचन्द्र १५४,२३३-४,२४२-३, २६६, २६८, ३७२ माघवनन्दि १५९ माधवमहाधिराज १०, १२, १७, मानलदेवी १६० मानसेन २९९ मावलरसि ३०३, ३०५ माबाम्बा ३५५ मामटा १९२, १९७ मायण २९४.५ मायदेव २६३, ३७० मायसेट्टि २९९ मार २९२ मारगोड १८५.६ मारदेवी २८३ मारब्बेकन्ति ६९ मारमय्य ७० मारय ३८० मारवर्मन् २५५, २६४ मारसिंह ५३, ५४,५९,८९, १०९, मारिसेट्टि १८१.२, २१४ मारुगोटेरर् १९, २० मारूरु ३३६ मारेय २१९-२० मार्तण्डव्य ८२ मालकोण्ड १ मालवे २२५ मालवंगडे २७७ मालियम्बरसि ३५५-६ २० माधवर्मा १०, १४४४.५ माधवसेट्टि १०८ माध्यमिका १ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० मालेले १३२ मावलि २३३ मानिकेरे २२५, २९७ मावीरन १६७ मासवाडि ७३ मासादि १३१ मासेनन् ५२ मिरिजे १३८०९, १६४ मोचारमागाणे ३२७ मुकुन्ददेव ३७८ मुक्कुडयार्] १४५ मुगद (मुन्द ) ८२ मुच्छण्डि २१५.६ मुडासा ३९६, ३९८ मुडिगोण्डम् १३३ मृत होसूर २९९, ३५८ मुत्तुपट्टि २२ मुत्तोरुकूरम् ३१८ मुद्दगावण्ड १००-१, ३६२ मुद्दगौड ९६, ३६० मुद्ददण्डेश्वर ३९१ जैनशिलालेख संग्रह मुहसावन्त २५० मुनिगिरि ३४७ मुनिचन्द्र ( मुनीन्दु ) ५९, ६०, १२२, १८६, १९१, १९७, २२७, २५०, ३२३-४, ३२६ मुनिभद्र १५५०६, ३३६ मुनिवल्लि २२७ मुनु गोड २७, ३८२ मुम्मुडिचोल ६२ मुल गुन्द ८५, ९०-१, २६०, ३०१, ३४३, ३७९ मूल्कि ३६४ मुल्लभट्टारक १५३ मुष्कर १७, २० मुंजराज ४६, ५२ मुंजार्य ५४ मूगूर २७२ मूडगेरि १०४, १०९ मूडबिदुरे ३१३, ३२०, ३२६-७, ३३९-४१, ३४७, ३६७-८ मूलपल्लि ३९ मूलराज ४६, ५२, २२० मूलवसतिका २२१, २२३ मूलसंघ ३५-६, ३९, ४३, ७२, ८४-५, ९२-३, ९६, ९८, १०४, १०९, ११२, ११८, १२०, १२६, १२९, १३३-४, १४०, १४८-९, १५३, १५७८, १६४-५, १६७, १७१, १७३, १७९, १८२, २०४, २०७, २२४, २२५, २२७, Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मामसूची २२९, २३३-४, २४६, २४९- मैललदेवी ८५, १५१.३ ५३, २५६, २५८-६१, २६५- मलाप अन्वय १५३ ७०, २७२, २७६, २७८, मैलुगि १७८, १८२ २८८, २९५-६, ३००, ३०६, मैसुनाड २१५-६, २८३ ३१०.१, ३१५, ३१७, ३२१, मैसूर ३४९-५३ ३२६, ३३५.६, ३४०,३५९- मोटेबेन्नूर ४०, ९८, २७५ ६०, ३६३-४, ३७०, ३७३, मोदलियहल्लि १७० ३७५-६, ३७८.८२, ३९६. मोनभट्टारक ४२ ४२९ मोरक कुल ७६ मोरब ९५ मूलिगतिप्पय २६६ मृगेश १३-१५ मोरासरी १९०, १९६ मेघचन्द्र ५८, ६०, ९६, १३३-४, मोसल १९१, १९७ १४०, १५५-६, २४९ मोसलेयकुरुवु ३१६ मेघनन्दि २५० मोसलेवाड २६५ मेडता ३८७, ४०३ मोहनदास ३४१, ३४३ मेण्डाम्बा ६६, ६८ मोगामा ३८७ मेलपराज ६६, ६८ मोनपाचार्य ३५७ मेलपाडि ५३ मोनिदेव १५०, १५२ मेलरस १४४-५ यलवट्टि ३६३ मेलम्बे २६० यशःकोति २२१, २२३, ४०२-३ मेलाम्बा ६४ यशोनन्दि ५७ मेलुसान्तलिगे १८३, १८५ यशोराज १८९ मेषपाषाणगष्ट १५७-८, ३७५ यशोवर्मन् ८६ मणदान्वय २६८ याकमम्बे १४२-३, १४६ मेलम १४३, १४५ यादव २५१, २५४, २५६.९, Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९३ जैन शिलालेख संग्रह २६३, २६५, ३८९.९० रत्नकति २६१, ३१०, ४०३-४, यापनीय संघ ४२, ८०, ८१, ९५, १२२, १५०, १५२, १५३, रत्नगिरि २१, ३४४-५ १८६, २२७, २६६, २७५, रलचन्द्र १९७ ३७६, ३७७-८ रत्ननन्दि २०४, २०७ याप्परुंगलक्कारिग ३९१ रत्नप्पोडेय ३१४ यावनिक ११-२ रत्नभूषण ३७७ यिवल्लिग्राम ३२९ रत्नापुरि २६७ योपलदाल ३३२-३ रवि १३-१५ येचिसेट्टि १०८ रविचन्द्र ५४, १२५, २५८, २७१ येडेहल्लि ३३०-१, ३३३ रविनन्दि ५४ येरगजिनालय ३६४ रससिद्धुलगुट्ट २०, ७२, २२६, येलबगि ३७३ २९३ रंगनबेट २१० योजणसेट्टि २८२, २८४, २८६-७ रंगप्पराज ३४४-४५ रक्कसगंग ५९ रंगरम २५६ रघु १३ राइकवाल ३९५, ३९७ रघुवर, रघूजी ३९४, ४१५ राधमल्ल ५८, ६०, १०९ रट्टगुडि २४ राचय ७१ रजिनालय २४०, २४३, २४६, राजकीर्ति ४०५.६ २४९ राजकेसरिवर्मन् ५६, ९९, १४० रदृवंश १२८, १३२, १५३, १८५, २३५, २३७, २४३, २४५, राजगावुण्ड १००-१ २४९ राजदेव १६८.७१ रणकि १२३, १२५ राजदेवी १८९ रणपाकरस २६ राजपाल ४०. रणावलोक २८, ३० राजभीम ६४-५, ६८ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची राजमार्तण्ड ६४ राममेट्टि २८५ राजराज ७४, १७८.९, २८०, रामसेनान्वय ४०५.६, ४११, ४२७-८ राजलदेवो २५४ रामी ७-९ राजव्वे १७६, ३७५ रामोज ३७४ राजाधिराज ११० रायगोड ३६० राजि १२०.१ रायगुग २७८, ३७८ राजिमय्य ११९ रायपाल १५९-६०, १६८-७१ राजेन्द्र ७५, ७८ रायबाग ७७, २३५, ३३६ राजेन्द्रशोलचेदिराजन् १२७ रायरसेट्टि ३८० राणिवेण्णूर ३७ रावदेवो १११ रामकोति ३९९, ४१६ रावसेट्टि १६४ रामक २८२, २८४-७ राष्ट्रक्ट १५-६, २८, ३०-२, रामचन्द्र ८१-२, २६३, २६५, ३६-७, ४२, ४४, ५०.१, ३१५, ३८९, ४२५ ५३-५, ६४, १०९, १५९, रामटेक ३९५, ४०४, ४०७, ४२२ १७२, २४३, ३९४ रामण १८६, २८२, २८६ रासलदेवो १८९ रामतीर्थ ३८१ राहक १९१, १९७ रामदेव २६५, ३३९ रुद्रपाल १६. रामनाथ २६५ रूगि २३५ रामनायक ३१० रूपनारायणबसदि १६४-५ रामपुरम् ३८१ रेचस्य ७१,२५० रामप्प ३१३ रेवरस ३८४ रामराज ३१९, ३२२, ३२६ रेचिदेव १०८, ११० रामब २८६ Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनशिकाल-संग्रह रेवकनिर्मडि १०४, १०९, १५१-१ ललितकीति २२२-३, २२५, २९५. रेबकम्बरसि ७६ ६, ३१९, ३५४-५, ३७९, रेवणम्य ११२ ३८२, ४०३ ललिता १९३, १९७, ३६८ रेवणाग्राम १९०, १९६ लाषक ६ लकवरपुकोट २८७ लाटीय मण्डल ३४ लक्कुण्डि ७३, २०८, ३७५, ३८२ लाडबागडगच्छ ४००, ४०२-६, लक्ष्मट १९१, १९६-७ ४०९-१०,४१४, ४१६ लक्ष्मण १९२, १९४, १९७ लाडोल ३८५-६ लक्ष्मप्परस ३१३ लातूर ४२६ लक्ष्मरस ९८, १०३, १०५.६, लालाक २ ११०-३, २३६-७, २४४ लिंगण्ण ३३०-१ लक्ष्मादेवी १७८,२११ लोकटेयरस ४४ लक्ष्मी १९३, १९७ लोकाचार्य २९१ लक्ष्मीदेव १३२, २३६-७, २४४ । लोकाम्बा ६५ लक्ष्मीधर ३९१ लोकिकरे ३७७ लक्ष्मीमाणिकदेवी ३.३ लोक्किगुण्डि ७३ लक्ष्मोसेन २९४-५, २९९, ३४४.५, लोढा गोत्र ४०३ ४०१,४०५-६,४१४, ४२०, लोलाक १९२-५, १९७ ४२७.८ लोहाचार्यान्वय ४०४-६, ४१० लक्ष्मेश्वर ५४, ११२.३, ११५, वकग्रीव १७५, २१४, २१६, २८८ १५८, २६५, ३००, ३१५, वण ९५ वनदेव २५१ लखनऊ १७४, १८०,३८६,३८८, वचनन्दि १७५, २१४-६ बर्षासंग ७५ लन्छियम्बे ३१८ लन्छलदेवो १७९-८२, १८६ बटगोहालो ७, ९ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वटेश्वर ९८ बडुख ३ वण्णमय्य ३८९ वमिरिमलैयन् ७५ बरगुण १६, ३७-८ वरलाइका तीर्थ १९३, १९७ वरांग ३०६, ३१४-५ वरुण ६९, २६९ वर्षमान २८, ३०, १०४, ११०, १२८, १३४, २०८, २५१, २५८, २७०-१, २८८, ३०६, ३३७, ३६५ वलभो १९० वलयवाड १३८, १६२ वलुवामोलि ७५ वसन्तकीर्ति २९९ वसुधाकर ३७४ वस्तुपाल १९० किकातट ३५ नामसूची वाक्पतिराज १८९ वाग्देवी २३८, २४५ याच २५४ वाचय्य ३८० वाजसेन २०९ वाजिकुल ७३, ३९१ ७३५ वाणकोवयर् ४१ वादिचलम ५४ बादिराज ५९, १२८, १७५-७, २१४, २१६, ४०५ वादिराजुल २३ वादीभसिंह १७६ वामनन्दि ३७० वायड ९७ बालनागम ३३९ वावणरस ७६, १७२ बासल गोत्र ४२६ वासियण्ण ३८३ वासुदेव ४६, ४८, ५२, २२४ वासुपूज्य १५३, १७२, १७६.७, २१५-६, २५८, २६३, २७१ बाहिल ७५ विक्रमचोल ८२, १५८, १६० विक्रमपाण्डय २६४ विक्रमपुर ८४०५, १२१ विक्रमराय ३९२ विक्रमादित्य १६, ६४, ७४, ११३, ११५, १२०, १२२, १२६, १२७, १२९, १३४, १३६-७, १३९, १४५, १४८, १८२, २१२, ३९० Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ विग्रहराज १८९-९० विजयकोति १८६, २९३, ३१६, ३३५, ३९८-९ विजयक्का ३६१ विजयगण्डगोपाल २८९ विजयण ६९, २५६ विजयदेव ४०४ विजयनगर २७८-९, २८७-८, ३००, ३०५, ३०८, ३१३-४, ३१७, ३१९, ३२६, ३३९, ३४७ जैन शिलालेख संग्रह विजयनायकर ३१७ विजयवाटिका ६७, ६९ विजयशक्ति २६ विजयादित्य २५, ६४-६, ६८, १५३, १८५-६ विजयानन्द १५-६ विजयालयमल्ल ७८ बिजो ५७-८ विट्टरस २६ विटुप्पनायक ३२७ विठगौड ३७३ विडालपरु २६४ विणैया भशूर २५१ विष्णकोवरंयन् ७५ विदग्धराज ४६, ४९-५२ विद्यागण ४०६ विद्यानन्द १०४, ११०, २५८, २९३ विद्याभूषण ४०० -१, ४०५, ४०९, ४११, ४१४, ४२२-३ विनयचन्द्र २६५ विनयसेन ३९ विनयादित्य १५४, २०२, २११, २७० ९५-६, १००-१, विन्ध्यराज १८९ विन्ध्यवल्ली १९२, १९७ वियंगबरमैय ३४९ विरिसेठि १ विरूपय ३८० विलप्पकम् ५२ विलशार १५८ विल्लवडरेयन् २७९ विशालकीति २७८, ३११, ३२६, ४०७, ४०९, ४१०, ४२४, ४२६ विशेयनल्ल्लान् ४१ विश्वसेन ४०५ विष्णुकलम्बुरु ३६७ विष्णुगोप १०, १७, २० विष्णुवर्धन २७, ६३-४, १३३०४, Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७, १५६, १७६, २००, २०२-३, २११ वोगडि १९१, १९७, वीन १९७ वीरकागाल्य १३३-४, १४० वोरगंग ९५, १३३, १४६, १५४, २००, २०४-५, २१४ वोरनन्दि ५३, ९३, २०८, २५२-३ २५८, २७१ वोरनोलम्ब ११५-६, १२० वोरपेर्माडि १५३ वीरपोष्डेय ३२० वीरबलंज १६३, १६५, २४० वोरभैरव २९९ वीरम ११४, ३२० नामसूची वीरराजेन्द्र ९९ वोरसंघ ३३८ वीरसान्तर ८७-९ वीरसेन २०९, २३५, २९३, २९५, ३३०-४, ३४४-५, ४२५ वोराम्बुधि ३९२ वोरेश्वर ३६५ वोर ३१४ राम १८९ बोसल १८९ वृक्षमूलगण १२२, ३७६ वृषभ २१ वृषमनन्दि २०४, २०७ वृषभसेन गणधरान्वय ४०१-२ वेडल ५६ वेर्णागि १२८ वेणुग्राम ( वेणुपुर ) १३२, १३७, २३९-४१, २४६ वेणेगाव ३४७ वेबुनाडु २२ वेमुलवाड ५३ वेम्वलनाडु १४५ वेरावल २२० वेलनाडु ६६, ६९ बेलि ६३ बेलूर ३८१ 880 बेलूर बोम्मनाक ३१७ वेल्लप्रभाटिका १५९ बॅगो ६३, ६५, ६८, ९० बेखर ७२ वैज १४२, १४५, २३९, २४५ वैजयन्ती १३ वैयप्प ३१७ श्रवण १९१, १९६ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ जैन शिलालेख संग्रह वोजणसेट्टि २८६-७ व्याघ्ररक १९१.६ शक १२९ शंडयापार २७ शण्ब ३१७ शमणर तिडल् ३६६ शम्बुदेव २२९ शम्बुवराय ३६७ शर्कर ३४६ शशकपुर २०१ शंकरगण २९ शंकरदेवी ३१७, ३२६ शंकरसेट्टि ३२६ शंखजिनालय ५५, २०१, ३००, ३१५-६ शंखणाचार्य ३१८ शंखदेव ३८२ शाकम्भरा १८९ शान्तदेव २१४, २१६ शान्तर १३६, १८३ शान्ति १२०-१, १६१ शान्तिमाम २२४ शान्तिदास ४०५ शान्तिदेव १७५, २१४, २१६, शान्तिनन्दि ९८ शान्तिनाथ ३७४ शान्तिभद्र ४८, ४९, ५२ शान्तिमुनि १२८ शान्तियवक १५३ शान्तिवर्मा १३, ९१, ९३ शान्तिवोर ३७.८, ३७७ शान्तिसेट्टि १६४, १८१, ३७४ शान्तिसेन ४१३ शाबल ३६३ शावड २२८ शास्त्रसारसमुच्चय २५९ शाहजहां ३४०, ३४३ , शिग्गांव २५ शिरसय ३५३ शिरूर ३७६ शिलाश्री १६१ शिलाहार १३५, १३८.९, १६२, १६५-६, १८५ शिवकुमार १८, २० शिवडूंगर ३१० शिवनहसेट्टि २२५ शिवपुरी ३४१.२ शिवमार २६ शिवराम ३१९ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिवरामय्य ३०० शिवसिंह ३९६ शिगणार ४१ शिगिकुलम् २५५ शीतलप्रमादजी ३९३ शुभकीति ७२ नामसूची १३१, १५०, शुभचन्द्र ५७-८, १५२, १६७, २४०, २४३, २४६, २४९, २५८, २६८, २७१, ३१०, ३६१, ३९९ शुभतुंग ३१ शुभंकर १९१, १९६ शृंगेरी १७३, १८१, ३१६ शेडबाल १७४ शेरगढ १६१, २३५ शेंगा ट्टिक्के १४५ शेंबादि २७९ बियन बोलाणान् १६७ शैनियम्मण कोयल ३१७ पणन अरे २१० श्रवणनहल्लि १३३ श्रवणबेलगोल ३३५ श्रावकाचारसार २५९ श्रीकीर्ति १९७, २२१-२ श्री चन्द्र १५४ श्रीधर ४३, २५८, २७०-१, ३६७ श्रीनन्दि ११३ श्रीपादरस ७६ श्रीपाल २२, १६१, १७५.७, २१४, २१६, २६९ १३९ श्रीपुरुष २६ श्रीभूषण ४००, ४०३, ४०५ श्रीमाल १९०, ३९६, ४०१ श्रीयम्म २६ श्रीयादेवी १८० श्रीरंगपट्टम् ३४३ श्रीवल्लउदण ३६७ श्रीवल्लभ १८, २०, ३९, १८५ श्रीविक्रम १७, २० श्रीविजय २९, ३०, ६१-२, १७५, २१४, २१६, २५४ श्रुतकीर्ति ५९. ६०, १६४-५१७५, २५८, २६७, २७१, ३३५, श्रुतवीर ४२० श्वेतपद ८६ सकलको ३९७-८, ४०५, ४१४ सकलचन्द्र १०२, १०७, ११०-१, ११४, २५१-३, २५७, २६८, ३६३, ३८३ सकलभद्र ३६४ सकललोकाश्रय २४ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० सक्करेपट्टण २९३ २९९, ३५७ सणमल्लीपुर २६२ सलिंग ७६ सत्यण्ण ३७४ सत्यवाक्य ५४, १४० सत्यवेगडे २३०-३ सत्यसेन ६ जैन शिलालेख संग्रह सर्व ३३ सर्वदेव २५६ सर्वर १५९ सर्वलोकाश्रय २७ सत्याश्रय २५, ६३, ७३, ७६ सदाशिवनायक ३२२, ३२६ सदा शिवराय ३१९, ३२२, ३२६, ३४७ सप्तरस २६३ सब्बि ९५, १४२, १४५ समणरमले ७२ समन्तभद्र २६३, ३३०-२, ३३४, ३३६, ३३९, ३४१, ३४४६, ४०१ सम्यक्त्वरत्नाकर ८२ सबिमार ३८० सरटूर १०२, २६० सरणसेट्टि २८६ सरस्वतीगच्छ २७८, २८८, ३०६, ३१०, ३९७, ४० ०-४, ४०७, ४०९, ४१०-२, ४१४-२३, ४२५, ४२७ सलन २०१ सल्लक्षण ३ सवर १५२, २२८ सवाईजयनगर ३९५, ४१५ सवाईराम ४२३ सवाईसिंगई नेमलालजी ३९३ सहस्रकीति ३७३, ३७९ समट २५५ संकष्ण ३३४ संकिसेट्टि १०८ संस्वग गोत्र ३९९ संगनृप ३०३-५ संगप २८६ संगमदेव २८७ संगिराय ३००, ३०८ संगीतपुर ३३५, ३३८-९ संगूर २५९, २८७ संग्राम ३४१ संघय्य सेट्टि ३३७ संजालपुर ३९५, ४०४ बिसेट्टि ३८० Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसूची संसारमीत २४ सागरकट्टे १२८ सागरसेन २३५ सातव्य ११४ सातानिकोट २४ सातिपेद्द २०८ सातोज ३७४ सान्तर ८७, २९९ सान्तलदेवी ३५५.६ सान्तलिगे ८७, ११६, १२०, १५७, १८३, ३९० सान्त औवे ३५८ सामन्तणयसदि २३२ साम्भर १९६ सायिगड ३७२ सालिग्राम २२६ सालव ( साल्व ) २६३, ३२७, सिटवडवन् ६२ सिदान्तयोगीन्द्र २६४ सिद्धान्तसार २५९ सिन्दकुल ९३, १८७ सिन्दनाडु २६ सिन्दनप ९१ सिन्दय ७० सिन्दरस ७६, १२१ सिन्दिगे ९८ सिरसग्राम ३९५, ४१६ सिरसंग १४९ सिरिणदि १०२ सिरियण्ण २१७, २७७ सिरियम्मगोड २६१ सिरियन्वे १८१-२ सिरियादेवी १५१.२, २२७ मिरोही ३८५, ३८७ सिमलगेगूरु गण २८, ३० मिवनी ३९५, ४२५ सिंगनन्दि २० सिगिसेट्टि ३७६ सिंगेय ३७६ सिंघट १८९ सिंघल १८६ सिंहण (सिंघण ) २५१, २५४, सालूर ( सालियर ) १५७, ३५६ सावन्तपण्डित २६५ सावरगांव ३९५, ४२७ सावला गोत्र ४१३ साविकरि २७९ सिग्गलि २५४ सितनवासल ३९ सिदवसयदेव ३२०. Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बैनशिलालेख संग्रह सिंहनन्दि ७४, १७५, २१४, सेट्टिगोड ३२९ २१६, २८८ . सेजिंगकोतलि १७४ सिंहराज १८९ सेणिसेट्टि २८९, ९. सिंहविष्णु ११-२ सेतु ३२९, ३३७ सिंहदूरगण ३७ सेन अन्वय ३९, ९२-३ सोम्पाल्वायगर १९, २० सेन गण ८४.५, १०७, ११८, सीयक १९१.२, १९४, १९७ १२०, २९३, २९५, २९९, सुजानराय ३२८ ३३६, ३३९, ३४१, ३८., सुन्दरपाण्डय २७, २५५ ३९६.९, ४०१-२, ४०४, सुमद्र १५९ ४०८, ४१२, ४२०, ४२८ सुभूति ४ सेननसिंग १२८ सुमति ३५-६, १७५, २१४, २१६ मेननप ( सेनविभु ) २३६, २४३-४ सुरभिकुमदचन्द्र २३२ सेनसंघ ३५-६ सुरेन्द्रकीति ४०८-११, ४१४-६, सेन्द्रक १५६ ४२८ सेम्बूर २५७ सुलोचना २७ सेवुण २१३-४, २१८ सुवर्णवर्ष ३५-६ संगोट्ट ५८,६० सूरत ३० सैतवाल ३९६, ४०७, ४२५-६ सूरसेन २९४.५ संदान्तिदेव २८३ सूरस्थ गण ५४, ७३, ९८, १०२, सोगि २०० ११२-३, १७२, २२४, २६९, सोडक ७५ ३७२-३, ३७४, ३७८ सोसियुर ७० सूर्याचार्य ४९, ५२ सोदे ३१५, ३४७ सूर्याश्रम १६१ सोन्द ३१६, ३३८, ३४२ सूलाकोमरन् २० सोनोपंडित ४०७ सेटिमहादेवी २७५ सोमदेव ५३, २५९, ३७४ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमब २९५, २७७ हनगल १८६ सोमबदेवी ७६, १८९ हनमुन्द ११२, १२६ सोमवे २८५-६ हनुमन्तगुडि ३१८ सोमसेन ३३६,४०२, ४०४,४१२ हन्दियुल २८६ सोमापुर ११३, २११, २१६ हरेमरस ३८४ सोमिदेव २१७ हम्पो २३४, २८८, ३९१ सोमेय २५९-६० हम्मिकम्बे ७९,८१, १२०.१ सोमेश्वर ८१.२, ८५, ९०, ९३. हरति ३४४.५ ४, १०२, ११०, ११२, १८२ हरसिग १९५ १९०, १९६, २०८, २८२, हरिकान्त ३७२ २८९, ३९० हरिकेसरी ३७२ सोरटूर १.२ हरिश्चन्द्र २७४ सोरव २९०.१ हरिदत्त १४-५ मोल्लम १८९ हरिद्वार १८० मोब २५९ हरिनन्दि १७२ सोवण १४६-७ हरियनन्दन २९१ मोबग्स ८२, १७२ हरियनन्दि २५८, २७१ सोविडेव १९८,२०१ हरिवर्मा १०, ४६, ५०१ स्थिरविनीत १८ हरिसेट्टि २८६ म्योमिंध ३९८ हरिसेन २९४.५ स्वरटोर ३०१ हरिहर २७८, २८७-८, ३५५.६, स्वर्णपुर ३४६ हर्षकोति ४२२ हरजण २८३ हलसंगि १८७ हत्तिमतर २५८ हलसिगे २१४ हदिनाडु १३३ हलहरवि ४५ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनमिगत संग्रह हलिगावुण्ड ३७९ । हुमच २६४, ३११, ३३७ . . हलुमिरि ३१६ हुलगूर १७२ . . . हलेबोड १५६, २३२, २५२, हलदेनहल्लि ३६१ २५८, २७३ . हलिकल (हलेकर ) २९२, ३४६ हलेसोरब २९० . हुलिकेरे (हुलियेरे ) २१४, २५९ हलेहुबलि २७५, ३५२ . २८५-६, ३१६ हमका २१० हुलियब १०२ हस्तिकुण्डो ४६-७, ५०, ५२ हुलियार १८० हस्तिसाहस २ हलूर ३८४ हम ४०० हुबह ३९६, ४००, ४०४-५ हाडुल्लि ३०८, ३३५ हलि ७८, १४९, २२६ हारिवागिलु १४६.७ हूविनसिग्गलि २५४ हानंगल १५५, १७२, १८६, २०४ विहिप्पगि ३८४. हालियसट्टि १६४ हृदुव १२३, १२५ हालगुड्डे १८३, १८५ हेण्णेगडल १४० हालोवे २६६ हेण्णगडंग १३४ हावेरि ३७४ हेमलगुप्पे ३९ हित्तिनसेनबोव २०१ हेन्बल ८६ हिरण्ययोगा ३५-६ हेमकीति ४०१.२, ४१०-२, ४१४, हिरियमादण्ण २८३ ४२२-३, ४२८ हरियमुद्दगोड १२६-७ हेमणाचार्य ३१८ हिरेचोटि २८९ हेमदेव १५८, ३०० हिरेमन्नूर १८७ हेमसूरि २२१ हिरेसिंगनगुत्ति १४८ हेमसेन २१४, २१६, ३०१ होरगुप्पे २५६ हेम्मरसि ३२७ . हुकेरी २७५ हेम्मारिसेडि १८१.२ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेरगु २७४ १५५-६, १६९, १७६-७, हेरियबासवेगरे २३०.१ १७९-८०, २००-१,२०४-७ हेमाडियरस ३९० २०९-१०, २१६-८, २२०, हेलाचार्य ३४६-७ २२३-४, २४९-५०, २५६, हैदराबाद ७६, १११, ३७० २५८-६०, २६२, २६५, हैवण ३०३-५, ३५५.६ २७१-२, २७७, २९५ हैवेनृप (भूगल) २८०-२,२८४, होरिम १३९-४० २९८, ३००, ३०२, ३२७ होलरस १८७ होरिगच्छ ८४.५ होलेनरसोपुर ७१, १४० होनण्ण २६७ होल्लराज २९४ होन्कुन्द २६० होल्लिगोड १८६ होन्नम्बरसि ३०२, ३०५ होसकोटे ९ होनभूप (होन्नरस) २९७-८, ३०३, होसनगर २१० ३५५-६ होसपट्टण २९५ होनिसेट्टि २२४ होसाल २७८ होयसल ९६, १००-१, १२८, होसूर ७६, १३२, ३५७ १३१, १३३.४, १४६-७, होंगनूर २६८ Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MĀṆIKACHANDRA D. J. GRANTHAMĀLĀ *The Serial Numbers marked with asterisk are out of print. *1. Laghiyastraya-ādi-saṁgrahaḥ: This vol. contains four small works: 1) Laghiyastrayam of Akalankadeva (c. 7th century A. D.), a small Prakarana dealing with pramāṇa, naya and pravacana. Akalanka is an eminent logician who deserves to be remembered along with Dharmakirti and others. His works are very important for a student of Indian logic. Here the text is presented with the Sk. commentary of Abhayacandrusuri. 2) Svarupasambodhana attributed to Akalanka, a short yet brilliant exposition of atman in 25 3-4) Laghu-Sarvajta-siddhiḥ and By hat-Sarvajtasiddhiḥ of Anantakīrti. These two texts discuss the Jaina doctrine of Sarvajñata. Edited with some introductory notes in Sk. on Akalanka, Abhayacandra and Anantakirti by Pt. KALLAPPA BHARAMAPPA NITAVE, Bombay Samvata 1972, Crown pp. 8-204, Price As. 6-. verses. *2. Sāgāra-dharmāmṛtam of Āśādhara: Aśādhara is a voluminous writer of the 13th century A. D., with many Sanskrit works on different subjects to his credit. This is the first part of his Dharmamṛta with his own commentary in Sk. dealing with the duties of a layman. Pt. NATHURAM PREMI adds an introductory note on Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Asadhara and his works. Ed. by Pt. MANOHARLAL, Bombay Sarovat 1972, Crowa pp. 8-246, Price As. 8/-. *3. Vikrāntakauravam or Sulocanīnītakam of Hastimalla (A.D. 13th century): A Sanskrit drama in six acts. Ed. with an introductory note on Hastimalla and his works by Pt. MANOHARLAL, Bombay Samvat 1972, Crown pp. 4-164, Price As. 6). *4. Pārsvanātha-caritam of Vadirājasīri : Vadi. räja was an eminent poet and logician of the 10th century A. D. This is a biography of the 23rd Tirthaikara in Sanskrit extending over 12 cantos. Edited with an introductory note on Vădirāja and his works by Pt. MANOHARLAL, Bombay Sariyat 1973, Crown pp. 18-198, Price As. 81 *5. Maithilikalyānam or Sitānātakam of Hastimalla : A Sk. drama in 5 acts, see No. 3 above. Ed. with an introductory note on Hastimella and his works by Pt. MANOHARLAL, Bombay Sarvat 1973, Crown pp. 4-96, Price As. 41. *6. Aradhanāsūra 'of Devasena : A Prakrit work dealing with religio-didactic topics. Prākrit text with the Sk. commentary of Ratnakīrtideva, edited by Pt. MANOHARLAL, Bombay Sarivat 1973, Crown pp. 128, Price As, 4/6. 7. Jinadattacaritam of Gupabhadra : A Sk. poem in 9 cantos dealing with the life of Jinadatta, edited by Pt, MANORARLAL, Bambay sarivat 1973, Crown pp. 96, Price As. 51. Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) 8. Pradyumnacarita of Mahā senācārya : A Sk. poem in 14 cantos dealing with the life of Pradyumna. It is composed io & dignified style. Edited by Pts. MANOHARLAL and RAMAPRASAD, Bombay Sarávat 1973, Crown pp. 230, Price As. 8/-. 9. Caritrasära of Cāmundarāya : It deals with the rules of conduct for å house-bolder and a monk. Edited by Pt. INDRALAL and UDAYALAL, Bombay Samvat 1974, Crown pp. 103, Price As. 61. *10. Pramānanirņaya of Vădirāja : A manual of logic discussing specially the nature of Pramāņas. Edited by Pts. INDRALAL and KHUBCHAND, Bombay Sarivat 1974, Crown pp. 80, Price As. 5/-. * 11. Acarasära of Viradandi : A Sk. text dealing with Darśana, Jñāna etc. Edited by Pts. INDRALAL and MANOHARLAL, Bombay Samvat 1974, Crown pp. 2-98, Price As, 6/2 * 12. Trilokasära of Nemichandra: An important Prākrit text on Jaiga cosmography published here with the Sk. commentary of Madhavacandra. Pt. PREMI has written a critical note on Nemicandra and Madhavacandra in the Introduction. Edited with an index of Gathas by Pt. MANOHARLAL, Bombay Samvat 1975, Crown pp. 10-405-20, Price Rs. 1/12-- • 13. Tattvānu sana-ādi-samgraba: This vol. contains the following works. 1) Tattvas kādana of Nāgasena. 2) Istopadesa of Pūjyapada with the Sk. Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 4 ) commentary of Asadbara. 3) Nitisära of Indranandi. 4) Moksapafcašikā. 5) Srutāvatāra of Indranandi. 6) Adhyātmatarangini of Somadeva. 7) Brhat-pantanamaskāra or Pátrakesari-stotra of Pātrakesari with a Sk. commentary. 8) Adhyātmāstaka of Vădirāja. 9) Dvatrimáikā of Amitagati. 10) Vairāgyamanimālā of Sricandra. 11) Tattvasāra (in Prākrit) of Deyasena. 12) Srutaskandha (in Prākrit) of Brahma Hemacandra. 13) Dhādasī-gatha in Prākrit with Sk, chāyā. 14) Jha. nasāra of Padmasimha, Prākrit text and Sk. chāyā. Pt. PREMI has added short critical notes on these authois and their wosks. Edited by Pt. MANOHARLAL, Bombuy Samvat 1975, Crown pp. 4-176, Price As. 14/-. * 14. Anagara-dharmämrta of Āsādhara : Second part of the Dhurmāmrtu dealing with the rules about the life of a monk. Text and author's own commentary Edited with verse and quotation Indices by Pts. BANSIDHAR and MANOHARLAL, Bombay Samvat 1976, Crown pp. 692-35, Price Rs. 318). *15. Yuktyapušāsana of Samantabhadra : A logical Stotra wbich bas weilded great influence on later autbors like Siddbasena, Hemacandra etc.. Text published with an equally important commentary of Vidyānanda. There is an introductory note on Vidyā. nanda by Pt. PREMI. Ed. by Pts. INDRALAL and SHRILAL, Bombay Samyat 1977, Crown pp. 6-182, Price As. 13/ Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 5 ) *16. Nayacakra-adi-samgraba : This vol. contains the following texts. 1) Lagha-Nayacakra of Devesena, Prakrit text with Sk. chāyā. 2) Nayacakra of Devasena, Prakrit text and Sk. chāyā. 3) Alapapaddhati of Deyasena. There is an introductory note in Hindi on Devasena and his Nayacakra by Pt. PREMI. Edited by Pt. BANSIDHARA with Indices, Bombay Samvat 1977, Crown pp. 42-148. Price As, 15). *17. Satprābhrtādi-samgraha : This vol. contains the following Prākrit works of Kunda kunda of venerable authority and antiquity. 1) Darxana-prabhsta, 21 Caritra-prābhrta, 3) Sūtr 1-prā hrta, 4) Botha-prāhyta, 5) Bhāva-prālihsta, 6) Mokra-prā'hrta, 7) Linga-prābhyta, 8) Sila-prābhrta, 9) Rayaņasāra and 10) Dvāda nupreksā. The first six are published with the Sk. commentary of Śrutasagara and the last four with the Sk. chāyā only. There is an introduction in Hindi by Pt. PREMI who adds some critical information about Kunda kunda, Srutasāgara and their works. Elite) with an Index of verses etc. by Pt. PANNALAL SONI, Bombay Samvat 1977, Crown pp. 12-442-32. Price Rs. 34-. *18. Prayascittādi-saragraha: The following texts are included in this volume. 1) Chedapinda of IndraDandi Yogindra, Prākrit text and Sk. chāyā. 2) ChedaŠāstra or Chedanarati, Prakrit text and Sk. chāyā and notes. 3) Prāyaścicta-cülikă of Gurudāsa, Sk. text with the commentary of Nandiguru. 4) Prayasoittigrantha in Sk. verses by Bhattākalaäka. There is a critical Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 6 ) introductory note in Hindi by Pt. PREMI. Edited by Pt. PANNALAL SONI, Bombay Samvat 1978, Crown pp.16-172-12, Price Rs. 1/2/-. *19. Muläcära of Vaṭṭakera, part 1: An ancient Prakrit text in Jaina Saurasent, Published with Sk. chāya and Vasunandi's Sk. commentary. A highly valuable text for students of Prakrit and ancient Indian monastic life. Edited by Pts. PANNALAL, GAJADHARALAL and SHRILAL, Bombay Sarivat 1977, Crown pp. 516, Price Rs- 2/4/-. 20. Bhavasamgraha-ādiḥ: This vol. contains the following works. 1) Bhavasamgraha of Devasena, Prakrit text and Sk. chāyā. 2) Bhavasamyraha in Sk. verse of Vamadeva Pandita. 3) Bhava-trhangi or Bharasamgraha of Srutamuni, Prakrit text and Sk. chāyā. 4) Āṣravatribhuňgi of Śrutamuni, Piäkrit text and Sk. chāyā. There is a Hindi Introduction with critical remarks on these texts by Pt. PREMI. Edited with an Index of verses by Pt. PANNALAL SONI, Bombay Samvat 1978, Crown pp. 8-284-28, Price Rs. 2/4/ 21. Siddhantasāra-ādi-Saṁgraha : This vol. contains some twentyfive texts. 1) Siddhantaṣāra of Jinacandra, Prakrit text, Sk. chaya and the commentary of Jñanabhuṣaṇa. 2) Yogasāra of Yogicandra, Apabhramsa text with Sk, chaya. 3) Kallāṇāloyaṇā of Ajitabrahma, Präkrit text with Sk. chāyā, 4) Amṛtājīti of Yogindradeva, a didactic work in Sanskrit. 5) Ratna Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 7 ) mālā of Śivakoţi. 6) Šāstrasārasamuccaya of Maghaandi, a Sūtra work divided in four lessons. 7) Arhatpravacanam of Prabhācandra, a Sutra work in five lessons. 8) Aptasvarupam, a discourse on the nature f divinity. 9) Jnanalocanastotra of Vadirāja (Pomanijasuta). 10) Samavasaraṇastotra of Viṣṇusena. 11) Sarvajñastavana of Jayanandasūri. 12) Pärivanathasamasyā-stotra. 13) Citrabandhastotra of Gunabhadra. 14) Maharsi-stotra (of Ãśādhara). 15) Pārsvanathastotra or Laksmistotra with Sk. commentary. 16) Neminatha-stotra in which are used only two letters viz. n & m. 17) Sankhadevāṣṭaka of Bhanukirti. 18) Nijätmãstaka of Yogīndradeva in Prakrit. 19) Tattvabhāvana or Sāmāyika-patha of Amitagati. 20) Dharmarasāyaṇa of Padmanandi, Präkrit text and Sk. chāyā. 21) Sarasamuccaya of Kulabhadra. 22) Amgapannatti of Śubhacandra, Prākrit text and Sk. chāyā. 23) Śrutāvatāra of Vibudha Śrīdhara. 24) Šalākānikṣepaṇaniskāsana-vivaraṇam. 25) Kalyāṇamālā of Āśādhara. Pt. PREMI has added critical notes in the Introduction on some of these authors. Edited by Pt. PANNALAL SONI, Bombay Samvat 1979 Crown pp. 32-324, Price Rs. 1/8/-. *22. Nttiväkyāmṛtam of Somadeva: An important text on Indian Polity, next only to Kautilya-Arthašāstra. The Sutras are published here along with a Sanskrit commentary. There is a critical Introduction by PREMI comparing this work with Arthasästra. Edited by Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 8 ) Pt. PANNALAL SONI, Bombay Samvat 1979, Crown pp. 34-426, Price Rs. 1/12/-. * 23. Mūlācāra of Vaṭṭakera, part II: Prakrit text, Sk. chāyā and the commentary of Vasunandi, see No. 19 above. Bombay Samvat 1980, Crown pp. 332 Price Rs. 1/8/ 24. Ratnakarandaka-śrāvakācāra of Samantabha dra: With the Sanskrit commentary of Prabhäcandra. There is an exhaustive Hindi Introduction by Pt. JUGAL KISHORE MUKTHAR, extending over more than pp. 300, dealing with the various topics about Samantabhadra and his works. Bombay Samvat 1982, Crown pp. 2-84252-114, Price Rs. 2/-. 25. Pañcasaṁgrahaḥ of Amitagati: A good compendium in Sanskrit of the contents of Gammaṭusāra. Edited with a note on the author and his works by Pt. DARBARILAL, Bombay 1927, Crown pp. 8-240, Price As. 13/-. 26. Latīsamhita of Rajamalla: It deals with the duties of a layman and its author was a contemporary of Akbar to whom references are found in his compo sitions. There is an exhaustive Introduction in Hindi by Pt. JUGALKISHORE. Edited by Pt. DARBARILAL, Bombay Samvat 1948, Crown pp. 24-136, Price As. 8)-. 27. Purudevacampū of Arhaddāsa: A Campū work in Sanskrit written in a high-flown style. Edited with notes by Pt. JINADASA, Bombay Samvat 1985, Crown p. 4-206, Price As. 12/-. Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9) 28. Jaina-Silälokha-samngraha: It is a handy volume giving the Devanagarī version of Epigraphia Carnatica II (Revised ed.) with Introduction, Indices etc. by Prof. HIRALAL JAIN, Bombay 1928, Crown pp. 16-164-428-40, Price Rs. 2181-. 29-30-31, Padmacarita of Ravişeņa : This is the Jaina recension of Rāma's story and as such indispensable to the students of Indian epic literature. It was finished in A. D. 676, and it has close similarities with Paümcariu of Vimala (beginning of the Christian era). Edited by Pt. DARBARILAL, Bombay Samvat 1985, vol. i, pp. 8-512 ; vol. ii, pp. 8-436 ; vol. iii, pp. 8-446. Thus pp. about 1400 in all. Price Rs. 418). . 32-33. Harivamsa-purāņa of Jinasena 1 : This is the Jaina recension of the Krsna legend. These two volumes are very useful to those interested in Indian epics. It was composed in A.D. 783 by Jinasena of the Punnāța-samgba. There is a Hindi Introduction by Pt. PREMIJI. Edited by Pt. DARBARILAL, Bombay 1930, vol. i and ii pp. 48-12-806, Price Rs. 318) 34. Nitivākyümrtam, a supplement to No. 22 above: This gives the missing portion of the Sanskrit commentary, Bombay Samvat 1989, Crown pp. 4-76, Price As, 4l. 35. Jambūsvāmi.caritam and Adhyatma-kamala. märtanda of Rajamalla : See No. 26 above. Edited with an Introduction in Hindi by Pt. JAGADISH Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 10 ) CHANDRA, M. A., Bombay Sarivat 1993, Crown pp. 18-264-4, Price Rs. 1/8/-. 36. Trişaşti-smrti-sästra of Asadhara : Sanskrit text and Marathi rendering. Edited by Pt. MOTILAL HIRACHANDA, Bombay 1937, Crown pp. 2-8-166, Price As. 81 37. Mahāpurāņa of Puşpadanta, Vol. 1 Adipuräna (Saudhis 1-37): A Jaina Epic in Apabbramss of the 10th century A.D. Apabhramsa Text, Variants, explaqatory Notes of Prabhācandra. A model edition of an Apabhrazaśa text. Critically edited with an Introduction and Notes in English by Dr. P. L. VAIDYA, M. A., D.Litt., Bombay 1937, Royal 8vo pp. 42-672, Price Rs. 10/ 37(a) Rāmāyaṇa portion separately issued. Price Rs. 2.50. 38. Nyāyakumudacandra of Prabhācandra Vol. 1 : This is an important Nyāyu work, being an exhaustive commentary on Akalanka's Laghiyaatrayam with Vivrti (see No. 1 above). The text of the commentary is very ably edited with critical and comparative foot-notes by Pt. MAHENDRAKUMARA. There is a learned Hindi Introduction exhaustively dealing with Akalaika, Prabhācandra, their dates and works etc. written by Pt. KAILASCHANDRA. A model edition of a Nyāya text. Bombay 1938, Royal 8 vo.pp. 20-126-38-402-6, Price Rs. 8). Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 11 ) 39. Nyiyakumudacandra of Prabhacandra, Vol. II : See No 38 above. Edited by Pt. MAHENDRAKUMAR SHASTRI who has added an Introduction in Hindi deal ing with the contents) of the work and giving some details about the author. There is a Table of contents and twelve Appendices giving useful Indices. Bombay 1941. Royal 8vo pp. 20 +94 + 403-930. Price Rs. 8/8/-. 40. Varūngacaritam of Jaļā-Simhanandi : A rare Sanskrit Kävya brought to light and edited with an exhaustive critical Introduction and Notes in English by Prof. A. N. Upadhye, M. A., Bombay 1938, Crown pp. 16+50+392, Price Rs. 3/.. 41. Mahāpurāņa of Puşpadanta, Vol. II (Samdhis 38-80): See No. 37 above. The Apabbramś& Text critically edited to the variant Readings and Glosses, along with an Introduction and five Appendices by Dr. P. L. VAIDYA, M.A., D. Litt., Bombay 1940. Royal 8yo pp. 24+570 Price Rs. 101-. 42. Mahäpurāņa of Puşpadanta, Vol. III (Sara. dhis 81-102): Seu No. 37 and 40 above. The Apabbramsas Text critically edited with variant Readings and Glosses by Dr. P. L. VAIDYA, M. A., D. Litt. The Introduction covers a biography of Puşpadanta,. discussing all about his date, works, patrons and metropolis (Mānyakbeça). Pt. Premi's essay 'Mabakavi Puspadanta' in Hindi is included here. Bombay 1941.. Royal 8vo pp. 32+28+314. Price Rs. 6 Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 12 ) 42(a). Harivañía portion is separately issued. Price Rs. 2.50. 43. Ajanūpavanamjaya-natakam and Subhadra. Dātikā of Hastimalla: Two Sanskrit Dramas of Hastimalla (see also No. 3 above). Critically edited by Prof. M. V. PATWARDHAN. The Introduction in English is a well documented essay on Hastimalla and his four plays which are fully studied. There is an Index of stanzas from all the four plays. Bombay 1950. Crown pp. 8+68 +120+128. Price Rs. 3/-. 44. Syādvādasiddhi of Vadībhasimha : Edited by Pt. DARBARILAL with Introductions etc. in Hindi shed. ding good deal of light on the author and contents of the work. Bombay 1950. Crown pp. 26+32+34+80. Price Rs. 1.50. 45. Jaina Silalekha-samgraha, Part II (see No. 28 above) : The texts of 302 Inscriptions (following A. Guérinot's order) are given in Devanāgarī with summary in Hindi. There is an Index of Proper Names at the end. Compiled by Pt. VIJAYAMURTI, M. A. Bombay 1952. Crown pp. 4+520. Price Rs. 81.. 46. Jaina Silalokha-samgraba, Part III (see Nos. 23 & 45 above): The texts of 303-846 inscriptions (following Guérinot's list) is given in Devanāgari with summary in Hindi compiled by Pt. VIJAYAMURTI, M.A. There is an Index of Proper Names at the end. The Introduction by Shri G.C. CHAUDHARI is an exhaustive Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 13 ) study of inscriptions. Bombay 1957. Crown pp. 8+178: +592 +42. Price Rs. 101-. 47, Pramāņaprameyakaliki of Narendrasena (A. D. 18th century): A Nyāya text dealing with Pramāņa and Prameya. The Sanskrit text critically edited by Pt. DARBARILAL. The Hindi Introduction deals with the author and a number of topics connected with the contents of this work. Bharatiya Jñanapitha Kasbi, Varanasi 1961. Price Rs. 1.50. For copie's please write tom BHARATIYA JNANAPĪTHA Durga kunda Road, Varenasi--5 (India). Or BHARATIYA JNANAPITHA 3620/21 Netaji Subhash Marg, Delhi-6 (India). Page #567 --------------------------------------------------------------------------  Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - ..... वोर सेवा मन्दिर - 33.२जोहरा लेखक जोरापुरका विधाप्पर शीर्षक जैनागरालेख संगर खगह चार क्रम संख्या