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जैनशिलालेख-संग्रह लेख सन् ८०८ का है (क्र० ५४ )। इसमे सम्राट् गोविन्दराज जगत्तुंगके राज्यकालमै उनके ज्येष्ठ बन्धु रणावलोक कम्भराज-द्वारा वर्धमानगुरुको एक गांवके दानका वर्णन है। दूसरे लेख (क्र. ५५ ) में सन् ८२१ में सम्राट अमोघवर्षका तथा उनके चाचाके पुत्र कर्कराज सुवर्णवर्षका उल्लेख है। कर्कराजने अपराजितगुरुको एक खेत दान दिया था। सन् ८६० में सम्राट् अमोघवर्षने नागनन्दि आचार्यको भूमिदान दिया था ( क्र० ५६ )। सन् ८६४ मे इसी सम्राटके राज्यकालमें एक समाधिलेख लिखा गया था (क्र० ५७ ) । नवीं-दसवीं सदीके एक लेखमें नेमिचन्द्र आचार्यका वर्णन है जिसमे उन्हे राष्ट्रकूट वंशके लिए आनन्ददायी कहा है (क्र. ७२ )। सन् ९०२ के एक मन्दिरलेखमें सम्राट् कृष्ण २ अकालवर्षके शासनका तथा सन् ९२५ के एक मन्दिरलेखमे सम्राट् गोविन्द ४ नित्यवर्षके शासनका उल्लेख है (क्र० ७७, ७८) । कृष्ण २ को रानी चन्दियब्बेने सन् ९३२ मे एक जिनमन्दिर निर्माण कराया था ( ऋ० ७९)। सन् ९५० के एक लेखमे कृष्ण ३ अकालवर्षके शासनका तथा इसके बादके एक लेखमे सम्राट् खोट्रिगका वर्णन है (क्र० ८३,८७ )। इन्द्र ४ नित्यवर्षने एक जिनमूर्तिका पादपीठ बनवाया था (क्र० ८९ ) । सम्राट् इन्द्र ३ के सेनापति श्रीविजयकी प्रशंसामें एक स्तम्भलेख मिला है ( क्र. ९७ )।
बारहवी सदीके एक लेख ( क्र० २१७ ) मे कलचुरि राजा गयाकर्णके अधीन राष्ट्रकूट कुलके सामन्त गोल्हणदेवका उल्लेख है।
( आ ४ ) पाण्ड्य वंश - इस वंशके पांच लेख प्रस्तुत संग्रहमे हैं।' इनमे पहला (क्र० २३ ) सातवीं सदोके राजा वरगुण विक्रमादित्यके समयका दानलेख है। आठवीं सदीके एक लेखमे (क्र० ५० ) सुन्दर पाण्ड्य राजा-द्वारा एक जिनमन्दिरकी जमीनोको करमुक्त करनेका वर्णन है । सन् ८७० मे राजा वरगुण २ के समय दो मूर्तियोंका जीर्णोद्धार हुआ
१. पहले संग्रहमें इस वंशका कोई लेख नहीं है ।