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प्रस्तावना
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लेखमें कदम्ब महासामन्त अलियमरस द्वारा निर्मित जिनमन्दिरका वर्णन है ( क्र० ६० ) । सन् १०४५ के एक लेखमें कोंकण प्रदेशमे महामण्डलेश्वर चट्टय्यदेवके शासनका उल्लेख है ( क्र० १३१ ) तथा एक मन्दिर - को कुछ दान मिलनेका वर्णन है । सन् १०८१ के दो लेखोंमें कदम्ब राजा गोवलदेव तथा ' कादम्बचक्रवति' वीरमके समय एक बसदिको दान मिलनेका तथा एक महिलाके समाधिमरणका वर्णन है ( क्र० १६३-४ ) । सन् १०९६ मे कदम्ब कुलके सामन्त एरेयंगकी रानी असवब्बरसिने एक मन्दिर बनवाया था ( क्र० १६९ ) । सन् १९२३ और ११३० के दो दानलेखोंमें ( क्र० २०२ व २१४ ) कदम्ब सामन्त तैलपदेव तथा मयूरवर्मा के शासनका उल्लेख है । तैलपदेवके शासनका उल्लेख सन् १९४८ के दो दानले खोंमे भी है (क्र० २३६-२३८ ) । सन् १२०७ के एक दानलेखमें कदम्ब सामन्त ब्रह्मका तथा सन् १२१८ मे जयकेशीका उल्लेख मिला है क्र० ३२३ व ३२५ ) । सन् १५०४ मे कदम्ब लक्ष्मप्परसने चारुकीर्ति पण्डिताचार्यके शिष्यको धर्माधिकार प्रदान किये थे ( क्र० ४५५) | एक अनिश्चित समयके लेख ( क्र० ६१४ ) में त्रिभुवनवीर नामक कदम्ब शासकको रानी के समाधिमरणका उल्लेख है ।
( आ ३ ) राष्ट्रकूट वंश - प्रस्तुत संग्रहमे इस वंशके देज्ज महाराजके सामन्त सेन्द्रक इन्द्रणन्दका एक लेख है ( क्र० २२ ) जो छठी सातवीं सदीका है | इन्द्रणन्दने आर्यनन्दि आचार्यको एक ग्राम दान राष्ट्रकूट वंशकी प्रधान शाखाके कोई १३ लेख इस सग्रहमे हैं ।
दिया था । इनमें पहला
१. देज्ज राजाका राष्ट्रकूटों के प्रमुख वंशसे क्या सम्बन्ध था यह स्पष्ट नहीं है । सेन्द्रक वंशके तीन लेख पहले संग्रह में हैं - ( क्र० १०४,१०६,१०९ ) ।
२. पहले संग्रहमें इस शाखा के दस लेख हैं जिनमें पहला ( क्र० १२४ ) सन् ८०२ का है ।