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जैन शिलालेख - संग्रह
लिए दो गाँवोंके दानका वर्णन है। चौथे लेखमें (क्र० ६३ ) राजा दुग्गमारद्वारा नवीं सदीमे एक मन्दिरको भूमिदान देनेका उल्लेख है । इसके बाद दसवीं सदी के प्रारम्भके एक लेखमे (क्र० ७६) एरेय राजाके समय एक जैन आचार्य के समाधिमरणका वर्णन है । सन् ९५० के एक लेख (क्र० ८३) मे राजा बतुगकी रानी पद्मब्बरसि द्वारा निर्मित जिनमन्दिरके लिए कुछ दानका वर्णन है । सन् ९६२ मे राजा मारसिह २ ने अपनी माता-द्वारा निर्मित मन्दिर के लिए एलाचार्यको एक गाँव दान दिया था ( क्र० ८५) इसी वर्ष मे इस राजाने मुंजार्य नामक जैन ब्राह्मणको भी एक गाँव दान दिया था ( क्र० ८६ ) । सन् ९७१ मे इस राजाके समय शंखजिनालयको कुछ दान मिलनेका वर्णन एक लेखमे (क्र० ८८) में है। दसवी सदीके अन्त के एक लेख (क्र० ९६ ) मे राजा रक्कसगंग तथा नन्नियगंगके समय कुछ दानका वर्णन है । एक लेख ( क्र० १५४ ) मे बूतुग राजा तथा रानी रेवकनिमंडिका उल्लेख है । इनकी स्मृतिमे गंगकन्दर्प नामक जिनमन्दिर अण्णिगेरे नगरमे बनवाया गया था । एक अन्य लेखमे (क्र० २०७ ) पुन: रानी रेवकनिमंडिका उल्लेख हुआ है । इस तरह गंगवंशके राज्यकालमे जैनसंघकी स्थिति सदा ही प्रभावशाली रही थी ।
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( आ २ ) कदम्ब वंश इस वंशके स्वतन्त्र राज्यकालका एक लेख ( क्र० २१ ) इस संग्रहमे है जो छठी सदीके राजा रविवर्माके समयका है । इस राजाने एक सिद्धायतन के लिए कुछ भूमि दान दी थी । राष्ट्रकूट तथा चालुक्य साम्राज्य में कदम्बवंशके कई सामन्त प्रादेशिक शासक थे । ऐसे सामन्तोंके कोई १५ लेख मिले है । सन् ८९० के एक
१. पहले संग्रहमें गंग वंशके कई लेख हैं, जिनमें सबसे प्राचीन लेख ( क्र० ९० ) पाँचवीं सदीके उत्तरार्धका है ।
२. पहले संग्रहमें इस वंशके दस लेख हैं जो पाँचवीं व छठी सदी के हैं ( क्र० ९६ - १०५ ) ।