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नन्दिरुके लेख ३४ (परदतां वा ) यो हरेत वसुन्धरां । षष्टिवषसहस्राणि
विष्ठायां जायते कृमिः ॥१. [यह लेख चालक्य सम्राट सोमेश्वर (प्रथम) त्रैलोक्यमल्लके राज्यमें शक ९७५ में लिखा गया था। उस समय बेल्वोल तथा पुलिगेरे प्रदेशपर सम्राट्का पुत्र सोमेश्वर ( द्वितीय ) शासन कर रहा था। वहाँके सन्धिविग्रहाधिकारी बेल्देव थे। ये अग्गलदेव तथा गोज्जिकब्बेके पुत्र थे। बलदेव तथा शान्तिवर्मा उनके बन्धु थे। बेलदेवकी प्रेरणासे सिन्दकुलके सरदार कंचरसने नयसेन पण्डितदेवको कुछ भूमि दान दी। नयसेनको गुरुपरम्परा इस प्रकार थी - मूलसंघ-सेनान्वय-चन्द्रकवाट अन्वयके अजितसेनकनकसेन-नरेन्द्रसेन-नयसेन । नरेन्द्रसेन तथा नयसेन दोनों व्याकरणशास्त्रके विशेषज्ञ थे।
[ए. ई० १६ पृ० ५३ ]
१३९-१४० नन्दिवेवरु ( बेल्लारो, मैसूर)
शक ९७६ = सन् १०५४, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रैलोक्यमल्लके समय शक ९७६, उत्तरायण संक्रान्ति, रविवार, जय संवत्सरका है। इसमें नोलम्ब पल्लव पेनिडिके राज्यकालमें देसिगगणके अष्टोपवासि भटारको रेच्चूरुके महाजनों-द्वारा भूमि, उद्यान आदिके दानका उल्लेख है। लेखमें जगदेकमल्ल नोलम्ब ब्रह्माधिराजका सामन्तके रूपमें उल्लेख किया है । इस लेखके पीछेकी ओर प्रायः ऐसे ही लेखमे अष्टोपवासिमुनिको बहुरुमें दिये हुए दानका वर्णन है। इसमे वोरणन्दिसिद्धान्तिका भी उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९१८-१९ क० २०१ पृ० १६]