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जैनशिलालेखा-संग्रह
इस पुस्तिकाका प्रकाशन अन्यान्य कारणोंसे अबतक नहीं हो सका था। अतः हमने इस परिशिष्टमे इसका पुन. संपादन किया है। संग्राहकने मूल लेख मन्दिरोंके क्रमसे अलग-अलग संग्रहीत किये थे तथा यन्त्रोंके लेखोंके परिशिष्ट अन्तमे दिये थे । हमने मन्दिरों तथा मूर्तियोंका विवरण अलग दिया है तथा लेख समयक्रमसे अलग दिये है। इन लेखोंके विशेष नामोंका समावेश सूचीमे कर दिया है तथा वहाँ लेखांकके साथ (ना० ) यह संकेत दिया है।
नागपुर नगरका अस्तित्व यद्यपि राष्ट्रकूट साम्राज्यके समयसे शात होता है तथापि इसे भोंसला राजा रघूजी के समयसे -- सन् १७३४ से प्रधान स्थान प्राप्त हुआ है । तबसे १९५६ तक यह मध्यप्रदेशको राजधानी रही है। नागपुरके सभी मन्दिर प्रायः भोंसला राजाओंके राज्यमे ही बने है किन्तु इनमे कई प्रतिमाएँ अन्य स्थानोंसे भी लायी गयी है । इस नगरमें कूल ९ मन्दिर है । विदर्भकी रीतिके अनुसार यहाँके प्रमुख जैन व्यक्तियोंके घरोंमे भी छोटे छोटे चैत्यालय है । ऐसे गृहचैत्यालयोंकी संख्या ३७ है । इन सब स्थानोंमे कुल मिलाकर ६४६ मूर्तियां आदि हैं जिनमें धातुको ४४० तथा पाषाणकी २०६ हैं। इन मूर्तियों आदिके ४१ प्रकार हैं जिनकी संख्या इस प्रकार है - (१) आदिनाथ ४३ (२) अजितनाथ १३ (३) सम्भवनाथ १ (४) सुमतिनाथ २ (५) पद्मप्रभ ७ (६) सुपाश्वनाथ १२ (७) चन्द्रप्रभ ४३ (८) पुष्पदन्त ३ (९) शीतलनाथ ५ (१०) श्रेयांस ३ (११) वासुपूज्य ६ (१२) अनन्तनाथ २ (१३) धर्मनाथ ३ (१४) शान्तिनाथ १० (१५) अरनाथ ६ (१६) मुनिसुव्रत १३ (१७) नेमिनाथ १४ (१८) पार्श्वनाथ १३३ (१९) महावीर १० (२०) चौबीसी ३४ (२१) पंचमेरु ९ (२२) नन्दीश्वर ७ (२३) सिद्ध ४ (२४) बाहुबली ६ (२५) रत्नत्रयमूर्ति ३ (२६) पंचपरमेष्ठि १ (२७) यक्षिणी २७ (२८) सरस्वती ३ (२९) क्षेत्रपाल १ (३०) सप्त ऋषि १ (३१) चौसठ ऋषि १ (३२) गुरुपादुका २(३३) रत्नत्रय यन्त्र ५ (३४) सम्यग्दर्शन यन्त्र ४ (३५) सम्यकचारित्र