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जैनशिलालेख-संग्रह
[२३८सूरस्थ गण-चित्रकूट गच्छके हरिणन्दिदेवको अर्पित की जानेका उल्लेख है । मल्लगावुण्ड चतुर्थज्ञातिका व्यक्ति था।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ क्र० ई० ६१ पृ० १२४ ]
२३८ करगुदरि ( जि. धारवाड, मैसूर )
सन् ११४८, कन्नड [यह लेख पौष शुक्ल १, सोमवार, प्रभव संवत्सर, के दिन लिखा गया था। महावडुव्यवहारि कल्लिसेट्रि-द्वारा करेगुदुरेमे विजयपार्श्वजिनेन्द्र मन्दिर बनवाया गया उसे कुछ जमीन दान देनेका इसमें निर्देश है। यह दान सूरस्थ गण, चित्रकूट अन्वयके वासुपूज्यके शिष्य हरिणन्दिके शिष्य नागचन्द्र भट्टारकको दिया गया था। उस समय महाप्रचण्डदण्डनायक सोवरसका शासन हानुंगल ५०० के प्रदेशपर चल रहा था तथा उसके एक भागपर मण्डलेश कदम्बवंशीय तैलका अधिकार था। इस समय चालुक्य प्रतापचक्रवर्ती जगदेकमल्ल सम्राट थे।]
[रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० ६७ ]
२३६ हुलगूर (जि. धारवाड, मैसूर )
१२वीं सदी - मध्य, कन्नड [ यह लेख अधूरा है । चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्लके समय पुरिगेरे तथा बेलवोल प्रदेशोपर महाप्रचण्डदण्डनायक वावणरस शासन कर रहा था। इसका सामन्त मणलेर कुलका जयकेशी था जो पुरिगेरेके राष्ट्रकूट पदका अधिकारी था। इसके समयकी एक जैन श्राविका नीलिकब्बेका इस लेखमे निर्देश है।
(रि० सा० ए० १९४४-४५ एफ ३२)