________________
३९०
जैनशिलालेख संग्रह
जानेका निर्देश है । इसी लेखके दूसरे भागमें उसी कुलके एक दूसरे कलियम्मरसका उल्लेख है जो चालुक्य सम्राट् भूलोकमल्ल सोमेश्वर तृतीयका सामन्त था । इसने सम्राट्के राज्यके ९ वें वर्ष अर्थात् शक १०५६ में उक्त मन्दिरको कुछ दान दिया था। इस कलियम्मरसने माहेश्वर दीक्षा ग्रहण की थी ।
तीसरे लेखमें उक्त कलियम्मरस ( द्वितीय ) का उल्लेख सम्राट् विक्रमादित्य ( षष्ठ ) के राज्यके दसवें वर्ष ( सन् १०८५ ) मे किया है जब उसने कोलूर में कुछ धार्मिक दान दिया था ।
चौथा लेख सम्राट् विक्रमादित्य ( षष्ठ ) के राज्यके ४६ वें वर्ष ( स० ११२१ ) का है । इसका सामन्त हेमडियरस था जो उक्त कलियम्मरस (द्वितीय) का पुत्र था । इसने कोलूर में त्रिभुवनेश्वर तथा भैरवके मन्दिरोंको कुछ दान दिया था । तथा माहेश्वर दीक्षा ग्रहण की थी ।
पाँचवाँ लेख यादव राजा सिंघण ( तेरहवीं सदीका पूर्वार्ध ) के राज्यकालका है । इसका सामन्त मल्लिदेवरस था जो उक्त जीमूतवाहन अन्वयमे उत्पन्न हुआ था । इसने कोल्लूरके क्षेत्रपाल मन्दिरको कुछ दान दिया था ।
यहाँ द्रष्टव्य है कि कलियम्मरस (द्वितीय), हेमडियरस तथा मल्लिदेवरस शैव थे फिर भी उन्हें पद्मावती लब्धवरप्रसाद यह पुराना विशेषण दिया है ।
छठा लेख विक्रमादित्य ( षष्ठ ) के राज्यके ४थे वर्ष (सन् १०७९) का है । इसके अधीन नोलम्बवाडि तथा सान्तलिंगे प्रदेशपर त्रैलोक्यमल्ल ( जयसिंह तृतीय ) शासन कर रहा था तथा बनवासि प्रदेशपर बलदेवय्यका शासन था । बलदेवय्यको जिनचरणकमलभृंग यह विशेषण दिया है । इसके अधीन कुछ करोंका उत्पन्न कोलूरके ग्रामेश्वर मन्दिरके लिए किसी कडाचार्यको दान दिया था । ]
[ ए० ६० १९० १७९-१९७ ]