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जैनशिलालेख संग्रह
[यह ताम्रपत्र शक १४७९ में लिखा गया था। उस समय विजयनगरसाम्राज्यके अधिपति सदाशिवराय थे तथा रामराज उनके प्रधान सेनापति थे । इस साम्राज्यके बारकूरु तथा मंगलूरु प्रदेशपर केलडि सदाशिव नायककी नियुक्ति की गयी थी। इस प्रदेशमे काप नगरका अधिकारी मह हेग्गडे था। इसने धर्मनाथ तीर्थंकरको पूजा आदिके लिए मल्लारु गाँवमे कुछ जमीन दान दी जिसकी आय ८० वराह थी ( वराह उस समयकी रौप्यमुद्राकी संज्ञा थी )। यह दान अभिनव देवकोतिके प्रशिष्य तथा मुनिचन्द्रके शिष्य देवचन्द्रके उपदेशसे दिया गया था। इसके पहले मूलसंघ-काणूरगण-तिन्त्रिणोगच्छके भानुमुनीश्वरकी प्रशंसा की गयी है। देवचन्द्र भी काणरगणके ही थे । अन्तम दानकी रक्षाके लिए जो शाप दिये हैं उनमे श्रवणबेलगोलके गोम्मटेश्वर, कोपणके चन्द्रनाथ तथा गिरनारके नेमिनाथको मूर्तियोंका उल्लेख किया है ]
[ए० इं० २० पृ० ८९]
चिप्पगिरि ( जि० बेल्लारी, मैसूर )
शक १८२ =सन् १५६०, काड [ इस लेखमे आदवानीके विशालकोतिगुरु तथा चिप्पगिरिके श्रावकोंद्वारा चतुर्थमुनीश्वरकी वन्दनाका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९४४-४५ ई ७४ ]
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मूडबिदुरे (जि० दक्षिण कनडा, मैसूर )
शक १४८५= सन् १५६३, कन्नड [ इस ताम्रपत्रमे बिदुरे नगरकी चण्डोम पारिश्वतीर्थकर बसतिके लिए शंकरसेट्टि ऊर्फ विरणन्तर-द्वारा उसकी बहन शंकरदेवीके आग्रहसे कुछ