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जैन शिलालेख संग्रह
[ ५२८
द्वारा एक मण्डपको स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें इसी व्यक्ति द्वारा मूर्तिका पादपीठ अर्पित करनेका उल्लेख है। रविवारव्रतकी समाप्तिपर यह दान दिये गये थे । ]
[ ए०रि० मै० १९१६ पृ० ८४ ]
५२८
मैसूर
शक १७३६ = सन् १८१४, कवड
शान्तीश्वर बसति-गर्म गृह के द्वारके पीतल के आवरणपर
[ इस लेख मे दनिकार पद्मयके पुत्र नागय-द्वारा ३९३ ( सेर ) वजनके इस पीतल के गन्धकुटी ( द्वार ) के आवरण दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान आश्विन शु० १, शक १७३६, भाव संवत्सरके दिन दिया गया था । ]
[ मूल लेख कन्नड लिपिमे मुद्रित ]
[ ए०रि० मैं ० १९३६ पृ० १०२ ]
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मैसूर
( शक १७३६ = सन् १८१४ ) संस्कृत-कन्नड
शान्तीश्वर बसति सुखनासि द्वारकं आवरणपर श्रीमच्छांतिजिनेन्द्रस्य पंचकल्याणसंपदः ।
श्रिया मेरुजिनागारं हसतश्चैक्यवेश्मनः ॥ १ ॥ परार्ध्यं रचनोपेतं कवाटमिदमद्भुतं ।
कारयामास सद्भक्त्या श्रावको जैनमार्गतः ॥ २ ॥ नागनामा पितुः स्वस्य मरिनागाह्वयस्य च । धनिकारपदापस्य स्वर्मोक्षसुखभये ॥३॥