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जैनशिलालेख-संग्रह
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तिरुनिडकोण्डै ( मद्रास )
११वीं सदी पूर्वाध, तमिल [ इस लेखका कुछ भाग दीवालमें दबा है। इसके प्रारम्भमें राजेन्द्रचोल प्रथमकी ऐतिहासिक प्रशस्ति है। तिरुमणंजेरि निवासी कलिमानन् विजयालयमल्लन्-द्वारा देवमन्दिरमे दीप प्रज्वलित रखनेके लिए ९६ भेड़ें दान दी जानेका इसमें उल्लेख है। यह लेख चन्द्रनाथमन्दिरके बरामदेके बाजूमें खुदा है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०० पृ० ६५ ]
१३० हूलि (जि० बेलगांव, म्हैसूर ) शक ९६६ तथा १०६७ = सन् १०४४ तथा ११४५, काड १-२ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछन । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य
शासनं जिनशासनं ॥ (१) ३ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज पर
मेश्वर परममहार४ कं सत्याश्रयकुलतिलकं चालुक्यामरणं श्रीमदाहवमल्लदेवर
विजयराज्य५ मुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमाचंद्रार्कतारं सलुत्तमिरे ॥ तपाद
पद्मोपजीवि ॥ मेले६ द पगेवरं निर्मूलिसि जसमं निमिर्चि दिमित्तिवरं कालडिय
बोलगडितले पालिसिदं तोंबता७ रुमं भुजबलदि । (२) आतन पुत्रं विनयोपेतं पायिम्म-नृपति
गोप्युव सति