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________________ -०२] सावरपुकोटका लेख २८७ ४. सुध पंचमि सुक्रवार रोहिणीनक्षत्रदल तुंगतमाधि. १ .."चन्द्रार्कमागि ४२ मूडे भत्तवन वोजण५३ सेहि"रामक.. ४४ निषधिय कल्लिंगे मंगल महा श्री [ इस निषिधिलेखमें कार्तिक शु० ५, रविवार, शक १३१४, प्रजापति संवत्सरके दिन योजणसेट्टिकी पत्नी रामक्कके समाधिमरणका उल्लेख किया है। रामक्कने गैरसोप्पेमें अनन्ततीर्थकरका मन्दिर बनवाया था। उसका वंशवर्णन भी लेखमें दिया है। रामक्कके पिता माणिकसेट्टिकी मृत्यु आषाढ़ शु० ५, शुक्रवार, विक्रमसंवत्सरके दिन हुई थी।] [ए० रि० मै० १९२८ पृ० ९७ ] ४०१ लक्कवरपुकोट ( विजगापटम्, आन्ध्र) संवत् १४५८=सन् १३९२, संस्कृत नागरी [ इस मूर्तिलेखमें संवत् १४४८ में जिनचन्द्र भट्टारक-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । इस समय यह मूति वीरभद्र मन्दिरमे है । ] [रि० सा० ए० १९११-१२ क्र० ४७ पृ० ५० ] ४०२ संगर (धारवाड, मैसूर ) शक १३:७-सन् १३६५, कार [ इस लेखमें जैन मल्लप्पके पौत्र तथा संगमदेवके पुत्र नेमण्ण-द्वारा संगूरके पार्श्वनाथ मन्दिरको भूमि दान देनेका उल्लेख है। विजयनगरके सम्राट् हरिहरके समय गोवाके शासक माधवका यह सेनापति था । नेमण्ण
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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