________________
जैन शिलालेख संग्रह
[ १५४
-
वंशके गुरु वर्धमान विद्यानन्द स्वामी - उनके गुरुबन्धु तार्किकार्क माणिक्यनन्दि - गुणकीर्ति - विमलचंद्र - गुणचन्द्र – गण्डविमुक्त - उनके गुरुबन्धु अभयनन्दि । कालान्तरसे चोल राजाने बेलवल प्रदेशपर आक्रमण fear तब इस मन्दिरको नष्ट-भ्रष्ट किया किन्तु शीघ्र ही इस चोल राजाको अपने पापका प्रायश्चित्त करना पड़ा क्योंकि चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्ल सोमेश्वर ( प्रथम ) द्वारा वह युद्धमें मारा गया । तदनन्तर बेल्वल प्रदेश के कई शासक हुए जिनने इस मन्दिरकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया । चालुक्य सम्राट् भुवनेकमल्ल सोमेश्वर ( द्वितीय ) के समय बेल्वल तथा पुलिगेरे प्रदेशका शासन महामण्डलेश्वर लक्ष्मरसको सौंपा गया । उसने इस मन्दिरका जीर्णोद्धार किया तथा उसके लिए मुनि त्रिभुवनचन्द्रकी समुचित दान दिया । इस दानकी अनुज्ञा देते समय सम्राट् सोमेश्वर तुंगभद्रा नदीके तीरपर कक्करगोंडके सेनाशिबिर में ये तथा शक ९९३ वर्ष चल रहा था ।
११०
-
इस शिलालेखके दूसरे भागमें बेल्वलके अगले शासक काटरसका उल्लेख है जो मयूरावती नगरका स्वामी था । तथा ज्वालिनी देवीका उपासक था । इसने उपर्युक्त मन्दिरको शक १९४ में कुछ दान दिया । यह दान भी त्रिभुवनचन्द्रको दिया था ।
तीसरे भागमें इस मन्दिरके व्यवस्थापक उदयचन्द्रके शिष्य सकलचन्द्रका उल्लेख है । इनने मन्दिरको ज़मीन जोतनेके लिए मल्लय्य आदि तीस श्रेष्ठियोंको सौंपी थीं ।
चौथे भागमे महाप्रधान रेचिदेव द्वारा बट्टकेरे नगरके जिन तथा कलिदेवकी पूजाके लिए कुछ जमीन दान दिये जानेका उल्लेख है ।
१. यह राजा चोल राजाधिराज होगा । ( सन् १०१८-५२ )
२. यह युद्ध सन् १०५२ के आरम्भमें हुआ था ।
३. पूर्वोक्त गुरुपरम्परासे त्रिभुवनचन्द्रका सम्बन्ध अगले लेखमें स्पष्ट किया है।