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जैनशिलालेख-संग्रह
[१३१स्थानीय अधिकारीका उल्लेख है जिसने पूलि नगरमें कुछ और जमीन खरीदकर उक्त मन्दिरको दान दी। उस समय रामचन्द्र वहाँके भट्टारक थे । यह नेमण उपर्युक्त लच्छियब्बेका प्रपौत्र था।]
[ए. इं० १८ पृ० १७२ ] १३१ मुगद ( मैसूर)
शक ९६६ = सन १०५५, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट त्रैलोक्यमल्ल आहवमल्ल ( सोमेश्वर १) के समय शक ९६६, पार्थिव संवत्सर, चैत्र शु० ५, रविवारके दिन लिखा गया था। इसमे नारावुण्ड चावुण्ड-द्वारा मुगुन्द ग्राममे स्वनिर्मित सभ्यक्त्वरत्नाकर चैत्यालयके लिए कुछ भूमि अर्पण किये जानेका उल्लेख है। चावुण्डके पोत्र महासामन्त मार्तण्डय्य-द्वारा इस मन्दिरको एक नाटकशाला अर्पण किये जानेका भी इसमे उल्लेख है। उस समय पलसिगे तथा कोकण प्रदेशपर कदम्ब कुलके महामण्डलेश्वर चट्टय्यदेवका शासन चल रहा था। लेखमे कुमुदि गणके जैन आचार्योंकी विस्तृत परम्परा भी बतलायी है। ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित ]
[सा० इ० इ० ११ पृ० ६८ ]
१३२ जोन्नगिरि ( कुर्नूल, आन्ध्र)
११ वीं सदी, कन्नड [ इस लेखमें चालुक्य राजा त्रैलोक्यमल्लदेवके समय वेगडे सोवरस तथा मल्लिसेट्टिका उल्लेख है। इन्होंने जोन्नगिरिकी बसदिके लिए कुछ भूमि दान दी थी।
[रि० सा० ए० १९२९-३० क्र. ६१७ पृ० ६० ]