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डूकिका लेख
४३ श्रीमन्महाग्रहारं पूलियूरोडेयप्रमुख सासिव हाजनंग (ल) ४४ दिव्यश्रीपादपद्मंगलं पेगडे नेमणं सहिरण्यपूर्वकमाराधिसि (घा) ४५ ( 1 ) पूर्वकं माडिलि कों (ड) तम्म मुप्तव्वे लच्छिब्बरसियरु माडिसिद बस
४६ दिलिप ऋषियराहारदाननिमित्त मल्लियाचार्यरु रामचंद्र४७ देवर कालं कचियवरु मुनवालुव पहुंत्रणपोलद शिवेयगेरियारुम स४८ वंसुगेयिं पडु (ब)ण (मा) गदलु कलशवल्लिगेरिय स्था (न) दोलगारु मत्तय
दी
४९ मतरिंगचिन ( लेक्कदिंदरु ) वणमं मूरु पणमं तेतागि बिहरु | ५० पतिभक्ते धेमा सति पायिम्मरसनप्रसुते सकलजनस्तुते मा५१ गिबब्बेराणिगे सुत दी ( नेम) च्यनौदार्यगुणं ॥ ( ८ ) जिनदेवं
तनगाशन
५२ ( ) जनताकल्पद्रुमं य्यने तम्मय्यननूनदानि कलिदेवं साक्षरा५३ प्रेसरं तनगणं गुणरत्नभूषण ने संदिर्द नेमंगे नए कनवद्याच (रणं)५४ गे भूवलयदोलु पेलू ।। (९)
[ इस लेखके दो भाग है । पहला भाग चालुक्य सम्राट् आहवमल्ल सोमेश्वर प्रथमके राज्यमें शक ९६६ को उत्तरायण संक्रान्तिके समयका है । इनका सामन्त कालडिय बोलगडि था । इसका पुत्र पायिम्म था जिसने हम्ब्बेसे विवाह किया । उसे भागिणब्बे तथा लच्छियब्बे ये दो कन्याएँ हुई । लच्छिब्बेका विवाह कूंडि प्रदेशके शासकसे हुआ था । इसने पूलि नगरमें - जहाँ एक हजार धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे - कुछ जमीन खरीदकर एक जैन मन्दिर बनवाया और उसके लिए यापनीय संघ- पुनागवृक्षमूल गणके बालचन्द्रभट्टारकको कुछ दान दिया ।
दूसरा भाग चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्ल ( द्वितीय ) के राज्यमे शक १०६७ को उत्तरायण संक्रान्तिके समयका है। इसमें नेमण नामक