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जैनशिलालेख संग्रह में दसवीं सदीके उत्तरार्धमें अम्मराज २-द्वारा विजयवाटकके जिनमन्दिरके लिए एक गाँवके दानका वर्णन है। ___ कल्याणीके चालुक्य राजाओंके लेख संख्यामें सर्वाधिक-५८ हैं । लेखोंकी अधिकताके कारण हम यहाँ उन लेखोंका ही उल्लेख करेंगे जिनमें इस वंशके सम्राटोंका जैन धर्मकार्योंसे साक्षात सम्बन्ध आया था -जिनमें सिर्फ उनके राज्यकालका उल्लेख है उनका निर्देश सूचीमें होगा ही। इस वंशके लेखोंमे पहला ( क्र. ११७ ) सन् १००७ का है तथा इसमें सामन्त नागदेवकी पत्नी-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका वर्णन है । यह लेख सम्राट् सत्याश्रय आहवमल्लके समयका है । सन् १०२७ के एक लेख में (क्र० १२४ ) सम्राट् जयसिह २ की कन्या सोमलदेवी-द्वारा एक मन्दिरको कुछ दान मिला था ऐसा वर्णन है । सन् १०३२ के एक लेखमे सम्राट जगदेकमल्ल-द्वारा एक मन्दिरको दान मिलनेका वर्णन है ( क्र. १२६ )। इस मन्दिरका नाम ही जगदेकमल्ल जिनालय था। जगदेकमल्लको बहन अक्कादेवीने सन् १०४७ मे गोणदबेडंगि जिनालयको कुछ दान दिया था ( क्र. १३४) । सन् १०५५ के एक लेखमें आचार्य इन्द्रकोतिको त्रैलोक्यमल्लकी सभाका आभूषण कहा है। (क्र० १४१ )। इस वंशका अन्तिम लेख (क्र० २७४ ) सन् १९८५ का है तथा इसमे सोमेश्वर ४ के राज्यकालमे एक मन्दिरको कुछ दानका वर्णन है।'
( आ ७) चोल वंश-इस वंशका उल्लेख कोई २५ लेखोमें है। इनमे पहला ( क्र० ८२ ) सन् ९४५ का है तथा इसमे राजा परान्तक १ के समय एक कूपके निर्माणका वर्णन है। सन् ९९९ के एक लेखमे
१. पहले संग्रहमें इस वंशके कई लेख हैं जिनमें पहला ( क्र. १६६ )
सन् ९६० के आसपासका है। २. पहले संग्रहमें इस वंशके तीन लेख (क्र. १६७, १७१, १७४) हैं।