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जैनशिलालेख-संग्रह ५ चउवीस तीर्थक ६ र प्रति७ मे मंगल
[ यह चौबीसतीर्थकरमूर्ति अनन्तव्रतके उद्यापनके समय स्थापित की गयी थी। इस समय बन्नि महाकाली मन्दिरमें सुनारों-द्वारा इसकी पूजा की जाती है।]
[ ए० रि० मै० १९२७ पृ० ७४ ]
५४७ कल्लहल्लि ( मैसूर )
काड १ स्वस्ति श्रीमूलसंग देसिगण पुस्तकगत्स कुण्डकुन्दान्ववायं....
श्रीजयदेवम२ हारकदेवर प्रियसिस्यरु श्रीअनन्तवीर्यदेवर प्रियगुडगलु जीब३ गौड मल्लिगौडन मग मुहिगौडन मग राय४ गोड माडिसिद श्रादिपरमेश्वरप्रतिमेश्वररु मंगल म५ हाश्री श्री श्री रूवारि बूपोजन मग रूवारि नागोज माडिद
[ इस लेखमें देसिगणके जयदेवभट्टारकके शिष्य अनन्तवीर्यदेवके शिष्य रायगौड-द्वारा आदितीर्थकरकी मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । यह मूर्ति रूवारि बूपोजके पुत्र रूवारि नागोजने उत्कीर्ण की थी। ]
[ए० रि० मै० १९२५ पृ० ९३ ] ५४८-५५६ तंगले ( मैसूर )
काड [ यहाँ एक शिलाखण्डपर कुछ मुनियोंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं तथा उनके नीचे इस प्रकार नाम दिये हैं - १ नमोहते अजितकीर्तिगलु २