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प्रस्तावना
( उ ) माथुर संघ - इसका उल्लेख सन् १९७० के एक लेखमें ( क्र० २६५ ) है । इस संघ के महामुनि गुणभद्र द्वारा इस लेखको रचना की गयी थी । लेखमे लोलक श्रेष्ठीद्वारा पार्श्वनाथमन्दिरके निर्माणका वर्णन है ।
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(ऊ) पंचस्तूप निकाय - प्रस्तुत संग्रहके एक लेख ( क्र० १९ ) में काशी के पंचस्तूप निकायके आचार्य गुहनन्दिका वर्णन है । इनके शिष्योंके लिए वटगोहाली ग्राममे एक विहार था जिसे ब्राह्मण नाथशर्माने सन् ४७९ में कुछ दान दिया था । २
(ऋ) जम्बूखण्डगण -- इसका उल्लेख छठी-सातवीं सदीके एक लेखमे ( क्र० २२ ) हुआ है । इसके आचार्य आर्यणन्दिको सेन्द्रक राजा इन्द्रणन्दने कुछ दान दिया था ।
( ऋ) सिहवूर गण - इसका एक लेख ( क्र० ५६ ) मिला है। इसमे सन् ८६० मे सम्राट् अमोघवर्ष द्वारा इस गणके नागनन्दि आचार्यको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है ।
(ल) जैन संघ के विषय में साधारण विचार - अब तक जैन मुनियो के विभिन्न संघोका जो परिचय दिया गया है उससे स्पष्ट है कि इनमें व्यवहार
१. माथुर संघ बाद में काष्ठासंघका एक गच्छ बन गया था । इसका विस्तृत वृत्तान्त हमने 'महारक सम्प्रदाय' में दिया है ।
२. धवलाटीका के कर्ता वीरसेन आचार्य पंचस्तूप अन्वय के ही थे (धवलाप्रशस्ति ) । किन्तु उनके प्रशिष्य गुणभद्र उन्हें सेनान्वयका कहते हैं। हो सकता है कि पंचस्तूपान्वयको ही बादमें सेनान्वय नाम प्राप्त हुआ हो । किन्तु सेनान्वय सन् ७८० के लगभग अस्तित्वमें आ चुका था यह पहले स्पष्ट कर चुके हैं। I
३. जम्बूखण्ड गण तथा सिंहवूर गणका वर्णन पहले संग्रहमें नहीं है ।