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जैन शिलालेख - संग्रह
७ केलगुलंत स्थलवृत्तिय तोट गढे बेदलु म८ ने आ देवरुगलिगुलं तह समस्ततेजस्वा९ यवनु श्रा श्रीवीरनारसिंहदेवरसरु आ मल्ल१० ण्णंगे दानवागि धारापूर्वके माडि श्राचद्रार्क११ तारं बरं सल्वंतागि कोहरु मंगल महा श्री श्री
[ इस लेख मे होयसल राजा नरसिह द्वारा केरेयसंथे स्थित द्रविलसंघकी आदिनाथ- पार्श्वनाथ बसदिके लिए चिक्कमल्लण्णको कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । लिपि १२वीं सदीकी है तदनुसार यह लेख बहुधान्य संवत्सर = सन् १९५९ का होगा । तब नरसिंह प्रथमका राज्य चल रहा था । इस समय यह लेख जनार्दनमन्दिर मे लगा है । ]
[ ए०रि० मै० १९४५ पृ० ११२ ]
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हुलियार (मैसूर) १२वीं सदी-मध्य, कन्नड
| इस लेखमे होयसल राजा नरसिह १ के समय चान्द्रायण देवके शिष्य सामन्त गोवकी पत्नी श्रीयादेवी द्वारा एक जिनमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । इस समय यह पादपीठ विष्णुमूर्ति के लिए उपयोगमे लाया
जाता । ]
[ १५३
[ ए०रि० मं० १९१८ पृ० ४५ ]
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हरिद्वार ( उत्तरप्रदेश )
सं० १२१६ = सन् ११५९, संस्कृत-नागरी [ यह लेख पीतलकी चौबीसी - मूर्तिके स्थापनातिथि आषाढ़ ९, सं० १२१६ दी है। म्युजियम है । ]
पीठपर है । इसमे मूर्तिकी मूर्ति इस समय लखनऊ
[ मे० आ० स० ११ ( १९२२ ) पृ० १५ ]