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________________ जैन शिलालेख संग्रह [ १५४ - १५ यद पूर्वावतारमेन्तेने ॥ क ॥ श्रीवसुधेशन बावं रेवकनिर्मडिय वल्लभं तुगनात्मावगतसकलशास्त्र निलाविश्रुतकीर्ति १०४ १६ गंगमंडलनाथ ॥ वृ ॥ रूडिगे रूडिवेत्तेसेद बेल्वलदेशमनाल्द गंगपेर्माडिगलिन्दमणिगेरे नालकेरेवट्टेनिमित्त नाढ नाडा १७ डिगलुंबमेंबिनेगमा पुरदोलु जयदुत्तरंग पेर्माडियिनाय्तु बूतुगनरेंद्र ननल्लि जि १८ नेंद्रमंदिर ॥ वृ || संगतमागे माडि तलवृत्तियनल्लिगे मूडगेरि गुम्मुंगोलनादियागेनेगल दिट्ट १९ में गावरिवाडमेंब बाडंगल शासनं बेरसु सर्वनमस्यमिवेंदु बिहु गुणकीर्तिपंडित मक्ति २० यिनुत्तमदानशक्तियि ॥ क ॥ उदितोदितमेने विभवास्पदमेने भुवनयूकवन्द्यमेने संचलमागदे गंगा २१ न्वयमुलिनमिदु सर्वनमस्यवागि नडेयुत्तमिरलु ॥ वृ ॥ परमश्रीजिनशासनक्के मोदलादी मूलसंघ २२ निरन्तरमोप्पुत्तिरे नन्दिसंघवेमरिंदादम्बयं पेपुवेत्तिरे सन्दर् वलगारमुख्यगणदोलु गंगान्वयविक २३ तिर्गुरुलु तामेने वर्धमानमुनिनाथर् धारिणीचक्रदोलु ॥ श्रीनाथर् जैनमार्गोत्तमरेनिसि तपः ख्यातियं २४ तादिदर् सज्ज्ञानात्मर् वर्धमानप्रवरवर शिष्यर् महावादिगलु विद्यानन्दस्वामिगल तम्मुनिपतिगनुजर तार्किका २५ कमिधानाधीनर माणिक्यनं दिविपतिगलवर शासनोदात्तहस्वरु ॥ तदपत्यर् गुणकीर्तिपंडितर् अवर् तच्छास
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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