________________
- १३० ]
बेलुका लेख
८० मतिसंवत्सरं प्रवर्तिसे
८२ श्रदेकादशि आदित्य
८४ मण्डलेश्वरं वीरसान्तर
८१ बैशाखमासद कृष्णप
८३ वारदंदु श्रीमन्महा
८५ नगुलरसंगे पेर्वय
८० बिट्टियुमं कादु परिहा८९ मर्यादेयनलिदं वा९१ दोल सासिरकविलेयुं
९३ क्कु । स्वदत्तां परदत्तां वा यो ९५ हस्राणि विष्ठायां जायते कि
९७ श्रीप्रतिमेय मारसिंग
९८ तनयं विद्वद्विप्रं गंगननृपनि- ९९ योगप्रभु कविराज वल्लभं गो
१०० विन्द
१०२ पोंबुचनाडोले
८६ ल् पनेरडर किरुदेरे
"
८८ रं बिकेगेडु कल्नाडिन्ती
९०
रणसियोल कुरुक्षे
९२ पार्वरुमनलिद पातकन९४ हरेत वसुंधरां षष्टिर्वर्षस
९६ मिः । विप्रकुलांवरचंद्र
१०४ ल कदगोड मैसेपन्नेर
१०६ लिगारं । बीरसिनु नगुल१०८ गाणं ॥ मंगलं
८९
पन्नेरडु
१०१ पेर्वयल १०३ मत्तगावे हदिगा
१०५ डुम नेलिवयलुं पा१०७ रसनुमेय दिवेतं सासिर
[ यह लेख एक स्तम्भके चारों बाजुओंपर लिखा है | चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्लके अधीन पट्टिपोंबुचके महामण्डलेश्वर वीरसान्तर के समयका यह लेख है । इसके मन्त्रीका नाम नकुलरस था । ये दोनों जैन कहे गये हैं । इनके गुरु पुष्पसेनदेव थे । नगुलरसके पिता पडियर काटि, माता अरेयब्बे तथा पत्नी चट्टरसि थीं । इनके दो पुत्र चावुण्डराय और नागवर्म थे । लेखमें वीरसान्तर-द्वारा अंकेगेड ग्राम और पेय विभाग के कुछ करोंका उत्पन्न नकुलरसको अर्पित किये जानेका उल्लेख है । इस लेख के पाठकी रचना गोविन्दने की थी जो मारसिंगका पुत्र था और गंगराजाओंके समयसे कवियों मे प्रिय था । लेखको चित्तारि केतोजके पुत्र आयूवोजने उकेरा था । लेखनिर्दिष्ट दानकी तिथि वैशाख व० ११, रविवार, शक