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जैनशिलालेख संग्रह
३७ तळप्रहारदोले नूं गुटदिन्दे मीण्टुवं कबुंगु
३८ धर्ममहाराजाधिराजपरमेश्वरं । कोलालपुरवरेश्वरं । नन्दगिरिनाथं
मदगजेन्द्र ....
३९ मण्डलिक देवेन्द्र दर्पोद्धतारातिवनजवन वेदण्डं
४० देवं माडिसिद तीर्थद बसदियं ...
४१ ... चन्द्रसिद्धान्तदेवर शिष्यर मुख्यवागि बिट्ट दत्ति....
४२ ननियगंगदेवनुं पट्टमहादेवि ...
४३ काणिकंयं नाडूरगलोलु पणवं कोहरा ....
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[ इस विस्तृत लेखकी पहली कुछ पक्तियाँ टूट गयी है तथा अन्य पंक्तियों के बहुत से अक्षर घिसे हैं। गंगवंशके राजा रक्कसगंग तथा नन्नियगंगके समय यह लेख लिखा गया था । इनके द्वारा तट्टिकेरे ग्रामको कुछ भूमि चन्द्र सिद्धान्तदेवको दान दी गयी थी। लेख में क्राणूगणकी आचार्यपरम्परा इस प्रकार बतलायी है . ....नन्दिभट्टारक, बालचन्द्रभट्टारक, मेघचन्द्रत्रैविद्यदेव, गुणनन्दि शब्दब्रह्म, अकलंक, प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेव, माघनन्दिसिद्धान्तदेव, प्रभाचन्द्र (द्वितीय), उनके गुरुबन्धु श्रुतकीर्ति, ( यहाँ कुछ नाम घिस गये है ) । अन्तमे मुनिचन्द्र सिद्धान्तदेवके एक शिष्यका उल्लेख है । राजा नन्नियगंगकी वंशावलीमे बूतुंग पेर्माडि, एरेयप्प, राजमल्ल, एरेयंग संगोट्ट तथा राचमल्ल इनका उल्लेख किया है । ] [ ए०रि० मै० १९२३ पृ० ११४ ]
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दानवुलपाडु स्तंभलेख (जि० कडप्पा, आन्ध्र)
१०वीं सदी, संस्कृत-कन्नड़
पहला भाग
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५ पतिय बेसदिंद
३ दिनक्कि गेलदु परिपा
२ महितरन तिकोप
४ कि (सि) दं । चतुरुदधि
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