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होसकोटे ताम्रपत्र
२५ दानाच्छु योनुपालनम् || विन्ध्याटवीध्वनम्मःसु शुष्ककोटरवासिनः । कृष्णाहिनो हि जायन्ते देवदार्य हरन्ति ये ।।
[ यह ताम्रपत्र गुप्तवर्ष १५९ के माघ मासके ७ वें दिन लिखा गया था । ब्राह्मण नाथशर्मा तथा उसकी पत्नी रामीने पुण्ड्रवर्धनके राजकोष में तीन दीनार देकर डेढ़ कुल्यवाप जमीन प्राप्त की। इसमें ४ द्रोणवाप ज़मीन पृष्ठिमपोत्तक गाँवमे, ४ द्रो० गोषाटपुंजक गाँवमे, २३ द्रो० नित्वगोहाली और १३ द्रो० वटगोहाली में थी । काशीके पञ्चस्तूपनिकाय के निर्ग्रन्थ श्रमणोंके आचार्य गुहनन्दिके शिष्य - प्रशिष्योंका एक विहार वटगोहाली में था । वहाँ भगवान् अर्हतुकी पूजाके लिए गन्ध, धूप, फूल, दीप आदिकी व्यवस्थाके लिए यह जमीन नाथशर्मा तथा रामीने दान दी । इस ताम्रपत्र में परमभट्टारक पदसे किसी सम्राट्का उल्लेख किया है । ये सम्भवतः गुप्तवंशीय सम्राट् बुधगुप्त थे । पहाड़पुरके समीपका गोआलभिटा गाँव ही सम्भवतः प्राचीन वटगोहाली हैं । यहाँके एक बड़े मन्दिरके उत्खनन में कई जैन, बौद्ध तथा ब्राह्मण अवशेष मिले हैं । ]
[ ए० इं० २० पृ० ५९ ]
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होसकोटे (मैसूर) ६वीं सदी पूर्वार्ध संस्कृत
पहला पत्र :
१ स्वस्ति जितं भगवता गतघनगगनाभेन पद्मनाभेन श्रीमज्जा
वेयकुलामलग्यो -
स्वभुजजवजयजनित सुजन जनपदस्य
३ विदारणरणोपलब्धव्रणविभूषणभूषितस्य काण्वायनसगोत्रस्य श्री
४ मत्कोंग णवमं धर्ममहाधिराजस्य पुत्रस्य पितुरम्वागतगुणयुक्तस्य
२ मावमासन मास्करस्य
दारुणारिगण