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प्रस्तावना
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सुभूति-द्वारा निर्मित गुहाका भी उल्लेख है।'
पाटलिपुत्रके गुप्त राजाओंके समयका एक लेख (क्र० १९) प्रस्तुत संग्रहमें है। यह सन् ४७९ का है तथा इसमें एक ब्राह्मण-द्वारा वटगोहालीके जैन विहारको कुछ दान मिलनेका वर्णन है।
हस्तिकुण्डी ( राजस्थान ) के राष्ट्रकूट वंशके राजा विदग्धराजका उल्लेख सन् ९४० के एक लेख (क्र० ८१) में मिला है। आचार्य वासुदेवके उपदेशसे इस राजाने ऋषभदेवका एक मन्दिर बनवाया था। इस मन्दिरके लिए राजाने अपनी सुवर्णतुला कराकर दान दिया था तथा नगरके व्यापारियोंसे कुछ करोकी आय भी अर्पित की थी। यह कार्य सन् ९१७ में हआ था। विदग्धराजके पुत्र मम्मटने सन् ९४० मे उक्त दानको पुनः सम्मति दी। मम्मटके पुत्र धवलको वीरताका विस्तारसे वर्णन इस लेखमें मिलता है। धवलके पुत्र बालप्रसादके समय सन् ९९७ में उक्त मन्दिरका जीर्णोद्धार हुआ था।
उडीसाके राजा उद्योतकेसरीके समय - दसवीं सदीके दो लेख (क्र० ९३-९४) इस संग्रहमे हैं। इनमे खण्डगिरिके पुरातन मन्दिरोंके जीर्णोद्धारका वर्णन है। १. पहले संग्रहमें खारवेलके जीवन के विषय में एक विस्तृत लेख (क्र०२)
आ चुका है। उसके पहले मौर्य सम्राट अशोकके लेखमें (ऋ० १) निर्ग्रन्थों ( जैनों) की देखभालका भी उल्लेख हुआ है। २. पहले संग्रहमें गुप्तकालके तीन लेख ( ऋ० ९१-९३ ) आये हैं।
उसके पहले शक और कुषाण राजाओंके कई लेख मी हैं। ३. पहले संग्रहमें इस राजवंशका उल्लेख नहीं है। वहाँ इसके पहले
गुर्जर प्रतिहार राजा भोजका एक लेख (क्र. १२८) है। इसी समयके कच्छपघात तथा चन्देल वंशोंके भी कुछ लेख पहले संग्रहमें आये हैं (क्र० १५३, २२८ भादि)।