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________________ १४८ जैन शिलालेख संग्रह २०२ रताल ( जि० धारवाड़, मैसूर ) शक १०४५ = सन् ११२३, कन्नड [ यह लेख चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लके समयका है । उस समय बनवासि तथा पानुंगल प्रदेशोपर कदम्ब कुलका महामण्डलेश्वर तैलपदेव शासन कर रहा था । मूलसंघक्राणूरगणके कनकचन्द्र के शिष्य गंगर बम्मिसेट्टिने कोन्तकुलि विभागके प्रमुख नगर पयिट्टणमे एक मन्दिर बनवाया । बिसेट्टि बट्टकेरेका निवासी था । इस लेखकी तिथि पोष अमावास्या, सूर्यग्रहण, रविवार, शक १०४५, शुभकृत् संवत्सर ऐसी दी हैं ।] [रि० स० ए० १९४३ -४४ एफ् १] २०३ हिरेसिंगनगुत्ति ( बिजापुर, मैसूर ) ११वीं - १२वीं सदी, कन्नड [ २०२ [ इस खण्डित लेखका समय चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लदेव (विक्रमादित्य पष्ठ ) के राज्यका है। देसिगगण - पुस्तक गच्छके आचार्य बालचन्द्रका इसमें उल्लेख है । किसी मन्दिरके लिए उन्हे कुछ भूमि अर्पण की गयी थी ।] [ मूल लेख कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० २६२ ] २०४ तोगरकुण्ट ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) ११वीं - १२वीं सदी, कन्नड [ यह लेख चालुक्यराजा त्रिभुवनमल्लके समय एक सूर्यग्रहण के अवसरपर लिखा है । इसमे तोगरकुण्टेके चन्द्रप्रभदेवबसदिके लिए दण्डनायक
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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