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जैन शिलालेख संग्रह
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तत्पुत्रो पाल्हणो भुवि । तदंगजेमाह डेनापि निर्मापितं जिनमंदिरं ॥६०॥ नानिगः पुत्रगोविंदपाल्हणसुतदेल्हणौ । उत्कीर्णा प्रशनिरेषा च कीर्तिस्तम्भं प्रतिष्ठितं ॥ ६१ ॥ प्रसिद्धिमगमद्देवः कालं विक्रमभास्वत: षड्विंशे द्वादशशते फाल्गुने कृष्णपक्ष के ॥ ६२ ॥ २६ ( तृतीयायां तिथों वारे गुरुस्वारे च हस्तके | धृतिनामनि योगे च करणे तैतिले तथा ॥ ६३ ॥ (सं) वत् १२२६ फाल्गुन वदि ३ कांवारेवणाग्रामयोरं तराले गुहिलपुत्र रा० दाधरमहं वणसीहाभ्यां दस क्षेत्र ढोहली १ खदुंबराप्रामवास्तव्य गौडसोनिगवासुदेवाभ्यां दत्त ढोहलिका १ आंतरीप्रतिगणके रायताप्रामीय महंतमडिपोप लिभ्यां दत्त क्षेत्र डोहलिका लघुवीझोलिग्राम संगुहिलपुत्र राज्याहरूमहंतममाहवा-
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३० (भ्यां द) त क्षे (य) डोहलिका १ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिस्तादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमी तस्य तस्य तदा फलं ॥ छ ॥
[ इस लेखका निर्देश जै० शि० सं० के तृतीय भाग मे क्र० ३७४ पर हुआ है किन्तु उस समय इसे श्वेताम्बर लेख समझकर मूल पाठ नही दिया गया था । इसमे पहले २८ श्लोकोंमें साभरके चौहान राजाओकी वंशावली चाहुमान से सोमेश्वर तक दो है । इसमे कुल ३१ राजाओंके नाम है । इनमे अन्तिम दो राजाओंने इस स्थानके पार्श्वनाथ मन्दिरको दो गाँव दान दिये थे - पृथ्वीराज ( द्वितीय ) ने मोराझरी गाँव और सोमेश्वरने रेवणा गाँव दिया था । तदनन्तर इस मन्दिर के निर्माताकी वंशावली विस्तार से ५१ वें श्लोक तक दी है जो इस प्रकार है
प्राग्वाटवंशीय वैश्रवण ( इसने तडागपत्तन, व्याघ्रेरक आदि स्थानोंमे
मन्दिर बनवाये ) - उसका पुत्र चच्चुल पुत्र जासट ( इसने नाराणक स्थानमे वर्धमान दो स्त्रियोंसे दो दो पुत्र हुए - आम्बट, पद्मट,
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उसका पुत्र शुभंकर - उसका मन्दिर बनवाया ) - उसको लक्ष्मट तथा देसल ( इनने