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योग-शास्त्र
प्रकाशावरण,' सोपक्रम-निरुपक्रम,२ वज्रसंहनन,३ केवली कुशल, ज्ञानावरणीय-कर्म, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सर्वज्ञ, क्षीण क्लेश,१० चरम देह आदि शब्दों का जैनागम एवं योग-शास्त्र में प्रयोग मिलता है।
१-योग-शास्त्र, २, ५२, ३, ४३,। जैनागमों में प्रकाशावरण के स्थान
में ज्ञानावरण शब्द का प्रयोग मिलता है, परन्तु दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है—जान को प्रावृत्त करने वाला कर्म। -तत्त्वार्थ .
सूत्र, ६, १०; भगवती सूत्र, ८, ६, ७५-७६ । २-योग-सूत्र ३, २२ । जैन कर्म-ग्रन्थ, तत्त्वार्थ सूत्र (भाष्य) २, ५२;
स्थानांग सूत्र (वृत्ति) २, ३, ८५ । ३-योग-सूत्र ३, ४६ । तत्त्वार्थ (भाष्य) ८, १२ और प्रज्ञापना सूत्र । __ जैन-प्रागमों में वज्रऋषभ-नाराच-संहनन शब्द मिलता है। ४-योग-सूत्र (भाष्य), २, २७; तत्त्वार्थ सूत्र, ६, १४ । ५-योग-सूत्र २, २७; दशवकालिक नियुक्ति. गाथा १८६ । ६-योग-सूत्र (भाष्य), २, ५१ ; उत्तराध्ययन सूत्र ३३, २; प्रावश्यक
नियुक्ति, गाथा ८६३ । ७-८-योग-सूत्र २, २८, ४, १५; तत्त्वार्थ सूत्र, १, १ ; स्थानांग सूत्र
३, ४, १९४॥ ९-योग-सूत्र (भाष्य), ३, ४६; तत्त्वार्थ सूत्र (भाष्य), ३, ३६ । १०-योग-सूत्र १, ४ । जैन शास्त्र में बहुधा क्षीणमोह, क्षीण-कषाय
शब्द मिलते हैं-देखें तत्त्वार्थ, ६, ३८ प्रज्ञापना सूत्र, पद १ । ११-योग-सूत्र (भाष्य) २, ४ ; तत्त्वार्थ सूत्र २, ५२; स्थानांग सूत्र
(वृत्ति), २, ३, ८५।
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