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योग-शास्त्र
वह चेतन को जैन-दर्शन की तरह परिणामी नित्य तथा बौद्ध-दर्शन की तरह एकान्त क्षणिक न मानकर सांख्य एवं अन्य वैदिक दर्शनों की तरह कूटस्थ नित्य मानता है। २. ईश्वर ____ योग-शास्त्र सांख्य-दर्शन की तरह ईश्वर के अस्तित्व से इन्कार नहीं करता।' वह ईश्वर को मानता है और उसे जगत का कर्ता भी मानता है। ३. जगत
योग-शास्त्र जगत के स्वरूप को सांख्य-दर्शन की तरह प्रकृति का परिणाम और अनादि-अनन्त प्रवाह रूप मानता है। वह जैन, वैशेषिक एवं नैयायिक दर्शन की तरह उसे परमाणु का परिणाम नहीं मानता, न शंकराचार्य की तरह ब्रह्म का विवर्त-परिणाम मानता है, और न बौद्ध-दर्शन की तरह शून्य या विज्ञानात्मक स्वीकार करता है। ४. संसार और मोक्ष का स्वरूप
योग-शास्त्र में वासना, क्लेश और कर्म को 'संसार' कहा है और उसके प्रभाव को 'मोक्ष'।२ संसार का मूल कारण अविद्या और मुक्ति का मुख्य कारण सम्यग्दर्शन या योग-जन्य विवेक माना है । योग-शास्त्र और जैन-दर्शन में समानता
योग-शास्त्र का अन्य दर्शनों की अपेक्षा जैन-दर्शन के साथ अधिक साम्य है । फिर भी बहुत कम विचारक इस बात को जान-समझ पाए हैं । इसका एक ही कारण है कि ऐसे बहुत कम जैन विचारक, दार्शनिक . एवं विद्वान हैं, जो उदार हृदय से योग-शास्त्र का अध्ययन करने वाले
हों और योग-शास्त्र पर अधिकार रखने वाले ऐसे ठोस विद्वान भी कम १. सांख्य-सूत्र, १, १२ । २. पातञ्जल योग-सूत्र, १, ३॥
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