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एक परिशीलन
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दर्शन द्वितीय पक्ष को अन्तिम साध्य मानते हैं। उनका विश्वास है कि शाश्वत सुख को प्राप्त करना ही साधक का अन्तिम ध्येय है और यह साध्य मोक्ष है।
योग-शास्त्र में विषय का वर्गीकरण उसके अन्तिम साध्य के अनुरूप ही है । उसमें अनेक सिद्धान्तों का वर्णन है, परन्तु संक्षेप में वह चार विभागों में विभक्त किया जा सकता है-१. हेय, २. हेय हेतु, ३. हान, और ४. हानोपाय । दुःख हेय है, अविद्या हेय का कारण है, दुःख का प्रात्यन्तिक नाश हान है और विवेकख्याति हानोपाय है।' सांख्य-सूत्र में भी यही वर्गीकरण मिलता है । तथागत बुद्ध ने इसी चतुयूंह को 'आर्य-सत्य' का नाम दिया है। और योग-शास्त्र में वर्णित अष्टांग योग की तरह चतुर्थ आर्य-सत्य के साधन रूप से 'आर्य अष्टांग . मार्ग' का उपदेश दिया है ।। ___इसके अतिरिक्त योग-शास्त्र में वणित चतुव्यूह का दूसरी प्रकार से भी वर्गीकरण किया है-१. हाता, २. ईश्वर, ३. जगत, और ४. संसार एवं मुक्ति का स्वरूप तथा उसके कारण । १. हाता - ___ दुःख से सर्वथा निवृत्त होने वाले दृष्टा-प्रात्मा या चेतन को 'हाता' कहते हैं । योग-शास्त्र में सांख्य, वैशेषिक, नैयायिक, बौद्ध, जैन एवं पूर्णप्रज्ञ (मध्व) दर्शन की तरह अनेक आत्माएँ-चेतन स्वीकार की हैं । परन्तु, आत्मा के स्वरूप की मान्यता में भेद है । योग-शास्त्र आत्मा को न तो जैन-दर्शन की तरह देह-प्रमाण मानता है और न मध्व संप्रदाय की तरह अणु-प्रमाण मानता है। वह सांख्य, वैशेषिक, नैयायिक एवं शंकर वेदान्ती की तरह आत्मा को सर्वव्यापक मानता है। इसी तरह . १. योग-शास्त्र। -महर्षि पतञ्जलि, २, १६, १७, २४, २६. २. बुद्धलीलासार संग्रह, पृष्ठ १५० ।
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