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____ योग-शास्त्र
और हेय, हेयहेतु, हान और हानोपाय-इस चतुव्यूह का वर्णन है । तृतीय पाद में योग की विभूतियों का उल्लेख किया गया है। और चतुर्थ पाद में परिणामवाद का स्थापन, विज्ञान-वाद का निराकरण और कैवल्य अवस्था के स्वरूप का वर्णन है।
प्रस्तुत योग-शास्त्र सांख्य दर्शन के आधार पर रचा गया है। यही कारण है कि महर्षि पतञ्जलि ने प्रत्येक पाद के अन्त में यह अंकित किया है-योग-शास्त्र सांख्य-प्रवचने । 'सांख्य-प्रवचने' इस विशेषण से यह स्पष्टतः ध्वनित होता है कि सांख्य-दर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों के सिद्धान्तों के आधार पर निर्मित योग-शास्त्र भी उस समय विद्यमान थे।
यह हम पहले बता चुके हैं कि सभी भारतीय विचारकों, दार्शनिकों एवं साहित्यकारों के चिन्तन का आदर्श मोक्ष रहा है। परन्तु, मोक्ष के स्वरूप के सम्बन्ध में सभी विचारक एकमत नहीं हैं। कुछ विचारक मुक्ति में शाश्वत सुख नहीं मानते । उनका विश्वास है कि दुःख की प्रात्यन्तिक निवृत्ति ही मोक्ष है। इसके अतिरिक्त वहाँ शाश्वत सुख जैसी कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है। कुछ विचारक मुक्ति में शाश्वत सुख का अस्तित्व स्वीकार करते हैं। उनका यह दृढ़ विश्वास है कि जहाँ शाश्वत सुख है, वहाँ दुःख का अस्तित्व रह ही नहीं सकता, उसकी निवृत्ति तो स्वतः ही हो जाती है । वैशेषिक, नैयायिक', सांख्य २, योग' और बौद्ध दर्शन प्रथम पक्ष को स्वीकार करते हैं । वेदान्त और जैन
१. तदत्यन्तविमोक्षोपवर्गः । . -न्याय दर्शन, १. १, २२. २. ईश्वर-कृष्ण-कारिका, १।। ३. योग-शास्त्र में मुक्ति में हानत्व माना है और दुःख के प्रात्यन्तिक
नाश को ही हान कहा है। -पातञ्जल योग-शास्त्र २, २६. ४. तथागत बुद्ध के तृतीय निरोध नामक प्रार्य-सत्य का अर्थ
दुःख का नाश है। -बुद्धलीलासार संग्रह, पृष्ठ १५०.
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