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एक परिशीलन
२१ के नाम से लिखे गये थे । आचार्य शंकर ने ब्रह्मसूत्र भाष्य में योग-दर्शन का खण्डन करते हुए लिखा है-'अथ सम्यग्दर्शनाभ्युपायो योगः'।' इस सूत्र से यह स्पष्ट होता है कि भाष्यकार के सामने पातञ्जल योगशास्त्र से भिन्न योग-शास्त्र भी रहा है। क्योंकि, पातञ्जल योग-शास्त्र'अथ योगानुशासनम्'२ सूत्र से शुरू होता है। इसके अतिरिक्त प्राचार्य शंकर ने अपने भाष्य में योग से संबन्धित दो सूत्रों का और उल्लेख किया है, 3 जिनमें से एक सूत्र तो पातञ्जल योग-शास्त्र का पूरा सूत्र है। और दूसरा उसका अविकल सूत्र तो नहीं, परन्तु उससे मिलताजुलता सूत्र है । परन्तु 'अथ सम्यग्दर्शनाभ्युपायो योगः'-इस सूत्र की मौलिकता एवं शब्द-रचना से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्राचार्य शंकर द्वारा उद्धृत अन्तिम दो उल्लेख भी इसी योग-शास्त्र के होने चाहिए। दुर्भाग्य से वह योग-शास्त्र आज अनुपलब्ध है। अतः वैदिक परंपरा के योग विषयक साहित्य में योग-शास्त्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण
प्रस्तुत योग-शास्त्र चार पाद में विभक्त है और इसमें कुल १६५ सूत्र हैं। प्रथम पाद का नाम समाधि, द्वितीय का साधन, तृतीय का विभूति और चतुर्थ का नाम कैवल्य पाद है। प्रथम पाद में प्रमुख रूप से योग के स्वरूप, उसके साधन और चित्त को स्थिर बनाने के उपायों का वर्णन है । द्वितीय पाद में क्रिया-योग, योग के आठ अंग, उनका फल
१... ब्रह्मसूत्र भाष्य, २, १, ३. २. योग-शास्त्र। .
-महर्षि पतंजलि, १, १. ३. स्वाध्यायादिष्टदेवतासंप्रयोगः; प्रमाण-विपर्यय-विकल्प-निद्रा-स्मृतयः नाम ।
-ब्रह्मसूत्र भाष्य, १, ३, ३३, २, ४, १२. ४. देखें पातजल योग-शास्त्र, २, ४. ५. देखें पातञ्जल योग-शास्त्र १, ६.
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