________________
एक परिशीलन
प्रकरणों में योग के सब मंगों का वर्णन है। योग-दर्शन में योग के सम्बन्ध में जो वर्णन संक्षेप से किया गया है, उसी का विस्तार करके ग्रन्थकार ने योगवासिष्ठ के आकार को बढ़ा दिया है। इससे यही कहना पड़ता है कि योगवासिष्ठ योग का महाग्रन्थ है।
पुराण साहित्य में सर्वशिरोमणि भागवत पुराण का अध्ययन करें, तो उसमें भी योग का पूरा वर्णन मिलता है ।'
भारत में योग का इतना अधिक महत्व बढ़ा कि सभी विचारक इस पर चिन्तन करने लगे। तान्त्रिक सम्प्रदाय ने भी योग को अपने तन्त्र ग्रन्थों में स्थान दिया। अनेक तन्त्र ग्रन्थों में योग का वर्णन मिलता है । परन्तु, महानिर्वाण तन्त्र और षट्चक्र-निरूपण मुख्य ग्रन्थ हैं, जिनमें योग-साधना का विस्तार से वर्णन मिलता है ।।
मध्य युग में योग का इतना तीव्र प्रवाह बहा कि चारों ओर उसी का स्वर सुनाई देने लगा । आसन, मुद्रा, प्राणायाम आदि योग के बाह्य अंगों पर इतना जोर दिया गया कि योग की एक सम्प्रदाय ही बन गई, जो हठयोग के नाम से प्रसिद्ध रही है। आज उस संप्रदाय का कोई अस्तित्व नहीं है। केवल इतिहास के पन्नों पर ही उसका नाम अवशेष है।
हठयोग के विभिन्न ग्रन्थों में हठयोग-प्रदीपिका, शिव-संहिता, घेरण्डसंहिता, गोरक्ष-पद्धति, गोरक्ष-शतक, योगतारावली, बिन्दु-योग, योगबीज, योगकल्पद्र म आदि प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इनमें हठयोग- प्रदीपिका मुख्य
१. भागवत पुराण, स्कंध ३, अध्याय २८; स्कन्ध ११, अध्याय १५,
१६ और २० । २. महानिर्वाण तंत्र, अध्याय ३ ; और Tantrik Texts में प्रकाशित
षट्चक्र-निरूपण, पृष्ठ, ६०, ६१, ८२, ६०, ६१ और १३४ ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org