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योग-शास्त्र
योगांगों का वर्णन किया है। सांख्य दर्शन में भी योग विषयक अनेक सूत्र हैं। महर्षि बादरायण ने ब्रह्मसूत्र के तृतीय अध्ययन का नाम 'साधन' रखा है और उसमें प्रासन, ध्यान आदि योगांगों का वर्णन किया है। योग-दर्शन तो प्रमुख रूप से योग विषयक ग्रन्थ है ही, अतः उसमें योग-साधना का सांगोपांग वर्णन मिलना सहज-स्वाभाविक है। वैदिक साहित्य में महर्षि पतंजलि का योग-शास्त्र ही योग विषयक सब से महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। ___ उपनिषदों में सूचित और दर्शन साहित्य में वणित योग-साधना का पल्लवित-पुष्पित रूप गीता में मिलता है । वस्तुतः देखा जाए तो गीता युद्ध के मैदान में उपदिष्ट योग विषयक ग्रन्थ है। उसमें योग का विभिन्न तरह से वर्णन किया गया है। उसमें योग का स्वर कभी कर्म के साथ, कभी भक्ति के साथ और कभी ज्ञान के साथ सुनाई देता है।" गीता के छठे और तेरहवें अध्याय में तो योग के सब मौलिक सिद्धान्त और योग की समस्त साधना का वर्णन आ जाता है ।
योगवासिष्ठ में योग का विस्तृत वर्णन किया गया है। उसके छह १. अभिषेचनोपवास-ब्रह्मचर्य-गुरुकुलवास-वानप्रस्थ-यज्ञदान प्रोक्षणदिङ -नक्षत्र-मन्त्रकाल-नियमाश्चादृष्टाय ।
-वैशेषिक दर्शन, ६, २, २, ६, २, ८. २. सांख्य सूत्र, ३, ३०-३४. ३. ब्रह्म सूत्र, ४, १, ७-११. ४. गीता के अठारह अध्यायों में पहले छह अध्याय कर्म-योग प्रधान हैं,
मध्य के छह अध्याय भक्ति-योग प्रधान हैं और अन्तिम छह अध्याय
ज्ञान-योग प्रधान हैं। ५. गीता रहस्य (पं० बाल गंगाधर तिलक) भाग २ की शब्द-सूची देखें।
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