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एक परिशीलन
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में योग शब्द का आध्यात्मिक अर्थ में प्रयोग होने लगा था । यही कारण है कि प्राचीन उपनिषदों में भी योग, ध्यान श्रादि शब्द समाधि के अर्थ में पाए जाते हैं । ' अनेक उपनिषदों में योग का विस्तृत वर्णन मिलता है । उनमें योग- शास्त्र की तरह योग - साधना का सांगोपांग वर्णन मिलता है । २
प्राध्यात्मिक चिन्तन को महत्व और परमात्मा सम्बन्धी बिखरे हुए विचारों को विभिन्न ऋषियों ने सूत्रों में ग्रथित किया । इस तरह प्राध्यात्मिक चिन्तन को दर्शन का रूप मिला । क्योंकि, समस्त दार्शनिकों का अन्तिम ध्येय मोक्ष रहा है । यह हम पहले ही बता चुके हैं कि मुक्ति के लिए कोरे ज्ञान की ही नहीं, साथ में क्रिया - साधना की भी श्रावश्यकता रहती है। इसलिए सभी दार्शनिकों ने साधना रूप से योग की उपयोगिता को स्वीकार किया है । महर्षि गौतम के न्याय दर्शन में मुख्य रूप से प्रमाण विषयक विचार हैं, उसमें भी योग-साधना को स्थान दिया है । 3 महर्षि कणाद ने भी वैशेषिक दर्शन में यम, नियम, शौचादि
वेदों के बाद उपनिषद काल में दिया गया । उपनिषदों में जगत, जीव
१.
तैत्तरीय उप०, २, ४, कठोपनिषद् २, ६, ११; श्वेताश्वतर उप० २, ११, ६, ३; १, १४; छान्दोग्य उप० ७, ६, १; ७, ६, २; ७, ७, १; ७, २६, १; कौशीतकि, ३, २, ३, ३; ३, ४ ।
२. ब्रह्मविद्योपनिषद्, क्षुरिकोपनिषद्,
चूलिकोपनिषद्, नाव-बिन्दु, ब्रह्म-बिन्दु, अमृत-बिन्दु, ध्यान-बिन्दु, तेजोबिन्दु; Philosophy of Upanishad's.
समाधि-विशेषाभ्यासात् । अरण्य - गुहा- पुलिनादिषु योगाभ्यासोपदेशः । तदर्थ यम-नियमाभ्यामात्मसंस्कारो योगाच्चाध्यात्मविध्युपायैः । - न्याय दर्शन, ४, २, ३८ ४,२,४२, ४, २, ४६.
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