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ततिथि निर्णय श्रीमन्तं वर्धमानेशं भारती गौतमं गुरुम् ।
नत्वा वक्ष्ये तिथीनां वै निर्णयं व्रतनिर्णयम् ॥१॥ अर्थ :-श्रीमत् अनन्त चतुष्टयरूप अंतरंग श्री, और समवशरण आदि विभूतिरुप बहिरंग श्री-इन दोनों श्री से युक्त भगवान महावीर स्वामी को, जिनवाणी को, सरस्वती रुप दिव्यध्वनि को एवं गुरु गौतम गणधर को नमस्कार करके व्रत निर्णय को कहता हूँ।
श्री पद्मनंदी मुनिना पद्मदेवेन वाऽपरा । · हरिषेणेन देवादिसेनेन प्रोक्तमुत्तमम् ॥२॥ ग्राह्य तच्चेदिवान्यद्वा चतुर्गुण प्रकल्पितम् ।
विधानं च व्रतानां वै ग्राह्य प्रोक्तं समुत्तमम् ॥३॥ अर्थः-श्री पद्मनंदी मुनि अपर नाम पद्मदेव मुनि, हरिषेण, एक देवसेन से, जो चतुर्गुण प्रकल्पित-यथासमय नियम तिथि को धारण, विधिपूर्वक पालन, विधेय मंत्र का जाप और प्रोषधोपवास युक्त उत्तम व्रत कहे गये हैं, उन्हें ग्रहण करना चाहिए अथवा इन्हीं प्राचार्यों के समान अन्य प्राचार्यों के द्वारा प्रतिपादित व्रतों को ग्रहण करना चाहिए । व्रतों के लिए जो विधि-विधान, नियम तिथि, जाप्यमंत्र, अनुष्ठान करने के नियम बताये गये हैं, उन्हें निश्चयपूर्वक ग्रहण करना चाहिए।
श्र तसागर सूरीश भावशाभ्रदेवकः ।
छत्रसेनादित्यकोतिसकलादिसुकीतिभिः ।।४।। अर्थ :-श्रु तसागर प्राचार्य, भावशर्मा, अभ्रदेव, छत्रसेन, आदित्यकीति, सकलकीर्ति आदि प्राचार्यों के द्वारा प्रतिपादित व्रततिथि-निर्णय को कहता हूँ।
क्रमतोऽहं प्रवक्ष्ये वै तिथिव्रतसुनिर्णयौ । मतं ग्राह्य सांप्रतं कुलादि घटिकाप्रभम् ॥५॥