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विधानुशासन 9595959599105
अभिधानं वदेत्पूर्व पश्चात्मंत्रं तथा वदेत
एतत समस्त मित्युक्तं शत्रूच्चाटन कारकं
॥ १७ ॥
जिसमें पहले नाम और मंत्र बोला जाये वह उच्चाटन करने वाला समस्त कहलाता है।
द्वौ द्वौ मंत्राक्षरौयत्र एकैकं सांध्य वर्णकं विद्वभिर्वतं तु तत्प्रोक्तं दुष्टुमु वश्य लक्षणं
॥१८॥
जिसमें दो दो मंत्र के अक्षर और एक एक साध्य को नाम का अक्षर आवे उसे वश्य कर्म का करने वाला विदर्भित कहते हैं।
मंत्राणारितं साध्यं समंता तिष्टते यदि आक्रांतं तद्विजानीयात्सद्यं सर्वार्थ सिद्धिदं
॥ १९॥
यदि साध्य का नाम चारों तरफ मंत्र से घिरा हुवा हो तो उसे सब अर्थों को सिद्धि करने वाला आक्रांत कहते हैं।
तोभ स्तंभ समावेश वश्योच्चाटन कर्मसु सकृत्य सर्व वदेन्मंत्र मंते चैव तथा पुनः
॥ २० ॥
वह स्तोभन स्तंभन आवेशन वश्य और उद्घाटन कर्मों में काम में आते हैं, जिससे जिसमें आदि
में एक बार पूरा मंत्र और अंत में भी पूरा मंत्र कहें ।
मध्ये चास्य भवेत्साद्य माद्यतं मितित द्विदुः अन्योन्य प्रीतियुक्तानां विद्वेषण करं परं
॥ २१ ॥
तथा मध्य में साध्य का नाम हो तो उसे आद्यंत कहते हैं। यह दो व्यक्तियों में विद्वेषण करते हैं।
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आदौ चांते तथा मंत्रं द्विधातं सं प्रयोजयेत् साध्य नाम स कृन्मध्ये गर्भस्थिंतु तदुच्येत्
॥ २२ ॥
आदि और अन्त में दो बार मंत्र का प्रयोग करके बीच में एक बार साध्य का नाम रखने को गर्भस्थ कहते हैं ।
मारणोच्चाटनं वश्यं प्रयुक्तकारयेन्नृणां हंतिनौ सो नदीगर्भ स्तंभनं च गतिं तथा
॥ २३ ॥
मनुष्यों के मारण उच्चाटन यश्य में तथा नदी स्तभंन नौकाभंजन और गर्भ स्तंभन में प्रयोग किया जाता है।
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