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SUSICISTOTSIDASIRIDI05 विधानुशासन ASTRISTORSCISIONSIDIY
प्लव: व्योमल मेयाया न्यूक्तं साजित स्तत:. पूज्ये आर्यः स विभुश्चंद्रो मंत्री लक्ष प्रजाप्रोवतः ॥१४१ ।।
सिद्धौ सौ स्यात् सप्पिः कपिलाया स्तेन मंत्रितं,
त्रिशतां पीतं निष्टह गुल्म रुचि हद्रोग जरा गृहणिकादि हरं ॥ ९४२॥ प्लव व्योम (ह) मेधा सहित इमजित (इ) पूज्य (त) आर्य (ग) विभु(ए) चंद्रो (लों) यह मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होता है। इस मंत्र के सिद्ध हो जाने पर इस मंत्र से कपिल गाय के घृत को तीन सौ बार मंत्रित करके पीने से वह गुल्म (तिल्ली) अरुचि हृदय के रोग बुढ़ापा संग्रहणी आदि रोगों को नर करता है ।
तज्जप्तं चुलुकांभः पातः पीतं समस्त रोग हरं, तेनाभिमंत्र्य दद्यादौषधमपि सर्व रोगेषु
॥१४३॥ एक चुल्ल भर पानी को इस मंत्र ने अभिमंत्रित करके प्रातःकाल के समय पीने से सब रोग नष्ट हो जाते हैं। इस मंत्र से मंत्रित करके देने से यह सभी रोगों की औषधि है।
सैंधव स्वही मध्यस्थं दग्धमंगार वन्हिना, सलिलेन कवोष्णेन पिबेत् शूलाभि पीड़ितं
॥१४४॥ सैंधय नमक को थूहर के दूध में भावना देकर खूब तेज आंचयाले अंगारों की आग पर पकाकर थोड़े गरम पानी के साथ पीने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।
पटु हिंगु कणा पथ्या रूपकै दुर्ग्रहोन्मिता, उन्मीलयंति शूलार्ति पीता कोषणेन वारिणा
||१४५ ॥ पटु (पटोल लता) हींग कणा (पीपल) पय्या (हरड़े) रुपक ( ) दुर्ग्रह (चिड़चिटा) को समान भाग पर पकाकर थोड़े गरम पानी के साथ पीने से दर्द दूर हो जाता है।
ॐभिंद भिंदघमघम कंपय कंपय हुं फट ठः ठः ॥ ॐवरं करे करे वरं विष करे ठः ठः॥
त्रि सहस्त्र जाप्प सिद्धौ मंत्रों वैश्वानरस्य पथगती,
कथितौ प्रथमो जीणं हरति पर्रा दीपते महदानं ।।१४६॥ यह दोनों वैश्वानर मंत्र पृथक पृथक तीन हजार जाप करने से सिद्ध होते हैं। इनमें पहला बदहजमी दूर करता है तथा दूसरा बड़ी भारी मंद अमि दूर करता है । CASTOREICTERISRIDIO525७६२P STOTHERDOSRISTOIES