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SSIOS5101512151035105 विधानुशासन 95101510525100511
उक्षेस मंत्रीयं कोणेष्वष्टसु विलिरवेद्वात्ताली मंत्र भणित जंभादिन ठ द्वितीटा,
धरणपुर मीदृशा मिदमा लिरवेत् प्राज्ञः ॥ १७९ ।। कोणेष्वष्टम् उक्षेश मंत्र वलय वहिरष्ट दिशासु विलिरवेत् विलिरवत् विशेषेण लिरवेत् कान वार्ताली मंत्र भणित जभादनि वार्ताली मंत्राटांतरे कथित जंभावष्ट देवतान ।।
ॐजंभे स्वाहा ॐ जंभिणि स्वाह ॐ स्तंभेस्वाहा ॐ स्तंभिनिस्वाहाॐ अंधेस्वाहा ॐ अंधिनि स्वाहा ॐ रुये स्वाहा ॐ रूधिनी स्वाहा || इत्यष्ट देवताः
प्राच्यादिष्वष्टंसु दिशासुक्रमेणस्थाप्पा:ठद्वितीयं जंभादि देवता वहि:प्रदेशे ठकार द्वितीटां धरणीपुरं ठकार वहि: प्रदेशे पृथ्वी मंडलं इंदशं यंत्रं अनेन कथित प्रकारेण इद एतद्वातालीभिधानं यंत्रं प्रालिरवेत् समंता लिरवेत् कः प्राज्ञः बुद्धिमानः॥
फलके शिलातले वा हरिताल मनः शिलादिभि लिरिवतं,
कोप गति सैन्य जिव्हा स्तंभं विदधाति विधियुक्तं ॥१८० ।। फलके काष्ट कृत फलके शिला तले वा अथवा पाषाण पट्टे वा हरिताल मनः शिलादिभि हरिताल मनः शिलादि पीत द्रव्यै लिरिवतं अलिरिवतं कोप गति सैन्य जिव्हा स्तंभ कोप स्तंभं गति स्तंभं सैन्य स्तंभ जिल्हा स्तंभं विदधाति विशेषण करोति कथं विधियुक्तं यथा विधान युक्ते सति ।।
वार्ताली यंत्रोद्धार समाप्तः बाहर उन आठों पिंडादारों के अमरपुरी इंद्रपुरी से वेष्टित करे। उनके द्वार को अंकुश बीज (क्रौं) निरोध कर देना चाहिये। फिर उसके चारों तरफ उक्षेश मंत्र ऋषभनाथ जी के मंत्र से वेष्टित करके पृथ्वी मंडल का संपुट बनाये |ऋषभनाथजी के मंत्र के बाहर आठों कोणों में वार्ताली मंत्र में बतलाई हुई जंभादि आठ देवियों को लिखें ।उससे अमले कोछक को ठकार से भरककर पृथ्वी मंडल बनाकर यंत्र समाप्त करे। बुद्धिमान के द्वारा यह यंत्र काठ की तख्ती पर पत्थर की शिला पर हरताल मेनसिल आदि पीले द्रव्यों से विधिपूर्वक लिखा जाने पर शत्रु की क्रोध गति सैन्य और जिव्हा का स्तंभन करता है। OSTEISEXSTOISEXSTO50351८९५PISTORISEXSTORSRISTORY